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विश्वासी भक्त गाँधीजी की मार्मिक कथा
विश्वासी भक्त गाँधीजी की अधबुत कहानी - Full Story of विश्वासी भक्त गाँधीजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [विश्वासी भक्त गाँधीजी]- भक्तमाल


ईशा वास्यमिदः सर्व यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥

(ईशावास्योपनिषद्)

'इस ब्रह्माण्डमें जो कुछ यह जगत् है, सब ईश्वरसे व्याप्त है। उस ईश्वरके द्वारा तुम्हारे लिये जो कुछ त्याग किया गया है अर्थात् प्रदान किया गया है, उसीको अनासक्तरूपसे भोगो। किसीके धनकी इच्छा मत करो। "

समुद्रकी उत्ताल तरङ्गोंसे टकराती हुई काठियावाड़की पोरबंदर अथवा सुदामापुरीमें महात्मा गाँधीजीका जन्म आश्विन वदी 12 संवत् 1925 अर्थात् 2 अक्टूबर 1869 ईस्वीको पवित्र वैष्णवकुलमें हुआ। पोरबंदर राज्यमें उनके पिता कर्मचन्दजी गाँधी दीवान थे; वहाँ उनके पितामह भी प्रधान मन्त्री रह चुके थे। धार्मिक आचरण तो कर्मचंदजीकी कुलपरम्परासे ही सहज रूपमें चला आ रहा था। नित्य नियमसे प्रातः स्नानसे निवृत्त होते ही वे मन्दिरोंमें भगवान्‌के दर्शनार्थ जाते, कथा-पुराण) सुनते, धर्मचर्चा करते। रामायणका पाठ घरमें होता और भगवदाराधनाके समय वे गद्गद हो उठते। वे कुटुम्ब - प्रेमी, सत्यप्रिय और उदारहृदय थे। रिश्वतसे सदा दूर भागते थे। इसी कारण वे अचूक न्याय करते और राजकाजमें उनकी प्रसिद्धि हुई। गाँधीजीकी माता पुतलीबाई तो साक्षात् मानो वैष्णवधर्मकी जीती-जागती मूर्ति ही थीं। पूजा-पाठ किये बिना कभी भोजन नहीं करती थीं, देव मन्दिरके दर्शन नित्य नियमसे करती थीं। कठिन से कठिन व्रत वे श्रद्धापूर्वक निभा लेतीं। चातुर्मास्य और चान्द्रायण व्रत तो उन्होंने जीवनमें कई बार किये थे। रामनाममें अटूट श्रद्धा और उसका नियमपूर्वक जप उनके स्वभावगत था। ऐसी सती-साध्वी माताका प्रभाव भला, बालक मोहनदासपर पड़े बिना कैसे रहता! इस बातको गाँधीजीने स्वयं स्वीकार किया है। वे अपनी माताजीको ही अपना सद्गुरु मानते थे। उनकी दी हुईतुलसीकी कंठी, जब वे बैरिस्टर होकर दक्षिण अफ्रीका जा रहे थे, तब भी उनके गलेमें शोभा पा रही थी।

पाँच वर्षतक उनके पिता रोग-शय्यापर पड़े रहे, इस बीच गाँधीजी सदा-सर्वदा उनकी सेवामें सतर्क रहते। रामचरितमानसका पाठ चलता रहता, इसका प्रभाव उनके मनपर पड़ा और भक्तिभावकी जागृति हुई, जो निरन्तर बढ़ती ही गयी। 63 वर्षकी आयुमें उनके पिताका देहावसान हुआ, जिससे उनको हार्दिक दुःख तो हुआ; पर उन्होंने जो उपदेश प्राप्त किये थे, उनके बलपर वे सदा दृढ़ रहे।

