पुराने जमानेकी बात है। एक धनी गृहस्थके घर भगवत्कथाका बड़ा सुन्दर आयोजन हो रहा था। वैशाखका महीना, शुक्लपक्षकी रात्रिका समय। कथावाचक पण्डितजी विद्वान् तो थे ही, अच्छे गायक भी थे। वे बीच-बीचमें भगवत्सम्बन्धी भावपूर्ण पदोंका मधुर कण्ठसे गान भी करते। पहले उन्होंने श्रीमद्भागवतके आधारपर संक्षेपमें भगवान् के जन्मकी कथा सुनायी, फिर नन्दोत्सवका वर्णन करते-करते एक मधुर पद गाया।
कथाका प्रसङ्ग आगे चला। श्रोतागण व्यवहारकी चिन्ता और शरीरकी सुधि भूलकर भगवदानन्दमें मस्त हो गये। बहुतोंके शरीरमें रोमाञ्च हो आया। कितनोंकी आँखोंमें आँसू छलक आये। सभी तन्मय हो रहे थे।
उसी समय सुयोग देखकर एक डाकू उस धनी गृहस्थके घरमें घुस आया और चुपचाप धन- रत्न ढूँढ़ने लगा। परंतु भगवान्की ऐसी लीला कि बहुत प्रयास करनेपर भी उसके हाथ कुछ नहीं लगा। वह जिस समय कुछ-न-कुछ हाथ लगानेके लिये इधर-उधर ढूँढ़ रहा था, उसी समय उसका ध्यान यकायक कथाकी ओर चला गया। कथावाचक पण्डितजी महाराज ऊँचे स्वरसे कह रहे थे-" प्रात:काल हुआ। पूर्वदिशा उषाकी मनोरम ज्योति और अरुणकी लालिमासे रँग गयी। उस समय व्रजकी झाँकी अलौकिक हो रही थी। गौएँ और बछड़े सिर उठा-उठाकर नन्दबाबाके महलकी ओर सतृष्णदृष्टिसे देख रहे थे कि अब हमारे प्यारे श्रीकृष्ण हमें आनन्दित करनेके लिये आ ही रहे होंगे। उसी समय भगवान् श्रीकृष्णके प्यारे सखा श्रीदामा, सुदामा, वसुदामा आदि ग्वालबालोंने आकर भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामको बड़े प्रेमसे पुकारा-'हमारे प्यारे कन्हैया, आओ न। अबतक तुम सो ही रहे हो? देखो, गौएँ तुम्हें देखे बिना रँभा रही हैं। हम कभीसे खड़े हैं। चलो, वनमें गौएँ चरानेके लिये चलें। दाऊ दादा, तुम इतनी देर क्या कर रहे हो?' इस प्रकार ग्वालबालोंकी पुकार और जल्दी देखकर नन्दरानीने अपने प्यारे पुत्रोंको बड़े ही मधुर स्वरसे पुकार पुकारकर जगाया।
फिर मैयाने स्नेहसे उन्हें माखन मिश्रीका तथा भाँति-भाँतिके पकवानोंका कलेऊ करवाकर बड़े चाव से खूब सजाया लाखों-करोड़ों रुपयोंके गहने हीरे-जवाहर और मोतियोंसे जड़े स्वर्णालङ्कार अपने बच्चोंको पहनाये। मुकुटमें, बाजूबन्दमें, हारमें जो मणियाँ जगमगा रही थीं, उनके प्रकाशके सामने प्रातःकालका उजाला फीका पड़ गया। इस प्रकार भलीभाँति सजाकर नन्दरानीने अपने लाड़ले पुत्रोंके सिर सूँघे और फिर बड़े प्रेमसे गौ चरानेके लिये उन्हें बिदा किया।"
इतनी बातें डाकूने भी सुनीं; और तो कुछ उसने सुना था नहीं। अब वह सोचने लगा कि 'अरे! यह तो बड़ा अनुपम सुयोग है। मैं छोटी-मोटी चीजोंके लियेइधर-उधर मारा-मारा फिरता रहता हूँ, यह तो अपार सम्पत्ति हाथ लगनेका अवसर है। केवल दो बालक ही तो हैं। उनके दोनों गालोंपर दो-दो चपत जड़े नहीं कि | वे स्वयं अपने गहने निकालकर मुझे सौंप देंगे।' यह सोचकर वह डाकू धनी गृहस्थके घरसे बाहर निकल आया और कथाके समाप्त होनेकी बाट देखने लगा।
बहुत रात बीतनेपर कथा समाप्त हुई। भगवान्के नाम • और जयकारके नारोंसे आकाश गूंज उठा। भक्त गृहस्थ बड़ी नम्रतासे ठाकुरजीका प्रसाद ग्रहण करनेके लिये सब श्रोताओंसे अनुरोध करने लगे। प्रसाद बँटने लगा। उधर यह सब हो रहा था, परंतु डाकूके मनमें इन बातोंपर कोई ध्यान नहीं था। वह तो रह-रहकर कथावाचककी ओर देख रहा था। उसकी आँखें कथावाचकजीकी गति विधिपर जमी हुई थीं। कुछ समयके बाद प्रसाद पाकर कथावाचकजी अपने डेरेकी ओर चले। डाकू भी उनके पीछे-पीछे हो लिया।
जब पण्डितजी खुले मैदानमें पहुँचे, तब डाकूने पीछेसे कुछ कड़े स्वरमें पुकारकर कहा-'ओ पण्डितजी ! खड़े रहो।' पण्डितजीके पास दक्षिणाके रुपये-पैसे भी थे, वे कुछ डरकर और तेज चालसे चलने लगे। डाकूने दौड़ते हुए कहा- 'पण्डितजी, खड़े हो जाओ। यों भागनेसे नहीं बच सकोगे।' पण्डितजीने देखा कि अब छुटकारा नहीं है। वे लाचार होकर ठहर गये। डाकूने उनके पास पहुँचकर कहा-'देखिये, पण्डितजी! आप जिन कृष्ण और बलरामकी बात कह रहे थे, उनके लाखों-करोड़ों रुपयोंके गहनोंका वर्णन कर रहे थे, उनका घर कहाँ है? वे दोनों गौएँ चरानेके लिये कहाँ जाते हैं? आप सारी बातें ठीक-ठीक बता दीजिये। यदि जरा भी टालमटोल की तो बस, देखिये मेरे हाथमें कितना मोटा डंडा है; यह तुरंत आपके सिरके टुकड़े टुकड़े कर देगा।' पण्डितजीने देखा, उसका लंबा-चौड़ा दैत्य-सा शरीर बड़ा ही बलिष्ठ है। मजबूत हाथोंमें मोटी लाठी है, आँखोंसे क्रूरता टपक रही है। उन्होंने सोचा, हो न हो यह कोई डाकू है। फिर साहस बटोरकर कहा- 'तुम्हारा उनसे क्या काम है?' डाकूने तनिक जोर | देकर कहा-'जरूरत है।' पण्डितजी बोले-'जरूरत ।बताने में कुछ अड़चन है क्या?' डाकूने कहा- 'पण्डितजी । में डाकू हूँ। मैं उनके गहने लूटना चाहता हूँ। गहने मेरे हाथ लग गये तो आपको भी अवश्य ही कुछ दूँगा। देखिये, टालमटोल मत कीजिये। ठीक-ठीक बताइये।" पण्डितजीने समझ लिया कि यह वज्रमूर्ख है। अब उन्होंने कुछ हिम्मत करके कहा-' तब इसमें डर किस बातका है। मैं तुम्हें सब कुछ बतला दूंगा। लेकिन यहाँ रास्ते में तो मेरे पास पुस्तक नहीं है। मेरे डेरेपर चलो। पुस्तक देखकर सब ठीक-ठीक बतला दूंगा।' डाकू उनके साथ-साथ चलने लगा।
