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ईश्वरीय कृपानुभूतिकी एक सत्य घटना

यह घटना तो कई वर्ष पहले की है, किंतु आज भी इसके स्मरणसे ईश्वर कृपाकी अनुभूतिसे मन अति आह्लादित हो जाता है। जिस गाँवके औषधालयमै मेरी आयुर्वेद चिकित्सकके पदपर नियुक्ति हुई थी, वहाँ मेरे अतिरिक्त एक कम्पाउण्डर तथा एक परिचारक भी नियुक्त था। मैं एक बार कुछ दिनोंके अवकाशके पश्चात् औषधालय आया तो एक सज्जनने मुझे बताया कि. 'आपके अवकाशपर जानेके बाद यहाँ मदिरापान किया जाता है। आपका कम्पाउण्डर अपने कुछ दुर्व्यसनी साथियोंको यहाँ बुलाता है और ये सभी यहाँ मदिरापान करते हैं। मैंने स्वयं अपनी आँखोंसे देखा है। यह उचित नहीं है। कृपया अपने कर्मचारीको सुधारिये जैसे आप हमें अच्छी शिक्षाएँ देते हैं, इन्हें भी दीजिये।'

यह सुनकर मैं बहुत व्यथित हुआ। मैं मन-ही मन सोच रहा था कि मैं यहाँ कहाँ इन व्यक्तियोंमें आ फँसा है। इससे तो यह ठीक रहेगा कि मैं यहाँसे अपना स्थानान्तरण करा लूँ। फिर एकाएक ध्यान आया कि यह तो पलायन है। मुझे उस कम्पाउण्डरको सन्मार्गपर लाना चाहिये। सम्भव है वह इस कृत्यको ईश्वरकृपासे तिलांजलि दे दे। मैं उसे समझानेके उपायोंपर चिन्तन कर ही रहा था कि उस कम्पाउण्डरकी पत्नी औषधालय में प्रविष्ट हुई। उसने मुझे प्रणाम किया और सामनेकी बॅचपर बैठ गयी। मैंने उससे कहा-'कम्पाउण्डरजी तथा वह परिचारक तो दोनों ही पासके गाँवमें गये हैं। एक गरीब आदमी के पैरमें फोड़ा हो गया है। मैं कल यहीं गया था। उसके पके फोड़ेपर मैं कल चीरा लगाकर पट्टी बाँध आया था। आज उन्हें पट्टी बाँधनेके लिये भेजा है।'

'हाँ, मुझे मालूम है, तभी तो मैं आपके पास आयी है। उनकी अनुपस्थितिमें ही कुछ आपसे निवेदन करने आयी हूँ' उसने हाथ जोड़ते हुए कहा।

'कहो! निःसंकोच कहो, क्या आपत्ति है?' मेरे द्वारा कहे इन शब्दोंको सुनते ही वह दुखी मनसे रुआसा मुख करते हुए कहने लगी- 'मैं एक संस्कारी ब्राह्मणकीबेटी हैं। मेरे पिताजी एक मन्दिरके पुजारी है, जो सदा राधाकृष्णके विग्रहकी पूजा-अर्चनामें लगे रहते हैं। मध्याह्नमें वे भागवतकी कथा करते हैं, जिसे सुनने गाँवके कई लोग आते हैं। मैं भी नित्य उनके आदेशानुसार गोपालसहस्रनामका तथा गीताके एक अध्यायका मनोयोगसे पाठ करती हूँ। मेरे पिताजीकी भाँति ही मेरे श्वशुरजी भी आध्यात्मिक विचारोंके श्रेष्ठ व्यक्ति हैं। जो गायकी सेवाको ही अपने जीवनका पावन कर्तव्य मानते हैं और गोपालमन्त्रका मानसिक जप करते ही रहते हैं। ऐसे सच्चरित्र पिताकी सन्तानको भी चरित्रवान् एवं सुयोग्य मानकर पिताजीने मेरा विवाह इनके साथ कर दिया। हमारा विवाह हुए तो तीन वर्ष हो गये। किंतु गत छ माहसे ही मुझे ज्ञात हुआ है कि ये मदिरापान करते हैं। आप इन्हें समझाइये मेरी बात ये मानते नहीं हैं। आपका ये बड़ा आदर करते हैं, आपमें इनकी बड़ी श्रद्धा है। मैं इसी आशासे आपके पास आयी हूँ। मुझे विश्वास है कि आपके समझाने से वे इस दुर्व्यसनका परित्यागकर सन्मार्गपर आ जायँगे।'

