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देवर्षि नारद की मार्मिक कथा
देवर्षि नारद की अधबुत कहानी - Full Story of देवर्षि नारद (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [देवर्षि नारद]- भक्तमाल


प्रगायतः स्ववीर्याणि तीर्थपादः प्रियश्रवाः । आहूत इव मे शीघ्रं दर्शनं याति चेतसि ।।

(श्रीमद्भा0 16 34)

स्वयं देवर्षि नारदजीने अपनी स्थितिके विषयमें कहा है-'जब मैं उन परमपावनचरण उदारश्रवा प्रभुके गुणों का गान करने लगता हूँ, तब वे प्रभु अविलम्ब मेरे चित्तमें बुलाये हुएकी भाँति तुरंत प्रकट हो जाते हैं।' श्रीनारदजी नित्य परिव्राजक हैं। उनका काम ही है— अपनी वीणाकी मनोहर झंकारके साथ भगवान्‌के गुणोंका गान करते हुए सदा पर्यटन करना। वे कीर्तनके परमाचार्य हैं, भागवतधर्मके प्रधान बारह आचायोंमें हैं और भक्तिसूत्रके निर्माता भी हैं साथ ही उन्होंने प्रतिज्ञ भी की है-सम्पूर्ण पृथ्वीपर घर-घर एवं जन-जनमें भक्तिकी स्थापना करनेकी। निरन्तर वे भक्तिके प्रचारमें ही लगे रहते हैं।

पूर्व कल्पमें नारदजी उपबर्हण नामके गन्धर्व थे। बड़े ही सुन्दर थे शरीरसे। और अपने रूपका गर्व भी था उन्हें। एक बार भगवान् ब्रह्माके यहाँ सभी गन्धर्व, किन्नर आदि भगवान्‌का गुण-कीर्तन करने एकत्र हुए। उस समूहमें उपबर्हण स्त्रियोंको साथ लेकर गये। जहाँ भगवान् में चित्त लगाकर उन मङ्गलमयके गुणगानसे अपनेको और दूसरोंको भी पवित्र करना चाहिये, वहाँ कोई स्त्रियोंको लेकर शृङ्गारके भावसे जाय और कामियोंकी भाँति चटक मटक करे, यह बहुत बड़ा अपराध है। ब्रह्माजीने उपबर्हणका यह प्रमाद देखकर उन्हें शूद्रयोनिमें जन्म लेनेका शाप दे दिया।

महापुरुषका क्रोध भी जीवके कल्पानके लिये ही होता है। ब्रह्माजीने गन्धर्व उपबर्हणपर कृपा करके ही शाप दिया था। उस शापके फलसे वे सदाचारी, संयमी, वेदवादी ब्राह्मणोंकी सेवा करनेवाली शूद्रा दासीके पुत्र हुए। भगवान् ब्रह्माकी कृपासे बचपनसे ही उनमें धीरता, गम्भीरता, सरलता, समता, शील आदि सद्गुण आ गये। उस दासीके और कोई नहीं रह गया था। वह अपने एकमात्र पुत्रसे बहुत ही स्नेह करती थी। जब बालककीअवस्था पाँच वर्षके लगभग थी, तब कुछ योगी संतोंने वर्षाऋतुमें एक जगह चातुर्मास्य किया। बालककी माता उन साधुओंकी सेवामें लगी रहती थी। वहीं वे भी उनकी सेवा करते थे। स्वयं नारदजीने भगवान् व्याससे कहा है-'व्यासजी ! उस समय यद्यपि मैं बहुत छोटा था; फिर भी मुझमें चञ्चलता नहीं थी, मैं जितेन्द्रिय था, दूसरे सब खेल छोड़कर साधुओंके आज्ञानुसार उनकी सेवामें लगा रहता था। वे संत भी मुझे भोला-भाला शिशु जानकर मुझपर बड़ी कृपा करते थे। मैं शूद्र बालक था और उन ब्राह्मण-संतोंकी अनुमतिसे उनके बर्तनोंमें लगा हुआ अन्न दिनमें एक बार खा लिया करता था। इससे मेरे हृदयका सब कल्मष दूर हो गया। मेरा चित्त शुद्ध हो गया। संत जो परस्पर भगवान्‌की चर्चा करते थे, उसे सुननेमें मेरी रुचि हो गयी।'

