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जीवनमें जब अँधेरा सा छा जाय बहुत विपदा आ पड़े तो क्या करें ?

भगवान्की कृपासे ही हमारा वास्तविक कल्याण होता है।

इसलिये हमें भगवान्की कृपापर सम्पूर्ण विश्वास और भरोसा रखना चाहिये। कृपा तो केवल भगवान्‌की ही हो सकती है। वे तो कृपामय ही हैं।

करुणालय भगवान्की कृपा हमपर नित्य ही हो रही है। हमें केवल उस कृपाकी अनुभूति करनेकी जरूरत है। किसी भी अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितिमें हमें भगवान्की कृपापर दृढ़तासे विश्वास रखना चाहिये।

हमारे जीवनमें जो भी अच्छा है, अनुकूल है, कल्याणकारी है, वो सब केवल भगवान्की कृपासे ही है। भगवान् की कृपासे ही और केवल कृपासे ही हम भवसागरके पार जा सकते हैं, तर सकते हैं। उस कृपासिन्धु भगवान्‌की कृपाका वास्तविक अनुभव अभेद भावसे ही होता है। भेदकी दृष्टिसे अगर हम देखते हैं तो कृपाको अनुभव करना मुश्किल हो जाता है। इसीलिये अद्वैतकी याचना करते हुए ऋग्वेदमें यह प्रार्थना है—

यदग्ने स्यामहं त्वं त्वं वा घा स्या अहम् स्युष्टे

सत्या इहाशिषः ॥ (ऋग्वेद ८।४४।२३)

इस मन्त्रमें प्रार्थना इस प्रकार है- 'हे भगवन्! हे अग्ने ! मैं आप हो जाऊँ और आप मैं हो जाइये। मैं आप, या तेरा-मेरा यह भेद निवृत्त होकर अभेद हो जाय और इस सृष्टिमें आपका यही आशीष इष्ट-सिद्धिका समर्पक हो।'

इस मन्त्रमें अभेदकी प्रार्थना है। आशीष अर्थात्

भगवान्‌का शुभ आशीर्वाद प्राप्त हो अर्थात् कृपा प्राप्त

हो—यही भाव है।

भेदकी दृष्टि हमें विकारोंकी तरफ आकर्षित करती है। भगवान्‌का स्वरूप तो निर्विकार है, निर्विकल्प है और विकार तो हमें दुःख ही देते हैं। निरतिशय प्रेम करनेयोग्य केवल प्रभु ही हैं। धन, कीर्ति, परिवार, पद ये तो अन्तमें केवल दुःख ही देंगे। इसलिये उन कृपासिन्धु प्रभुमें ही हमें अनुसन्धानवृत्तिको लगानाचाहिये। ऋग्वेदमें ऐसी आज्ञा है

प्रेष्ठमु प्रियाणां स्तुहि ।। (ऋग्वेद ८ । १०३ । १० ) हमारा तो श्वास भी भगवान्‌की कृपासे ही चलता । है। हमारी बुद्धिके भी प्रेरक भगवान् ही हैं। हम जो भी । कर्म करते हैं, उस कर्मके बन्धनसे छुड़ानेवाले भी भगवान् ही हैं। हमें दुर्बुद्धिकी स्फुरणा न हो, हम सत्कर्म और सदाचारकी राहपर चलें, इसके लिये भगवान्‌की कृपाकी अत्यन्त आवश्यकता है। इस कृपाकी याचना यजुर्वेदमें इस प्रकार आयी है

परिमाग्ने दुश्चरिताद्बाधस्वा मा सुचरिते भज । उदायुषा स्वायुषोदस्थाममृताँ अनु ।। (यजुर्वेद ४ २८)

