अप्रैल सन् १९३५ ई० की घटना है। यकायक मैं बुरी तरह बीमार पड़ गया। अजीब तरहकी बीमारी थी। हृदयकी धड़कन बेतरह बढ़ गयी थी, सारे शरीरमें एक अजीब-सी वेदना हो रही थी। सारा शरीर भीतर-ही भीतर थरथरा रहा था, यद्यपि बाहरसे कँपकँपीके कोई आसार नहीं थे। रीढ़ की हड्डीमें एक अजीब ऐंठन-सी मालूम दे रही थी। मस्तिष्कमें मानो उत्ताल तरंगें उठतीं और शान्त हो जाती थीं। रीढ़का ऊपरी हिस्सा इस तरह फड़क रहा था कि बारी-बारीसे वह सिकुड़ और फैल रहा था। अब गया, तब गया-ऐसे भाव आ रहे थे। मैं मन-ही-मन कूचकी तैयारी कर रहा था। रक्तकी गति भी बहुत द्रुत हो गयी थी। परंतु एक बड़ी विचित्र बात यह रही कि शरीरसे या मनसे मैं किसी खास दुर्बलताका अनुभव नहीं कर रहा था। मैंने अपनी बीमारीके बारेमेंकिसीसे कुछ कहा नहीं। उन दिनों बनारसमें बेरी-बेरी रोगका उपद्रव जोरोंपर था। ही महीने पूर्व, मेरे एक सम्मान्य शिक्षक; जिनके साथ मुझे काम करनेका भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था, इसी रोगके शिकार होकर इस असार-संसारसे चल बसे थे। मनमें इसलिये एक भय तो अवश्य बना रहा। परंतु साथ ही इसका बुरे से बुरा परिणाम जो हो सकता था, उसके लिये अपनेको मैं तैयार कर रहा था।
मेरी इस तैयारीमें 'रामनाम' का उच्चारण मेरे मुखसे स्वाभाविक तौरपर, बल्कि एक प्रकारसे अपने आप बिना किसी चेष्टाके होने लगा। रातको जब मैं विस्तरपर पड़ा था, मेरी छाती इतनी जोरसे धड़क रही थी कि उसकी धड़कनसे मुझे ऐसा मालूम होता था कि मेरी खटिया दलदला उठी है। यकायक मैं यह भावनाकरनेको चेष्टा करने लगा कि हृदयको धड़कनमें 'राम 'राम' का उच्चारण हो रहा है-हृदय 'राम-राम' रट रहा है। फिर क्या था! तत्काल मुझे कुछ आराम मिला। अनायास ही मुझे एक बहुत बड़ी चीज प्राप्त हो गयी। 1 आशाकी कोमल किरणें हृदयमें फिरसे जगमगाने लगीं। एक अपूर्व शान्ति और शीतलताका बोध होने लगा। सारे शरीरकी वेदना मानो छूमन्तर हो गयी। जूनके अन्ततक मैं बिलकुल भला-चंगा हो गया। एक बात यहाँ स्पष्टरूपमें समझ लेनेकी है। वह यह कि 'राम-राम' का उच्चारण करते समय मेरे मनमें कोई रामनामके प्रति प्रेमका भाव नहीं था मेरा ध्यान तो हृदयको धड़कनपर था।
यह बात मैंने अपने और मित्रोंको, जो हृदयरोगमे आक्रान्त थे, सुझायी। कुछ मित्र मेरे बताये हुए प्रयोगको काममें लाये और उन्हें तत्काल लाभ हुआ। उनपर इसका बहुत प्रभाव पड़ा।
मेरे मनमें कुतूहल हुआ। क्या यह प्रयोग मेरे ही रोगमें सफल हुआ या सबके लिये समानरूपमें उपयोगी सिद्ध हो सकता है? मैंने ऐसे कई उदाहरण संग्रह कर रखे हैं और उनमें से कुछ खास-खास उदाहरणोंका यहाँ उल्लेख करूँगा।
