कुछ लिखें उसके पहले ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजद्वारा वर्णित 'भगवान्से प्रेम प्राप्तिका सटीक उपाय' का वर्णन करना चाहूँगा एक बार सरल हृदयसे दृढ़तापूर्वक स्वीकार कर लें कि में केवल भगवान्का ही अंश हूँ और केवल भगवान् ही मेरे अपने हैं; क्योंकि शरीर-संसार कभी किसीके साथ रहते ही नहीं और परमात्मा कभी किसीका साथ छोड़ते ही नहीं।'
आपमें से अनेकने कई बार यह महसूस किया होगा कि कोई महान् अदृश्य शक्ति हमारे शुभ कार्य एवं प्रयत्नोंमें हमारी मदद कर रही है। ऐसा इसलिये होता है; क्योंकि अच्छाई एक दूसरेसे जुड़नेके लिये तत्पर रहती है। इसी कारण हम हर क्षण एवं हर मोड़पर उस ईश्वरकी उपस्थिति महसूस करते हैं। किसी भी अच्छे कार्यका सम्पन्न होना एवं उसमें अनगिनत अप्रत्याशित, आकस्मिक सहायता इसी भावसे हमें प्राप्त होती है, जिसे हम देवत्वके रूपमें स्वीकार करते हैं।
मेरे ऊपर भगवान्की असीम कृपा रही। मुझे मेरे ताऊजीने, मैं जब एक वर्षका था तभी गोद ले लिया था; क्योंकि उनके सिर्फ एक बेटी ही थी। मैं जब ७ ८ वर्षका हुआ, तब पता लगा कि मुझे जन्म देनेवाले माता-पिता वे नहीं हैं, जिनके पास मैं रहता था। यह तथ्य स्वीकारनेमें मुझे काफी समय लगा, हालाँकि मेरी दत्तक माँ एक देवी थीं। उनकी भविष्यवाणी कभी गल नहीं हुई। मेरे चचेरे भाई, मेरी दत्तक माँको कई बार चिढ़ाया करते थे। उनके शब्द' क्या शिवराम, शिवराम करती हो, जब आखिरी साँस निकलेगी, तब शिवराम तो कहीं बॉर्डरपर (मैं सेनामें भर्ती हो गया था) होगा, आपको तो हम ही एमशान ले जायेंगे और हम ही लकड़ी (अग्नि) देंगे।' हर हिन्दूकी यह इच्छा रहती है कि मरते वक्त तो उसका बेटा उसके पास हो एवं वही उसका दाह-संस्कार करे। माँका जवाब होता था-'शिवराम हीमुझे लकड़ी (अग्नि) देगा।' ऐसा ही हुआ। मैं जम्मू कश्मीर (ऊधमपुर) में तैनात था एवं माँ बीमार हो गयी, | लेकिन २० दिनतक मुझे छुट्टी नहीं मिली। माँकी | हालतमें सुधार हो गया एवं वह अस्पतालसे घर आ गयी, परंतु सुबह-शाम एक ही रट लगा रखी थी- 'शिवराम कब आयेगा ?' मेँ २० दिन बाद सुबह १० बजेके आस पास घर पहुँचा। माँकी खुशीका अंदाज मैं शब्दोंमें बयान नहीं कर सकता। हम दोनोंने चाय पी। माँ आशीर्वाद पर आशीर्वाद दे रही थी। मैं इस व्यवहारको भाँप नहीं पाया। यह तो माँ ही होती है, जो अपने बच्चोंकी रग रगको जानती है एवं बेटा कुछ भी न बोले तो भी उसके मनकी बातको भाँप लेती है। माँने १०-१२ मिनटमें मुझको आशीर्वाद देते-देते अन्तिम साँस ली। इस प्रकार उनकी अन्तिम इच्छा प्रभुने स्वीकारी।
अब जन्म देनेवाली माँकी बात सुनिये। वह भली चंगी मेरे अनुज श्रीरामनिवासके साथ खेतड़ीमें रहती थी। मैं उन दिनों श्रीनगर अस्पतालमें था। प्रभुकी दयासे मुझे जयपुरमें Association of Physicians of India, Conference में बुलाया गया एवं मेरा पत्रवाचन १६ जनवरी २००० को हो गया। इसके बाद मैं दोस्तोंके साथ गपशप कर रहा था कि सूचना मिली माताजीको पूजा करते वक्त लकवा हो गया है एवं उन्होंने ३० मिनट बाद ही अस्पतालमें दम तोड़ दिया है। मैं २ घण्टेमें अपने गाँव नान्दरी, किशनगढ़- रेनवाल पहुँच गया एवं रामनिवासजी भी माताजीकी