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भगवान की विलक्षण कृपा को समझें

भगवान्पर तो विश्वास करना चाहिये, पर संसारपर कभी विश्वास नहीं करना चाहिये। देखने, सुनने, समझने आदिमें जो संसार आता है, वह प्रतिक्षण ही बदल रहा है - यह सबका अनुभव है; अतः उसपर विश्वास कैसे किया जाय? संसार विश्वासपात्र नहीं है, प्रत्युत सेवापात्र है। विश्वासके योग्य तो केवल भगवान् ही हैं, जो कभी बदले नहीं, कभी बदलेंगे नहीं और कभी बदल सकते नहीं; जो सदा ज्यों-के-त्यों रहते हैं। दूसरे, इस बातपर विश्वास करना चाहिये कि जब भगवान्ने कृपा करके अपनी प्राप्तिके लिये मानवशरीर दिया है तो अपनी प्राप्तिकी साधन-सामग्री भी हमें दी है। साधन-सामग्री कम नहीं दी है, प्रत्युत बहुत अधिक दी है। इतनी अधिक दी है कि उससे हम कई बार भगवान्‌की प्राप्ति कर सकते हैं, जबकि वास्तवमें भगवान्की प्राप्ति एक ही बार होती है और सदाके लिये होती है।

साधकको प्रायः ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे पास साधन-सामग्री नहीं है। अतः वह इच्छा करता है कि कहींसे कोई साधन-सामग्री मिल जाय, कोई कुछ बता दे, कुछ समझा दे आदि-आदि। अर्जुन भी यही सोचता है कि मेरेमें साधन-सामग्री (दैवी सम्पत्ति) कम है। अतः भगवान् उसको आश्वासन देते हैं कि तुम्हारेमें दैवी सम्पत्ति कम नहीं है, प्रत्युत स्वतः स्वाभाविक विद्यमान है, इसलिये तुम चिन्ता मत करो, निराश मत होओ ' मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव' (गीता १६। ५) । भगवान् कल्याण करनेके लिये मनुष्यशरीर तो दे दें, पर कल्याणकी साधन-सामग्री न दें-ऐसी भूल भगवान्से हो ही नहीं सकती। भगवान्ने अपना कल्याण करनेके लिये विवेक भी दिया है, योग्यता भी दी है, अधिकार भी दिया है, समय भी दिया है, सामर्थ्य भी दी है। अतः यह विश्वास करना चाहिये कि भगवान्ने हमें पूरी साधन-सामग्री दी है। अगर हम यह विचार करते हैं कि हमें भगवान्ने ऐसी योग्यता नहीं दी, इतनी बुद्धि नहीं दी, इतनी सामग्री नहीं दी, ऐसी सहायता नहींदी तो हम क्या करें, अपना उद्धार कैसे करें तो यह हमारी कृतघ्नता है, हमारी भूल है! क्या सबपर बिना हेतु कृपा करनेवाले भगवान् देनेमें कमी रख सकते हैं? कदापि नहीं रख सकते।

अगर हम आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं तो हमें यह विश्वास करना चाहिये कि भगवान्ने हमारी सहायता की है, कर रहे हैं और अवश्यमेव करेंगे। वे वर्तमानमें भी सहायता कर रहे हैं और भविष्यमें भी जहाँ आवश्यकता पड़ेगी, वहाँ हमारी सहायता करेंगे। कारण कि वे स्वाभाविक ही परम दयालु हैं। वे अपने भक्तोंका जैसा पालन-पोषण करते हैं, वैसा का वैसा ही पालन पोषण वे दूसरे प्राणियोंका भी करते हैं। जो मनुष्य भगवान् से विमुख चलते हैं, उनको भी भगवान् अन्न, जल, वायु आदि देते हैं। जो दुष्टलोग भगवान्के सिद्धान्तसे, शास्त्रसे बिलकुल विरुद्ध चलते हैं, भगवान्की निन्दा करते हैं, उनको भी भगवान् जीवन-निर्वाहकी सामग्री देते हैं। साँप, सिंह आदि जन्तुओंको भी भगवान् जीवन-निर्वाहकी सामग्री देते हैं। ऐसे परम दयालु भगवान् क्या हमारा पालन-पोषण नहीं करेंगे ?