हे भगवन्! हम पाप और दुराचरणके मार्गपर न जायँ, कृपा करिये। इस मन्त्रके भाष्यमें यह कहा गया है - हे भगवन्नग्ने परिबाधस्व परित्रायस्व मां दुश्चरितात्पापाचरणात्। हमारे मनमें पापकी प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिये; क्योंकि प्रवृत्ति ही कारक होती है, इसलिये आचार्य महीधर कहते हैं—मे पापे प्रवृत्तिर्मा भूदित्यर्थः । अगर कोई साधक ब्रह्मज्ञानकी प्राप्तिके लिये तत्पर है, तो उसे भी ब्रह्मज्ञानकी प्राप्ति केवल भगवत् कृपासे ही होती है। बिना कृपाके ब्रह्मज्ञान सम्भव ही नहीं है। ब्रह्मको जो जानता है, उसके वशमें तो सभी देव होते हैं। यजुर्वेदमें कहा गया है—

रुचं ब्राह्मं जनयन्तो देवा अग्रे तदब्रुवन् । यस्त्वैवं ब्राह्मणो विद्यात्तस्य देवा असन्वशे । (यजुर्वेद ३१ २१ ) जो भगवान् की कृपाको अनुभव करता है और हर क्षण जो अपनेपर हो रही कृपा वर्षाको जानता है, वही तो सच्चा उपासक है। जो साधक भगवान्की कृपानुभूति रूप उपासना करता है, वह ब्रह्मज्ञानका अधिकारी हो जाता है। अथर्ववेदमें कहा गया है

यत्र देवा ब्रह्मविदो ब्रह्म ज्येष्ठमुपासते यो वै तान् विद्यात् प्रत्यक्षं स ब्रह्मा वेदिता स्यात् ॥

(१०।७।२४)
चाहे साक्षात् ब्रह्मदेव ही क्यों न हों, वे भी उस पदपर उनकी कृपासे ही विद्यमान हैं, औरोंकी तो बात ही क्या कहें ? हर अवस्थामें, हर क्षण, हर देश, काल, परिस्थितिमें हमपर भगवान्‌की कृपा ही होती रहती है। उस कृपाके वर्षणको हमें जानना चाहिये हृदयसे उस प्रभुकृपाको ग्रहण करना चाहिये ।

बाकी जो भी तप, त्याग आदि साधन हैं, उनके लिये हमारी क्या योग्यता है? एक ही मार्ग हमारे लिये प्रशस्त है और वह है 'भगवत्कृपा'। जब उस करुणामय प्रभुकी कृपा होती है, तब हम परमानन्दसे परिपूर्ण हो जाते हैं। साधकको चाहिये कि उस कृपाप्राप्तिके लि आतुर रहे; क्योंकि उद्धारका यही तो मार्ग है। गोस्वामी तुलसीदासजी विनय पत्रिकामें कहते हैं

नाथ! कृपाहीको पथ चितवत दीन हौं दिनराति । होइ धौं केहि काल दीनदयालु जानि न जाति ॥

तुलसीदासजी कहते हैं-'हे भगवन्! आपकी कृपा मुझपर कब होगी? मैं रात-दिन आपकी ही राह देखता रहता हूँ। हे दीनदयालु प्रभु! मुझपर कृपा कीजिये।' हमें भगवान्से यह प्रार्थना करनी चाहिये कि हे प्रभु! हम अनाथ हैं, पतित हैं, हमपर कृपा कीजिये। 'सूर-विनय पत्रिका' में सूरदासजी कहते हैं—

कृपा अब कीजिए, बलि जाउँ । नाहिन मेरे और कोउ, बलि, चरन-कमल बिन ठाउँ ।

हाँ असौच, अक्रित अपराधी, सनमुख होत लजाउँ ।

(पद १७७) हमें ऐसी प्रार्थना करनी चाहिये कि हे भगवन्! मैं तो पापी, अधम, अकर्मी, अपवित्र, अपराधी हूँ ही फिर भी मैं आपकी शरण में आया हूँ और आपपर मुझे विश्वास है कि आप मेरा उद्धार करेंगे; क्योंकि आप तो कृपालु हैं, करुणानिधि हैं, आपका तो नाम ही पतित पावन, अधमोद्धारण है। इसी पदमें आगे सूरदासजी कहते हैं

