बहुत पहलेकी बात है कोई नरोत्तम नामका ब्राह्मण था। उसके घरमें माँ-बाप थे। तथापि वह उनकी परिचर्या न कर तीर्थयात्राके लिये निकल पड़ा। उसने अनेक तीर्थोंमें पर्यटन तथा अवगाहन किया, जिसके प्रतापसे उसके गीले वस्त्र निरालम्ब आकाशमें उड़ने और सूखने लगे। जब उसने यों ही स्वच्छन्द गतिसे अपने वस्त्रोंको आकाशमें उड़ते चलते देखा, तब उसे अपनी तीर्थचर्याका महान् अहंकार हो गया। वह समझने लगा कि मेरे समान पुण्यकर्मा यशस्वी इस संसार में दूसरा कोई भी नहीं है। एक बार उसने ऐसा ही कहीं कह भी दिया। तबतक उसके सिरपर एक बगुलेने बीट कर दी। क्रुद्ध होकर नरोत्तमने बगुलेको शाप दे दिया, जिससे वह बगुला वहीं जलकर भस्म हो गया। पर आश्चर्य! तबसे उसके कपड़ेका आकाशमें उड़ना और सूखना बंद हो गया। अब नरोत्तम बड़ा उदास हो गया। तबतक आकाशवाणी हुई- 'ब्राह्मण। तुम परम धार्मिक मूक चाण्डालके पास जाओ, वहीं 'धर्म क्या है इसका तुम्हें पता चल जायगा तथा तुम्हारा कल्याण भी होगा। 1 माता-पिताकी सेवा करनेवालेके घर नरोत्तमको इससे बड़ा कुतूहल हुआ। वह तुरंत पता लगाता हुआ मूक चाण्डालके घर पहुंचा। वहाँ मूक बड़ी श्रद्धासे अपने माता-पिताकी शुश्रूषामें लगा था। उसके विलक्षण पुण्य-प्रतापसे भगवान् विष्णु निरालम्ब उसके घर अन्तरिक्षमें वर्तमान थे। वहाँ पहुँचते ही नरोत्तमने मूकको आवाज दी और कहा-'अरे मैं यहाँ आया हूँ, तुम मुझे यहाँ आकर शाश्वत हितकारी धर्मतत्त्वका स्वरूपतः वर्णन सुनाओ।'
मूक बोला-'मैं अपने माता-पिताकी सेवामें लगा हूँ। इनकी विधिपूर्वक परिचर्या करके तुम्हारा कार्य करूँगा। तबतक चुपचाप दरवाजेपर बैठे रहो मैं तुम्हारा आतिथ्य करना चाहता हूँ।'
अब तो नरोत्तमकी त्योरी चढ़ गयी। वह बड़ेजोरों से बिगड़कर बोला- अरे मुझ ब्राह्मणकी सेवा बड़कर तुम्हारा क्या काम आ गया है? तुमने मुझे हैंसी खेल समझ रखा है क्या?' मूकने कहा- 'ब्राह्मण देवता! मैं बगुला नहीं हूँ। तुम्हारा क्रोध बस, बगुलेपर ही चरितार्थ हो सकता है, अन्यत्र कहीं नहीं। यदि तुम्हें मुझसे कुछ पूछना है तो तुम्हें यहाँ ठहरकर प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी। यदि तुम्हारा यहाँ ठहरना कठिन ही हो तो तुम पतिव्रताके यहाँ जाओ। उसके दर्शनसे तुम्हारे अभीष्टकी सिद्धि हो सकेगी।'
2 पतिव्रताके घर
तद्विरूपधारी विष्णु चाण्डालके परसे बाहर निकल पड़े और नरोत्तमसे बोले 'चलो, मैं तुम्हें पतिव्रताका घर दिखला दूँ।' अब नरोत्तम उनके साथ हो लिया। उसने उनसे पूछा- 'ब्राह्मण! तुम इस चाण्डालके घर स्त्रियोंमें आवृत होकर क्यों रहते हो ?" भगवान् बोले- 'इसका रहस्य तुम पतिव्रता आदिका दर्शन करनेपर स्वयमेव समझ जाओगे।'
