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श्रद्धा, धैर्य और उद्योगसे अशक्य भी शक्य होता है  [छोटी सी कहानी]
छोटी सी कहानी - Shikshaprad Kahani (Story To Read)

महाराज सगरके साठ सहस्र पुत्र महर्षि कपिलका अपमान करके अपने ही अपराधसे भस्म हो गये थे। उनके उद्धारका केवल एक मार्ग था-उनकी भस्म गङ्गाजल पड़े। परंतु उस समयतक गङ्गाजी पृथ्वीपर आयी नहीं थीं। वे तो ब्रह्मलोकमें ब्रह्माजीके कमण्डलुमें ही थीं। सगरके पौत्र अंशुमान्ने उनको पृथ्वीपर लाने के लिये तपस्या प्रारम्भ की और तपस्या करते-करते हीउनका देहावसान भी हो गया। उनके पुत्र दिलीपने तपस्या करके पिताके कार्यको पूरा करना चाहा, किंतु वे भी असफल रहे। उनकी आयु भी तपस्या करते-करते समाप्त हो गयी। दिलीपके पुत्र भगीरथने जैसे ही देखा कि उनका ज्येष्ठ पुत्र राज्यकार्य चला सकता है, उसे राज्य दे दिया और स्वयं वनमें चले गये। पिता-पितामह जिस कार्यको पूरा नहीं कर सके थे, उसे उन्हें पूरा करना था।दीर्घकालीन तपस्याके पश्चात् गङ्गाजीने प्रसन्न होकर | दर्शन भी दिया और बोलीं- 'मेरे वेगको सहेगा कौन ? वैसे भी मैं पृथ्वीपर नहीं आना चाहती; क्योंकि यहाँके चापी मुझमें स्नान करेंगे। उनका पाप मुझमें रह जायगा। वह पाप कैसे नष्ट होगा ?"

भगीरथने निवेदन किया 'भगवान् शंकर आपका वेग सम्हाल लेंगे। पापका भय आप न करें। भगवद्भक्त महात्मागण भी आपमें स्नान करेंगे। उनके हृदयमें पापहारी श्रीहरि निवास करते हैं। अतः उन भक्तोंके स्पर्शसे आप सदा शुद्ध बनी रहेंगी।'

गङ्गाजी प्रसन्न हो गयीं। भगीरथको फिर तपस्या करके शंकरजीको प्रसन्न करना पड़ा। आशुतोषने गङ्गाजीको मस्तकपर धारण करना स्वीकार कर लिया। परंतु ब्रह्मलोकसे पूरे वेगसे आकर गङ्गाजी उन विराट्मूर्ति धूर्जटिकी जटाओंमें ही समा गयीं वहाँसे उनका एक बूँद जल भी बाहर नहीं आया। भगीरथने फिर सदाशिवकी स्तुति प्रारम्भ की, तब कहीं जटा निचोड़कर शंकरजीने गङ्गाको बाहर प्रकट किया।'श्रेयांसि बहुविघ्नानि।' भगीरथके साथ गङ्गाजीने यह निश्चय किया था कि भगीरथ रथपर बैठकर आगे आगे चलें और पीछे-पीछे गङ्गाजीका प्रवाह चले। किंतु कुछ दूर जानेपर भगीरथ देखते हैं कि गङ्गाका प्रवाह तो कहीं दीख नहीं रहा है। बात यह हुई कि मार्गमें गङ्गाजी जह्नु ऋषिका आसन- कमण्डलु अपनी धाराके साथ बहा गयीं, अतः क्रोधमें आकर ऋषिने गङ्गाको ही पी लिया था । भगीरथने पीछे लौटकर देखा कि गङ्गाजीके प्रवाहके स्थानपर रेत उड़ रही है। अब उन्होंने किसी प्रकार प्रार्थना करके ऋषिको प्रसन्न किया। ऋषिने गङ्गाको अपनी पुत्री बनाकर, जाँघ चीरकर बाहर निकाला। इससे गङ्गाजी जाह्नवी कहलायीं। भगीरथकी तपस्या, श्रद्धा, धैर्य और उद्योगके प्रभावसे उनके पूर्वज सगरके पुत्रोंकी भस्म गङ्गाजलमें पड़ी। वे मुक्त हो गये। साथ ही संसारका अपार कल्याण हुआ। परमपावन गङ्गा-प्रवाह मर्त्यलोकके प्राणियोंके लिये सुगम हो गया। –

