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सख्यभक्त अर्जुन की मार्मिक कथा
सख्यभक्त अर्जुन की अधबुत कहानी - Full Story of सख्यभक्त अर्जुन (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [सख्यभक्त अर्जुन]- भक्तमाल


एष नारायणः कृष्णः फाल्गुनश्च नरः स्मृतः ।
नारायणो नरचैव सत्यमेकं द्विधा कृतम् ॥

(महाभारत, उद्योगपर्व 49 । 20)
साक्षात् श्रीहरि ही भक्तोंपर कृपा करनेके लिये, जगत्के कल्याणके लिये और संसारमें धर्मकी स्थापनाके लिये नाना अवतार धारण करते हैं। नर-नारायण इन दो रूपोंमें बदरिकाश्रममें तप करते हैं लोकमङ्गलके लिये । श्रीकृष्णचन्द्र और अर्जुनके रूपमें वे ही द्वापरके अन्तमें पृथ्वीपर अवतीर्ण हुए अर्जुन पाण्डवोंमें मझले भाई थे अर्थात् युधिष्ठिर तथा भीमसेनसे अर्जुन छोटे थे और नकुल तथा सहदेवसे बड़े श्रीकृष्णचन्द्र के समान ही उनका वर्ण नवजलधर- श्याम था। वे कमलनेत्र एवं आजानुबाहु थे।

भगवान् व्यासने तथा भीष्मपितामहने अनेक बार महाभारतमें कहा है कि वीरता, स्फूर्ति, ओज, तेज, शस्त्र सञ्चालनकी कुशलता और अस्त्रज्ञानमें अर्जुनके समान दूसरा कोई नहीं है। सभी पाण्डव धर्मात्मा, उदार, विनयी, ब्राह्मणोंके भक तथा भगवान्‌को परम प्रिय थे; किंतु अर्जुन तो श्रीकृष्णचन्द्रसे अभिन्न, उन श्यामसुन्दरके समवयस्क सखा और उनके प्राण ही थे।

दृढ़ प्रतिज्ञाके लिये अर्जुनकी बड़ी ख्याति है। पूर्वजन्मके कई शाप वरदानोंके कारण पाञ्चालराजकुमारी द्रौपदीका विवाह पाँचों पाण्डवोंसे हुआ। संसारमें कलहकी मूल तीन ही वस्तुएँ हैं-स्त्री, धन और पृथ्वी । इन तीनोंमें भी स्त्रीके लिये जितना रक्तपात हुआ है, उतना और किसीके लिये नहीं हुआ। एक स्त्रीके कारण भाइयोंमें परस्पर वैमनस्य न हो, इसलिये देवर्षि नारदजीकी आज्ञासे पाण्डवोंने नियम बनाया कि 'प्रत्येक भाई दो महीने बारह दिनके क्रमसे द्रौपदीके पास रहे। यदि एक भाई एकान्तमें द्रौपदीके पास हो और दूसरा वहाँ उसे देख ले तो वह बारह वर्षका निर्वासन स्वीकार करे।' एक बार रात्रि के समय चोरोंने एक ब्राह्मणको गायें चुरा ली। वह पुकारता हुआ राजमहलके पास आया। वहकह रहा था जो राजा प्रजासे उसकी आयका छठा भाग लेकर भी रक्षा नहीं करता, वह पापी है।' अर्जुन ब्राह्मणको आश्वासन देकर शस्त्र लेने भीतर गये। जहाँ उनके धनुष आदि थे, वहाँ युधिष्ठिर द्रौपदीके साथ एकान्तमें स्थित थे। एक और ब्राह्मणके गोधनकी रक्षाका प्रश्न था और दूसरी ओर निर्वासनका भय अर्जुनने निश्चय किया-'चाहे कुछ हो, मैं शरणागतकी रक्षासे पीछे नहीं हटूंगा।' भीतर जाकर वे शस्त्र ले आये और लुटेरोंका पीछा करके उन्हें दण्ड दिया। गौएँ छुड़ाकर ब्राह्मणको दे दीं। अब वे धनञ्जय निर्वासन स्वीकार करनेके लिये उद्यत हुए। युधिष्ठिरजीने बहुत समझाया - बड़े भाईके पास एकान्तमें छोटे भाईका पहुँच जाना कोई बड़ा दोष नहीं। द्रौपदीके साथ साधारण बातचीत ही तो हो रही थी। ब्राह्मणकी गायें बचाना राजधर्म था, अतः वह तो राजाका ही कार्य हुआ।' परंतु अर्जुन इन सब प्रयत्नोंसे विचलित नहीं हुए। उन्होंने कहा-'महाराज ! मैंने आपसे ही सुना है कि धर्मपालनमें बहानेबाजी नहीं करनी चाहिये। मैं सत्यको नहीं छोड़ेगा। नियम बनाकर उसका पालन न करना तो असत्य है।' इस प्रकार बड़े भाईके वचनोंका लाभ लेकर अर्जुन विचलित नहीं हुए। उन्होंने स्वेच्छा निर्वासन स्वीकार किया।

व्यासजीकी आज्ञासे अर्जुन तपस्या करके शस्त्र प्राप्त करने गये। अपने तप तथा पराक्रमसे उन्होंने भगवान् शङ्करको प्रसन्न करके पाशुपतास्त्र प्राप्त किया। दूसरे लोकपालोंने भी प्रसन्न होकर अपने-अपने दिव्यास्त्र उन्हें दिये। इसी समय देवराज इन्द्रका सारथि मातलि रथ लेकर उन्हें बुलाने आया। उसपर बैठकर वे स्वर्ग गये और देवताओंके द्रोही असुरोंको उन्होंने पराजित किया। वहीं चित्रसेन गन्धर्वसे उन्होंने नृत्य-गान वाद्यको कला सीखी।

