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दूसरोंका अमङ्गल चाहनेमें अपना अमङ्गल पहले होता है  [बोध कथा]
Wisdom Story - Wisdom Story (Short Story)

'देवराज इन्द्र तथा देवताओंको प्रार्थना स्वीकार करके महर्षि दधीचिने देह त्याग किया। उनकी अस्थियाँ लेकर विश्वकर्माने वज्र बनाया। उसी वज्रसे अजेयप्राय वृत्रासुरको इन्द्रने मारा और स्वर्गपर पुनः अधिकार किया।' ये सब बातें अपनी माता सुवर्चासे बालक पिप्पलादने सुनीं। अपने पिता दधीचिके घातक देवताओं पर उन्हें बड़ा क्रोध आया। 'स्वार्थवश ये देवता मेरे तपस्वी पितासे उनकी हड्डियाँ माँगनेमें भी लज्जित नहीं हुए! " पिप्पलादने सभी देवताओंको नष्ट कर देनेका संकल्प करके तपस्या प्रारम्भ कर दी।

पवित्र नदी गौतमीके किनारे बैठकर तपस्या करते। हुए पिप्पलादको दीर्घकाल बीत गया। अन्तमें भगवान् शङ्कर प्रसन्न हुए। उन्होंने पिप्पलादको दर्शन देकर कहा- 'बेटा! वर माँगो।"

पिप्पलाद बोले- 'प्रलयङ्कर प्रभु! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो अपना तृतीय नेत्र खोलें और स्वार्थी देवताओंको भस्म कर दें।'

भगवान् आशुतोषने समझाया - 'पुत्र ! मेरे रुद्र रूपका तेज तुम सहन नहीं कर सकते थे, इसीलिये मैं तुम्हारे सम्मुख सौम्य रूपमें प्रकट हुआ। मेरे तृतीय नेत्रके तेजका आह्वान मत करो। उससे सम्पूर्ण विश्व भस्म हो जायगा।'पिप्पलादने कहा- 'प्रभो! देवताओं और उनके द्वारा संचालित इस विश्वपर मुझे तनिक भी मोह नहीं। आप देवताओंको भस्म कर दें, भले विश्व भी उनके साथ भस्म हो जाय।'

परमोदार मङ्गलमय आशुतोष हँसे। उन्होंने कहा 'तुम्हें एक अवसर और मिल रहा है। तुम अपने अन्तःकरणमें मेरे रुद्र-रूपका दर्शन करो।'

पिप्पलादने हृदयमें कपालमाली, विरूपाक्ष, त्रिलोचन, अहिभूषण भगवान् रुद्रका दर्शन किया। उस ज्वालामय प्रचण्ड स्वरूपके हृदयमें प्रादुर्भाव होते ही पिप्पलादको लगा कि उनका रोम-रोम भस्म हुआ जा रहा है। उनका पूरा शरीर थर-थर काँपने लगा। उन्हें लगा कि वे कुछ ही क्षणोंमें चेतनाहीन हो जायँगे। आर्तस्वरमें उन्होंने फिर भगवान् शङ्करको पुकारा। हृदयकी प्रचण्ड मूर्ति अदृश्य हो गयी। शशाङ्कशेखर प्रभु मुसकराते सम्मुख खड़े थे। 'मैंने देवताओंको भस्म करनेकी प्रार्थना की थी,
आपने मुझे ही भस्म करना प्रारम्भ किया।' पिप्पलाद
उलाहनेके स्वरमें बोले ।

शङ्करजीने स्नेहपूर्वक समझाया- 'विनाश किसी एक स्थलसे ही प्रारम्भ होकर व्यापक बनता है और सदा वह वहींसे प्रारम्भ होता है, जहाँ उसका आह्वान किया गया हो। तुम्हारे हाथके देवता इन्द्र हैं, नेत्रके सूर्य,नासिकाके अश्विनीकुमार, मनके चन्द्रमा । इसी प्रकार प्रत्येक इन्द्रिय तथा अङ्गके अधिदेवता हैं। उन अधिदेवताओंको नष्ट करनेसे शरीर कैसे रहेगा। बेटा! इसे समझो कि दूसरोंका अमङ्गल चाहनेपर पहले स्वयं अपना अमङ्गल होता है। तुम्हारे पिता महर्षि दधीचिने दूसरोंके कल्याणके लिये अपनी हड्डियाँतक दे दीं।।उनके त्यागने उन्हें अमर कर दिया। वे दिव्यधाममें अनन्त कालतक निवास करेंगे। तुम उनके पुत्र हो। तुम्हें अपने पिताके गौरवके अनुरूप सबके मङ्गलका चिन्तन करना चाहिये।'