डेरेपर पहुँचकर पण्डितजीने किसीसे कुछ कहा नहीं। पुस्तक बाहर निकाली और वे डाकूको भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामकी रूप-माधुरी सुनाने लगे। उन्होंने कहा 'श्रीकृष्ण और बलराम दोनोंके ही चरण कमलोंमें सोनेके
सुन्दर नूपुर हैं, जो अपनी रुनझुन ध्वनिसे सबके मन मोह लेते हैं। श्यामवर्णके श्रीकृष्ण पीत वर्णका और गौर वर्णके बलराम नील वर्णका वस्त्र धारण कर रहे हैं। दोनोंकी कमरमें बहुमूल्य मोतियोंसे जड़ी सोनेकी करधनी शोभायमान है। गले में हीरे-जवाहरात के स्वर्णहार है हृदयपर कौस्तुभमणि झलमला रही है। ऐसी मणि जगत्में और कोई है ही नहीं। कलाईमें रत्नजटित सोनेके कङ्गन, कानोंमें मणिकुण्डल, सिरपर मनोहर मोहन चूड़ा। घुँघराले काले-काले बाल, ललाटपर कस्तूरीका तिलक, होठोंपर मन्द मन्द मुसकान, आँखोंसे मानो आनन्द और प्रेमको वर्षा हो रही है। श्रीकृष्ण अपने कर-कमलोंमें सोनेकी वंशी लिये उसे अधरोंसे लगाये रहते हैं। उनकी अङ्ग कान्तिके सामने करोड़ों सूर्योकी कोई गिनती नहीं। रंग-विरंगे सुगन्धित पुष्पोंकी माला, तोतेकी-सी नुकीली नासिका, कुन्द बीजके समान श्वेत दाँतोंकी पाँत, बड़ा लुभावना रूप है! अजी, जब वे त्रिभङ्गललित भावसे खड़े होते हैं, देखते देखते नेत्र तुम ही नहीं होते। बाँकेबिहारी श्रीकृष्ण जब अपनी बाँसुरी राधे-राधे-राधे' की मधुर तान छेड़ते हैं, तब बड़े-बड़े ज्ञानी भी अपनी समाधिसे पिण्ड छुड़ाकर उसे सुननेके लिये दौड़ आते हैं। यमुनाके तटपर वृन्दावनमें कदम्ब वृक्षके नीचे प्रायः उनके दर्शन मिलते हैं। वनमाली श्रीकृष्ण और हलधारी बलराम ।'डाकूने पूछा- 'अच्छा पण्डितजी, सब गहने मिलाकर कितने रुपयोंके होंगे?' पण्डितजीने कहा-'ओह, इसकी कोई गिनती नहीं है। करोड़ों-अरबोंसे भी ज्यादा!' डाकू - ' तब क्या जितने गहनोंके आपने नाम लिये, उनसे भी अधिक हैं?' पण्डितजी-'तो क्या? संसारकी समस्त सम्पत्ति एक ओर और कौस्तुभमणि एक ओर । 'फिर भी कोई तुलना नहीं।' डाकूने आनन्दसे गद्द होकर कहा- 'ठीक है, ठीक है! और कहिये, वह कैसी है?' पण्डितजी - ' वह मणि जिस स्थानपर रहती है, सूर्यके समान प्रकाश हो जाता है। वहाँ अँधेरा रह नहीं सकता। वैसा रत्न पृथ्वीमें और कोई है ही नहीं!' डाकू - 'तब तो उसके दाम बहुत ज्यादा होंगे। क्या बोले ? एक बार भलीभाँति समझा तो दीजिये। हाँ, एक बात तो भूल ही गया। मुझे किस ओर जाना चाहिये?' पण्डितजीने सारी बातें दुबारा समझा दीं। डाकूने कहा- 'देखिये, पण्डितजी ! मैं शीघ्र ही आकर आपको कुछ दूँगा। यहाँसे ज्यादा दूर तो नहीं है न? मैं एक ही रातमें पहुँच जाऊँगा, क्यों? अच्छा; हाँ-हाँ, एक बात और बताइये। क्या वे प्रतिदिन गौएँ चराने जाते हैं?' पण्डितजी- 'हाँ, और तो क्या?' डाकू - 'कब आते हैं?' पण्डितजी-'ठीक प्रातः काल । उस समय थोड़ा-थोड़ा अँधेरा भी रहता है।' डाकू - 'ठीक है, मैंने सब समझ लिया। हाँ तो, अब मुझे किधर जाना चाहिये?' पण्डितजी - 'बराबर उत्तरकी ओर चले जाओ।' डाकू प्रणाम करके चल पड़ा।
पण्डितजी मन-ही-मन हँसने लगे। देखो, यह कैसा पागल है! थोड़ी देर बाद उन्हें चिन्ता हो आयी, यह मूर्ख दो-चार दिन तो ढूँढ़नेका प्रयत्न करेगा। फिर लौटकर कहीं यह मुझपर अत्याचार करने लगा तो? किंतु नहीं, यह बड़ा विश्वासी है। लौटकर आयेगा तो एक रास्ता और बतला दूँगा। यह दो-चार दिन भटकेगा, तबतक मैं कथा समाप्त करके यहाँसे चलता बनूँगा। इससे पिण्ड छुड़ानेका और उपाय ही क्या है। पण्डितजी कुछ-कुछ निश्चिन्त हुए।
डाकू अपने घर गया। उसकी भूख, प्यास, नींद सब उड़ गयी। वह दिन-रात गहनोंकी बात सोचा करता, चमकीले गहनोंसे लदे दोनों नयन मन हरण बालकउसकी आँखोंके सामने नाचते रहते। डाकूके मनमें एक ही धुन थी। अँधेरा हुआ, डाकूने लाठी उठाकर कंधेपर रखी। वह उत्तर दिशाकी ओर चल पड़ा। वह उत्तर भी उसकी अपनी धुनका ही था, दूसरोंके देखनेमें शायद वह दक्खिन ही जा रहा हो। उसे इस बातका भी पता नहीं था कि उसके पैर धरतीपर पड़ रहे हैं या काँटों पर ।
चलते-चलते एक स्थानपर डाकूकी आँख खुली। उसने देखा, बड़ा सुन्दर हरा-भरा वन है। एक नदी भी कल-कल करती बह रही है। उसने सोचा, निश्चय किया 'यही है, यही है। परंतु वह कदम्बका पेड़ कहाँ है?' डाकू बड़ी सावधानीके साथ एक-एक वृक्षके पास जाकर कदम्बको पहचाननेकी चेष्टा करने लगा। अन्तमें वहाँ उसे एक कदम्ब मिल ही गया। अब उसके आनन्दकी सीमा न रही। उसने सन्तोषकी साँस ली और आस-पास आँखें दौड़ायीं। एक छोटा-सा पर्वत, घना जंगल और गौओंके चरनेका मैदान भी दीख गया। हरी हरी दूब रातके स्वाभाविक अँधेरेमें घुल-मिल गयी थी। फिर भी उसके मनके सामने गौओंके चरने और चरानेवालोंकी एक छटा छिटक ही गयी। अब डाकूके मनमें एक ही विचार था। कब सबेरा हो, कब अपना काम बने। वह एक-एक क्षण सावधानीसे देखता और सोचता कि आज सबेरा होनेमें कितनी देर हो रही है। ज्यों-ज्यों रात बीतती, त्यों-त्यों उसकी चिन्ता, उद्वेग, उत्तेजना, आग्रह और आकुलता बढ़ती जाती। वह कदम्बपर चढ़ गया और देखने लगा कि किसी और उजाला तो नहीं है। कहींसे वंशीकी आवाज तो नहीं आ रही है? उसने अपने मनको समझाया- 'अभी सबेरा होनेमें देर है । मैं ज्यों ही वंशीकी धुन सुनूँगा, त्यों ही टूट पड़ेंगा।' इस प्रकार सोचता हुआ बड़ी ही उत्कण्ठाके साथ वह डाकू सबेरा होनेकी बाट जोहने लगा।
