⮪ All भगवान की कृपा Experiences

भक्त केदारपर श्रीबदरीनाथकी कृपा

कोई दो सौ वर्ष पूर्वकी बात है। मध्यप्रान्तके एक छोटे-से गाँवमें केदारनाथका जन्म एक गरीब परंतु उच्च ब्राह्मण कुलमें हुआ था। केदारनाथके पिता पं० आत्मारामजी दुबे ही उस गाँवके पुरोहित थे। गाँवकी यजमानीसे ही अपनी गृहस्थीकी नौकाको जैसे-तैसे चला लेते थे। घरमें केवल केदारनाथ, उसकी वृद्धा माँ और स्वयं दुबेजी- यही तीन प्राणी थे।

आत्मारामजीको ज्योतिषकी अच्छी जानकारी थी। इसी कारणसे अपने पुत्र केदारनाथके उत्पन्न होनेपर उसकी जन्म-पत्रिकाकी रचना स्वयं दुबेजीने ही की। जन्म-पत्रिका बना लेनेपर पण्डितजी बड़े प्रसन्न थे । लड़केके ग्रह बड़े उच्च थे। कुण्डली स्पष्ट बता रही थी कि केदारनाथ परम भक्त बनेगा।

माता-पिताके दुलारसे केदारनाथ बढ़ने लगा और उसकी वृद्धिके साथ-साथ ही जन्मपत्रिकाद्वारा ज्ञात लक्षण भी स्पष्ट होने लगे। जब पण्डित आत्मारामजी अपने इष्टदेवकी पूजा करते और आरती उतारते, केदारनाथ अपने घुटनोंके बल घिसटता-घिसटता वहीं पहुँच जाता। सात-आठ वर्षकी अवस्था हो जानेपर तो केदारनाथ अपने पिताके साथ ही उठने, पूजा या नित्यकर्म करने और ठाकुरजीकी सेवामें भी हाथ बँटाने लगा। उपनयन संस्कार हो जानेपर तो केदारनाथने अपने पिताजीको ठाकुरजीकी पूजासे पूर्ण अवकाश दे दिया। अब पण्डितजी भी अपनी जीविकाके लिये प्रायः आसपासके गाँवोंमें ही अधिक वास किया करते थे। केदारनाथ अपने ठाकुरजीकी पूजा बड़े ही प्रेमसे करताऔर घंटोंतक भगवत्-ध्यानमें ही तल्लीन रहता और श्रीहरि-संकीर्तन किया करता था। उसकी निष्काम भावनासे भगवान् अवश्य संतुष्ट थे।

केदारनाथके मकानके सामने ही एक बड़ा पीपलका वृक्ष था, जिसके चारों ओर पक्का चबूतरा बना हुआ था। रात्रिके समय अपने-अपने गृह कार्योंसे निवृत्त होकर गाँवके सब लोग इसी चबूतरेपर आकर बैठ जाते और वार्तालाप किया करते। गाँवके कुछ लोग आज ही श्रीबदरीनारायणजीकी तीर्थयात्रासे वापस आये हुए थे और अपनी यात्राका वृत्तान्त सुना रहे थे। केदारनाथ भी सब बातें चुपचाप बैठा सुन रहा था। वह बड़ा ही आनन्द अनुभव करने लगा उस तीर्थयात्राके वृत्तान्त - श्रवणमें किस तरह पहाड़ी रास्तोंको पार करके मेह-आँधीकी लेशमात्र चिन्ता न करते हुए, पवित्र गंगाजल पान करते, भगवती सुरसरिके पावन तटोंके आश्रमोंका दर्शन करते हुए भक्तोंकी तीर्थयात्रा पूर्ण होती है, भक्तोंको क्या ही आनन्द होता है, जब इस प्रकारकी लम्बी और कठिन यात्रा तय करके उनको श्रीभगवान् बदरीनारायणके पावन चरणोंके दर्शन प्राप्त होते हैं। यात्राका वृत्तान्त सुनते सुनते केदारनाथ ऐसा आनन्दविभोर हो गया कि उसने भी आगामी वर्ष यात्रा करनेकी सोच ली।