तुम कृपाल, करुनानिधि, केसव अधम उधारण नाउ ।। भगवान् तो परम कृपालु हैं ही; परंतु हमें बिलकुलभी असावधान नहीं रहना चाहिये। साधन-भजनमें हमारी असावधानीके कारण किसी भी दोष, दुर्गुणका संग नहीं होना चाहिये। विकारोंका सर्वथा त्याग करनेपर ही प्रभुकृपाकी अनुभूति होती है। लेकिन, विकारोंका त्याग हम अपने सामर्थ्यसे कर सकते हैं क्या? वह तो सर्व-समर्थ भगवान्‌की कृपासे ही होगा।

कृपाकी अनुभूति प्राप्त करनेकी दृढ़ इच्छा भी होनी चाहिये कि कब मैं आपके करुणामय स्वरूपको जान पाऊँगा, कब आपके अनुग्रहका मैं दर्शन करूँगा?

हम तो केवल साधन कर सकते हैं, उसमें सफलता तो भगवत्कृपासे ही प्राप्त होती है। भगवान् हमारी रक्षा करते हैं, हर स्थितिमें रक्षा करते हैं; क्योंकि उनके स्वभावमें कृपा विद्यमान है, अपितु कृपा ही उनका स्वभाव है। हम क्या साधन कर सकते हैं? हमारा सामर्थ्य, आयु, बल है ही कितना? हम तो केवल उस प्रभुको नमन कर सकते हैं।

विश्वकर्मन् नमस्ते पाह्यस्मान् ॥

(अथर्ववेद २ ३५ ४)

अर्थात् हे विश्वके कर्ता प्रभु! हम आपको नमन करते हैं। आप हमपर कृपा कीजिये, हमारी रक्षा कीजिये। हमें भवसागरसे पार कीजिये

इस संसार सागरसे पार पाना वैसे तो बड़ा कठिन है, परंतु प्रभु कृपा करें तो जैसे जलयानके द्वारा सागरको पार करना सुलभ होता है, उतना ही सुलभ इस संसार सागरको पार करना भी हो जाता है।

इसलिये ऋग्वेदमें ऐसी प्रार्थना है

स नः सिन्धुमिव नावयाति पर्षा स्वस्तये । अप नः शोशुचदघम् ॥

(ऋग्वेद १।९७।८) अर्थात् जैसे सागरको नौकाके द्वारा पार किया जाता है, वैसे ही वे प्रभु हमारा कल्याण करनेके लिये हमें संसार-सागरसे पार ले जायें। हमारा पाप नष्ट हो । भगवान् इतने कृपामय हैं कि स्वयं ही भक्तको कृपापूर्वक भवसागर पार कराते हैं। इसलिये भक्तकोसंसारकी चिन्ता करनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। जिस प्रकार किसी राजाकी पत्नीको भिक्षा माँगनेकी स्थिति नहीं आती है, वैसे ही सर्वसमर्थ भगवान्की कृपाके कारण भक्तको भी कभी किसी दुर्बलता या पीड़ाकी प्राप्ति नहीं होती है। भगवान् गीतामें भी कहते हैं

तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ॥

(गौता १२७)

कृपा प्राप्त करनेके लिये एक ही महत्त्वपूर्ण बातहै कि हमारे पास अनन्य भाव होना चाहिये। प्रभुके बिना हमारी कहीं भी रुचि, प्रीति नहीं होनी चाहिये। गोस्वामी तुलसीदासजी 'विनयपत्रिका' में कहते हैं

केहू भाँति कृपासिन्धु मेरी ओर हेरिये। मोको और गैर न सुटेक एक तेरिये ॥

हे कृपासिन्धु आप किसी भी तरह मेरी ओर देखें, मुझे और कहीं ठाँव-ठिकाना नहीं है। एक तुम्हारा हीपक्का आश्रय है।