अयमुत्तमोऽयमधमो जात्या रूपेण सम्पदा वयसा । श्लाघ्यो ऽश्लाघ्यो वेत्थं न वेत्ति भगवाननुग्रहावसरे ॥ अन्तः स्वभावभोक्ता ततोऽन्तरात्मा महामेघः । खदिरश्चम्पक इव वा प्रवर्षणं किं विचारयति ॥

(प्रबोधसुधाकर २५२-२५३)

'किसीपर कृपा करते समय भगवान् ऐसा विचार नहीं करते कि यह जाति, रूप, धन और आयुसे उत्तम है या अधम ? स्तुत्य है या निन्द्य ? यह अन्तरात्मारूप महामेघ आन्तरिक भावोंका ही भोक्ता है। मेघ क्या वर्षाके समय इस बातका विचार करता है कि यह खैर है या चम्पा ?'

इसलिये हमें भगवान्पर विश्वास करना चाहिये कि हमारी जो आवश्यकता होगी, उसको भगवान् देंगे। अभी गीता, रामायण आदि सच्छास्त्रोंके द्वारा, सत्संगकेद्वारा हमें जो बातें मिल रही हैं, वे भी केवल भगवान्की कृपासे ही मिल रही हैं।

मूलमें कृपा एक भगवान्‌की ही है, पर वह अलग अलग माध्यमसे मिलती हुई दीखती है, जैसे, हमें टोंटीसे जल प्राप्त होता हुआ दीखता है, पर विचारपूर्वक देखें तो उसमें जल पाइपसे आता है, पाइपमें जल टंकीसे आता है, टंकीमें जल नदी, कुएँ आदिसे आता है, नदी आदिमें जल वर्षासे आता है, वर्षामें जल समुद्रसे आता है, समुद्रका जल अग्निसे उत्पन्न होता है, अग्नि वायुसे उत्पन्न होती है, वायु आकाशसे उत्पन्न होती है और आकाश परमात्माकी शक्तिसे उत्पन्न होता है। तात्पर्य है कि सबके मूलमें परमात्मा हैं, जिनसे यह सम्पूर्ण सृष्टि उत्पन्न हुई है।

हमें जो कुछ भी प्राप्त हो रहा है, वह सब भगवान् से ही प्राप्त हो रहा है। वे हमारी योग्यताको देखकर नहीं दे रहे हैं, प्रत्युत स्वयं अपनी अहैतुकी कृपासे हमें दे रहे हैं। जैसे माँ बालकका पालन करती है तो बालककी योग्यता, बल, बुद्धि, विद्या, गुण आदिको देखकर नहीं करती, प्रत्युत माँ होनेके नाते उसका पालन करती है। ऐसे ही भगवान् सबके माता पिता हैं। वे किसी कारणसे कृपा करते हों, ऐसी बात नहीं है। वे अपने स्वाभाविक स्नेहसे, कृपासे, सुहृद्भावसे हमारा पालन कर रहे हैं। ऐसे भगवान्‌की कृपाका भरोसा हरेक मनुष्यको रखना चाहिये। जितना अधिक भरोसा रखेंगे, उतनी ही उनकी कृपा अधिक फलीभूत होगी, अनुभवमें आयेगी, जिससे शान्ति मिलेगी, निश्चिन्तता, निर्भयता होगी।

हमारेपर भगवान्‌की कृपा निरन्तर हो रही है, पर हम उधर देखते ही नहीं। हम उस कृपाकी अवज्ञा करते। हैं, निरादर करते हैं, अपमान करते हैं, फिर भी भगवान् अपना कृपालु स्वभाव नहीं छोड़ते, कृपा करते ही रहते हैं। बालक माँका कोई कम निरादर नहीं करता। वह कहीं टट्टी फिरता है, कहीं पेशाब कर देता है, कहीं थूक देता है, पर माँ सब कुछ सह लेती है। बालक कभी साँप, बिच्छू आदिको पकड़ना चाहता है, कभी लालटेनकोपकड़ना चाहता है, पर माँ सदा उसकी रक्षा करती है। इसी तरह हम भी उलटे चलनेमें बालककी तरह तेज हैं, पर कृपा करनेमें भगवान् भी माँसे कम तेज नहीं है, प्रत्युत ज्यादा तेज हैं। इसलिये हमें उनकी कृपाका भरोसा रखना चाहिये।

