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धन्य कौन (1)  [बोध कथा]
Hindi Story - Wisdom Story (शिक्षदायक कहानी)

एक बार मुनियोंमें परस्पर इस विषयपर बड़ा विवाद हुआ कि 'किस समय थोड़ा-सा भी पुण्य अत्यधिक फलदायक होता है तथा कौन उसका सुविधापूर्वक अनुष्ठान कर सकता है ?' अन्तमें वे इस संदेहके निवारण के लिये महामुनि व्यासजी के पास गये। उस समय दैववशात् वे गङ्गाजी खान कर रहे थे। प्यों ही ऋषिगण वहाँ पहुँचे, व्यासजी डुबकी लगाकर ऊपर उठे और ऋषियों को सुनाकर जोरसे बोले-'कलियुगही श्रेष्ठ है, कलियुग ही श्रेष्ठ है।' यह कहकर वे पुनः जलमग्न हो गये। थोड़ी देर बाद जब वे जलसे पुनः | बाहर निकले, तब 'शूद्र ही धन्य है, शूद्र ही धन्य है' यों कहकर फिर डुबकी लगा ली। इस बार जब वे जलसे बाहर आये, तब - 'स्त्रियाँ ही धन्य हैं, स्त्रियाँ ही | साधु हैं; उनसे अधिक धन्य कौन है ?' यह वाक्य बोल गये और नियमानुसार ध्यानादि नित्यकर्ममें लग गये। तदनन्तर जब वे ध्यानादिसे निवृत्त हुए, तब वेमुनिजन उनके पास आये। वहाँ जब वे अभिवादनादिके बाद शान्त होकर बैठ गये, तब सत्यवतीनन्दन व्यासदेवने उनके शुभागमनका कारण पूछा। ऋषियोंने कहा- "हमें आप पहले यह बताइये कि आपने जो 'कलियुग ही श्रेष्ठ हैं, शूद्र ही धन्य हैं, स्त्रियाँ ही धन्य हैं' यह कहा इसका आशय क्या है? यदि कोई आपत्ति न हो तो पहले यही बतलानेका कष्ट करें। तदनन्तर हमलोग अपने आनेका कारण कहेंगे।"

व्यासदेवजी बोले- 'ऋषियो ! जो फल सत्ययुगमें दस वर्ष तप, ब्रह्मचर्य और धर्माचरण करनेसे प्राप्त होता है, वही त्रेतामें एक वर्ष, द्वापरमें एक मास तथा कलियुगमें केवल एक दिनमें प्राप्त होता है। * इसी कारण मैंने कलियुगको श्रेष्ठ कहा है। जो फल सत्ययुगमें योग, त्रेतामें यज्ञ और द्वापरमें पूजा करनेसे प्राप्त होता है, वही फल कलियुगमें केशवका नाम कीर्तन करनेमात्र से मिल जाता है। ऋषियो ! कलियुगमें अत्यल्प श्रम, अत्यल्प कालमें अत्यधिक पुण्यकी प्राप्ति हो जाती है, इसीलिये मैंने कलियुगको श्रेष्ठ कहा है।'

"इसी प्रकार द्विजातियोंको उपनयनपूर्वक ब्रह्मचर्य व्रतका पालन करते हुए वेदाध्ययन करना पड़ता है। तत्तद्धर्मो के अनुष्ठानमें बड़ा श्रम और शक्तिका व्यय होता है। इस प्रकार बड़े क्लेशसे उन्हें पुण्योंकी प्राप्ति होती है; पर शूद्र तो केवल द्विजोंको सेवासे ही प्रसन्नकर अनायास वे पुण्य प्राप्त कर लेता है। और स्त्रियोंको भी ये पुण्य केवल मन, वचन, कर्मसे अपने पतिकीसेवा करनेसे ही उपलब्ध हो जाते हैं, इसीलिये मैंने 'शूद्र ही धन्य हैं, स्त्रियाँ ही साधु हैं; इनसे धन्य और कौन है!' ये शब्द कहे थे। अस्तु, अब कृपया आपलोग यह बतलायें कि आपके आनेका कौन-सा शुभ कारण है ?"

ऋषियोंने कहा - 'महामुने! हमलोग जिस प्रयोजनसे आये थे, वह कार्य हो गया। हमलोगों में यही विवाद छिड़ गया था कि अल्पकालमें कब अधिक पुण्य अर्जित किया जा सकता है तथा उसे कौन सम्पादित कर सकता है। वह आपके इस स्पष्टीकरणसे समाप्त तथा निर्णीत हो चुका।'

व्यासदेवने कहा- 'ऋषियो! मैंने ध्यानसे आपके आनेकी बात जान ली थी तथा आपके हृद्गत भावोंको भी जान गया था। अतएव मैंने उपर्युक्त बातें कहीं और आपलोगोंको भी साधु-साधु कहा था। वास्तवमें जिन पुरुषोंने गुणरूप जलसे अपने सारे दोष धो डाले हैं, उनके थोड़े-से ही प्रयत्नसे कलियुगमें धर्म सिद्ध हो जाता है। इसी प्रकार शूद्रोंको द्विजसेवा तथा स्त्रियोंको पतिसेवासे अनायास ही महान् धर्मकी सिद्धि, विशाल पुण्यराशिकी प्राप्ति हो जाती है। इस प्रकार आपलोगोंकी अभीष्ट वस्तु मैंने बिना पूछे ही बतला दी थी।'

