⮪ All Stories / कथा / कहानियाँ

विश्वास हो तो भगवान् सदा समीप हैं  [Story To Read]
आध्यात्मिक कथा - छोटी सी कहानी (Hindi Story)

दुर्योधनके कपट- द्यूतमें सर्वस्व हारकर पाण्डव द्रौपदीके साथ काम्यकवनमें निवास कर रहे थे। परंतु दुर्योधनके चित्तको शान्ति नहीं थी। पाण्डवोंको कैसे सर्वथा नष्ट कर दिया जाय, वह सदा इसी चिन्तामें रहता था। संयोगवश महर्षि दुर्वासा उसके यहाँ पधारे और कुछ काल टिके रहे। अपनी सेवासे दुर्योधननेउन्हें संतुष्ट कर लिया। जाते समय महर्षिने उससे वरदान माँगने को कहा। कुटिल दुर्योधन नम्रतासे बोला 'महर्षि! पाण्डव हमारे बड़े भाई हैं। यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो मैं चाहता हूँ कि जैसे आपने अपनी सेवाका अवसर देकर मुझे कृतार्थ किया है, वैसे ही मेरे उन बड़े भाइयोंको भी कम-से-कम एक दिन अपनीसेवाका अवसर दें। परंतु मेरी इच्छा है कि आप उनके यहाँ अपने समस्त शिष्योंके साथ आतिथ्य ग्रहण करें और तब पधारें जब महारानी द्रौपदी भोजन कर चुकी हों, जिससे मेरे भाइयोंको देरतक भूखा न रहना पड़े।'

बात यह थी कि पाण्डव जब वनमें गये, तब उनके प्रेमसे विवश बहुत-से ब्राह्मण भी उनके साथ साथ गये। किसी प्रकार वे लोग लौटे नहीं। इतने सब लोगोंके भोजनकी व्यवस्था वनमें होनी कठिन थी। इसलिये धर्मराज युधिष्ठिरने तपस्या तथा स्तुति करके सूर्यनारायणको प्रसन्न किया। सूर्वने युधिष्ठिरको एक बर्तन देकर कहा - 'इसमें वनके कन्द-शाक आदि लाकर भोजन बनानेसे वह भोजन अक्षय हो जायगा। उससे सहस्रों व्यक्तियोंको तबतक भोजन दिया जा सकेगा, जबतक द्रौपदी भोजन न कर लें। द्रौपदीके भोजन कर लेनेपर उस दिन पात्रमें कुछ नहीं बचेगा।' दुर्योधन इस बातको जानता था। इसीसे उसने दुर्वासाजीसे द्रौपदीके भोजन कर चुकनेपर पाण्डवोंके यहाँ जानेकी प्रार्थना की। दुर्वासा मुनिने उसकी बात स्वीकार कर ली और वहाँसे चले गये। दुर्योधन बड़ा प्रसन्न हुआ यह समझकर कि पाण्डव इन्हें भोजन नहीं दे सकेंगे और तब ये महाक्रोधी मुनि अवश्य ही शाप देकर उन्हें नष्ट कर देंगे। बुरी नीयतका यह प्रत्यक्ष नमूना है।

महर्षि दुर्वासा तो दुर्योधनको वचन ही दे चुके थे। वे अपने दस सहस्र शिष्योंकी भीड़ लिये एक दिन दोपहर के बाद काम्यकवनमें पाण्डवोंके यहाँ जा धमके। धर्मराज युधिष्ठिर तथा उनके भाइयोंने उठकर महर्षिको साष्टाङ्ग प्रणिपात किया। उनसे आसनपर बैठनेकी प्रार्थना की।

महर्षि बोले—‘राजन्! आपका मङ्गल हो। हम सब भूखे हैं और अभी मध्याह्न संध्या भी हमने नहीं की है आप हमारे भोजनकी व्यवस्था करें। हम पासके सरोवरमें स्नान करके, संध्या-वन्दनसे निवृत्त होकर शीघ्र आते हैं।'

स्वभावतः धर्मराजने हाथ जोड़कर नम्रतासे कह दिया – 'देव ! संध्यादिसे निवृत्त होकर शीघ्र पधारें।' पर जब दुर्वासाजी शिष्योंके साथ चले गये, तब चिन्तासे युधिष्टिर तथा उनके भाइयोंका मुख सूख गया। उन्होंने द्रौपदीजीको बुलाकर पूछा तो पता लगा कि वे भोजनकर चुकी हैं। महाक्रोधी दुर्वासाजी भोजन न मिलनेपर अवश्य शाप देकर भस्म कर देंगे- यह निश्चित था और उन्हें भोजन दिया जा सके, इसका कोई भी उपाय नहीं था। अपने पतियोंको चिन्तित देख द्रौपदीजीने कहा 'आपलोग चिन्ता क्यों करते हैं? श्यामसुन्दर सारी व्यवस्था कर देंगे।'

