मेरे जीवनकी ऐसी तो अनेकों घटनाएँ हैं, जिनसे ईश्वरकी सत्ता और दयामें मेरा विश्वास बहुत बढ़ा, उनमेंसे कुछ सुनाता हूँ
(2)
कामाक्षादेवीकी उपासना
हमारे घरमें देवीकी उपासना अधिक थी। मैंने भी देवीका अनुष्ठान किया था। वह इसलिये कि संसार बहुत दुखी है, किसी प्रकार उसका दुःख दूर किया जा सके तो अच्छा है। मेरे मनमें यह कामना हुई कि मुझे यदि द्रौपदीकी हाँडीका-सा एक पात्र मिल जाय तो अनायास ही लोगोंका कुछ उपकार हो सकता है। इस अनुष्ठानकी पूर्तिके लिये मैं कामरूप जाकर कामाक्षादेवीकी उपासना करने लगा। कुछ दिनों पश्चात् कामरूपके निकटवर्ती एक महन्त ब्रह्मचारीकी सेवा करनेका अवसर प्राप्त हुआ। दैवयोगसे ब्रह्मचारीजीका शिष्य बाहर गया हुआ था। अतः उनकी मृत्यु हो जानेपर लोगोंने मुझे उस स्थानका महन्त बना दिया। महन्त होनेकी अवस्थामें भी मेरा अनुष्ठान बराबर चलता रहा। उस समय वहाँ बहुत लोग आने लगे और नित्यप्रति तीन सौ चार सौ रुपये भेंटमें आ जाते थे। मैं उन रुपयोंको स्पर्श भी नहीं करता था। दूसरे ही लोग उन्हें साधुओंके भण्डारे आदिमें खर्च करते रहते थे। उन दिनों कुछ ऐसा चमत्कार हो गया था कि मैं जिस व्यक्तिके लिये जो बात कहता, वही सत्य निकलती। मैं किसीका कोई गुप्त दोष बताता तो वह स्वयं स्वीकार कर लेता कि हाँ, मुझमें यह दोष है। यह दशा अठारह दिनतक रही। फिर मैंने सोचा इस तरह रहना ठीक नहीं। यदि लाख रुपये भी मिल गये तो अधिक-से-अधिक एक गाँवका ही कष्ट दूर हो सकेगा। फिर यह बात भी ध्यानमें आयी कि द्रौपदीकी तरह मुझे एक पात्र भी मिल गया तो भी क्या होगा ? संसार तो ऐसा ही रहेगा। अतः मैं एक दिन चुपचाप शौचके बहाने वहाँसे चल दिया? वहाँसे आठ कोसचलकर ही मैंने दम लिया। इस प्रकार आरम्भिक जीवनमें मुझे दुर्गाकी उपासनासे अनेकों चमत्कार हुए। फिर मुझे श्रीकृष्णप्रेम भी होने लगा और कुछ काल पश्चात् मैंने संन्यास ले लिया
(२)
श्रीराधामाधव-युगलके दर्शन एक रातकी बात है। सूर्य अस्त हो गया था, चन्द्रमाकी चाँदनी छिटक रही थी। जंगलमें नहरके किनारे एक सुन्दर बालक और बालिका मेरे पास आकर कहने लगे, 'बाबा! कहो तो हम रोटी ले आवें ?' मैंने कहा, 'इतनी रातमें तुम कहाँसे रोटी लाओगे ?' उन्होंने कहा, 'हमारा गाँव पास ही है।' वे घूम-घामकर थोड़ी ही देरमें रोटी ले आये। मैंने रोटी खायी और वहीं सो रहा। प्रातःकाल बहुत सबेरे मेरे उठनेके पूर्व ही वे फिर आ गये और मुझसे बोले, 'बाबा! मट्ठा पीओगे ?' मैंने कहा, 'तुम इतने सबेरे फिर कहाँ से आ गये और इस समय मट्ठा कहाँ से लाओगे ?' उन्होंने कहा, 'हमारा गाँव निकट ही तो है।' वे इधर-उधर घूमकर तत्काल ही मट्ठा ले आये और मैंने उसे पी लिया। उनके चले जानेपर मैंने खोज की तो मालूम हुआ कि वहाँ दूर दूरतक कहीं गाँवका नाम-निशान भी नहीं है, जंगल ही जंगल है।
(३)
गोपाल बालकृष्णके दर्शन
मेरे एक मित्र ब्रह्मचारी, जो भगवान् श्रीकृष्णके उपासक थे। वे किष्किन्धामें किसी महात्मा सिद्ध पुरुषको जानते थे और उनसे शिक्षा लेनेके लिये जा रहे थे। मार्गमें उन्हें बड़ी प्यास लगी। उनका कंठ सूखा जाता था। लोटा-डोर उनके पास थे। किंतु वे कुएँपर गये तो मालूम हुआ वह बहुत गहरा है, उनकी डोरी उसमें ओछी पड़ती है। वे निराश होकर वहीं बैठ गये, अत्यधिक प्यासके कारण उनके प्राणअत्यन्त छटपटाने लगे, ऐसा मालूम होता था, मानो दस-पाँच मिनटमें प्राण निकल जायँगे। उस समय वे 'हा कृष्ण हा कृष्ण!" पुकारने लगे। इतने ही में एक बालक एकाएक उनके पास आया और बोला, 'मुझे अपना लोटा-डोर दे दो। मैं जल ले आता हूँ।' बस, ब्रह्मचारीजीका लोटा डोर लेकर वह बालक उसी कुएँसे जल खींच लाया और उन्हें पिला दिया।' फिर उस बालकने कहा, 'तुम जिस साधुके पास जा रहे हो, वह तो महापाखण्डी है।' ब्रह्मचारीजीने पूछा, 'तुम तो छोटे-से बालक हो, तुम्हें उस साधुके पाखण्डका क्या पता? और तुम कहाँ रहते हो ?' उसने उत्तर दिया, मैं यहाँ जंगलमें गौ चराया करता हूँ और उस साधुको खूब जानता हूँ। इसके बाद जब ब्रह्मचारीजी सावधान हुए तो उन्होंने उस बालकको वहाँ नहीं देखा और जब कुएँपर जाकर लोटा फाँसा तो उसका जल भी पहले ही के समान बहुत गहरा निकला।
(४)
भगवान्ने उसकी करुण पुकार सुनी