कैसी भी परिस्थिति आ जाय, विपरीत-से विपरीत दशा हो जाय, हमें कुछ बीमारी हो जाय, अपकीर्ति हो जाय, घाटा हो जाय, हर दिन अपमान हो जाय, धनका नाश हो जाय - उसमें भी भगवान्की कृपाका ही अनुभव करना चाहिये।

लालने ताडने मातुर्नाकारुण्यं यथार्थक

तद्वदेव महेशस्य नियन्तुर्गुणदोषयोः ॥

जिस प्रकार बच्चेका पालन करने और ताडन करने- दोनोंमें माँकी अकृपा नहीं होती है; उसी प्रकार जीवोंके गुण-दोषोंके नियामक भगवान्‌की कहीं, किसीपर, कभी भी अकृपा नहीं होती। कोई नास्तिक भगवान्‌को नहीं मानता है, फिर भी उसपर भगवान्की कृपा बनी रहती है। ऐसेमें कृपाको अनुभव करनेवाला कोई भक्त हो तो फिर तो कहना ही क्या ?

इसीलिये ब्रह्मदेव कहते हैं

तत्तेऽनुकम्पां सुसमीक्षमाणो भुंजान एवात्मकृतं विपाकम् ।हृद्वाग्वपुर्भिर्विदधन्नमस्ते जीवेत यो मुक्तिपदे स दायभाक्

(श्रीमद्भागवत १० १४।८)

अर्थात् जो प्रतिक्षण आपकी कृष्णको ही देखता रहता है और शरीर, वाणी तथा हृदयसे आपको नमस्कार करता रहता है, उसे आपका परमपद वैसे ही मिलता है, जैसे पिताकी सम्पत्ति पुत्रको मिलती है।

बहुत करुणामय स्वरूप है उस कृपासिन्धुका। उस प्रभुकी कृपा जिसपर होती है; उसे अलभ्य क्या रहेगा ? गूँगा भी विद्वानोंकी भाँति बोल सकता है। कोई पंगु भी हिमालय जैसे विशाल पर्वतको लाँघकर जा सकता है। गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं

मूक होइ बाचाल पंगु चढ़ड़ गिरिबर गहन। जासु कृपाँ सो दयाल द्रव सकल कलि मल दहन ॥ कुछ अनुभवकी बातें

१- जीवनमें जब अँधेरा सा छा जाय बहुत विपदा आ पड़े अथवा मानहानि और धनहानि हो जाय, तो उस दशासे बाहर निकलनेके लिये 'आदित्यहृदयस्तोत्र 'का नित्य पाठ करना चाहिये उससे बड़े-से-बड़े संकट 1 और विपदाएँ टल जाती हैं।

२- अगर आप साधु हैं, परमार्थिक आचरण करनेवाले हैं और आपपर कांचन और कामिनीके विषयमें मिध्या आरोप लगे हैं, तब ' श्रीहनुमद्वडवानलस्तोत्र' का आपको पाठ और अनुष्ठान करना चाहिये। इससे संकटसे दूर हो जाते हैं, हुए हैं।

३- सांसारिक सफलता प्राप्त करनेके लिये 'नवग्रहस्तोत्र' का पाठ लाभकारी है।

४- घरके सदस्योंकी प्रतिकूलता हुई है तो अनुभव ऐसा है कि अगर आप 'गजेन्द्रमोक्ष' का पाठ करते हैं, तब परिस्थितियाँ आपके अनुकूल हो जाती हैं पाठ भाव और श्रद्धापूर्वक करना चाहिये।

५- किसी भी दुःख, संकट, विपदा, हानिमें भगवान्‌का नाम-स्मरण, निरन्तर पूरे भाव, श्रद्धा और प्रेमसे करना चाहिये। इससे लाभ होता है; हुआ है।



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Real Life Experience प्रभुकृपा


jeevanamen jab andhera sa chha jaay bahut vipada a pada़e to kya karen ?

bhagavaankee kripaase hee hamaara vaastavik kalyaan hota hai.