पार्थिव देह लेकर घर पहुँच गये। हम भाइयोंने उनका दाह संस्कार किया। अगर मैं श्रीनगरमें ही होता तो किसी भी हालतमें उनके अन्तिम दर्शन नहीं कर पाता। ये देखने-सुननेमें साधारण-सी बातें जान पड़ती हैं, परंतु ये उन महान् आत्माओंके दृढ़ विश्वास एवं ईश्वरीय कृपासे ही हुईं। ऐसा केवल मेरे साथ ही नहीं हुआ है। आपको भी ऐसे कई अनुभव जरूर हुए होंगे। भगवान् सच्ची प्रार्थना जरूर सुनते हैं। वे तो भक्तोंके इशारोंपर नृत्य करते हैं। सिर्फ सच्चा भक्तबनना है एवं उन्हें बोलना है-'आप मेरेसे करवाओ या आप करो, आपकी इच्छा पूरी हो, मैं आपका, आप मेरे। बाइबिलकी पंक्ति है Thy will be done (प्रभु! आपकी इच्छा पूरी होगी)। ऐसी भावना हमेशा मनमें रखिये। आपके ऊपर भगवत्कृपा हर दम बनी रहेगी एवं आपको हर सफलता मिलेगी।
प्रभु अजीब तरहसे मदद करते हैं
एक बहुत बड़े तथा मशहूर डॉक्टर थे, जिनका नाम मार्क था। वह एक कैंसर स्पेशलिस्ट थे। एक बार वे किसी सम्मेलनमें भाग लेनेके लिये किसी दूरके शहरमें जा रहे थे। वहाँ उनको उनके नये मेडिकल रिसर्चके महान कार्यके लिये पुरस्कृत किया जाना था। वे बड़े उत्साहित थे तथा जल्दी से जल्दी वहाँ पहुँचकर पुरस्कार पाना चाहते थे। उन्होंने इस शोधके लिये बहुत मेहनत की थी। उनके जहाजके उड़नेके कुछ समय बाद उनके प्लेनमें तकनीकी खराबी आ गयी, जिसके कारण प्लेनको आपातकालीन लैण्डिंग करनी पड़ी। दूसरी फ्लाइट कई घण्टे लेट थी। डॉ० मार्कको लगा कि वे अपने सम्मेलनमें सही समयपर नहीं पहुँच पायेंगे। इसलिये वे प्लेनसे उतरे और उन्होंने स्थानीय लोगों से सम्मेलनतकका रास्ता पता किया और एक टैक्सी किरायेपर ली। उनको टैक्सी तो मिली, लेकिन बिना ड्राइवरके इसलिये उन्होंने खुद ही टैक्सी चलानेका निर्णय लिया। जैसे ही उन्होंने यात्रा शुरू की, कुछ देर बाद बहुत तेज आंधी-तूफान शुरू हो गया। रास्ता दीखना लगभग बन्द सा हो गया, जिसकी वजहसे वे गलत रास्तेकी ओर मुड़ गये। लगभग दो घण्टे भटकनेके बाद उनको समझमें आ गया कि वे रास्ता भटक गये हैं थक तो वे गये ही थे, भूख भी उन्हें बहुत जोरसे लग गयी थी। उस सुनसान सड़कपर भोजनकी तलाशमें वे गाड़ी इधर-उधर चलाने लगे। कुछ दूरीपर उनको एक पुराना-सा मकान दिखा। उन्होंने बिलकुल मकानके नजदीक अपनी गाड़ी रोकी परेशान से होकर वे गाड़ीसे उतरे और उस छोटे-से घरका दरवाजा खटखटाया। एक स्त्रीने दरवाजा खोला। डॉ० मार्कने उसे अपनीस्थिति बतायी और एक फोन करनेकी इजाजत मांगी। उस स्त्रीने बताया कि उसके यहाँ फोन नहीं है। फिर भी उसने उनसे कहा कि आप अन्दर आइये, चाय पीजिये और थोड़ा आराम कीजिये। मौसम ठीक हो जानेपर आगे चले जाना। भूखे और थके हुए डॉक्टरने तुरंत हामी भर दी। उस औरतने उन्हें बिठाया और बड़े सम्मानके साथ चाय दो एवं कुछ खानेको दिया। साथ हो उसने कहा-'आइये, खानेसे पहले भगवान्से प्रार्थना करें और उसका धन्यवाद कर दें। मार्क उस स्त्रीकी बात सुनकर मुसकरा दिये और बोले—'मैं इन बातों पर विश्वास नहीं करता। मैं मेहनतपर विश्वास करता हूँ। आप अपनी प्रार्थना कर लें।'