देखते-ही-देखते मानो किसीने प्राची दिशाका मुख रोली के रंगसे, रँग दिया। डाकूके हृदयमें आकुलता और भी बढ़ गयी। वह पेड़से कूदकर जमीनपर आया, परंतु वंशीकी आवाज सुनायी न पड़नेके कारण फिर उछलकर कदम्बपर चढ़ गया। वहाँ भी किसी प्रकारकी आवाज | सुनायी नहीं पड़ी। उसका हृदय मानो क्षण-क्षणपर फटताजा रहा था। अभी-अभी उसका हृदय विहर उठता; परंतु यह क्या, उसकी आशा पूर्ण हो गयी! दूर, बहुत दूर वंशीकी सुरीली स्वर लहरी लहरा रही है। वह वृक्षसे कूद पड़ा। हाँ, ठीक है, ठीक है; बाँसुरी ही तो है। अच्छा, यह स्वर तो और समीप होता जा रहा है! डाकू आनन्दके आवेशमें अपनी सुध-बुध खो बैठा और मूर्छित होकर धरतीपर गिर पड़ा। कुछ ही क्षणोंमें उसकी बेहोशी दूर हुई, आँखें खुलीं; वह उठकर खड़ा हो गया। देखा तो पास ही जंगलमें एक दिव्य शीतल प्रकाश चारों ओर फैल रहा है। उस मनोहर प्रकाशमें दो भुवन मोहन बालक अपने अङ्गकी अलौकिक छटा बिखेर रहे हैं। गौएँ और बाल उनके आगे-आगे कुछ दूर निकल गये हैं।
डाकूने उन्हें देखा, अभी पुकार भी नहीं पाया था कि मन मुग्ध हो गया—'अहाहा! कैसे सुन्दर चेहरे हैं इनके आँखोंसे तो अमृत हो बरस रहा है और इनके तो अङ्ग-अङ्ग बहुमूल्य आभूषणोंसे भरे हैं। हाय-हाय ! इतने नन्हे नन्हे सुकुमार शिशुओंको माँ-बापने गौएँ चरानेके लिये कैसे भेजा? ओह! मेरा तो जी भरा आता हैमन चाहता है, इन्हें देखता ही रहूँ। इनके गहने उतारनेकी बात कैसी, इन्हें तो और भी सजाना चाहिये। नहीं, मैं इनके गहने नहीं छीनूँगा। ना, ना, गहने नहीं होगा तो फिर आया ही क्यों? ठीक है मैं गहने छीन लूंगा। परंतु इन्हें मारूंगा नहीं। बाबा रे बाबा, मुझसे यह काम न होगा! धत् तेरेकी! यह मोह छोह कैसा? मैं डाकू हूँ. डाकू में और दया? बस, बस, मैं अभी गहने छीने लेता हूँ। यह कहते-कहते वह श्रीकृष्ण और बलरामको ओर दौड़ा। भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामके पास पहुँचकर उनका स्वरूप देखते ही उसकी चेतना एक बार फिर लुप्त हो गयी। पैर लड़खड़ाये और वह गिर पड़ा। फिर उठा। कुछ देर टकटकी लगाये देखता रहा, आँखें आँसुओं से भर आयीं। फिर न मालूम क्या सोचा, हाथमें लाठी लेकर उनके सामने गया और बोला- 'खड़े हो जाओ। सारे गहने निकालकर मुझे दे दो।'
श्रीकृष्ण - 'हम अपने गहने तुम्हें क्यों दें?' डाकू' दोगे नहीं? मेरी लाठीकी ओर देखो।' श्रीकृष्ण-' लाठीसे क्या होगा?'डाकू' अच्छा, क्या होगा? गहना न देनेपर तुम्हारे सिर तोड़ डालूंगा और क्या होगा?'
श्रीकृष्ण-'नहीं, हमलोग गहने नहीं देंगे।' डाकू अभी-अभी मैं कान पकड़के ऐंठेंगा और सारे गहने छीन-छानकर तुम्हें नदीमें फेंक दूंगा।'
श्रीकृष्ण- (जोरसे) 'बाप रे बाप! ओ बाबा! ओ
बाबा!" डाकूने झपटकर अपने हाथसे श्रीकृष्णका मुँह दबाना चाहा, परंतु स्पर्श करते ही उसके सारे शरीर में बिजली दौड़ गयी। वह अचेत होकर धड़ामसे धरतीपर गिर पड़ा। कुछ क्षणोंके बाद जब चेत हुआ, तब वह श्रीकृष्णसे बोला-'अरे, तुम दोनों कौन हो? मैं ज्यों क्यों तुम दोनोंको देखता हूँ, त्यों-त्यों तुम मुझे और सुन्दर, और मधुर और मनोहर क्यों दीख रहे हो? मेरी आँखोंकी पलकें पड़नी बंद हो गयीं। हाय! हाय! मुझे रोना क्यों आ रहा है?' मेरे शरीरके सब रोएँ क्यों खड़े हो गये हैं? जान गया, जान गया, तुम दोनों देवता हो, 'मनुष्य नहीं हो।'
श्रीकृष्ण - [मुसकराकर ] 'नहीं' हम मनुष्य हैं। हम
ग्वालबाल हैं। हम व्रजके राजा नन्दबाबाके लड़के हैं।' डाकू अहा ! कैसी मुसकान है 'जाओ, जाओ; तुम लोग गौएँ चराओ। मैं अब गहने नहीं चाहता। मेरी आशा दुराशा, मेरी चाह आह सब मिट गयीं। हाँ, मैं चाहता हूँ कि तुम दोनोंके सुरंग अद्रोंमें अपने हाथों और भी गहने पहनाऊँ जाओ, जाओ। हाँ, एक बार अपने दोनों लाल-लाल चरण-कमलोंको तो मेरे सिरपर रख दो। हाँ, हाँ; जरा हाथ तो इधर करो! मैं एक बार तुम्हारी खिग्ध हथेलियोंका चुम्बन करके अपने प्राणोंको तुम कर लूँ ओह, तुम्हारा स्पर्श कितना शीतल, कितना मधुर! धन्य धन्य !! तुम्हारे मधुर स्पर्शसे हृदयकी ज्वाला शान्त हो रही है। आशा-अभिलाषा मिट गयी। जाओ, हाँ-हाँ, अब तुम जाओ मेरी भूख-प्यास मिट गयी। अब कहीं जानेकी इच्छा नहीं होती। मैं यहीं रहूँगा तुम दोनों रोज इसी रास्ते से जाओगे न? एक बार केवल एक क्षणके लिये प्रतिदिन, हाँ, प्रतिदिन मुझे दर्शन देते रहना। देखो, भूलना नहीं। किसी दिन नहीं आओगेदर्शन नहीं दोगे तो याद रखो, मेरे प्राण छटपटाकर छूट ही जायेंगे।'
श्रीकृष्ण अब तुम हमलोगोंको मारोगे तो नहीं? गहने तो नहीं छीन लोगे? हाँ ऐसी प्रतिज्ञा करो तो हमलोग प्रतिदिन आ सकते हैं।'
डाकू प्रतिज्ञा? चार प्रतिज्ञा अरे भगवान्की शपथ! तुमलोगोंको मैं कभी नहीं मारूँगा। तुम्हें मार सकता हो, ऐसा कोई है जगत्में? तुम्हें तो देखते ही सारी शक्ति गायब हो जाती हैं, मन ही हाथसे निकल जाता है। फिर कौन मारे और कैसे मारे। अच्छा, तुमलोग जाओ!'