पिप्पलादने भगवान् विश्वनाथके चरणोंमें मस्तक झुका दिया। – सु0 सिं0



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doosaronka amangal chaahanemen apana amangal pahale hota hai

'devaraaj indr tatha devataaonko praarthana sveekaar karake maharshi dadheechine deh tyaag kiyaa. unakee asthiyaan lekar vishvakarmaane vajr banaayaa. usee vajrase ajeyapraay vritraasurako indrane maara aur svargapar punah adhikaar kiyaa.' ye sab baaten apanee maata suvarchaase baalak pippalaadane suneen. apane pita dadheechike ghaatak devataaon par unhen bada़a krodh aayaa. 'svaarthavash ye devata mere tapasvee pitaase unakee haddiyaan maanganemen bhee lajjit naheen hue! " pippalaadane sabhee devataaonko nasht kar deneka sankalp karake tapasya praarambh kar dee.

pavitr nadee gautameeke kinaare baithakar tapasya karate. hue pippalaadako deerghakaal beet gayaa. antamen bhagavaan shankar prasann hue. unhonne pippalaadako darshan dekar kahaa- 'betaa! var maango."

pippalaad bole- 'pralayankar prabhu! yadi aap mujhapar prasann hain to apana triteey netr kholen aur svaarthee devataaonko bhasm kar den.'

bhagavaan aashutoshane samajhaaya - 'putr ! mere rudr roopaka tej tum sahan naheen kar sakate the, iseeliye main tumhaare sammukh saumy roopamen prakat huaa. mere triteey netrake tejaka aahvaan mat karo. usase sampoorn vishv bhasm ho jaayagaa.'pippalaadane kahaa- 'prabho! devataaon aur unake dvaara sanchaalit is vishvapar mujhe tanik bhee moh naheen. aap devataaonko bhasm kar den, bhale vishv bhee unake saath bhasm ho jaaya.'

paramodaar mangalamay aashutosh hanse. unhonne kaha 'tumhen ek avasar aur mil raha hai. tum apane antahkaranamen mere rudra-roopaka darshan karo.'

pippalaadane hridayamen kapaalamaalee, viroopaaksh, trilochan, ahibhooshan bhagavaan rudraka darshan kiyaa. us jvaalaamay prachand svaroopake hridayamen praadurbhaav hote hee pippalaadako laga ki unaka roma-rom bhasm hua ja raha hai. unaka poora shareer thara-thar kaanpane lagaa. unhen laga ki ve kuchh hee kshanonmen chetanaaheen ho jaayange. aartasvaramen unhonne phir bhagavaan shankarako pukaaraa. hridayakee prachand moorti adrishy ho gayee. shashaankashekhar prabhu musakaraate sammukh khada़e the. 'mainne devataaonko bhasm karanekee praarthana kee thee,
aapane mujhe hee bhasm karana praarambh kiyaa.' pippalaada
ulaahaneke svaramen bole .

shankarajeene snehapoorvak samajhaayaa- 'vinaash kisee ek sthalase hee praarambh hokar vyaapak banata hai aur sada vah vaheense praarambh hota hai, jahaan usaka aahvaan kiya gaya ho. tumhaare haathake devata indr hain, netrake soory,naasikaake ashvineekumaar, manake chandrama . isee prakaar pratyek indriy tatha angake adhidevata hain. un adhidevataaonko nasht karanese shareer kaise rahegaa. betaa! ise samajho ki doosaronka amangal chaahanepar pahale svayan apana amangal hota hai. tumhaare pita maharshi dadheechine doosaronke kalyaanake liye apanee haddiyaantak de deen..unake tyaagane unhen amar kar diyaa. ve divyadhaamamen anant kaalatak nivaas karenge. tum unake putr ho. tumhen apane pitaake gauravake anuroop sabake mangalaka chintan karana chaahiye.'

pippalaadane bhagavaan vishvanaathake charanonmen mastak jhuka diyaa. – su0 sin0

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