आधी रात व्यतीत हो गयी। सब लोग अपने-अपने घरोंको चले गये। केदारनाथ भी आ गया और भगवत् चिन्तन करता-करता सो गया। नित्यकी भाँति केदारनाथने बहुत सबेरे ही उठ, स्नानादिसे निवृत्त होश्रीठाकुरजीका मन्दिर खोला, और खोला अपना हृदयपट एवं चिरसंचित अश्रु-स्रोत, अपने उन भगवान्‌के पावन चरणोंके सम्मुख, जिनकी कृपामात्रको वह अपनी साथ पूरी कर देनेमें समर्थ माने हुए था। प्रार्थना करते-करते केदारनाथ अधीर हो उठा। स्फुट स्वरमें कहने लगा 'हे मेरे देवाधिदेव! तुम पूर्ण अन्तर्यामी हो, तुम जानते हो कि अब मेरे जीवनकी एकमात्र साध क्या है। मैं अपने वचनोंद्वारा उसे प्रकट करके तुम्हारे अन्तर्यामीपनको घटाना नहीं चाहता - केवल प्रार्थना करता हूँ कि शीघ्र ही उस साधको पूर्ण करो।' xxx केदारनाथ भगवान्के पावन चरणोंमें पड़ा रहा। उसे कुछ आभास हुआ, मनने साक्षी दीधैर्य धरो, भगवान् सबकी लालसा पूर्ण करते हैं—तुम्हारी भी करेंगे।'

'समय जात नहिं लागत बारा-गर्मी और वर्षा ऋतु भी गयी। सर्दी भी आ गयी, परंतु इसी सर्दी में केदारनाथकी वृद्धा माँ सहसा चल बसी केदारने सोचा, उसकी माँ उससे भी पहले बदरिकाश्रम पहुँच गयी। इससे भी केदारनाथको बड़ा दुःख हुआ; परंतु उस गरीबको क्या मालूम था कि अभी भगवान् उसकी और भी कठिन परीक्षा लेनेवाले हैं। गाँवमें शीतलाका रोग फैल गया और केदारनाथ भी उससे बचा न रह सका। उसके भी माता (चेचक) निकल आयी और वह भी बड़े वेग से पण्डित आत्मारामजी और अन्य गाँववालोंको तो केदारके जीवनकी आशा ही न रही। सबको विस्मय हो रहा था कि इतनी अवस्था हो जानेपर भी इस रोगने केदारको आ घेरा (क्योंकि चेचक प्रायः बालकोंको ही निकलती है)।

दिन फिरे, केदार चंगा हो गया, परंतु उसकी दृष्टि इस रोगमें जाती रही। वह अन्धा हो गया। इससे केदारनाथको बहुत ही दुःख हुआ, क्योंकि अब उसे अपनी तीर्थयात्रा पूर्ण करनेका कोई भी साधन नहीं सूझ रहा था।

सर्दी गयी, गर्मी आयी पण्डित आत्मारामजीभी अपनी जीविकाके लिये पासके गाँवमें चले गये।घरपर था केवल केदार और उसके भगवान्! पहलेकी भाँति अब भी केदार लाठी टेकता-टेकता शामके समय गाँवके उसी चबूतरेपर जा बैठता था। हर वर्षकी भाँति इस वर्ष भी कुछ भक्तलोग श्रीबदरीनारायणजीकी तीर्थ यात्राको जानेवाले थे और अन्य लोगोंसे अपने विचार प्रकट कर रहे थे। केदारका भी मन छटपटाया और एक दीर्घ निःश्वास छोड़कर अपने विचार भी उसने उन यात्रार्थियोंके सम्मुख प्रकट किये कि यदि वे लोग उसे भी अपने साथ किसी प्रकार ले चलते। केदारनाथका शरीर बड़ा हृष्ट-पुष्ट था और उसकी चलनेकी गति तीव्र थी। कुछ लोगोंने प्रकट किया कि यदि कोई केदारकी लाठी पकड़कर ले चलनेको तैयार हो तो केदार भी उनके पैरके साथ पैर रखता हुआ जा सकता है। लोगोंने सहानुभूति प्रकट की और इस विश्वाससे कि उसकी दृष्टि भी श्रीबदरीनारायणकी कृपासे शायद फिर आ जाय। वे लोग उसे साथ ले चलनेको तैयार हो गये। केदार बड़ा ही प्रसन्न था। उसने मन-ही-मन भगवान्को कोटिशः धन्यवाद दिये और गाँववालोंके प्रति कृतज्ञता प्रकट की।