नरोत्तमने पूछा- 'महाराज ! यह पतिव्रता कौन-सी बला है ? पतिव्रताका लक्षण तथा महत्त्व क्या है ? क्या आप इस सम्बन्धमें कुछ जानते हैं?' भगवान्ने कहा -- 'पतित्रता स्त्री अपने दोनों कुलोंके सभी पुरुषोंका उद्धार कर देती है। प्रलयपर्यन्त वह स्वर्ग भोग करती है। कालान्तरमें जब वह जन्म लेती है, तब उसका पति सार्वभौम राजा होता है। सैकड़ों जन्मोंतक यह क्रम चलकर अन्तमें उन दोनों पति-पत्नीका मोक्ष होता है। जो स्त्री प्रेममें अपने पुत्रसे सौगुना तथा भवमें राजासे सौगुना पतिसे प्रेम तथा भय करती है, उसे पतिव्रता कहते हैं। जो काम करनेमें दासीके समान, भोजन कराने में माताके समान, विहारमें वेश्याके समान, विपत्तियों में मन्त्री के समान हो, उसे पतिव्रता कहते हैं। वैसी ही यहाँ एक शुभा नामकी पतिव्रता स्त्री है। तुम उससे जाकर 'धर्मके रहस्योंको समझो।"अब नरोत्तम पतिव्रताके दरवाजेपर पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने आवाज लगायी। पतिव्रता आवाज सुनकर बाहर आ गयी। नरोत्तम बोला- 'मुझे धर्मका रहस्य समझाओ।' पतिव्रता बोली- 'ब्राह्मण देवता ! मैं स्वतन्त्र नहीं हूँ। इस समय मुझे पतिकी परिचर्या करनी है। अभी तो आप अतिथिके रूपमें मेरे यहाँ विराजें । पतिसेवासे निवृत्त होकर मैं आपका कार्य करूँगी।' नरोत्तम बोला, 'कल्याणि ! मुझे आतिथ्यकी कोई आवश्यकता नहीं है। न तो मुझे भूख है, न प्यास और न थकावट । तुम मुझे साधारण ब्राह्मण समझकर खेल मत करो। यदि तुम मेरी बात नहीं मानती हो तो मैं तुम्हें शाप दूँगा ।'
पतिव्रताने कहा- 'मैं बगुला नहीं हूँ । यदि तुम्हें ऐसी ही जल्दी है तो तुम तुलाधार वैश्यके पास चले जाओ। वह तुम्हारा कार्य कर सकेगा।'
3 लोभरहित सत्यवादी वैश्यके घर
नरोत्तम उस वैश्यके घर पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने उस ब्राह्मणको फिर देखा, जिसे चाण्डालके घरमें देखा था। तुलाधार व्यापारके कार्यमें बेतरह फँसा था । उसने कहा- 'ब्राह्मण देवता! एक प्रहर राततक मुझे अवकाश नहीं। आप कृपया अद्रोहकके पास पधारें; वह आपके द्वारा बगुलेकी मृत्यु, वस्त्रोंका उड़ना और फिर न उड़नेके रहस्योंको यथाविधि बतला सकेगा।' वह ब्राह्मण फिर नरोत्तमके साथ हो गया। नरोत्तमने उससे पूछा- 'ब्राह्मण! आश्चर्य है, यह तुलाधार स्नान, संध्या, देवर्षि, पितृ तर्पण आदिसे सर्वथा रहित है। इसका शरीर मलका भण्डार हो रहा है। इसके सारे वस्त्र भी बेढंगे हो रहे हैं, तथापि यह मेरी सारी बातोंको जो इसके परोक्षमें घटी हैं, कैसे जान गया ?'ब्राह्मण-रूपधारी भगवान् बोले- 'इसने सत्य और समतासे तीनों लोकोंको जीत लिया है। यह मुनिगणोंके साथ देवता और पितरोंको भी तृप्त कर चुका और इसीके प्रभावसे भूत, भविष्य और वर्तमानकी परोक्ष घटनाओंको भी जान सकता है। सत्यसे बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं, झूठसे बड़ा कोई दूसरा पातक नहीं। इसी प्रकार समताकी भी महत्ता है। शत्रु मित्र, मध्यस्थ-इन तीनोंमें जिसका समान भाव उत्पन्न हो गया है, उसके सारे पाप क्षीण हो गये और वह विष्णु सायुज्यको प्राप्त कर लेता है। जिस व्यक्तिमें सत्य, शम, दम, धैर्य, स्थैर्य, अनालस्य, अनाश्चर्य, निर्लोभिता और समता-जैसे गुण हैं, उसमें सारा विश्व ही प्रतिष्ठित है। ऐसा पुरुष करोड़ों कुलोंका उद्धार कर लेता है। उसके शरीरमें साक्षात् भगवान् विराजमान हैं। वह देवलोक नरलोकके सभी वृत्तान्तोंको जान सकता है।' * नरोत्तमने कहा- 'अस्तु! तुलाधारकी सर्वज्ञताका कारण मुझे ज्ञात हो गया; पर अद्रोहक कौन तथा किस प्रभाववाला है, क्या यह आप जानते हैं ?'