श्रीगाँधीजीका विलायत जाना निश्चित हुआ, उनकी माता घबरायी। जबतक मोहनदाससे उन्होंने तीन प्रतिज्ञाएँ नहीं करवा लीं, तबतक उसे विलायत जानेकी उन्होंने स्वीकृति नहीं दी। 'मांस, मदिरा और स्त्री' से दूर रहना - यही तीन प्रतिज्ञाएँ थीं, जो गाँधीजीने स्वीकार की और राम-नामके भरोसे उनको आजीवन निभाया। उन दिनों लंदनमें बिना मांस खाये रहना प्रायः असम्भव सा था; मित्र मांसाहार करनेको रोज समझाते, दलीलें देते परंतु मातासे विश्वासघात करना उनके लिये असह्य था। अपनी आत्मकथामें वे लिखते हैं-'रोज मैं ईश्वरसे रक्षाकी प्रार्थना करता और रोज वह पूरी होती।' विलायत में एक 'शाकाहारसंघ' बना, उसके सक्रिय सदस्य श्रीगाँधीजी थे। भिन्न-भिन्न धर्मानुयायियोंसे उनका सम्पर्क बढ़ा। दो थियॉसफिस्ट मित्रोंकी प्रेरणासे उनको विलायत में गीता पढ़नेका सुअवसर मिला। दूसरे अध्यायके 61वें तथा 62वें श्लोकका उनके हृदयपर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। गीताके अध्ययनसे मनसहित इन्द्रियोंको वशमें न करनेवाले मनुष्य के पतनका चित्र उनके सामने खिंचने लगा और वे सावधान होने लगे। इसी बीच 1890 ई0 में पोर्टस्मथमें शाकाहारियोंका एक सम्मेलन | हुआ। उसमें गाँधीजीको तथा उनके एक और भारतीयमित्रको निमन्त्रण मिला। वे दोनों एक महिलाके घरमें ठहराये गये। वह एक बदनाम घर था, परंतु स्वागतसमितिको कुछ पता नहीं था। रातको सभासे दोनों मित्रोंने लौटकर भोजन किया। तदनन्तर वे लोग उस महिलाके साथ ताश खेलने लगे। विनोद आरम्भ हुआ और निर्दोष विनोद अश्लील विनोदमें परिणत हो गया। गाँधीजीका मन कुछ डीला होने लगा और उस मलिन विनोदमें उनको भी रस आने लगा। ताश एक ओर रखनेकी नौबत आनेवाली ही श्री कि उनके साथी के हृदयमें भगवान् आ विराजे और वे बोले-'अरे तुझमें यह कलियुग क्यों? यह तेरा काम नहाँ, भाग यहाँसे।' गाँधीजी बाल-बाल बचे। वे स्वयं आत्मकथामें इस सम्बन्धमें कहते हैं-मैं लज्जित हुआ। हृदयमें इस मित्रका उपकार माना, माताके सामने की हुई 1 प्रतिज्ञा याद आयी। वहाँसे भागा और काँपता हुआ अपने कमरेमें पहुँचा। ईश्वरके सम्बन्धमें मैं विशेष कुछ जानकारी नहीं रखता था कि वे हमारे अंदर किस प्रकार काम करते हैं, पर साधारण अर्थमें मैंने यही समझा कि ईश्वरने मुझे बचा लिया। मैं रामनाम लेते हुए इस सङ्कटसे बचा।' आगे चलकर वे लिखते हैं 'मैंने देखा है, जब सारी आशाएँ टूट जाती हैं, कुछ भी करते धरते नहीं बनता, तब कहीं-न-कहींसे सहायता आ पहुँचती है। स्तुति, उपासना, प्रार्थना वहम नहीं है। बल्कि हमारा खाना पीना, चलना-बैठना आदि जितना सत्य है, उससे भी ये चीजें अधिक सत्य हैं। यह कहने में भी अतिशयोक्ति नहीं कि यही सत्य है, और सब मिथ्या है।'

रामनामकी महिमामें उन्होंने बहुत कुछ कहा है। 1925 ई0 में नवजीवनमें उन्होंने लिखा था पावन होनेके लिये रामनाम हृदयसे लेना चाहिये, जीभ और हृदयको एकरस करके रामनाम लेना चाहिये। मैं अपना अनुभव सुनाता हूँ, संसारमें यदि में व्यभिचारी होनेसे बचा हूँ तो रामनामकी ही बदौलत मैने दावे तो बड़े बड़े किये हैं; परंतु यदि मेरे पास रामनाम न होता तो तीन स्त्रियोंको में बहिन कहने के लायक न रहा होता। जब-जब मुझपर विकट प्रसङ्ग आये हैं, मैंने रामनाम लिया है और मैं बच गया हूँ। अनेक सङ्कटोंसे रामनामनेमेरी रक्षा की है।'