एक दिन अर्जुन इन्द्रके साथ उनके सिंहासनपर बैठे थे। देवराजने देखा कि पार्थकी दृष्टि देवसभायें नाचतीहुई उर्वशी अप्सरापर लगी है। इन्द्रने समझा कि अर्जुन उस अप्सरापर आसक्त हैं। पराक्रमी धनञ्जयको प्रसन्न करनेके लिये उन्होंने एकान्तमें चित्रसेन गन्धर्वके द्वारा उर्वशीको रात्रिमें अर्जुनके पास जानेका सन्देश दिया। उर्वशी अर्जुनके भव्य रूप एवं महान् पराक्रमपर पहले से ही मोहित थी। इन्द्रका सन्देश पाकर वह बहुत प्रसन्न हुई। उसी दिन चाँदनी रातमें वस्त्राभरणसे अपनेको भलीभाँति सजाकर वह अर्जुनके पास पहुँची। अर्जुनने उसका आदरसे स्वागत किया। जो उर्वशी बड़े-बड़े तपस्वी ऋषियोंको खूब सरलतासे विचलित करनेमें समर्थ हुई थी, भगवान् नारायणकी दी हुई जो स्वर्गकी सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी थी, एकान्तमें वह रात्रिके समय अर्जुनके पास गयी थी। उसने इन्द्रका सन्देश कहकर अपनी वासना प्रकट की। अर्जुनके मनमें इससे तनिक भी विकार नहीं आया। उन्होंने कहा-'माता! आप हमारे पूरुवंशके पूर्वज महाराज पुरूरवाकी पत्नी रही हैं। आपसे ही हमारा वंश चला है। भरतकुलकी जननी समझकर ही देवसभामें मैं आपको देख रहा था और मैंने मन-ही-मन आपको प्रणाम किया था। देवराजको समझने में भूल हुई। मैं तो आपके पुत्रके समान हूँ। मुझे क्षमा करें।' उर्वशी काममोहिता थी। उसने बहुत समझाया कि स्वर्गकी अप्पाराएँ किसीकी पत्नी नहीं होती। उनका उपभोग करनेका सभी स्वर्ग आये लोगोंको अधिकार है। परंतु अर्जुनका मन अविचल था। उन्होंने कहा- 'देवि !! मैं जो कहता हूँ, उसे आप सब दिशाएँ और सब देवता सुन लें। जैसे मेरे लिये माता कुन्ती और माद्री पूज्य हैं, जैसे शची मेरी माता हैं, वैसे ही मेरे वंशकी जननी आप भी मेरी माता है। मैं आपके चरणों में प्रणाम करता हूँ।'

रुष्ट होकर उर्वशीने एक वर्षतक नपुंसक रहनेका शाप दे दिया। अर्जुनके इस त्यागका कुछ ठिकाना है। सभाओं में दूसरोंके सामने बड़ी ऊँची बातें करना तो सभी जानते हैं किंतु एकान्तमें युवती स्त्री प्रार्थना करे और उसे 'मा' कहकर वहाँसे अछूता निकल जाये, ऐसे तोविरले ही होते हैं। अर्जुनका यह इन्द्रियसंयम तो इससे भी महान् है। उन्होंने उस उर्वशीको एकान्तमें रोती, गिड़गिड़ाती लौटा दिया, जिसके कटाक्षमात्र बड़े-बड़े तपस्वी क्षणभरमें विचलित हो जाते थे!

श्रीकृष्णचन्द्र क्यों अर्जुनको इतना चाहते थे, क्यों उनके प्राण धनञ्जयमें ही बसते थे-यह बात जो समझ जाय, उसे श्रीकृष्णका प्रेम प्राप्त करना सरल हो जाता है। प्रेमस्वरूप भक्तवत्सल श्यामसुन्दरको जो जैसा, जितना चाहता है, उसे वे भी उसी प्रकार चाहते हैं। उन पूर्णकामको बल, ऐश्वर्य, धन या बुद्धिकी चतुरतासे कोई नहीं रिझा सकता। अर्जुनमें लोकोत्तर शूरता थी, वे आडम्बरहीन इन्द्रियविजयो थे और सबसे अधिक यह कि सब होते हुए अत्यन्त विनयी थे। उनके प्राण श्रीकृष्णमें ही बसते थे। युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञका पूरा भार श्रीकृष्णचन्द्रपर ही था। श्यामने ही अपने परम भक्त धर्मराजके लिये समस्त राजाओंको जीतनेके लिये पाण्डवोंको भेजा। उन मधुसूदनकी कृपासे ही भीमसेन जरासन्धको मार सके इतनेपर भी अपने मित्र अर्जुनको प्रसन्न करनेके लिये युधिष्ठिरको चौदह सहस्र हाथी भगवान्ने भेंटस्वरूप दिये।

जिस समय महाभारतके युद्धमें अपनी ओर सम्मिलित होनेका निमन्त्रण देने दुर्योधन श्रीद्वारकेशके भवनमें गये, उस समय श्रीकृष्णचन्द्र सो रहे थे। दुर्योधन उनके सिरहाने एक आसनपर बैठ गये। अर्जुन भी कुछ पीछे पहुंचे और हाथ जोड़कर श्यामसुन्दरके श्रीचरणोंके पास नम्रतापूर्वक बैठ गये। भगवान्ने उठकर दोनोंका स्वागत सत्कार किया। दुर्योधनने कहा- 'मैं पहले आया हूँ, अतः आपको मेरी ओर आना चाहिये।' श्रीकृष्णचन्द्र बताया कि 'मैंने पहले अर्जुनको देखा है।' लीलामयने तनिक हँसकर कहा-"एक ओर तो मेरी 'नारायणी सेना' के वीर सशस्त्र सहायता करेंगे और दूसरी ओर मैं अकेला रहूँगा, परंतु मैं शस्त्र नहीं उठाऊंगा। आपमें से जिन्हें जो रुचे, ले लें; किंतु मैंने अर्जुनको पहले देखा है, अतः पहले माँग लेनेका अधिकार अर्जुनका है।"एक ओर भगवान्का बल, उनकी सेना और दूसरी ओर शस्त्रहीन भगवान्। एक ओर भोग और दूसरी ओर श्यामसुन्दर परंतु जैसे को कुछ सोचना नहीं पड़ा। उन्होंने कहा- 'मुझे तो आपकी आवश्यकता है। मैं आपको ही चाहता हूँ।' दुर्योधन बड़ा प्रसन्न हुआ। उसे अकेले शस्त्रहीन श्रीकृष्णकी आवश्यकता नहीं जान पड़ी। भोगकी इच्छा करनेवाले विष लोग इसी प्रकार विषय ही चाहते हैं। विषयभोगका त्याग कर श्रीकृष्णको पानेको इच्छा उनके मनमें नहीं जगती श्रीकृष्णचन्द दुर्योधनके जानेपर अर्जुनसे कहा- 'भला तुमने शस्त्रहीन अकेले मुझे क्यों लिया ? तुम चाहो तो तुम्हें दुर्योधनसे भी बड़ी सेना दे दूँ।' अर्जुनने कहा-'प्रभो। आप मुझे मोहमें क्यों डालते हैं। आपको छोड़कर मुझे तीनों लोकोंका राज्य भी नहीं चाहिये। आप शस्त्र लें या न लें, पाण्डवोंके तो एकमात्र आश्रय आप ही हैं।'

अर्जुनकी यही भक्ति, यही निर्भरता थी, जिसके कारण श्रीकृष्णचन्द्र उनके सारथि बने अनेक तत्त्ववेत्ता ऋषि-मुनियोंको छोड़कर जनार्दनने युद्धके आरम्भ उन्हें ही अपने श्रीमुखसे गीताके दुर्लभ और महान् ज्ञानका उपदेश किया। युद्धमें इस प्रकार उनकी रक्षामें वे दयामय लगे रहे, जैसे माता अबोध पुत्रको सारे संकटोंसे बचानेके लिये सदा सावधान रहती है।