श्रीकृष्ण - 'यदि तुम्हें हम लोग गहना दें तो लोगे?'
डाकू' गहना, गहना ! अब गहने क्या होंगे? अब तो कुछ भी लेनेकी इच्छा नहीं है।'
श्रीकृष्ण - 'क्यों नहीं? ले लो। हम तुम्हें दे रहे हैं न!' डाकू - 'तुम दे रहे हो? तुम मुझे दे रहे हो? तब तो लेना ही पड़ेगा। परंतु तुम्हारे माँ-बाप तुमपर नाराज होंगे, तुम्हें मारेंगे तो?"
श्रीकृष्ण - 'नहीं-नहीं, हम राजकुमार हैं। हमारे पास ऐसे ऐसे न जाने कितने गहने हैं। तुम चाहो तो तुम्हें और भी बहुत से गहने दे सकते हैं।'
डाकू - 'ऊहूँ, मैं क्या करूँगा। हाँ, हाँ; परंतु तुम्हारी बात टाली भी तो नहीं जाती। क्या तुम्हारे पास और गहने हैं? सच बोलो।'
श्रीकृष्ण - ' हैं नहीं तो क्या हम बिना हुए ही दे रहे हैं? लो, तुम इन्हें ले जाओ।'
भगवान् श्रीकृष्ण अपने शरीरपरसे गहने उतारकर देने लगे। डाकूने कहा- 'देखो भाई! यदि तुम देना ही चाहते हो तो मेरा यह दुपट्टा ले लो और इसमें अपने हाथोंसे बाँध दो किंतु देखो, लाला! यदि तुम मेरी इच्छा जानकर बिना मनके दे रहे हो तो मुझे गहने नहीं चाहिये। मेरी इच्छा तो अब बस एक यही है कि रोज एक बार तुम्हारे मनोहर मुखड़ेको मैं देख लिया करूँ और एक बार तुम्हारे चरणतलसे अपने सिरका स्पर्श व करा लिया करूँ।' श्रीकृष्ण-'नहीं-नहीं, बेमनकी बात र कैसी तुम फिर आना, तुम्हें इस बार और गहने देंगे।'श्रीकृष्णने उसके दुपट्टेमें सब गहने बाँध दिये। डाकूने गहनेकी पोटली हाथमें लेकर कहा-'क्यों भाई मैं फिर आऊँगा तो तुम मुझे और गहने दोगे न? गहने चाहे न देना, परंतु दर्शन जरूर देना।' श्रीकृष्णने कहा-'अवश्य! गहने भी और दर्शन भी दोनों।' डाकू गहने लेकर अपने घरके लिये रवाना हुआ।
डाकू आनन्दके समुद्रमें डूबता उतराता घर लौटा।
दूसरे दिन रातके समय कथावाचक पण्डितजीके पास
जाकर सब वृत्तान्त कहा और गहनोंकी पोटली उनके
सामने रख दी। बोला-'देखिये, देखिये, पण्डितजी !
कितने गहने लाया हूँ। आपकी जितनी इच्छा हो, ले लीजिये। पण्डितजी! उसने और गहने देना स्वीकार किया है।' पण्डितजी तो यह सब देख सुनकर चकित रह गये। उन्होंने बड़े विस्मयके साथ कहा- 'मैंने जिनकी कथा कही थी, उनके गहने ले आया?' डाकू बोला-'तब क्या, देखिये नः यह सोनेकी वंशी! यह सिरका मोहन चूड़ामणि!!' पण्डितजी हक्के-बक्के रह गये। बहुत सोचा, बहुत विचारा; परंतु वे किसी निश्चयपर नहीं पहुँच सके। जो अनादि, अनन्त पुरुषोत्तम हैं, बड़े | बड़े योगी सारे जगत्को तिनकेके समान त्यागकर, भूख प्यास नींदकी उपेक्षा करके सहस्र सहस्र वर्षपर्यन्त जिनके ध्यानकी पेशा करते हैं, परंतु दर्शनसे वञ्चित ही रह जाते हैं, उन्हें यह डाकू देख आया? उनके गहने ले आया? ना, ना, असम्भव ! हो नहीं सकता। परंतु यह क्या! यह चूड़ामणि, यह बाँसुरी, ये गहने, सभी तो अलौकिक हैं - इसे ये सब कहाँ, किस तरह मिले? कुछ समझमें नहीं आता। क्षणभर ठहरकर पण्डितजीने कहा- 'क्यों भाई तुम मुझे उसके दर्शन करा सकते हो?" डाकू क्यों नहीं, कल ही साथ चलिये न? पण्डितजी पूरे अविश्वासके साथ केवल उस घटनाका पता लगानेके लिये डाकूके साथ चल पड़े और दूसरे दिन नियत स्थानपर पहुँच गये। पण्डितजीने देखा एक सुन्दर सा वन है। छोटी-सी नदी बह रही है, बड़ा-सा मैदान और कदम्बका वृक्ष भी है। वह व्रज नहीं है, यमुना नहीं हैं; पर है कुछ वैसा ही। रात बीत गयी, सवेरा होनेके पहले ही डाकूने कहा-'देखिये पण्डितजी ! आप नये आदमी हैं। आप किसी पेड़कीआड़में छिप जाइये ! वह कहीं आपको देखकर न आये तो! अब प्रातः काल होनेमें विलम्ब नहीं है। अभी आयेगा।' डाकू पण्डितजीसे बात कर ही रहा था कि मुरलीकी मोहक ध्वनि उसके कानोंमें पड़ी। वह बोल उठा - 'सुनिये सुनिये, पण्डितजी ! बाँसुरी बज रही है! कितनी मधुर ! कितनी मोहक! सुन रहे हैं न?' पण्डितजी 'कहाँ जी, मैं तो कुछ नहीं सुन रहा हूँ। क्या तुम पागल हो गये हो?' डाकू - 'पण्डितजी! पागल नहीं, जरा ठहरिये; अभी आप उसे देखेंगे। रुकिये, मैं पेड़पर चढ़कर देखता हूँ कि वह अभी कितनी दूर है।'
डाकूने पेड़ पर चढ़कर देखा और कहा-'पण्डितजी ! पण्डितजी !! अब वह बहुत दूर नहीं है।' उतरकर उसने देखा कि थोड़ी दूरपर वैसा ही विलक्षण प्रकाश फैल रहा है। वह आनन्दके मारे पुकार उठा-'पण्डितजी! वह है, वह है। उसके शरीरकी दिव्य ज्योति सारे वनको चमका रही है।' पण्डितजी — 'मैं तो कुछ नहीं देखता।' डाकू 'ऐसा क्यों, पण्डितजी ? वह इतना निकट है, इतना प्रकाश है; फिर भी आप नहीं देख पाते हैं? अजी! आप जंगल, नदी, नाला - सब कुछ देख रहे हैं और उसको नहीं देख पाते?' पण्डितजी—'हाँ भाई! मैं तो नहीं देख रहा हूँ। देखो, यदि सचमुच वे हैं तो तुम उनसे कहो कि 'आज तुम जो देना चाहते हो, सब इसी ब्राह्मणके हाथपर दे दो।' डाकूने स्वीकार कर लिया।