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भावी शुभाशुभके आधारका बोध  [प्रेरक कथा]
Moral Story - बोध कथा (आध्यात्मिक कथा)

भावी शुभाशुभके आधारका बोध

एक बार हिमालयपर्वतपर विराजमान भगवान् महेश्वरसे देवी पार्वतीने पूछा-भगवन्! आपने बताया कि मनुष्योंकी जो भली-बुरी अवस्था है, वह सब उनकी अपनी ही करनीका फल है, किंतु लोकमें यह देखा जाता है कि लोग समस्त शुभाशुभ कर्मको ग्रहजनित मानकर प्रायः उन ग्रह-नक्षत्रोंकी ही आराधना करते रहते हैं, क्या उनकी मान्यता ठीक है ? देव! मेरे इस सन्देहका निवारण करनेकी कृपा करें। इसपर महादेवजी बोले
स्थाने संशयितं देवि तत्त्वविनिश्चयम् ॥
नक्षत्राणि ग्रहाश्चैव शुभाशुभनिवेदकाः ।मानवानां महाभागे न तु कर्मकराः स्वयम्
प्रजानां तु हितार्थाय शुभाशुभविधिं प्रति । अनागतमतिक्रान्तं ज्योतिश्चक्रेण बोध्यते ॥
किंतु तत्र शुभं कर्म सुग्रहैस्तु निवेद्यते I
दुष्कृतस्याशुभैरेव समवायो भवेदिति ॥
केवलं ग्रहनक्षत्रं न करोति शुभाशुभम् सर्वमात्मकृतं कर्म लोकवादेवि ग्रहा इति ॥
देवि! तुमने उचित सन्देह उपस्थित किया है। इस विषयमें जो सिद्धान्त मत है, उसे सुनो। महाभागे! ग्रह और नक्षत्र मनुष्योंके शुभ और अशुभकी सूचनामात्र देनेवाले हैं। वे स्वयं कोई काम नहीं करते हैं। प्रजाके हितके लिये ज्यौतिषचक्र (ग्रह-नक्षत्र - मण्डल) के द्वारा भूत और भविष्यके शुभाशुभ फलका बोध कराया जाता है, किंतु वहाँ | शुभ कर्मफलकी सूचना उत्तम (शुभ) ग्रहोंद्वारा प्राप्त होती है और दुष्कर्मके फलकी सूचना अशुभ ग्रहोंद्वारा। केवल ग्रह और नक्षत्र ही शुभाशुभ कर्मफलको उपस्थित नहीं करते सारा अपना ही किया हुआ कर्म शुभाशुभ फलका उत्पादक होता है। ग्रहोंने कुछ किया है- यह कथन लोगोंका प्रवादमात्र है। [ महा0 अनु0 अ0145 ]



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bhaavee shubhaashubhake aadhaaraka bodha

bhaavee shubhaashubhake aadhaaraka bodha

ek baar himaalayaparvatapar viraajamaan bhagavaan maheshvarase devee paarvateene poochhaa-bhagavan! aapane bataaya ki manushyonkee jo bhalee-buree avastha hai, vah sab unakee apanee hee karaneeka phal hai, kintu lokamen yah dekha jaata hai ki log samast shubhaashubh karmako grahajanit maanakar praayah un graha-nakshatronkee hee aaraadhana karate rahate hain, kya unakee maanyata theek hai ? deva! mere is sandehaka nivaaran karanekee kripa karen. isapar mahaadevajee bole
sthaane sanshayitan devi tattvavinishchayam ..
nakshatraani grahaashchaiv shubhaashubhanivedakaah .maanavaanaan mahaabhaage n tu karmakaraah svayam
prajaanaan tu hitaarthaay shubhaashubhavidhin prati . anaagatamatikraantan jyotishchakren bodhyate ..
kintu tatr shubhan karm sugrahaistu nivedyate I
dushkritasyaashubhairev samavaayo bhavediti ..
kevalan grahanakshatran n karoti shubhaashubham sarvamaatmakritan karm lokavaadevi graha iti ..
devi! tumane uchit sandeh upasthit kiya hai. is vishayamen jo siddhaant mat hai, use suno. mahaabhaage! grah aur nakshatr manushyonke shubh aur ashubhakee soochanaamaatr denevaale hain. ve svayan koee kaam naheen karate hain. prajaake hitake liye jyautishachakr (graha-nakshatr - mandala) ke dvaara bhoot aur bhavishyake shubhaashubh phalaka bodh karaaya jaata hai, kintu vahaan | shubh karmaphalakee soochana uttam (shubha) grahondvaara praapt hotee hai aur dushkarmake phalakee soochana ashubh grahondvaaraa. keval grah aur nakshatr hee shubhaashubh karmaphalako upasthit naheen karate saara apana hee kiya hua karm shubhaashubh phalaka utpaadak hota hai. grahonne kuchh kiya hai- yah kathan logonka pravaadamaatr hai. [ mahaa0 anu0 a0145 ]

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