युद्धमें जब द्रोणाचार्यके चक्रव्यूहमें फँसकर कुमार अभिमन्युने वीरगति प्राप्त कर ली, तब अर्जुनने अभिमन्युकी मृत्युका मुख्य कारण जयद्रथको जानकर प्रतिज्ञा की—'यदि जयद्रथ मेरी धर्मराज युधिष्ठिरकी या श्रीकृष्णचन्दकी शरण न आ गया तो कल सूर्यास्तसे पूर्व उसे मार डालूँगा। यदि ऐसा न करूँ तो मुझे वीर तथा पुण्यात्माओंको प्राप्त होनेवाले लोक न मिलें। पिता-माताका वध करनेवाले, गुरुस्त्रीगामी, चुगलखोर, साधु-निन्दा और परनिन्दा करनेवाले, धरोहर हड़प जानेवाले, विश्वासपात भुक्तपूर्वा स्त्रीको स्वीकार करनेवाले ब्रह्महत्यारे गोपाती आदिकी जो गति होती है, वह मुझे मिले, यदि मैं कल जयद्रथको न मार दूं। वेदाध्ययन करनेवाले तथा पवित्रपुरुषोंका अपमान करनेवाले, वृद्ध, साधु एवं गुरुका तिरस्कार करनेवाले, ब्राह्मण, गौ तथा अग्निको पैरसे छूनेवाले, जलमें थूकने तथा मल-मूत्र त्यागनेवाले, मंगे नहानेवाले, अतिथिको निराश लौटानेवाले, घूसखोर झूठ बोलनेवाले, उग, दम्भी, दूसरोंको मिथ्या दोष देनेवाले, स्त्री-पुत्र एवं आश्रितको न देकर अकेले ही मिठाई खानेवाले, अपने हितकारी, आश्रित तथा साधुका पालन न करनेवाले उपकारीको निन्दा करनेवाले, निर्दयी, शराबी, मर्यादा तोड़नेवाले, कृतार, अपने भरण-पोषणकर्ताक निन्दक, गोदमें भोजन रखकर बायें हाथसे खानेवाले, धर्मत्यागी, उषाकालमें सोनेवाले, जाड़ेके भयसे स्नान न करनेवाले, युद्ध छोड़कर भागनेवाले क्षत्रिय, वेदपाठरहित तथा एक कुएँवाले ग्राममें छः मास अधिक रहनेवाले, शास्त्र-निन्दक, दिनमें स्वीसङ्ग करनेवाले दिनमें सोनेवाले परमें आग लगानेवाले, विष देनेवाले, अग्नि तथा अतिथिको सेवासे विमुख, गौको जल पीनेसे रोकनेवाले, रजस्वलासे रति करनेवाले, कन्या बेचनेवाले तथा दान "देनेकी प्रतिज्ञा करके लोभवश न देनेवाले जिन नरकॉमें जाते हैं, वे ही मुझे मिलें, यदि मैं कल जयद्रथको न मारूं। यदि कल सूर्यास्ततक मैं जयद्रथको न मार सका तो चिता बनाकर उसमें जल जाऊँगा।'

भक्तके प्रणको चिन्ता भगवान्‌को ही होती है। अर्जुनने तो श्रीकृष्णचन्द्रसे कह दिया- आपकी कृपासे | मुझे किसीकी चिन्ता नहीं मैं सबको जीत लूंगा।' बात सच है; अर्जुनने अपने रथकी, अपने जीवनकी बागडोर जब मधुसूदनके हाथोंमें दे दी, तब वह क्यों चिन्ता करे। दूसरे दिन घोर संग्राम हुआ। श्रीकृष्णचन्द्रको अर्जुनकी प्रतिज्ञाकी रक्षाके लिये सारी व्यवस्था करनी पड़ी। सायंकाल श्रीहरिने सूर्यको ढककर अन्धकार कर दिया। सूर्यास्त हुआ समझकर अर्जुन चितामें प्रवेश करनेको उद्यत हुए। सभी कौरवपक्षके महारथी उन्हें इस दशामें देखने आ गये। उन्हींमें जयद्रथ भी आ गया। भगवान्ने कहा- अर्जुन। शीघ्रता करो। जयद्रथका मस्तक काट लो. पर वह भूमिपर न गिरे सावधान' भगवान्ने अन्धकार दूर कर दिया। सूर्य अस्ताचल जाते दिखायीपड़े। जयद्रथके रक्षक चकरा गये। अर्जुनने उसका सिर काट लिया। श्रीकृष्णने बताया- 'जयद्रथके पिताने तप करके शंकरजीसे वरदान पाया है कि जो जयद्रथका सिर भूमिपर गिरायेगा, उसके सिरके सौ टुकड़े हो जायेंगे। केशवके आदेश से अर्जुनने जयद्रथका सिर बाणसे ऊपर ही ऊपर उड़ाकर जहाँ उसके पिता सन्ध्याके समय सूर्योपस्थान कर रहे थे, वहाँ पहुँचाकर उनकी अञ्जलिमें गिरा दिया। झिझक उठने पिता द्वारा ही सिर भूमिपर गिरा। फलतः उनके सिरके सौ टुकड़े हो गये।

इन्द्रने कर्णको एक अमोघ शक्ति दी थी। एक ही बार उस शक्तिका कर्ण प्रयोग कर सकते थे। नित्य रात्रिको वे संकल्प करते थे दूसरे दिन अर्जुनपर उसका प्रयोग करनेके लिये, किंतु श्रीकृष्णचन्द्र उन्हें सम्मोहित कर देते थे। वे शक्तिका प्रयोग करना भूल जाते थे। भगवान्ने भीमके पुत्र घटोत्कचको रात्रि युद्धके लिये भेजा। उसने राक्षसी मायासे कौरव सेनामें त्राहि-त्राहि मचा दो दुर्योधनादिने कर्मको विवश किया यह राक्षस अभी सबको मार देगा। यह जब दीखता ही नहीं, तब इसके साथ युद्ध कैसे हो, इसे चाहे जैसे भी हो मारो।' अन्तमें कर्णने वह शक्ति घटोत्कचपर छोड़ी। वह राक्षस मर गया। घटोत्कचकी मृत्युसे जब पाण्डव दुःखी हो रहे थे तब श्रीकृष्णको प्रसन्न होते देख अर्जु कारण पूछा। भगवान्ने बताया- 'कर्णने तुम्हारे लिये ही शक्ति रख छोड़ी थी। शक्ति न रहनेसे अब वह मृत-सा ही है। घटोत्कच ब्राह्मणोंका द्वेषी, यहद्रोही, पापी और धर्मका लोप करनेवाला था उसे तो मैं स्वयं मार डालता; किंतु तुमलोगोंको बुरा लगेगा, इसलिये अवतक छोड़ दिया था।