अतरौली तहसील में एक गृहस्थ कायस्थ रहते थे। उनके घरमें स्त्री, पुरुष तथा एक लड़की ये तीन - प्राणी थे। पुरुष पटवारीका काम करता था, किसी मामलेमें उसे सात सालकी सजा हो गयी। घरमें केवल उसकी स्त्री और कन्या ही रह गयी। लड़की विवाह के योग्य हुई, किंतु घरमें कुछ था नहीं, अतः उसके मामाने विवाहका सारा भार अपने ऊपर ले लिया। विवाह पक्का हो गया। किंतु जब विवाहके तीन-चार दिन रह गये, तब किसी कारणसे मामाने साफ इनकार कर दिया। बारात आनेवाली है, विवाहका दिन है, किंतु घरपर कुछ भी तैयारी नहीं है। बेचारी स्त्री अत्यन्त दुखी होकर घरकी एक कोठरीमें जा पड़ी। पड़ोसी कायस्थोंने सोचा कि यदि बारात बिना सत्कार पाये वापस लौट गयी तो हम सबकी बड़ी बदनामी होगी। यह विचारकर उन लोगोंने आपसमेंकुछ प्रबन्ध करके भट्ठी खुदवाना आरम्भ किया। सब लोग बैठे थे, भट्ठी खुद रही थी, इतनेंमें भट्ठीको खुदाईमें ही एक घड़ा निकला। लोगोंका ध्यान दूसरी ओर था, अतः भट्टी खोदनेवाले दोनों आदमियोंने मिलकर उसे उड़ाना चाहा। उनमेंसे एक आदमी उसे कपड़े में लपेटकर किसी बहानेसे बाहर जाने लगा। भट्टी खुदनेकी जल्दी थी, अतः लोगोंने कहा, 'भाई, काम छोड़कर कहाँ जाते हो ?' वह कुछ बहाना बताकर आगे बढ़ा। लोगोंको ऐसे समय उसका जाना बहुत बुरा लगा। अतः एकने उठकर उसे रोका तो देखा उसके पास कपड़ेमें लिपटा हुआ एक घड़ा है। उसे निकलवाकर सबने देखा तो उसमें पाँच-सात सौ रुपये निकले। देखते ही सब लोग बोल उठे, 'भाई! यह तो इस लड़कीके भाग्यसे निकला है, तुम इसे कहाँ लिये जाते हो?' बस, सबने जाकर लड़कीकी माँको सूचना दी और उस रुपयेसे ही लड़कीका विवाह सम्पन्न हुआ। इस प्रकार भगवान्ने उसकी करुण पुकार सुनी।
(4)
श्रीराम, सीता और लक्ष्मणके दर्शन अलीगढ़में एक कायस्थ घरानेके दो लड़के थे। उनमेंसे एक को संग्रहणी हो गयी अनेक वैद्य डॉक्टरोंसे इलाज कराया गया। उसमें घरका सारा जेवर समाप्त हो गया, परंतु लाभ कुछ न हुआ। दैवयोगसे वहाँ कोई महात्मा आये। उन्होंने उसकी दशा देखकर कहा, 'तुम लोगोंको तो अब इसके जीवनकी कोई आशा है नहीं। अतः अब मैं एक उपाय बताता हूँ। उसे करके और देख लो। मैं एक महामन्त्र बताता हूँ। तुम श्रीरामचन्द्रजीका इष्ट रखकर उसका अखण्ड जप करो, उससे अवश्य लाभ हो सकता है।' महात्माजीके आज्ञानुसार उसी समय जप आरम्भ हो गया। और फिर एक मासमें जप पूरा होते-होते बिना किसी औषधिके उस लड़केका रोग सर्वथा शान्त हो गया। फिर तो उसकी ऐसी स्थितिहो गयी कि उसे हर समय श्रीराम, सीता और लक्ष्मण अपने साथ ही जान पड़ते थे चलते-फिरते, नहाते-धोते, शौच जाते सब समय यही हाल था। एक दिन शौच जाते हुए उसने देखा कि वही मूर्ति सामने खड़ी है। वह बोला, 'महाराज! शौचके समय तो मत आया करो।' बस उसी दिनसे फिर उनके दर्शन नहीं हुए।
(६)
श्रीबाँकेबिहारीजीके दर्शन और भक्तवत्सलता खैर तहसील में यमुनाकिनारे किसी गाँव में रहनेवाला
एक जाट मेरे पास आया करता था। वह प्रत्येक पूर्णिमाको वृन्दावन जाकर श्रीबाँकेबिहारीजीके दर्शन किया करता था। उसका यह नियम तीस-चालीस वर्षसे चल रहा था। एक बार पूर्णिमाके एक दिन पहले चतुर्दशीको उसके जवान लड़केकी मृत्यु हो गयी। एक ही लड़का था, सारे गाँवमें हाहाकार मच गया। वह लड़केकी लाश लेकर अनेक ग्रामवासियोंके साथ यमुना किनारे गया और वहाँ उसका दाह संस्कार किया। इस कार्यसे छुट्टी मिलनेपर जब सब लोग लौटने लगे तो वह बोला, 'भाई, जो होना था सो हो गया, आप लोग घर जायँ। मेरे तो कल पूर्णिमा है, मुझे कल वृन्दावनमें श्रीबाँकेबिहारीजीकी हाजिरी देनी है। सो मैं तो वहाँ जा रहा हूँ।' उसकी यह बात सुनकर सब लोग कहने लगे, 'कैसा पागल है, जवान लड़का मरा है, लोग इसके घर आयेंगे और यह कहता है, मुझे वृन्दावन जाना है।' ऐसा कहकर लोगोंने उसे बहुत समझाया, किंतु वह अपना सदाका नियम छोड़नेको तैयार न हुआ। बस, वह वहींसे वृन्दावन चल दिया। इस समय प्रकृतिने भी उसकी परीक्षा करनेकी ठानी। बड़े जोरसे हवा चलने लगी और पानी भी बरसने लगा। सब लोग तो गाँव लौट गये। वह यमुना पार करनेके लिये घाटपर आया। किंतु मल्लाहने ऐसे तूफानके समय नाव ले जानेसे साफ इनकार कर दिया। जाटको पुत्र शोक तोथा ही, अब सदाकी भाँति कल पूर्णिमाको प्रातः काल श्रीबाँकेबिहारीजीके दर्शन नहीं हो सकेंगे-इससे और भी हृदय घबरा उठा। वह अत्यन्त शोकाकुल हो उस मल्लाहकी कुटीमें ही पड़ा रहा। जाट प्रतिमास चतुर्दशीको ही वृन्दावन पहुँच जाता था। अतः इस ओर बाँकेबिहारीजीके गोसाईंजीने भी रातके बारह बजेतक उसकी प्रतीक्षा की।
जाटने देखा कि वह वृन्दावन पहुँच गया है। सदाकी तरह वह रात्रिमें ही मन्दिरमें पहुँचा है और पुजारीजीने उसे प्रसाद दिया है और वह प्रसाद पाकर सो गया है। दूसरे दिन जब उसकी आँखें खुलीं तो उसने अपनेको वृन्दावनकी उसी कुटीमें पाया, जिसमें वह प्रत्येक पूर्णिमाको जाकर ठहरता था। इससे उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वह सोचने लगा कि मैं तो उस पार मल्लाहकी झोंपड़ीमें सोया था, यहाँ कैसे आ गया ! फिर उसे रातको पुजारीजीसे प्रसाद पानेकी याद आयी। उसने उनके पास जाकर इस विषय में पूछा, तो वे बोले, 'भाई, मैंने तो तुम्हें प्रसाद नहीं दिया। मालूम होता है यह सब इन बाँकेबिहारीजीकी ही लीला है।' उसने कुटियामें जाकर देखा तो वहाँ प्रसादके कण और जल आदि भी पड़े थे। प्रभुकी ऐसी भक्तवत्सलता देखकर वह विह्वल हो गया और बोला, 'हाय ! लालाने बड़ा धोखा दिया।' अब वह जाट मर गया है।