धर्मराज बोले –' श्रीकृष्णचन्द्र यहाँ होते तो चिन्ताकी कोई बात नहीं थी; किंतु अभी ही तो वे हमलोगों से मिलकर अपने परिकरोंके साथ द्वारका गये हैं। उनका रथ तो अभी द्वारका पहुँचा भी नहीं होगा।'

द्रौपदीजीने दृढ़ विश्वाससे कहा 'वे कहाँ आते जाते हैं? ऐसा कौन-सा स्थान है, जहाँ वे नहीं हैं? वे तो यहाँ हैं और अभी-अभी आ जायेंगे।'

द्रौपदीजी झटपट कुटियामें चली गयीं और उस जन-रक्षक आर्तिनाशन मधुसूदनको मन-ही-मन पुकारने लगीं। पाण्डवोंने देखा कि बड़े वेगसे चार श्वेत घोड़ोंसे जुता द्वारकाधीशका गरुडध्वज रथ आया और रथके खड़े होते न होते वे मयूरमुकुटी उसपरसे कूद पड़े। परंतु इस बार उन्होंने न किसीको प्रणाम किया और न किसीको प्रणाम करनेका अवसर दिया। वे तो सीधे कुटियामें चले गये और अत्यन्त क्षुधातुरकी भाँति आतुरतासे बोले – 'कृष्णे! मैं बहुत भूखा हूँ, झटपट कुछ भोजन दो।"

'तुम आ गये भैया! मैं जानती थी कि तुम अभी आ जाओगे!' द्रौपदीजीमें जैसे नये प्राण आ गये। वे हड़बड़ाकर उठीं—'महर्षि दुर्वासाको भोजन देना है...... 'पहले मुझे भोजन दो। फिर और कोई बात मुझसे खड़ा नहीं हुआ जाता भूखके मारे।' आज श्यामको अद्भुत भूख लगी थी।

'परंतु मैं भोजन कर चुकी हूँ। सूर्यका दिया बर्तन धो-माँजकर धर दिया है। भोजन है कहाँ ? उसीकी व्यवस्थाके लिये तो तुम्हें पुकारा है तुम्हारी इस कंगालिनी बहिनने।' द्रौपदीजी चकित देख रही थीं उस लीलामयका मुख ।

'बातें मत बनाओ! मैं बहुत भूखा हूँ। कहाँ है वह बर्तन ? लाओ, मुझे दो।' श्रीकृष्णचन्द्रने जैसे कुछ सुना । ही नहीं ? द्रौपदीने चुपचाप बर्तन उठाकर हाथमें दे दिया उनके। श्यामने बर्तन लेकर घुमा-फिराकर उसके भीतर देखा। बर्तनके भीतर चिपका शाकके पत्तेका एकनन्हा टुकड़ा उन्होंने ढूँढ़कर निकाल ही लिया और अपनी लाल-लाल अँगुलियोंमें उसे लेकर बोले – 'तुम तो कहती थीं कि कुछ है ही नहीं। यह क्या है ? इससे तो सारे विश्वकी क्षुधा दूर हो जायगी।'

द्रौपदीजी चुपचाप देखती रहीं और उन द्वारकाधीशने वह शाकपत्र मुखमें डाला यह कहकर - 'विश्वात्मा इससे तृप्त हो जायँ' और बस, डकार ले ली। विश्वात्मा श्रीकृष्णचन्द्रने तृप्तिकी डकार ले ली तो अब विश्वमें कोई अतृप्त रहा कहाँ ।

वहाँ सरोवरमें स्नान करते महर्षि दुर्वासा तथा उनके शिष्योंकी बड़ी विचित्र दशा हुई। उनमेंसे प्रत्येकको डकार पर डकार आने लगी। सबको लगा कि कण्ठतक पेटमें भोजन भर गया है। आश्चर्यसे वे एक-दूसरेकी ओर देखने लगे। अपनी और शिष्योंकी दशा देखकर दुर्वासाजीने कहा- 'मुझे अम्बरीषकी घटनाका स्मरण हो रहा है। पाण्डव वनमें हैं, उनके पास वैसे ही भोजनकी कमी है, यहाँ हमारा आना ही अनुचित हुआ और अब हमसे भोजन किया नहीं जायगा। उनका भोजन व्यर्थ जायगा तो वे क्रोध करके हम सबको एक पलमें नष्ट कर सकते हैं; क्योंकि वे भगवद्भक्त हैं। अब तो एक ही मार्ग है कि हम सब यहाँसे चुपचाप भाग चलें ।'जब गुरु ही भाग जाना चाहें तो शिष्य कैसे टिके रहें। दुर्वासा मुनि जो शिष्योंके साथ भागे तो पृथ्वीपर | रुकनेका उन्होंने नाम नहीं लिया। सीधे ब्रह्मलोक जाकर वे खड़े हुए।