अबतक भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजी डाकूके पास आकर खड़े हो गये थे। डाकूने कहा-'आओ, आओ; मैं आ गया हूँ। तुम्हारी बाट जोह रहा था।' श्रीकृष्ण - 'गहने लोगे?' डाकू 'नहीं भाई! मैं गहने नहीं लूँगा। जो तुमने दिये थे, वे भी तुम्हें देनेके लिये लौटा लाया हूँ; तुम अपना सब ले लो। लेकिन भैया, ये पण्डितजी मेरी बातपर विश्वास नहीं कर रहे हैं। विश्वास करानेके लिये ही मैं इन्हें साथ लाया हूँ। मैं तुम्हारी वंशी ध्वनि सुनता हूँ। तुम्हारी अङ्गकान्तिसे चमकते हुए वनको देखता हूँ, तुम्हारे साथ बातचीत करता हूँ। परंतु पण्डितजी यह सब देख-सुन नहीं रहे हैं। यदि तुम इन्हें नहीं दीखोगे तो ये मेरी बातपर विश्वास नहीं करेंगे।' श्रीकृष्ण-'अरे भैया, अभी ये मेरे दर्शनके अधिकारी नहीं हैं। बूढ़े, विद्वान् अथवा पण्डित हैं तो क्या हुआ।' डाकू - 'नहीं, भाई मैं बलिहारी जाऊँ तुमपर। उनके लिये जो कहो, वही कर दूँ। परंतु एक बार इन्हें अपनी बाँकी झाँकी जरूर दिखा दो।' श्रीकृष्णने हँसकर कहा- 'अच्छी बात, तुम मुझे और पण्डितजीको एक साथ ही स्पर्श करो।' डाकूके ऐसा करते ही पण्डितजीकी दृष्टि दिव्य हो गयी। उन्होंने मुरलीमनोहर पीताम्बरधारी श्यामसुन्दरकी बाँकी झाँकीके दर्शन किये। फिर तो दोनों निहाल होकर भगवान्के चरणों में गिर पड़े।
puraane jamaanekee baat hai. ek dhanee grihasthake ghar bhagavatkathaaka bada़a sundar aayojan ho raha thaa. vaishaakhaka maheena, shuklapakshakee raatrika samaya. kathaavaachak panditajee vidvaan to the hee, achchhe gaayak bhee the. ve beecha-beechamen bhagavatsambandhee bhaavapoorn padonka madhur kanthase gaan bhee karate. pahale unhonne shreemadbhaagavatake aadhaarapar sankshepamen bhagavaan ke janmakee katha sunaayee, phir nandotsavaka varnan karate-karate ek madhur pad gaayaa.
kathaaka prasang aage chalaa. shrotaagan vyavahaarakee chinta aur shareerakee sudhi bhoolakar bhagavadaanandamen mast ho gaye. bahutonke shareeramen romaanch ho aayaa. kitanonkee aankhonmen aansoo chhalak aaye. sabhee tanmay ho rahe the.
usee samay suyog dekhakar ek daakoo us dhanee grihasthake gharamen ghus aaya aur chupachaap dhana- ratn dhoonढ़ne lagaa. parantu bhagavaankee aisee leela ki bahut prayaas karanepar bhee usake haath kuchh naheen lagaa. vah jis samay kuchha-na-kuchh haath lagaaneke liye idhara-udhar dhoondha़ raha tha, usee samay usaka dhyaan yakaayak kathaakee or chala gayaa. kathaavaachak panditajee mahaaraaj oonche svarase kah rahe the-" praata:kaal huaa. poorvadisha ushaakee manoram jyoti aur arunakee laalimaase rang gayee. us samay vrajakee jhaankee alaukik ho rahee thee. gauen aur bachhada़e sir uthaa-uthaakar nandabaabaake mahalakee or satrishnadrishtise dekh rahe the ki ab hamaare pyaare shreekrishn hamen aanandit karaneke liye a hee rahe honge. usee samay bhagavaan shreekrishnake pyaare sakha shreedaama, sudaama, vasudaama aadi gvaalabaalonne aakar bhagavaan shreekrishn aur balaraamako bada़e premase pukaaraa-'hamaare pyaare kanhaiya, aao na. abatak tum so hee rahe ho? dekho, gauen tumhen dekhe bina ranbha rahee hain. ham kabheese khada़e hain. chalo, vanamen gauen charaaneke liye chalen. daaoo daada, tum itanee der kya kar rahe ho?' is prakaar gvaalabaalonkee pukaar aur jaldee dekhakar nandaraaneene apane pyaare putronko bada़e hee madhur svarase pukaar pukaarakar jagaayaa.
phir maiyaane snehase unhen maakhan mishreeka tatha bhaanti-bhaantike pakavaanonka kaleoo karavaakar bada़e chaav se khoob sajaaya laakhon-karoda़on rupayonke gahane heere-javaahar aur motiyonse jada़e svarnaalankaar apane bachchonko pahanaaye. mukutamen, baajoobandamen, haaramen jo maniyaan jagamaga rahee theen, unake prakaashake saamane praatahkaalaka ujaala pheeka pada़ gayaa. is prakaar bhaleebhaanti sajaakar nandaraaneene apane laada़le putronke sir soonghe aur phir bada़e premase gau charaaneke liye unhen bida kiyaa."
itanee baaten daakoone bhee suneen; aur to kuchh usane suna tha naheen. ab vah sochane laga ki 'are! yah to bada़a anupam suyog hai. main chhotee-motee cheejonke liyeidhara-udhar maaraa-maara phirata rahata hoon, yah to apaar sampatti haath laganeka avasar hai. keval do baalak hee to hain. unake donon gaalonpar do-do chapat jada़e naheen ki | ve svayan apane gahane nikaalakar mujhe saunp denge.' yah sochakar vah daakoo dhanee grihasthake gharase baahar nikal aaya aur kathaake samaapt honekee baat dekhane lagaa.
bahut raat beetanepar katha samaapt huee. bhagavaanke naam • aur jayakaarake naaronse aakaash goonj uthaa. bhakt grihasth bada़ee namrataase thaakurajeeka prasaad grahan karaneke liye sab shrotaaonse anurodh karane lage. prasaad bantane lagaa. udhar yah sab ho raha tha, parantu daakooke manamen in baatonpar koee dhyaan naheen thaa. vah to raha-rahakar kathaavaachakakee or dekh raha thaa. usakee aankhen kathaavaachakajeekee gati vidhipar jamee huee theen. kuchh samayake baad prasaad paakar kathaavaachakajee apane derekee or chale. daakoo bhee unake peechhe-peechhe ho liyaa.