(61)
कृष्णनिन्दकपर भगवान् कृष्णकी प्रत्यक्ष कृपा
मैं एक बार हरिद्वारके कुम्भसे लौट रहा था। रास्तेमें जिला मुजफ्फरनगरके एक गाँवमें ठहरा। वहाँ एक ब्राह्मणने मुझे भिक्षा करायी। कुछ दिन मैं वहीं ठहरा रहा। आस-पाससे अनेकों लोग आते रहते थे। उनमें एक ठाकुर साहब भी थे। उनकी अवस्था ७० ७५ वर्षकी होगी। चेहरेपर खूब तेज था और शरीर भी हृष्ट-पुष्ट था। । वे प्रायः दिनभर माला लिये जप करते रहते थे। यों वे अपनेको आर्यसमाजी बताते थे। मैंने एकदिन उनसे पूछा, 'आप तो आर्यसमाजी है, फिर मालासे अप कैसे करते हैं?' तब उन्होंने अपने जीवनकी इस प्रकार सुनायी
'मेरी अवस्था जिस समय आठ-दस वर्षकी थी, तभी मुझे स्वामी दयानन्दजीके दर्शनोंका सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उनके ब्रह्मचर्य और सत्यको देखकर उनपर मेरी अपार श्रद्धा हुई और मैंने भी अपने जीवनमें आमरण इन दोनों व्रतोंका पालन करनेका निश्चय कर लिया। बस, मैं पूर्णतया उनका अनुयायी हो गया और श्रीकृष्णके विषयमें तो मेरी ऐसी धारणा हो गयी कि भारतवर्षके अध: पतनका प्रधान कारण ये ही हैं। छल, कपट, व्यभिचार आदि दुनिया भरके सारे दोष उनमें थे। यदि कृष्ण न होते तो आज भारतमें ये दोष इस रूपमें न फैलते ऐसी भावनाके कारण श्रीकृष्णका तो मैं पक्का विरोधी बन गया। हाँ, मेरे सत्य और ब्रह्मचर्यके नियम ठीक-ठीक चलते रहे।'
'प्रायः बीस-बाईस वर्षकी आयुमें मैं काशी चला गया। इस बीचमें मैं कुछ पढ़-लिख भी गया था और पहलवानी करने लगा था। काशीमें एक ठाकुर साहबको लड़ाई-झगड़े के समय ऐसे पहलवानकी आवश्यकता थी। उन्होंने मुझे अपने यहाँ रख लिया। मेरे जिम्मे कोई काम तो था नहीं। मैं खूब कसरत करता, बादाम-घी आदि तरह-तरहके माल खाता, पहलवानी करता और जब ठाकुर साहब कहीं बाहर जाते तो लाठी लेकर उनके साथ हो लेता। मैं नित्यप्रति तीन-चार बजे उठता था। शौच स्नानसे निवृत्त होकर दो-तीन घण्टे खूब संध्योपासन और गायत्रीजप करता था तथा दिनमें दो-तीन बार स्नान करके मध्याह्न और सायंकालमें भी संध्योपासन किया करता था। इस प्रकार मेरा जीवन खूब आचार-विचार और कर्मकाण्डमें बीत रहा था। रात्रिके समय मैं नित्यप्रति आर्यसमाजमें जाकर व्याख्यान भी दिया करता था उसमें मुख्यतया मेरा विषय राम और कृष्णकी निन्दा करना तथा उन्हें भरपेट गालियाँ देना ही रहता था।' 'जिन ठाकुर साहबके यहाँ मैं रहता था, उनकेएक श्रीकृष्णभगवान्का मन्दिर भी था। उसके पुजारी श्रीकृष्णके बड़े भक्त थे। ठाकुर साहबके परमें भी ठाकुर सेवा होती थी। घर के छोटे-बड़े सभी स्त्री-पुरुष बड़े प्रेमसे भगवान्की पूजा करते थे। मैं यद्यपि श्रीकृष्णका कट्टर विरोधी था, तो भी मेरे सत्य और ब्रह्मचर्यसे प्रभावित होकर ठाकुर साहब और पुजारी दोनों ही मुझसे बहुत स्नेह करते थे। कभी-कभी पुजारीजी मुझसे कहते 'ठाकुर साहब, यदि तुम श्रीकृष्णजीकी उपासना करो तो तुम्हारे जैसे सच्चे और सदाचारी व्यक्तिको तो बहुत जल्द भगवान् के दर्शन हो जायें। पुजारीजी तो मुझपर बड़ा अनुग्रह करके ऐसी बात कहते थे, किंतु मैं बदले में उन्हें और उनके भगवान्को भरपेट खरी-खरी सुना देता था। पुजारीजी तब भी इसी प्रकार कहते रहे और मैं भी वैसा ही उत्तर देता रहा। एक दिन जब पुजारीजीने फिर यहीं बात कही तो मुझे बहुत क्रोध आ गया और मैंने ऐसी ऐसी कड़वी बातें भगवान्के विरुद्ध कहीं कि पुजारीजी व्यथित होकर रोने लगे।
"उस दिन पुजारीजीको बहुत ही कष्ट हुआ। मैं उस दिन रात्रिको दस बजे दूध पीकर सदाकी भाँति भूमिपर सो गया। पास ही तख्तपर पुजारीजी सो रहे थे। रात्रिको मेरी आँख खुली तो क्या देखता हूँ कि खूब उजाला हो रहा है, महान् सूर्यका-सा प्रकाश है। मैं एकदम घबड़ाकर उठ बैठा। मैं प्रातः साढ़े तीन बजेका जागनेवाला, आज इतनी देर हो गयी, इससे मुझे बड़ा कष्ट हुआ। मैंने उठकर देखा कि पुजारीजीके तख्तके पास दस-बारह वर्षका एक सुन्दर बालक खड़ा है और मुझे देख-देखकर हँस रहा है। उस बालकको इस तरह मुसकराते देखकर मुझे बड़ा गुस्सा आया और मैंने उससे फटकारकर कहा, 'मेरी धोती लोटा कहाँ है, जल्दी सा हँसता क्यों है ? वह यह सुनकर और भी हँसने लगा। मुझे बड़ा बुरा लगा और मैं उसे मारनेको दौड़ा। बालक तख्तके चारों ओर भागने लगा। मैं उसके पीछे दौड़ रहा था, किंतु वह मेरे हाथ नहीं आया। वह