पाण्डवोंकी झोंपड़ीसे शाकका पत्ता खाकर श्यामसुन्दर मुसकराते निकले। अब उन्होंने धर्मराजको अभिवादन किया और बैठते हुए सहदेवको आदेश दे दिया कि महर्षि दुर्वासाको भोजनके लिये बुला लायें। सहदेव गये और कुछ देर में अकेले लौट आये। महर्षि और उनके शिष्य होते तब तो मिलते। वे तो अब पृथ्वीपर ही नहीं थे।

'दुर्वासाजी अब पता नहीं कब अचानक आ धमकेंगे।' धर्मराज फिर चिन्ता करने लगे; क्योंकि | दुर्वासाजीका यह स्वभाव विख्यात था कि वे किसीके यहाँ भोजन बनानेको कहकर चल देते हैं और लौटते हैं कभी आधी रातको, कभी कई दिन बाद किसी समय। लौटते ही उन्हें भोजन चाहिये, तनिक भी देर होनेपर एक ही बात उन्हें आती है-शाप देना ।

'अब वे इधर कभी झाँकेंगे भी नहीं। वे तो दुरात्मा दुर्योधनकी प्रेरणासे आये थे।' पाण्डवोंके परम रक्षक श्रीकृष्णचन्द्रने उन्हें पूरी घटना समझाकर निश्चिन्त कर दिया और तब उनसे विदा होकर वे द्वारका पधारे।

- सु0 सिं0 (महाभारत, वन0 262-263)



You may also like these:

Hindi Story सादगी


vishvaas ho to bhagavaan sada sameep hain

duryodhanake kapata- dyootamen sarvasv haarakar paandav draupadeeke saath kaamyakavanamen nivaas kar rahe the. parantu duryodhanake chittako shaanti naheen thee. paandavonko kaise sarvatha nasht kar diya jaay, vah sada isee chintaamen rahata thaa. sanyogavash maharshi durvaasa usake yahaan padhaare aur kuchh kaal tike rahe. apanee sevaase duryodhananeunhen santusht kar liyaa. jaate samay maharshine usase varadaan maangane ko kahaa. kutil duryodhan namrataase bola 'maharshi! paandav hamaare bada़e bhaaee hain. yadi aap mujhapar prasann hain to main chaahata hoon ki jaise aapane apanee sevaaka avasar dekar mujhe kritaarth kiya hai, vaise hee mere un bada़e bhaaiyonko bhee kama-se-kam ek din apaneesevaaka avasar den. parantu meree ichchha hai ki aap unake yahaan apane samast shishyonke saath aatithy grahan karen aur tab padhaaren jab mahaaraanee draupadee bhojan kar chukee hon, jisase mere bhaaiyonko deratak bhookha n rahana pada़e.'

baat yah thee ki paandav jab vanamen gaye, tab unake premase vivash bahuta-se braahman bhee unake saath saath gaye. kisee prakaar ve log laute naheen. itane sab logonke bhojanakee vyavastha vanamen honee kathin thee. isaliye dharmaraaj yudhishthirane tapasya tatha stuti karake sooryanaaraayanako prasann kiyaa. soorvane yudhishthirako ek bartan dekar kaha - 'isamen vanake kanda-shaak aadi laakar bhojan banaanese vah bhojan akshay ho jaayagaa. usase sahasron vyaktiyonko tabatak bhojan diya ja sakega, jabatak draupadee bhojan n kar len. draupadeeke bhojan kar lenepar us din paatramen kuchh naheen bachegaa.' duryodhan is baatako jaanata thaa. iseese usane durvaasaajeese draupadeeke bhojan kar chukanepar paandavonke yahaan jaanekee praarthana kee. durvaasa munine usakee baat sveekaar kar lee aur vahaanse chale gaye. duryodhan bada़a prasann hua yah samajhakar ki paandav inhen bhojan naheen de sakenge aur tab ye mahaakrodhee muni avashy hee shaap dekar unhen nasht kar denge. buree neeyataka yah pratyaksh namoona hai.