उस समझदार नवयुवतीकी सारी बातें सुनकर मेरा हृदय करुणासे भर गया और मैंने संकल्प किया कि ईश्वर कृपासे मैं अपने सहकर्मीको सही मार्गपर लानेका पूरा प्रयास करूँगा। मैंने उसे समझाते हुए कहा 'तुम्हारा दुःख मेरा दुःख है, तुम निश्चिन्त रहो, ईश्वर हमपर अवश्य कृपा करेंगे। तुम्हारा पति कुछ दिनोंके पश्चात् एक शुद्ध सात्विक विचारोंका व्यक्ति सिद्ध होगा, वह अपने दुर्गुणोंका अवश्य परित्याग कर देगा।'

मेरी इस घोषणासे उसका मुरझाया मुख खिल उठा। उसने एक बार फिर नमनमें अपना सिर झुका दिया और मैंने भी उसे आशीर्वाद देते हुए प्रभुसे प्रार्थना की कि- 'हे प्रभो मुझे ऐसा सामर्थ्य देना कि मैं उसे सन्मार्गपर ला सकूँ मुझपर ऐसी कृपा अवश्य करना कृपानिधान।'

मैंने उसी दिन रातमें कम्पाउण्डरको औषधालयमें बुलाया में औषधालयमें ही रहता था। पहले वहकम्पाउण्डर भी मेरे साथ रहता था। पत्नीको ले आनेपर वह दूसरे मकानमें रहने लगा था। नीचे औषधालय चलता था और उसकी छतपर बने मकानमें मैं वहाँ एकाकी रहता था। पहले हम उन रोगियोंके सम्बन्धमें चर्चा करते रहे, फिर मैंने उससे कहा-'जब मैं अपने गाँव गया हुआ था तो तुम लोगोंने यहाँ औषधालय में मदिरापान किया? यह धन्वन्तरिका मन्दिर है, इसे तुमने अपवित्र कर दिया है। अब यह मेरे निवासयोग्य नहीं रहा। कल मैं इस भवनको गंगाजल छिड़ककर तथा हवनकर पवित्र बनाऊँगा।'

उसने सोचा जब इन्हें पूरी बातका पता चल ही गया है तो झूठ बोलनेसे क्या फायदा है। वह कहने लगा- 'साहब! मुझसे गलती हो गयी, अब आगे यहाँ कभी मदिरापान नहीं किया जायगा।'

मेरा स्वर कुछ तीव्र हुआ— 'यहीं नहीं, कहीं भी और कभी भी मदिरापान नहीं करना है।' उसे समझाते हुए पुनः मन्द स्वरमें कहने लगा- 'इस अमृतघटमें क्यों विष भर रहे हो। मदिरापान करना सब दुर्गुणोंका मूल है। यह दुर्गुण तुम्हारे लिये घातक ही नहीं होगा, तुम्हारे कुलकी मर्यादाका भी हनन करेगा। यह कुकृत्य तुम्हें जीने नहीं देगा। यह तुम्हें ऐसा कलंकित करेगा कि तुम्हारी सारी प्रतिष्ठा धूलमें मिल जायेगी। यह एक ऐसा दोष है। जो तुम्हारे सारे गुणोंपर पानी फेर देगा। एको हि दोषो गुणराशिनाशी । तुम अल्पवेतनभोगी इस दुर्व्यसनमें पैसा बर्बाद करोगे, तो फिर परिवारका निर्वाह कैसे करोगे ? यह तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम्हें सुलक्षणा संस्कारिता पत्नी मिली है। कुछ दिनों बाद बच्चे भी होंगे। उन्हें पढ़ानेका एवं उनके सम्बन्धोंका प्रबन्ध कहाँसे करोगे? यह मनुष्यका जन्म बार-बार नहीं मिलता है। अतः अपने कर्तव्यके प्रति सजग रहकर शुभ संकल्पोंको धारण करो।'

वह नतमस्तक होकर मेरी सीख सुनता रहा-यह एक शुभ लक्षण था उसे पंकसे उबरनेका। यही नहीं, मेरी बातें सुनते-सुनते उसकी आँखोंसे पश्चात्तापके दो आँसू भी टपक पड़े। उसे सुधरनेके लिये और मुझेउसको सुधारनेके लिये ईश्वरकृपाका संबल मिला।

