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गोस्वामी तुलसीदासजीको हनुमत्कृपानुभूति



सकल सद्गुणगणनिलय अंजनानन्दन दयाधाम हैं। कृपाकी मूर्ति हैं। जो पवनकुमार अपने परम प्रभुका दर्शन करते ही आनन्दसिन्धुमें निमग्न हो जाते हैं, वे श्रीरामचरणानुरागी कल्पान्ततक इस भूतलपर क्यों रहना चाहते ? निश्चय ही वे श्रीरामके मंगलमय नाम एवं चरित्र कथाके अनुपम प्रेमी हैं, किंतु इसके साथ ही पृथ्वीके नर नारियोंके प्रति उनकी सहज कृपा ही इसमें हेतु है। पाण्डुनन्दन भीमसेनने अपने अग्रज हनुमानजीकी कथा ही सुनी थी। उनके दर्शनकी उन्हें कल्पना भी नहीं थी, किंतु श्रीकृष्ण प्रीति-भाजन भीमसेनके अनिष्टकी कल्पनासे ही हनुमानजीने उन्हें उत्तराखण्डके देव मार्गमें जानेसे रोका और उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर भी कृतार्थ कर दिया।

पाण्डुनन्दन भीमसेन तो उनके अनुज थे, त्रेतामें श्रीरघुनाथजीके अव्यक्त होनेके समयसे ही दयामय हनुमानजी भगवद्भक्त नर-नारियोंका उपकार करते आ रहे हैं। प्रभु-पथ-पथिकोंको तो वे अहर्निश सहयोग देते रहते हैं, उनकी साधनाकी बाधाओंका निवारण करते रहते हैं। उन्होंने कितने भाग्यवान् भक्तोंको सर्वलोकेश्वर श्रीभगवान्‌का दर्शन कराकर उनका जीवन सफल कर दिया, इसकी गणना सम्भव नहीं ।

हिन्दूमात्रका प्रिय ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस - कहते हैं, श्रीहनुमानजीकी प्रेरणासे ही श्रीतुलसीदासजीने उसकी रचना प्रारम्भ की और वे पद-पदपर उनकी सहायताकरते गये। श्रीतुलसीदासजीने स्वयं कृपामूर्ति श्री आंजनेयके सम्बन्धमें कहा है कि 'जिसपर सब प्रकारके कल्याणकी खानि श्रीहनुमानजीकी कृपादृष्टि है, उसपर पार्वती, शंकर, लक्ष्मण, श्रीराम और जानकीजी सदा कृपा किया करते हैं'

तापर सानुकूल गिरिजा, हर, लखन, राम अरु जानकी।

तुलसी कपिकी कृपा बिलोकनि खानि सकल कल्यानकी ॥

(वि० प० ३०१३)

श्रीतुलसीदासजीका जीवन भी इसका साक्षी है। प्रसिद्ध है कि वे नित्य शौचसे लौटते समय शौचका बचा जल एक बेरके वृक्ष-मूलमें डाल देते थे। उस वृक्षपर एक प्रेत रहता था। प्रेतयोनिकी तृप्ति ऐसी ही निकृष्ट वस्तुओंसे होती है। प्रेत उस अशुद्ध जलसे प्रसन्न हो गया। एक दिन उसने प्रकट होकर श्रीतुलसीदासजीसे कहा-'मैं आपपर प्रसन्न हूँ। बताइये, आपकी क्या सेवा करूँ ?'

'मुझे श्रीरघुनाथजीके दर्शन करा दो।' गोस्वामीजीके कहनेपर प्रेतने उत्तर दिया- 'यदि मैं प्रभुका दर्शन करा सकता तो अधम प्रेत ही क्यों रहता, किंतु मैं आपको एक उपाय बता सकता हूँ। अमुक स्थानपर श्रीरामायणकी कथा होती है। वहाँ सर्वप्रथम वृद्ध कुष्ठीके वेषमें श्रीहनुमानजी नित्य पधारते हैं और सबसे दूर बैठकर कथा सुनकर सबसे पीछे जाते हैं। आप उनके चरण पकड़ लें। उनकी कृपासे आपकी लालसा पूर्ण हो सकती है।'

