यह विश्व विश्वात्माका क्रीडाविलास है। वह परमात्मा विश्वसे अगाध अनुरागके कारण इसके साथ विविध सम्बन्ध रखता है। अपने सद्रूपके द्वारा परमात्मा विश्वके कण-कणमें व्याप्त है। अपनी त्रिगुणात्मिका रुपत्रयी (ब्रह्मा, विष्णु एवं रुद्र) के द्वारा वह विश्वक्रीडाके तीन कार्य सर्जन, अनुवर्धन एवं विसर्जनको सतत सम्पादित किया करता है तथा समय-समयपर अपने व्यक्त सच्चिदानन्दमय अवतरणोंक द्वारा विश्वका स्थिति स्थापन भी करता है।
परमात्माका स्वरूप व्यक्त हो या अव्यक्त, वह अपनी कृपामयतासे कभी विच्युत नहीं होता। कृपा उसका स्वभावगत धर्म है। इसीलिये अध्यात्मदर्शी महापुरुषोंने प्राणिमात्रको प्राप्त होनेवाली प्रतिकूल दशाओंको भी भगवत्कृपा हो बतलाया है। शास्त्रों एवं शास्त्रानुवर्ती महापुरुषोंने प्रतिकूलता के साथ-साथ प्रतिकूलताका शमन करनेवाले लौकिकालौकिक उपायोंको भी भगवत्कृपारूप ही माना है।
आर्ष वाङ्मयमें एवं तदनुगामी सद्वाङ्मयमें प्रतिकूलताका शमन करनेवाले एवं वैध अनुकूलताका विस्तार करनेवाले बहुत-से उपायोंका वर्णन मिलता है, जिन्हें आप्त महापुरुषोंका समर्थन एवं साधकोंका विश्वास प्राप्त है। उन उपायोंमें कतिपय सरल, सुगम, प्रत्यक्ष अनुभूति कराने में समर्थ तथा सार्वभौम, सार्वकालिक एवं सार्वजनिक पात्रतावाले उपायोंका यहाँ संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जाता है।
श्रीभगवान्के वाञ्छाकल्पतरु नाम- भगवन्नाम की महिमा इतनी अधिक है कि उसे कहने-सुननेकी अपेक्षा अनुभव करना ही कर्तव्य जान पड़ता है। धन्यो यशस्यः शत्रुघ्नो जपः कुरुकुलोद्वह। ग्रहानुकूलतां चैव करोत्याशु न संशयः ॥ (विष्णुधर्मोत्तर ३।१२५। ३०) इस प्रकार श्रीकृष्णने अर्जुनको नाम जपका रहस्य बतलाते हुए कहा था कि नामजप धनप्रद, कीर्तिप्रद, शत्रुनाशक, विजयप्रद है एवं अनिष्ट ग्रहोंकोतत्काल अनुकूल बनानेवाला है। ऐसे ही अन्यत्र यह भी कहा गया है सर्वाणि नामानि हि तस्य राजन्!
भवन्ति कामाखिलदायकानि । संकीर्तयते हि शक्त्या तस्मादवाप्नोति हि कामसिद्धिम् ॥
(वि०ध० ३। १२२ १४) परमात्माके सभी नाम समस्त अभिलाषाओंको पूर्ण करनेमें समर्थ हैं। इसपर भी जो व्यक्ति जिस नामका, जिस अभिलाषाकी सिद्धिहेतु विनियोग करता है, उसे उसी नामकी शक्तिसे वह काम्यसिद्धि प्राप्त हो जाती है। श्रीभगवान्के अनन्त नामोंमें कतिपय नामका प्रभावानुभव ऋषिवाक्योंमें इस प्रकार प्रकट हुआ है #
विद्यार्थीको अपने अध्ययनकी पुष्टिके लिये महापुरुषाय नमः अथवा अश्वशिरसे नमः (हयग्रीवाय नमः) मन्त्रोंका जप करना चाहिये
जप्तव्योऽभ्यसता विद्यां महापुरुष इत्यपि । विद्यार्थिना वा जप्तव्यं तथाश्वशिरसेति च ॥
बिना अपराधके जेल जानेपर दामोदराय नमः, अनिरुद्धाय नमः मन्त्रोंका जप करना चाहिये 'दामोदरानिरुद्धौ च ज्ञेयौ बन्धनमोक्षदी।' सभी प्रकारके नेत्रविकार होनेपर 'हृषीकेशाय नमः' का जप करना चाहिये। ओषधिसेवन अथवा चिकित्सा (ऑपरेशन आदि) के समय 'अच्युताय नमः, अमृताय नमः' मन्त्रोंका जप करना चाहिये। भगवान् धन्वन्तरिका यह कथन तो अत्यन्त प्रसिद्ध ही है कि 'अच्युताय नमः, अनन्ताय (अथवा आनन्दाय नमः, गोविन्दाय नमः' इस नाममन्त्रत्रयीका जप करनेसे सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। नष्ट पुरुषत्वकी उपलब्धि एवं दाम्पत्य सुखको प्राप्तिके लिये 'कामाय नमः कामप्रदाय नमः इत्यादि सात नाम-मन्त्रोंका जप करना चाहिये
कामः कामप्रदः कान्तः कामयात्मा तथा हरिः । आनन्दो माधवश्चैव कामसंवृद्धये जपेत् ॥
कर्जके लेन-देन और कचहरीके कामोंमें 'अजितायनमः, अधिपाय नमः, सर्वेश्वराय नमः, प्रभवे नमः' इन चार नाम मन्त्रोंका जप करना चाहिये। आग लग जानेपर भ्राजिष्णवे नमः' अथवा 'जलशायिने नमः' मन्त्रको जपे आकस्मिक विपत्ति आ जाय, बुखार बिगड़ गया हो, बराबर सिरदर्द होता हो, शरीरमें जहर फैल गया हो, तो लगातार 'गरुडध्वजाय नमः' मन्त्रका जप करना चाहिये।
विपरीत ग्रहदशाएँ हों, नक्षत्रपीड़ा हो अर्थात् आश्लेषा आदि क्रूर नक्षत्रोंसे सम्बन्धित पीड़ा हो रही हो भूत-प्रेतादिकी बाधा हो, कुलदेवता, पितृदेवता आदिकी बाधा हो, कालसर्प आदि दोष हों, भयावह मार्गसे यात्रा हो रही हो, डाकू लुटेरेने घेर लिया हो, शत्रुसंकट आ जाय; शेर, बाघ, भालू, साँप, बन्दर, कुत्ता, सियार आदि जंगली हिंसक जीव पीछा कर रहे हों और घने अँधेरेमें बड़ा भय लग रहा हो तो 'नरसिंहाय नमः ' इस नाम मन्त्रका जप करना चाहिये। कहीं बैंक आदिमें रुपया जमा करने निकालने जाना हो अथवा अनाज बेचना खरीदना तथा संरक्षित करना हो तो 'अनन्ताय नमः', 'अच्युताय नम:' इन नाममन्त्रोंका जप करना चाहिये। सैनिकोंको अपनी एवं देशकी रक्षाके लिये 'अपराजिताय नमः' मन्त्रका जप करना चाहिये। बुरे बुरे सपने आते हों, नींद उचट जाती हो, नींद न आती हो, सोते सोते घबराहट होने लगती हो तो 'नारायणाय नमः, शार्ङ्गधराय नमः' आदि छः मन्त्रोंका जप करना चाहिये
नारायणं शार्ङ्गधरं श्रीधरं गजमोक्षणम्। यामनं खगनं चैव दुःस्वप्नेषु तु संस्मरेत्॥
धन-सम्पत्तिकी अभिलाषा हो, आर्थिक संकट आ रहे हों, स्वयंके धनपर किसी औरने अधिकार कर लिया हो, तो मनुष्यको चाहिये कि वह
श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीधरः श्रीनिकेतनः । श्रियः पतिः श्रीपरमः श्रीमान नृसिंह दुष्टदमनो यो विष्णुस्वविक्रमः ॥
-इस मन्त्रका जप करे।
किसानों को चाहिये कि वे खेतीकी सुरक्षा एवं अच्छी फसल पानेके लिये 'बलभद्राय नमः हलायुधाय नमः' मन्त्रोंका जप करें।
भगवती नर्मदाका मंगलमय 'नर्मदा' यह नाम सर्पोंके आक्रमणसे, सर्पविषसे मुक्त होनेके लिये जपना चाहिये। 'श्रीदुर्गा' यह नाममहामन्त्र विपत्तिमें, वन्य जीव-जन्तुओंके आक्रमणमें, रोगोंमें, मरणान्तक पीड़ाओंमें और किसी भी विषम दशामें जपा जानेपर तत्क्षण परित्राण एवं स्वास्थ्य प्रदान करता है। भगवान् शंकरके शिव, महादेव, शंकर, गौरीशंकर, आशुतोष आदि नाम विषम दशाओंमें फँसे व्यक्तिका तत्क्षण समुद्धार करते हैं। सूर्यभगवान् के नामोंका श्रद्धापूर्वक अप पाठादि करनेसे दुःस्वप्नोंकी निवृत्ति तथा रोगोंसे मुक्ति मिलती है। यात्रा, कार्यारम्भ विद्यारम्भ, साक्षात्कार (इण्टरव्यू), गवाही, वाद-प्रतिवाद आदि अवसरोंपर गणपतिके किसी भी नामका या नामात्मक स्तोत्रका पारायण स्मरण करनेपर प्रत्युत्पन्नमतित्व (प्रजेन्स ऑफ माइन्ड), निश्चयशीलता (कॉमनसेन्स) एवं अपनी बात कह पानेका सामर्थ्य आदि फल सहज ही उपलब्ध होते हैं। इसी प्रकार कुमार कार्तिकेय, गरुड़देव नारायमुदर्शनचक्र कौमोदकी गदा, नन्दक खड्ग, पाञ्चजन्य शंख और ऐसे ही शिव, दुर्गा आदिके आयुधोंका नामस्मरण भी रक्षाकर है। इधर कतिपय सज्जनोंके स्वानुभव प्राप्त हुए हैं कि हृदयरोगों (हार्टअटैक, दिलकी घबराहट आदि) में 'विट्ठल' नामका पुनः पुनः उच्चारण आशातीत लाभ देता है। महामना मालवीयजी एवं भाईजी श्रीहनुमानप्रसाद पोदारजीका सुपुष्ट अनुभव भी अवधेष है कि किसी भी कार्यके आरम्भ में, कहीं भी प्रस्थान करते समय 'नारायण' नामका उच्चारण करनेपर दुस्साध्य कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं। षोडशाक्षर महामन्त्र हरे राम हरे० का सर्वविपत्तिनाशक प्रभाव तो सर्वविदित ही है। हरिः शरणम्, श्रीकृष्णः शरणं मम तथा श्रीहरिः शरणं मम ये शरण मन्त्र भी अलौकिक क्षमतासे सम्पन्न एवं तत्क्षण अनुग्रहपूर्वक संकटध्वंसी हैं। विभिन्न भगवन्नाम संकीर्तनोंका महान् चमत्कार सभी सम्प्रदायों, पन्थों,मजहबोंके द्वारा अनुमोदित है। बौद्धोंका त्रिशरणमन्त्र, जैनोंका णमोकार, सिक्खोंका आदिमन्त्र इत्यादिकी कृणमयता तत्तत्-साम्प्रदायिकोंके द्वारा बारम्बार अनुभूत रही है।
कृपामय वैष्णवस्तोत्र – कृपामय भगवान् श्रीहरि स्तुतिप्रिय हैं। यहाँ उनके कतिपय चमत्कारी स्तवनोंके अल्प विवरण प्रस्तुत हैं