गांधीजीका जीवन त्यागमय था। सन् 1901 में जब वे दक्षिण अफ्रीकासे भारत लौटनेवाले थे, तब वहाँके भारतीयोंने उन्हें उनकी सेवाके उपलक्षमें बहुमूल्य वस्तुएँ भेंट की; परंतु उन्होंने उन सबको वहीं एक ट्रस्टके सुपुर्द कर दिया, जिससे वहाँको भारतीय जनताको सेवा होती रहे। गाँधीजीने इस सम्बन्धमें कहा, 'मेरा यह निश्चित मत हो गया है कि लोक-सेवकको जो भेंट मिलती है, वह उसकी निजी वस्तु कदापि नहीं हो सकती।'

सन् 1902 की बात है। गाँधीजी दक्षिण अफ्रीकासे, लौटे थे और बम्बई में वकालत आरम्भ करनेवाले थे। वहीं गिरगाँव में रहनेके लिये एक घर भी किराये पर ले लिया था। परंतु भगवान्‌को इच्छा घर लिये अभी कुछ ही दिन हुए थे कि उनका दस वर्षका दूसरा लड़का मणिलाल बीमार हो गया। भयानक ज्वरने आक्रमण किया था, ज्वर उतरता हो न था। उसे घबराहट तो थी ही, रातको सन्निपातके लक्षण भी दिखायी देने लगे। डॉक्टरने देखा तो कहा-'इसे दवा कम ही काम देगी, अब तो इसे अंडा और मुर्गीका शोरबा देनेकी आवश्यकता है।' गाँधीजीने उत्तर दिया- 'डॉक्टर साहब! हम तो सब अन्नाहारी हैं। मेरा विचार तो इसे इनमेंसे एक भी वस्तु देनेका नहीं है। आप दूसरी कोई वस्तु बतला सकते हैं?' डॉक्टर बोले-'आपके लड़केको जान खतरे में है। दूध और पानी मिलाकर दिया जा सकता है, पर उससे पूरा पोषण नहीं मिल सकता। आप जानते हैं कि मैं तो बहुत से हिंदू परिवारोंमें जाया करता हूँ; पर दवाके रूपमें जो हम चाहते हैं, उन्हें देते हैं और वे उसे लेते भी हैं। मैं समझता हूँ कि आप भी अपने लड़के के साथ ऐसी सख्ती न करें तो अच्छा होगा।' गाँधीजी बोले-'मैं तो समझता हूँ कि मनुष्यके धर्मकी कसौटी ऐसे ही समयमें होती है। ठीक हो या गलत, मैंने तो इसको धर्म माना है कि मनुष्यको मांसादि नहीं खाना चाहिये। जीवनके साधनोंकी भी एक सीमा होती है। जीनेके लिये भी ऐसी वस्तुओंको हमें नहीं ग्रहण करना चाहिये मेरे धर्मको मर्यादा मुझे और मेरे परिवार केलोगोंको ऐसे समयपर भी मांस आदिका उपयोग करनेसे रोकती है। इसलिये आप जिस खतरेको देखते हैं, मुझको उसे उठाना ही चाहिये। आप बालककी नाड़ी एवं हृदयकी गतिको देखनेके लिये अवश्य पधारने की कृपा करते रहें, मैं स्वयं इसकी जल चिकित्सा करूंगा।' भले पारसी डाक्टरने बात स्वीकार कर ली।

गाँधीजीने जल- चिकित्सा आरम्भ कर दी और फल भगवान्पर छोड़ दिया। उस समय उनमें विचारोंकी बाढ़ आ रही थी और मन-ही-मन वे कहते-' जीव! जो तू अपने लिये करता है, वहीं लड़केके लिये भी करेगा तो परमेश्वर सन्तोष मानेंगे। तुझे जल चिकित्सापर श्रद्धा है, दवापर नहीं डॉक्टर जीवनदान तो देते नहीं। वे भी तो प्रयोग ही करते हैं न जीवनकी डोर तो एकमात्र ईश्वरके हाथमें ही है। ईश्वरका नाम ले और उसपर श्रद्धा रख अपने मार्गको न छोड़।' लड़केकी अवस्था खराब हो गयी, रात्रिका समय था। उसे उन्होंने एक गीली निचोड़ी हुई चादरसे पैरसे लेकर सिरतक लपेट दिया और ऊपरसे दो कम्बल उढ़ा दिये। सिरपर गीला तौलिया रख दिया। बालकका शरीर तवेकी तरह तप रहा था, पसीना आता ही न था। गाँधीजी थक गये थे। वे लड़केको उसको माँके पास छोड़ स्वयं चौपाटी चले गये और घूमने लगे। वे लिखते हैं-" शतके दस बजे होंगे। आदमियोंकी आवाज कम हो गयी थी। मेरा हृदय प्रार्थनामें तल्लीन था, कह रहा था-'हे ईश्वर! इस धर्मसङ्कटमें तू मेरी लाज रख।' मुँहसे राम-रामकी रट चल रही थी।" भगवान् सच्चे हृदयकी पुकार सुनते हैं। लौटकर आये तो मणिलालने पुकारा-'बापू आ गये?" उसी रात मणिलालको इतना पसीना आया कि वर जाता रहा। मणिलाल अच्छा हो गया और भगवान्ने गाँधीजीकी लाज रख ली।