विपरीत-से-विपरीत परिस्थितिमें भी भगवान्‌की कृपा ज्यों-की-त्यों रहती है। बुखार आ जाय, घाटा लग जाय, घरमें कोई मर जाय, बीमारी आ जाय, अपयश हो जाय, अपमान हो जाय, उसमें भी भगवान्‌की कृपा रहती है। हमें उस कृपापर विश्वास रखना चाहिये।

लालने ताडने मातुर्नाकारुण्यं यथार्थके ।
तद्वदेव महेशस्यनियन्तुर्गुणदोषयोः ॥

‘जिस प्रकार बालकका पालन करने और ताड़ना करने — दोनोंमें माँकी कहीं अकृपा नहीं होती, उसी प्रकार जीवोंके गुण-दोषोंका नियन्त्रण करनेवाले परमेश्वरकी कहीं किसीपर अकृपा नहीं होती।'

इस प्रकार बिना हेतु कृपा करनेवाले प्रभु कभी विशेष कृपा करके मानवशरीर देते हैं

कबहुँक करि करुना नर देही देत ईस बिनु हेतु सनेही ॥

(मानस, उत्तर० ४४ । ३)

संचित पापोंका अन्त तो आता ही नहीं; क्योंकि हरेक मनुष्यजन्ममें वे होते आये हैं। परंतु उन पापोंके रहते हुए भी भगवान् मानवशरीर दे देते हैं, बीचमें ही जीवको अपने कल्याणका मौका दे देते हैं - यह भगवान्‌की एक विशेष कृपा है। भगवान्‌का स्वभाव ही कृपा करनेका है (बिनु हेतु सनेही) और फिर वे कृपा करके मनुष्यशरीर देते हैं तो यह उनकी दुगुनी कृपा हुई । भगवान्‌की इस अपार कृपापर विश्वास करके साधन किया जाय तो बहुत विशेषतासे विलक्षणतासे स्वतः स्वाभाविक पारमार्थिक उन्नति होगी। हम उस कृपाके सम्मुख नहीं होते हैं तो इससे वह कृपा कम फलीभूत होती है। अगर हम उस कृपाके सम्मुख हो जायँ तो कृपा बहुत फलीभूत होगी। इसलिये भगवान्की स्तुति करते हुए ब्रह्माजी कहते हैं-

तत्तेऽनुकम्पां सुसमीक्षमाणो भुञ्जान एवात्मकृतं विपाकम् । द्वाग्वपुधिर्विदधनमस्ते जीवेत यो मुक्तिपदे स दायभाक् ।।

(श्रीमद्भा० १० १४।८)

'जो अपने किये हुए कर्मोंका फल भोगते हुए प्रतिक्षण आपकी कृपाको ही देखता रहता है और हृदय, वाणी तथा शरीरसे आपको नमस्कार करता रहता है, वह आपके परमपदका ठीक वैसे ही अधिकारी हो जाता है, जैसे पिताकी सम्पत्तिका पुत्र !'

केवल भगवान्की कृपाकी तरफ देखते रहनेसे मनुष्य सदाके लिये संसारके दुःखोंसे छूट जाता है। कृपाकी तरफ न देखनेसे वह उस कृपाको ग्रहण नहीं कर सकता, इसीसे वह दुःख पाता है। परंतु भगवान्की कृपा कभी कम नहीं होती। मनुष्य भगवान्‌के सम्मुख न हो, भगवान्‌को माने नहीं, भगवान्‌का खण्डन करे, तो भी भगवान् वैसी ही कृपा करते हैं। पूत कपूत हो जाता है, पर माता कुमाता नहीं होती 'कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।' भगवान् तो सदासे अनन्त माताओंकी भी माता हैं, अनन्त पिताओंके भी पिता हैं। इसलिये हमारेपर भगवान्‌की स्वतः अपार असीम कृपा है। जो कुछ हो रहा है, उनकी कृपासे ही हो रहा है। जो कुछ मिल रहा है, उनकी कृपासे ही मिल रहा है। जब कोई अच्छा संग मिल जाय, अच्छी बात मिल जाय, अच्छा भाव पैदा हो जाय, अचानक भगवान्‌की याद आ जाय, तब समझना चाहिये कि यह भगवान्की विशेष कृपा हुई है, भगवान्ने मेरेको विशेषतासे याद किया है। इस प्रकार भगवान्‌को कृपाकी तरफ देखे, उसका ही भरोसा रखे तो उनकी कृपा बहुत विशेषतासे प्रकट होगी।

