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भगवत्सेवक अजेय है  [शिक्षदायक कहानी]
हिन्दी कहानी - शिक्षदायक कहानी (हिन्दी कहानी)

(महावीर हनूमान्जी )

जयत्यतिबलो रामो लक्ष्मणश्च महाबलः ।

राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालितः ॥

दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः ।

हनूमान् शत्रुसैन्यानां निहन्ता मारुतात्मजः ॥

न रावणसहस्रं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत् ।

शिलाभिश्च प्रहरतः पादपैश्च सहस्रशः ॥

अर्दयित्वा पुरीं लङ्कामभिवाद्य च मैथिलीम् ।

समृद्धार्थो गमिष्यामि मिषतां सर्वरक्षसाम् ।।

- वाल्मीकीय रामायण सुन्दरकाण्ड 42 33 से 36

महावीर श्रीहनूमान्जी समुद्र-लङ्घन करके लङ्कामें । पहुँच गये थे। उन्होंने अशोकवाटिकामें श्रीजानकीजीके दर्शन कर लिये थे और उनको श्रीराघवेन्द्रका कुशल संवाद सुना दिया था। अब तो वे श्रीविदेहनन्दिनीकी अनुमति प्राप्त करके अशोकवाटिकामें पहुँच गये थे।

त्रिभुवनजयी राक्षसराज रावणकी परमप्रिय वाटिका ध्वस्त हो रही थी वृक्षोंकी पंक्तियाँ धराशायी पड़ी थीं। तरुशाखाएँ छिन्न-भिन्न हो गयी थीं। जहाँ-तहाँ ठूंठ खड़े थे और उनके मध्य हेमाभ, पर्वताकारदेह, प्रचण्डमूर्ति श्रीपवनकुमार बार - बार हुंकार करते कूद रहे थे, गिराते-तोड़ते जा रहे थे वृक्षोंको । उपवनके रक्षकोंमेंसे एक किसी प्रकार साहस करके आगे बढ़ा। कुछ दूरसे ही उसने पूछा- 'निर्भीक कपि ! तू कौन है ?'

जैसे विशाल पर्वतके सम्मुख छोटा-सा भैंसा खड़ा हो। वृक्षोंसे भी ऊपर मस्तक उठाये केशरीकुमारके सम्मुख कुछ दूर खड़ा वह राक्षस-एक बार उसकी ओर देखा श्रीरामदूतने। वे स्थिर खड़े हो गये और उनकी भुवनघोषी हुंकार गूँज उठी- 'अमित पराक्रम श्रीराघवेन्द्रकी जय ! महाबलशाली कुमार लक्ष्मणकी जय! श्रीरघुनाथजीद्वारा रक्षित वानरराज सुग्रीवकी जय !मैं अद्भुतकर्मा कोसलेन्द्र श्रीरामका दूत हू । राक्षस! शत्रुसेनाके संहारक मुझ पवनपुत्रका नाम हनूमान् है। सुन ले भली प्रकार ! पर्वतशिखरों और सहस्रों वृक्षोंसे मैं जब प्रहार करने लगूंगा तब संग्राममें एक सहस्र रावण भी मेरा सामना नहीं कर सकेंगे। तुमलोग सावधान हो जाओ! इस उपवनको ही नहीं, पूरी लङ्कापुरीको चौपट करके, श्रीजानकीको प्रणाम करके, तुम सब राक्षसोंके देखते-देखते मैं अपना कार्य पूर्ण करके यहाँसे जाऊँगा।'

यह निर्भय गर्जना गर्वकी नहीं थी। यह थी अपने सर्वसमर्थ स्वामीके प्रति विश्वासकी अभय गर्जना । भुवनविजयी रावण देखता रह गया और उसकी लङ्का भस्म कर दी - अकेले हनूमान्ने भस्म कर दी। कैलासको उठा लेनेवाला रावण, महेन्द्रको बंदी बनानेवाला मेघनाद और सुरासुरजयी राक्षसवीर-सभी थे, सभी देखते रहे; किंतु किसीके किये कुछ नहीं हो सका। लङ्काको भस्म करके श्रीजनकनन्दिनीके चरणोंमें प्रणाम करके समस्त राक्षसोंके देखते-देखते हनूमान् सकुशल लौट गये। त्रिभुवनके स्वामीके सेवकको पराजित कर कौन सकता है? वह तो नित्य अजेय है।