श्रीरामरक्षास्तोत्र – इस स्तोत्रका पाठ अनुष्ठान आकस्मिक भय, पीडा, भूत-प्रेतादिकी बाधा, रोगवृद्धि आदिके समयपर किया जाता है। बालग्रहोंसे शिशुके आक्रान्त हो जानेपर यह रक्षाका एक प्रामाणिक उपाय है। रोगोंकी निवृत्तिके लिये औषध सेवन आदि उपायोंसे पहले, उनके साथ-साथ तथा उनके निष्फल हो जानेपर भी इस स्तोत्ररूप उपायका आश्रय लेना चाहिये। इसके अनुष्ठानसे मरणासन्न जन भी नीरोग स्वस्थ होते देखे गये हैं। यह साधककी लौकिक व्याधियोंके साथ-साथ भवव्याधिका भी शमन करनेवाला है। इसके अनुष्ठानकी विविध पद्धतियाँ परम्परया प्रचलित हैं, जिनमें कोई भी पद्धति अभीष्ट सिद्ध करनेमें समर्थ है।
अमृतसंजीवनस्तोत्र जन्मपत्रिकाके द्वारा अरिष्टोंको सूचना मिलनेपर, असाध्य एवं दुस्साध्य रोगोंसे ग्रस्त होनेपर, बालकोंके विविध रोगोंमें, वन्ध्यापनको दूर करनेके लिये विविध स्त्रीरोगोंमें, गर्भपातको दशाएँ, बच्चोंको नजर लग जानेपर तथा प्रेतावेश आदिकी स्थितिमें इस स्तोत्रका आश्रय लेना चाहिये। स्तोत्रका प्रयोग करनेसे पूर्व साधक एक अखण्ड दीप (घी अथवा तिल-नारियल तेल आदिका) स्थापित करे तथा कलश स्थापित करके उसमें भगवान् श्रीहरिको यथाशक्ति आराधना करे। तदुपरान्त इस स्तोत्रके दस हजार, एक हजार, पाँच सौ अथवा ढाई सौ पाठ करे। पाठके उपरान्त घी, पायस आदि हविष्य अथवा संयाव ( लपसी) के द्वारा दशांश होम करे। अनुष्ठानके अनन्तर कार्यसिद्धिपर्यन्त प्रातःकाल तथा सायंकाल स्तोत्रकी एक-एक आवृत्ति करता रहे। तात्कालिक प्रयोगों में पीड़ित व्यक्तिका स्तोत्रके प्रत्येक मन्त्र कुशाके द्वारा गंगाजल, तीर्थजल अथवा किसी भी पवित्र जलसे मार्जन करे।अपामार्जनस्तोत्र - विविध प्रकारके प्रेतावेश, ग्रहबाधा, मारण-उच्चाटन आदि तान्त्रिक क्रियाओंसे पीडित होनेपर एवं असाध्य - दुस्साध्य रोगोंसे आक्रान्त होनेपर भविष्यपुराणोक्त विष्णु-अपामार्जन स्तोत्रका आश्रय लेना चाहिये। इसके प्रयोगानुष्ठानकी संक्षिप्त विधि इस प्रकार है-साधक स्नानादि नित्यकृत्योंसे निवृत्त होकर प्रातःकाल अथवा संकटापन्न होनेपर, किसी भी समय स्नान करके पूजा सामग्री लेकर आसनपर बैठे। गंगा बालू या मिट्टीकी दो अंगुल ऊँची, एक हाथ लम्बी चौड़ी वेदी बनाये। उस पर चावल अथवा जौ, मूँग आदि किसी धान्यका ढेर रखे। उसपर मिट्टीका कलश स्थापित करे। पूगीफल, पूर्णपात्रादिसे समन्वित कलशकी प्रतिष्ठा करनेके अनन्तर सौ कुशाओंको बाँधकर कलशपर रख दे। फिर उसी कलशपर भगवान्के वराह, नृसिंह, वामन तथा विष्णु इन स्वरूपोंका नाममन्त्रोंसे ॐ वराहाय नमः, वराहं स्थापयामि नमः, पूजयामि नमः इत्यादि षोडशोपचारों या उपलब्ध उपचारोंसे पूजन करे। तत्पश्चात् स्तोत्रगत मन्त्रोंसे दिग्बन्धन तथा न्यास करके उन कुशाओंको मुट्ठीमें लेकर कलशोदकके द्वारा रोगीका स्तोत्र पढ़ते हुए मार्जन करे। यह मार्जनक्रम आवश्यकतानुसार एक दिनसे लेकर ग्यारह, इक्कीस, इक्यावन, एक सौ एक दिनोंतक चलना चाहिये।
विष्णुसहस्त्रनामस्तोत्र – महाभारतमें वर्णित यह मंगलमय स्तोत्र श्रीविष्णुके समस्त नामस्तोत्रोंमें शिरोमणि है। रोग, शोक, भय, चिन्ता, दारिद्र्य, ग्रहकष्ट, चित्तशुद्धि, वैराग्यलाभ - जैसे लौकिक एवं पारलौकिक अभीष्टोंकी सिद्धिके लिये साधकोंने इसे सर्वोत्तम तथा पूर्णतया निरापद साधन माना है। किसी भी वैध कामनाको लेकर कोई भी इसका अनुष्ठान करके साफल्य पा सकता है। गजेन्द्रमोक्षस्तोत्र - यह श्रीमद्भागवतोक्त स्तोत्ररत्न भी अलौकिक चमत्कारोंका साधन बनता रहा है। विषमविपत्ति, दुःस्वप्न, रोग एवं ऋणग्रस्तताकी दशामें इसस्तोत्रका आर्तभावसे पारायण करना चाहिये।
नारायणकवच - श्रीमद्भागवतोक्त यह रक्षाप्रयोग सर्वविध विपत्तियाँसे परित्राणका अमोघ साधन है। भूतप्रेतादिजन्य बाधा, शत्रुसंकट एवं तान्त्रिक अभिचारोंसे निवृत्ति पानेके लिये इसका प्रयोग किया जाता है। विभिन्न असाध्य रोगोंका उपद्रव भी इसके पाठसे तत्क्षण शमित होने लगता है। इसका प्रयोग विविध रीतियोंसे किया जाता है। कतिपय साधक घण्टा-शंखकी ध्वनिके साथ इसका पाठ करते हुए पीड़ित व्यक्तिको मोरपंखसे झाड़कर अथवा कुशोदकसे मार्जन करके बाधा निवारण करते हैं। इसके अतिरिक्त सन्तानगोपालस्तोत्रादि विविध चमत्कारी वैष्णव प्रयोग भी शास्त्रोंमें वर्णित हैं।
कृपामय देवीस्तोत्र – भगवतीकी कृपाप्राप्तिके लिये विभिन्न स्तोत्रोंका निर्देश शास्त्रज्ञ आचार्य करते हैं। इनमें देवी इन्द्राक्षी देवी लटक स्तोत्र, संकटाष्टकस्तोत्र, वाराही अष्टक, देवीमाहात्म्यस्तोत्र (श्रीदुर्गासप्तशती), अपराजिताप्रयोग, वनदुप्रयोग, महाविद्या सौभाग्यष्टतरशतनाम दुर्गशतनाम शिन्नाममाला आपदुद्धारक दुर्गास्तोत्र, अर्जुनकृत विजयदुर्गास्तोत्र, महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र, बन्दीमोचन- स्तोत्र, देवीभागवतोक्त सरस्वतीकवच आदि आर्ष स्तोत्र एवं श्रीशंकराचार्यप्रणीत आनन्दलहरी, सौन्दर्यलहरी, देव्यपराधक्षमापन, भवान्यष्टक आदि स्तोत्र प्रधान एवं त्वरित फलप्रद हैं। इनके नित्य पारायण, पाठपूर्वक वजन - अभिषेकादिसे देवीकी कृपा प्राप्त होती है। देवीसहस्त्रनामस्तोत्र – श्रीभगवतीके विभिन्नसहस्रनामस्तोत्र प्राप्त होते हैं, जिनमें कतिपय स्तोत्रोंकासाधकोंके मध्य विशेष प्रचार है। इनमें ललितासहस्त्रनाम,आपदुद्धारक दुर्गासहस्रनाम तथा भवानीसहस्रनाम मुख्यहैं। ये तीनों ही देवीकी कृपाप्राप्तिके अक्षय स्रोत हैं।
देवीस्तोत्रोंमें अन्यतम इन्द्राक्षीस्तोत्रका सप्रयोग अनुष्ठान विभिन्न ज्वर, स्त्रीरोगों, मनोरोगों एवं उदरामय, मिरगी आदि व्याधियोंके निवारणार्थं बारम्बार होता आया है। ऐसे ही ब्रह्माण्डपुराणोक्त देवीकवच भी आधि-व्याधियोंकी निवृत्ति करनेका सुगम साधन है। कतिपय मन्त्रवेत्ताजन इस स्तोत्रमें समागत विभिन्न शक्तियोंके सबीज नाममन्त्रोंका प्रयोग नानाविध समस्याओंके निणर्य भी करते हैं। शीतला रोग, फोड़ा-फुंसी औरकुष्ठ-जैसी व्याधियोंके निवारणार्थं शीतलाष्टक एक अमोघ उपाय है। नीमके पल्लवोंके द्वारा जलसे अथवा बिना जलके भी शीतलास्तोत्र पढ़ते हुए नित्यप्रति मार्जन करनेसे प्रबल शीतलाव्याधि भी शमित हो जाती है और होनेवाले जलन प्रदाहमें तो उसी क्षण कमी आ जाती है। विषम संकटापन्न होनेपर संकटाष्टक या संकटासहरू नामस्तोत्रका पाठ किया जाता है तथा संकटादेवी (या किसी भी देवी मन्दिर) की एक सौ आठ, केवल आठ या एक परिक्रमा की जाती है। वाराहीनिग्रहाष्टक तथा वाराह्यनुग्रहाष्टक स्तोत्रोंका पाठ भी विषम अभिचारोंसे त्राण पानेहेतु किये जानेका विधान है।
देवीमाहात्म्यस्तोत्र, जिसकी लोकमें और आगम ग्रन्थोंमें भी दुर्गासप्तशती तथा चण्डी नामसे प्रसिद्धि है, उसकी महिमा एवं लोकप्रियताको चर्चा करना सूर्यको दीपक दिखाने जैसा है। इस स्तोत्रका प्रायः छः रूपोंमें अनुष्ठान किया जाता है। प्रथम, केवल त्रयोदश अध्यायोंका क्रमशः पाठ द्वितीय, कवच-नवार्णादि अंगोंके सहित चण्डीपाठ तृतीय, कामनानुरूप किसी चरित्रविशेषका पाठ। चतुर्थ, कामनानुरूप किसी श्लोक (मन्त्र) -का जप पंचम, देवीमाहात्म्यगत स्तुतियोंका पाठ तथा षष्ठ, सप्तशतीके मन्त्रोंके आगमोक्त बीजरूपोंका जप । इन सभी रूपोंके अन्तर्गत भी प्रत्येक रूपकी अनेकानेक प्रविधियाँ (सप्तशती दीपदान, होम, नमस्कार, प्रणिपात, अर्चन, विविध प्रकारके विलोम पाठ, सम्पुटित पाठ, सार्धचण्डी पाठ आदि) शास्त्रों में बतलायी गयी हैं। यह स्तोत्र किसी भी रूपमें सेवन किये जानेपर भगवतीकी तत्क्षण कृपा उपलब्ध करानेमें तथा साधककी अभिलाषाओंको पूर्ण करनेमें समर्थ है। दुर्गासप्तशती के पाठ अनुष्ठानकी महिमा अकथनीय है, संक्षेपमें उसका परिचय और भी कठिन है, स्थानाभावके कारण यहाँ संकेतमात्र किया गया है।
