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श्रीजगन्नाथप्रसाद परमहंस की मार्मिक कथा
श्रीजगन्नाथप्रसाद परमहंस की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीजगन्नाथप्रसाद परमहंस (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीजगन्नाथप्रसाद परमहंस]- भक्तमाल


श्रीजगन्नाथप्रसाद महाराज परमहंसका जन्म ग्वालियर रियासतमें सबलगढ़के पास विजयपुर नामक ग्राममें पण्डित ईश्वरीप्रसादजी उपाध्यायके घर सं0 1963 कार्तिक शुक्ल 11 को हुआ था। आप सनाढ्य ब्राह्मण थे। जब ये चार सालके थे, तभी इनके पिताका देहान्त हो गया। माता बड़ी भक्तिमती और धर्मपरायणा थी । वह बालकको भक्त और धर्मात्मा बनाना चाहती थी। इसलिये उसे अच्छे-अच्छे उपदेश दिया करती और सामने बैठाकर रामायण और महाभारतकी सुन्दर कथाएँ सुनाया करती। ये बड़े प्रेम और श्रद्धासे कथा सुनते । चौदह सालकी उम्र में पढ़ाई छोड़कर ये घर आ गये। फिर तो इनका अधिकांश समय भजन-पूजन और सत्सङ्ग-ध्यानमें ही बीतने लगा। विवाह हुआ पर पत्नीका स्वभाव अनुकूल नहीं मिला। ये मिडिल स्कूल में अध्यापक हो गये थे, पर दस वर्ष काम करकेइन्होंने नौकरी छोड़ दी, तथा घर पर रहकर भी भजन करने लगे। ये श्रीहनुमान्जीको अपना गुरु मानते थे और दो-ढाई महीनेमें उनका नया शृङ्गार तैयार करके फिर दो-तीन दिनोंमें उन्हें नये शृङ्गारसे सुसज्जित कर पाते थे। गृहस्थाश्रममें रहते हुए भी ये सदा निर्लिप्त-से रहे। केवल एक धोती पहनते थे, आधी कछी हुई और आधी कन्धेपर पड़ी रहती थी। इनके चेहरेपर सदा मुसकान छायी रहती । 21-22 दिनोंतक भोजन नहीं करते। न किसीका निमन्त्रण स्वीकार करते। इन्होंने अपने जीवनमें कभी दवा नहीं ली। तुलसीदासजीकी पूरी रामायण इन्हें कण्ठस्थ थी । ये बड़े कृष्णभक्त थे । इनके जीवन में बहुत-सी विचित्र घटनाएँ घटी हैं। सं0 2003 वैशाख सुदी 11 को इन्होंने शरीर त्यागकर विष्णुलोकको प्रयाण किया। जन्म और मरण दोनों ही एकादशीके पवित्र दिन हुए।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [shreejagannaathaprasaad paramahansa]- Bhaktmaal


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