isaliye hamen bhagavaankee kripaapar sampoorn vishvaas aur bharosa rakhana chaahiye. kripa to keval bhagavaan‌kee hee ho sakatee hai. ve to kripaamay hee hain.

karunaalay bhagavaankee kripa hamapar nity hee ho rahee hai. hamen keval us kripaakee anubhooti karanekee jaroorat hai. kisee bhee anukool ya pratikool paristhitimen hamen bhagavaankee kripaapar dridha़taase vishvaas rakhana chaahiye.

hamaare jeevanamen jo bhee achchha hai, anukool hai, kalyaanakaaree hai, vo sab keval bhagavaankee kripaase hee hai. bhagavaan kee kripaase hee aur keval kripaase hee ham bhavasaagarake paar ja sakate hain, tar sakate hain. us kripaasindhu bhagavaan‌kee kripaaka vaastavik anubhav abhed bhaavase hee hota hai. bhedakee drishtise agar ham dekhate hain to kripaako anubhav karana mushkil ho jaata hai. iseeliye advaitakee yaachana karate hue rigvedamen yah praarthana hai—

yadagne syaamahan tvan tvan va gha sya aham syushte

satya ihaashishah .. (rigved 8.44.23)

is mantramen praarthana is prakaar hai- 'he bhagavan! he agne ! main aap ho jaaoon aur aap main ho jaaiye. main aap, ya teraa-mera yah bhed nivritt hokar abhed ho jaay aur is srishtimen aapaka yahee aasheesh ishta-siddhika samarpak ho.'

is mantramen abhedakee praarthana hai. aasheesh arthaat

bhagavaan‌ka shubh aasheervaad praapt ho arthaat kripa praapta

ho—yahee bhaav hai.

bhedakee drishti hamen vikaaronkee taraph aakarshit karatee hai. bhagavaan‌ka svaroop to nirvikaar hai, nirvikalp hai aur vikaar to hamen duhkh hee dete hain. niratishay prem karaneyogy keval prabhu hee hain. dhan, keerti, parivaar, pad ye to antamen keval duhkh hee denge. isaliye un kripaasindhu prabhumen hee hamen anusandhaanavrittiko lagaanaachaahiye. rigvedamen aisee aajna hai

preshthamu priyaanaan stuhi .. (rigved 8 . 103 . 10 ) hamaara to shvaas bhee bhagavaan‌kee kripaase hee chalata . hai. hamaaree buddhike bhee prerak bhagavaan hee hain. ham jo bhee . karm karate hain, us karmake bandhanase chhuda़aanevaale bhee bhagavaan hee hain. hamen durbuddhikee sphurana n ho, ham satkarm aur sadaachaarakee raahapar chalen, isake liye bhagavaan‌kee kripaakee atyant aavashyakata hai. is kripaakee yaachana yajurvedamen is prakaar aayee hai

parimaagne dushcharitaadbaadhasva ma sucharite bhaj . udaayusha svaayushodasthaamamritaan anu .. (yajurved 4 28)

he bhagavan! ham paap aur duraacharanake maargapar n jaayan, kripa kariye. is mantrake bhaashyamen yah kaha gaya hai - he bhagavannagne paribaadhasv paritraayasv maan dushcharitaatpaapaacharanaat. hamaare manamen paapakee pravritti naheen honee chaahiye; kyonki pravritti hee kaarak hotee hai, isaliye aachaary maheedhar kahate hain—me paape pravrittirma bhoodityarthah . agar koee saadhak brahmajnaanakee praaptike liye tatpar hai, to use bhee brahmajnaanakee praapti keval bhagavat kripaase hee hotee hai. bina kripaake brahmajnaan sambhav hee naheen hai. brahmako jo jaanata hai, usake vashamen to sabhee dev hote hain. yajurvedamen kaha gaya hai—

ruchan braahman janayanto deva agre tadabruvan . yastvaivan braahmano vidyaattasy deva asanvashe . (yajurved 31 21 ) jo bhagavaan kee kripaako anubhav karata hai aur har kshan jo apanepar ho rahee kripa varshaako jaanata hai, vahee to sachcha upaasak hai. jo saadhak bhagavaankee kripaanubhooti roop upaasana karata hai, vah brahmajnaanaka adhikaaree ho jaata hai. atharvavedamen kaha gaya hai

yatr deva brahmavido brahm jyeshthamupaasate yo vai taan vidyaat pratyakshan s brahma vedita syaat ..