१. एक सज्जन थे। वे अब संसारमें नहीं हैं। जब भी उन्हें पर पड़ता और कंपकंपी छूटतो, वे उस कम्पनके साथ 'राम-राम' की ध्वनिको जोड़ लेते। कुछ ही देर बाद उनका ज्वर उतर जाता, कँपकँपी बन्द हो जाती। ज्वरकी हालतमें एक बार वे शान्त, स्थिर, निश्चेष्ट लेटे हुए थे। जब मैंने पूछा, आप क्या कर रहे हैं, तब उन्होंने सारी बात मुझे बतलायी।
२. एक विद्वान् सज्जन हैं। तीस वर्ष पूर्व उनके कफकी परीक्षा करनेपर डाक्टरोंने उसमें भयानक टी०बी० (राजयक्ष्मा) के कीटाणु बतलाये थे। फिर तो वे बेचारे उसके आतंकसे ही गलने लगे और लगे जहाँ तहाँकी खाक छानने सभी प्रमुख डॉक्टर वैद्य-हकीमोंको दिखलाया और एक-एककर सब प्रकारकी चिकित्साओंसेआजिज आ गये रुपया तो उन्होंने पानी की तरह बहाया ही, साथ ही उनका धैर्य और शान्ति भी क्रमशः जाती रही, परंतु बीमारीने फिर भी उनका पीछा नहीं छोड़ा। दिन-दिन हालत खराब होती जा रही है. यह देख वे एकदम निराश हो गये और लोगोंको छूत न लग जाय इस विचारसे बिना किसीसे कुछ कहे सुने, उन्होंने घरसे भाग जानेकी चेष्टा को कुछ ही दूर गये थे कि थक गये और हारकर कहीं पड़ रहे। उसी रास्ते कुछ साधु जा रहे थे और चिमटे बजा-बजाकर जोर जोरसे 'सीताराम, सीताराम' गा रहे थे। उक्त सज्जनने अपनी सारी बची-खुची शक्ति बटोरकर 'सीताराम, सीताराम' कहना शुरू किया। घरवाले उनका पता लगाकर उन्हें ले आये, परंतु फिर भी उनका 'सीताराम, सीताराम' नहीं छूटा लाख मना करनेपर भी वे 'सीताराम, सीताराम' रटते ही रहे। कुछ ही दिन बाद उनकी हालत सुधरने लगी। अब वे बिलकुल ठीक हैं। ३. एक आदमीके सिरमें भयानक पीड़ा थी। दर्दके मारे वह कराह रहा था। उसका एक मित्र उसे सलाह दे रहा था, 'इतना घबड़ा क्यों रहे हो ? सिरमें जो दर्द उठ रहा है, उसके साथ 'राम राम' की ध्वनि क्यों नहीं जोड़ लेते ?' मुझे स्मरण नहीं, उस आदमीने यह प्रयोग किया कि नहीं। मैं भी इस बातको भूल गया था। परंतु उपर्युक्त प्रयोगके बाद मुझे यह बात याद पड़ी और तबसे मैंने इस प्रयोगको कई बार किया है और मुझे तुरन्त फायदा पहुँचा है। पाठकोंसे मेरा अनुरोध है, वे एक बार इसे करके देखें। हानि तो कोई होगी नहीं।
४. मेरे मित्र प्रोफेसर बलदेव उपाध्यायने मुझे एक घटना सुनायी है। एक वृद्ध मुंशीजी हैं। बचपन से ही इन्हें शराबकी लत थी। वे बेचारे चाहते तो बहुत थे कि इससे पिण्ड छूटे, परंतु छोड़ नहीं सकते थे। लाचार थे। शराबखोरी उनका स्वभाव बन गया था। एक बार एक साधु बाबा उन्हें मिले। उन्होंने कहा, "मुंशीजी राम-राम जपा करो।' मुंशीजीको बात लगगयी। उन्होंने 'राम-राम' कहना शुरू किया। धीरे धीरे उनकी शराबके प्रति आसक्ति कम होती गयी और अब वे इससे पूर्णतः मुक्त हैं तथा उन्हें पीनेकी यादतक नहीं आती। उनकी उम्र इस समय काफी हो गयी है। उनके स्वास्थ्यमें कोई अन्तर नहीं पड़ा है।