चातुर्मास्य करके जब वे साधुगण जाने लगे, तब उस दासीके बालककी दीनता, नम्रता आदि देखकर उसपर उन्होंने कृपा की। बालकको उन्होंने भगवान्‌के स्वरूपका ध्यान तथा नामके जपका उपदेश किया। साधुओंके चले जानेके कुछ समय पश्चात् वह शूद्रा दासी रातको अँधेरेमें अपने स्वामी ब्राह्मणदेवताकी गाय दुह रही थी कि उसे पैरमें सर्पने काट लिया। सर्पके काटने से उसकी मृत्यु हो गयी। नारदजीने माताकी मृत्युको भी भगवान्‌को कृपा ही समझा। स्नेहवश माता उन्हें कहीं जाने नहीं देती थी। माताका वात्सल्य भी एक बन्धन ही था, जिसे भक्तवत्सल प्रभुने दूर कर दिया। पाँच वर्षकी अवस्था थी, न देशका पता था और न कालका। नारदजी दयामय विश्वम्भरके भरोसे ठीक उत्तरकी ओर वनके मार्गसे चल पड़े और बढ़ते हो गये। बहुत दूर जाकर जब वे थक गये, तब एक सरोवरका जल पीकर उसके किनारे पीपलके नीचे बैठकर, साधुओंने जैसा बताया था वैसे ही, भगवान्‌का ध्यान करने लगे। ध्यान करते समय एक क्षणके लिये सहसा हृदयमें भगवान् प्रकट हो गये। नारदजी आनन्दमग्न हो गये। परंतु वह दिव्य झाँकी तो | विद्युत्की भाँति आयी और चली गयी। अत्यन्त व्याकुलहो बार-बार नारदजो उसी झाँकीको पुनः पानेका प्रयत्न करने लगे। बालकको बहुत ही व्याकुल होते देख आकाशवाणीने आश्वासन देते हुए बतलाया-'इस जन्म में तुम मुझे देख नहीं सकते। जिनका चित्त पूर्णतः निर्मल नहीं है, वे मेरे दर्शनके अधिकारी नहीं। यह एक झाँकी मैंने तुम्हें कृपा करके इसलिये दिखलायी कि इसके दर्शनसे तुम्हारा चित्त मुझमें लग जाय ।'

नारदजीने वहाँ भूमिमें मस्तक रखकर दयामय प्रभुके प्रति प्रणाम किया और वे भगवान्का गुण गाते हुए पृथ्वीपर घूमने लगे। समय आनेपर उनका वह शरीर छूट गया। उस कल्पमें उनका फिर जन्म नहीं हुआ। कल्पान्तमें वे ब्रह्माजीमें प्रविष्ट हो गये और सृष्टिके प्रारम्भमें ब्रह्माजीके मनसे प्रकट हुए। वे भगवान्के मनके अवतार हैं। दयामय भक्तवत्सल प्रभु जो कुछ करना चाहते हैं, देवर्षिके द्वारा वैसी ही चेष्टा होती है।