jab panditajee khule maidaanamen pahunche, tab daakoone peechhese kuchh kada़e svaramen pukaarakar kahaa-'o panditajee ! khada़e raho.' panditajeeke paas dakshinaake rupaye-paise bhee the, ve kuchh darakar aur tej chaalase chalane lage. daakoone dauda़te hue kahaa- 'panditajee, khada़e ho jaao. yon bhaaganese naheen bach sakoge.' panditajeene dekha ki ab chhutakaara naheen hai. ve laachaar hokar thahar gaye. daakoone unake paas pahunchakar kahaa-'dekhiye, panditajee! aap jin krishn aur balaraamakee baat kah rahe the, unake laakhon-karoड़on rupayonke gahanonka varnan kar rahe the, unaka ghar kahaan hai? ve donon gauen charaaneke liye kahaan jaate hain? aap saaree baaten theeka-theek bata deejiye. yadi jara bhee taalamatol kee to bas, dekhiye mere haathamen kitana mota danda hai; yah turant aapake sirake tukada़e tukada़e kar degaa.' panditajeene dekha, usaka lanbaa-chauda़a daitya-sa shareer bada़a hee balishth hai. majaboot haathonmen motee laathee hai, aankhonse kroorata tapak rahee hai. unhonne socha, ho n ho yah koee daakoo hai. phir saahas batorakar kahaa- 'tumhaara unase kya kaam hai?' daakoone tanik jor | dekar kahaa-'jaroorat hai.' panditajee bole-'jaroorat .bataane men kuchh aड़chan hai kyaa?' daakoone kahaa- 'panditajee . men daakoo hoon. main unake gahane lootana chaahata hoon. gahane mere haath lag gaye to aapako bhee avashy hee kuchh doongaa. dekhiye, taalamatol mat keejiye. theeka-theek bataaiye." panditajeene samajh liya ki yah vajramoorkh hai. ab unhonne kuchh himmat karake kahaa-' tab isamen dar kis baataka hai. main tumhen sab kuchh batala doongaa. lekin yahaan raaste men to mere paas pustak naheen hai. mere derepar chalo. pustak dekhakar sab theeka-theek batala doongaa.' daakoo unake saatha-saath chalane lagaa.
derepar pahunchakar panditajeene kiseese kuchh kaha naheen. pustak baahar nikaalee aur ve daakooko bhagavaan shreekrishn aur balaraamakee roopa-maadhuree sunaane lage. unhonne kaha 'shreekrishn aur balaraam dononke hee charan kamalonmen soneke
sundar noopur hain, jo apanee runajhun dhvanise sabake man moh lete hain. shyaamavarnake shreekrishn peet varnaka aur gaur varnake balaraam neel varnaka vastr dhaaran kar rahe hain. dononkee kamaramen bahumooly motiyonse jada़ee sonekee karadhanee shobhaayamaan hai. gale men heere-javaaharaat ke svarnahaar hai hridayapar kaustubhamani jhalamala rahee hai. aisee mani jagatmen aur koee hai hee naheen. kalaaeemen ratnajatit soneke kangan, kaanonmen manikundal, sirapar manohar mohan chooda़aa. ghungharaale kaale-kaale baal, lalaatapar kastooreeka tilak, hothonpar mand mand musakaan, aankhonse maano aanand aur premako varsha ho rahee hai. shreekrishn apane kara-kamalonmen sonekee vanshee liye use adharonse lagaaye rahate hain. unakee ang kaantike saamane karoda़on sooryokee koee ginatee naheen. ranga-virange sugandhit pushponkee maala, totekee-see nukeelee naasika, kund beejake samaan shvet daantonkee paant, bada़a lubhaavana roop hai! ajee, jab ve tribhangalalit bhaavase khada़e hote hain, dekhate dekhate netr tum hee naheen hote. baankebihaaree shreekrishn jab apanee baansuree raadhe-raadhe-raadhe' kee madhur taan chheda़te hain, tab bada़e-bada़e jnaanee bhee apanee samaadhise pind chhuda़aakar use sunaneke liye dauda़ aate hain. yamunaake tatapar vrindaavanamen kadamb vrikshake neeche praayah unake darshan milate hain. vanamaalee shreekrishn aur haladhaaree balaraam .'daakoone poochhaa- 'achchha panditajee, sab gahane milaakar kitane rupayonke honge?' panditajeene kahaa-'oh, isakee koee ginatee naheen hai. karoda़on-arabonse bhee jyaadaa!' daakoo - ' tab kya jitane gahanonke aapane naam liye, unase bhee adhik hain?' panditajee-'to kyaa? sansaarakee samast sampatti ek or aur kaustubhamani ek or . 'phir bhee koee tulana naheen.' daakoone aanandase gadd hokar kahaa- 'theek hai, theek hai! aur kahiye, vah kaisee hai?' panditajee - ' vah mani jis sthaanapar rahatee hai, sooryake samaan prakaash ho jaata hai. vahaan andhera rah naheen sakataa. vaisa ratn prithveemen aur koee hai hee naheen!' daakoo - 'tab to usake daam bahut jyaada honge. kya bole ? ek baar bhaleebhaanti samajha to deejiye. haan, ek baat to bhool hee gayaa. mujhe kis or jaana chaahiye?' panditajeene saaree baaten dubaara samajha deen. daakoone kahaa- 'dekhiye, panditajee ! main sheeghr hee aakar aapako kuchh doongaa. yahaanse jyaada door to naheen hai na? main ek hee raatamen pahunch jaaoonga, kyon? achchhaa; haan-haan, ek baat aur bataaiye. kya ve pratidin gauen charaane jaate hain?' panditajee- 'haan, aur to kyaa?' daakoo - 'kab aate hain?' panditajee-'theek praatah kaal . us samay thoda़aa-thoda़a andhera bhee rahata hai.' daakoo - 'theek hai, mainne sab samajh liyaa. haan to, ab mujhe kidhar jaana chaahiye?' panditajee - 'baraabar uttarakee or chale jaao.' daakoo pranaam karake chal pada़aa.
panditajee mana-hee-man hansane lage. dekho, yah kaisa paagal hai! thoda़ee der baad unhen chinta ho aayee, yah moorkh do-chaar din to dhoonढ़neka prayatn karegaa. phir lautakar kaheen yah mujhapar atyaachaar karane laga to? kintu naheen, yah bada़a vishvaasee hai. lautakar aayega to ek raasta aur batala doongaa. yah do-chaar din bhatakega, tabatak main katha samaapt karake yahaanse chalata banoongaa. isase pind chhuड़aaneka aur upaay hee kya hai. panditajee kuchha-kuchh nishchint hue.
daakoo apane ghar gayaa. usakee bhookh, pyaas, neend sab uda़ gayee. vah dina-raat gahanonkee baat socha karata, chamakeele gahanonse lade donon nayan man haran baalakausakee aankhonke saamane naachate rahate. daakooke manamen ek hee dhun thee. andhera hua, daakoone laathee uthaakar kandhepar rakhee. vah uttar dishaakee or chal pada़aa. vah uttar bhee usakee apanee dhunaka hee tha, doosaronke dekhanemen shaayad vah dakkhin hee ja raha ho. use is baataka bhee pata naheen tha ki usake pair dharateepar pada़ rahe hain ya kaanton par .