५. कुछ वर्ष पहलेकी बात है, मुझे भी एक ऐसा ही उदाहरण मिला। एक सेठजी थे। गाँजा पीनेकी पुरानी आदतसे लाचार थे। एक बार वे एक संन्यासीके पास जाकर उनसे प्रार्थना करने लगे, 'महाराज, कोई ऐसी तदबीर बतलाइये, जिससे मैं भगवान्के मार्ग लग सकूँ।' स्वामीजीको जब यह मालूम हुआ कि सेठजी सवा रुपयेका गाँजा रोज फूँक जाते हैं, तो उन्होंने बिना बात किये ही उन्हें विदा कर दिया। दूसरे दिन सेठजी फिर आये और लगे स्वामीजीके चरणोंमें गिरकर गिड़गिड़ाने, 'महाराज, मैंने बड़ी कोशिशें कीं, परंतु यह व्यसन छूटता नहीं, क्या करूँ ?' सेठजीकी आँखोंमें आँसू भर आये थे। सेठजीकी यह अवस्था देखकर स्वामीजीने कहा, 'अच्छा, रातकी रोज सोनेके पहले दस हजार रामनाम ले लिया करो।' सेठजीने स्वामीजीकी बात मान ली और महोनेभरमें ही उनकी वह बुरी आदत एकदम छूट गयी।
६. एक और ऐसी ही घटना मुझे याद आ गयी है। एक दूसरे मुंशीजी थे। वे किसी बड़े अच्छे ओहदेपर थे। लेकिन थे पुराने पियक्कड़। स्व० श्रीश्यामाचरण लाहिड़ीसे एक बार उनकी मुलाकात हुई। लाहिड़ी महाशयने मुंशीजी से कहा, 'भाई, रामनाम कहा करो, और कोई रास्ता नहीं है।' फिर क्या था, मुंशीजीने वैसा ही किया। सदाके लिये बोतलसे छुट्टी पायी।
भगवन्नाम तो अध्यात्मक्षेत्रको सबसे बड़ी सबसे ऊँची वस्तु है। यह वह वस्तु है, जो मनुष्य में सर्वश्रेष्ठ भावोंको जगाकर उसे दिव्य चेतन बना देती है और दुःखी आर्त हृदयोंको इससे बराबर सान्त्वना मिलती आयी है।यह बात बिलकुल युक्तिसंगत है कि कोई ध्वनि, जिसे हम बार-बार सुनेंगे या उच्चारण करेंगे हमारे समग्र स्नायुजालको अवश्यमेव प्रभावित करेगी। ऊपर जिन घटनाओंका उल्लेख मैंने किया है, उनमें अधिकांश रोग स्नायुसम्बन्धी ही थे और स्नायु ऑपर बल पड़ने तथा एक प्रक्रियाविशेषके कारण ही रोगोंसे मुक्ति मिली। हम आजकल कुछ ऐसी परिस्थितिमें रह रहे हैं कि कोई भी घटना हमारे मस्तिष्कको, हमारी संवेदनशक्तिको तुरन्त प्रभावित कर देती है और उसका हमारे स्नायुओं पर गहरा असर पड़ता है। स्नायुविकृति आजकलकी एक आम शिकायत है। मेरा तो यह दृढ विश्वास है कि भगवन्नामका बार-बार उच्चारण करनेसे हम किसी भी तरहके स्नायविक विकारको दूर कर सकते हैं। यह सच है कि भगवानके नामका जितन प्रभाव हमारी अन्तश्चेतना तथा स्नायु ऑपर पड़ता है, उतना और किसी शब्दका नहीं सोनेके पूर्व धीरे-धीरे शान्तिपूर्वक भगवान्का नाम कुछ ही देर, कुछ ही क्षण लेनेपर एक अजीब तरहका जादूका असर होता है। थका हुआ मनुष्य तुरन्त निद्रादेवीकी मीठी गोदमें चला जाता है और स्नायुओंमें एक ऐसी स्वस्थताका बोध होता है कि दूसरे दिन सबेरे जागनेपर ऐसा मालूम पड़ता है, मानों मैं नवीन शक्तियोंका अक्षय भण्डार हूँ। आजके डाक्टरी विज्ञानको इसे अभी प्रमाणित करना है। परंतु हमारे पूर्वपुरुष - हमारे ऋषि इस बातको भली भाँति जानते थे। भारतवर्षके सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक नारायणावतार भगवान् धन्वन्तरिके ये वचन हम कैसे भूल सकते हैं?