ज्यों-ज्यों हँसता था, त्यों-ही-त्यों मेरा क्रोध और भी चढ़ता जाता था। क्रोधमें भरकर मेंउसे बार-बार फटकारता और चिल्लाता था। मेरा चिल्लाना सुनकर पुजारीजी भी जग गये तथा आस पासके और भी कई स्त्री-पुरुष एकत्रित हो गये। वे सबके सब अत्यन्त आश्चर्यचकित होकर मुझसे बार-बार पूछने 'लगे, 'ठाकुर साहब, क्या बात है ? आज आपको क्या हो गया है ?' मैं उस बालकके हँसनेकी शैतानी बताकर कहने लगा, 'देखो, इस बालकको समझा दो, नहीं तो इसके हकमें अच्छा नहीं होगा।' वे बेचारे कुछ भी न समझ सके। जब इस झंझटमें बहुत देर हो गयी तो मैंने देखा कि वह लड़का झटसे पुजारीजीकी गोदमें जा बैठा और तत्काल अदृश्य हो गया। मैं भी हैरान रह गया। इसीके साथ मुझे जो बड़ा भारी प्रकाश दीख रहा था, वह भी जाता रहा। बस, चारों ओर रात्रिका अन्धकार छा गया। फिर लोगोंसे और पुजारीसे बात हुई तो वे कहने लगे, 'ठाकुर साहब! यहाँ तो कोई लड़का नहीं है, हम सब बड़े आश्चर्यमें हैं कि आज रात्रिके समय आपको क्या हो गया है!' मैंने अपनेको कुछ सावधान करके घड़ी दिखवायी तो रातका एक बज रहा था। मैंने सारी घटना लोगोंको सुनायी तो सब कहने लगे, 'ठाकुर साहब, आप जिनकी बहुत निन्दा करते थे, यह चमत्कार उन्हींका तो नहीं है?' मैंने कहा, 'कुछ भी हो, ऐसी बातोंसे मैं कृष्णको भगवान् नहीं मान सकता। हाँ, आजसे मैं उन्हें और पुजारीजीको गालियाँ न दूँगा।' उस दिनसे मैंने गालियाँ देना बन्द कर दिया और प्रायः पुजारीजीके पास मन्दिरमें आने-जाने लगा।
एक दिन मन्दिरमें जानेपर मैंने देखा कि जिन ठाकुर साहबके यहाँ मैं रहता था, उनका एक बारह तेरह वर्षका लड़का जो तीन-चार माससे ननिहाल गया हुआ था, वहाँ खड़ा है। उसे देखकर मैंने पूछा, 'तू कब आया ?' वह बोला, 'मैं तो कल ही आ गया था।' मुझे झूठसे बड़ी चिढ़ थी। मैंने कहा, 'तू मेरे सामने झूठ बोलता है, मैं तो हर समय घरमें रहता हूँ और वहीं खाता-पीता हूँ; मैंने तो तुझे कल वहाँ नहीं देखा।' लड़का यह सुनकर मेरी ओर देखकर हँसने लगा। मुझे बड़ा गुस्सा आया और उसे डाँटते हुए मैंबोला, 'एक तो झूठ बोलता है और फिर हँसता है, नालायक!' ऐसा कहकर मैं उसे पीटनेके लिये दौड़ा, किंतु वह फुर्तीसे घरमें घुस गया। मैं भी गुस्सेसे चिल्लाता हुआ घरमें घुसा मुझे चिल्लाते देखकर घरके स्त्री-पुरुष अवाक् रह गये और मुझसे बोले, "क्या बात है; ठाकुर ?' मैंने कहा, आपका लड़का जो अभी घरमें भाग आया है, बड़ा शैतान है और मेरी ओर देखकर हँसता है।' इसपर घरके लोग कहने लगे, 'ठाकुर, तुम्हें क्या हो गया है। वह लड़का तो तीन चार महीने से ननिहाल गया हुआ है, वह यहाँ कहाँ ?' मैंने कहा, 'नहीं, अभी मेरे सामनेसे भागकर आया है।' इसपर सब लोगोंने कहा, 'अच्छा! तुम घरमें चाहे जहाँ खोजकर देख लो, वह यहाँ है ही नहीं।' मैंने सारा घर ढूँढ़ा, किंतु उसका कहीं पता न लगा। इससे मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने लोगोंसे सब हाल कहा तो वे कहने लगे, 'ठाकुर, यह तो उस कृष्णका ही चमत्कार दीख पड़ता है।' मैंने कहा, 'कुछ भी हो, जबतक एक बार फिर ऐसी कोई घटना नहीं होगी, मैं कृष्णको भगवान् नहीं मान सकता।'
अब मैं पुजारीजीके पास मन्दिरमें रोज ही जाता था। उक्त घटनाके बाईसवें दिन मैंने देखा कि वही बालक, जो घरमें घुसकर अदृश्य हो गया था, आज फिर मन्दिरमें खड़ा हँस रहा है। मैंने कहा, 'कहो, कहाँ थे ?" वह बोला, 'वाह! हम तो यहीं रहते हैं।' मैंने कहा, "उस दिन आप झूठ क्यों बोले थे कि मैं कल आया हूँ ?' बालकने कहा, 'ठाकुर साहब! आपको मालूम नहीं, हम खेलमें कई बार ऐसे झूठ बोलते हैं।' यह कहकर वह तुरंत अदृश्य हो गया। बस, मैं पुजारीजीके चरणोंपर गिर गया और उनसे अपने पूर्व अपराधोंके लिये क्षमा माँगने लगा। पुजारीजीने मुझे बड़े प्रेमसे उठाकर हृदयसे लगाया और द्वादशाक्षर (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) मन्त्रका उपदेश दिया। उसी समयसे आर्यसमाजी होते हुए भी मैं इस प्रकार मालासे द्वादशाक्षर मन्त्र जपा करता हूँ और भगवान् श्रीकृष्णका उपासक हो गया हूँ। तबसे अबतक मेरी यही स्थिति है। [श्रीडड़ियाचाचाके उपदेश ]
mere jeevanakee aisee to anekon ghatanaaen hain, jinase eeshvarakee satta aur dayaamen mera vishvaas bahut badha़a, unamense kuchh sunaata hoon
(2)
kaamaakshaadeveekee upaasanaa