प्रहादजी जब माताके गर्भमें थे, तभी गर्भस्थ बालकको लक्ष्य करके देवर्षिने उन दैत्यसाम्राज्ञीको उपदेश किया था। देवर्षिकी कृपासे प्रह्लादजीको वह उपदेश भूला नहीं। उसी ज्ञानके कारण प्रह्लादजीमें इतना दृढ़ भगवद्विश्वास हुआ। इसी प्रकार ध्रुव जब सौतेली माताके वचनोंसे रूठकर वनमें तप करने जा रहे थे, तब मार्गमें उन्हें नारदजी मिले। नारदजीने ही ध्रुवको मन्त्र देकर उपासनाकी पद्धति बतलायी। प्रजापति दक्षके हर्यश्व नामक दस सहस्र पुत्र पिताकी आज्ञासे सृष्टिविस्तारके लिये तप कर रहे थे। देवर्षिने देखा कि ये शुद्धहृदय बालक तो भगवत्प्राप्तिके अधिकारी हैं, अतः उन्हें उपदेश देकर नारदजीने सबको विरक्त बना दिया। दक्ष इस समाचारसे बहुत दुःखी हुए। उन्होंने दूसरी बार एक सहस्र पुत्र उत्पन्न किये। ये शबलाश्व नामक दक्षपुत्र भी तपमें लगे और इन्हें भी कृपा करके देवर्षिने भगवन्मार्गपर अग्रसर कर दिया। प्रजापति दक्षको जब यह समाचार मिला, तब वे अत्यन्त क्रोधित हुए। उन्होंने देवर्षिको शाप दिया कि 'तुम दो घड़ीसे अधिक कहीं ठहर नहीं सकोगे।' नारदजीने शापको सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्हें इसमें तनिक भी क्षोभ नहीं हुआ, क्योंकि वे तो इसे अपने आराध्य प्रभुकी इच्छा समझकर सन्तुष्ट हो रहे थे।देवर्षि नारदजी वेदान्त योग, ज्योतिष, वैद्यक, सङ्गीत शास्त्रादि अनेक विद्याओंके आचार्य हैं और भक्तिके तो वे मुख्याचार्य हैं। उनका पाञ्चरात्र भागवत मार्गका मुख्य ग्रन्थ है। देवर्षिने कितने लोगोंपर कब कैसे कृपा की है, इसकी गणना कोई नहीं कर सकता। वे कृपाकी ही मूर्ति हैं। जीवोंपर कृपा करनेके लिये वे निरन्तर त्रिलोकीमें घूमते रहते हैं। उनका एक ही व्रत है कि जो भी मिल जाय, उसे चाहे जैसे हो, भगवान्के श्रीचरणोंतक पहुँचा दिया जाय। जो जैसा अधिकारी होता है, उसे वे वैसा मार्ग बतलाते हैं। प्रह्लाद तथा ध्रुवको उनके अनुसार और हिरण्यकशिपु तथा कंसको उनके अनुसार मार्ग उन्होंने बताया। उनका उद्देश्य रहता है कि जीव जल्दी से जल्दो भगवान्‌को प्राप्त करे। देवर्षि ही एकमात्र ऐसे हैं जिनका सभी सुर, असुर समानरूपसे आदर करते रहे हैं। सभी उनको अपना हितैषी मानते रहे हैं और वे सचमुच सबके सच्चे हितैषी हैं।

भगवान् व्यास जब वेदोंका विभाजन तथा महाभारतकी रचना करके भी प्राणियोंकी कल्याण-कामनासे खिन्न हो रहे थे, तब उन्हें भागवत तत्त्वत्का उपदेश करते हुए नारदजीने बताया- 'वह वाणी वाणी नहीं है, जिसके | विचित्र पदोंमें त्रिभुवनपावन श्रीहरिके यशोंका वर्णन न हुआ हो। वह कौओंका तीर्थ है, जहाँ मानसरोवरविहारी सुशिक्षित हंस क्रीडा नहीं करते अर्थात् जैसे घृणित विष्ठापर चोंच मारनेवाले कौओंक समान मलिन विषयानुरागी कामी मनुष्योंका मन उस वाणीमें रमता है, वैसा मानसरोवरमें विहरण करनेवाले राजहंसोंके समान परमहंस भागवतोंका मन उसमें कभी नहीं रमता उस वाणीको बोलना तो संसारपर वज्रपात करनेके समान तथा लोगोंको पापमग्न करनेवाला है, जिसके प्रत्येक पदमें भगवान्के वे मङ्गलमय नाम एवं यश नहीं है, जिनको साधुजन सुनते हैं, गाते हैं और वर्णन करते हैं। भगवान्‌की भक्ति भावनासे शून्य निर्मल निरञ्जन नैष्कर्म्यं ज्ञान भी शोभा नहीं देता; फिर वह सदा अकल्याणकारी कर्म तो कैसे शोभा दे सकता है, जो निष्कामभावसे भगवान‌को समर्पित नहीं कर दिया गया है।' भगवान् श्रीकृष्णने नारदजीके गुणोंकी प्रशंसा करते हुए एक बार राजा उग्रसेनसे कहा था