अपराजितास्तोत्रका प्रयोग विषम परिस्थितियोंसे परित्राणहेतु किया जाता है। मुकदमा शत्रुसंकट मृत्युतुल्य आकस्मिक कष्ट (जैसे शरीरके जल जानेसे मृत्युकी आशंका एवं उत्कट दाह, शरीरकी ऐंठन आदि) में इसका पारायण एवं होम किया जानेपर अभीष्ट परिणाम प्राप्तहोता है। ऐसी ही दशाओंमें वनदुर्गाप्रयोग भी साधकोंके द्वारा अनुष्ठित होता है। अधिकारीको प्रतिकूलता अनुकूल स्थानान्तरण (ट्रांसफर) का न होना आदि समस्याओंमें इसका पाठ होम त्वरित फलप्रद है। महाविद्याप्रयोग भी एक दिव्य उपाय है। जब घरमें अकारण कलह होने लगे, ग्रहदशा खराब हो, अकारण आकस्मिक विपत्तियाँ बारम्बार आ रही हों तो महाविद्यास्तोत्रका पाठ होम किसी साधकसे समझकर करना या कराना चाहिये। स्त्रियोंको चाहिये कि वे सौभाग्यकी अभिवृद्धिके लिये सौभाग्याष्टोत्तरशतनामका पारायण करें। विवाहाभिलाषी युवक-युवती एवं सुखद दाम्पत्यकी कामनावाले दम्पती गोमयकी अम्बिकाका गन्ध, अक्षत, पुष्प, सिन्दूर, धूप दीपादिसे पूजन करके इस स्तोत्रका नित्य पाठ करके अपना अभीष्ट प्राप्त कर सकते हैं।
कृपामय गणपतिस्तोत्र - विघ्नहर्ता गणपतिदेव अल्पयत्नसाध्य देवता हैं। इनके विभिन्न प्रभावी स्तवन शास्त्रों में प्राप्त होते हैं, जिनके आवर्तनसे साधक शीघ्र ही पूर्णकाम हो सकता है। गणपतिके मुख्य स्तोत्रों में संकष्टनाशन गणेशस्तोत्र, गणेशपुराणोक्त महागणपति राहातो शंकराचार्यकृत गणेशवर विशेष प्रसिद्ध हैं। संकटापन्न होनेपर संकटनाशन गणेशस्तोत्रका आवर्तन एवं स्तोत्रगत गणपतिनामोंसे दुर्वा मोदकार्पण विशेष फलप्रद है। महागणपतिसहस्त्रनामस्तोत्रके विषयमें तो स्वयं गणपतिका ही कथन है कि यह स्तोत्र मेरा स्वरूप है और मुझे मेरे मूलमन्त्र से भी अधिक प्रिय है। इस स्तोत्र के नामोंसे शमी, दूर्वा, लाजा, मोदक, इक्षुखण्ड आदिका समर्पण, विविध द्रव्योंसे तर्पण तथा होम महागणपतिको कृपाको सुलभ करानेवाला है। गणपतिदेव को सन्तुष्ट करनेका महत्तम साधन विविध द्रव्यों (हरिद्रामिश्रित जल, इक्षुरस, आदि) से तर्पण है।
कृपामय सौरस्तोत्र' आरोग्यं भास्करादिच्छेत् इत्यादि आर्य कथनसे यह सिद्ध होता है कि प्राणिमात्रको समस्त आधि-व्याधियोंका शमन सूर्यके माध्यमसे होता है जहाँ एक ओर सूर्यदेव स्थूल रोगों का शमन करते हैं, वहीं भवरोग जैसी महाव्याधिको भी अपनी कृपासे निवृत्तकर देते हैं। यहाँ उनके कतिपय स्तोत्रोंकी चर्चा की ज है और स्तोत्रों सूर्यसहस्त्रनामस्तोत्रम् सूर्य वाल्मीकि रामायणीय आदित्यहृदय, साम्वकृत सूर्याष्टक सूर्यमण्डलाष्टक आदि प्रमुख हैं। इनमें आदित्यहृद श्रद्धालु जनमानसमें सर्वाधिक प्रचार है। यह स्तोत्र विजय, रोगनाश, शत्रुकष्टनिवृत्ति, नेत्ररोग एवं अन्य आधि-व्याधियोंके निवारणमें बारम्बार प्रयुक्त होता है। कृपामय शैव स्तोत्र आशुतोष और अन.
जैसे लोकोत्तर विरदसे विभूषित भगवान् शंकर वाळामात्र के पूरक हैं, फिर वह वाच्छा चाहे लौकिक हो या पारमार्थिक। इनको प्रसन्न करनेवाले स्तोत्रों में शिवमहिम्न स्तोत्र शिवताण्डव, अमोध शिवक शिवमहास्तोत्र, महाभारतीय शिवराहरनामस्तोत्र शिवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र, दारिद्रयदहन, अभिलाषाष्टक, चन्द्रशेखराष्टक, प्रदोषस्तोत्र, महामृत्युंजयस्तोत्र, कालभैरवाष्टक, बटुकभैरवशतनाम आदि तथा श्रीमद् आधशंकराचार्यकृत पंचाक्षरस्तोत्र, द्वादशज्योतिलिंगस्तोत्र आदि प्रमुख हैं। जब जीविकाका निर्वाह होनेमें कठिनाई हो, जीविका जा रही हो तो व्यक्तिको चाहिये कि वह एकमात्र शिवमहिम्नः स्तोत्रका आश्रय ग्रहण करे। उत्कट अर्थाभावकी दशामें शिवविग्रहके समक्ष दारिद्रयदहन स्तोत्रका प्रतिदिन पाठ करना चाहिये। सन्तानप्राप्तिमें विलम्ब होनेपर अथवा मृतवत्सात्ययात् शुक्रव आदिकी स्थितिमें वाराणसेय आत्मवीरेश्वर मन्दिर अथवा किसी भी शिवमन्दिरमें अभिलाषाष्टक स्तोत्रके माध्यम से भगवान् शिवकी आराधना करना सुपरीक्षित उपाय है। ऐसे ही आपत्तियोंसे चारों ओरसे घिर जानेपर बटुकभैरव शान्तिस्तोत्र अथवा सप्रयोग आपदुद्धारक बटुकभैरवस्तोत्रका आश्रय लेना चाहिये। यह स्तोत्र यदि दुर्गासप्तशतीके प्रत्येक चरित्रके आदि-अन्तमें विशेष रीतिसे जोड़कर चण्डीपाठ किया जाय तो बढ़े हो आश्चर्यजनक परिणाम देखने में आते हैं। अर्थाभाव और करके गुरु होनेके लिये प्रदोषव्रतपूर्वक प्रदोषस्तो पारायण त्वरित फलप्रद है। सभी प्रकारकी कामनाओं के सिद्ध्यर्थं शिवसहस्रनामस्तोत्रका पारायण, नाममन्त्रीकद्वारा कुम्भोदकसे शिवलिंगका अभिषेक, बिल्वपत्र, दूर्वांकुर, शमीपत्र, पुष्प, ऋतुफल, शुष्कफल (मेवा), सिन्दूर, हरिद्राचूर्ण, गन्धचूर्ण, कुंकुमाक्त अक्षत आदिके | समर्पणपूर्वक अर्चन विशेष उपयोगी साधन है।
कृपामय हनुमदादिस्तोत्र के - प्रत्यक्ष देवता हैं एवं भगवद्भक्तोंके संकटशमनार्थ सर्वदा प्रस्तुत रहते हैं। श्रीहनुमान्जीकी कृपाप्राप्ति करानेवाले विविध स्तोत्र-कवचादिका निर्देश शास्त्रज्ञ करते हैं, जिसमें एकमुखी पंचमुखी, एकद लांगूलजस्तो लांगूलोपनिषद् हनुमा हनुमन्मन्त्रमाला वाल्मीकीय रामायणोक्त सुन्दरकाण्ड आदि अत्यन्त जाग्रत् तथा त्वरित अभीष्टदायक हैं।
ग्रहोंकी अनुकूलताके लिये साधकजन विविध शास्त्रीय उपायोंका अवलम्बन करते हैं, जिनमें वैवाहिक विलम्ब, आकस्मिक दुर्घटनाओंकी आवृत्ति, ऋणग्रस्तता आदिमें अंगारकस्तोत्र विशेष फलप्रद है। शनिकी दशाजन्य बाधाके शमनार्थ दशरथकृत शनिस्तोत्र, शनिनामस्तोत्र शनिभार्यानामस्तोत्र अत्यन्त प्रभावी हैं। सभी ग्रहोंकी अनुकूलताके लिये स्कन्दपुराणीय काशीखण्डमें उपलब्ध सूर्य, सोम, भौमादि ग्रहोंके द्वारा किये गये शिवस्तवन यथेष्ट फलप्रद हैं तथा तत्तत् ग्रहोंके द्वारा काशी आदि तीर्थोंमें स्थापित-अर्चित देवविग्रहोंका दर्शन-पूजन कल्याणकारी एवं ग्रहपीडाशामक है। सूर्यादिग्रहोंकी समवेत प्रसन्नताके लिये व्यासकृत नवग्रहस्तोत्रका माहात्म्य सुप्रसिद्ध है।
कृपामूर्ति सद्ग्रन्थ – भारतीय ऋषिपरम्पराने मनुष्यमात्रके कल्याणहेतु विभिन्न ग्रन्थों एवं उपाय संग्रहों का प्रणयन किया है। इसके साथ ही उन ऋषियोंके पावनपथका अनुसरण करनेवाले भगवद्भक्त महापुरुषोंने भी लोकमांगल्यहेतु ऐसे ही सर्वतोभद्र ग्रन्थोंका प्रणयन किया। इन उपायभूत आर्ष एवं लौकिक ग्रन्थोंमें, यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी, सामवेदीय रुद्राध्याय, पवमानसूक्त, गणेशाथर्वशीर्ष, देव्यथर्वशीर्ष चषोपनिषद, श्रीमद्भगवद्गीता श्रीदुर्गासप्तशती याकल्पलता श्रीमद्भागवतमहापुराण, हरिवंशपुराण, वाल्मीकीय रामायण, रामचरितमानस, पार्वतीमंगल, हनुमानबाहुक, हनुमानचालीसा, बजरंगबाण, संकटमोचन आदि शताधिक अवदान लोकमानसकी बाका केन्द्र बने हुए हैं। यजुर्वेदीय रुद्राष्टाचाररूपप्रयोग प्रायः देखा जाता है-अभिषेकात्मक, होमात्मक, पाठात्मक तथा जपात्मक। इसके विभिन्न मन्त्र एवं सूत नानाविध अभीष्टोंकी प्राप्तिके अमोध उपाय है। स्थित त्र्यम्बकं यजामहे० मन्त्र रोगादिनिमित्तवशात् प्राणान्त उपस्थित होने पर परित्राण करनेवाला है। शास्त्रों इस मन्त्रको ही बीजसमन्वित होनेपर 'महामृत्युंजय मन्त्र' की संज्ञा दी गयी है। इसी मन्त्रका किंचित् परिवर्तित रूप भी वहीं उपलब्ध होता है, जिसका जप होमादि कन्याके वैवाहिक विलम्बकी दशामें साधक जन करते हैं। रुद्रीमें स्थित अघोरेभ्योऽथ पोरच्यो का जपहोमादि रोगनिवृत्ति, भूत-प्रेत-पिशाचादिकातिके लिये तथा आभिचारिक (मारण उच्चाटन, वशीकरण आदि) विपत्तियों परित्राण पानेके लिये किया जाता है। विभिन्न रोगोंके प्रशमनार्थ तथा उत्कट महापापके दुष्फलके शमनार्थ नाभिमात्र जलमें खड़े होकर पुरुषसूक्तका जप करना कल्याणकारी है। सामवेदीय रुद्राध्यायका गानात्मक एवं जपात्मक अनुष्ठान वेदवेत्ताओंके द्वारा समर्थित है। इसके आवो राजानम इत्यादि मन्त्र विभिन्न कामनाओंको पूर्ण करनेवाले हैं। श्रीसूक दरिद्रतानिवारण, सम्मलि कन्याके वैवाहिक विलम्बकी निवृत्तिका अपूर्व उपाय है। इसका भी पाठात्मक, जपात्मक, अभिषेकात्मक, सम्पात्मक, होमात्मक आदि रूपोंमें अनुष्ठान होता है लक्ष्मी नारायणहृदयप्रयोग भारतीय आगम-परम्पराकी एक उत्कृष्ट उपलब्धि है। लक्ष्मीहृदयस्तोत्र तथा नारादयस्तोत्रका शास्त्रीय