तुलसीदासजी उसी दिन श्रीरामायणकी कथामें पहुँचे। उन्होंने वृद्ध कुष्ठीके वेषमें श्रीहनुमानजीको पहचान लिया और कथाके अन्तमें उनके चरण पकड़ लिये। श्रीहनुमानजी गिड़गिड़ाने लगे, किंतु श्रीतुलसीदासजीकी निष्ठा एवं प्रेमाग्रहसे दयामूर्ति पवनकुमारने उन्हें मन्त्र देकर चित्रकूटमें अनुष्ठान करनेकी आज्ञा दी। उन्होंने श्रीतुलसीदासजीको प्रभु दर्शन करानेका भी वचन दे दिया। भवाब्धिपोत महावीर हनुमानकी कृपाका प्रत्यक्ष

फल उदित होने लगा। श्रीतुलसीदासजी चित्रकूट पहुँचेऔर अंजनानन्दनके बताये मन्त्रका अनुष्ठान करने लगे। एक दिन उन्होंने अश्वपर आरूढ़ श्याम और गौर दो कुमारोंको देखा, किंतु देखकर भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया। श्रीहनुमानजीने प्रत्यक्ष प्रकट होकर श्रीतुलसीदासजीसे पूछा- 'प्रभुके दर्शन हो गये न ?'

'प्रभु कहाँ थे?' श्रीतुलसीदासजीके चकित होकर पूछने पर हनुमानजीने कहा- 'अश्वारोही श्याम गौर कुमार, जो तुम्हारे सामनेसे निकले थे।'

'आह!' श्रीतुलसीदासजी अत्यन्त व्याकुल हो गये- 'मैं प्रभुको पाकर भी उनसे वंचित रहा।' वे छटपटाने लगे। उनके नेत्रोंसे आँसू बह रहे थे और उन्हें अपने शरीरकी सुध नहीं थी ।

कृपामूर्ति श्रीहनुमानजीने उन्हें प्रेमपूर्वक धैर्य बँधाया 'तुम्हें पुनः प्रभुके दर्शन हो जायँगे।' और दयाधाम श्रीमारुतिकी कृपासे उन्हें परम प्रभु श्रीरामके ही नहीं, राज्य - सिंहासनपर आसीन भगवती सीतासहित श्रीराम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्नके साथ सुग्रीव और विभीषणादि सखा तथा वसिष्ठ आदि समस्त प्रमुख जनोंके भी दर्शन प्राप्त हो गये।

कृपामूर्ति हनुमानजीकी कृपासे प्रभुकी इस अपूर्व छटाका ही दर्शनकर श्रीगोस्वामीजी कृतार्थ नहीं हुए, अपितु
मन्दाकिनीके पावन तटपर उन्होंने श्रीराम और लक्ष्मणकोअपने हाथों चन्दन घिसकर तिलक भी कराया

चित्रकूट के घाट पर भइ संतन की भीर।

तुलसिदास चंदन घिसें तिलक करें रघुबीर ॥

मानस मर्मज्ञ कहते हैं कि श्रीरामचरितमानसकी रचनाके समय श्रीतुलसीदासजीको कठिनाईका अनुभव होते ही भक्ति-सुधापानेच्छु कृपामूर्ति श्रीहनुमानजी स्वयं प्रकट होकर उनकी सहायता किया करते थे। दो स्थल तो अत्यन्त प्रसिद्ध हैं

(१) श्रीशंकरजीके तपके समय कामदेवके व्यापक प्रभावका वर्णन करते हुए श्रीतुलसीदासजीने लिखा 'धरी न काहूँ धीर सब के मन मनसिज हरे।' आधा सोरठा लिख लेनेपर चिन्ता हुई। 'काहूँ' और 'सब के' में तो श्रीनारदादि देवर्षि और विरक्त भक्त भी आ गये, जिन्हें काम-विकार स्पर्श भी नहीं करता। श्रीतुलसीदासजीने आंजनेयका स्मरण किया और उन्होंने प्रकट होकर सोरठेके दूसरे चरणकी पूर्ति कर दी- 'जे राखे रघुबीर

ते उबरे तेहि काल महुँ ।' (२) धनुष यज्ञका वर्णन करते समय श्रीतुलसी दासजीने सोरठा लिखा