अहं हि सर्वदा स्तौमि नारदं देवदर्शनम् ।
महेन्द्रगदितेनैव स्तोत्रेण शृणुll
उत्सङ्गाद्ब्रह्मणो जातो यस्याहन्ता न विद्यते।
अगुम श्रुतिचारित्र नारदे तं नमाम्यहम् अरतिः क्रोधचापल्ये भयं नैतानि यस्य च।
अदीर्घसूत्रं तं धीरं नारदं प्रणमाम्यहम् ॥
कामाद्वा यदि वा लोभाद् वाचं यो नान्यथा वदेत्।
उपास्यं सर्वजन्तूनां नारदं तं नमाम्यहम् ॥ अध्यात्मगतितत्त्वज्ञं ज्ञानशक्ति जितेन्द्रियम् ।
ऋजु यथार्थवक्तारं नारदं तं नमाम्यहम् ॥
तेजसा यशसा बुद्धवा नयेन विनयेन च ।
जन्मना तपसा वृद्धं नारदं प्रणमाम्यहम् ॥
सुखशीलं सुवेषं सुभोजं भास्वरं शुचिम् ।
सुचक्षुषं सुवाक्यं च नारदं प्रणमाम्यहम् ॥
कल्याणं कुरुते बाढं पापं यस्मिन्त्र विद्यते।
न प्रीयते परार्थेन योऽसौ तं नौमि नारदम् ॥ वेदस्मृतिपुराणोक्तं धर्मं यो नित्यमास्थितः । प्रियाप्रियविमुक्तं तं नारदं प्रणमाम्यहम् ॥
अशनादिष्वलितं च पण्डितं नालसं द्विजम्।
बहुश्रुतं चित्रकथं नारदं प्रणमाम्यहम् ।।
नार्थे क्रोधे च कामे च भूतपूर्वोऽस्य विभ्रमः ।
येनैते नाशिता दोषा नारदं तं नमाम्यहम् ll
वीतसम्मोहदोषो यो दृढभक्तिश्च श्रेयसि ।
सुनयं सत्रपं तं च नारदं प्रणमाम्यहम् ।।
असक्तः सर्वसङ्गेषु यः सक्तात्मेव लक्ष्यते ।
अदीर्घसंशयो वाग्मी नारदं प्रणमाम्यहम् ॥
नासूयत्यागमं किञ्चित् तपः कृत्येन जीवति । अवध्यकालो वश्यात्मा तमहं नौमि नारदम् ॥
कृतश्रमं कृतप्रज्ञं न च तृप्तं समाधितः ।
नित्ययत्नाप्रमत्तं च नारदं तं नमाम्यहम् ॥
न हृष्यत्यर्थलाभेन योऽलाभे न व्यथत्यपि । स्थिरबुद्धिरसक्तात्मा तमहं नौमि नारदम् ॥
तं सर्वगुणसम्पन्नं दक्षं शुचिमकातरम्
कालच नयज्ञे च शरणं यामि नारदम् ॥
इमं स्तवं नारदस्य नित्यं राजन् जपाम्यहम् ।
तेन मे परमां प्रीतिं करोति मुनिसत्तमः ॥
अन्योऽपि यः शुचिर्भूत्वा नित्यमेतां स्तुतिं जपेत् । अचिरात्तस्य देवर्षिः प्रसादं कुरुते परम् ॥
एतान् गुणान्नारदस्य त्वमप्याकर्ण्य पार्थिव।
जय नित्यं स्तवं पुण्यं प्रीतस्ते भविता मुनिः ॥

(स्कन्द0 माहे0 कुमारिका0 54 27-46) "मैं देवराज इन्द्रद्वारा किये गये स्तोत्रसे दिव्यदृष्टिसम्पन्न श्रीनारदजीकी सदा स्तुति करता हूँ। वह स्तोत्र श्रवण कीजिये