रीतिसे समन्वय करके यह प्रयोगानुष्ठान किया जाता है। इसके अनुष्ठान अतिशीघ्र जीविकालाभ, दारिद्र्यनाश, व्यापारमें अभ्युदय एवं विधि समृद्धि] सुलभ होती है। उपर्युक्त अभीष्टोंकी सिद्धि यह सुपरीक्षित उपाय है। गणेशकृतिका सर्वमान्य उपाय है। इसका पाठ करनेसे, इसके द्वारा लाजा, दुर्वाकुर, सभी, मोदकादिये गणेशान करने गणपतिदेवका विशेष अनुग्रह एवं विघ्नविनाश सम्पनहोता है। ऐसे ही देव्यथर्वशीर्षको श्रीदेवीकी कृपाप्राप्तिका सुगम एवं अमोघ साधन बतलाया गया है। श्रीदुर्गासप्तशती तो जगदम्बाकी वाङ्मयी मूर्ति ही है। इसका आश्रय लेकरव्यक्ति स्वयं ही औरोंका आश्रय बन जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता जहाँ एक ओर भगवान दिव्यादेशों की संहिता है, वहीं दूसरी ओर मान्त्रिक उपायोंका संग्रह भी है। परलोकगत आत्माकी शान्तिके लिये इसके पाठकी परम्परा सुदीर्घ कालसे चली आ रही है। विभिन्न अभीष्टोंके साधनार्थ इसके नानाविध मन्त्र (जैसे अनिश्चय, बेचैनी, धर्मसंकटकी दशामें कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव० मन्त्रका जप, उदररोग निवृत्त्यर्थ पन्द्रहवें अध्यायका पाठ, भूत-प्रेत-पिशाचादिके उपद्रव एवं मानसिक रोगोंमें स्थाने हृषीकेश० मन्त्रका जप) प्रयोगमें लाये जाते हैं।
चाक्षुषोपनिषद् भगवान् सूर्यकी कृपाप्राप्तिका एक लघुतम, सरलतम तथा निश्चितरूपसे उत्कट प्रभावी साधन है। नेत्ररोगोंके शमनका तो यह अव्यर्थ उपाय हैं। इसका भी सांग एवं निरंग अनुष्ठान किया जाता है। सांग अनुष्ठानमें यन्त्राराधन एवं सूर्यार्घ्यदानादि कृत्य भी किये जाते हैं तथा निरंग अनुष्ठानमें केवल पाठमात्र होता है। दोनों ही रूपोंमें इसकी फलप्रदता अबाध है।
श्रीमद्भागवत महापुराण श्रीहरिका वाङ्मय स्वरूप है। इसका पाठ प्रेतत्वनिवृत्ति, भक्तिप्राप्ति, ज्ञानवैराग्यसिद्धि, मोक्षलाभ आदिके उद्देश्यसे किया जाता है। इसके अन्तर्वर्ती विभिन्न स्तोत्रों एवं मन्त्रोंका विविध रूपोंमें जप- पाठ होमादि साधकजन करते हैं। श्रीहरिकी कृपाप्राप्तिका इससे उत्कृष्ट उपाय समग्र भारतीय वाङ्मयमें कोई और नहीं है - ऐसा साधकों तथा भगवत्प्राप्त महापुरुषोंका विश्वास हैं। आदिकाव्य वाल्मीकीय रामायण भी एक उपायभूत सिद्ध ग्रन्थ है। अनुष्ठानवेत्ताओंने इसके अनेक श्लोकोंका कामनानुसारी जप, विभिन्न काण्डोंका सकाम पारायण, विशेषकर सुन्दरकाण्डका पारायण तत्क्षण वांछित परिणाम देनेवाला बताया है। विविध कामनाओंकी सिद्धि तथा विशेषकर न्यायनिवृतिपुराण -निवृत्ति-सन्तानप्राप्तिहेतु हरिवंशपुराण का पाठ श्रवणादि फलप्रद है।भट्टनारायणतिरि नामक विद्वानके द्वारा प्रणीत नारायणीयम्' काव्य भी रोगनिवृत्ति एवं भगवत्कृपासिद्धिका सुगम साधन है। यामुनाचार्यप्रणीत आलवन्दारस्तोत्र भावुक भक्तोंकी अनमोल निधि है। जिसके द्वारा वे अपने आराध्यसे अपनी वेदनाका निवेदन करके समाधान पा लेते हैं।
गोस्वामी तुलसीदासजीने जहाँ एक ओर रामकथा परम्पराको अपने प्रणयनसे समृद्ध किया, वहीं साधकजनको साधनाके अमोघ उपाय भी प्रदान किये। सन्तोंका तो यहाँतक मानना है कि उनका समग्र वाङ्मय ही मन्त्रात्मक है। इसपर भी मान्त्रिक प्रभावशालितासे सम्पन्न उनके ग्रन्थोंमें रामचरितमानस, पार्वतीमंगल, हनुमानबाहुक तथा हनुमानचालीसा विशेष चर्चित है। इन चारों ही ग्रन्थोंके नानाविध पारायण एवं अनुष्ठान साधक जन करते रहे हैं। रामचरितमानसकी तो विभिन्न चौपाइयों एवं दोहों आदिके सकाम निष्काम प्रयोगानुष्ठान भी सन्तजनोंने बताये हैं। इसके अन्तर्यत बाल, अयोध्या, सुन्दरकाण्डादि विभागों के भी स्वतन्त्र अनुष्ठान बतलाये गये हैं। इनमें सर्वाधिक प्रचलित सुन्दरकाण्डका अनुष्ठान है। इसका अनुष्ठान करनेपर ग्रहबाधा, शत्रुपीडा, मुकदमेबाजी, स्थानान्तरणकी समस्या, रोग एवं ऐसी ही विविध समस्याओंसे परित्राण प्राप्त होता है। श्रीहनुमान्जीके विग्रहमें सिन्दूरका लेपन करके उनके समक्ष सुन्दरकाण्डका चालीस दिनतक नित्यप्रति एक पाठ करनेसे विषम-से विषम समस्याएँ भी दूर हो जाती हैं पार्वतीमंगल अविवाहित युवक-युवतियोंकी वांछासिद्धिका अमोघ उपाय है। दिव्यदम्पती गौरी-शिवका श्रद्धापूर्वक पूजनकर इसका उन्हें नित्य पाठ करना चाहिये। किसी कारणवश स्वयंके अनुष्ठान न कर पानेकी दशामें अभिभावकोंको अनुष्ठानका दायित्व वहन करना चाहिये। हनुमानचालीसा विद्यार्थियोंको चरित्ररक्षा, विमलबुद्धि, विपुलमेधा, उत्तम धारणाशक्ति एवं एकाग्रता प्रदान करता है। विद्यार्थियोंको अपने नित्य कृत्योंमें इसे अनिवार्य रूपसे संयुक्त कर लेना चाहिये हनुमानचालीसाका किसी भी रूप (चौपाईका जप, विशेष अनुष्ठान आदि) में आश्रय लेनेसे अनायासही संकटोंको निवृत्ति, रोगनाश एवं अभीष्ट साफल्यकी प्राप्ति होती हैं। शारीरिक एवं मानसिक रोगोंसे परित्राण पानेके लिये हनुमानबाहककी भी अनुशंसा सन्त-महापुरुषेनि विशेषकर सन्धिवात (गठिया), फोड़ा-फुंसी, ज्वर, पक्षाघात तथा सभी वातज रोगोंमें इसका पारायण तत्काल चमत्कृत करनेवाला है। श्रीहनुमानजी की को है। आराधनाका एक अन्य मान्त्रिक स्तवन 'बजरंगबाण' अत्यन्त प्रसिद्ध है। यद्यपि कतिपय सन्तजन इसके पारायणका निषेध भी करते हैं तथा कुछने इसका पारायण उचित भी माना है। ऐसी दशामें व्यक्तिको चाहिये कि वह अपने गुरुजनोंकी आज्ञाके अनुरूप हो। इसका ग्रहण अथवा त्याग करे।
इस प्रकार यहाँ कतिपय कृपामूर्ति सद्ग्रन्थोंके प्रयोगका अतिसंक्षिप्त विवरण दिया गया। आर्योंके इन अनमोल विवरणोंका सविस्तार उपस्थापन तो स्वयं एक स्वतन्त्र एवं अतिविस्तारवाही उपक्रम होगा।
कतिपय मंगलकर मन्त्रानुष्ठान एवं उपाय विषम स्थितियोंसे परित्राणके लिये ऋषियोंने बहुत से मान्त्रिक उपाय बताये हैं, जिनमें कुछ सुगम एवं सद्यः फलप्रद उपायोंका संकेत किया जाता है। नवग्रहोंकी विषम दशाओंसे परित्राणहेतु उनके नाम मन्त्रोंका (जैसे ॐ घृणिः सूर्याय नमः, ॐ चं चन्द्रमसे नमः, ॐ मं मंगलाय नमः, ॐ बुं बुधाय नमः, ॐ बृं बृहस्पतये नमः, ॐ शुं शुक्राय नमः, ॐ शं शनये नमः, ॐ रां राहवे नमः, ॐ कें केतवे नमः) जप निर्धारित संख्या में करना सर्वाधिक सुगम उपाय है। इसके अतिरिक्त नवग्रहोंके नामात्मक स्तोत्र, सबीज वैदिक, तान्त्रिक मन्त्र, उनके निमित्त विविध औषधियोंसे मिश्रित जल-स्नान, ग्रहशान्तियाँ, ग्रहदान, औषधि मन्त्र मणि रत्नादि धारण भी फलप्रद है। दिशाओंके अधिदेवता दिक्पालोंकी आराधना एवं उनकी कृपासे मनुष्य लोकजीवनकी विविध बाधाओं से मुक्त हो जाता है। जन्मपत्रकी सूचनाके अनुरूप योगिनियों एवं निमित्त भी मन्त्रजप, दान, होमादि तत्क्षण अभीष्ट परिणाम प्रदान करते हैं। इसके अलौकिक एवं पारमार्थिकशिवपंचाक्षरमन्त्र गणपतिषडक्षरमन्त्र, विष्णु-अष्टाक्षर मन्त्र ( ॐ नमो नारायणाय ), द्वादशाक्षर मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय), श्रीदुर्गामन्त्र (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गतिनाशिन्यै महामायायै स्वाहा), नवार्णमन्त्र (ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे), चण्डिकामन्त्र ॐ नमश्चण्डिकायै) अर्गलास्तोत्रगत विविध मन्त्र, विविध हनुमन्मन्त्र आदि मन्त्रानुष्ठान अत्यन्त सुगम एवं त्वरित फलप्रद उपाय हैं।
वृक्षारोपण आदिसे कृपाप्राप्ति-शनिकी पीड़ाके शमनार्थ पितृबाधानिवृति प्रत्यर्थ एवं रोगनिवृत्तिके लिये पीपलवृक्षका रोपण, सिंचन, पूजन, दीपदान अत्यन्त कल्याणकारी है। निम्बवृक्षमें जलदान एवं उसके रोपण पूजनादिसे शीतला आदि रोगोंका शमन होता है। जगदम्बाको कृपाणिके लिये गूलरके वृक्षका रोपण, पूजन, जलदान आदि शास्त्रोक्त उपाय हैं-'उदुम्बरे वसेन्नित्यं भवानी सर्वमङ्गला ।' बिल्ववृक्षका रोपण, जलदान आदि दरिद्रताके नाश एवं लक्ष्मीनारायण तथा भगवान् शिवकी कृपाका साधन बनता है। तुलसीका वृक्ष एवं तुलसीवाटिकाका रोपण-सेचन, दीपदानादि करनेपर भगवत्कृपाप्राप्ति, कन्याको उत्तम वरकी प्राप्ति, युवकोंको मनोनुकूल सद्भार्याप्राप्ति, पितृसद्गति, रोगनिवृत्ति, प्रेतत्वनिवृत्ति, सन्तानलाभ जैसे अभीष्ट सिद्ध होते हैं। वटवृक्षका रोपण, सेचन, सूत्रदान आदि कृत्य भी शिवकृपाप्राप्ति, सन्तानलाभ, क्लीबत्वनिवृत्ति-जैसे प्रयोजनोंके साधक हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न पंचवटियों (शास्त्रों में अभिलाषापूर्तिहेतु विभिन्न पाँच पुण्यप्रद वृक्षोंका आरोपण बताया गया है), कृष्ण धत्तूर, पलाश, कदम्ब, अशोक, तमाल, बकुल आदि वृक्षोंके रोपण रक्षणादिके विविध सदुपाय शास्त्रोंमें प्रकाशित हुए हैं।
