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तैरना जानते हो या नहीं  [प्रेरक कथा]
Shikshaprad Kahani - Moral Story (Moral Story)

एक नवशिक्षित शहरी बाबू नदीमें नावपर जा रहे थे। उन्होंने आकाशकी ओर ताककर केवटसे कहा – 'भैया! तुम नक्षत्रविद्या जानते हो?' केवट बोला – 'बाबूजी! मैं तो नाम भी नहीं जानता।' इसपर बाबूने हँसकर कहा - 'तब तो तुम्हारा चौथाई जीवन व्यर्थ ही गया।' कुछ देर बाद बाबूने फिर पूछा 'भाई! तुम गणित पढ़े हो ?' केवटने कहा – 'बाबू ! मैं तो नहीं पढ़ा!' बाबू बोले- 'तब तो तुम्हारा आधा जीवन मुफ्तमें गया।' केवट बेचारा चुप रहा। थोड़ी देर बाद नदीके दोनों ओर पेड़ोंकी पंक्तियोंको देखकर बाबू बोले- 'तो भैया! तुम वृक्ष-विज्ञान-शास्त्र तो जानते ही होगे ?' केवट बोला-'बाबूजी! मैं तो कोई शासतर वासतर नहीं जानता-नाव खेकर किसी तरह पेट भरता हूँ।' बाबूजी हँसकर बोले- 'तब तो भैया तुम्हारेजीवनका तीन चौथाई हिस्सा बेकाम ही बीता।' यों बातचीत चल रही थी कि अकस्मात् जोरोंकी आँधी आ गयी। नाव डगमगाने लगी। देखते-ही-देखते नावमें पानी भर गया। केवटने नदीमें कूदकर तैरते हुए पूछा—'बाबूजी! आप तैरना जानते हैं या नहीं ?' बाबूने कहा—'तैरना जानता तो मैं भी कूद न पड़ता। भैया ! बता! अब क्या होगा।' केवट बोला-'बाबूजी ! अब तो सिवा डूबनेके और कोई उपाय नहीं है। आपने सारी विद्याएँ पढीं, पर तैरना नहीं जाना तब सभी कुछ व्यर्थ है। अब तो भगवान्‌को याद कीजिये !' भवसागरसे तरनेकी भजनरूपी विद्या ही सच्ची विद्या है। इसे न पढ़कर जो केवल लौकिक विद्याओंके पण्डित बनकर अभिमान करते हैं, उन्हें तो डूबना ही पड़ता है।



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tairana jaanate ho ya naheen

ek navashikshit shaharee baaboo nadeemen naavapar ja rahe the. unhonne aakaashakee or taakakar kevatase kaha – 'bhaiyaa! tum nakshatravidya jaanate ho?' kevat bola – 'baaboojee! main to naam bhee naheen jaanataa.' isapar baaboone hansakar kaha - 'tab to tumhaara chauthaaee jeevan vyarth hee gayaa.' kuchh der baad baaboone phir poochha 'bhaaee! tum ganit padha़e ho ?' kevatane kaha – 'baaboo ! main to naheen paढ़aa!' baaboo bole- 'tab to tumhaara aadha jeevan muphtamen gayaa.' kevat bechaara chup rahaa. thoda़ee der baad nadeeke donon or peda़onkee panktiyonko dekhakar baaboo bole- 'to bhaiyaa! tum vriksha-vijnaana-shaastr to jaanate hee hoge ?' kevat bolaa-'baaboojee! main to koee shaasatar vaasatar naheen jaanataa-naav khekar kisee tarah pet bharata hoon.' baaboojee hansakar bole- 'tab to bhaiya tumhaarejeevanaka teen chauthaaee hissa bekaam hee beetaa.' yon baatacheet chal rahee thee ki akasmaat joronkee aandhee a gayee. naav dagamagaane lagee. dekhate-hee-dekhate naavamen paanee bhar gayaa. kevatane nadeemen koodakar tairate hue poochhaa—'baaboojee! aap tairana jaanate hain ya naheen ?' baaboone kahaa—'tairana jaanata to main bhee kood n pada़taa. bhaiya ! bataa! ab kya hogaa.' kevat bolaa-'baaboojee ! ab to siva doobaneke aur koee upaay naheen hai. aapane saaree vidyaaen padheen, par tairana naheen jaana tab sabhee kuchh vyarth hai. ab to bhagavaan‌ko yaad keejiye !' bhavasaagarase taranekee bhajanaroopee vidya hee sachchee vidya hai. ise n padha़kar jo keval laukik vidyaaonke pandit banakar abhimaan karate hain, unhen to doobana hee pada़ta hai.

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