'जो ब्रह्माजीको गोदसे प्रकट हुए हैं, जिनके मनमें अहङ्कार नहीं है, जिनका शास्त्र ज्ञान और चरित्र किसीसे छिपा नहीं है, उन देवर्षि नारदको मैं नमस्कार करता हूँ। जिनमें अरति (उद्वेग), क्रोध, चपलता और भयका सर्वथा अभाव है, जो धीर होते हुए भी दीर्घसूत्री (किसी कार्यमें अधिक विलम्ब करनेवाले) नहीं हैं, उन नारदजीको में प्रणाम करता हूँ। जो कामना अथवा लोभवश झूठी बात मुँहसे नहीं निकालते और समस्त प्राणी जिनकी उपासना करते हैं, उन नारदजीकी मैं नमस्कार करता हूँ। जो अध्यात्मगतिके तत्त्वको जाननेवाले, ज्ञानशक्तिसम्पन्न तथा जितेन्द्रिय हैं, जिनमें सरलता भरी है तथा जो यथार्थ बात कहनेवाले हैं, उन नारदजीको मैं प्रणाम करता हूँ जो तेज, यश, बुद्धि, नय, विनय, जन्म तथा तपस्या सभी दृष्टियोंसे बढ़े हुए हैं, उन नारदजीको मैं नमस्कार करता हूँ। जिनका स्वभाव सुखमय, वेष सुन्दर तथा भोजन उत्तम है, जो प्रकाशमान, पवित्र, शुभदृष्टिसम्पन्न तथा सुन्दर वचन बोलनेवाले हैं, उन नारदजीको में प्रणाम करता हूँ। जो उत्साहपूर्वक सबका कल्याण करते हैं, जिनमें पापका लेश भी नहीं है तथा जो परोपकार करनेसे कभी अघाते नहीं हैं, उन नारदजीको मैं नमस्कार करता हूँ। जो सदा वेद, स्मृति और पुराणोंमें बताये हुए धर्मका आश्रय लेते हैं तथा प्रिय और अप्रियसे रहित हैं, उन नारदजीको मैं प्रणाम करता हूँ जो खान-पान आदि भोगोंमें कभी लिप्त नहीं होते हैं, जो पण्डित, आलस्यरहित तथा बहुश्रुत ब्राह्मण हैं, जिनके मुखसे अद्भुत बातें-विचित्र कथाएँ सुननेको मिलती हैं, उन नारदजीको में प्रणाम करता हूँ। जिन्हें अर्थ (धन) के लोभ, काम अथवा क्रोधके कारण भीपहले कभी भ्रम नहीं हुआ है, जिन्होंने इन (काम, क्रोध, और लोभ) तीनों दोषोंका नाश कर दिया है, उन नारदजीको मैं प्रणाम करता हूँ जिनके अन्तःकरणसे सम्मोहरूप दोष दूर हो गया है, जो कल्याणमय भगवान् और भागवतधर्ममें दृढ़ भक्ति रखते हैं, जिनकी नीति बहुत उत्तम है तथा जो सङ्कोची स्वभावके हैं, उन नारदजीको मैं प्रणाम करता हूँ। जो समस्त सङ्गौसे अनासक्त हैं, तथापि सबमें आसक्त हुए से दिखायी देते हैं, जिनके मनमें किसी संशयके लिये स्थान नहीं है, जो बड़े अच्छे वक्ता हैं, उन नारदजीको मैं नमस्कार करता हूँ। जो किसी भी शास्त्रमें दोषदृष्टि नहीं करते, तपस्याका अनुष्ठान ही जिनका जीवन है, जिनका समय कभी भगवच्चिन्तनके बिना व्यर्थ नहीं जाता और जो अपने 'मनको सदा वशमें रखते हैं, उन श्रीनारदजीको मैं प्रणाम करता हूँ। जिन्होंने तपके लिये श्रम किया है, जिनकी बुद्धि पवित्र एवं वशमें है, जो समाधिसे कभी तृप्त नहीं होते, अपने प्रयत्नमें सदा सावधान रहनेवाले उन नारदजीको मैं नमस्कार करता हूँ। जो अर्थ लाभ होनेसे हर्ष नहीं मानते और लाभ न होनेपर मनमें क्लेशका अनुभव नहीं करते, जिनकी बुद्धि स्थिर तथा आत्मा) अनासक्त है, उन नारदजीको मैं नमस्कार करता हूँ। जोसर्वगुणसम्पन्न, दक्ष, पवित्र, कातरतारहित, कालन और नीतिज्ञ हैं, उन देवर्षि नारदको में भजता हूँ।'