उसके मुखपर निश्चयभरी आभा मुझे दिखायी दी,

मैं इससे प्रसन्न हुआ और वह बोला-' अब आगे यह

अपराध नहीं होगा, मैं आपको यह विश्वास दिलाता हूँ।'

'जो पहले अपराध किया, उसका तुम्हें प्रायश्चित्त

करना होगा'- मेरे इस कथनके उत्तरमें उसने दृढ़तापूर्वक

कहा- 'जो भी आप आज्ञा देंगे, मैं करनेको तैयार हूँ।'

तीन दिनों बाद ही नवरात्रका समय आ रहा है, उसमें

तुम्हें दस हजार गायत्री मन्त्रका जप करना होगा' मैंने

उसे निर्देशित किया।

'मैं इसके लिये तैयार हूँ, आप मेरा मार्गदर्शन कीजिये' यह कहकर प्रसन्नचित्त होकर वह इस कार्यको पूर्ण करनेमें तन-मनसे जुट गया। मैंने उसे सारा विधान विस्तारसे बताया। वह उसी प्रकारसे तन्मय होकर जप करने लगा। जप पूर्ण हो जानेपर नौ कन्याओंकी पूजाकर उन्हें भोजन कराया गया तथा उन्हें फल तथा पाठ्य पुस्तकें वितरित की गयीं। यह सब ईश्वरकृपाका ही प्रतिफल था। यही नहीं, उसने अपनी उस मित्र मण्डलीके कई सदस्योंको भी अपनी तरह सुधारनेका प्रयास किया और उनमें से बहुत सारे युवकोंने इस दुर्गुणका परित्याग कर दिया।

जहाँ भी उस कम्पाउण्डरकी नियुक्ति हुई, मैं उसकी जानकारी प्राप्त करता रहा। कई व्यक्ति कुछ दिन इस दुर्गुणको त्यागकर पुनः उसमें लिप्त हो जाते हैं। एक बार मैं उसके घरपर भी गया। उसकी पत्नी बार-बार आभार प्रकट करने लगी। मैंने कहा- 'यह सब ईश्वरकृपाका ही परिणाम है। मैंने उसे उबारनेका जो संकल्प लिया और वह इस दुर्गुणसे उबरने हेतु तैयार हुआ यह सब ईश्वरकृपाके बिना नहीं होता है।' मैं अपने प्रभुका बारबार वन्दन करता हूँ कि उसकी प्रेरणासे मैंने किसीको सन्मार्गपर लानेका प्रयास किया और उस कम्पाउण्डरको भी धन्यवाद देता हूँ कि उसने मेरी बात मानी।

मुझे अत्यन्त खुशी है कि आज वह सदाचारी बनकर जीवन जी रहा है और भगवान् श्रीहरिका
शरणापन्न है ।

कर गलती जो जन पछतावे

यह भी कृष्ण कृपा हैl

पाप-परायण भगती पावे

यह भी कृष्ण कृपा है।

कोई प्रेरक बन कर आवे

यह भी कृष्ण कृपा है।

कुपथ त्याग सत् पंथ चलावे

यह भी कृष्ण कृपा है।

[ श्रीगोपीनाथजी पारीक 'गोपेश' ]



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eeshvareey kripaanubhootikee ek saty ghatanaa

yah ghatana to kaee varsh pahale kee hai, kintu aaj bhee isake smaranase eeshvar kripaakee anubhootise man ati aahlaadit ho jaata hai. jis gaanvake aushadhaalayamai meree aayurved chikitsakake padapar niyukti huee thee, vahaan mere atirikt ek kampaaundar tatha ek parichaarak bhee niyukt thaa. main ek baar kuchh dinonke avakaashake pashchaat aushadhaalay aaya to ek sajjanane mujhe bataaya ki. 'aapake avakaashapar jaaneke baad yahaan madiraapaan kiya jaata hai. aapaka kampaaundar apane kuchh durvyasanee saathiyonko yahaan bulaata hai aur ye sabhee yahaan madiraapaan karate hain. mainne svayan apanee aankhonse dekha hai. yah uchit naheen hai. kripaya apane karmachaareeko sudhaariye jaise aap hamen achchhee shikshaaen dete hain, inhen bhee deejiye.'

yah sunakar main bahut vyathit huaa. main mana-hee man soch raha tha ki main yahaan kahaan in vyaktiyonmen a phansa hai. isase to yah theek rahega ki main yahaanse apana sthaanaantaran kara loon. phir ekaaek dhyaan aaya ki yah to palaayan hai. mujhe us kampaaundarako sanmaargapar laana chaahiye. sambhav hai vah is krityako eeshvarakripaase tilaanjali de de. main use samajhaaneke upaayonpar chintan kar hee raha tha ki us kampaaundarakee patnee aushadhaalay men pravisht huee. usane mujhe pranaam kiya aur saamanekee baॅchapar baith gayee. mainne usase kahaa-'kampaaundarajee tatha vah parichaarak to donon hee paasake gaanvamen gaye hain. ek gareeb aadamee ke pairamen phoड़a ho gaya hai. main kal yaheen gaya thaa. usake pake phoda़epar main kal cheera lagaakar pattee baandh aaya thaa. aaj unhen pattee baandhaneke liye bheja hai.'