(10.7.24)
chaahe saakshaat brahmadev hee kyon n hon, ve bhee us padapar unakee kripaase hee vidyamaan hain, auronkee to baat hee kya kahen ? har avasthaamen, har kshan, har desh, kaal, paristhitimen hamapar bhagavaan‌kee kripa hee hotee rahatee hai. us kripaake varshanako hamen jaanana chaahiye hridayase us prabhukripaako grahan karana chaahiye .

baakee jo bhee tap, tyaag aadi saadhan hain, unake liye hamaaree kya yogyata hai? ek hee maarg hamaare liye prashast hai aur vah hai 'bhagavatkripaa'. jab us karunaamay prabhukee kripa hotee hai, tab ham paramaanandase paripoorn ho jaate hain. saadhakako chaahiye ki us kripaapraaptike li aatur rahe; kyonki uddhaaraka yahee to maarg hai. gosvaamee tulaseedaasajee vinay patrikaamen kahate hain

naatha! kripaaheeko path chitavat deen haun dinaraati . hoi dhaun kehi kaal deenadayaalu jaani n jaati ..

tulaseedaasajee kahate hain-'he bhagavan! aapakee kripa mujhapar kab hogee? main raata-din aapakee hee raah dekhata rahata hoon. he deenadayaalu prabhu! mujhapar kripa keejiye.' hamen bhagavaanse yah praarthana karanee chaahiye ki he prabhu! ham anaath hain, patit hain, hamapar kripa keejiye. 'soora-vinay patrikaa' men sooradaasajee kahate hain—

kripa ab keejie, bali jaaun . naahin mere aur kou, bali, charana-kamal bin thaaun .

haan asauch, akrit aparaadhee, sanamukh hot lajaaun .

(pad 177) hamen aisee praarthana karanee chaahiye ki he bhagavan! main to paapee, adham, akarmee, apavitr, aparaadhee hoon hee phir bhee main aapakee sharan men aaya hoon aur aapapar mujhe vishvaas hai ki aap mera uddhaar karenge; kyonki aap to kripaalu hain, karunaanidhi hain, aapaka to naam hee patit paavan, adhamoddhaaran hai. isee padamen aage sooradaasajee kahate hain

tum kripaal, karunaanidhi, kesav adham udhaaran naau .. bhagavaan to param kripaalu hain hee; parantu hamen bilakulabhee asaavadhaan naheen rahana chaahiye. saadhana-bhajanamen hamaaree asaavadhaaneeke kaaran kisee bhee dosh, durgunaka sang naheen hona chaahiye. vikaaronka sarvatha tyaag karanepar hee prabhukripaakee anubhooti hotee hai. lekin, vikaaronka tyaag ham apane saamarthyase kar sakate hain kyaa? vah to sarva-samarth bhagavaan‌kee kripaase hee hogaa.

kripaakee anubhooti praapt karanekee dridha़ ichchha bhee honee chaahiye ki kab main aapake karunaamay svaroopako jaan paaoonga, kab aapake anugrahaka main darshan karoongaa?

ham to keval saadhan kar sakate hain, usamen saphalata to bhagavatkripaase hee praapt hotee hai. bhagavaan hamaaree raksha karate hain, har sthitimen raksha karate hain; kyonki unake svabhaavamen kripa vidyamaan hai, apitu kripa hee unaka svabhaav hai. ham kya saadhan kar sakate hain? hamaara saamarthy, aayu, bal hai hee kitanaa? ham to keval us prabhuko naman kar sakate hain.

vishvakarman namaste paahyasmaan ..