maharshi durvaasa to duryodhanako vachan hee de chuke the. ve apane das sahasr shishyonkee bheeda़ liye ek din dopahar ke baad kaamyakavanamen paandavonke yahaan ja dhamake. dharmaraaj yudhishthir tatha unake bhaaiyonne uthakar maharshiko saashtaang pranipaat kiyaa. unase aasanapar baithanekee praarthana kee.

maharshi bole—‘raajan! aapaka mangal ho. ham sab bhookhe hain aur abhee madhyaahn sandhya bhee hamane naheen kee hai aap hamaare bhojanakee vyavastha karen. ham paasake sarovaramen snaan karake, sandhyaa-vandanase nivritt hokar sheeghr aate hain.'

svabhaavatah dharmaraajane haath joda़kar namrataase kah diya – 'dev ! sandhyaadise nivritt hokar sheeghr padhaaren.' par jab durvaasaajee shishyonke saath chale gaye, tab chintaase yudhishtir tatha unake bhaaiyonka mukh sookh gayaa. unhonne draupadeejeeko bulaakar poochha to pata laga ki ve bhojanakar chukee hain. mahaakrodhee durvaasaajee bhojan n milanepar avashy shaap dekar bhasm kar denge- yah nishchit tha aur unhen bhojan diya ja sake, isaka koee bhee upaay naheen thaa. apane patiyonko chintit dekh draupadeejeene kaha 'aapalog chinta kyon karate hain? shyaamasundar saaree vyavastha kar denge.'

dharmaraaj bole –' shreekrishnachandr yahaan hote to chintaakee koee baat naheen thee; kintu abhee hee to ve hamalogon se milakar apane parikaronke saath dvaaraka gaye hain. unaka rath to abhee dvaaraka pahuncha bhee naheen hogaa.'

draupadeejeene dridha़ vishvaasase kaha 've kahaan aate jaate hain? aisa kauna-sa sthaan hai, jahaan ve naheen hain? ve to yahaan hain aur abhee-abhee a jaayenge.'

draupadeejee jhatapat kutiyaamen chalee gayeen aur us jana-rakshak aartinaashan madhusoodanako mana-hee-man pukaarane lageen. paandavonne dekha ki bada़e vegase chaar shvet ghoda़onse juta dvaarakaadheeshaka garudadhvaj rath aaya aur rathake khada़e hote n hote ve mayooramukutee usaparase kood pada़e. parantu is baar unhonne n kiseeko pranaam kiya aur n kiseeko pranaam karaneka avasar diyaa. ve to seedhe kutiyaamen chale gaye aur atyant kshudhaaturakee bhaanti aaturataase bole – 'krishne! main bahut bhookha hoon, jhatapat kuchh bhojan do."

'tum a gaye bhaiyaa! main jaanatee thee ki tum abhee a jaaoge!' draupadeejeemen jaise naye praan a gaye. ve hada़bada़aakar utheen—'maharshi durvaasaako bhojan dena hai...... 'pahale mujhe bhojan do. phir aur koee baat mujhase khada़a naheen hua jaata bhookhake maare.' aaj shyaamako adbhut bhookh lagee thee.

'parantu main bhojan kar chukee hoon. sooryaka diya bartan dho-maanjakar dhar diya hai. bhojan hai kahaan ? useekee vyavasthaake liye to tumhen pukaara hai tumhaaree is kangaalinee bahinane.' draupadeejee chakit dekh rahee theen us leelaamayaka mukh .

'baaten mat banaao! main bahut bhookha hoon. kahaan hai vah bartan ? laao, mujhe do.' shreekrishnachandrane jaise kuchh suna . hee naheen ? draupadeene chupachaap bartan uthaakar haathamen de diya unake. shyaamane bartan lekar ghumaa-phiraakar usake bheetar dekhaa. bartanake bheetar chipaka shaakake patteka ekananha tukada़a unhonne dhoondha़kar nikaal hee liya aur apanee laala-laal anguliyonmen use lekar bole – 'tum to kahatee theen ki kuchh hai hee naheen. yah kya hai ? isase to saare vishvakee kshudha door ho jaayagee.'

draupadeejee chupachaap dekhatee raheen aur un dvaarakaadheeshane vah shaakapatr mukhamen daala yah kahakar - 'vishvaatma isase tript ho jaayan' aur bas, dakaar le lee. vishvaatma shreekrishnachandrane triptikee dakaar le lee to ab vishvamen koee atript raha kahaan .