एक बालक घरमें सो रहा था। उसकी माँ जल भरनेके लिये कुएँपर चली गयी। माँके जानेके बाद बालककी नींद खुल गयी। उसने देखा कि माँ घड़े में पानी लेकर आ रही है तो वह माँकी तरफ चल पड़ा। बाहर तेज धूप पड़ रही थी। धूपसे तपी जमीनपर बालकके कोमल-कोमल पैर जल रहे थे, पर उसको इस बातका होश नहीं था कि मैं यहीं ठहर जाऊँ, माँ तोयहाँ आ ही रही है। वह माँके पास पहुँच गया। माँक सिरपर घड़ा था; अतः वह झुककर उसको कैसे उठाये ? इसलिये माँने उससे कहा कि तू अपना हाथ थोड़ा-सा ऊँचा कर दे। परंतु बालकने हाथ ऊँचा नहीं किया, उलटे नीचे लेट गया और कहने लगा कि तू मेरेको तू छोड़कर क्यों चली गयी? अब गरम जमीनसे उसका शरीर जलता है और वह रोता है। माँ कहती है कि तू थोड़ा ऊँचा हाथ कर दे, पर वह उसकी बात सुनता ही नहीं। माँ बेचारी घड़ा लेकर घर आती है और बालक भी उठकर उसके पीछे-पीछे दौड़ता है। अगर वह थोड़ा-सा ऊँचा हाथ कर ले तो उसमें क्या नुकसान होता है ? क्या अपमान होता है? क्या बेइज्जती होती है ? क्या परिश्रम होता है ? किस योग्यताकी जरूरत होती है? इसी तरह भगवान् हमें गोदमें लेनेके लिये तैयार खड़े हैं, केवल हमें थोड़ा-सा ऊँचा हाथ करना है अर्थात् भगवान्के सम्मुख होना है सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।

(मानस, सुन्दर० ४४।१) हमें भगवान्‌की कृपाकी तरफ देखना है और 'हे मेरे नाथ! हे मेरे नाथ!!' कहकर भगवान्‌को पुकारना है। पुकारने मात्रसे भगवान् कल्याण कर देते हैं। वे पहले किये गये पापोंकी तरफ देखते ही नहीं कि इसने कितने पाप किये हैं, कितना अन्याय किया है, कितना मेरे विरुद्ध चला है

जन अवगुन प्रभु मान न काऊ। दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ ॥

(मानस, उत्तर० १।३)

रहति न प्रभु चित चूक किए की करत सुरति सय बार हिए की ।।

(मानस, बाल० २९।३)

बालककी गलती माँको थोड़े ही याद रहती है। बालक माँके कितना ही विपरीत चले, पर उसके सामने आते ही माँको कुछ याद नहीं रहता और वह बड़े प्यारसे उसको गोदमें ले लेती है। इसी तरह भगवान्‌को भी हमारी गलतियोंकी याद नहीं रहती। कैमरेके सामने जो आता है, कैमरा उसके रूपको पकड़ लेता है, उसकी फोटो ले लेता है। परंतु भगवान्‌का कैमरा और तरहकाहै। हम भजन करते हैं तो इस भावको भगवान् पकड़ते ह हैं, पर हम भूल करते हैं, उलटा चलते हैं तो इसको द भगवान् पकड़ते ही नहीं। इसने मेरा नाम लिया है, यह मेरे शरण हुआ है, इसने मेरी और मेरे भक्तोंकी कथा सुनी है, सत्संग किया है-ये बातें तो भगवान्‌के कैमरे में छप जाती है, पर विरुद्ध बातें छपती ही नहीं, उनकी याद भगवान्‌को रहती ही नहीं !

बड़ोंका यह स्वभाव होता है कि वे जिसका सुधार करते हैं, उसपर पहले शासन करते हैं, फिर उसपर स्नेह करते हैं -
सासति करि पुनि करहिं पसाऊ। नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाऊ

(मानस, बाल० ८९।२)

शासन करने और स्नेह करने- दोनोंमें उनकी कृपा समान होती है। गीतामें भी ऐसी बात आयी है। भगवान् पहले अर्जुनको धमकाते हैं कि अगर तू मेरी बात नहीं तू सुनेगा तो नष्ट हो जायगा - 'न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि ' (१८।५८) फिर प्यारसे कहते हैं

सर्वगुह्यतमं भूयः शृणु मे परमं वचः । इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ॥

(गीता १८ ६४)