अच्युतानन्तगोविन्दनामोच्चारणभेषजात् । नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥
अर्थात् 'मैं सत्य सत्य कह रहा हूँ कि अच्युत, अनन्त, गोविन्द इन नामोंके उच्चारणमात्रसे सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।'
[० श्रीबटुकनाथजी शर्मा]
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1. ek sajjan the. ve ab sansaaramen naheen hain. jab bhee unhen par pada़ta aur kanpakanpee chhootato, ve us kampanake saath 'raama-raama' kee dhvaniko joda़ lete. kuchh hee der baad unaka jvar utar jaata, kanpakanpee band ho jaatee. jvarakee haalatamen ek baar ve shaant, sthir, nishchesht lete hue the. jab mainne poochha, aap kya kar rahe hain, tab unhonne saaree baat mujhe batalaayee.
2. ek vidvaan sajjan hain. tees varsh poorv unake kaphakee pareeksha karanepar daaktaronne usamen bhayaanak tee0bee0 (raajayakshmaa) ke keetaanu batalaaye the. phir to ve bechaare usake aatankase hee galane lage aur lage jahaan tahaankee khaak chhaanane sabhee pramukh daॉktar vaidya-hakeemonko dikhalaaya aur eka-ekakar sab prakaarakee chikitsaaonseaajij a gaye rupaya to unhonne paanee kee tarah bahaaya hee, saath hee unaka dhairy aur shaanti bhee kramashah jaatee rahee, parantu beemaareene phir bhee unaka peechha naheen chhoda़aa. dina-din haalat kharaab hotee ja rahee hai. yah dekh ve ekadam niraash ho gaye aur logonko chhoot n lag jaay is vichaarase bina kiseese kuchh kahe sune, unhonne gharase bhaag jaanekee cheshta ko kuchh hee door gaye the ki thak gaye aur haarakar kaheen pada़ rahe. usee raaste kuchh saadhu ja rahe the aur chimate bajaa-bajaakar jor jorase 'seetaaraam, seetaaraama' ga rahe the. ukt sajjanane apanee saaree bachee-khuchee shakti batorakar 'seetaaraam, seetaaraama' kahana shuroo kiyaa. gharavaale unaka pata lagaakar unhen le aaye, parantu phir bhee unaka 'seetaaraam, seetaaraama' naheen chhoota laakh mana karanepar bhee ve 'seetaaraam, seetaaraama' ratate hee rahe. kuchh hee din baad unakee haalat sudharane lagee. ab ve bilakul theek hain. 3. ek aadameeke siramen bhayaanak peeda़a thee. dardake maare vah karaah raha thaa. usaka ek mitr use salaah de raha tha, 'itana ghabada़a kyon rahe ho ? siramen jo dard uth raha hai, usake saath 'raam raama' kee dhvani kyon naheen joda़ lete ?' mujhe smaran naheen, us aadameene yah prayog kiya ki naheen. main bhee is baatako bhool gaya thaa. parantu uparyukt prayogake baad mujhe yah baat yaad paड़ee aur tabase mainne is prayogako kaee baar kiya hai aur mujhe turant phaayada pahuncha hai. paathakonse mera anurodh hai, ve ek baar ise karake dekhen. haani to koee hogee naheen.
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5. kuchh varsh pahalekee baat hai, mujhe bhee ek aisa hee udaaharan milaa. ek sethajee the. gaanja peenekee puraanee aadatase laachaar the. ek baar ve ek sannyaaseeke paas jaakar unase praarthana karane lage, 'mahaaraaj, koee aisee tadabeer batalaaiye, jisase main bhagavaanke maarg lag sakoon.' svaameejeeko jab yah maaloom hua ki sethajee sava rupayeka gaanja roj phoonk jaate hain, to unhonne bina baat kiye hee unhen vida kar diyaa. doosare din sethajee phir aaye aur lage svaameejeeke charanonmen girakar gida़gida़aane, 'mahaaraaj, mainne bada़ee koshishen keen, parantu yah vyasan chhootata naheen, kya karoon ?' sethajeekee aankhonmen aansoo bhar aaye the. sethajeekee yah avastha dekhakar svaameejeene kaha, 'achchha, raatakee roj soneke pahale das hajaar raamanaam le liya karo.' sethajeene svaameejeekee baat maan lee aur mahonebharamen hee unakee vah buree aadat ekadam chhoot gayee.
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arthaat 'main saty saty kah raha hoon ki achyut, anant, govind in naamonke uchchaaranamaatrase sabhee rog nasht ho jaate hain.'
[0 shreebatukanaathajee sharmaa]