कर्णके युद्धमें अर्जुनने अपने सखासे पूछा-'यदि कर्ण मुझे मार डाले तो आप क्या करेंगे? भगवान्ने कहा- चाहे सूर्य भूमिपर गिर पड़े. समुद्र सुख जाय, अग्नि शीतल बन जाय, पर ऐसा कभी नहीं होगा। यदि किसी प्रकार कर्ण तुम्हें मार दे तो संसारमें प्रलय हो जायगी। मैं अपने हाथोंसे ही कर्ण और राज्यको मसल डालूँगा।"भगवान्ने तो बहुत पहले घोषणा की थी- 'जी पाण्डवोंके मित्र हैं, वे मेरे मित्र हैं और जो पाण्डवोंके शत्रु हैं, वे मेरे शत्रु हैं।' उन भक्तवत्सलके लिये भक्त सदासे अपने हैं। जो भक्तोंसे द्रोह करते हैं, श्रीकृष्ण सदा ही उनके विपक्षी हैं।

कर्णने अनेक प्रयत्न किये। उसने सर्पमुख बाण छोड़ा, दिशाओंमें अग्नि लग गयी। दिनमें ही तारे टूटने लगे। खाण्डवदाहके समय बचकर निकला हुआ अर्जुनका शत्रु अश्वसेन नामक नाग भी अपना बदला लेने उसी बाणकी नोकपर चढ़ बैठा। बाण अर्जुनतक आये, इससे पहले ही भगवान्ने रथको अपने चरणोंसे दबाकर पृथ्वीमें धँसा दिया। बाण केवल अर्जुनके मुकुटमें लगा, जिससे मुकुट भूमिपर जलता हुआ गिर पड़ा।

महाभारतके युद्धमें इस प्रकार अनेक अवसर आये, अनेक बार अर्जुनकी बुद्धि तथा शक्ति कुण्ठित हुई। किंतु धर्मात्मा धैर्यशाली अर्जुनने कभी धर्म नहीं छोड़ा। उनके पास एक ही बाणसे प्रलय कर देनेवाला पाशुपतास्त्र था; परंतु प्राण संकटमें होनेपर भी उसको काममें लेनेकी उन्होंने इच्छा नहीं की। इसी प्रकार श्रीकृष्णके चरणों में उनका विश्वास एक पलको भी शिथिल नहीं हुआ। इसी प्रेम और विश्वासने भगवान्‌को बाँध लिया था। भगवान् उनका रथ हाँकते, घोड़े धोते और आपत्तिमें सब प्रकार उनकी रक्षा करते। श्रीकृष्णके प्रतापसे ही पाण्डव महाभारतके युद्धमें विजयी हुए। विजय हो जानेपर अन्तिम दिन छावनीपर आकर भगवान्ने अर्जुनको रथसे पहले उतरने को कहा। आज यह नयी बात थी, पर अर्जुनने आज्ञापालन किया। अर्जुनके उतरनेपर जैसे ही भगवान् उत्तरे कि रथकी ध्वजापर बैठा दिव्य वानर भी अदृश्य हो गया और वह रथ घोड़ोंके साथ तत्काल भस्म हो गया। भगवान्ने बताया- 'दिव्यास्त्रोंके प्रभावसे यह रथ भस्म तो कभीका हो चुका था। अपनी शक्तिसे में इसे अबतक बचाये हुए था। आज तुम पहले न उतर जाते तो रथके साथ हो भस्म हो जाते।'

अश्वत्थामाने जब ब्रह्मास्त्रका प्रयोग किया, तबभगवान्ने ही पाण्डवोंकी रक्षा की। अश्वत्थामाके ब्रह्मास्त्र के तेजसे उत्तराका गर्भस्थ बालक मरा हुआ उत्पन्न हुआ, उसे कृष्णचन्द्र जीवित कर दिया को मारनेकी अर्जुनने प्रतिज्ञा कर लो, तब भी मधुसूदनने ही उनकी रक्षा की।

द्वारकामें एक ब्राह्मणका पुत्र उत्पन्न होते ही मर जाया करता था। दुःखी ब्राह्मण मृत शिशुका शव राजद्वारपर रखकर बार-बार पुकारता-'पापी, ब्राह्मणद्रोही, शठ, लोभी राजाके पापसे हो मेरे पुत्रकी मृत्यु हुई है। जो राजा हिंसारत, दुश्चरित्र, अजितेन्द्रिय होता है, उसकी प्रजा कष्ट पाती है और दरिद्र रहती है।' ब्राह्मणके आठ बालक इसी प्रकार मर गये। किसीके किये कुछ होता नहीं था। जब नवें बालकका मृत शव लेकर वह ब्राह्मण आया, तब अर्जुन, राजभवनमें ही थे। वे श्रीकृष्णके साथ द्वारका आये हुए थे। उन्होंने ब्राह्मणकी करुण पुकार सुनी तो पास आकर कारण पूछा और आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि 'मैं आपकी रक्षा करूंगा।' ब्राह्मणने अविश्वास प्रकट किया तो अर्जुनने प्रतिज्ञा की 'यदि आपके बालकको न बचा सकूँ तो मैं अग्निमें प्रवेश करके शरीर त्याग दूँगा।'

दसवें बालकके उत्पन्न होनेके समय ब्राह्मणने समाचार दिया। उसके घर जाकर अर्जुनने सूतिकागारको ऊपर-नीचे चारों ओर बाणोंसे इस प्रकार ढक दिया कि उसमेंसे चींटी भी न जा सके। परंतु इस बार बड़ी विचित्र बात हुई। बालक उत्पन्न हुआ, रोया और फिर सशरीर अदृश्य हो गया। ब्राह्मण अर्जुनको धिक्कारने लगा। वे महारथी कुछ बोले नहीं। उनमें अब भी अहङ्कार था। भगवान्से भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। योगविद्याका आश्रय लेकर वे यमपुरी गये। वहाँ ब्राह्मणपुत्र न मिला तो इन्द्र, अग्नि, निर्ऋति, चन्द्र, वायु, वरुण आदि लोकपालोंके धाम, अतल, वितल आदि नीचेके लोक भी दे। परंतु कहीं भी उन्हें ब्राह्मणका पुत्र नहीं मिला। अन्तमें द्वारका आकर वे चिता बनाकर जलनेको तैयार हो गये।भगवान्ने अब उन्हें रोका और कहा-मैं तुम्हें द्विजपुत्र दिखलाता हूँ, मेरे साथ चलो।' भगवान्को तो अर्जुनमें जो अपनी शक्तिका गर्व था. उसे दूर करना था। वह दूर हो चुका। अपने दिव्याथमें अर्जुनको बैठाकर भगवानूने सातों द्वीप, सभी पर्वत और सातो समुद्र पार किये। लोकालोक पर्वतको पार करके अन्धकारमय प्रदेशम अपने चक्र के तेजसे मार्ग बनाकर अनन्त जलके समुद्रमें पहुँचे। अर्जुनने वहाँकी दिव्य ज्योति देखने में असमर्थ नेत्र बंद कर लिये। इस प्रकार श्रीकृष्णचन्द्र अर्जुनको लेकर भगवान् शेषशायीके समीप पहुँचे। अर्जुनने वहाँ भगवान् अनन्त-शेषजीको शय्यापर सोये नारायणके दर्शन किये। उन भूमा पुरुषने दोनोंका सत्कार करके उन्हें ब्राह्मणके बालक देते हुए कहा-'तुमलोगोंको देखनेके लिये ही मैंने ये बालक यहाँ मँगाये थे। तुम नारायण और नर हो। मेरे हो स्वरूप हो। पृथ्वीपर तुम्हारा कार्य पूरा हो गया। अब शीघ्र यहाँ आ जाओ।' वहाँसे आज्ञा लेकर दोनों लौट आये। अर्जुनने ब्राह्मणको बालक देकर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।