चाय पीते हुए डॉक्टर मार्क उस स्त्रीको देखने लगे, जो अपने छोटे-से बच्चे के साथ प्रार्थना कर रही थी। उसने कई प्रकारकी प्रार्थना की। डॉक्टर मार्कको लगा कि हो न हो, इस स्त्रीको कुछ समस्या है। जैसे ही वह औरत अपने पूजा स्थानसे उठी तो डॉक्टरने पूछा- आपको भ क्या चाहिये ? क्या आपको लगता है कि भगवान् आपकी प्रार्थनाएँ सुनेंगे ?' उस औरतने धीमेसे उदासीभरी मुस्कराहटके साथ कहा—'ये मेरा लड़का है और इसको कैंसर है, जिसका इलाज मार्क नामके एक डॉक्टर कर सकते हैं। लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं उनके पास उनके शहर जा सकूँ; क्योंकि वे दूर शहरमें रहते हैं। यह सच है कि भगवान्ने अभीतक मेरी इस प्रार्थनाका जवाब नहीं दिया। लेकिन मुझे विश्वास है कि भगवान् एक-न-एक दिन कोई रास्ता बना ही देंगे। वे मेरा विश्वास टूटने नहीं देंगे। वे अवश्य ही मेरे बच्चेका इलाज डॉ० मार्कसे करवाकर इसे स्वस्थ कर देंगे।'
डॉक्टर मार्क यह सुनकर बिलकुल अवाक् रह गये। कुछ पलके लिये वे खामोश से हो गये। उनकी आँखोंसे आँसू गिरने लगे। वे अपने मनमें कहने लगे 'भगवान् बहुत महान् हैं।' उन्हें सारा घटनाक्रम याद आने लगा। कैसे उन्हें एक सम्मेलनमें जाना था, कैसे जहाजको इस अनजान शहरमें आपातकालीन लैण्डिंग करनी पड़ी। कैसे टैक्सीके लिये ड्राइवर नहीं मिला औरवे तूफानकी वजहसे रास्ता भटक गये और यहाँ आ गये। वे समझ गये कि यह सब इसलिये नहीं हुआ कि भगवान्को केवल इस औरतकी प्रार्थनाका उत्तर देना था, बल्कि भगवान् उन्हें भी मौका देना चाहते थे कि वे भौतिक जीवनमें धन कमाने, प्रतिष्ठा कमाने आदिसे ऊपर उठें और असहाय लोगोंकी सहायता करें। वे समझ गये कि भगवान् चाहते हैं कि मैं उन लोगोंका इलाज करूँ, जिनके पास धन तो नहीं है, लेकिन उन्हें भगवान्पर विश्वास है। उन्होंने उस स्त्रीको सच्चाई बतायी और उसके बच्चेका इलाज करके उसे बिलकुल स्वस्थ कर दिया। यह घटना हमें दो सीख देती हैएक तो ये कि हमें कभी भगवान्से भरोसा नहीं तोड़ना चाहिये और दूसरा जितना हो सके, दूसरोंकी मदद करनी चाहिये।
अगर आप ध्यानसे देखेंगे और महसूस करेंगे तो पायेंगे कि जिन्दगीमें सबके साथ ऐसी घटनाएँ होती हैं जब आप बिलकुल उम्मीद खो देते हैं और हिम्मत हारने लगते हैं, तब आपको कहींसे अचानक मदद मिल जाती है, आशाकी किरण दिख जाती है। तो बस आप धैर्यके साथ भगवान्में विश्वास रखें। भगवान् आपको हर मुश्किल, हर मुसीबतसे निकाल देंगे।
[ लेफ्टिनेन्ट जनरल डॉ० श्रीशिवरामजी मेहता ]
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aapamen se anekane kaee baar yah mahasoos kiya hoga ki koee mahaan adrishy shakti hamaare shubh kaary evan prayatnonmen hamaaree madad kar rahee hai. aisa isaliye hota hai; kyonki achchhaaee ek doosarese juda़neke liye tatpar rahatee hai. isee kaaran ham har kshan evan har moda़par us eeshvarakee upasthiti mahasoos karate hain. kisee bhee achchhe kaaryaka sampann hona evan usamen anaginat apratyaashit, aakasmik sahaayata isee bhaavase hamen praapt hotee hai, jise ham devatvake roopamen sveekaar karate hain.
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[ lephtinent janaral daॉ0 shreeshivaraamajee mehata ]