hamaare gharamen deveekee upaasana adhik thee. mainne bhee deveeka anushthaan kiya thaa. vah isaliye ki sansaar bahut dukhee hai, kisee prakaar usaka duhkh door kiya ja sake to achchha hai. mere manamen yah kaamana huee ki mujhe yadi draupadeekee haandeekaa-sa ek paatr mil jaay to anaayaas hee logonka kuchh upakaar ho sakata hai. is anushthaanakee poortike liye main kaamaroop jaakar kaamaakshaadeveekee upaasana karane lagaa. kuchh dinon pashchaat kaamaroopake nikatavartee ek mahant brahmachaareekee seva karaneka avasar praapt huaa. daivayogase brahmachaareejeeka shishy baahar gaya hua thaa. atah unakee mrityu ho jaanepar logonne mujhe us sthaanaka mahant bana diyaa. mahant honekee avasthaamen bhee mera anushthaan baraabar chalata rahaa. us samay vahaan bahut log aane lage aur nityaprati teen sau chaar sau rupaye bhentamen a jaate the. main un rupayonko sparsh bhee naheen karata thaa. doosare hee log unhen saadhuonke bhandaare aadimen kharch karate rahate the. un dinon kuchh aisa chamatkaar ho gaya tha ki main jis vyaktike liye jo baat kahata, vahee saty nikalatee. main kiseeka koee gupt dosh bataata to vah svayan sveekaar kar leta ki haan, mujhamen yah dosh hai. yah dasha athaarah dinatak rahee. phir mainne socha is tarah rahana theek naheen. yadi laakh rupaye bhee mil gaye to adhika-se-adhik ek gaanvaka hee kasht door ho sakegaa. phir yah baat bhee dhyaanamen aayee ki draupadeekee tarah mujhe ek paatr bhee mil gaya to bhee kya hoga ? sansaar to aisa hee rahegaa. atah main ek din chupachaap shauchake bahaane vahaanse chal diyaa? vahaanse aath kosachalakar hee mainne dam liyaa. is prakaar aarambhik jeevanamen mujhe durgaakee upaasanaase anekon chamatkaar hue. phir mujhe shreekrishnaprem bhee hone laga aur kuchh kaal pashchaat mainne sannyaas le liyaa
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shreeraadhaamaadhava-yugalake darshan ek raatakee baat hai. soory ast ho gaya tha, chandramaakee chaandanee chhitak rahee thee. jangalamen naharake kinaare ek sundar baalak aur baalika mere paas aakar kahane lage, 'baabaa! kaho to ham rotee le aaven ?' mainne kaha, 'itanee raatamen tum kahaanse rotee laaoge ?' unhonne kaha, 'hamaara gaanv paas hee hai.' ve ghooma-ghaamakar thoda़ee hee deramen rotee le aaye. mainne rotee khaayee aur vaheen so rahaa. praatahkaal bahut sabere mere uthaneke poorv hee ve phir a gaye aur mujhase bole, 'baabaa! mattha peeoge ?' mainne kaha, 'tum itane sabere phir kahaan se a gaye aur is samay mattha kahaan se laaoge ?' unhonne kaha, 'hamaara gaanv nikat hee to hai.' ve idhara-udhar ghoomakar tatkaal hee mattha le aaye aur mainne use pee liyaa. unake chale jaanepar mainne khoj kee to maaloom hua ki vahaan door dooratak kaheen gaanvaka naama-nishaan bhee naheen hai, jangal hee jangal hai.
(3)
gopaal baalakrishnake darshana
mere ek mitr brahmachaaree, jo bhagavaan shreekrishnake upaasak the. ve kishkindhaamen kisee mahaatma siddh purushako jaanate the aur unase shiksha leneke liye ja rahe the. maargamen unhen bada़ee pyaas lagee. unaka kanth sookha jaata thaa. lotaa-dor unake paas the. kintu ve kuenpar gaye to maaloom hua vah bahut gahara hai, unakee doree usamen ochhee pada़tee hai. ve niraash hokar vaheen baith gaye, atyadhik pyaasake kaaran unake praanaatyant chhatapataane lage, aisa maaloom hota tha, maano dasa-paanch minatamen praan nikal jaayange. us samay ve 'ha krishn ha krishna!" pukaarane lage. itane hee men ek baalak ekaaek unake paas aaya aur bola, 'mujhe apana lotaa-dor de do. main jal le aata hoon.' bas, brahmachaareejeeka lota dor lekar vah baalak usee kuense jal kheench laaya aur unhen pila diyaa.' phir us baalakane kaha, 'tum jis saadhuke paas ja rahe ho, vah to mahaapaakhandee hai.' brahmachaareejeene poochha, 'tum to chhote-se baalak ho, tumhen us saadhuke paakhandaka kya pataa? aur tum kahaan rahate ho ?' usane uttar diya, main yahaan jangalamen gau charaaya karata hoon aur us saadhuko khoob jaanata hoon. isake baad jab brahmachaareejee saavadhaan hue to unhonne us baalakako vahaan naheen dekha aur jab kuenpar jaakar lota phaansa to usaka jal bhee pahale hee ke samaan bahut gahara nikalaa.