vahaan sarovaramen snaan karate maharshi durvaasa tatha unake shishyonkee bada़ee vichitr dasha huee. unamense pratyekako dakaar par dakaar aane lagee. sabako laga ki kanthatak petamen bhojan bhar gaya hai. aashcharyase ve eka-doosarekee or dekhane lage. apanee aur shishyonkee dasha dekhakar durvaasaajeene kahaa- 'mujhe ambareeshakee ghatanaaka smaran ho raha hai. paandav vanamen hain, unake paas vaise hee bhojanakee kamee hai, yahaan hamaara aana hee anuchit hua aur ab hamase bhojan kiya naheen jaayagaa. unaka bhojan vyarth jaayaga to ve krodh karake ham sabako ek palamen nasht kar sakate hain; kyonki ve bhagavadbhakt hain. ab to ek hee maarg hai ki ham sab yahaanse chupachaap bhaag chalen .'jab guru hee bhaag jaana chaahen to shishy kaise tike rahen. durvaasa muni jo shishyonke saath bhaage to prithveepar | rukaneka unhonne naam naheen liyaa. seedhe brahmalok jaakar ve khada़e hue.

paandavonkee jhonpada़eese shaakaka patta khaakar shyaamasundar musakaraate nikale. ab unhonne dharmaraajako abhivaadan kiya aur baithate hue sahadevako aadesh de diya ki maharshi durvaasaako bhojanake liye bula laayen. sahadev gaye aur kuchh der men akele laut aaye. maharshi aur unake shishy hote tab to milate. ve to ab prithveepar hee naheen the.

'durvaasaajee ab pata naheen kab achaanak a dhamakenge.' dharmaraaj phir chinta karane lage; kyonki | durvaasaajeeka yah svabhaav vikhyaat tha ki ve kiseeke yahaan bhojan banaaneko kahakar chal dete hain aur lautate hain kabhee aadhee raatako, kabhee kaee din baad kisee samaya. lautate hee unhen bhojan chaahiye, tanik bhee der honepar ek hee baat unhen aatee hai-shaap dena .

'ab ve idhar kabhee jhaankenge bhee naheen. ve to duraatma duryodhanakee preranaase aaye the.' paandavonke param rakshak shreekrishnachandrane unhen pooree ghatana samajhaakar nishchint kar diya aur tab unase vida hokar ve dvaaraka padhaare.

- su0 sin0 (mahaabhaarat, vana0 262-263)

140 Views





Bhajan Lyrics View All

मुझे रास आ गया है,
तेरे दर पे सर झुकाना
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
सब के संकट दूर करेगी, यह बरसाने वाली,
बजाओ राधा नाम की ताली ।
मेरा अवगुण भरा रे शरीर,
हरी जी कैसे तारोगे, प्रभु जी कैसे
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
यशोमती मैया से बोले नंदलाला,
राधा क्यूँ गोरी, मैं क्यूँ काला
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
प्रीतम बोलो कब आओगे॥
बालम बोलो कब आओगे॥
आँखों को इंतज़ार है सरकार आपका
ना जाने होगा कब हमें दीदार आपका
सांवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठानी
यह तो जाने दुनिया सारी है
राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
श्याम देखा घनश्याम देखा
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
जग ताने देंदा ए, तै मैनु कोई फरक नहीं
आप आए नहीं और सुबह हो मई
मेरी पूजा की थाली धरी रह गई
अपनी वाणी में अमृत घोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
कोई कहे गोविंदा कोई गोपाला,
मैं तो कहूँ सांवरिया बांसुरी वाला ।
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
सब दुख दूर हुए जब तेरा नाम लिया
कौन मिटाए उसे जिसको राखे पिया
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
मेरे जीवन की जुड़ गयी डोर, किशोरी तेरे
किशोरी तेरे चरणन में, महारानी तेरे
बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया।
फूलों में सज रहे हैं, श्री वृन्दावन
और संग में सज रही है वृषभानु की
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
करदो करदो बेडा पार, राधे अलबेली सरकार।
राधे अलबेली सरकार, राधे अलबेली सरकार॥
किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,

New Bhajan Lyrics View All

जय जय महाकाल की कालो के काल की,
उज्जैनी नगरी में बैठे बाबा मेरे
गणपती बप्पा मोरया
मंगलमूर्ति मोरया
खाली जाऊ ना सरकार खड़ा सु अड़ के,
खड़ा सु अड़ के रे खड़ा सु अड़ के,
राम के गीत सुनाते चलो,
सोते हुओं को जगाते चलो
फड़ो फड़ो नी सहलियो मखना दा चोर,
नी ओ मेरे दिल दा चोर,