विभिन्न पुण्यतीर्थोंकी यात्रा, नदियोंके पूजन (दुग्धधारा, घृतधारा, मधुधारा आदिका समर्पण, माल्यार्पण, पट्टाम्बरार्पण आदि), नर्मदाजीकी परिक्रमा, विभिन्न देवविग्रहों पर तीर्थजलार्पण, कूपपूजन-शोधन, कुण्डपूजन आदि कृत्य भगवत्कृपाके अमोघ साधन हैं। गायको ग्रासार्पण, तृणदान, गोकण्डूयन (काठकी कंघी (खरहा)-से गायको,खुजलाना), गोपूजन, गोशाला में विधिपूर्वक सावधि अवस्थान, कुत्तोंको खिचड़ी खिलाना, विशेष तिथि पर्वोपर उन्हें मिष्टान्न देना, बन्दरोंको फल, चना, गुड़ आदि प्रदान करना, शिवाबलि (आगमोक्त रौतिसे मृगालसमुदायको यथानिर्दिष्ट सात्त्विक आहार प्रदान करना), चोटियोंके लिये आटा डालना, नारियलका बूरा एवं चीनोका मिश्रण डालना, मछलियोंको आटेकी गोलियाँ एवं अन्य मृदु खाद्य अर्पण करना, मुर्गा-मयूर, गौरैया, कबूतर आदि पक्षियोंको दाना (गेहूं, चावल, बाजरा आदि ) डालना, उनकी रक्षाके उपाय करना आदि कृत्य भी परमात्माकी तथा परमात्माके स्वरूपभूत ग्रह नक्षत्रादि देवताओंको सन्तुष्टिके मान्य साधन हैं। इन उपायोंके द्वारा साधक पर्यावरणके घटकरूपमें विद्यमान तत्तद् अधिदेवताओंको कृपाका सहज ही पात्र बन जाता है और लौकिक-अलौकिक अभ्युदयकी प्राप्तिमें समर्थ होता है। वृक्षारोपण, वाटिकारोपण, अनाथ प्रेतसंस्कार (लावारिश लाशोंके अन्तिम संस्कारको व्यवस्था), उपनयनयोग्य द्विजबालकोंके उपनयनकी व्यवस्था, अनाथ विधवाओंके भोजन-भजन एवं उनके उचित सम्मान तथा धर्मरक्षाके लिये किये जानेयोग्य प्रयत्न, कुमारीपूजन (शास्त्रोंमें देवीकृपाप्राप्ति तथा विविध कामनाओंकी पूर्तिका इसे अमोघ उपाय माना गया है। इस वैज्ञानिक कृत्यको शास्त्रनिर्देशोंके अनुरूप यदि सम्पन्न किया जाय तो चमत्कारिक परिणाम उपलब्ध होते हैं।), सुवासिनीपूजन (विवाहित महिलाओंकी देवीरूपमें पूजाका एक शास्त्रीय अनुष्ठान), कन्योवाह (कन्याके विवाहमें यथाशक्ति सहयोग: विशेषकर निर्धन कन्याओंके लिये उचित घर वरका प्रबन्ध करना), विप्रपूजा (तपोनिष्ठ ब्राह्मणों तथा अन्य भी समाजके चरित्रवान् वरिष्ठ नागरिकोंका यथायोग्य सम्मान), विविध व्रतोंका अनुष्ठान (एकादशी, प्रदोष, अशून्यशयन, वैधव्यहर, आदित्य, गणेशचतुर्थी, वारव्रत आदि), विविध दान (लवण, शर्करा, तैल, घृत, काष्ठ, गंगोदक, घट, छायापात्र, ऋतुफल, भोज्यसामग्री सिद्धान्न अथवा आमान्न दान, विद्यादान), हनुमन्मूर्तिपरघी अथवा चमेलोके तेलसे मिश्रित सिन्दूरका लेपन, भैरवजोको माषवटक (उड़द के बड़े) अर्पण, विविध | देवताओंको भाँति-भाँति के गन्ध-द्रव्यों (सिन्दूर, रक्तचन्दन, श्वेतचन्दन, गोपीचन्दन, हरिद्रा, अगुरु, बिल्वकाष्ठ, तुलसोका तुलसीमृदा आदि) का श्रद्धापूर्वक समर्पण अनुलेपन अर्पण किये गये द्रव्योंका तिलकधारण, | पितरोंके या किसी भी मृतकके निमित्त शास्त्रीय निर्देशोंके अनुसार त्रिपिण्डीश्राद्ध, नारायणबलि, गया श्राद्ध, तीर्थश्राद्ध, विष्णुतर्पण, वृषोत्सर्ग, काशी, अयोध्या, व्रज, नर्मदा आदि पुण्यतीथको परिक्रमाएँ, देवस्थानोंको परिक्रमाएँ, नानाविध दोपदान, सूर्यदेवके निमित्त सविधि अर्घ्यदान, गणपतिके लिये सिन्दूरार्पण, भगवन्नामांकित बिल्वपत्रोंका शिवजीको अर्पण, तुलसीदलार्पण, सहस्रार्चन तथा ग्राम-नगरादिये विभिन्न रोगादिके फैलनेपर चिकित्सकीय उपायोंके साथ साथ शतचण्डी, सहस्रचण्डी, अतिरुद्र जैसे योगोंके अनुष्ठान सहभागिता आदि कृत्यरूप परमेश्वरको अपार परितोष प्रदान करते हैं तथा इन उपायोंका अवलम्बन करनेवाला व्यक्ति अनायास ही अपने ऊपर आये संकटोंसे बच जाता है।
वेद, पुराण- इतिहास, तन्त्रागम, ज्योतिषशास्त्र एवं आयुर्वेद आदि मानवोपकारक ज्ञानस्त्रोतों में प्राणिमात्रके कल्याणपूर्वक भगवत्कृपाकी प्राप्तिके लिये हजारों उपायोंका कहाँ साक्षात् तो कहीं परोक्षतः वर्णन उपलब्ध होता है। इस निबन्धमें उपर्युक्त सोंसे सुलभ हुए कतिपय व्यावहारिक मान्त्रिक एवं स्तवनात्मक उपायोंकी चर्चा की गयी। भगवत्कृपाप्राप्त सिद्ध महापुरुषोंने अपने उपदेशोंमें स्थान-स्थानपर इन उपायोंकी अनुशंसा को है, अतएव ये उपाय निश्चय ही मनुष्यमात्रके लिये अपनी पात्रता, परिस्थिति आदिके अनुरूप अनुष्ठेय हैं भगवत्कृपाको अविरल शक्तिधारा सभी कालमें सभी देशोंमें अनादिकालसे हो प्रवहमान है, ये उपाय तो उस शतिधाराको मूर्तरूपमें अभिव्यक्त करने के कृपाशक्तिको अनुभवगम्य बनाने के आधार है और सत्पुरुषोंके परमाश्रय है।
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-is mantraka jap kare.
kisaanon ko chaahiye ki ve kheteekee suraksha evan achchhee phasal paaneke liye 'balabhadraay namah halaayudhaay namah' mantronka jap karen.
bhagavatee narmadaaka mangalamay 'narmadaa' yah naam sarponke aakramanase, sarpavishase mukt honeke liye japana chaahiye. 'shreedurgaa' yah naamamahaamantr vipattimen, vany jeeva-jantuonke aakramanamen, rogonmen, maranaantak peeda़aaonmen aur kisee bhee visham dashaamen japa jaanepar tatkshan paritraan evan svaasthy pradaan karata hai. bhagavaan shankarake shiv, mahaadev, shankar, gaureeshankar, aashutosh aadi naam visham dashaaonmen phanse vyaktika tatkshan samuddhaar karate hain. sooryabhagavaan ke naamonka shraddhaapoorvak ap paathaadi karanese duhsvapnonkee nivritti tatha rogonse mukti milatee hai. yaatra, kaaryaarambh vidyaarambh, saakshaatkaar (intaravyoo), gavaahee, vaada-prativaad aadi avasaronpar ganapatike kisee bhee naamaka ya naamaatmak stotraka paaraayan smaran karanepar pratyutpannamatitv (prajens ऑph maainda), nishchayasheelata (kaॉmanasensa) evan apanee baat kah paaneka saamarthy aadi phal sahaj hee upalabdh hote hain. isee prakaar kumaar kaartikey, garuda़dev naaraayamudarshanachakr kaumodakee gada, nandak khadg, paanchajany shankh aur aise hee shiv, durga aadike aayudhonka naamasmaran bhee rakshaakar hai. idhar katipay sajjanonke svaanubhav praapt hue hain ki hridayarogon (haartaataik, dilakee ghabaraahat aadi) men 'vitthala' naamaka punah punah uchchaaran aashaateet laabh deta hai. mahaamana maalaveeyajee evan bhaaeejee shreehanumaanaprasaad podaarajeeka supusht anubhav bhee avadhesh hai ki kisee bhee kaaryake aarambh men, kaheen bhee prasthaan karate samay 'naaraayana' naamaka uchchaaran karanepar dussaadhy kaary bhee siddh ho jaate hain. shodashaakshar mahaamantr hare raam hare0 ka sarvavipattinaashak prabhaav to sarvavidit hee hai. harih sharanam, shreekrishnah sharanan mam tatha shreeharih sharanan mam ye sharan mantr bhee alaukik kshamataase sampann evan tatkshan anugrahapoorvak sankatadhvansee hain. vibhinn bhagavannaam sankeertanonka mahaan chamatkaar sabhee sampradaayon, panthon,majahabonke dvaara anumodit hai. bauddhonka trisharanamantr, jainonka namokaar, sikkhonka aadimantr ityaadikee krinamayata tattat-saampradaayikonke dvaara baarambaar anubhoot rahee hai.