chalate-chalate ek sthaanapar daakookee aankh khulee. usane dekha, baड़a sundar haraa-bhara van hai. ek nadee bhee kala-kal karatee bah rahee hai. usane socha, nishchay kiya 'yahee hai, yahee hai. parantu vah kadambaka peda़ kahaan hai?' daakoo bada़ee saavadhaaneeke saath eka-ek vrikshake paas jaakar kadambako pahachaananekee cheshta karane lagaa. antamen vahaan use ek kadamb mil hee gayaa. ab usake aanandakee seema n rahee. usane santoshakee saans lee aur aasa-paas aankhen dauda़aayeen. ek chhotaa-sa parvat, ghana jangal aur gauonke charaneka maidaan bhee deekh gayaa. haree haree doob raatake svaabhaavik andheremen ghula-mil gayee thee. phir bhee usake manake saamane gauonke charane aur charaanevaalonkee ek chhata chhitak hee gayee. ab daakooke manamen ek hee vichaar thaa. kab sabera ho, kab apana kaam bane. vah eka-ek kshan saavadhaaneese dekhata aur sochata ki aaj sabera honemen kitanee der ho rahee hai. jyon-jyon raat beetatee, tyon-tyon usakee chinta, udveg, uttejana, aagrah aur aakulata badha़tee jaatee. vah kadambapar chadha़ gaya aur dekhane laga ki kisee aur ujaala to naheen hai. kaheense vansheekee aavaaj to naheen a rahee hai? usane apane manako samajhaayaa- 'abhee sabera honemen der hai . main jyon hee vansheekee dhun sunoonga, tyon hee toot pada़engaa.' is prakaar sochata hua bada़ee hee utkanthaake saath vah daakoo sabera honekee baat johane lagaa.
dekhate-hee-dekhate maano kiseene praachee dishaaka mukh rolee ke rangase, rang diyaa. daakooke hridayamen aakulata aur bhee badha़ gayee. vah peda़se koodakar jameenapar aaya, parantu vansheekee aavaaj sunaayee n pada़neke kaaran phir uchhalakar kadambapar chadha़ gayaa. vahaan bhee kisee prakaarakee aavaaj | sunaayee naheen pada़ee. usaka hriday maano kshana-kshanapar phatataaja raha thaa. abhee-abhee usaka hriday vihar uthataa; parantu yah kya, usakee aasha poorn ho gayee! door, bahut door vansheekee sureelee svar laharee lahara rahee hai. vah vrikshase kood pada़aa. haan, theek hai, theek hai; baansuree hee to hai. achchha, yah svar to aur sameep hota ja raha hai! daakoo aanandake aaveshamen apanee sudha-budh kho baitha aur moorchhit hokar dharateepar gir pada़aa. kuchh hee kshanonmen usakee behoshee door huee, aankhen khuleen; vah uthakar khada़a ho gayaa. dekha to paas hee jangalamen ek divy sheetal prakaash chaaron or phail raha hai. us manohar prakaashamen do bhuvan mohan baalak apane angakee alaukik chhata bikher rahe hain. gauen aur baal unake aage-aage kuchh door nikal gaye hain.
daakoone unhen dekha, abhee pukaar bhee naheen paaya tha ki man mugdh ho gayaa—'ahaahaa! kaise sundar chehare hain inake aankhonse to amrit ho baras raha hai aur inake to anga-ang bahumooly aabhooshanonse bhare hain. haaya-haay ! itane nanhe nanhe sukumaar shishuonko maan-baapane gauen charaaneke liye kaise bhejaa? oha! mera to jee bhara aata haiman chaahata hai, inhen dekhata hee rahoon. inake gahane utaaranekee baat kaisee, inhen to aur bhee sajaana chaahiye. naheen, main inake gahane naheen chheenoongaa. na, na, gahane naheen hoga to phir aaya hee kyon? theek hai main gahane chheen loongaa. parantu inhen maaroonga naheen. baaba re baaba, mujhase yah kaam n hogaa! dhat terekee! yah moh chhoh kaisaa? main daakoo hoon. daakoo men aur dayaa? bas, bas, main abhee gahane chheene leta hoon. yah kahate-kahate vah shreekrishn aur balaraamako or dauda़aa. bhagavaan shreekrishn aur balaraamake paas pahunchakar unaka svaroop dekhate hee usakee chetana ek baar phir lupt ho gayee. pair lada़khada़aaye aur vah gir pada़aa. phir uthaa. kuchh der takatakee lagaaye dekhata raha, aankhen aansuon se bhar aayeen. phir n maaloom kya socha, haathamen laathee lekar unake saamane gaya aur bolaa- 'khada़e ho jaao. saare gahane nikaalakar mujhe de do.'
shreekrishn - 'ham apane gahane tumhen kyon den?' daakoo' doge naheen? meree laatheekee or dekho.' shreekrishna-' laatheese kya hogaa?'daakoo' achchha, kya hogaa? gahana n denepar tumhaare sir toड़ daaloonga aur kya hogaa?'
shreekrishna-'naheen, hamalog gahane naheen denge.' daakoo abhee-abhee main kaan pakada़ke ainthenga aur saare gahane chheena-chhaanakar tumhen nadeemen phenk doongaa.'
shreekrishna- (jorase) 'baap re baapa! o baabaa! o
baabaa!" daakoone jhapatakar apane haathase shreekrishnaka munh dabaana chaaha, parantu sparsh karate hee usake saare shareer men bijalee dauda़ gayee. vah achet hokar dhada़aamase dharateepar gir pada़aa. kuchh kshanonke baad jab chet hua, tab vah shreekrishnase bolaa-'are, tum donon kaun ho? main jyon kyon tum dononko dekhata hoon, tyon-tyon tum mujhe aur sundar, aur madhur aur manohar kyon deekh rahe ho? meree aankhonkee palaken pada़nee band ho gayeen. haaya! haaya! mujhe rona kyon a raha hai?' mere shareerake sab roen kyon khada़e ho gaye hain? jaan gaya, jaan gaya, tum donon devata ho, 'manushy naheen ho.'
shreekrishn - [musakaraakar ] 'naheen' ham manushy hain. hama
gvaalabaal hain. ham vrajake raaja nandabaabaake lada़ke hain.' daakoo aha ! kaisee musakaan hai 'jaao, jaao; tum log gauen charaao. main ab gahane naheen chaahataa. meree aasha duraasha, meree chaah aah sab mit gayeen. haan, main chaahata hoon ki tum dononke surang adronmen apane haathon aur bhee gahane pahanaaoon jaao, jaao. haan, ek baar apane donon laala-laal charana-kamalonko to mere sirapar rakh do. haan, haan; jara haath to idhar karo! main ek baar tumhaaree khigdh hatheliyonka chumban karake apane praanonko tum kar loon oh, tumhaara sparsh kitana sheetal, kitana madhura! dhany dhany !! tumhaare madhur sparshase hridayakee jvaala shaant ho rahee hai. aashaa-abhilaasha mit gayee. jaao, haan-haan, ab tum jaao meree bhookha-pyaas mit gayee. ab kaheen jaanekee ichchha naheen hotee. main yaheen rahoonga tum donon roj isee raaste se jaaoge na? ek baar keval ek kshanake liye pratidin, haan, pratidin mujhe darshan dete rahanaa. dekho, bhoolana naheen. kisee din naheen aaogedarshan naheen doge to yaad rakho, mere praan chhatapataakar chhoot hee jaayenge.'
shreekrishn ab tum hamalogonko maaroge to naheen? gahane to naheen chheen loge? haan aisee pratijna karo to hamalog pratidin a sakate hain.'
daakoo pratijnaa? chaar pratijna are bhagavaankee shapatha! tumalogonko main kabhee naheen maaroongaa. tumhen maar sakata ho, aisa koee hai jagatmen? tumhen to dekhate hee saaree shakti gaayab ho jaatee hain, man hee haathase nikal jaata hai. phir kaun maare aur kaise maare. achchha, tumalog jaao!'
shreekrishn - 'yadi tumhen ham log gahana den to loge?'
daakoo' gahana, gahana ! ab gahane kya honge? ab to kuchh bhee lenekee ichchha naheen hai.'