4 जितेन्द्रिय मित्रके घर
विप्ररूपी भगवान् बोले- "कुछ समय पूर्वकी बात है। एक राजकुमारकी स्त्री बड़ी सुन्दरी तथा युवती थी। एक दिन उस राजकुमारको अपने पिताकी आज्ञासे कहीं बाहर जानेकी आवश्यकता हुई। अब वह स्त्रीके सम्बन्धमें सोचने लगा कि कहाँ उसे रखा जाय, जहाँ उसकी पूरी सुरक्षा हो सके। अन्तमें वह अद्रोहकके घर गया और अपनी स्त्रीके रक्षार्थ उसने प्रार्थना की। अद्रोहकने कहा-'न तो मैं तुम्हारा पिता हूँ न भाई बन्धु तुम्हारे मित्रोंमेंसे भी मैं नहीं होता, फिर तुम ऐसा प्रस्ताव क्यों कर रहे हो ?'
"राजकुमार बोला- 'महात्मन्! इस विश्वमें आप जैसा धर्मज्ञ और जितेन्द्रिय कोई दूसरा नहीं है, इसे मैं भली प्रकार जानता हूँ। यह अब आपके घरमें ही रहेगी, आप ही जैसे हो इसकी रक्षा कीजियेगा।' यों कहकर वह राजकुमार चला गया। अद्रोहकने बड़े धैर्यसे उसकी रक्षा की। छः मासके बाद राजकुमार पुनः लौटा। उसने लोगोंसे अपनी स्त्री तथा अद्रोहकके प्रबन्धके सम्बन्धमें पूछ-ताछ की। अधिकांश लोगोंने अद्रोहककी निन्दा की। बात अद्रोहकको भी मालूम हुई। उसने लोकनिन्दासे मुक्त होनेके लिये एक बड़ी चिता बनाकर उसमें आग लगा दी; तबतक राजकुमार वहाँ पहुँच गया। अद्रोहकको उसने रोकना चाहा। पर उन्होंने एक न सुनी और अग्निमें प्रवेश कर गये। फिर भी अग्निने उनके अङ्गों तथा वस्त्रोंको नहीं जलाया। देवताओंने साधुवाद दिया और अद्रोहकके मस्तकपर फूलोंकी वर्षा की। जिन लोगोंने अद्रोहककी निन्दा की थी, उनके मुँहपर अनेकों प्रकारकी कोढ़ हो गयी। देवताओंने ही उन्हें अग्निसे बाहर किया। उनका चरित्र सुनकर मुनियोंको भी बड़ा विस्मय हुआ ।देवताओंने राजकुमारसे कहा- 'तुम अपनी स्त्रीको स्वीकार करो। इन अद्रोहकके समान कोई मनुष्य इस संसारमें नहीं हुआ है।' तदनन्तर वे राजकुमार दम्पति अपने राजमहलको चले गये। तबसे अद्रोहकको भी दिव्य दृष्टि हो गयी है।"
तत्पश्चात् नरोत्तम अद्रोहकके पास पहुँचे और उनका दर्शन किया। जब अद्रोहकने उनके पधारनेका कारण पूछा, तब उसने धोतियोंके न सूखने, बगुलेके बीट करने और उसके जलनेका रहस्य पूछा। अद्रोहकने उन्हें वैष्णवके पास जानेको कहा। वैष्णवने कहा- 'भीतर चलकर भगवान्का दर्शन कीजिये।' भीतर जानेपर नरोत्तमने देखा कि वे ही ब्राह्मण जो चाण्डाल, पतिव्रता एवं धर्मव्याधके घरमें थे और जो 'उसे बराबर राह बतलाते रहे थे, उस मन्दिरमें वर्तमान हैं। वहाँ उन्होंने सब बातोंका समाधान कर दिया और उसे माता-पिताकी सेवाकी आज्ञा दी। तबसे नरोत्तम घर लौट आया और माता-पिताकी दृढ़ भक्तिमें तल्लीन हो गया।
(पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड, अध्याय 47)