नारदजीके इस स्तोत्रका में नित्य जप करता हूँ। इससे वे मुनिश्रेष्ठ मुझपर अधिक प्रेम रखते हैं। दूसरा कोई भी यदि पवित्र होकर प्रतिदिन इस स्तुतिका पाठ करता है तो देवर्षि नारद बहुत शीघ्र उसपर अपना अतिशय कृपाप्रसाद प्रकट करते हैं। राजन्! आप भी नारदजीके इन गुणोंको सुनकर प्रतिदिन इस पवित्र स्तोत्रका जप करें, इससे वे मुनि आपपर बहुत प्रसन्न होंगे।"

देवर्षि नारदजीका स्तवन करके भगवान् कई रहस्योंको खोलते हैं- (1) भक्तोंमें कैसे आदर्श गुण होने चाहिये। (2) भक्तोंके गुणोंका स्मरण करनेसे मनुष्य उनका प्रीतिभाजन होता है और उसमें भी वे गुण आते हैं। (3) भक्तके गुण-स्मरणसे अन्तःकरण पवित्र होता है। (4) भक्तकी इतनी महिमा है कि स्वयं भगवान् भी उसकी स्तुति भक्ति करते हैं और (5) भक्तको स्मृति तथा गुणचर्चासे जगत्का मङ्गल होता है; क्योंकि भक्तोंके गुणोंको धारण करनेसे ही जगत्के अमङ्गलोंका नाश तथा मङ्गलोंकी प्राप्ति होती है। गुणोंका धारण स्मरण कथा - चर्चाके बिना होता नहीं। ऐसे परमपुण्यजीवन देवर्षिके चरणोंमें हमारे अनन्त प्रणाम।



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pragaayatah svaveeryaani teerthapaadah priyashravaah . aahoot iv me sheeghran darshanan yaati chetasi ..

(shreemadbhaa0 16 34)

svayan devarshi naaradajeene apanee sthitike vishayamen kaha hai-'jab main un paramapaavanacharan udaarashrava prabhuke gunon ka gaan karane lagata hoon, tab ve prabhu avilamb mere chittamen bulaaye huekee bhaanti turant prakat ho jaate hain.' shreenaaradajee nity parivraajak hain. unaka kaam hee hai— apanee veenaakee manohar jhankaarake saath bhagavaan‌ke gunonka gaan karate hue sada paryatan karanaa. ve keertanake paramaachaary hain, bhaagavatadharmake pradhaan baarah aachaayonmen hain aur bhaktisootrake nirmaata bhee hain saath hee unhonne pratijn bhee kee hai-sampoorn prithveepar ghara-ghar evan jana-janamen bhaktikee sthaapana karanekee. nirantar ve bhaktike prachaaramen hee lage rahate hain.