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bhagavatsevak ajey hai

(mahaaveer hanoomaanjee )

jayatyatibalo raamo lakshmanashch mahaabalah .

raaja jayati sugreevo raaghavenaabhipaalitah ..

daaso'han kosalendrasy raamasyaaklishtakarmanah .

hanoomaan shatrusainyaanaan nihanta maarutaatmajah ..

n raavanasahasran me yuddhe pratibalan bhavet .

shilaabhishch praharatah paadapaishch sahasrashah ..

ardayitva pureen lankaamabhivaady ch maithileem .

samriddhaartho gamishyaami mishataan sarvarakshasaam ..

- vaalmeekeey raamaayan sundarakaand 42 33 se 36

mahaaveer shreehanoomaanjee samudra-langhan karake lankaamen . pahunch gaye the. unhonne ashokavaatikaamen shreejaanakeejeeke darshan kar liye the aur unako shreeraaghavendraka kushal sanvaad suna diya thaa. ab to ve shreevidehanandineekee anumati praapt karake ashokavaatikaamen pahunch gaye the.

tribhuvanajayee raakshasaraaj raavanakee paramapriy vaatika dhvast ho rahee thee vrikshonkee panktiyaan dharaashaayee pada़ee theen. tarushaakhaaen chhinna-bhinn ho gayee theen. jahaan-tahaan thoonth khada़e the aur unake madhy hemaabh, parvataakaaradeh, prachandamoorti shreepavanakumaar baar - baar hunkaar karate kood rahe the, giraate-toda़te ja rahe the vrikshonko . upavanake rakshakonmense ek kisee prakaar saahas karake aage badha़aa. kuchh doorase hee usane poochhaa- 'nirbheek kapi ! too kaun hai ?'

jaise vishaal parvatake sammukh chhotaa-sa bhainsa khada़a ho. vrikshonse bhee oopar mastak uthaaye keshareekumaarake sammukh kuchh door khada़a vah raakshasa-ek baar usakee or dekha shreeraamadootane. ve sthir khada़e ho gaye aur unakee bhuvanaghoshee hunkaar goonj uthee- 'amit paraakram shreeraaghavendrakee jay ! mahaabalashaalee kumaar lakshmanakee jaya! shreeraghunaathajeedvaara rakshit vaanararaaj sugreevakee jay !main adbhutakarma kosalendr shreeraamaka doot hoo . raakshasa! shatrusenaake sanhaarak mujh pavanaputraka naam hanoomaan hai. sun le bhalee prakaar ! parvatashikharon aur sahasron vrikshonse main jab prahaar karane lagoonga tab sangraamamen ek sahasr raavan bhee mera saamana naheen kar sakenge. tumalog saavadhaan ho jaao! is upavanako hee naheen, pooree lankaapureeko chaupat karake, shreejaanakeeko pranaam karake, tum sab raakshasonke dekhate-dekhate main apana kaary poorn karake yahaanse jaaoongaa.'

yah nirbhay garjana garvakee naheen thee. yah thee apane sarvasamarth svaameeke prati vishvaasakee abhay garjana . bhuvanavijayee raavan dekhata rah gaya aur usakee lanka bhasm kar dee - akele hanoomaanne bhasm kar dee. kailaasako utha lenevaala raavan, mahendrako bandee banaanevaala meghanaad aur suraasurajayee raakshasaveera-sabhee the, sabhee dekhate rahe; kintu kiseeke kiye kuchh naheen ho sakaa. lankaako bhasm karake shreejanakanandineeke charanonmen pranaam karake samast raakshasonke dekhate-dekhate hanoomaan sakushal laut gaye. tribhuvanake svaameeke sevakako paraajit kar kaun sakata hai? vah to nity ajey hai.

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