(atharvaved 2 35 4)

arthaat he vishvake karta prabhu! ham aapako naman karate hain. aap hamapar kripa keejiye, hamaaree raksha keejiye. hamen bhavasaagarase paar keejiye

is sansaar saagarase paar paana vaise to bada़a kathin hai, parantu prabhu kripa karen to jaise jalayaanake dvaara saagarako paar karana sulabh hota hai, utana hee sulabh is sansaar saagarako paar karana bhee ho jaata hai.

isaliye rigvedamen aisee praarthana hai

s nah sindhumiv naavayaati parsha svastaye . ap nah shoshuchadagham ..

(rigved 1.97.8) arthaat jaise saagarako naukaake dvaara paar kiya jaata hai, vaise hee ve prabhu hamaara kalyaan karaneke liye hamen sansaara-saagarase paar le jaayen. hamaara paap nasht ho . bhagavaan itane kripaamay hain ki svayan hee bhaktako kripaapoorvak bhavasaagar paar karaate hain. isaliye bhaktakosansaarakee chinta karanekee koee aavashyakata naheen hai. jis prakaar kisee raajaakee patneeko bhiksha maanganekee sthiti naheen aatee hai, vaise hee sarvasamarth bhagavaankee kripaake kaaran bhaktako bhee kabhee kisee durbalata ya peeda़aakee praapti naheen hotee hai. bhagavaan geetaamen bhee kahate hain

teshaamahan samuddharta mrityusansaarasaagaraat bhavaami nachiraatpaarth mayyaaveshitachetasaam ..

(gauta 127)

kripa praapt karaneke liye ek hee mahattvapoorn baatahai ki hamaare paas anany bhaav hona chaahiye. prabhuke bina hamaaree kaheen bhee ruchi, preeti naheen honee chaahiye. gosvaamee tulaseedaasajee 'vinayapatrikaa' men kahate hain

kehoo bhaanti kripaasindhu meree or heriye. moko aur gair n sutek ek teriye ..

he kripaasindhu aap kisee bhee tarah meree or dekhen, mujhe aur kaheen thaanva-thikaana naheen hai. ek tumhaara heepakka aashray hai.

kaisee bhee paristhiti a jaay, vipareeta-se vipareet dasha ho jaay, hamen kuchh beemaaree ho jaay, apakeerti ho jaay, ghaata ho jaay, har din apamaan ho jaay, dhanaka naash ho jaay - usamen bhee bhagavaankee kripaaka hee anubhav karana chaahiye.

laalane taadane maaturnaakaarunyan yathaarthaka

tadvadev maheshasy niyanturgunadoshayoh ..

jis prakaar bachcheka paalan karane aur taadan karane- dononmen maankee akripa naheen hotee hai; usee prakaar jeevonke guna-doshonke niyaamak bhagavaan‌kee kaheen, kiseepar, kabhee bhee akripa naheen hotee. koee naastik bhagavaan‌ko naheen maanata hai, phir bhee usapar bhagavaankee kripa banee rahatee hai. aisemen kripaako anubhav karanevaala koee bhakt ho to phir to kahana hee kya ?

iseeliye brahmadev kahate hain

tatte'nukampaan susameekshamaano bhunjaan evaatmakritan vipaakam .hridvaagvapurbhirvidadhannamaste jeevet yo muktipade s daayabhaak

(shreemadbhaagavat 10 14.8)

arthaat jo pratikshan aapakee krishnako hee dekhata rahata hai aur shareer, vaanee tatha hridayase aapako namaskaar karata rahata hai, use aapaka paramapad vaise hee milata hai, jaise pitaakee sampatti putrako milatee hai.

bahut karunaamay svaroop hai us kripaasindhukaa. us prabhukee kripa jisapar hotee hai; use alabhy kya rahega ? goonga bhee vidvaanonkee bhaanti bol sakata hai. koee pangu bhee himaalay jaise vishaal parvatako laanghakar ja sakata hai. gosvaamee tulaseedaasajee kahate hain

mook hoi baachaal pangu chadha़da़ giribar gahana. jaasu kripaan so dayaal drav sakal kali mal dahan .. kuchh anubhavakee baaten

1- jeevanamen jab andhera sa chha jaay bahut vipada a pada़e athava maanahaani aur dhanahaani ho jaay, to us dashaase baahar nikalaneke liye 'aadityahridayastotr 'ka nity paath karana chaahiye usase bada़e-se-bada़e sankat 1 aur vipadaaen tal jaatee hain.