सबसे अत्यन्त गोपनीय वचन तू फिर मेरेसे सुन। तू मेरा अत्यन्त प्रिय है, इसलिये मैं तेरे हितकी बात कहूँगा।' भगवान्का, गुरुजनोंका, माता-पिताका ऐसा भावहोता है, तभी हमारा पालन होता है, नहीं तो हमारी क्या दशा हो! संसारके लोग अगर हमारे अवगुणोंको जान जायँ तो हमारेसे कितनी घृणा करें, पर भगवान् कण कणकी बात जानते हैं, फिर भी सहज, स्वाभाविक कृपा करते हैं

ऐसो को उदार जग माहीं।

बिनु सेवा जो द्रवै दीनपर राम सरिस कोउ नाहीं ॥

(विनयपत्रिका १६२)

लोगोंमें हमारे अवगुण प्रकट नहीं होते, तभी हमारा काम चलता है। हमारे मनमें जो बुरी बातें आती हैं, उनको अगर लोग जान लें तो एक दिनमें कितनी मार पड़े। परंतु लोगोंको उनका पता नहीं लगता। भगवान् तो सब जानते हैं, पर जानते हुए भी हमारा त्याग नहीं करते, प्रत्युत आँख मीच लेते हैं कि बालक है, कोई बात नहीं। इस कारण हमारा काम चलता है, नहीं तो बड़ी मुश्किल हो जाय! अगर भगवान् हमारे लक्षणोंकी तरफ देखें तो हमारा उद्धार होना तो दूर रहा, निर्वाह होना भी मुश्किल हो जाय। परंतु भगवान् देखते ही नहीं। ऐसे कृपासिन्धु भगवान की कृपापर विश्वास रखें, उसीका भरोसा रखें

एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास।
एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास ॥

(दोहावली २७०)



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Real Life Experience प्रभुकृपा


bhagavaan kee vilakshan kripa ko samajhen

bhagavaanpar to vishvaas karana chaahiye, par sansaarapar kabhee vishvaas naheen karana chaahiye. dekhane, sunane, samajhane aadimen jo sansaar aata hai, vah pratikshan hee badal raha hai - yah sabaka anubhav hai; atah usapar vishvaas kaise kiya jaaya? sansaar vishvaasapaatr naheen hai, pratyut sevaapaatr hai. vishvaasake yogy to keval bhagavaan hee hain, jo kabhee badale naheen, kabhee badalenge naheen aur kabhee badal sakate naheen; jo sada jyon-ke-tyon rahate hain. doosare, is baatapar vishvaas karana chaahiye ki jab bhagavaanne kripa karake apanee praaptike liye maanavashareer diya hai to apanee praaptikee saadhana-saamagree bhee hamen dee hai. saadhana-saamagree kam naheen dee hai, pratyut bahut adhik dee hai. itanee adhik dee hai ki usase ham kaee baar bhagavaan‌kee praapti kar sakate hain, jabaki vaastavamen bhagavaankee praapti ek hee baar hotee hai aur sadaake liye hotee hai.

saadhakako praayah aisa prateet hota hai ki mere paas saadhana-saamagree naheen hai. atah vah ichchha karata hai ki kaheense koee saadhana-saamagree mil jaay, koee kuchh bata de, kuchh samajha de aadi-aadi. arjun bhee yahee sochata hai ki meremen saadhana-saamagree (daivee sampatti) kam hai. atah bhagavaan usako aashvaasan dete hain ki tumhaaremen daivee sampatti kam naheen hai, pratyut svatah svaabhaavik vidyamaan hai, isaliye tum chinta mat karo, niraash mat hoo ' ma shuchah sampadan daiveemabhijaato'si paandava' (geeta 16. 5) . bhagavaan kalyaan karaneke liye manushyashareer to de den, par kalyaanakee saadhana-saamagree n den-aisee bhool bhagavaanse ho hee naheen sakatee. bhagavaanne apana kalyaan karaneke liye vivek bhee diya hai, yogyata bhee dee hai, adhikaar bhee diya hai, samay bhee diya hai, saamarthy bhee dee hai. atah yah vishvaas karana chaahiye ki bhagavaanne hamen pooree saadhana-saamagree dee hai. agar ham yah vichaar karate hain ki hamen bhagavaanne aisee yogyata naheen dee, itanee buddhi naheen dee, itanee saamagree naheen dee, aisee sahaayata naheendee to ham kya karen, apana uddhaar kaise karen to yah hamaaree kritaghnata hai, hamaaree bhool hai! kya sabapar bina hetu kripa karanevaale bhagavaan denemen kamee rakh sakate hain? kadaapi naheen rakh sakate.

