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नीचा सिर क्यों  [छोटी सी कहानी]
Spiritual Story - Spiritual Story (प्रेरक कथा)

एक सज्जन बड़े ही दानी थे, उनका हाथ सदा ही ऊँचा रहता था; परंतु वे किसीकी ओर नजर उठाकर देखते नहीं थे। एक दिन किसीने उनसे कहा- 'आप इतना देते हैं पर आँखें नीची क्यों रखते हैं ? चेहरा न देखनेसे आप किसीको पहचान नहीं पाते, इसलिये कुछ लोग आपसे दुबारा भी ले जाते हैं।' इसपर उन्होंनेकहा- 'भाई !

देनहार कोउ और है देत रहत दिन रैन । लोग भरम हम पर धेरै आते नीचे नैन ॥ देनेवाला तो कोई दूसरा (भगवान्) ही है। मैं तो निमित्तमात्र हूँ। लोग मुझे दाता कहते हैं। इसलिये शर्मके मारे मैं आँखें ऊँची नहीं कर सकता।'



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neecha sir kyon

ek sajjan bada़e hee daanee the, unaka haath sada hee ooncha rahata thaa; parantu ve kiseekee or najar uthaakar dekhate naheen the. ek din kiseene unase kahaa- 'aap itana dete hain par aankhen neechee kyon rakhate hain ? chehara n dekhanese aap kiseeko pahachaan naheen paate, isaliye kuchh log aapase dubaara bhee le jaate hain.' isapar unhonnekahaa- 'bhaaee !

denahaar kou aur hai det rahat din rain . log bharam ham par dherai aate neeche nain .. denevaala to koee doosara (bhagavaan) hee hai. main to nimittamaatr hoon. log mujhe daata kahate hain. isaliye sharmake maare main aankhen oonchee naheen kar sakataa.'

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कोई कहे गोविंदा कोई गोपाला,
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