bahut pahalekee baat hai koee narottam naamaka braahman thaa. usake gharamen maan-baap the. tathaapi vah unakee paricharya n kar teerthayaatraake liye nikal pada़aa. usane anek teerthonmen paryatan tatha avagaahan kiya, jisake prataapase usake geele vastr niraalamb aakaashamen uda़ne aur sookhane lage. jab usane yon hee svachchhand gatise apane vastronko aakaashamen uda़te chalate dekha, tab use apanee teerthacharyaaka mahaan ahankaar ho gayaa. vah samajhane laga ki mere samaan punyakarma yashasvee is sansaar men doosara koee bhee naheen hai. ek baar usane aisa hee kaheen kah bhee diyaa. tabatak usake sirapar ek bagulene beet kar dee. kruddh hokar narottamane baguleko shaap de diya, jisase vah bagula vaheen jalakar bhasm ho gayaa. par aashcharya! tabase usake kapada़eka aakaashamen uda़na aur sookhana band ho gayaa. ab narottam bada़a udaas ho gayaa. tabatak aakaashavaanee huee- 'braahmana. tum param dhaarmik mook chaandaalake paas jaao, vaheen 'dharm kya hai isaka tumhen pata chal jaayaga tatha tumhaara kalyaan bhee hogaa. 1 maataa-pitaakee seva karanevaaleke ghar narottamako isase bada़a kutoohal huaa. vah turant pata lagaata hua mook chaandaalake ghar pahunchaa. vahaan mook bada़ee shraddhaase apane maataa-pitaakee shushrooshaamen laga thaa. usake vilakshan punya-prataapase bhagavaan vishnu niraalamb usake ghar antarikshamen vartamaan the. vahaan pahunchate hee narottamane mookako aavaaj dee aur kahaa-'are main yahaan aaya hoon, tum mujhe yahaan aakar shaashvat hitakaaree dharmatattvaka svaroopatah varnan sunaao.'
mook bolaa-'main apane maataa-pitaakee sevaamen laga hoon. inakee vidhipoorvak paricharya karake tumhaara kaary karoongaa. tabatak chupachaap daravaajepar baithe raho main tumhaara aatithy karana chaahata hoon.'
ab to narottamakee tyoree chaढ़ gayee. vah bada़ejoron se bigaड़kar bolaa- are mujh braahmanakee seva bada़kar tumhaara kya kaam a gaya hai? tumane mujhe hainsee khel samajh rakha hai kyaa?' mookane kahaa- 'braahman devataa! main bagula naheen hoon. tumhaara krodh bas, bagulepar hee charitaarth ho sakata hai, anyatr kaheen naheen. yadi tumhen mujhase kuchh poochhana hai to tumhen yahaan thaharakar prateeksha karanee hee pada़egee. yadi tumhaara yahaan thaharana kathin hee ho to tum pativrataake yahaan jaao. usake darshanase tumhaare abheeshtakee siddhi ho sakegee.'