महाभारतके तो मुख्य नायक ही श्रीकृष्ण और अर्जुन हैं। अर्जुनकी शूरता, धर्मनिष्ठा, उदारता, भगवद्धति तथा उनपर भगवान् मधुसूदनकी कृपाका महाभारतमें विस्तारसे वर्णन है। दूसरे पुराणोंमें भी अर्जुनका चरित है। उन ग्रन्थोंको अवश्य पढ़ना चाहिये। यहाँ तो थोडेसे चरित संकेतरूपसे दिये गये हैं। अर्जुन भगवान्‌के नित्य पार्षद हैं। नारायणके नित्य संगी नर हैं। धर्मराज युधिष्ठिर जब परम धाम गये, तब वहाँ अर्जुनको उन्होंने भगवान्के पार्षदोंमें देखा। दुर्योधन कहा-अर्जुन श्रीकृष्णकी आत्मा हैं और श्रीकृष्ण अर्जुनकी आत्मा हैं। श्रीकृष्णके बिना अर्जुन जीवित नहीं रहना चाहते और अर्जुनके लिये श्रीकृष्ण अपना दिव्यलोक भी त्याग सकते हैं। भगवान् स्वयं अर्जुनको अपना प्रिय सखा और परम इष्टतक कहते रहे हैं और उन्होंने अपना-अर्जुनका प्रेम बने रहने तथा बढ़नेके लिये अग्निमे वरदानतक चाहा था।'



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esh naaraayanah krishnah phaalgunashch narah smritah .
naaraayano narachaiv satyamekan dvidha kritam ..

(mahaabhaarat, udyogaparv 49 . 20)
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dridha़ pratijnaake liye arjunakee bada़ee khyaati hai. poorvajanmake kaee shaap varadaanonke kaaran paanchaalaraajakumaaree draupadeeka vivaah paanchon paandavonse huaa. sansaaramen kalahakee mool teen hee vastuen hain-stree, dhan aur prithvee . in teenonmen bhee streeke liye jitana raktapaat hua hai, utana aur kiseeke liye naheen huaa. ek streeke kaaran bhaaiyonmen paraspar vaimanasy n ho, isaliye devarshi naaradajeekee aajnaase paandavonne niyam banaaya ki 'pratyek bhaaee do maheene baarah dinake kramase draupadeeke paas rahe. yadi ek bhaaee ekaantamen draupadeeke paas ho aur doosara vahaan use dekh le to vah baarah varshaka nirvaasan sveekaar kare.' ek baar raatri ke samay choronne ek braahmanako gaayen chura lee. vah pukaarata hua raajamahalake paas aayaa. vahakah raha tha jo raaja prajaase usakee aayaka chhatha bhaag lekar bhee raksha naheen karata, vah paapee hai.' arjun braahmanako aashvaasan dekar shastr lene bheetar gaye. jahaan unake dhanush aadi the, vahaan yudhishthir draupadeeke saath ekaantamen sthit the. ek aur braahmanake godhanakee rakshaaka prashn tha aur doosaree or nirvaasanaka bhay arjunane nishchay kiyaa-'chaahe kuchh ho, main sharanaagatakee rakshaase peechhe naheen hatoongaa.' bheetar jaakar ve shastr le aaye aur luteronka peechha karake unhen dand diyaa. gauen chhuda़aakar braahmanako de deen. ab ve dhananjay nirvaasan sveekaar karaneke liye udyat hue. yudhishthirajeene bahut samajhaaya - bada़e bhaaeeke paas ekaantamen chhote bhaaeeka pahunch jaana koee bada़a dosh naheen. draupadeeke saath saadhaaran baatacheet hee to ho rahee thee. braahmanakee gaayen bachaana raajadharm tha, atah vah to raajaaka hee kaary huaa.' parantu arjun in sab prayatnonse vichalit naheen hue. unhonne kahaa-'mahaaraaj ! mainne aapase hee suna hai ki dharmapaalanamen bahaanebaajee naheen karanee chaahiye. main satyako naheen chhoड़egaa. niyam banaakar usaka paalan n karana to asaty hai.' is prakaar bada़e bhaaeeke vachanonka laabh lekar arjun vichalit naheen hue. unhonne svechchha nirvaasan sveekaar kiyaa.

vyaasajeekee aajnaase arjun tapasya karake shastr praapt karane gaye. apane tap tatha paraakramase unhonne bhagavaan shankarako prasann karake paashupataastr praapt kiyaa. doosare lokapaalonne bhee prasann hokar apane-apane divyaastr unhen diye. isee samay devaraaj indraka saarathi maatali rath lekar unhen bulaane aayaa. usapar baithakar ve svarg gaye aur devataaonke drohee asuronko unhonne paraajit kiyaa. vaheen chitrasen gandharvase unhonne nritya-gaan vaadyako kala seekhee.