2- agar aap saadhu hain, paramaarthik aacharan karanevaale hain aur aapapar kaanchan aur kaamineeke vishayamen midhya aarop lage hain, tab ' shreehanumadvadavaanalastotra' ka aapako paath aur anushthaan karana chaahiye. isase sankatase door ho jaate hain, hue hain.

3- saansaarik saphalata praapt karaneke liye 'navagrahastotra' ka paath laabhakaaree hai.

4- gharake sadasyonkee pratikoolata huee hai to anubhav aisa hai ki agar aap 'gajendramoksha' ka paath karate hain, tab paristhitiyaan aapake anukool ho jaatee hain paath bhaav aur shraddhaapoorvak karana chaahiye.

5- kisee bhee duhkh, sankat, vipada, haanimen bhagavaan‌ka naama-smaran, nirantar poore bhaav, shraddha aur premase karana chaahiye. isase laabh hota hai; hua hai.

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फूलों में सज रहे हैं, श्री वृन्दावन
और संग में सज रही है वृषभानु की
सब दुख दूर हुए जब तेरा नाम लिया
कौन मिटाए उसे जिसको राखे पिया
प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भारत शीश धरी लीन्ही
नी मैं दूध काहे नाल रिडका चाटी चो
लै गया नन्द किशोर लै गया,
हर पल तेरे साथ मैं रहता हूँ,
डरने की क्या बात? जब मैं बैठा हूँ
श्री राधा हमारी गोरी गोरी, के नवल
यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्य
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम
ना मैं मीरा ना मैं राधा,
फिर भी श्याम को पाना है ।
आँखों को इंतज़ार है सरकार आपका
ना जाने होगा कब हमें दीदार आपका
शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
लाडली अद्बुत नज़ारा तेरे बरसाने में
लाडली अब मन हमारा तेरे बरसाने में है।
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
सत्यम शिवम सुन्दरम
सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है
प्रीतम बोलो कब आओगे॥
बालम बोलो कब आओगे॥
हम प्रेम दीवानी हैं, वो प्रेम दीवाना।
ऐ उधो हमे ज्ञान की पोथी ना सुनाना॥
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
करदो करदो बेडा पार, राधे अलबेली सरकार।
राधे अलबेली सरकार, राधे अलबेली सरकार॥
किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,
मीठी मीठी मेरे सांवरे की मुरली बाजे,
होकर श्याम की दीवानी राधा रानी नाचे
जगत में किसने सुख पाया
जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
ज़री की पगड़ी बाँधे, सुंदर आँखों वाला,
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे
कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी
यही मेरी ज़िंदगी है, यही मेरी बंदगी है
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
यह मेरी अर्जी है,
मैं वैसी बन जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
ऐसी होली तोहे खिलाऊँ
दूध छटी को याद दिलाऊँ
तुम रूठे रहो मोहन,
हम तुमको मन लेंगे

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राम लला राम राम राम,
दो अक्षर का प्यारा नाम,
बस मेरा सहारा तूं ही तूं
मैं लख़ां दा की करना,करोड़ा वरगा तूं
आ गए हो अगर श्याम इस मोड़ पर,
हमसे मिलने मिलाने का वादा करो,
जेहनूं याद गुरां दी आवे,
ओहनूं घर विच चैन ना आवे,
विनती सुनो गणराजा आज मेरी महफिल में आ
महफिल में आना मेरी महफिल में आना,