'haan, mujhe maaloom hai, tabhee to main aapake paas aayee hai. unakee anupasthitimen hee kuchh aapase nivedan karane aayee hoon' usane haath joda़te hue kahaa.

'kaho! nihsankoch kaho, kya aapatti hai?' mere dvaara kahe in shabdonko sunate hee vah dukhee manase ruaasa mukh karate hue kahane lagee- 'main ek sanskaaree braahmanakeebetee hain. mere pitaajee ek mandirake pujaaree hai, jo sada raadhaakrishnake vigrahakee poojaa-archanaamen lage rahate hain. madhyaahnamen ve bhaagavatakee katha karate hain, jise sunane gaanvake kaee log aate hain. main bhee nity unake aadeshaanusaar gopaalasahasranaamaka tatha geetaake ek adhyaayaka manoyogase paath karatee hoon. mere pitaajeekee bhaanti hee mere shvashurajee bhee aadhyaatmik vichaaronke shreshth vyakti hain. jo gaayakee sevaako hee apane jeevanaka paavan kartavy maanate hain aur gopaalamantraka maanasik jap karate hee rahate hain. aise sachcharitr pitaakee santaanako bhee charitravaan evan suyogy maanakar pitaajeene mera vivaah inake saath kar diyaa. hamaara vivaah hue to teen varsh ho gaye. kintu gat chh maahase hee mujhe jnaat hua hai ki ye madiraapaan karate hain. aap inhen samajhaaiye meree baat ye maanate naheen hain. aapaka ye bada़a aadar karate hain, aapamen inakee bada़ee shraddha hai. main isee aashaase aapake paas aayee hoon. mujhe vishvaas hai ki aapake samajhaane se ve is durvyasanaka parityaagakar sanmaargapar a jaayange.'

us samajhadaar navayuvateekee saaree baaten sunakar mera hriday karunaase bhar gaya aur mainne sankalp kiya ki eeshvar kripaase main apane sahakarmeeko sahee maargapar laaneka poora prayaas karoongaa. mainne use samajhaate hue kaha 'tumhaara duhkh mera duhkh hai, tum nishchint raho, eeshvar hamapar avashy kripa karenge. tumhaara pati kuchh dinonke pashchaat ek shuddh saatvik vichaaronka vyakti siddh hoga, vah apane durgunonka avashy parityaag kar degaa.'

meree is ghoshanaase usaka murajhaaya mukh khil uthaa. usane ek baar phir namanamen apana sir jhuka diya aur mainne bhee use aasheervaad dete hue prabhuse praarthana kee ki- 'he prabho mujhe aisa saamarthy dena ki main use sanmaargapar la sakoon mujhapar aisee kripa avashy karana kripaanidhaana.'

mainne usee din raatamen kampaaundarako aushadhaalayamen bulaaya men aushadhaalayamen hee rahata thaa. pahale vahakampaaundar bhee mere saath rahata thaa. patneeko le aanepar vah doosare makaanamen rahane laga thaa. neeche aushadhaalay chalata tha aur usakee chhatapar bane makaanamen main vahaan ekaakee rahata thaa. pahale ham un rogiyonke sambandhamen charcha karate rahe, phir mainne usase kahaa-'jab main apane gaanv gaya hua tha to tum logonne yahaan aushadhaalay men madiraapaan kiyaa? yah dhanvantarika mandir hai, ise tumane apavitr kar diya hai. ab yah mere nivaasayogy naheen rahaa. kal main is bhavanako gangaajal chhida़kakar tatha havanakar pavitr banaaoongaa.'

usane socha jab inhen pooree baataka pata chal hee gaya hai to jhooth bolanese kya phaayada hai. vah kahane lagaa- 'saahaba! mujhase galatee ho gayee, ab aage yahaan kabhee madiraapaan naheen kiya jaayagaa.'