ek din arjun indrake saath unake sinhaasanapar baithe the. devaraajane dekha ki paarthakee drishti devasabhaayen naachateehuee urvashee apsaraapar lagee hai. indrane samajha ki arjun us apsaraapar aasakt hain. paraakramee dhananjayako prasann karaneke liye unhonne ekaantamen chitrasen gandharvake dvaara urvasheeko raatrimen arjunake paas jaaneka sandesh diyaa. urvashee arjunake bhavy roop evan mahaan paraakramapar pahale se hee mohit thee. indraka sandesh paakar vah bahut prasann huee. usee din chaandanee raatamen vastraabharanase apaneko bhaleebhaanti sajaakar vah arjunake paas pahunchee. arjunane usaka aadarase svaagat kiyaa. jo urvashee baड़e-baड़e tapasvee rishiyonko khoob saralataase vichalit karanemen samarth huee thee, bhagavaan naaraayanakee dee huee jo svargakee sarvashreshth sundaree thee, ekaantamen vah raatrike samay arjunake paas gayee thee. usane indraka sandesh kahakar apanee vaasana prakat kee. arjunake manamen isase tanik bhee vikaar naheen aayaa. unhonne kahaa-'maataa! aap hamaare pooruvanshake poorvaj mahaaraaj purooravaakee patnee rahee hain. aapase hee hamaara vansh chala hai. bharatakulakee jananee samajhakar hee devasabhaamen main aapako dekh raha tha aur mainne mana-hee-man aapako pranaam kiya thaa. devaraajako samajhane men bhool huee. main to aapake putrake samaan hoon. mujhe kshama karen.' urvashee kaamamohita thee. usane bahut samajhaaya ki svargakee appaaraaen kiseekee patnee naheen hotee. unaka upabhog karaneka sabhee svarg aaye logonko adhikaar hai. parantu arjunaka man avichal thaa. unhonne kahaa- 'devi !! main jo kahata hoon, use aap sab dishaaen aur sab devata sun len. jaise mere liye maata kuntee aur maadree poojy hain, jaise shachee meree maata hain, vaise hee mere vanshakee jananee aap bhee meree maata hai. main aapake charanon men pranaam karata hoon.'

rusht hokar urvasheene ek varshatak napunsak rahaneka shaap de diyaa. arjunake is tyaagaka kuchh thikaana hai. sabhaaon men doosaronke saamane bada़ee oonchee baaten karana to sabhee jaanate hain kintu ekaantamen yuvatee stree praarthana kare aur use 'maa' kahakar vahaanse achhoota nikal jaaye, aise tovirale hee hote hain. arjunaka yah indriyasanyam to isase bhee mahaan hai. unhonne us urvasheeko ekaantamen rotee, giड़giड़aatee lauta diya, jisake kataakshamaatr bada़e-bada़e tapasvee kshanabharamen vichalit ho jaate the!

shreekrishnachandr kyon arjunako itana chaahate the, kyon unake praan dhananjayamen hee basate the-yah baat jo samajh jaay, use shreekrishnaka prem praapt karana saral ho jaata hai. premasvaroop bhaktavatsal shyaamasundarako jo jaisa, jitana chaahata hai, use ve bhee usee prakaar chaahate hain. un poornakaamako bal, aishvary, dhan ya buddhikee chaturataase koee naheen rijha sakataa. arjunamen lokottar shoorata thee, ve aadambaraheen indriyavijayo the aur sabase adhik yah ki sab hote hue atyant vinayee the. unake praan shreekrishnamen hee basate the. yudhishthirake raajasooy yajnaka poora bhaar shreekrishnachandrapar hee thaa. shyaamane hee apane param bhakt dharmaraajake liye samast raajaaonko jeetaneke liye paandavonko bhejaa. un madhusoodanakee kripaase hee bheemasen jaraasandhako maar sake itanepar bhee apane mitr arjunako prasann karaneke liye yudhishthirako chaudah sahasr haathee bhagavaanne bhentasvaroop diye.

jis samay mahaabhaaratake yuddhamen apanee or sammilit honeka nimantran dene duryodhan shreedvaarakeshake bhavanamen gaye, us samay shreekrishnachandr so rahe the. duryodhan unake sirahaane ek aasanapar baith gaye. arjun bhee kuchh peechhe pahunche aur haath joda़kar shyaamasundarake shreecharanonke paas namrataapoorvak baith gaye. bhagavaanne uthakar dononka svaagat satkaar kiyaa. duryodhanane kahaa- 'main pahale aaya hoon, atah aapako meree or aana chaahiye.' shreekrishnachandr bataaya ki 'mainne pahale arjunako dekha hai.' leelaamayane tanik hansakar kahaa-"ek or to meree 'naaraayanee senaa' ke veer sashastr sahaayata karenge aur doosaree or main akela rahoonga, parantu main shastr naheen uthaaoongaa. aapamen se jinhen jo ruche, le len; kintu mainne arjunako pahale dekha hai, atah pahale maang leneka adhikaar arjunaka hai."ek or bhagavaanka bal, unakee sena aur doosaree or shastraheen bhagavaan. ek or bhog aur doosaree or shyaamasundar parantu jaise ko kuchh sochana naheen paड़aa. unhonne kahaa- 'mujhe to aapakee aavashyakata hai. main aapako hee chaahata hoon.' duryodhan bada़a prasann huaa. use akele shastraheen shreekrishnakee aavashyakata naheen jaan paड़ee. bhogakee ichchha karanevaale vish log isee prakaar vishay hee chaahate hain. vishayabhogaka tyaag kar shreekrishnako paaneko ichchha unake manamen naheen jagatee shreekrishnachand duryodhanake jaanepar arjunase kahaa- 'bhala tumane shastraheen akele mujhe kyon liya ? tum chaaho to tumhen duryodhanase bhee bada़ee sena de doon.' arjunane kahaa-'prabho. aap mujhe mohamen kyon daalate hain. aapako chhoda़kar mujhe teenon lokonka raajy bhee naheen chaahiye. aap shastr len ya n len, paandavonke to ekamaatr aashray aap hee hain.'

arjunakee yahee bhakti, yahee nirbharata thee, jisake kaaran shreekrishnachandr unake saarathi bane anek tattvavetta rishi-muniyonko chhoda़kar janaardanane yuddhake aarambh unhen hee apane shreemukhase geetaake durlabh aur mahaan jnaanaka upadesh kiyaa. yuddhamen is prakaar unakee rakshaamen ve dayaamay lage rahe, jaise maata abodh putrako saare sankatonse bachaaneke liye sada saavadhaan rahatee hai.

