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ऋषियोंके प्रति उपहासपूर्ण व्यवहारका फल  [Moral Story]
Spiritual Story - Spiritual Story (प्रेरक कथा)

ऋषियोंके प्रति उपहासपूर्ण व्यवहारका फल

एक समयकी बात है-महर्षि विश्वामित्र, कण्व और तपोधन नारदजी द्वारकामें गये हुए थे। उन्हें देखकर दैवके मारे हुए सारण आदि वीर साम्बको स्त्रीके वेषमें विभूषित करके उनके पास ले गये और बोले—'महर्षियो ! यह महातेजस्वी बभ्रुकी स्त्री है। बभ्रु पुत्रके लिये बड़े लालायित हैं। आपलोग अच्छी तरह समझकर यह बताइये कि इस स्त्रीके गर्भसे क्या उत्पन्न होगा ?' ऐसा कहकर वंचनाके द्वारा जब उन्होंने ऋषियोंका तिरस्कार किया तो वे मुनि क्रोधमें भरकर एक-दूसरेकी ओर देखते हुए बोले- 'मूर्खो! यह श्रीकृष्णका पुत्र साम्ब वृष्णि और अन्धकवंशी पुरुषोंका नाश करनेके लिये लोहेका एक भयंकर मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा तुम- जैसे दुराचारी, क्रूर और क्रोधी लोग अपने समस्त कुलका संहार कर डालेंगे, केवल बलराम और श्रीकृष्णपर तुम्हारा वश नहीं चलेगा। बलरामजी तो स्वयं ही अपने शरीरका परित्याग करके समुद्रमें प्रवेश कर जायँगे और महात्मा श्रीकृष्ण जब भूमिपर शयन करते होंगे, उस समय जरा नामक व्याध उन्हें अपने बाणोंसे बींध डालेगा।' ऐसा कहकर वे मुनि भगवान् श्रीकृष्णसे जाकर मिले। यह
समाचार सुनकर मधुसूदनने वृष्णिवंशियोंको भी बता दिया। वे सबका अन्त जानते थे, इसलिये यादवोंसे यह कहकर कि 'ऋषियोंकी यह बात अवश्य सत्य होगी' नगरमें चले गये। यद्यपि भगवान् श्रीकृष्ण सम्पूर्ण जगत्के ईश्वर हैं, तथापि उन्होंने यदुवंशियोंके उस अन्तकालको पलटना न चाहा।
दूसरे दिन साम्बने मूसल उत्पन्न किया। यादवोंने इसकी सूचना राजा उग्रसेनको दे दी। यह सुनकर राजाके मनमें बड़ा विषाद हुआ और उन्होंने उस मूसलको चूर्ण कराकर समुद्रमें फेंकवा दिया। तदनन्तर कालकी विपरीत गति देखकर और पक्षके तेरहवें दिन अमावास्याका संयोग जानकर भगवान् श्रीकृष्णने यदुवंशियोंसे कहा- 'वीरो महाभारत युद्धके समय जैसा योग लगा था, इन दिनों भी हमलोगोंका संहार करनेके लिये वही योग प्राप्त हुआ है। यों कहकर श्रीकृष्ण कालकी अवस्थापर विचार करने लगे। सोचते-सोचते उनके मनमें यह बात आयी 'जान पड़ता है बन्धु बान्धवोंके मारे जानेपर पुत्रशोकसे संतप्त गान्धारीने आर्तभावसे यदुवंशियोंके लिये जो शाप दिया था, उसके पूर्ण होनेका यह समय- छत्तीसवाँ वर्ष आ गया। यह सोचकर भगवान् श्रीकृष्णने गान्धारीका शाप सत्य करनेके उद्देश्यसे यदुवंशियोंको तीर्थयात्रा करनेकी आज्ञा दी। भगवान्की आज्ञासे राजपुरुषोंने सारे नगरमें यह घोषणा कर दी कि सब लोग समुद्रके तटपर प्रभासतीर्थमें चलनेकी तैयारी करें।'
इसके बाद प्रभास पहुँचकर यादवोंकी गोष्ठीमें
बैठे हुए सात्यकिने मदके आवेशमें आकर कृतवर्माका उपहास और अनादर करते हुए कहा - ' हार्दिक्य ! अपनेको क्षत्रिय माननेवाला कौन ऐसा वीर होगा, जो रात में मुर्देकी-सी दशामें सोये हुए मनुष्योंकी तेरी तरह हत्या करेगा? तूने जो अन्याय किया है, उसे यदुवंशी कभी नहीं क्षमा कर सकते।' सात्यकिके ऐसा कहनेपर प्रद्युम्नने भी कृतवर्माका अपमान करते हुए उनकी बातका अनुमोदन किया। यह सुनकर कृतवर्माको बड़ा क्रोध हुआ और उसने बायाँ हाथ उठाकर सात्यकिका तिरस्कार करते हुए कहा- 'अरे! भूरिश्रवाकी बाँह कट गयी थी और वे मरणान्त उपवासका निश्चय करके युद्धभूमिमें बैठ गये थे; उस अवस्थामें तूने वीर कहलाकर भी उनकी नृशंसतापूर्ण हत्या कैसे की ?'
उसकी बात सुनकर सात्यकिके क्रोधका ठिकाना न रहा। वे खड़े होकर बोले-'मैं सत्यकी शपथ खाकर कहता हूँ कि आज इस पापीको मारकर द्रौपदीके पाँचों पुत्रों, धृष्टद्युम्न और शिखण्डीके पास पहुँचा दूँगा।' यों कहकर सात्यकि श्रीकृष्णके पाससे झपटकर आगे बढ़े और तलवार हाथमें लेकर उन्होंने कृतवर्माका मस्तक धड़से अलग कर दिया। इसके बाद वे अन्य वीरोंको भी मौतके घाट उतारने लगे। यह देख भगवान् श्रीकृष्ण उन्हें रोकनेके लिये दौड़े। इतनेमें कालकी प्रेरणासे भोज और अन्धकवंशके वीरोंने एकमत होकर सात्यकिको चारों ओरसे घेर लिया। उन्हें क्रोधमें भरकर सात्यकिके ऊपर धावा करते देख रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न क्रोधमें भर गये और सात्यकिको बचानेके लिये वे बीचमें कूदकर भोजवंशी वीरोंसे लोहा लेने लगे। उधर सात्यकि अन्धकवंशियोंके साथ भिड़ गये। अपनी भुजाओंके बलसे क्षोभित होनेवाले वे दोनों वीर बड़े उत्साह और परिश्रमके साथ विपक्षियोंका मुकाबला कर रहे थे, किंतु उनकी संख्या अधिक होनेके कारण उन्हें परास्त न कर सके और अन्तमें श्रीकृष्णके देखते-देखते दोनों ही शत्रुओंके हाथसे मारे गये। अपने पुत्र और सात्यकिको मारा गया देख भगवान् श्रीकृष्णने क्रोधमें आकर एक मुट्ठी एरका घास उखाड़ ली। उनके हाथमें आते ही वह घास वज्रके समान भयंकर लोहेका मूसल बन गयी। फिर तो जो-जो सामने पड़े, उन सबको वे उसी मूसलसे मौतके घाट उतारने लगे। उस समय कालसे प्रेरित होकर अन्धक, भोज, शिनि और वृष्णिवंशके वीर उस हंगामेमें एक-दूसरेको मूसलोंकी मारसे धराशायी करने लगे। उनमेंसे जो कोई भी क्रोधमें आकर एरका नामक घास लेता, उसीके हाथमें वह वज्रके समान दिखायी पडती थी । वस्तुतः यह सब ब्राह्मणोंके शापका प्रभाव था कि तिनका भी मूसलके रूपमें परिणत हो जाता था। जिस किसीपर तृणका
प्रहार किया जाता, वह अभेद्य वस्तुका भी भेदन कर डालता था। उसको लेकर पुत्र पिताके और पिता पुत्रके प्राण ले रहे थे। मतवाले यदुवंशी आपसमें ही लड़कर धराशायी होने लगे। कुकुर और अन्धक