'संकर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबल । बूड़ सो सकल समाज'-श्रीतुलसीदासजी रुके। 'सकल समाज' में तो महर्षि विश्वामित्र और धनुषको स्पर्श भी न करनेवाले नरेश तथा न जाने कितने लोग आ गये। श्रीतुलसीदासजीकी बुद्धि काम नहीं कर रही थी, उनकी प्रार्थना सुनते ही हनुमानजीने कृपा की और प्रकट होकर उन्होंने सोरठा पूरा कर दिया- 'चढ़ा जो प्रथमहिं मोहबस ॥'

इतना ही नहीं, श्रीतुलसीदासजीने जब-जब कठिनाई अनुभव की, तब-तब मंगलमूर्ति पवननन्दनका स्मरण किया। बाहु- पीड़ाके समय महावीर हनुमानजीसे प्रार्थना करते हुए उन्होंने 'हनुमानबाहुक' की रचना की। श्रीरामचरितमानस, विनय पत्रिका और कवितावलीमें तो उनका स्तवन एवं गुणगान हुआ ही है, 'हनुमान चालीसा' और 'संकटमोचन' आदि स्वतन्त्र पुस्तिकाओंमें भी श्रीतुलसीदासजीने अन्तर्हृदयसे कृपामय महावीर हनुमानजीकी वन्दना की है।



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Real Life Experience प्रभुकृपा


gosvaamee tulaseedaasajeeko hanumatkripaanubhooti



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taapar saanukool girija, har, lakhan, raam aru jaanakee.

tulasee kapikee kripa bilokani khaani sakal kalyaanakee ..

(vi0 pa0 3013)

shreetulaseedaasajeeka jeevan bhee isaka saakshee hai. prasiddh hai ki ve nity shauchase lautate samay shauchaka bacha jal ek berake vriksha-moolamen daal dete the. us vrikshapar ek pret rahata thaa. pretayonikee tripti aisee hee nikrisht vastuonse hotee hai. pret us ashuddh jalase prasann ho gayaa. ek din usane prakat hokar shreetulaseedaasajeese kahaa-'main aapapar prasann hoon. bataaiye, aapakee kya seva karoon ?'

'mujhe shreeraghunaathajeeke darshan kara do.' gosvaameejeeke kahanepar pretane uttar diyaa- 'yadi main prabhuka darshan kara sakata to adham pret hee kyon rahata, kintu main aapako ek upaay bata sakata hoon. amuk sthaanapar shreeraamaayanakee katha hotee hai. vahaan sarvapratham vriddh kushtheeke veshamen shreehanumaanajee nity padhaarate hain aur sabase door baithakar katha sunakar sabase peechhe jaate hain. aap unake charan pakada़ len. unakee kripaase aapakee laalasa poorn ho sakatee hai.'

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एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री
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बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
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जय राधे राधे, राधे राधे
सारी दुनियां है दीवानी, राधा रानी आप
कौन है, जिस पर नहीं है, मेहरबानी आप की
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शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
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हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
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यही मेरी ज़िंदगी है, यही मेरी बंदगी है
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Ye Saare Khel Tumhare Hai Jag
Kahta Khel Naseebo Ka
तीनो लोकन से न्यारी राधा रानी हमारी।
राधा रानी हमारी, राधा रानी हमारी॥
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मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
राधे मोरी बंसी कहा खो गयी,
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मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
हम प्रेम दीवानी हैं, वो प्रेम दीवाना।
ऐ उधो हमे ज्ञान की पोथी ना सुनाना॥
रंगीलो राधावल्लभ लाल, जै जै जै श्री
विहरत संग लाडली बाल, जै जै जै श्री
बहुत बड़ा दरबार तेरो बहुत बड़ा दरबार,
चाकर रखलो राधा रानी तेरा बहुत बड़ा
मीठे रस से भरी रे, राधा रानी लागे,
मने कारो कारो जमुनाजी रो पानी लागे
राधे राधे बोल, श्याम भागे चले आयंगे।
एक बार आ गए तो कबू नहीं जायेंगे ॥
श्याम बंसी ना बुल्लां उत्ते रख अड़ेया
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बंसी ओ बंसी इतना बता तूने कौन सा पुण्य
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देखो हमरी शेरावाली मैया बड़ी सुंदरी,
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