mera svar kuchh teevr huaa— 'yaheen naheen, kaheen bhee aur kabhee bhee madiraapaan naheen karana hai.' use samajhaate hue punah mand svaramen kahane lagaa- 'is amritaghatamen kyon vish bhar rahe ho. madiraapaan karana sab durgunonka mool hai. yah durgun tumhaare liye ghaatak hee naheen hoga, tumhaare kulakee maryaadaaka bhee hanan karegaa. yah kukrity tumhen jeene naheen degaa. yah tumhen aisa kalankit karega ki tumhaaree saaree pratishtha dhoolamen mil jaayegee. yah ek aisa dosh hai. jo tumhaare saare gunonpar paanee pher degaa. eko hi dosho gunaraashinaashee . tum alpavetanabhogee is durvyasanamen paisa barbaad karoge, to phir parivaaraka nirvaah kaise karoge ? yah tumhaara saubhaagy hai ki tumhen sulakshana sanskaarita patnee milee hai. kuchh dinon baad bachche bhee honge. unhen padha़aaneka evan unake sambandhonka prabandh kahaanse karoge? yah manushyaka janm baara-baar naheen milata hai. atah apane kartavyake prati sajag rahakar shubh sankalponko dhaaran karo.'

vah natamastak hokar meree seekh sunata rahaa-yah ek shubh lakshan tha use pankase ubaranekaa. yahee naheen, meree baaten sunate-sunate usakee aankhonse pashchaattaapake do aansoo bhee tapak pada़e. use sudharaneke liye aur mujheusako sudhaaraneke liye eeshvarakripaaka sanbal milaa.

usake mukhapar nishchayabharee aabha mujhe dikhaayee dee,

main isase prasann hua aur vah bolaa-' ab aage yaha

aparaadh naheen hoga, main aapako yah vishvaas dilaata hoon.'

'jo pahale aparaadh kiya, usaka tumhen praayashchitta

karana hogaa'- mere is kathanake uttaramen usane dridha़taapoorvaka

kahaa- 'jo bhee aap aajna denge, main karaneko taiyaar hoon.'

teen dinon baad hee navaraatraka samay a raha hai, usamen

tumhen das hajaar gaayatree mantraka jap karana hogaa' mainne

use nirdeshit kiyaa.

'main isake liye taiyaar hoon, aap mera maargadarshan keejiye' yah kahakar prasannachitt hokar vah is kaaryako poorn karanemen tana-manase jut gayaa. mainne use saara vidhaan vistaarase bataayaa. vah usee prakaarase tanmay hokar jap karane lagaa. jap poorn ho jaanepar nau kanyaaonkee poojaakar unhen bhojan karaaya gaya tatha unhen phal tatha paathy pustaken vitarit kee gayeen. yah sab eeshvarakripaaka hee pratiphal thaa. yahee naheen, usane apanee us mitr mandaleeke kaee sadasyonko bhee apanee tarah sudhaaraneka prayaas kiya aur unamen se bahut saare yuvakonne is durgunaka parityaag kar diyaa.

jahaan bhee us kampaaundarakee niyukti huee, main usakee jaanakaaree praapt karata rahaa. kaee vyakti kuchh din is durgunako tyaagakar punah usamen lipt ho jaate hain. ek baar main usake gharapar bhee gayaa. usakee patnee baara-baar aabhaar prakat karane lagee. mainne kahaa- 'yah sab eeshvarakripaaka hee parinaam hai. mainne use ubaaraneka jo sankalp liya aur vah is durgunase ubarane hetu taiyaar hua yah sab eeshvarakripaake bina naheen hota hai.' main apane prabhuka baarabaar vandan karata hoon ki usakee preranaase mainne kiseeko sanmaargapar laaneka prayaas kiya aur us kampaaundarako bhee dhanyavaad deta hoon ki usane meree baat maanee.

mujhe atyant khushee hai ki aaj vah sadaachaaree banakar jeevan jee raha hai aur bhagavaan shreeharikaa
sharanaapann hai .

kar galatee jo jan pachhataave

yah bhee krishn kripa hail

paapa-paraayan bhagatee paave

yah bhee krishn kripa hai.

koee prerak ban kar aave

yah bhee krishn kripa hai.

kupath tyaag sat panth chalaave

yah bhee krishn kripa hai.

[ shreegopeenaathajee paareek 'gopesha' ]

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फिर भी श्याम को पाना है ।
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ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
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श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
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कर ले कर ले सुमिरण कर ले,