kripaamay vaishnavastotr – kripaamay bhagavaan shreehari stutipriy hain. yahaan unake katipay chamatkaaree stavanonke alp vivaran prastut hain
shreeraamarakshaastotr – is stotraka paath anushthaan aakasmik bhay, peeda, bhoota-pretaadikee baadha, rogavriddhi aadike samayapar kiya jaata hai. baalagrahonse shishuke aakraant ho jaanepar yah rakshaaka ek praamaanik upaay hai. rogonkee nivrittike liye aushadh sevan aadi upaayonse pahale, unake saatha-saath tatha unake nishphal ho jaanepar bhee is stotraroop upaayaka aashray lena chaahiye. isake anushthaanase maranaasann jan bhee neerog svasth hote dekhe gaye hain. yah saadhakakee laukik vyaadhiyonke saatha-saath bhavavyaadhika bhee shaman karanevaala hai. isake anushthaanakee vividh paddhatiyaan paramparaya prachalit hain, jinamen koee bhee paddhati abheesht siddh karanemen samarth hai.
amritasanjeevanastotr janmapatrikaake dvaara arishtonko soochana milanepar, asaadhy evan dussaadhy rogonse grast honepar, baalakonke vividh rogonmen, vandhyaapanako door karaneke liye vividh streerogonmen, garbhapaatako dashaaen, bachchonko najar lag jaanepar tatha pretaavesh aadikee sthitimen is stotraka aashray lena chaahiye. stotraka prayog karanese poorv saadhak ek akhand deep (ghee athava tila-naariyal tel aadikaa) sthaapit kare tatha kalash sthaapit karake usamen bhagavaan shreehariko yathaashakti aaraadhana kare. taduparaant is stotrake das hajaar, ek hajaar, paanch sau athava dhaaee sau paath kare. paathake uparaant ghee, paayas aadi havishy athava sanyaav ( lapasee) ke dvaara dashaansh hom kare. anushthaanake anantar kaaryasiddhiparyant praatahkaal tatha saayankaal stotrakee eka-ek aavritti karata rahe. taatkaalik prayogon men peeda़it vyaktika stotrake pratyek mantr kushaake dvaara gangaajal, teerthajal athava kisee bhee pavitr jalase maarjan kare.apaamaarjanastotr - vividh prakaarake pretaavesh, grahabaadha, maarana-uchchaatan aadi taantrik kriyaaonse peedit honepar evan asaadhy - dussaadhy rogonse aakraant honepar bhavishyapuraanokt vishnu-apaamaarjan stotraka aashray lena chaahiye. isake prayogaanushthaanakee sankshipt vidhi is prakaar hai-saadhak snaanaadi nityakrityonse nivritt hokar praatahkaal athava sankataapann honepar, kisee bhee samay snaan karake pooja saamagree lekar aasanapar baithe. ganga baaloo ya mitteekee do angul oonchee, ek haath lambee chauda़ee vedee banaaye. us par chaaval athava jau, moong aadi kisee dhaanyaka dher rakhe. usapar mitteeka kalash sthaapit kare. poogeephal, poornapaatraadise samanvit kalashakee pratishtha karaneke anantar sau kushaaonko baandhakar kalashapar rakh de. phir usee kalashapar bhagavaanke varaah, nrisinh, vaaman tatha vishnu in svarooponka naamamantronse oM varaahaay namah, varaahan sthaapayaami namah, poojayaami namah ityaadi shodashopachaaron ya upalabdh upachaaronse poojan kare. tatpashchaat stotragat mantronse digbandhan tatha nyaas karake un kushaaonko muttheemen lekar kalashodakake dvaara rogeeka stotr padha़te hue maarjan kare. yah maarjanakram aavashyakataanusaar ek dinase lekar gyaarah, ikkees, ikyaavan, ek sau ek dinontak chalana chaahiye.
vishnusahastranaamastotr – mahaabhaaratamen varnit yah mangalamay stotr shreevishnuke samast naamastotronmen shiromani hai. rog, shok, bhay, chinta, daaridry, grahakasht, chittashuddhi, vairaagyalaabh - jaise laukik evan paaralaukik abheeshtonkee siddhike liye saadhakonne ise sarvottam tatha poornataya niraapad saadhan maana hai. kisee bhee vaidh kaamanaako lekar koee bhee isaka anushthaan karake saaphaly pa sakata hai. gajendramokshastotr - yah shreemadbhaagavatokt stotraratn bhee alaukik chamatkaaronka saadhan banata raha hai. vishamavipatti, duhsvapn, rog evan rinagrastataakee dashaamen isastotraka aartabhaavase paaraayan karana chaahiye.
naaraayanakavach - shreemadbhaagavatokt yah rakshaaprayog sarvavidh vipattiyaanse paritraanaka amogh saadhan hai. bhootapretaadijany baadha, shatrusankat evan taantrik abhichaaronse nivritti paaneke liye isaka prayog kiya jaata hai. vibhinn asaadhy rogonka upadrav bhee isake paathase tatkshan shamit hone lagata hai. isaka prayog vividh reetiyonse kiya jaata hai. katipay saadhak ghantaa-shankhakee dhvanike saath isaka paath karate hue peeda़it vyaktiko morapankhase jhaada़kar athava kushodakase maarjan karake baadha nivaaran karate hain. isake atirikt santaanagopaalastotraadi vividh chamatkaaree vaishnav prayog bhee shaastronmen varnit hain.
kripaamay deveestotr – bhagavateekee kripaapraaptike liye vibhinn stotronka nirdesh shaastrajn aachaary karate hain. inamen devee indraakshee devee latak stotr, sankataashtakastotr, vaaraahee ashtak, deveemaahaatmyastotr (shreedurgaasaptashatee), aparaajitaaprayog, vanaduprayog, mahaavidya saubhaagyashtatarashatanaam durgashatanaam shinnaamamaala aapaduddhaarak durgaastotr, arjunakrit vijayadurgaastotr, mahaalakshmyashtak stotr, bandeemochana- stotr, deveebhaagavatokt sarasvateekavach aadi aarsh stotr evan shreeshankaraachaaryapraneet aanandalaharee, saundaryalaharee, devyaparaadhakshamaapan, bhavaanyashtak aadi stotr pradhaan evan tvarit phalaprad hain. inake nity paaraayan, paathapoorvak vajan - abhishekaadise deveekee kripa praapt hotee hai. deveesahastranaamastotr – shreebhagavateeke vibhinnasahasranaamastotr praapt hote hain, jinamen katipay stotronkaasaadhakonke madhy vishesh prachaar hai. inamen lalitaasahastranaam,aapaduddhaarak durgaasahasranaam tatha bhavaaneesahasranaam mukhyahain. ye teenon hee deveekee kripaapraaptike akshay srot hain.
deveestotronmen anyatam indraaksheestotraka saprayog anushthaan vibhinn jvar, streerogon, manorogon evan udaraamay, miragee aadi vyaadhiyonke nivaaranaarthan baarambaar hota aaya hai. aise hee brahmaandapuraanokt deveekavach bhee aadhi-vyaadhiyonkee nivritti karaneka sugam saadhan hai. katipay mantravettaajan is stotramen samaagat vibhinn shaktiyonke sabeej naamamantronka prayog naanaavidh samasyaaonke ninary bhee karate hain. sheetala rog, phoड़aa-phunsee aurakushtha-jaisee vyaadhiyonke nivaaranaarthan sheetalaashtak ek amogh upaay hai. neemake pallavonke dvaara jalase athava bina jalake bhee sheetalaastotr padha़te hue nityaprati maarjan karanese prabal sheetalaavyaadhi bhee shamit ho jaatee hai aur honevaale jalan pradaahamen to usee kshan kamee a jaatee hai. visham sankataapann honepar sankataashtak ya sankataasaharoo naamastotraka paath kiya jaata hai tatha sankataadevee (ya kisee bhee devee mandira) kee ek sau aath, keval aath ya ek parikrama kee jaatee hai. vaaraaheenigrahaashtak tatha vaaraahyanugrahaashtak stotronka paath bhee visham abhichaaronse traan paanehetu kiye jaaneka vidhaan hai.
deveemaahaatmyastotr, jisakee lokamen aur aagam granthonmen bhee durgaasaptashatee tatha chandee naamase prasiddhi hai, usakee mahima evan lokapriyataako charcha karana sooryako deepak dikhaane jaisa hai. is stotraka praayah chhah rooponmen anushthaan kiya jaata hai. pratham, keval trayodash adhyaayonka kramashah paath dviteey, kavacha-navaarnaadi angonke sahit chandeepaath triteey, kaamanaanuroop kisee charitravisheshaka paatha. chaturth, kaamanaanuroop kisee shlok (mantra) -ka jap pancham, deveemaahaatmyagat stutiyonka paath tatha shashth, saptashateeke mantronke aagamokt beejarooponka jap . in sabhee rooponke antargat bhee pratyek roopakee anekaanek pravidhiyaan (saptashatee deepadaan, hom, namaskaar, pranipaat, archan, vividh prakaarake vilom paath, samputit paath, saardhachandee paath aadi) shaastron men batalaayee gayee hain. yah stotr kisee bhee roopamen sevan kiye jaanepar bhagavateekee tatkshan kripa upalabdh karaanemen tatha saadhakakee abhilaashaaonko poorn karanemen samarth hai. durgaasaptashatee ke paath anushthaanakee mahima akathaneey hai, sankshepamen usaka parichay aur bhee kathin hai, sthaanaabhaavake kaaran yahaan sanketamaatr kiya gaya hai.
aparaajitaastotraka prayog visham paristhitiyonse paritraanahetu kiya jaata hai. mukadama shatrusankat mrityutuly aakasmik kasht (jaise shareerake jal jaanese mrityukee aashanka evan utkat daah, shareerakee ainthan aadi) men isaka paaraayan evan hom kiya jaanepar abheesht parinaam praaptahota hai. aisee hee dashaaonmen vanadurgaaprayog bhee saadhakonke dvaara anushthit hota hai. adhikaareeko pratikoolata anukool sthaanaantaran (traansaphara) ka n hona aadi samasyaaonmen isaka paath hom tvarit phalaprad hai. mahaavidyaaprayog bhee ek divy upaay hai. jab gharamen akaaran kalah hone lage, grahadasha kharaab ho, akaaran aakasmik vipattiyaan baarambaar a rahee hon to mahaavidyaastotraka paath hom kisee saadhakase samajhakar karana ya karaana chaahiye. striyonko chaahiye ki ve saubhaagyakee abhivriddhike liye saubhaagyaashtottarashatanaamaka paaraayan karen. vivaahaabhilaashee yuvaka-yuvatee evan sukhad daampatyakee kaamanaavaale dampatee gomayakee ambikaaka gandh, akshat, pushp, sindoor, dhoop deepaadise poojan karake is stotraka nity paath karake apana abheesht praapt kar sakate hain.
kripaamay ganapatistotr - vighnaharta ganapatidev alpayatnasaadhy devata hain. inake vibhinn prabhaavee stavan shaastron men praapt hote hain, jinake aavartanase saadhak sheeghr hee poornakaam ho sakata hai. ganapatike mukhy stotron men sankashtanaashan ganeshastotr, ganeshapuraanokt mahaaganapati raahaato shankaraachaaryakrit ganeshavar vishesh prasiddh hain. sankataapann honepar sankatanaashan ganeshastotraka aavartan evan stotragat ganapatinaamonse durva modakaarpan vishesh phalaprad hai. mahaaganapatisahastranaamastotrake vishayamen to svayan ganapatika hee kathan hai ki yah stotr mera svaroop hai aur mujhe mere moolamantr se bhee adhik priy hai. is stotr ke naamonse shamee, doorva, laaja, modak, ikshukhand aadika samarpan, vividh dravyonse tarpan tatha hom mahaaganapatiko kripaako sulabh karaanevaala hai. ganapatidev ko santusht karaneka mahattam saadhan vividh dravyon (haridraamishrit jal, ikshuras, aadi) se tarpan hai.