2 pativrataake ghara
tadviroopadhaaree vishnu chaandaalake parase baahar nikal pada़e aur narottamase bole 'chalo, main tumhen pativrataaka ghar dikhala doon.' ab narottam unake saath ho liyaa. usane unase poochhaa- 'braahmana! tum is chaandaalake ghar striyonmen aavrit hokar kyon rahate ho ?" bhagavaan bole- 'isaka rahasy tum pativrata aadika darshan karanepar svayamev samajh jaaoge.'
narottamane poochhaa- 'mahaaraaj ! yah pativrata kauna-see bala hai ? pativrataaka lakshan tatha mahattv kya hai ? kya aap is sambandhamen kuchh jaanate hain?' bhagavaanne kaha -- 'patitrata stree apane donon kulonke sabhee purushonka uddhaar kar detee hai. pralayaparyant vah svarg bhog karatee hai. kaalaantaramen jab vah janm letee hai, tab usaka pati saarvabhaum raaja hota hai. saikada़on janmontak yah kram chalakar antamen un donon pati-patneeka moksh hota hai. jo stree premamen apane putrase sauguna tatha bhavamen raajaase sauguna patise prem tatha bhay karatee hai, use pativrata kahate hain. jo kaam karanemen daaseeke samaan, bhojan karaane men maataake samaan, vihaaramen veshyaake samaan, vipattiyon men mantree ke samaan ho, use pativrata kahate hain. vaisee hee yahaan ek shubha naamakee pativrata stree hai. tum usase jaakar 'dharmake rahasyonko samajho."ab narottam pativrataake daravaajepar pahunchaa. vahaan pahunchakar usane aavaaj lagaayee. pativrata aavaaj sunakar baahar a gayee. narottam bolaa- 'mujhe dharmaka rahasy samajhaao.' pativrata bolee- 'braahman devata ! main svatantr naheen hoon. is samay mujhe patikee paricharya karanee hai. abhee to aap atithike roopamen mere yahaan viraajen . patisevaase nivritt hokar main aapaka kaary karoongee.' narottam bola, 'kalyaani ! mujhe aatithyakee koee aavashyakata naheen hai. n to mujhe bhookh hai, n pyaas aur n thakaavat . tum mujhe saadhaaran braahman samajhakar khel mat karo. yadi tum meree baat naheen maanatee ho to main tumhen shaap doonga .'
pativrataane kahaa- 'main bagula naheen hoon . yadi tumhen aisee hee jaldee hai to tum tulaadhaar vaishyake paas chale jaao. vah tumhaara kaary kar sakegaa.'
3 lobharahit satyavaadee vaishyake ghara
narottam us vaishyake ghar pahunchaa. vahaan pahunchakar usane us braahmanako phir dekha, jise chaandaalake gharamen dekha thaa. tulaadhaar vyaapaarake kaaryamen betarah phansa tha . usane kahaa- 'braahman devataa! ek prahar raatatak mujhe avakaash naheen. aap kripaya adrohakake paas padhaaren; vah aapake dvaara bagulekee mrityu, vastronka uda़na aur phir n uda़neke rahasyonko yathaavidhi batala sakegaa.' vah braahman phir narottamake saath ho gayaa. narottamane usase poochhaa- 'braahmana! aashchary hai, yah tulaadhaar snaan, sandhya, devarshi, pitri tarpan aadise sarvatha rahit hai. isaka shareer malaka bhandaar ho raha hai. isake saare vastr bhee bedhange ho rahe hain, tathaapi yah meree saaree baatonko jo isake parokshamen ghatee hain, kaise jaan gaya ?'braahmana-roopadhaaree bhagavaan bole- 'isane saty aur samataase teenon lokonko jeet liya hai. yah muniganonke saath devata aur pitaronko bhee tript kar chuka aur iseeke prabhaavase bhoot, bhavishy aur vartamaanakee paroksh ghatanaaonko bhee jaan sakata hai. satyase badha़kar koee doosara dharm naheen, jhoothase bada़a koee doosara paatak naheen. isee prakaar samataakee bhee mahatta hai. shatru mitr, madhyastha-in teenonmen jisaka samaan bhaav utpann ho gaya hai, usake saare paap ksheen ho gaye aur vah vishnu saayujyako praapt kar leta hai. jis vyaktimen saty, sham, dam, dhairy, sthairy, anaalasy, anaashchary, nirlobhita aur samataa-jaise gun hain, usamen saara vishv hee pratishthit hai. aisa purush karoda़on kulonka uddhaar kar leta hai. usake shareeramen saakshaat bhagavaan viraajamaan hain. vah devalok naralokake sabhee vrittaantonko jaan sakata hai.' * narottamane kahaa- 'astu! tulaadhaarakee sarvajnataaka kaaran mujhe jnaat ho gayaa; par adrohak kaun tatha kis prabhaavavaala hai, kya yah aap jaanate hain ?'