सु0 सिं0

(श्रीमद्भागवत 9 । 8-9)



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shraddha, dhairy aur udyogase ashaky bhee shaky hota hai

mahaaraaj sagarake saath sahasr putr maharshi kapilaka apamaan karake apane hee aparaadhase bhasm ho gaye the. unake uddhaaraka keval ek maarg thaa-unakee bhasm gangaajal pada़e. parantu us samayatak gangaajee prithveepar aayee naheen theen. ve to brahmalokamen brahmaajeeke kamandalumen hee theen. sagarake pautr anshumaanne unako prithveepar laane ke liye tapasya praarambh kee aur tapasya karate-karate heeunaka dehaavasaan bhee ho gayaa. unake putr dileepane tapasya karake pitaake kaaryako poora karana chaaha, kintu ve bhee asaphal rahe. unakee aayu bhee tapasya karate-karate samaapt ho gayee. dileepake putr bhageerathane jaise hee dekha ki unaka jyeshth putr raajyakaary chala sakata hai, use raajy de diya aur svayan vanamen chale gaye. pitaa-pitaamah jis kaaryako poora naheen kar sake the, use unhen poora karana thaa.deerghakaaleen tapasyaake pashchaat gangaajeene prasann hokar | darshan bhee diya aur boleen- 'mere vegako sahega kaun ? vaise bhee main prithveepar naheen aana chaahatee; kyonki yahaanke chaapee mujhamen snaan karenge. unaka paap mujhamen rah jaayagaa. vah paap kaise nasht hoga ?"

bhageerathane nivedan kiya 'bhagavaan shankar aapaka veg samhaal lenge. paapaka bhay aap n karen. bhagavadbhakt mahaatmaagan bhee aapamen snaan karenge. unake hridayamen paapahaaree shreehari nivaas karate hain. atah un bhaktonke sparshase aap sada shuddh banee rahengee.'

gangaajee prasann ho gayeen. bhageerathako phir tapasya karake shankarajeeko prasann karana pada़aa. aashutoshane gangaajeeko mastakapar dhaaran karana sveekaar kar liyaa. parantu brahmalokase poore vegase aakar gangaajee un viraatmoorti dhoorjatikee jataaonmen hee sama gayeen vahaanse unaka ek boond jal bhee baahar naheen aayaa. bhageerathane phir sadaashivakee stuti praarambh kee, tab kaheen jata nichoda़kar shankarajeene gangaako baahar prakat kiyaa.'shreyaansi bahuvighnaani.' bhageerathake saath gangaajeene yah nishchay kiya tha ki bhageerath rathapar baithakar aage aage chalen aur peechhe-peechhe gangaajeeka pravaah chale. kintu kuchh door jaanepar bhageerath dekhate hain ki gangaaka pravaah to kaheen deekh naheen raha hai. baat yah huee ki maargamen gangaajee jahnu rishika aasana- kamandalu apanee dhaaraake saath baha gayeen, atah krodhamen aakar rishine gangaako hee pee liya tha . bhageerathane peechhe lautakar dekha ki gangaajeeke pravaahake sthaanapar ret uda़ rahee hai. ab unhonne kisee prakaar praarthana karake rishiko prasann kiyaa. rishine gangaako apanee putree banaakar, jaangh cheerakar baahar nikaalaa. isase gangaajee jaahnavee kahalaayeen. bhageerathakee tapasya, shraddha, dhairy aur udyogake prabhaavase unake poorvaj sagarake putronkee bhasm gangaajalamen pada़ee. ve mukt ho gaye. saath hee sansaaraka apaar kalyaan huaa. paramapaavan gangaa-pravaah martyalokake praaniyonke liye sugam ho gayaa. –

su0 sin0

(shreemadbhaagavat 9 . 8-9)

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