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(prabodhasudhaakar 252-253)

'kiseepar kripa karate samay bhagavaan aisa vichaar naheen karate ki yah jaati, roop, dhan aur aayuse uttam hai ya adham ? stuty hai ya nindy ? yah antaraatmaaroop mahaamegh aantarik bhaavonka hee bhokta hai. megh kya varshaake samay is baataka vichaar karata hai ki yah khair hai ya champa ?'

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hamaarepar bhagavaan‌kee kripa nirantar ho rahee hai, par ham udhar dekhate hee naheen. ham us kripaakee avajna karate. hain, niraadar karate hain, apamaan karate hain, phir bhee bhagavaan apana kripaalu svabhaav naheen chhoda़te, kripa karate hee rahate hain. baalak maanka koee kam niraadar naheen karataa. vah kaheen tattee phirata hai, kaheen peshaab kar deta hai, kaheen thook deta hai, par maan sab kuchh sah letee hai. baalak kabhee saanp, bichchhoo aadiko pakada़na chaahata hai, kabhee laalatenakopakada़na chaahata hai, par maan sada usakee raksha karatee hai. isee tarah ham bhee ulate chalanemen baalakakee tarah tej hain, par kripa karanemen bhagavaan bhee maanse kam tej naheen hai, pratyut jyaada tej hain. isaliye hamen unakee kripaaka bharosa rakhana chaahiye.

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laalane taadane maaturnaakaarunyan yathaarthake .
tadvadev maheshasyaniyanturgunadoshayoh ..

‘jis prakaar baalakaka paalan karane aur taada़na karane — dononmen maankee kaheen akripa naheen hotee, usee prakaar jeevonke guna-doshonka niyantran karanevaale parameshvarakee kaheen kiseepar akripa naheen hotee.'

is prakaar bina hetu kripa karanevaale prabhu kabhee vishesh kripa karake maanavashareer dete hain

kabahunk kari karuna nar dehee det ees binu hetu sanehee ..

(maanas, uttara0 44 . 3)

sanchit paaponka ant to aata hee naheen; kyonki harek manushyajanmamen ve hote aaye hain. parantu un paaponke rahate hue bhee bhagavaan maanavashareer de dete hain, beechamen hee jeevako apane kalyaanaka mauka de dete hain - yah bhagavaan‌kee ek vishesh kripa hai. bhagavaan‌ka svabhaav hee kripa karaneka hai (binu hetu sanehee) aur phir ve kripa karake manushyashareer dete hain to yah unakee dugunee kripa huee . bhagavaan‌kee is apaar kripaapar vishvaas karake saadhan kiya jaay to bahut visheshataase vilakshanataase svatah svaabhaavik paaramaarthik unnati hogee. ham us kripaake sammukh naheen hote hain to isase vah kripa kam phaleebhoot hotee hai. agar ham us kripaake sammukh ho jaayan to kripa bahut phaleebhoot hogee. isaliye bhagavaankee stuti karate hue brahmaajee kahate hain-

tatte'nukampaan susameekshamaano bhunjaan evaatmakritan vipaakam . dvaagvapudhirvidadhanamaste jeevet yo muktipade s daayabhaak ..

(shreemadbhaa0 10 14.8)

'jo apane kiye hue karmonka phal bhogate hue pratikshan aapakee kripaako hee dekhata rahata hai aur hriday, vaanee tatha shareerase aapako namaskaar karata rahata hai, vah aapake paramapadaka theek vaise hee adhikaaree ho jaata hai, jaise pitaakee sampattika putr !'