shreekrishn - 'kyon naheen? le lo. ham tumhen de rahe hain na!' daakoo - 'tum de rahe ho? tum mujhe de rahe ho? tab to lena hee pada़egaa. parantu tumhaare maan-baap tumapar naaraaj honge, tumhen maarenge to?"
shreekrishn - 'naheen-naheen, ham raajakumaar hain. hamaare paas aise aise n jaane kitane gahane hain. tum chaaho to tumhen aur bhee bahut se gahane de sakate hain.'
daakoo - 'oohoon, main kya karoongaa. haan, haan; parantu tumhaaree baat taalee bhee to naheen jaatee. kya tumhaare paas aur gahane hain? sach bolo.'
shreekrishn - ' hain naheen to kya ham bina hue hee de rahe hain? lo, tum inhen le jaao.'
bhagavaan shreekrishn apane shareeraparase gahane utaarakar dene lage. daakoone kahaa- 'dekho bhaaee! yadi tum dena hee chaahate ho to mera yah dupatta le lo aur isamen apane haathonse baandh do kintu dekho, laalaa! yadi tum meree ichchha jaanakar bina manake de rahe ho to mujhe gahane naheen chaahiye. meree ichchha to ab bas ek yahee hai ki roj ek baar tumhaare manohar mukhada़eko main dekh liya karoon aur ek baar tumhaare charanatalase apane siraka sparsh v kara liya karoon.' shreekrishna-'naheen-naheen, bemanakee baat r kaisee tum phir aana, tumhen is baar aur gahane denge.'shreekrishnane usake dupattemen sab gahane baandh diye. daakoone gahanekee potalee haathamen lekar kahaa-'kyon bhaaee main phir aaoonga to tum mujhe aur gahane doge na? gahane chaahe n dena, parantu darshan jaroor denaa.' shreekrishnane kahaa-'avashya! gahane bhee aur darshan bhee donon.' daakoo gahane lekar apane gharake liye ravaana huaa.
daakoo aanandake samudramen doobata utaraata ghar lautaa.
doosare din raatake samay kathaavaachak panditajeeke paasa
jaakar sab vrittaant kaha aur gahanonkee potalee unake
saamane rakh dee. bolaa-'dekhiye, dekhiye, panditajee !
kitane gahane laaya hoon. aapakee jitanee ichchha ho, le leejiye. panditajee! usane aur gahane dena sveekaar kiya hai.' panditajee to yah sab dekh sunakar chakit rah gaye. unhonne bada़e vismayake saath kahaa- 'mainne jinakee katha kahee thee, unake gahane le aayaa?' daakoo bolaa-'tab kya, dekhiye nah yah sonekee vanshee! yah siraka mohan chooda़aamani!!' panditajee hakke-bakke rah gaye. bahut socha, bahut vichaaraa; parantu ve kisee nishchayapar naheen pahunch sake. jo anaadi, anant purushottam hain, bada़e | bada़e yogee saare jagatko tinakeke samaan tyaagakar, bhookh pyaas neendakee upeksha karake sahasr sahasr varshaparyant jinake dhyaanakee pesha karate hain, parantu darshanase vanchit hee rah jaate hain, unhen yah daakoo dekh aayaa? unake gahane le aayaa? na, na, asambhav ! ho naheen sakataa. parantu yah kyaa! yah chooda़aamani, yah baansuree, ye gahane, sabhee to alaukik hain - ise ye sab kahaan, kis tarah mile? kuchh samajhamen naheen aataa. kshanabhar thaharakar panditajeene kahaa- 'kyon bhaaee tum mujhe usake darshan kara sakate ho?" daakoo kyon naheen, kal hee saath chaliye na? panditajee poore avishvaasake saath keval us ghatanaaka pata lagaaneke liye daakooke saath chal pada़e aur doosare din niyat sthaanapar pahunch gaye. panditajeene dekha ek sundar sa van hai. chhotee-see nadee bah rahee hai, bada़aa-sa maidaan aur kadambaka vriksh bhee hai. vah vraj naheen hai, yamuna naheen hain; par hai kuchh vaisa hee. raat beet gayee, savera honeke pahale hee daakoone kahaa-'dekhiye panditajee ! aap naye aadamee hain. aap kisee peda़keeaada़men chhip jaaiye ! vah kaheen aapako dekhakar n aaye to! ab praatah kaal honemen vilamb naheen hai. abhee aayegaa.' daakoo panditajeese baat kar hee raha tha ki muraleekee mohak dhvani usake kaanonmen pada़ee. vah bol utha - 'suniye suniye, panditajee ! baansuree baj rahee hai! kitanee madhur ! kitanee mohaka! sun rahe hain na?' panditajee 'kahaan jee, main to kuchh naheen sun raha hoon. kya tum paagal ho gaye ho?' daakoo - 'panditajee! paagal naheen, jara thahariye; abhee aap use dekhenge. rukiye, main peda़par chadha़kar dekhata hoon ki vah abhee kitanee door hai.'
daakoone peda़ par chadha़kar dekha aur kahaa-'panditajee ! panditajee !! ab vah bahut door naheen hai.' utarakar usane dekha ki thoda़ee doorapar vaisa hee vilakshan prakaash phail raha hai. vah aanandake maare pukaar uthaa-'panditajee! vah hai, vah hai. usake shareerakee divy jyoti saare vanako chamaka rahee hai.' panditajee — 'main to kuchh naheen dekhataa.' daakoo 'aisa kyon, panditajee ? vah itana nikat hai, itana prakaash hai; phir bhee aap naheen dekh paate hain? ajee! aap jangal, nadee, naala - sab kuchh dekh rahe hain aur usako naheen dekh paate?' panditajee—'haan bhaaee! main to naheen dekh raha hoon. dekho, yadi sachamuch ve hain to tum unase kaho ki 'aaj tum jo dena chaahate ho, sab isee braahmanake haathapar de do.' daakoone sveekaar kar liyaa.abatak bhagavaan shreekrishn aur balaraamajee daakooke paas aakar khada़e ho gaye the. daakoone kahaa-'aao, aao; main a gaya hoon. tumhaaree baat joh raha thaa.' shreekrishn - 'gahane loge?' daakoo 'naheen bhaaee! main gahane naheen loongaa. jo tumane diye the, ve bhee tumhen deneke liye lauta laaya hoon; tum apana sab le lo. lekin bhaiya, ye panditajee meree baatapar vishvaas naheen kar rahe hain. vishvaas karaaneke liye hee main inhen saath laaya hoon. main tumhaaree vanshee dhvani sunata hoon. tumhaaree angakaantise chamakate hue vanako dekhata hoon, tumhaare saath baatacheet karata hoon. parantu panditajee yah sab dekha-sun naheen rahe hain. yadi tum inhen naheen deekhoge to ye meree baatapar vishvaas naheen karenge.' shreekrishna-'are bhaiya, abhee ye mere darshanake adhikaaree naheen hain. boodha़e, vidvaan athava pandit hain to kya huaa.' daakoo - 'naheen, bhaaee main balihaaree jaaoon tumapara. unake liye jo kaho, vahee kar doon. parantu ek baar inhen apanee baankee jhaankee jaroor dikha do.' shreekrishnane hansakar kahaa- 'achchhee baat, tum mujhe aur panditajeeko ek saath hee sparsh karo.' daakooke aisa karate hee panditajeekee drishti divy ho gayee. unhonne muraleemanohar peetaambaradhaaree shyaamasundarakee baankee jhaankeeke darshan kiye. phir to donon nihaal hokar bhagavaanke charanon men gir pada़e.