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bhagavaanne usakee karun pukaar sunee
ataraulee tahaseel men ek grihasth kaayasth rahate the. unake gharamen stree, purush tatha ek lada़kee ye teen - praanee the. purush patavaareeka kaam karata tha, kisee maamalemen use saat saalakee saja ho gayee. gharamen keval usakee stree aur kanya hee rah gayee. lada़kee vivaah ke yogy huee, kintu gharamen kuchh tha naheen, atah usake maamaane vivaahaka saara bhaar apane oopar le liyaa. vivaah pakka ho gayaa. kintu jab vivaahake teena-chaar din rah gaye, tab kisee kaaranase maamaane saaph inakaar kar diyaa. baaraat aanevaalee hai, vivaahaka din hai, kintu gharapar kuchh bhee taiyaaree naheen hai. bechaaree stree atyant dukhee hokar gharakee ek kothareemen ja pada़ee. pada़osee kaayasthonne socha ki yadi baaraat bina satkaar paaye vaapas laut gayee to ham sabakee bada़ee badanaamee hogee. yah vichaarakar un logonne aapasamenkuchh prabandh karake bhatthee khudavaana aarambh kiyaa. sab log baithe the, bhatthee khud rahee thee, itanenmen bhattheeko khudaaeemen hee ek ghada़a nikalaa. logonka dhyaan doosaree or tha, atah bhattee khodanevaale donon aadamiyonne milakar use uda़aana chaahaa. unamense ek aadamee use kapada़e men lapetakar kisee bahaanese baahar jaane lagaa. bhattee khudanekee jaldee thee, atah logonne kaha, 'bhaaee, kaam chhoda़kar kahaan jaate ho ?' vah kuchh bahaana bataakar aage badha़aa. logonko aise samay usaka jaana bahut bura lagaa. atah ekane uthakar use roka to dekha usake paas kapada़emen lipata hua ek ghada़a hai. use nikalavaakar sabane dekha to usamen paancha-saat sau rupaye nikale. dekhate hee sab log bol uthe, 'bhaaee! yah to is lada़keeke bhaagyase nikala hai, tum ise kahaan liye jaate ho?' bas, sabane jaakar lada़keekee maanko soochana dee aur us rupayese hee lada़keeka vivaah sampann huaa. is prakaar bhagavaanne usakee karun pukaar sunee.
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shreeraam, seeta aur lakshmanake darshan aleegaढ़men ek kaayasth gharaaneke do lada़ke the. unamense ek ko sangrahanee ho gayee anek vaidy daॉktaronse ilaaj karaaya gayaa. usamen gharaka saara jevar samaapt ho gaya, parantu laabh kuchh n huaa. daivayogase vahaan koee mahaatma aaye. unhonne usakee dasha dekhakar kaha, 'tum logonko to ab isake jeevanakee koee aasha hai naheen. atah ab main ek upaay bataata hoon. use karake aur dekh lo. main ek mahaamantr bataata hoon. tum shreeraamachandrajeeka isht rakhakar usaka akhand jap karo, usase avashy laabh ho sakata hai.' mahaatmaajeeke aajnaanusaar usee samay jap aarambh ho gayaa. aur phir ek maasamen jap poora hote-hote bina kisee aushadhike us lada़keka rog sarvatha shaant ho gayaa. phir to usakee aisee sthitiho gayee ki use har samay shreeraam, seeta aur lakshman apane saath hee jaan pada़te the chalate-phirate, nahaate-dhote, shauch jaate sab samay yahee haal thaa. ek din shauch jaate hue usane dekha ki vahee moorti saamane khada़ee hai. vah bola, 'mahaaraaja! shauchake samay to mat aaya karo.' bas usee dinase phir unake darshan naheen hue.
(6)
shreebaankebihaareejeeke darshan aur bhaktavatsalata khair tahaseel men yamunaakinaare kisee gaanv men rahanevaalaa
ek jaat mere paas aaya karata thaa. vah pratyek poornimaako vrindaavan jaakar shreebaankebihaareejeeke darshan kiya karata thaa. usaka yah niyam teesa-chaalees varshase chal raha thaa. ek baar poornimaake ek din pahale chaturdasheeko usake javaan lada़kekee mrityu ho gayee. ek hee lada़ka tha, saare gaanvamen haahaakaar mach gayaa. vah lada़kekee laash lekar anek graamavaasiyonke saath yamuna kinaare gaya aur vahaan usaka daah sanskaar kiyaa. is kaaryase chhuttee milanepar jab sab log lautane lage to vah bola, 'bhaaee, jo hona tha so ho gaya, aap log ghar jaayan. mere to kal poornima hai, mujhe kal vrindaavanamen shreebaankebihaareejeekee haajiree denee hai. so main to vahaan ja raha hoon.' usakee yah baat sunakar sab log kahane lage, 'kaisa paagal hai, javaan lada़ka mara hai, log isake ghar aayenge aur yah kahata hai, mujhe vrindaavan jaana hai.' aisa kahakar logonne use bahut samajhaaya, kintu vah apana sadaaka niyam chhoda़neko taiyaar n huaa. bas, vah vaheense vrindaavan chal diyaa. is samay prakritine bhee usakee pareeksha karanekee thaanee. bada़e jorase hava chalane lagee aur paanee bhee barasane lagaa. sab log to gaanv laut gaye. vah yamuna paar karaneke liye ghaatapar aayaa. kintu mallaahane aise toophaanake samay naav le jaanese saaph inakaar kar diyaa. jaatako putr shok totha hee, ab sadaakee bhaanti kal poornimaako praatah kaal shreebaankebihaareejeeke darshan naheen ho sakenge-isase aur bhee hriday ghabara uthaa. vah atyant shokaakul ho us mallaahakee kuteemen hee pada़a rahaa. jaat pratimaas chaturdasheeko hee vrindaavan pahunch jaata thaa. atah is or baankebihaareejeeke gosaaeenjeene bhee raatake baarah bajetak usakee prateeksha kee.
