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स्वयं पालन करनेवाला ही उपदेश देनेका अधिकारी है।  [प्रेरक कहानी]
Short Story - Story To Read (आध्यात्मिक कथा)

एक ब्राह्मणने अपने आठ वर्षके पुत्रको एक महात्मा के पास ले जाकर उनसे कहा-'महाराजजी ! यह लड़का रोज चार पैसेका गुड़ खा जाता है और न दें तो लड़ाई-झगड़ा करता है। कृपया आप कोई उपाय बताइये।' महात्माने कहा-'एक पखवाड़ेके बाद इसको मेरे पास लाना, तब उपाय बताऊँगा।' ब्राह्मण पंद्रह दिनोंके बाद बालकको लेकर फिर महात्माके पास पहुँचा। महात्माने बच्चेका हाथ पकड़कर बड़े मीठे शब्दोंमें कहा-'बेटा! देख, अब कभी गुड़ न खाना भला, और लड़ना भी मत!' इसके बाद उसकी पीठपर थपकी देकर तथा बड़े प्यारसे उसके साथ बातचीत करके महात्माने उनको विदा किया। उसी दिनसे बालकने गुड़ खाना और लड़ना बिलकुल छोड़ दिया।

कुछ दिनोंके बाद ब्राह्मणने महात्माके पास जाकर इसकी सूचना दी और बड़े आग्रहसे पूछा-' महाराजजी आपके एक बारके उपदेशने इतना जादूका काम किया कि कुछ कहा नहीं जाता; फिर आपने उसी दिन उपदेशन देकर पंद्रह दिनोंके बाद क्यों बुलाया ? महाराजजी ! आप उचित समझें तो इसका रहस्य बतानेकी कृपा करें।' महात्माने हँसकर कहा-'भाई जो मनुष्य स्वयं संयम-नियमका पालन नहीं करता, वह दूसरोंको संयम-नियमके उपदेश देनेका अधिकार नहीं रखता। उसके उपदेशमें बल ही नहीं रहता। मैं इस बच्चेकी तरह गुड़के लिये रोता और लड़ता तो नहीं था, परंतु मैं भोजनके साथ प्रतिदिन गुड़ खाया करता था। इस आदतके छोड़ देनेपर मनमें कितनी इच्छा होती है, इस बातकी मैंने स्वयं एक पखवाड़ेतक परीक्षा की और जब मेरा गुड़ न खानेका अभ्यास दृढ़ हो गया, तब मैंने यह समझा कि अब मैं पूरे मनोबलके साथ दृढ़तापूर्वक तुम्हारे लड़केको गुड़ न खानेके लिये कहनेका अधिकारी हो गया हूँ।'

महात्माकी बात सुनकर ब्राह्मण लज्जित हो गया और उसने भी उस दिनसे गुड़ खाना छोड़ दिया। दृढ़ता, त्याग, संयम और तदनुकूल आचरण-ये चारों जहाँ एकत्र होते हैं, वहीं सफलता होती है।



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svayan paalan karanevaala hee upadesh deneka adhikaaree hai.

ek braahmanane apane aath varshake putrako ek mahaatma ke paas le jaakar unase kahaa-'mahaaraajajee ! yah lada़ka roj chaar paiseka guda़ kha jaata hai aur n den to lada़aaee-jhagada़a karata hai. kripaya aap koee upaay bataaiye.' mahaatmaane kahaa-'ek pakhavaada़eke baad isako mere paas laana, tab upaay bataaoongaa.' braahman pandrah dinonke baad baalakako lekar phir mahaatmaake paas pahunchaa. mahaatmaane bachcheka haath pakada़kar bada़e meethe shabdonmen kahaa-'betaa! dekh, ab kabhee guda़ n khaana bhala, aur lada़na bhee mata!' isake baad usakee peethapar thapakee dekar tatha bada़e pyaarase usake saath baatacheet karake mahaatmaane unako vida kiyaa. usee dinase baalakane guda़ khaana aur lada़na bilakul chhoda़ diyaa.

kuchh dinonke baad braahmanane mahaatmaake paas jaakar isakee soochana dee aur bada़e aagrahase poochhaa-' mahaaraajajee aapake ek baarake upadeshane itana jaadooka kaam kiya ki kuchh kaha naheen jaataa; phir aapane usee din upadeshan dekar pandrah dinonke baad kyon bulaaya ? mahaaraajajee ! aap uchit samajhen to isaka rahasy bataanekee kripa karen.' mahaatmaane hansakar kahaa-'bhaaee jo manushy svayan sanyama-niyamaka paalan naheen karata, vah doosaronko sanyama-niyamake upadesh deneka adhikaar naheen rakhataa. usake upadeshamen bal hee naheen rahataa. main is bachchekee tarah guda़ke liye rota aur lada़ta to naheen tha, parantu main bhojanake saath pratidin guda़ khaaya karata thaa. is aadatake chhoda़ denepar manamen kitanee ichchha hotee hai, is baatakee mainne svayan ek pakhavaada़etak pareeksha kee aur jab mera guda़ n khaaneka abhyaas dridha़ ho gaya, tab mainne yah samajha ki ab main poore manobalake saath dridha़taapoorvak tumhaare lada़keko guda़ n khaaneke liye kahaneka adhikaaree ho gaya hoon.'

mahaatmaakee baat sunakar braahman lajjit ho gaya aur usane bhee us dinase guda़ khaana chhoda़ diyaa. dridha़ta, tyaag, sanyam aur tadanukool aacharana-ye chaaron jahaan ekatr hote hain, vaheen saphalata hotee hai.

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