kripaamay saurastotra' aarogyan bhaaskaraadichchhet ityaadi aary kathanase yah siddh hota hai ki praanimaatrako samast aadhi-vyaadhiyonka shaman sooryake maadhyamase hota hai jahaan ek or sooryadev sthool rogon ka shaman karate hain, vaheen bhavarog jaisee mahaavyaadhiko bhee apanee kripaase nivrittakar dete hain. yahaan unake katipay stotronkee charcha kee j hai aur stotron sooryasahastranaamastotram soory vaalmeeki raamaayaneey aadityahriday, saamvakrit sooryaashtak sooryamandalaashtak aadi pramukh hain. inamen aadityahrid shraddhaalu janamaanasamen sarvaadhik prachaar hai. yah stotr vijay, roganaash, shatrukashtanivritti, netrarog evan any aadhi-vyaadhiyonke nivaaranamen baarambaar prayukt hota hai. kripaamay shaiv stotr aashutosh aur ana.
jaise lokottar viradase vibhooshit bhagavaan shankar vaalaamaatr ke poorak hain, phir vah vaachchha chaahe laukik ho ya paaramaarthika. inako prasann karanevaale stotron men shivamahimn stotr shivataandav, amodh shivak shivamahaastotr, mahaabhaarateey shivaraaharanaamastotr shivaashtottarashatanaamastotr, daaridrayadahan, abhilaashaashtak, chandrashekharaashtak, pradoshastotr, mahaamrityunjayastotr, kaalabhairavaashtak, batukabhairavashatanaam aadi tatha shreemad aadhashankaraachaaryakrit panchaaksharastotr, dvaadashajyotilingastotr aadi pramukh hain. jab jeevikaaka nirvaah honemen kathinaaee ho, jeevika ja rahee ho to vyaktiko chaahiye ki vah ekamaatr shivamahimnah stotraka aashray grahan kare. utkat arthaabhaavakee dashaamen shivavigrahake samaksh daaridrayadahan stotraka pratidin paath karana chaahiye. santaanapraaptimen vilamb honepar athava mritavatsaatyayaat shukrav aadikee sthitimen vaaraanasey aatmaveereshvar mandir athava kisee bhee shivamandiramen abhilaashaashtak stotrake maadhyam se bhagavaan shivakee aaraadhana karana supareekshit upaay hai. aise hee aapattiyonse chaaron orase ghir jaanepar batukabhairav shaantistotr athava saprayog aapaduddhaarak batukabhairavastotraka aashray lena chaahiye. yah stotr yadi durgaasaptashateeke pratyek charitrake aadi-antamen vishesh reetise joड़kar chandeepaath kiya jaay to badha़e ho aashcharyajanak parinaam dekhane men aate hain. arthaabhaav aur karake guru honeke liye pradoshavratapoorvak pradoshasto paaraayan tvarit phalaprad hai. sabhee prakaarakee kaamanaaon ke siddhyarthan shivasahasranaamastotraka paaraayan, naamamantreekadvaara kumbhodakase shivalingaka abhishek, bilvapatr, doorvaankur, shameepatr, pushp, rituphal, shushkaphal (mevaa), sindoor, haridraachoorn, gandhachoorn, kunkumaakt akshat aadike | samarpanapoorvak archan vishesh upayogee saadhan hai.
kripaamay hanumadaadistotr ke - pratyaksh devata hain evan bhagavadbhaktonke sankatashamanaarth sarvada prastut rahate hain. shreehanumaanjeekee kripaapraapti karaanevaale vividh stotra-kavachaadika nirdesh shaastrajn karate hain, jisamen ekamukhee panchamukhee, ekad laangoolajasto laangoolopanishad hanuma hanumanmantramaala vaalmeekeey raamaayanokt sundarakaand aadi atyant jaagrat tatha tvarit abheeshtadaayak hain.
grahonkee anukoolataake liye saadhakajan vividh shaastreey upaayonka avalamban karate hain, jinamen vaivaahik vilamb, aakasmik durghatanaaonkee aavritti, rinagrastata aadimen angaarakastotr vishesh phalaprad hai. shanikee dashaajany baadhaake shamanaarth dasharathakrit shanistotr, shaninaamastotr shanibhaaryaanaamastotr atyant prabhaavee hain. sabhee grahonkee anukoolataake liye skandapuraaneey kaasheekhandamen upalabdh soory, som, bhaumaadi grahonke dvaara kiye gaye shivastavan yathesht phalaprad hain tatha tattat grahonke dvaara kaashee aadi teerthonmen sthaapita-archit devavigrahonka darshana-poojan kalyaanakaaree evan grahapeedaashaamak hai. sooryaadigrahonkee samavet prasannataake liye vyaasakrit navagrahastotraka maahaatmy suprasiddh hai.
kripaamoorti sadgranth – bhaarateey rishiparamparaane manushyamaatrake kalyaanahetu vibhinn granthon evan upaay sangrahon ka pranayan kiya hai. isake saath hee un rishiyonke paavanapathaka anusaran karanevaale bhagavadbhakt mahaapurushonne bhee lokamaangalyahetu aise hee sarvatobhadr granthonka pranayan kiyaa. in upaayabhoot aarsh evan laukik granthonmen, yajurvedeey rudraashtaadhyaayee, saamavedeey rudraadhyaay, pavamaanasookt, ganeshaatharvasheersh, devyatharvasheersh chashopanishad, shreemadbhagavadgeeta shreedurgaasaptashatee yaakalpalata shreemadbhaagavatamahaapuraan, harivanshapuraan, vaalmeekeey raamaayan, raamacharitamaanas, paarvateemangal, hanumaanabaahuk, hanumaanachaaleesa, bajarangabaan, sankatamochan aadi shataadhik avadaan lokamaanasakee baaka kendr bane hue hain. yajurvedeey rudraashtaachaararoopaprayog praayah dekha jaata hai-abhishekaatmak, homaatmak, paathaatmak tatha japaatmaka. isake vibhinn mantr evan soot naanaavidh abheeshtonkee praaptike amodh upaay hai. sthit tryambakan yajaamahe0 mantr rogaadinimittavashaat praanaant upasthit hone par paritraan karanevaala hai. shaastron is mantrako hee beejasamanvit honepar 'mahaamrityunjay mantra' kee sanjna dee gayee hai. isee mantraka kinchit parivartit roop bhee vaheen upalabdh hota hai, jisaka jap homaadi kanyaake vaivaahik vilambakee dashaamen saadhak jan karate hain. rudreemen sthit aghorebhyo'th porachyo ka japahomaadi roganivritti, bhoota-preta-pishaachaadikaatike liye tatha aabhichaarik (maaran uchchaatan, vasheekaran aadi) vipattiyon paritraan paaneke liye kiya jaata hai. vibhinn rogonke prashamanaarth tatha utkat mahaapaapake dushphalake shamanaarth naabhimaatr jalamen khada़e hokar purushasooktaka jap karana kalyaanakaaree hai. saamavedeey rudraadhyaayaka gaanaatmak evan japaatmak anushthaan vedavettaaonke dvaara samarthit hai. isake aavo raajaanam ityaadi mantr vibhinn kaamanaaonko poorn karanevaale hain. shreesook daridrataanivaaran, sammali kanyaake vaivaahik vilambakee nivrittika apoorv upaay hai. isaka bhee paathaatmak, japaatmak, abhishekaatmak, sampaatmak, homaatmak aadi rooponmen anushthaan hota hai lakshmee naaraayanahridayaprayog bhaarateey aagama-paramparaakee ek utkrisht upalabdhi hai. lakshmeehridayastotr tatha naaraadayastotraka shaastreey reetise samanvay karake yah prayogaanushthaan kiya jaata hai. isake anushthaan atisheeghr jeevikaalaabh, daaridryanaash, vyaapaaramen abhyuday evan vidhi samriddhi] sulabh hotee hai. uparyukt abheeshtonkee siddhi yah supareekshit upaay hai. ganeshakritika sarvamaany upaay hai. isaka paath karanese, isake dvaara laaja, durvaakur, sabhee, modakaadiye ganeshaan karane ganapatidevaka vishesh anugrah evan vighnavinaash sampanahota hai. aise hee devyatharvasheershako shreedeveekee kripaapraaptika sugam evan amogh saadhan batalaaya gaya hai. shreedurgaasaptashatee to jagadambaakee vaanmayee moorti hee hai. isaka aashray lekaravyakti svayan hee auronka aashray ban jaata hai. shreemadbhagavadgeeta jahaan ek or bhagavaan divyaadeshon kee sanhita hai, vaheen doosaree or maantrik upaayonka sangrah bhee hai. paralokagat aatmaakee shaantike liye isake paathakee parampara sudeergh kaalase chalee a rahee hai. vibhinn abheeshtonke saadhanaarth isake naanaavidh mantr (jaise anishchay, bechainee, dharmasankatakee dashaamen kaarpanyadoshopahatasvabhaava0 mantraka jap, udararog nivrittyarth pandrahaven adhyaayaka paath, bhoota-preta-pishaachaadike upadrav evan maanasik rogonmen sthaane hrisheekesha0 mantraka japa) prayogamen laaye jaate hain.
chaakshushopanishad bhagavaan sooryakee kripaapraaptika ek laghutam, saralatam tatha nishchitaroopase utkat prabhaavee saadhan hai. netrarogonke shamanaka to yah avyarth upaay hain. isaka bhee saang evan nirang anushthaan kiya jaata hai. saang anushthaanamen yantraaraadhan evan sooryaarghyadaanaadi krity bhee kiye jaate hain tatha nirang anushthaanamen keval paathamaatr hota hai. donon hee rooponmen isakee phalapradata abaadh hai.
shreemadbhaagavat mahaapuraan shreeharika vaanmay svaroop hai. isaka paath pretatvanivritti, bhaktipraapti, jnaanavairaagyasiddhi, mokshalaabh aadike uddeshyase kiya jaata hai. isake antarvartee vibhinn stotron evan mantronka vividh rooponmen japa- paath homaadi saadhakajan karate hain. shreeharikee kripaapraaptika isase utkrisht upaay samagr bhaarateey vaanmayamen koee aur naheen hai - aisa saadhakon tatha bhagavatpraapt mahaapurushonka vishvaas hain. aadikaavy vaalmeekeey raamaayan bhee ek upaayabhoot siddh granth hai. anushthaanavettaaonne isake anek shlokonka kaamanaanusaaree jap, vibhinn kaandonka sakaam paaraayan, visheshakar sundarakaandaka paaraayan tatkshan vaanchhit parinaam denevaala bataaya hai. vividh kaamanaaonkee siddhi tatha visheshakar nyaayanivritipuraan -nivritti-santaanapraaptihetu harivanshapuraan ka paath shravanaadi phalaprad hai.bhattanaaraayanatiri naamak vidvaanake dvaara praneet naaraayaneeyam' kaavy bhee roganivritti evan bhagavatkripaasiddhika sugam saadhan hai. yaamunaachaaryapraneet aalavandaarastotr bhaavuk bhaktonkee anamol nidhi hai. jisake dvaara ve apane aaraadhyase apanee vedanaaka nivedan karake samaadhaan pa lete hain.