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mahendragaditenaiv stotren shrinull
utsangaadbrahmano jaato yasyaahanta n vidyate.
agum shrutichaaritr naarade tan namaamyaham aratih krodhachaapalye bhayan naitaani yasy cha.
adeerghasootran tan dheeran naaradan pranamaamyaham ..
kaamaadva yadi va lobhaad vaachan yo naanyatha vadet.
upaasyan sarvajantoonaan naaradan tan namaamyaham .. adhyaatmagatitattvajnan jnaanashakti jitendriyam .
riju yathaarthavaktaaran naaradan tan namaamyaham ..
tejasa yashasa buddhava nayen vinayen ch .
janmana tapasa vriddhan naaradan pranamaamyaham ..
sukhasheelan suveshan subhojan bhaasvaran shuchim .
suchakshushan suvaakyan ch naaradan pranamaamyaham ..
kalyaanan kurute baadhan paapan yasmintr vidyate.
n preeyate paraarthen yo'sau tan naumi naaradam .. vedasmritipuraanoktan dharman yo nityamaasthitah . priyaapriyavimuktan tan naaradan pranamaamyaham ..
ashanaadishvalitan ch panditan naalasan dvijam.
bahushrutan chitrakathan naaradan pranamaamyaham ..
naarthe krodhe ch kaame ch bhootapoorvo'sy vibhramah .
yenaite naashita dosha naaradan tan namaamyaham ll
veetasammohadosho yo dridhabhaktishch shreyasi .
sunayan satrapan tan ch naaradan pranamaamyaham ..
asaktah sarvasangeshu yah saktaatmev lakshyate .
adeerghasanshayo vaagmee naaradan pranamaamyaham ..
naasooyatyaagaman kinchit tapah krityen jeevati . avadhyakaalo vashyaatma tamahan naumi naaradam ..
kritashraman kritaprajnan n ch triptan samaadhitah .
nityayatnaapramattan ch naaradan tan namaamyaham ..
n hrishyatyarthalaabhen yo'laabhe n vyathatyapi . sthirabuddhirasaktaatma tamahan naumi naaradam ..
tan sarvagunasampannan dakshan shuchimakaataram
kaalach nayajne ch sharanan yaami naaradam ..
iman stavan naaradasy nityan raajan japaamyaham .
ten me paramaan preetin karoti munisattamah ..
anyo'pi yah shuchirbhootva nityametaan stutin japet . achiraattasy devarshih prasaadan kurute param ..
etaan gunaannaaradasy tvamapyaakarny paarthiva.
jay nityan stavan punyan preetaste bhavita munih ..

(skanda0 maahe0 kumaarikaa0 54 27-46) "main devaraaj indradvaara kiye gaye stotrase divyadrishtisampann shreenaaradajeekee sada stuti karata hoon. vah stotr shravan keejiye

'jo brahmaajeeko godase prakat hue hain, jinake manamen ahankaar naheen hai, jinaka shaastr jnaan aur charitr kiseese chhipa naheen hai, un devarshi naaradako main namaskaar karata hoon. jinamen arati (udvega), krodh, chapalata aur bhayaka sarvatha abhaav hai, jo dheer hote hue bhee deerghasootree (kisee kaaryamen adhik vilamb karanevaale) naheen hain, un naaradajeeko men pranaam karata hoon. jo kaamana athava lobhavash jhoothee baat munhase naheen nikaalate aur samast praanee jinakee upaasana karate hain, un naaradajeekee main namaskaar karata hoon. jo adhyaatmagatike tattvako jaananevaale, jnaanashaktisampann tatha jitendriy hain, jinamen saralata bharee hai tatha jo yathaarth baat kahanevaale hain, un naaradajeeko main pranaam karata hoon jo tej, yash, buddhi, nay, vinay, janm tatha tapasya sabhee drishtiyonse badha़e hue hain, un naaradajeeko main namaskaar karata hoon. jinaka svabhaav sukhamay, vesh sundar tatha bhojan uttam hai, jo prakaashamaan, pavitr, shubhadrishtisampann tatha sundar vachan bolanevaale hain, un naaradajeeko men pranaam karata hoon. jo utsaahapoorvak sabaka kalyaan karate hain, jinamen paapaka lesh bhee naheen hai tatha jo paropakaar karanese kabhee aghaate naheen hain, un naaradajeeko main namaskaar karata hoon. jo sada ved, smriti aur puraanonmen bataaye hue dharmaka aashray lete hain tatha priy aur apriyase rahit hain, un naaradajeeko main pranaam karata hoon jo khaana-paan aadi bhogonmen kabhee lipt naheen hote hain, jo pandit, aalasyarahit tatha bahushrut braahman hain, jinake mukhase adbhut baaten-vichitr kathaaen sunaneko milatee hain, un naaradajeeko men pranaam karata hoon. jinhen arth (dhana) ke lobh, kaam athava krodhake kaaran bheepahale kabhee bhram naheen hua hai, jinhonne in (kaam, krodh, aur lobha) teenon doshonka naash kar diya hai, un naaradajeeko main pranaam karata hoon jinake antahkaranase sammoharoop dosh door ho gaya hai, jo kalyaanamay bhagavaan aur bhaagavatadharmamen dridha़ bhakti rakhate hain, jinakee neeti bahut uttam hai tatha jo sankochee svabhaavake hain, un naaradajeeko main pranaam karata hoon. jo samast sangause anaasakt hain, tathaapi sabamen aasakt hue se dikhaayee dete hain, jinake manamen kisee sanshayake liye sthaan naheen hai, jo bada़e achchhe vakta hain, un naaradajeeko main namaskaar karata hoon. jo kisee bhee shaastramen doshadrishti naheen karate, tapasyaaka anushthaan hee jinaka jeevan hai, jinaka samay kabhee bhagavachchintanake bina vyarth naheen jaata aur jo apane 'manako sada vashamen rakhate hain, un shreenaaradajeeko main pranaam karata hoon. jinhonne tapake liye shram kiya hai, jinakee buddhi pavitr evan vashamen hai, jo samaadhise kabhee tript naheen hote, apane prayatnamen sada saavadhaan rahanevaale un naaradajeeko main namaskaar karata hoon. jo arth laabh honese harsh naheen maanate aur laabh n honepar manamen kleshaka anubhav naheen karate, jinakee buddhi sthir tatha aatmaa) anaasakt hai, un naaradajeeko main namaskaar karata hoon. josarvagunasampann, daksh, pavitr, kaatarataarahit, kaalan aur neetijn hain, un devarshi naaradako men bhajata hoon.'