keval bhagavaankee kripaakee taraph dekhate rahanese manushy sadaake liye sansaarake duhkhonse chhoot jaata hai. kripaakee taraph n dekhanese vah us kripaako grahan naheen kar sakata, iseese vah duhkh paata hai. parantu bhagavaankee kripa kabhee kam naheen hotee. manushy bhagavaan‌ke sammukh n ho, bhagavaan‌ko maane naheen, bhagavaan‌ka khandan kare, to bhee bhagavaan vaisee hee kripa karate hain. poot kapoot ho jaata hai, par maata kumaata naheen hotee 'kuputro jaayet kvachidapi kumaata n bhavati.' bhagavaan to sadaase anant maataaonkee bhee maata hain, anant pitaaonke bhee pita hain. isaliye hamaarepar bhagavaan‌kee svatah apaar aseem kripa hai. jo kuchh ho raha hai, unakee kripaase hee ho raha hai. jo kuchh mil raha hai, unakee kripaase hee mil raha hai. jab koee achchha sang mil jaay, achchhee baat mil jaay, achchha bhaav paida ho jaay, achaanak bhagavaan‌kee yaad a jaay, tab samajhana chaahiye ki yah bhagavaankee vishesh kripa huee hai, bhagavaanne mereko visheshataase yaad kiya hai. is prakaar bhagavaan‌ko kripaakee taraph dekhe, usaka hee bharosa rakhe to unakee kripa bahut visheshataase prakat hogee.

ek baalak gharamen so raha thaa. usakee maan jal bharaneke liye kuenpar chalee gayee. maanke jaaneke baad baalakakee neend khul gayee. usane dekha ki maan ghada़e men paanee lekar a rahee hai to vah maankee taraph chal pada़aa. baahar tej dhoop pada़ rahee thee. dhoopase tapee jameenapar baalakake komala-komal pair jal rahe the, par usako is baataka hosh naheen tha ki main yaheen thahar jaaoon, maan toyahaan a hee rahee hai. vah maanke paas pahunch gayaa. maank sirapar ghada़a thaa; atah vah jhukakar usako kaise uthaaye ? isaliye maanne usase kaha ki too apana haath thoda़aa-sa ooncha kar de. parantu baalakane haath ooncha naheen kiya, ulate neeche let gaya aur kahane laga ki too mereko too chhoda़kar kyon chalee gayee? ab garam jameenase usaka shareer jalata hai aur vah rota hai. maan kahatee hai ki too thoda़a ooncha haath kar de, par vah usakee baat sunata hee naheen. maan bechaaree ghada़a lekar ghar aatee hai aur baalak bhee uthakar usake peechhe-peechhe dauda़ta hai. agar vah thoda़aa-sa ooncha haath kar le to usamen kya nukasaan hota hai ? kya apamaan hota hai? kya beijjatee hotee hai ? kya parishram hota hai ? kis yogyataakee jaroorat hotee hai? isee tarah bhagavaan hamen godamen leneke liye taiyaar khada़e hain, keval hamen thoda़aa-sa ooncha haath karana hai arthaat bhagavaanke sammukh hona hai sanamukh hoi jeev mohi jabaheen. janm koti agh naasahin tabaheen.

(maanas, sundara0 44.1) hamen bhagavaan‌kee kripaakee taraph dekhana hai aur 'he mere naatha! he mere naatha!!' kahakar bhagavaan‌ko pukaarana hai. pukaarane maatrase bhagavaan kalyaan kar dete hain. ve pahale kiye gaye paaponkee taraph dekhate hee naheen ki isane kitane paap kiye hain, kitana anyaay kiya hai, kitana mere viruddh chala hai

jan avagun prabhu maan n kaaoo. deen bandhu ati mridul subhaaoo ..

(maanas, uttara0 1.3)

rahati n prabhu chit chook kie kee karat surati say baar hie kee ..

(maanas, baala0 29.3)

baalakakee galatee maanko thoda़e hee yaad rahatee hai. baalak maanke kitana hee vipareet chale, par usake saamane aate hee maanko kuchh yaad naheen rahata aur vah bada़e pyaarase usako godamen le letee hai. isee tarah bhagavaan‌ko bhee hamaaree galatiyonkee yaad naheen rahatee. kaimareke saamane jo aata hai, kaimara usake roopako pakada़ leta hai, usakee photo le leta hai. parantu bhagavaan‌ka kaimara aur tarahakaahai. ham bhajan karate hain to is bhaavako bhagavaan pakada़te h hain, par ham bhool karate hain, ulata chalate hain to isako d bhagavaan pakada़te hee naheen. isane mera naam liya hai, yah mere sharan hua hai, isane meree aur mere bhaktonkee katha sunee hai, satsang kiya hai-ye baaten to bhagavaan‌ke kaimare men chhap jaatee hai, par viruddh baaten chhapatee hee naheen, unakee yaad bhagavaan‌ko rahatee hee naheen !