jaatane dekha ki vah vrindaavan pahunch gaya hai. sadaakee tarah vah raatrimen hee mandiramen pahuncha hai aur pujaareejeene use prasaad diya hai aur vah prasaad paakar so gaya hai. doosare din jab usakee aankhen khuleen to usane apaneko vrindaavanakee usee kuteemen paaya, jisamen vah pratyek poornimaako jaakar thaharata thaa. isase use bada़a aashchary hua aur vah sochane laga ki main to us paar mallaahakee jhonpada़eemen soya tha, yahaan kaise a gaya ! phir use raatako pujaareejeese prasaad paanekee yaad aayee. usane unake paas jaakar is vishay men poochha, to ve bole, 'bhaaee, mainne to tumhen prasaad naheen diyaa. maaloom hota hai yah sab in baankebihaareejeekee hee leela hai.' usane kutiyaamen jaakar dekha to vahaan prasaadake kan aur jal aadi bhee pada़e the. prabhukee aisee bhaktavatsalata dekhakar vah vihval ho gaya aur bola, 'haay ! laalaane bada़a dhokha diyaa.' ab vah jaat mar gaya hai.
(61)
krishnanindakapar bhagavaan krishnakee pratyaksh kripaa
main ek baar haridvaarake kumbhase laut raha thaa. raastemen jila mujaphpharanagarake ek gaanvamen thaharaa. vahaan ek braahmanane mujhe bhiksha karaayee. kuchh din main vaheen thahara rahaa. aasa-paasase anekon log aate rahate the. unamen ek thaakur saahab bhee the. unakee avastha 70 75 varshakee hogee. cheharepar khoob tej tha aur shareer bhee hrishta-pusht thaa. . ve praayah dinabhar maala liye jap karate rahate the. yon ve apaneko aaryasamaajee bataate the. mainne ekadin unase poochha, 'aap to aaryasamaajee hai, phir maalaase ap kaise karate hain?' tab unhonne apane jeevanakee is prakaar sunaayee
'meree avastha jis samay aatha-das varshakee thee, tabhee mujhe svaamee dayaanandajeeke darshanonka saubhaagy praapt hua thaa. unake brahmachary aur satyako dekhakar unapar meree apaar shraddha huee aur mainne bhee apane jeevanamen aamaran in donon vratonka paalan karaneka nishchay kar liyaa. bas, main poornataya unaka anuyaayee ho gaya aur shreekrishnake vishayamen to meree aisee dhaarana ho gayee ki bhaaratavarshake adha: patanaka pradhaan kaaran ye hee hain. chhal, kapat, vyabhichaar aadi duniya bharake saare dosh unamen the. yadi krishn n hote to aaj bhaaratamen ye dosh is roopamen n phailate aisee bhaavanaake kaaran shreekrishnaka to main pakka virodhee ban gayaa. haan, mere saty aur brahmacharyake niyam theeka-theek chalate rahe.'
'praayah beesa-baaees varshakee aayumen main kaashee chala gayaa. is beechamen main kuchh padha़-likh bhee gaya tha aur pahalavaanee karane laga thaa. kaasheemen ek thaakur saahabako lada़aaee-jhagada़e ke samay aise pahalavaanakee aavashyakata thee. unhonne mujhe apane yahaan rakh liyaa. mere jimme koee kaam to tha naheen. main khoob kasarat karata, baadaama-ghee aadi taraha-tarahake maal khaata, pahalavaanee karata aur jab thaakur saahab kaheen baahar jaate to laathee lekar unake saath ho letaa. main nityaprati teena-chaar baje uthata thaa. shauch snaanase nivritt hokar do-teen ghante khoob sandhyopaasan aur gaayatreejap karata tha tatha dinamen do-teen baar snaan karake madhyaahn aur saayankaalamen bhee sandhyopaasan kiya karata thaa. is prakaar mera jeevan khoob aachaara-vichaar aur karmakaandamen beet raha thaa. raatrike samay main nityaprati aaryasamaajamen jaakar vyaakhyaan bhee diya karata tha usamen mukhyataya mera vishay raam aur krishnakee ninda karana tatha unhen bharapet gaaliyaan dena hee rahata thaa.' 'jin thaakur saahabake yahaan main rahata tha, unakeek shreekrishnabhagavaanka mandir bhee thaa. usake pujaaree shreekrishnake bada़e bhakt the. thaakur saahabake paramen bhee thaakur seva hotee thee. ghar ke chhote-bada़e sabhee stree-purush bada़e premase bhagavaankee pooja karate the. main yadyapi shreekrishnaka kattar virodhee tha, to bhee mere saty aur brahmacharyase prabhaavit hokar thaakur saahab aur pujaaree donon hee mujhase bahut sneh karate the. kabhee-kabhee pujaareejee mujhase kahate 'thaakur saahab, yadi tum shreekrishnajeekee upaasana karo to tumhaare jaise sachche aur sadaachaaree vyaktiko to bahut jald bhagavaan ke darshan ho jaayen. pujaareejee to mujhapar bada़a anugrah karake aisee baat kahate the, kintu main badale men unhen aur unake bhagavaanko bharapet kharee-kharee suna deta thaa. pujaareejee tab bhee isee prakaar kahate rahe aur main bhee vaisa hee uttar deta rahaa. ek din jab pujaareejeene phir yaheen baat kahee to mujhe bahut krodh a gaya aur mainne aisee aisee kada़vee baaten bhagavaanke viruddh kaheen ki pujaareejee vyathit hokar rone lage.
