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पापका बाप कौन  [आध्यात्मिक कहानी]
छोटी सी कहानी - Story To Read (Story To Read)

पण्डित चन्द्रशेखरजी दीर्घ कालतक न्याय, व्याकरण, धर्मशास्त्र, वेदान्त आदिका अध्ययन करके काशीसे घर लौटे थे। सहसा उनसे किसीने पूछ दिया- 'पापका बाप । कौन ?' पण्डितजीने बहुत सोचा, ग्रन्थोंके पृष्ठ भी बहुत उलटे; किंतु कहीं उन्हें इसका उत्तर नहीं मिला। सच्चा सच्चा जिज्ञासु होता है। पण्डित चन्द्रशेखरजी अपने प्रश्नका उत्तर पाने फिर काशी आये। वहाँ भी उन्हें उत्तर नहीं मिला तो उन्होंने यात्रा प्रारम्भ कर दी। अनेक में अनेक विद्वानोंके स्थानोंपर वे गये किंतु उनका संतोष कहीं नहीं हुआ।

पति चन्द्रशेखरजी देशाटन करते हुए पूना सदाशिव पेठसे जा रहे थे वहाँको विलासिनी नामकी झरोखेपर बैठी थी उसकी दृष्टि चन्द्रशेखर जीपर पड़ी। चतुर वेश्या दासीसे बोली- 'यह ब्राह्मण रंग इंगसे विद्वान् जान पड़ता है; किंतु यह इतना उदास क्यों है ? तू पता तो लगा।'

दासी भवनसे बाहर आयी। उसने ब्राह्मणको प्रणाम किया और पूछा- महाराज! मेरी स्वामिनी पूछती हैं कि आप इतने उदास क्यों हैं ?'

ब्राह्मणने कहा—'मुझे न कोई रोग है न धनकी इच्छा। अपनी स्वामिनीसे कहना कि वे मेरी कोई सहायता नहीं कर सकतीं। यह तो शास्त्रीय बात है!' दासीने हठ किया—'कोई हानि न हो तो आप वह बात बता दें।'

ब्राह्मणने प्रश्न बता दिया। वे कुछ ही आगे बढ़े थे। कि दासी दौड़ती हुई आयी और बोली- 'मेरी स्वामिनी कहती हैं कि आपका प्रश्न तो बहुत सरल है। उसका वे बतला सकती हैं; किंतु इसके लिये आपको वहाँ कुछ दिन रुकना पड़ेगा।'

चन्द्रशेखरजीने सहर्ष यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उनके लिये वेश्याने एक अलग भवन ही दे दिया और उनके पूजा-पाठ तथा भोजनादिको व्यवस्थाकरा दी। चन्द्रशेखरजी बड़े कर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे अपने । हाथसे ही जल भरकर स्वयं भोजन बनाते थे। विलासिनी नित्य उनको प्रणाम करने आती थी एक दिन उसने कहा- 'भगवन्। आप स्वयं अग्निके सामने बैठकर भोजन बनाते हैं, आपको धुआँ लगता है यह | देखकर मुझे बड़ा कष्ट होता है। आप आज्ञा दें तो मैं प्रतिदिन स्नान करके, पवित्र वस्त्र पहिनकर भोजन बना दिया करूँ। आप इस सेवाका अवसर प्रदान करें तो मैं प्रतिदिन दस स्वर्णमुद्राएँ दक्षिणारूपमें अर्पित करूँगी। आप ब्राह्मण हैं, विद्वान् हैं, तपस्वी हैं। इतनी दया कर दें तो आपकी इस तुच्छ सेवासे मुझ अपवित्र पापिनीका भी उद्धार हो जायगा।'

सरल हृदय ब्राह्मणके चित्तपर वेश्याको नम्र प्रार्थनाका प्रभाव पड़ा। पहले तो उनके मनमें बड़ी हिचक हुई, किंतु फिर लोभने प्रेरणा दी इसमें हानि क्या है? बेचारी प्रार्थना कर रही है, स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर भोजन बनायेगी और यहाँ अपने गाँव-घरका कोई देखने तो आता नहीं दस सोनेकी मोहरें मिलेंगी। कोई दोष ही हो तो पीछे प्रायश्चित्त कर लिया जा सकता है।' चन्द्रशेखरजीने वेश्याकी बात स्वीकार कर ली।

भोजन बनाया वेश्याने बड़ी श्रद्धासे उसने ब्राह्मणके पैर धुलाये, सुन्दर पट्टा बिछा दिया और नाना प्रकारके सुस्वादु सुगन्धित पकवानोंसे भरा बड़ा-सा थाल उनके सामने परोस दिया। किंतु जैसे ही ब्राह्मणने थालीमें हाथ डालना चाहा, वेश्याने थाल शीघ्रतासे खिसका दिया। चकित ब्राह्मणसे वह बोली-'आप मुझे क्षमा करें। एक कर्मनिष्ठ ब्राह्मणको मैं आचारच्युत नहीं करना चाहती थी। मैं तो आपके प्रश्नका उत्तर देना चाहती थी जो दूसरेका लाया जल भी भोजन बनाने या पीनेके काम में नहीं लेते थे शास्त्रज्ञ, सदाचारी ब्राह्मण जिसके वशमें होकर एक वेश्याका बनाया भोजन स्वीकार करनेको उद्यत हो गये, वह लोभ ही पापका बाप है।