वंशके योद्धा आगमें गिरनेवाले पतंगोंकी तरह प्राण त्याग रहे थे, फिर भी कोई भागना नहीं चाहता था। श्रीकृष्णके देखते-देखते साम्ब, चारुदेष्ण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध और गदकी मृत्यु हो गयी। फिर तो उनकी क्रोधाग्नि और भी भड़क उठी और शंख, चक्र एवं गदा धारण करनेवाले उन प्रभुने बाकी बचे हुए समस्त वीरोंका संहार कर डाला। इस प्रकार ऋषियोंके प्रति उपहासपूर्ण व्यवहारका परिणाम यदुवंशके नाशके रूपमें हुआ।



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rishiyonke prati upahaasapoorn vyavahaaraka phala

rishiyonke prati upahaasapoorn vyavahaaraka phala

ek samayakee baat hai-maharshi vishvaamitr, kanv aur tapodhan naaradajee dvaarakaamen gaye hue the. unhen dekhakar daivake maare hue saaran aadi veer saambako streeke veshamen vibhooshit karake unake paas le gaye aur bole—'maharshiyo ! yah mahaatejasvee babhrukee stree hai. babhru putrake liye bada़e laalaayit hain. aapalog achchhee tarah samajhakar yah bataaiye ki is streeke garbhase kya utpann hoga ?' aisa kahakar vanchanaake dvaara jab unhonne rishiyonka tiraskaar kiya to ve muni krodhamen bharakar eka-doosarekee or dekhate hue bole- 'moorkho! yah shreekrishnaka putr saamb vrishni aur andhakavanshee purushonka naash karaneke liye loheka ek bhayankar moosal utpann karega, jisake dvaara tuma- jaise duraachaaree, kroor aur krodhee log apane samast kulaka sanhaar kar daalenge, keval balaraam aur shreekrishnapar tumhaara vash naheen chalegaa. balaraamajee to svayan hee apane shareeraka parityaag karake samudramen pravesh kar jaayange aur mahaatma shreekrishn jab bhoomipar shayan karate honge, us samay jara naamak vyaadh unhen apane baanonse beendh daalegaa.' aisa kahakar ve muni bhagavaan shreekrishnase jaakar mile. yaha
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तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
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गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
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ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
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होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
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दूध छटी को याद दिलाऊँ
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
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तुम रस के सागर रसिया हो
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
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श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
वृन्दावन के बांके बिहारी,
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