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मृत्यु तो सृष्टिका अनिवार्य सत्य है  [Wisdom Story]
छोटी सी कहानी - Short Story (Hindi Story)

मृत्यु तो सृष्टिका अनिवार्य सत्य है

एक समयकी बात है, भगवान् बुद्ध श्रावस्ती नगरीमें ठहरे हुए थे। उनकी सायंकालीन सभा चल रही थी। भगवान् बुद्ध सांसारिक कष्टोंसे मुक्तिके साधनरूप धर्मपथका विवेचन कर रहे थे, सहसा वहाँ एक महिला रोते हुए आयी और उनके चरणोंमें गिरकर निवेदन करने लगी- 'हे प्रभु! मेरे एकमात्र पुत्रको मृत्युने मुझसे छीन लिया, आप आशीर्वाद दे देंगे तो उसे जीवन मिल जायगा। आप कृपा करके उसे जीवित कर दें, मैं आपके चरणोंमें पड़ी उसके प्राणोंकी भीख माँगती हूँ।' भगवान् बुद्धने उस महिलासे कहा- 'माँ ! आप चिन्ता न करें, मैं आपके पुत्रको जीवन अवश्य दूंगा। परंतु उसके लिये आपको भिक्षामें उस घरसे सरसोंके दाने माँगकर लाने होंगे, जिस घरमें कभी भी मृत्युने पग न धरे हों।'
वह महिला भगवान् बुद्धके आश्वासनसे इतनी विभोर हो उठी कि भगवान्‌के कथनका मर्म समझे बिना भिक्षाटनपर निकल पड़ी। उसने नगरके हर घरका द्वार खटखटा डाला, उसमें अनेकों उसकी पुकारपर सरसोंक दाने देनेको तत्पर भी हो गये, परंतु ऐसा घर एक भी न मिला, जहाँ किसी सदस्यकी मृत्यु न हुई हो। यह स्थिति देखकर उस महिलाको आभास हुआ कि 'मृत्यु तो सृष्टिका अनिवार्य सत्य है' यह ज्ञान होते ही वह तुरंत भगवान् बुद्धके पास आकर उनके चरणोंसे लिपटकर कहने लगी- 'हे प्रभु! मुझे जीवनकी अमरताका नहीं, जीवन-लक्ष्यकी प्राप्तिका मार्ग बतायें, वही ज्ञान शाश्वत है।' यह सुनकर भगवान् बुद्ध उस महिलासे करुणाभरे स्वरमें कहने लगे, 'हे पुत्री ! मुझे तुम्हारे दुःखका पूर्ण ज्ञान है, परंतु इससे मुक्तिका मार्ग केवल जीवनको सार्थक बनाना है।' भगवान्‌के श्रीमुखसे ऐसे वचन सुन पूर्णतः सन्तुष्ट होकर वह महिला अपने घर लौट गयी। उसने अपने पुत्रके मृत शरीरका अग्नि-संस्कार किया। तत्पश्चात् वह गृहत्यागकर भगवान् बुद्धके शरणापन्न हो गयी। 'किसा गौतमी' नामसे उसकी प्रसिद्धि हुई। उसने धर्मज्ञान प्राप्त किया और उस अर्हत् पदपर पहुँची, जिसे विरले साधक ही प्राप्त करते हैं।
[ श्रीअर्जुनलालजी बंसल ]



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mrityu to srishtika anivaary saty hai

mrityu to srishtika anivaary saty hai

ek samayakee baat hai, bhagavaan buddh shraavastee nagareemen thahare hue the. unakee saayankaaleen sabha chal rahee thee. bhagavaan buddh saansaarik kashtonse muktike saadhanaroop dharmapathaka vivechan kar rahe the, sahasa vahaan ek mahila rote hue aayee aur unake charanonmen girakar nivedan karane lagee- 'he prabhu! mere ekamaatr putrako mrityune mujhase chheen liya, aap aasheervaad de denge to use jeevan mil jaayagaa. aap kripa karake use jeevit kar den, main aapake charanonmen pada़ee usake praanonkee bheekh maangatee hoon.' bhagavaan buddhane us mahilaase kahaa- 'maan ! aap chinta n karen, main aapake putrako jeevan avashy doongaa. parantu usake liye aapako bhikshaamen us gharase sarasonke daane maangakar laane honge, jis gharamen kabhee bhee mrityune pag n dhare hon.'
vah mahila bhagavaan buddhake aashvaasanase itanee vibhor ho uthee ki bhagavaan‌ke kathanaka marm samajhe bina bhikshaatanapar nikal pada़ee. usane nagarake har gharaka dvaar khatakhata daala, usamen anekon usakee pukaarapar sarasonk daane deneko tatpar bhee ho gaye, parantu aisa ghar ek bhee n mila, jahaan kisee sadasyakee mrityu n huee ho. yah sthiti dekhakar us mahilaako aabhaas hua ki 'mrityu to srishtika anivaary saty hai' yah jnaan hote hee vah turant bhagavaan buddhake paas aakar unake charanonse lipatakar kahane lagee- 'he prabhu! mujhe jeevanakee amarataaka naheen, jeevana-lakshyakee praaptika maarg bataayen, vahee jnaan shaashvat hai.' yah sunakar bhagavaan buddh us mahilaase karunaabhare svaramen kahane lage, 'he putree ! mujhe tumhaare duhkhaka poorn jnaan hai, parantu isase muktika maarg keval jeevanako saarthak banaana hai.' bhagavaan‌ke shreemukhase aise vachan sun poornatah santusht hokar vah mahila apane ghar laut gayee. usane apane putrake mrit shareeraka agni-sanskaar kiyaa. tatpashchaat vah grihatyaagakar bhagavaan buddhake sharanaapann ho gayee. 'kisa gautamee' naamase usakee prasiddhi huee. usane dharmajnaan praapt kiya aur us arhat padapar pahunchee, jise virale saadhak hee praapt karate hain.
[ shreearjunalaalajee bansal ]

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राधे राधे बोल, श्याम भागे चले आयंगे।
एक बार आ गए तो कबू नहीं जायेंगे ॥
मुझे रास आ गया है,
तेरे दर पे सर झुकाना
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