yuddhamen jab dronaachaaryake chakravyoohamen phansakar kumaar abhimanyune veeragati praapt kar lee, tab arjunane abhimanyukee mrityuka mukhy kaaran jayadrathako jaanakar pratijna kee—'yadi jayadrath meree dharmaraaj yudhishthirakee ya shreekrishnachandakee sharan n a gaya to kal sooryaastase poorv use maar daaloongaa. yadi aisa n karoon to mujhe veer tatha punyaatmaaonko praapt honevaale lok n milen. pitaa-maataaka vadh karanevaale, gurustreegaamee, chugalakhor, saadhu-ninda aur paraninda karanevaale, dharohar hada़p jaanevaale, vishvaasapaat bhuktapoorva streeko sveekaar karanevaale brahmahatyaare gopaatee aadikee jo gati hotee hai, vah mujhe mile, yadi main kal jayadrathako n maar doon. vedaadhyayan karanevaale tatha pavitrapurushonka apamaan karanevaale, vriddh, saadhu evan guruka tiraskaar karanevaale, braahman, gau tatha agniko pairase chhoonevaale, jalamen thookane tatha mala-mootr tyaaganevaale, mange nahaanevaale, atithiko niraash lautaanevaale, ghoosakhor jhooth bolanevaale, ug, dambhee, doosaronko mithya dosh denevaale, stree-putr evan aashritako n dekar akele hee mithaaee khaanevaale, apane hitakaaree, aashrit tatha saadhuka paalan n karanevaale upakaareeko ninda karanevaale, nirdayee, sharaabee, maryaada toda़nevaale, kritaar, apane bharana-poshanakartaak nindak, godamen bhojan rakhakar baayen haathase khaanevaale, dharmatyaagee, ushaakaalamen sonevaale, jaada़eke bhayase snaan n karanevaale, yuddh chhoda़kar bhaaganevaale kshatriy, vedapaatharahit tatha ek kuenvaale graamamen chhah maas adhik rahanevaale, shaastra-nindak, dinamen sveesang karanevaale dinamen sonevaale paramen aag lagaanevaale, vish denevaale, agni tatha atithiko sevaase vimukh, gauko jal peenese rokanevaale, rajasvalaase rati karanevaale, kanya bechanevaale tatha daan "denekee pratijna karake lobhavash n denevaale jin narakaॉmen jaate hain, ve hee mujhe milen, yadi main kal jayadrathako n maaroon. yadi kal sooryaastatak main jayadrathako n maar saka to chita banaakar usamen jal jaaoongaa.'

bhaktake pranako chinta bhagavaan‌ko hee hotee hai. arjunane to shreekrishnachandrase kah diyaa- aapakee kripaase | mujhe kiseekee chinta naheen main sabako jeet loongaa.' baat sach hai; arjunane apane rathakee, apane jeevanakee baagador jab madhusoodanake haathonmen de dee, tab vah kyon chinta kare. doosare din ghor sangraam huaa. shreekrishnachandrako arjunakee pratijnaakee rakshaake liye saaree vyavastha karanee pada़ee. saayankaal shreeharine sooryako dhakakar andhakaar kar diyaa. sooryaast hua samajhakar arjun chitaamen pravesh karaneko udyat hue. sabhee kauravapakshake mahaarathee unhen is dashaamen dekhane a gaye. unheenmen jayadrath bhee a gayaa. bhagavaanne kahaa- arjuna. sheeghrata karo. jayadrathaka mastak kaat lo. par vah bhoomipar n gire saavadhaana' bhagavaanne andhakaar door kar diyaa. soory astaachal jaate dikhaayeepada़e. jayadrathake rakshak chakara gaye. arjunane usaka sir kaat liyaa. shreekrishnane bataayaa- 'jayadrathake pitaane tap karake shankarajeese varadaan paaya hai ki jo jayadrathaka sir bhoomipar giraayega, usake sirake sau tukada़e ho jaayenge. keshavake aadesh se arjunane jayadrathaka sir baanase oopar hee oopar uda़aakar jahaan usake pita sandhyaake samay sooryopasthaan kar rahe the, vahaan pahunchaakar unakee anjalimen gira diyaa. jhijhak uthane pita dvaara hee sir bhoomipar giraa. phalatah unake sirake sau tukada़e ho gaye.

indrane karnako ek amogh shakti dee thee. ek hee baar us shaktika karn prayog kar sakate the. nity raatriko ve sankalp karate the doosare din arjunapar usaka prayog karaneke liye, kintu shreekrishnachandr unhen sammohit kar dete the. ve shaktika prayog karana bhool jaate the. bhagavaanne bheemake putr ghatotkachako raatri yuddhake liye bhejaa. usane raakshasee maayaase kaurav senaamen traahi-traahi macha do duryodhanaadine karmako vivash kiya yah raakshas abhee sabako maar degaa. yah jab deekhata hee naheen, tab isake saath yuddh kaise ho, ise chaahe jaise bhee ho maaro.' antamen karnane vah shakti ghatotkachapar chhoda़ee. vah raakshas mar gayaa. ghatotkachakee mrityuse jab paandav duhkhee ho rahe the tab shreekrishnako prasann hote dekh arju kaaran poochhaa. bhagavaanne bataayaa- 'karnane tumhaare liye hee shakti rakh chhoda़ee thee. shakti n rahanese ab vah mrita-sa hee hai. ghatotkach braahmanonka dveshee, yahadrohee, paapee aur dharmaka lop karanevaala tha use to main svayan maar daalataa; kintu tumalogonko bura lagega, isaliye avatak chhoda़ diya thaa.

karnake yuddhamen arjunane apane sakhaase poochhaa-'yadi karn mujhe maar daale to aap kya karenge? bhagavaanne kahaa- chaahe soory bhoomipar gir pada़e. samudr sukh jaay, agni sheetal ban jaay, par aisa kabhee naheen hogaa. yadi kisee prakaar karn tumhen maar de to sansaaramen pralay ho jaayagee. main apane haathonse hee karn aur raajyako masal daaloongaa."bhagavaanne to bahut pahale ghoshana kee thee- 'jee paandavonke mitr hain, ve mere mitr hain aur jo paandavonke shatru hain, ve mere shatru hain.' un bhaktavatsalake liye bhakt sadaase apane hain. jo bhaktonse droh karate hain, shreekrishn sada hee unake vipakshee hain.

karnane anek prayatn kiye. usane sarpamukh baan chhoda़a, dishaaonmen agni lag gayee. dinamen hee taare tootane lage. khaandavadaahake samay bachakar nikala hua arjunaka shatru ashvasen naamak naag bhee apana badala lene usee baanakee nokapar chadha़ baithaa. baan arjunatak aaye, isase pahale hee bhagavaanne rathako apane charanonse dabaakar prithveemen dhansa diyaa. baan keval arjunake mukutamen laga, jisase mukut bhoomipar jalata hua gir pada़aa.

mahaabhaaratake yuddhamen is prakaar anek avasar aaye, anek baar arjunakee buddhi tatha shakti kunthit huee. kintu dharmaatma dhairyashaalee arjunane kabhee dharm naheen chhoda़aa. unake paas ek hee baanase pralay kar denevaala paashupataastr thaa; parantu praan sankatamen honepar bhee usako kaamamen lenekee unhonne ichchha naheen kee. isee prakaar shreekrishnake charanon men unaka vishvaas ek palako bhee shithil naheen huaa. isee prem aur vishvaasane bhagavaan‌ko baandh liya thaa. bhagavaan unaka rath haankate, ghoda़e dhote aur aapattimen sab prakaar unakee raksha karate. shreekrishnake prataapase hee paandav mahaabhaaratake yuddhamen vijayee hue. vijay ho jaanepar antim din chhaavaneepar aakar bhagavaanne arjunako rathase pahale utarane ko kahaa. aaj yah nayee baat thee, par arjunane aajnaapaalan kiyaa. arjunake utaranepar jaise hee bhagavaan uttare ki rathakee dhvajaapar baitha divy vaanar bhee adrishy ho gaya aur vah rath ghoda़onke saath tatkaal bhasm ho gayaa. bhagavaanne bataayaa- 'divyaastronke prabhaavase yah rath bhasm to kabheeka ho chuka thaa. apanee shaktise men ise abatak bachaaye hue thaa. aaj tum pahale n utar jaate to rathake saath ho bhasm ho jaate.'