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paapaka baap kauna

pandit chandrashekharajee deergh kaalatak nyaay, vyaakaran, dharmashaastr, vedaant aadika adhyayan karake kaasheese ghar laute the. sahasa unase kiseene poochh diyaa- 'paapaka baap . kaun ?' panditajeene bahut socha, granthonke prishth bhee bahut ulate; kintu kaheen unhen isaka uttar naheen milaa. sachcha sachcha jijnaasu hota hai. pandit chandrashekharajee apane prashnaka uttar paane phir kaashee aaye. vahaan bhee unhen uttar naheen mila to unhonne yaatra praarambh kar dee. anek men anek vidvaanonke sthaanonpar ve gaye kintu unaka santosh kaheen naheen huaa.

pati chandrashekharajee deshaatan karate hue poona sadaashiv pethase ja rahe the vahaanko vilaasinee naamakee jharokhepar baithee thee usakee drishti chandrashekhar jeepar pada़ee. chatur veshya daaseese bolee- 'yah braahman rang ingase vidvaan jaan pada़ta hai; kintu yah itana udaas kyon hai ? too pata to lagaa.'

daasee bhavanase baahar aayee. usane braahmanako pranaam kiya aur poochhaa- mahaaraaja! meree svaaminee poochhatee hain ki aap itane udaas kyon hain ?'

braahmanane kahaa—'mujhe n koee rog hai n dhanakee ichchhaa. apanee svaamineese kahana ki ve meree koee sahaayata naheen kar sakateen. yah to shaastreey baat hai!' daaseene hath kiyaa—'koee haani n ho to aap vah baat bata den.'

braahmanane prashn bata diyaa. ve kuchh hee aage badha़e the. ki daasee dauda़tee huee aayee aur bolee- 'meree svaaminee kahatee hain ki aapaka prashn to bahut saral hai. usaka ve batala sakatee hain; kintu isake liye aapako vahaan kuchh din rukana pada़egaa.'

chandrashekharajeene saharsh yah prastaav sveekaar kar liyaa. unake liye veshyaane ek alag bhavan hee de diya aur unake poojaa-paath tatha bhojanaadiko vyavasthaakara dee. chandrashekharajee bada़e karmanishth braahman the apane . haathase hee jal bharakar svayan bhojan banaate the. vilaasinee nity unako pranaam karane aatee thee ek din usane kahaa- 'bhagavan. aap svayan agnike saamane baithakar bhojan banaate hain, aapako dhuaan lagata hai yah | dekhakar mujhe bada़a kasht hota hai. aap aajna den to main pratidin snaan karake, pavitr vastr pahinakar bhojan bana diya karoon. aap is sevaaka avasar pradaan karen to main pratidin das svarnamudraaen dakshinaaroopamen arpit karoongee. aap braahman hain, vidvaan hain, tapasvee hain. itanee daya kar den to aapakee is tuchchh sevaase mujh apavitr paapineeka bhee uddhaar ho jaayagaa.'

saral hriday braahmanake chittapar veshyaako namr praarthanaaka prabhaav pada़aa. pahale to unake manamen bada़ee hichak huee, kintu phir lobhane prerana dee isamen haani kya hai? bechaaree praarthana kar rahee hai, snaan karake shuddh vastr pahanakar bhojan banaayegee aur yahaan apane gaanva-gharaka koee dekhane to aata naheen das sonekee moharen milengee. koee dosh hee ho to peechhe praayashchitt kar liya ja sakata hai.' chandrashekharajeene veshyaakee baat sveekaar kar lee.

bhojan banaaya veshyaane bada़ee shraddhaase usane braahmanake pair dhulaaye, sundar patta bichha diya aur naana prakaarake susvaadu sugandhit pakavaanonse bhara bada़aa-sa thaal unake saamane paros diyaa. kintu jaise hee braahmanane thaaleemen haath daalana chaaha, veshyaane thaal sheeghrataase khisaka diyaa. chakit braahmanase vah bolee-'aap mujhe kshama karen. ek karmanishth braahmanako main aachaarachyut naheen karana chaahatee thee. main to aapake prashnaka uttar dena chaahatee thee jo doosareka laaya jal bhee bhojan banaane ya peeneke kaam men naheen lete the shaastrajn, sadaachaaree braahman jisake vashamen hokar ek veshyaaka banaaya bhojan sveekaar karaneko udyat ho gaye, vah lobh hee paapaka baap hai.

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