यात्राका शुभ मुहूर्त आया- श्रीबदरीनारायणका जयकार करके सब लोगोंने गाँवसे प्रस्थान किया। तेईस दिनकी पैदल यात्रा करके सब लोग हरिद्वार पहुँचे। ऋषिकेश, लक्ष्मणझूला इत्यादि स्थानोंपर गंगास्नान करते हुए केदारनाथ परम प्रसन्नचित्त अपने गाँववालोंके साथ-साथ चला जा रहा था। नन्दप्रयाग पार किया और अब रास्ता कुछ विकट आने लगा। परंतु केदार नेत्रवालोंकी भाँति उस दुर्गम पथको तय किये चला जाता था। आगे बढ़ने पर रास्ता बर्फीला आया। मेह, आँधी आने लगे। चट्टियोंपर यात्रीलोग कम्बल ओढ़े पड़े रहते और आँधीके बन्द हो जानेकी प्रतीक्षा किया करते थे। xxx बादल हो रहे थे, बर्फकी छोटी-छोटी कणिकाएँ गिर रही थीं-सर्वत्र कुहासा छा रहा था। हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था। सब यात्री एकदूसरेसे सटे हुए कम्बल ओढ़े सिकुड़े हुए बैठे थे। मौसम और भी बिगड़ा और बड़े जोरकी आँधी आयी। लोगोंकी आँखें धूलके कारण स्वयं ही बन्द हो रही थीं। केदारनाथ अपने यात्रियोंके साथ बैठा भगवान् के ध्यानमें तल्लीन था और श्रीबदरीनारायणजीके पावनकारी दर्शनोंकी आस लगाये था। वह सोच रहा था - यदि मेरे इस वक्त आँखें होतीं तो इस मौसमकी चिन्ता न करके मैं तो सीधा बदरिकाश्रम ही पहुँचता भगवान् के दर्शनोंमें कोई भी आपत्ति बाधा नहीं दे सकती। परंतु केदार पराधीन था।

xxx केदारको सहसा प्रतीत हुआ कि कोई उसकी लाठी पकड़े उसे उठनेका संकेत कर रहा है। केदारने समझा लोग चलनेको तैयार हो गये हैं और गाँववाले उसकी लाठी पकड़कर उससे चलनेको कह रहे हैं। केदार उठ बैठा और चल पड़ा - उसकी लाठी सारे रास्ते कोई-न-कोई पकड़े रहा। उसे रास्ते में थकान मालूम न हुई और न किसी अन्य प्रकारकी आपत्ति ही सहनी पड़ी। एक स्थानपर पहुँचकर केदारकी लाठी छोड़ दी गयी और केदार बैठ गया। स्थानकी शीतल, मन्द एवं सुगन्धित वायुके झकोरोंने केदारको निद्रादेवीके अंकमें शरण दी। केदार प्रगाढ़ निद्रामें सो गया।

आँधी थमी, मौसम साफ हुआ, प्रकाश हो गया। लोगोंने देखा कि केदार गायब है। चट्टीके आस-पास चारों ओर खोज की गयी, परंतु केदारका कहीं भी पता न लगा। दूरतक तलाश की गयी, पर सब व्यर्थ । अन्तमें हताश होकर यात्रियोंने अपना रास्ता लिया।