ashvatthaamaane jab brahmaastraka prayog kiya, tababhagavaanne hee paandavonkee raksha kee. ashvatthaamaake brahmaastr ke tejase uttaraaka garbhasth baalak mara hua utpann hua, use krishnachandr jeevit kar diya ko maaranekee arjunane pratijna kar lo, tab bhee madhusoodanane hee unakee raksha kee.

dvaarakaamen ek braahmanaka putr utpann hote hee mar jaaya karata thaa. duhkhee braahman mrit shishuka shav raajadvaarapar rakhakar baara-baar pukaarataa-'paapee, braahmanadrohee, shath, lobhee raajaake paapase ho mere putrakee mrityu huee hai. jo raaja hinsaarat, dushcharitr, ajitendriy hota hai, usakee praja kasht paatee hai aur daridr rahatee hai.' braahmanake aath baalak isee prakaar mar gaye. kiseeke kiye kuchh hota naheen thaa. jab naven baalakaka mrit shav lekar vah braahman aaya, tab arjun, raajabhavanamen hee the. ve shreekrishnake saath dvaaraka aaye hue the. unhonne braahmanakee karun pukaar sunee to paas aakar kaaran poochha aur aashvaasan diyaa. unhonne kaha ki 'main aapakee raksha karoongaa.' braahmanane avishvaas prakat kiya to arjunane pratijna kee 'yadi aapake baalakako n bacha sakoon to main agnimen pravesh karake shareer tyaag doongaa.'

dasaven baalakake utpann honeke samay braahmanane samaachaar diyaa. usake ghar jaakar arjunane sootikaagaarako oopara-neeche chaaron or baanonse is prakaar dhak diya ki usamense cheentee bhee n ja sake. parantu is baar bada़ee vichitr baat huee. baalak utpann hua, roya aur phir sashareer adrishy ho gayaa. braahman arjunako dhikkaarane lagaa. ve mahaarathee kuchh bole naheen. unamen ab bhee ahankaar thaa. bhagavaanse bhee unhonne kuchh naheen kahaa. yogavidyaaka aashray lekar ve yamapuree gaye. vahaan braahmanaputr n mila to indr, agni, nirriti, chandr, vaayu, varun aadi lokapaalonke dhaam, atal, vital aadi neecheke lok bhee de. parantu kaheen bhee unhen braahmanaka putr naheen milaa. antamen dvaaraka aakar ve chita banaakar jalaneko taiyaar ho gaye.bhagavaanne ab unhen roka aur kahaa-main tumhen dvijaputr dikhalaata hoon, mere saath chalo.' bhagavaanko to arjunamen jo apanee shaktika garv thaa. use door karana thaa. vah door ho chukaa. apane divyaathamen arjunako baithaakar bhagavaanoone saaton dveep, sabhee parvat aur saato samudr paar kiye. lokaalok parvatako paar karake andhakaaramay pradesham apane chakr ke tejase maarg banaakar anant jalake samudramen pahunche. arjunane vahaankee divy jyoti dekhane men asamarth netr band kar liye. is prakaar shreekrishnachandr arjunako lekar bhagavaan sheshashaayeeke sameep pahunche. arjunane vahaan bhagavaan ananta-sheshajeeko shayyaapar soye naaraayanake darshan kiye. un bhooma purushane dononka satkaar karake unhen braahmanake baalak dete hue kahaa-'tumalogonko dekhaneke liye hee mainne ye baalak yahaan mangaaye the. tum naaraayan aur nar ho. mere ho svaroop ho. prithveepar tumhaara kaary poora ho gayaa. ab sheeghr yahaan a jaao.' vahaanse aajna lekar donon laut aaye. arjunane braahmanako baalak dekar apanee pratijna poorn kee.

mahaabhaaratake to mukhy naayak hee shreekrishn aur arjun hain. arjunakee shoorata, dharmanishtha, udaarata, bhagavaddhati tatha unapar bhagavaan madhusoodanakee kripaaka mahaabhaaratamen vistaarase varnan hai. doosare puraanonmen bhee arjunaka charit hai. un granthonko avashy padha़na chaahiye. yahaan to thodese charit sanketaroopase diye gaye hain. arjun bhagavaan‌ke nity paarshad hain. naaraayanake nity sangee nar hain. dharmaraaj yudhishthir jab param dhaam gaye, tab vahaan arjunako unhonne bhagavaanke paarshadonmen dekhaa. duryodhan kahaa-arjun shreekrishnakee aatma hain aur shreekrishn arjunakee aatma hain. shreekrishnake bina arjun jeevit naheen rahana chaahate aur arjunake liye shreekrishn apana divyalok bhee tyaag sakate hain. bhagavaan svayan arjunako apana priy sakha aur param ishtatak kahate rahe hain aur unhonne apanaa-arjunaka prem bane rahane tatha badha़neke liye agnime varadaanatak chaaha thaa.'

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बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
बांके बिहारी की देख छटा,
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कैसे जीऊं मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही न लगे श्यामा तेरे बिना
आप आए नहीं और सुबह हो मई
मेरी पूजा की थाली धरी रह गई
मैं मिलन की प्यासी धारा
तुम रस के सागर रसिया हो
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम
लोग करें मीरा को यूँ ही बदनाम
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
राधे मोरी बंसी कहा खो गयी,
कोई ना बताये और शाम हो गयी,
हर साँस में हो सुमिरन तेरा,
यूँ बीत जाये जीवन मेरा
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
दुनिया का बन कर देख लिया, श्यामा का बन
राधा नाम में कितनी शक्ति है, इस राह पर
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया, दिल दीवाना हो गया ॥
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए।
जुबा पे राधा राधा राधा नाम हो जाए॥
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श्याम बंसी ना बुल्लां उत्ते रख अड़ेया
तेरी बंसी पवाडे पाए लख अड़ेया ।
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
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रूसी ऐ तू साडे नाल क्यों मेरी माँये,
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दुनिया की भीड़ में क्यों खो रहा,
मिलेगा कुछ भी ना फल जो बो रहा,
सुखो के दाता देवा, इन्हे घर में बुलाना
दुःख हरता दाता देवा, इन्हे दिल में
माए नी मै तुर चली आ अपने श्याम दे नाल,
माए नी मेरा हो गया गिरधर दे नाल ब्याह,