4 jitendriy mitrake ghara
vipraroopee bhagavaan bole- "kuchh samay poorvakee baat hai. ek raajakumaarakee stree bada़ee sundaree tatha yuvatee thee. ek din us raajakumaarako apane pitaakee aajnaase kaheen baahar jaanekee aavashyakata huee. ab vah streeke sambandhamen sochane laga ki kahaan use rakha jaay, jahaan usakee pooree suraksha ho sake. antamen vah adrohakake ghar gaya aur apanee streeke rakshaarth usane praarthana kee. adrohakane kahaa-'n to main tumhaara pita hoon n bhaaee bandhu tumhaare mitronmense bhee main naheen hota, phir tum aisa prastaav kyon kar rahe ho ?'
"raajakumaar bolaa- 'mahaatman! is vishvamen aap jaisa dharmajn aur jitendriy koee doosara naheen hai, ise main bhalee prakaar jaanata hoon. yah ab aapake gharamen hee rahegee, aap hee jaise ho isakee raksha keejiyegaa.' yon kahakar vah raajakumaar chala gayaa. adrohakane bada़e dhairyase usakee raksha kee. chhah maasake baad raajakumaar punah lautaa. usane logonse apanee stree tatha adrohakake prabandhake sambandhamen poochha-taachh kee. adhikaansh logonne adrohakakee ninda kee. baat adrohakako bhee maaloom huee. usane lokanindaase mukt honeke liye ek bada़ee chita banaakar usamen aag laga dee; tabatak raajakumaar vahaan pahunch gayaa. adrohakako usane rokana chaahaa. par unhonne ek n sunee aur agnimen pravesh kar gaye. phir bhee agnine unake angon tatha vastronko naheen jalaayaa. devataaonne saadhuvaad diya aur adrohakake mastakapar phoolonkee varsha kee. jin logonne adrohakakee ninda kee thee, unake munhapar anekon prakaarakee kodha़ ho gayee. devataaonne hee unhen agnise baahar kiyaa. unaka charitr sunakar muniyonko bhee bada़a vismay hua .devataaonne raajakumaarase kahaa- 'tum apanee streeko sveekaar karo. in adrohakake samaan koee manushy is sansaaramen naheen hua hai.' tadanantar ve raajakumaar dampati apane raajamahalako chale gaye. tabase adrohakako bhee divy drishti ho gayee hai."
tatpashchaat narottam adrohakake paas pahunche aur unaka darshan kiyaa. jab adrohakane unake padhaaraneka kaaran poochha, tab usane dhotiyonke n sookhane, baguleke beet karane aur usake jalaneka rahasy poochhaa. adrohakane unhen vaishnavake paas jaaneko kahaa. vaishnavane kahaa- 'bheetar chalakar bhagavaanka darshan keejiye.' bheetar jaanepar narottamane dekha ki ve hee braahman jo chaandaal, pativrata evan dharmavyaadhake gharamen the aur jo 'use baraabar raah batalaate rahe the, us mandiramen vartamaan hain. vahaan unhonne sab baatonka samaadhaan kar diya aur use maataa-pitaakee sevaakee aajna dee. tabase narottam ghar laut aaya aur maataa-pitaakee dridha़ bhaktimen talleen ho gayaa.
(padmapuraan, srishtikhand, adhyaay 47)