रात्रि व्यतीत हुई, भोर होनेको था। भगवान् भास्कर अपनी दिव्य रश्मियोंद्वारा संसारको आलोकित करनेवाले ही थे। सहसा केदारकी निद्रा भंग हुई और उसके कानोंमें सुमधुर शब्द सुनायी पड़े 'स्वामी बदरीनारायणकी जय'। केदारनाथ उठ बैठा, परंतु विस्मित और परम विस्मित। उसे प्रतीत हुआ वह सब चीजें देख रहा है, उसको दृष्टि मिल गयी है।सामने ही उसे दीखा एक स्वर्णकलश और खड़े होते ही उसे प्रत्यक्ष दिखायी दिया कि भगवान् बदरीनारायणका विशाल मन्दिर सामने ही शैलशिखरपर भगवान् दिवसनाथकी किरणोंसे अनुरंजित हो रहा है। सेवकगणोंकी अपार भीड़ भगवान् श्रीबदरीनारायणके तुमुल जय-जयकारोंसे समस्त वातावरणको मुखरित कर रही है। उसी क्षण केदारके पैर उठे और वह लपका उसी शैलशिखरकी ओर। कुछ ही क्षणोंमें केदारने अपने-आपको अपार सेवकोंके बीच और अपने चिराभिलषित इष्टदेवके सम्मुख पाया उसके चारों ओर भक्तगण आरती गा रहे थे। उसके भी मुखसे निकला 'स्वामी जय बदरी देवा'। वह एकटक भगवान्‌के चरणोंकी ओर आँख लगाये खड़ा रहा। उसने मन ही मन भगवान्‌को कोटिशः धन्यवाद दिये। घंटोंतक वह मन्दिरमें ही भगवत् सम्मुख पाषाणवत् खड़ा रहा। उसे पता नहीं; कब भक्तलोगोंके टोले केटोले आते और चले जाते। वह मस्त और आनन्दविभोर खड़ा था - विस्मित, उस परमपिता परमेश्वरकी अपार मायापरधीरे-धीरे दोपहर हो गयी। राजभोगके लिये मन्दिर बन्द होनेको था। पुजारी पट बन्द करने लगा सहसा केदारकी मुद्रा भंग हुई और उसने अपने इष्टदेवके सामने पाषाणवत् पड़कर साष्टांग दण्डवत् की। दण्डवत् के उपरान्त केदार खड़ा हुआ और फिर वह खिलखिलाकर हँस पड़ा, उस परमेश्वरकी अद्भुत लीलापर - उसकी दृष्टि पूर्ववत् फिर लुप्त हो गयी। परंतु इस बार केदारको तनिक भी दुःख अथवा विस्मय नहीं हुआ और वह समझ गया उसकी लीलाको और उसकी कृपाको। उसने समझ लिया यह सब कुछ उसी परमेश्वरकी माया और अनुकम्पा थी। वह भी नहीं चाहता था अब उन नेत्रोंसे इस मनुष्यत्वहीन संसारको देखना। उसने भगवान्‌के प्रसादको सहर्ष शिरोधार्य किया। मन्दिरमें उपस्थित भक्तसमुदायबड़े ही विस्मयसे इस कुतूहलको देख रहे थे। वे समझ गये कि केदार है कोई बड़ा ही भक्त । अस्तु, मन्दिरके एक सेवकने केदारको मन्दिरसे नीचे उतारकर सुविधानुकूल एक शिलापर बैठा दिया।

केदार अब और भी मस्त है। वह सदा बैठा रहता है उसी शिलापर और सुमधुर ध्वनिमें गाता रहता है 'स्वामी जय बदरी देवा'। भक्तलोग उसे खानेको उसके प्रभुका प्रसाद दे देते हैं। अब केदारको किसी भी घटनापर विस्मय नहीं होता- विस्मय होता है उन यात्रियोंको और उन पुजारियोंको; जो सर्दियोंमें भगवान् बदरीनारायणके मन्दिरको बन्द करके चले आते हैं और छोड़ आते हैं वहीं पर उस परम भक्त केदारको, और छः मास बाद देखते हैं कि वह केदार ही वहाँ सबसे पहला मनुष्य जीवदृष्टिगोचर होता है। धन्य है उस प्रभुलीलाको ।