"us din pujaareejeeko bahut hee kasht huaa. main us din raatriko das baje doodh peekar sadaakee bhaanti bhoomipar so gayaa. paas hee takhtapar pujaareejee so rahe the. raatriko meree aankh khulee to kya dekhata hoon ki khoob ujaala ho raha hai, mahaan sooryakaa-sa prakaash hai. main ekadam ghabada़aakar uth baithaa. main praatah saadha़e teen bajeka jaaganevaala, aaj itanee der ho gayee, isase mujhe bada़a kasht huaa. mainne uthakar dekha ki pujaareejeeke takhtake paas dasa-baarah varshaka ek sundar baalak khada़a hai aur mujhe dekha-dekhakar hans raha hai. us baalakako is tarah musakaraate dekhakar mujhe bada़a gussa aaya aur mainne usase phatakaarakar kaha, 'meree dhotee lota kahaan hai, jaldee sa hansata kyon hai ? vah yah sunakar aur bhee hansane lagaa. mujhe bada़a bura laga aur main use maaraneko dauda़aa. baalak takhtake chaaron or bhaagane lagaa. main usake peechhe dauda़ raha tha, kintu vah mere haath naheen aayaa. vah jyon-jyon hansata tha, tyon-hee-tyon mera krodh aur bhee chaढ़ta jaata thaa. krodhamen bharakar menuse baara-baar phatakaarata aur chillaata thaa. mera chillaana sunakar pujaareejee bhee jag gaye tatha aas paasake aur bhee kaee stree-purush ekatrit ho gaye. ve sabake sab atyant aashcharyachakit hokar mujhase baara-baar poochhane 'lage, 'thaakur saahab, kya baat hai ? aaj aapako kya ho gaya hai ?' main us baalakake hansanekee shaitaanee bataakar kahane laga, 'dekho, is baalakako samajha do, naheen to isake hakamen achchha naheen hogaa.' ve bechaare kuchh bhee n samajh sake. jab is jhanjhatamen bahut der ho gayee to mainne dekha ki vah lada़ka jhatase pujaareejeekee godamen ja baitha aur tatkaal adrishy ho gayaa. main bhee hairaan rah gayaa. iseeke saath mujhe jo bada़a bhaaree prakaash deekh raha tha, vah bhee jaata rahaa. bas, chaaron or raatrika andhakaar chha gayaa. phir logonse aur pujaareese baat huee to ve kahane lage, 'thaakur saahaba! yahaan to koee lada़ka naheen hai, ham sab bada़e aashcharyamen hain ki aaj raatrike samay aapako kya ho gaya hai!' mainne apaneko kuchh saavadhaan karake ghada़ee dikhavaayee to raataka ek baj raha thaa. mainne saaree ghatana logonko sunaayee to sab kahane lage, 'thaakur saahab, aap jinakee bahut ninda karate the, yah chamatkaar unheenka to naheen hai?' mainne kaha, 'kuchh bhee ho, aisee baatonse main krishnako bhagavaan naheen maan sakataa. haan, aajase main unhen aur pujaareejeeko gaaliyaan n doongaa.' us dinase mainne gaaliyaan dena band kar diya aur praayah pujaareejeeke paas mandiramen aane-jaane lagaa.
ek din mandiramen jaanepar mainne dekha ki jin thaakur saahabake yahaan main rahata tha, unaka ek baarah terah varshaka lada़ka jo teena-chaar maasase nanihaal gaya hua tha, vahaan khada़a hai. use dekhakar mainne poochha, 'too kab aaya ?' vah bola, 'main to kal hee a gaya thaa.' mujhe jhoothase bada़ee chidha़ thee. mainne kaha, 'too mere saamane jhooth bolata hai, main to har samay gharamen rahata hoon aur vaheen khaataa-peeta hoon; mainne to tujhe kal vahaan naheen dekhaa.' lada़ka yah sunakar meree or dekhakar hansane lagaa. mujhe bada़a gussa aaya aur use daantate hue mainbola, 'ek to jhooth bolata hai aur phir hansata hai, naalaayaka!' aisa kahakar main use peetaneke liye dauda़a, kintu vah phurteese gharamen ghus gayaa. main bhee gussese chillaata hua gharamen ghusa mujhe chillaate dekhakar gharake stree-purush avaak rah gaye aur mujhase bole, "kya baat hai; thaakur ?' mainne kaha, aapaka lada़ka jo abhee gharamen bhaag aaya hai, bada़a shaitaan hai aur meree or dekhakar hansata hai.' isapar gharake log kahane lage, 'thaakur, tumhen kya ho gaya hai. vah lada़ka to teen chaar maheene se nanihaal gaya hua hai, vah yahaan kahaan ?' mainne kaha, 'naheen, abhee mere saamanese bhaagakar aaya hai.' isapar sab logonne kaha, 'achchhaa! tum gharamen chaahe jahaan khojakar dekh lo, vah yahaan hai hee naheen.' mainne saara ghar dhoonढ़a, kintu usaka kaheen pata n lagaa. isase mujhe bada़a aashchary huaa. mainne logonse sab haal kaha to ve kahane lage, 'thaakur, yah to us krishnaka hee chamatkaar deekh pada़ta hai.' mainne kaha, 'kuchh bhee ho, jabatak ek baar phir aisee koee ghatana naheen hogee, main krishnako bhagavaan naheen maan sakataa.'
ab main pujaareejeeke paas mandiramen roj hee jaata thaa. ukt ghatanaake baaeesaven din mainne dekha ki vahee baalak, jo gharamen ghusakar adrishy ho gaya tha, aaj phir mandiramen khada़a hans raha hai. mainne kaha, 'kaho, kahaan the ?" vah bola, 'vaaha! ham to yaheen rahate hain.' mainne kaha, "us din aap jhooth kyon bole the ki main kal aaya hoon ?' baalakane kaha, 'thaakur saahaba! aapako maaloom naheen, ham khelamen kaee baar aise jhooth bolate hain.' yah kahakar vah turant adrishy ho gayaa. bas, main pujaareejeeke charanonpar gir gaya aur unase apane poorv aparaadhonke liye kshama maangane lagaa. pujaareejeene mujhe bada़e premase uthaakar hridayase lagaaya aur dvaadashaakshar (oM namo bhagavate vaasudevaaya) mantraka upadesh diyaa. usee samayase aaryasamaajee hote hue bhee main is prakaar maalaase dvaadashaakshar mantr japa karata hoon aur bhagavaan shreekrishnaka upaasak ho gaya hoon. tabase abatak meree yahee sthiti hai. [shreedada़iyaachaachaake upadesh ]