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पिता-पुत्र  [Short Story]
छोटी सी कहानी - Story To Read (Wisdom Story)

(4)

पिता-पुत्र

किसी नगरमें एक व्यापारी रहता था, जो परिस्थितिवश निर्धन हो गया था। उसका एक छोटा-सा लड़का भी था। गरीबीके कारण गृहस्थी चल नहीं रही थी, सो वह रुपया कमाने परदेश चला गया—पत्नी और लड़केको घर छोड़ गया। वह काशीपुरी पहुँचा और वहाँ उसने व्यापारसे बहुत-सा धन इकट्ठा किया। तब उसने सोचा कि धनका कुछ अंश परमार्थमें भी लगाना चाहिये। सो उसने काशी में ही एक विशाल मन्दिर बनवाना प्रारम्भ किया। अबतक उसका लड़का भी 12 वर्षका हो गया था। एक दिन उसने अपनी माँसे पूछा कि 'उसके पिता कहाँ हैं, उन्हें तो कभी देखा नहीं।' माँने कहा- 'बेटा! वे काशी गये हैं; तेरे पिता जब गये थे, तब तू एक बरसका था। वे अभीतक लौटकर नहीं आये।' बेटेने कहा-'मैं उन्हें ढूँढ़ने जाता हूँ।' ऐसा कहकर वह चल दिया और काशी पहुँचा। काशीमें खूब भटका, परंतु पिताका पता नहीं चला; क्योंकि एक-दूसरेके सामने आते भी होंगे तो वे एक-दूसरेको पहचानते ही नहीं थे। तब बेटेके पासका धन भी समाप्त हो गया। हारकर वह मजदूरी करने निकला, तो वहीं पहुँच गया, जहाँ उसका पिता मन्दिरका निर्माण करा रहा था। वहाँपर काम करानेवाले ठेकेदारने उसे मजदूरीके लिये रख लिया। वह अन्य मजदूरोंके साथ वहाँ मजदूरी करने लगा। एक दिन व्यापारीने इस लड़केको देखा, शक्ल सूरतसे यह भले घरका लगता था, सो उसने पूछा कि 'तुम कहाँसे आये हो ? कौन हो ? यहाँ मजदूरी क्यों करते हो ?' तब लड़केने सब हाल सुना दिया। व्यापारी पहचान गया कि यह तो मेरा ही लड़का है, सो घर ले गया। नहला धुलाकर उत्तम वस्त्र पहनाये और अपनी गद्दीपर बैठाकर उसे मालिक बना दिया ।
भावार्थ - हे चित्त, तू इस कहानीसे इतना ही समझ ले कि जीवरूपी पुत्र जब महान् प्रयत्न करके अपने पिता (परमात्मा) की खोज करता है, तब अवश्य ही अपने पितासे जा मिलता है। जबतक जीव बाहर (काशीपुरी) - में खोजता है, तबतक परमात्मा नहीं मिलता, जब वह अपने भीतर (कायापुरी) में खोजता है तो परमपितासे साक्षात्कार हो जाता है।



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pitaa-putra

(4)

pitaa-putra

kisee nagaramen ek vyaapaaree rahata tha, jo paristhitivash nirdhan ho gaya thaa. usaka ek chhotaa-sa lada़ka bhee thaa. gareebeeke kaaran grihasthee chal naheen rahee thee, so vah rupaya kamaane paradesh chala gayaa—patnee aur lada़keko ghar chhoda़ gayaa. vah kaasheepuree pahuncha aur vahaan usane vyaapaarase bahuta-sa dhan ikattha kiyaa. tab usane socha ki dhanaka kuchh ansh paramaarthamen bhee lagaana chaahiye. so usane kaashee men hee ek vishaal mandir banavaana praarambh kiyaa. abatak usaka lada़ka bhee 12 varshaka ho gaya thaa. ek din usane apanee maanse poochha ki 'usake pita kahaan hain, unhen to kabhee dekha naheen.' maanne kahaa- 'betaa! ve kaashee gaye hain; tere pita jab gaye the, tab too ek barasaka thaa. ve abheetak lautakar naheen aaye.' betene kahaa-'main unhen dhoondha़ne jaata hoon.' aisa kahakar vah chal diya aur kaashee pahunchaa. kaasheemen khoob bhataka, parantu pitaaka pata naheen chalaa; kyonki eka-doosareke saamane aate bhee honge to ve eka-doosareko pahachaanate hee naheen the. tab beteke paasaka dhan bhee samaapt ho gayaa. haarakar vah majadooree karane nikala, to vaheen pahunch gaya, jahaan usaka pita mandiraka nirmaan kara raha thaa. vahaanpar kaam karaanevaale thekedaarane use majadooreeke liye rakh liyaa. vah any majadooronke saath vahaan majadooree karane lagaa. ek din vyaapaareene is lada़keko dekha, shakl sooratase yah bhale gharaka lagata tha, so usane poochha ki 'tum kahaanse aaye ho ? kaun ho ? yahaan majadooree kyon karate ho ?' tab lada़kene sab haal suna diyaa. vyaapaaree pahachaan gaya ki yah to mera hee lada़ka hai, so ghar le gayaa. nahala dhulaakar uttam vastr pahanaaye aur apanee gaddeepar baithaakar use maalik bana diya .
bhaavaarth - he chitt, too is kahaaneese itana hee samajh le ki jeevaroopee putr jab mahaan prayatn karake apane pita (paramaatmaa) kee khoj karata hai, tab avashy hee apane pitaase ja milata hai. jabatak jeev baahar (kaasheepuree) - men khojata hai, tabatak paramaatma naheen milata, jab vah apane bheetar (kaayaapuree) men khojata hai to paramapitaase saakshaatkaar ho jaata hai.

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