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२०७

केदारके गाँवसे हर वर्ष दो-चार यात्री आते ही रहते हैं। वे पहचान लेते हैं अपने उस केदारको-उससे बोलते हैं - अपना और उसके पिताका कुशल- समाचार कहते हैं। केदार केवल एक ही उत्तर देता है, 'स्वामी जय बदरी देवा।' यात्री फिर लौट जाते हैं। केदारके गाँववाले भी अपने गाँव पहुँचकर पं० आत्मारामजीसे कह देते हैं- 'पण्डितजी! कुशलपूर्वक है आपका केदार।' पण्डितजी भी दो आँसू बहा देते हैं और अपने ठाकुरकी पूजामें लग जाते हैं। धन्य है उस प्रभुको और धन्य हैं उसके भक्त ।

'बोलो भक्त और उनके भगवान्‌की जय!'

[ श्रीउद्धवचन्द्रजी चतुर्वेदी ]



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bhakt kedaarapar shreebadareenaathakee kripaa

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kedaarake gaanvase har varsh do-chaar yaatree aate hee rahate hain. ve pahachaan lete hain apane us kedaarako-usase bolate hain - apana aur usake pitaaka kushala- samaachaar kahate hain. kedaar keval ek hee uttar deta hai, 'svaamee jay badaree devaa.' yaatree phir laut jaate hain. kedaarake gaanvavaale bhee apane gaanv pahunchakar pan0 aatmaaraamajeese kah dete hain- 'panditajee! kushalapoorvak hai aapaka kedaara.' panditajee bhee do aansoo baha dete hain aur apane thaakurakee poojaamen lag jaate hain. dhany hai us prabhuko aur dhany hain usake bhakt .

'bolo bhakt aur unake bhagavaan‌kee jaya!'

[ shreeuddhavachandrajee chaturvedee ]

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शयाम सुंदर मुख चंदा, भजो रे मन गोविंदा
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कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
याद में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही
सब हो गए भव से पार, लेकर नाम तेरा
नाम तेरा हरि नाम तेरा, नाम तेरा हरि नाम
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
शिव समा रहे मुझमें
और मैं शून्य हो रहा हूँ
मेरा अवगुण भरा रे शरीर,
हरी जी कैसे तारोगे, प्रभु जी कैसे
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
अपनी वाणी में अमृत घोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
मेरा यार यशुदा कुंवर हो चूका है
वो दिल हो चूका है जिगर हो चूका है
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
जग ताने देंदा ए, तै मैनु कोई फरक नहीं
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
राधे तेरे चरणों की अगर धूल जो मिल जाए
सच कहता हू मेरी तकदीर बदल जाए
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
ऐसी होली तोहे खिलाऊँ
दूध छटी को याद दिलाऊँ
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
पारवती भी मना कर ना माने त्रिपुरारी,
फूलों में सज रहे हैं, श्री वृन्दावन
और संग में सज रही है वृषभानु की
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
रंग डालो ना बीच बाजार
श्याम मैं तो मर जाऊंगी

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मेवानगर में पार्श्व प्रभु का द्वारा
ऐसा लगता जमी पे स्वर्ग उतारा है,
शिव की महिमा अपरम्पार जपे जा बम बम
जपे जा बम बम भोले रटे जा बम बम भोले,
मेरे बाबा जी सानू आपने नाल जोड़ों,
सानू चरणा नाल जोड़ियों,
भोले अन्तर्यामी है,
गौरा जिनकी दीवानी है,
रामा दल में सुलोचन आई,
मेरी अर्ज सुनो रघुराई॥