तदनन्तर उन्होंने व्यासजीका पूजन करके उनकी बार-बार प्रशंसा की और वे जैसे आये थे, वैसे ही अपने-अपने स्थानको लौट गये।

-जा0 श0

(विष्णुपुराण, अंश 6, अध्याय 2)



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dhany kaun (1)

ek baar muniyonmen paraspar is vishayapar bada़a vivaad hua ki 'kis samay thoda़aa-sa bhee puny atyadhik phaladaayak hota hai tatha kaun usaka suvidhaapoorvak anushthaan kar sakata hai ?' antamen ve is sandehake nivaaran ke liye mahaamuni vyaasajee ke paas gaye. us samay daivavashaat ve gangaajee khaan kar rahe the. pyon hee rishigan vahaan pahunche, vyaasajee dubakee lagaakar oopar uthe aur rishiyon ko sunaakar jorase bole-'kaliyugahee shreshth hai, kaliyug hee shreshth hai.' yah kahakar ve punah jalamagn ho gaye. thoda़ee der baad jab ve jalase punah | baahar nikale, tab 'shoodr hee dhany hai, shoodr hee dhany hai' yon kahakar phir dubakee laga lee. is baar jab ve jalase baahar aaye, tab - 'striyaan hee dhany hain, striyaan hee | saadhu hain; unase adhik dhany kaun hai ?' yah vaaky bol gaye aur niyamaanusaar dhyaanaadi nityakarmamen lag gaye. tadanantar jab ve dhyaanaadise nivritt hue, tab vemunijan unake paas aaye. vahaan jab ve abhivaadanaadike baad shaant hokar baith gaye, tab satyavateenandan vyaasadevane unake shubhaagamanaka kaaran poochhaa. rishiyonne kahaa- "hamen aap pahale yah bataaiye ki aapane jo 'kaliyug hee shreshth hain, shoodr hee dhany hain, striyaan hee dhany hain' yah kaha isaka aashay kya hai? yadi koee aapatti n ho to pahale yahee batalaaneka kasht karen. tadanantar hamalog apane aaneka kaaran kahenge."

vyaasadevajee bole- 'rishiyo ! jo phal satyayugamen das varsh tap, brahmachary aur dharmaacharan karanese praapt hota hai, vahee tretaamen ek varsh, dvaaparamen ek maas tatha kaliyugamen keval ek dinamen praapt hota hai. * isee kaaran mainne kaliyugako shreshth kaha hai. jo phal satyayugamen yog, tretaamen yajn aur dvaaparamen pooja karanese praapt hota hai, vahee phal kaliyugamen keshavaka naam keertan karanemaatr se mil jaata hai. rishiyo ! kaliyugamen atyalp shram, atyalp kaalamen atyadhik punyakee praapti ho jaatee hai, iseeliye mainne kaliyugako shreshth kaha hai.'

"isee prakaar dvijaatiyonko upanayanapoorvak brahmachary vrataka paalan karate hue vedaadhyayan karana pada़ta hai. tattaddharmo ke anushthaanamen bada़a shram aur shaktika vyay hota hai. is prakaar bada़e kleshase unhen punyonkee praapti hotee hai; par shoodr to keval dvijonko sevaase hee prasannakar anaayaas ve puny praapt kar leta hai. aur striyonko bhee ye puny keval man, vachan, karmase apane patikeeseva karanese hee upalabdh ho jaate hain, iseeliye mainne 'shoodr hee dhany hain, striyaan hee saadhu hain; inase dhany aur kaun hai!' ye shabd kahe the. astu, ab kripaya aapalog yah batalaayen ki aapake aaneka kauna-sa shubh kaaran hai ?"

rishiyonne kaha - 'mahaamune! hamalog jis prayojanase aaye the, vah kaary ho gayaa. hamalogon men yahee vivaad chhida़ gaya tha ki alpakaalamen kab adhik puny arjit kiya ja sakata hai tatha use kaun sampaadit kar sakata hai. vah aapake is spashteekaranase samaapt tatha nirneet ho chukaa.'

vyaasadevane kahaa- 'rishiyo! mainne dhyaanase aapake aanekee baat jaan lee thee tatha aapake hridgat bhaavonko bhee jaan gaya thaa. ataev mainne uparyukt baaten kaheen aur aapalogonko bhee saadhu-saadhu kaha thaa. vaastavamen jin purushonne gunaroop jalase apane saare dosh dho daale hain, unake thoda़e-se hee prayatnase kaliyugamen dharm siddh ho jaata hai. isee prakaar shoodronko dvijaseva tatha striyonko patisevaase anaayaas hee mahaan dharmakee siddhi, vishaal punyaraashikee praapti ho jaatee hai. is prakaar aapalogonkee abheesht vastu mainne bina poochhe hee batala dee thee.'

tadanantar unhonne vyaasajeeka poojan karake unakee baara-baar prashansa kee aur ve jaise aaye the, vaise hee apane-apane sthaanako laut gaye.

-jaa0 sha0

(vishnupuraan, ansh 6, adhyaay 2)

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