gosvaamee tulaseedaasajeene jahaan ek or raamakatha paramparaako apane pranayanase samriddh kiya, vaheen saadhakajanako saadhanaake amogh upaay bhee pradaan kiye. santonka to yahaantak maanana hai ki unaka samagr vaanmay hee mantraatmak hai. isapar bhee maantrik prabhaavashaalitaase sampann unake granthonmen raamacharitamaanas, paarvateemangal, hanumaanabaahuk tatha hanumaanachaaleesa vishesh charchit hai. in chaaron hee granthonke naanaavidh paaraayan evan anushthaan saadhak jan karate rahe hain. raamacharitamaanasakee to vibhinn chaupaaiyon evan dohon aadike sakaam nishkaam prayogaanushthaan bhee santajanonne bataaye hain. isake antaryat baal, ayodhya, sundarakaandaadi vibhaagon ke bhee svatantr anushthaan batalaaye gaye hain. inamen sarvaadhik prachalit sundarakaandaka anushthaan hai. isaka anushthaan karanepar grahabaadha, shatrupeeda, mukadamebaajee, sthaanaantaranakee samasya, rog evan aisee hee vividh samasyaaonse paritraan praapt hota hai. shreehanumaanjeeke vigrahamen sindooraka lepan karake unake samaksh sundarakaandaka chaalees dinatak nityaprati ek paath karanese vishama-se visham samasyaaen bhee door ho jaatee hain paarvateemangal avivaahit yuvaka-yuvatiyonkee vaanchhaasiddhika amogh upaay hai. divyadampatee gauree-shivaka shraddhaapoorvak poojanakar isaka unhen nity paath karana chaahiye. kisee kaaranavash svayanke anushthaan n kar paanekee dashaamen abhibhaavakonko anushthaanaka daayitv vahan karana chaahiye. hanumaanachaaleesa vidyaarthiyonko charitraraksha, vimalabuddhi, vipulamedha, uttam dhaaranaashakti evan ekaagrata pradaan karata hai. vidyaarthiyonko apane nity krityonmen ise anivaary roopase sanyukt kar lena chaahiye hanumaanachaaleesaaka kisee bhee roop (chaupaaeeka jap, vishesh anushthaan aadi) men aashray lenese anaayaasahee sankatonko nivritti, roganaash evan abheesht saaphalyakee praapti hotee hain. shaareerik evan maanasik rogonse paritraan paaneke liye hanumaanabaahakakee bhee anushansa santa-mahaapurusheni visheshakar sandhivaat (gathiyaa), phoड़aa-phunsee, jvar, pakshaaghaat tatha sabhee vaataj rogonmen isaka paaraayan tatkaal chamatkrit karanevaala hai. shreehanumaanajee kee ko hai. aaraadhanaaka ek any maantrik stavan 'bajarangabaana' atyant prasiddh hai. yadyapi katipay santajan isake paaraayanaka nishedh bhee karate hain tatha kuchhane isaka paaraayan uchit bhee maana hai. aisee dashaamen vyaktiko chaahiye ki vah apane gurujanonkee aajnaake anuroop ho. isaka grahan athava tyaag kare.
is prakaar yahaan katipay kripaamoorti sadgranthonke prayogaka atisankshipt vivaran diya gayaa. aaryonke in anamol vivaranonka savistaar upasthaapan to svayan ek svatantr evan ativistaaravaahee upakram hogaa.
katipay mangalakar mantraanushthaan evan upaay visham sthitiyonse paritraanake liye rishiyonne bahut se maantrik upaay bataaye hain, jinamen kuchh sugam evan sadyah phalaprad upaayonka sanket kiya jaata hai. navagrahonkee visham dashaaonse paritraanahetu unake naam mantronka (jaise oM ghrinih sooryaay namah, oM chan chandramase namah, oM man mangalaay namah, oM bun budhaay namah, oM brin brihaspataye namah, oM shun shukraay namah, oM shan shanaye namah, oM raan raahave namah, oM ken ketave namah) jap nirdhaarit sankhya men karana sarvaadhik sugam upaay hai. isake atirikt navagrahonke naamaatmak stotr, sabeej vaidik, taantrik mantr, unake nimitt vividh aushadhiyonse mishrit jala-snaan, grahashaantiyaan, grahadaan, aushadhi mantr mani ratnaadi dhaaran bhee phalaprad hai. dishaaonke adhidevata dikpaalonkee aaraadhana evan unakee kripaase manushy lokajeevanakee vividh baadhaaon se mukt ho jaata hai. janmapatrakee soochanaake anuroop yoginiyon evan nimitt bhee mantrajap, daan, homaadi tatkshan abheesht parinaam pradaan karate hain. isake alaukik evan paaramaarthikashivapanchaaksharamantr ganapatishadaksharamantr, vishnu-ashtaakshar mantr ( oM namo naaraayanaay ), dvaadashaakshar mantr (oM namo bhagavate vaasudevaaya), shreedurgaamantr (oM hreen shreen kleen durgatinaashinyai mahaamaayaayai svaahaa), navaarnamantr (ain hreen kleen chaamundaayai vichche), chandikaamantr oM namashchandikaayai) argalaastotragat vividh mantr, vividh hanumanmantr aadi mantraanushthaan atyant sugam evan tvarit phalaprad upaay hain.
vrikshaaropan aadise kripaapraapti-shanikee peeda़aake shamanaarth pitribaadhaanivriti pratyarth evan roganivrittike liye peepalavrikshaka ropan, sinchan, poojan, deepadaan atyant kalyaanakaaree hai. nimbavrikshamen jaladaan evan usake ropan poojanaadise sheetala aadi rogonka shaman hota hai. jagadambaako kripaanike liye goolarake vrikshaka ropan, poojan, jaladaan aadi shaastrokt upaay hain-'udumbare vasennityan bhavaanee sarvamangala .' bilvavrikshaka ropan, jaladaan aadi daridrataake naash evan lakshmeenaaraayan tatha bhagavaan shivakee kripaaka saadhan banata hai. tulaseeka vriksh evan tulaseevaatikaaka ropana-sechan, deepadaanaadi karanepar bhagavatkripaapraapti, kanyaako uttam varakee praapti, yuvakonko manonukool sadbhaaryaapraapti, pitrisadgati, roganivritti, pretatvanivritti, santaanalaabh jaise abheesht siddh hote hain. vatavrikshaka ropan, sechan, sootradaan aadi krity bhee shivakripaapraapti, santaanalaabh, kleebatvanivritti-jaise prayojanonke saadhak hain. isake atirikt vibhinn panchavatiyon (shaastron men abhilaashaapoortihetu vibhinn paanch punyaprad vrikshonka aaropan bataaya gaya hai), krishn dhattoor, palaash, kadamb, ashok, tamaal, bakul aadi vrikshonke ropan rakshanaadike vividh sadupaay shaastronmen prakaashit hue hain.
vibhinn punyateerthonkee yaatra, nadiyonke poojan (dugdhadhaara, ghritadhaara, madhudhaara aadika samarpan, maalyaarpan, pattaambaraarpan aadi), narmadaajeekee parikrama, vibhinn devavigrahon par teerthajalaarpan, koopapoojana-shodhan, kundapoojan aadi krity bhagavatkripaake amogh saadhan hain. gaayako graasaarpan, trinadaan, gokandooyan (kaathakee kanghee (kharahaa)-se gaayako,khujalaanaa), gopoojan, goshaala men vidhipoorvak saavadhi avasthaan, kuttonko khichada़ee khilaana, vishesh tithi parvopar unhen mishtaann dena, bandaronko phal, chana, guda़ aadi pradaan karana, shivaabali (aagamokt rautise mrigaalasamudaayako yathaanirdisht saattvik aahaar pradaan karanaa), chotiyonke liye aata daalana, naariyalaka boora evan cheenoka mishran daalana, machhaliyonko aatekee goliyaan evan any mridu khaady arpan karana, murgaa-mayoor, gauraiya, kabootar aadi pakshiyonko daana (gehoon, chaaval, baajara aadi ) daalana, unakee rakshaake upaay karana aadi krity bhee paramaatmaakee tatha paramaatmaake svaroopabhoot grah nakshatraadi devataaonko santushtike maany saadhan hain. in upaayonke dvaara saadhak paryaavaranake ghatakaroopamen vidyamaan tattad adhidevataaonko kripaaka sahaj hee paatr ban jaata hai aur laukika-alaukik abhyudayakee praaptimen samarth hota hai. vrikshaaropan, vaatikaaropan, anaath pretasanskaar (laavaarish laashonke antim sanskaarako vyavasthaa), upanayanayogy dvijabaalakonke upanayanakee vyavastha, anaath vidhavaaonke bhojana-bhajan evan unake uchit sammaan tatha dharmarakshaake liye kiye jaaneyogy prayatn, kumaareepoojan (shaastronmen deveekripaapraapti tatha vividh kaamanaaonkee poortika ise amogh upaay maana gaya hai. is vaijnaanik krityako shaastranirdeshonke anuroop yadi sampann kiya jaay to chamatkaarik parinaam upalabdh hote hain.), suvaasineepoojan (vivaahit mahilaaonkee deveeroopamen poojaaka ek shaastreey anushthaana), kanyovaah (kanyaake vivaahamen yathaashakti sahayoga: visheshakar nirdhan kanyaaonke liye uchit ghar varaka prabandh karanaa), viprapooja (taponishth braahmanon tatha any bhee samaajake charitravaan varishth naagarikonka yathaayogy sammaana), vividh vratonka anushthaan (ekaadashee, pradosh, ashoonyashayan, vaidhavyahar, aadity, ganeshachaturthee, vaaravrat aadi), vividh daan (lavan, sharkara, tail, ghrit, kaashth, gangodak, ghat, chhaayaapaatr, rituphal, bhojyasaamagree siddhaann athava aamaann daan, vidyaadaana), hanumanmoortiparaghee athava chameloke telase mishrit sindooraka lepan, bhairavajoko maashavatak (uड़d ke bada़e) arpan, vividh | devataaonko bhaanti-bhaanti ke gandha-dravyon (sindoor, raktachandan, shvetachandan, gopeechandan, haridra, aguru, bilvakaashth, tulasoka tulaseemrida aadi) ka shraddhaapoorvak samarpan anulepan arpan kiye gaye dravyonka tilakadhaaran, | pitaronke ya kisee bhee mritakake nimitt shaastreey nirdeshonke anusaar tripindeeshraaddh, naaraayanabali, gaya shraaddh, teerthashraaddh, vishnutarpan, vrishotsarg, kaashee, ayodhya, vraj, narmada aadi punyateethako parikramaaen, devasthaanonko parikramaaen, naanaavidh dopadaan, sooryadevake nimitt savidhi arghyadaan, ganapatike liye sindooraarpan, bhagavannaamaankit bilvapatronka shivajeeko arpan, tulaseedalaarpan, sahasraarchan tatha graama-nagaraadiye vibhinn rogaadike phailanepar chikitsakeey upaayonke saath saath shatachandee, sahasrachandee, atirudr jaise yogonke anushthaan sahabhaagita aadi krityaroop parameshvarako apaar paritosh pradaan karate hain tatha in upaayonka avalamban karanevaala vyakti anaayaas hee apane oopar aaye sankatonse bach jaata hai.
ved, puraana- itihaas, tantraagam, jyotishashaastr evan aayurved aadi maanavopakaarak jnaanastroton men praanimaatrake kalyaanapoorvak bhagavatkripaakee praaptike liye hajaaron upaayonka kahaan saakshaat to kaheen parokshatah varnan upalabdh hota hai. is nibandhamen uparyukt sonse sulabh hue katipay vyaavahaarik maantrik evan stavanaatmak upaayonkee charcha kee gayee. bhagavatkripaapraapt siddh mahaapurushonne apane upadeshonmen sthaana-sthaanapar in upaayonkee anushansa ko hai, ataev ye upaay nishchay hee manushyamaatrake liye apanee paatrata, paristhiti aadike anuroop anushthey hain bhagavatkripaako aviral shaktidhaara sabhee kaalamen sabhee deshonmen anaadikaalase ho pravahamaan hai, ye upaay to us shatidhaaraako moortaroopamen abhivyakt karane ke kripaashaktiko anubhavagamy banaane ke aadhaar hai aur satpurushonke paramaashray hai.