bada़onka yah svabhaav hota hai ki ve jisaka sudhaar karate hain, usapar pahale shaasan karate hain, phir usapar sneh karate hain -
saasati kari puni karahin pasaaoo. naath prabhunh kar sahaj subhaaoo

(maanas, baala0 89.2)

shaasan karane aur sneh karane- dononmen unakee kripa samaan hotee hai. geetaamen bhee aisee baat aayee hai. bhagavaan pahale arjunako dhamakaate hain ki agar too meree baat naheen too sunega to nasht ho jaayaga - 'n shroshyasi vinankshyasi ' (18.58) phir pyaarase kahate hain

sarvaguhyataman bhooyah shrinu me paraman vachah . ishto'si me dridhamiti tato vakshyaami te hitam ..

(geeta 18 64)

sabase atyant gopaneey vachan too phir merese suna. too mera atyant priy hai, isaliye main tere hitakee baat kahoongaa.' bhagavaanka, gurujanonka, maataa-pitaaka aisa bhaavahota hai, tabhee hamaara paalan hota hai, naheen to hamaaree kya dasha ho! sansaarake log agar hamaare avagunonko jaan jaayan to hamaarese kitanee ghrina karen, par bhagavaan kan kanakee baat jaanate hain, phir bhee sahaj, svaabhaavik kripa karate hain

aiso ko udaar jag maaheen.

binu seva jo dravai deenapar raam saris kou naaheen ..

(vinayapatrika 162)

logonmen hamaare avagun prakat naheen hote, tabhee hamaara kaam chalata hai. hamaare manamen jo buree baaten aatee hain, unako agar log jaan len to ek dinamen kitanee maar pada़e. parantu logonko unaka pata naheen lagataa. bhagavaan to sab jaanate hain, par jaanate hue bhee hamaara tyaag naheen karate, pratyut aankh meech lete hain ki baalak hai, koee baat naheen. is kaaran hamaara kaam chalata hai, naheen to bada़ee mushkil ho jaaya! agar bhagavaan hamaare lakshanonkee taraph dekhen to hamaara uddhaar hona to door raha, nirvaah hona bhee mushkil ho jaaya. parantu bhagavaan dekhate hee naheen. aise kripaasindhu bhagavaan kee kripaapar vishvaas rakhen, useeka bharosa rakhen

ek bharoso ek bal ek aas bisvaasa.
ek raam ghan syaam hit chaatak tulaseedaas ..

(dohaavalee 270)

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श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
मेरा अवगुण भरा शरीर, कहो ना कैसे
कैसे तारोगे प्रभु जी मेरो, प्रभु जी
मीठी मीठी मेरे सांवरे की मुरली बाजे,
होकर श्याम की दीवानी राधा रानी नाचे
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
मैं मिलन की प्यासी धारा
तुम रस के सागर रसिया हो
सत्यम शिवम सुन्दरम
सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी
यही मेरी ज़िंदगी है, यही मेरी बंदगी है
मीठे रस से भरी रे, राधा रानी लागे,
मने कारो कारो जमुनाजी रो पानी लागे
ਮੇਰੇ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਨਾ ਵੇਖਿਓ ਜੀ,
ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ
रसिया को नार बनावो री रसिया को
रसिया को नार बनावो री रसिया को
मेरा आपकी कृपा से,
सब काम हो रहा है
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया, दिल दीवाना हो गया ॥
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप ताप और साधन क्या जाने
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया ।
राम एक देवता, पुजारी सारी दुनिया ॥
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री
दासी की झोली भर दो लाडली श्री राधे॥
मेरी रसना से राधा राधा नाम निकले,
हर घडी हर पल, हर घडी हर पल।
सब दुख दूर हुए जब तेरा नाम लिया
कौन मिटाए उसे जिसको राखे पिया
लाडली अद्बुत नज़ारा तेरे बरसाने में
लाडली अब मन हमारा तेरे बरसाने में है।
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
जग ताने देंदा ए, तै मैनु कोई फरक नहीं
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥

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मैं काँवर लाऊंगा,
तेरी बाबा भोले,
आजा मेरे सांवरे,
देख मेरे हालात,
कीर्तन की है रात,
बाबा आज थाने आणो है,
सच्चा भरोसा तेरी, बिगड़ी बात बदलेगा,
आ श्याम शरण में, बाबा हर हालात बदलेगा,
नाम लेने से तर जाएगा,
पार भव से उतर जायेगा॥