naaradajeeke is stotraka men nity jap karata hoon. isase ve munishreshth mujhapar adhik prem rakhate hain. doosara koee bhee yadi pavitr hokar pratidin is stutika paath karata hai to devarshi naarad bahut sheeghr usapar apana atishay kripaaprasaad prakat karate hain. raajan! aap bhee naaradajeeke in gunonko sunakar pratidin is pavitr stotraka jap karen, isase ve muni aapapar bahut prasann honge."

devarshi naaradajeeka stavan karake bhagavaan kaee rahasyonko kholate hain- (1) bhaktonmen kaise aadarsh gun hone chaahiye. (2) bhaktonke gunonka smaran karanese manushy unaka preetibhaajan hota hai aur usamen bhee ve gun aate hain. (3) bhaktake guna-smaranase antahkaran pavitr hota hai. (4) bhaktakee itanee mahima hai ki svayan bhagavaan bhee usakee stuti bhakti karate hain aur (5) bhaktako smriti tatha gunacharchaase jagatka mangal hota hai; kyonki bhaktonke gunonko dhaaran karanese hee jagatke amangalonka naash tatha mangalonkee praapti hotee hai. gunonka dhaaran smaran katha - charchaake bina hota naheen. aise paramapunyajeevan devarshike charanonmen hamaare anant pranaama.

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श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
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तेरे दर पे सर झुकाना
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जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
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दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
यह मेरी अर्जी है,
मैं वैसी बन जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है
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यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
ये सारे खेल तुम्हारे है
जग कहता खेल नसीबों का
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
हर साँस में हो सुमिरन तेरा,
यूँ बीत जाये जीवन मेरा
ज़री की पगड़ी बाँधे, सुंदर आँखों वाला,
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे
रंग डालो ना बीच बाजार
श्याम मैं तो मर जाऊंगी
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना
मेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा
मुझे तेरा ही सहारा महारानी, चरणों से
सांवरिया है सेठ ,मेरी राधा जी सेठानी
यह तो सारी दुनिया जाने है
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
राधे राधे बोल, श्याम भागे चले आयंगे।
एक बार आ गए तो कबू नहीं जायेंगे ॥
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
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तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
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जयंती मंगला काली,
भद्र काली कपालिनी,