सन् 1903 की बात है, दक्षिण अफ्रीकामें वे बिना परिवारके गये हुए थे। वहीं अपने देशके लोगोंकी सेवा करनेका निश्चय किया। भगवद्गीताका अध्ययन फिरसे आरम्भ किया, जिससे उनको अन्तर्दृष्टि बढ़ने लगी। गीताके तेरह अध्याय उन्होंने कण्ठस्थ कर लिये थे।गीताके प्रति उनकी भक्ति बढ़ने लगी और वह उनके लिये आचार-व्यवहारकी एक अचूक मार्गदर्शिका बन गयी। गाँधीजी कहते हैं-" उसे मेरा धार्मिक कोष हो कहना चाहिये। आचार-सम्बन्धी अपनी कठिनाइयों और उसकी अटपटी गुत्थियोंको गीताके द्वारा सुलझाता। उसके 'अपरिग्रह', 'समभाव' इत्यादि शब्दोंने तो मुझे जैसे पकड़ ही लिया। यही धुन रहती थी कि 'समभाव' कैसे प्राप्त करूँ, कैसे उसका पालन करूँ। हमारा अपमान करनेवाला अधिकारी, रिश्वतखोर, चलते रास्ते विरोध करनेवाले, कल जिनका साथ था ऐसे साथी उनमें और उन सज्जनोंमें, जिन्होंने हमपर भारी उपकार किया है, क्या कोई भेद नहीं है? अपरिग्रहका पालन किस तरह सम्भव है? क्या यह हमारी देह ही हमारे लिये कम परिग्रह है? स्त्री-पुरुष, बाल-बच्चे आदि यदि परिग्रह नहीं है, तो फिर क्या हैं? धर्मका तत्त्व दिखायी पड़ा। ट्रस्टी यों करोड़ोंकी सम्पत्ति रखते हैं, पर उसकी एक पाईपर भी उनका अधिकार नहीं होता। इसी प्रकार मुमुक्षुको अपना आचरण रखना चाहिये यह पाठ मैंने गीतासे सीखा। अपरिग्रह होनेके लिये, समभाव रखनेके लिये हेतुका और हृदयका परिवर्तन आवश्यक है- यह यात मुझे दीपककी भाँति स्पष्ट दिखायी देने लगी। मैंने एक दस हजारका जीवनबीमा बम्बई में करा लिया था, तुरंत उसे रद्द कराने को लिख दिया। बाल-बच्चोंकी और गृहिणीको रक्षा वह ईश्वर करेगा, जिसने उनको और हमको पैदा किया है।" गाँधीजी कहते हैं-'मेरे लिये तो गीता ही संसारके सब धर्मग्रन्थोंकी कुञ्जी हो गयी है। संसारके सब धर्मग्रन्थोंमें गहरे से गहरे जो रहस्य भरे हुए हैं, उन सबको यह मेरे लिये खोलकर रख देती है।"

गीता और रामचरितमानसको महिमा गाँधीजी एक जगह इस प्रकार कहते हैं-'भगवदीता और तुलसीदासको रामायणसे मुझे अत्यधिक शान्ति मिलती है। मैं कबूल करता हूँ कि कुरान, बाइबिल तथा दुनियाके अन्यान्य धर्मोके प्रति मेरा अति आदरभाव होते हुए भी मेरे हृदयपर उनका उतना असर नहीं होता, जितना कि श्रीकृष्णको गीता और तुलसीदासकी रामायणका होता है।'1906 ई0 में गांधीजीने 30 वर्षको आयु जीवनपर्यन्त ब्रह्मचर्यपालनका व्रत लिया और अन्ततक निष्ठापूर्वक निभाया। ब्रह्मचर्यहीन जीवन उन्हें शुष्क और पशुवत् मालूम होता। इस सम्बन्धमें वे कहते हैं-'मैंने संयमभङ्ग करनेवाले विषयोंसे बचनेकी अटल प्रतिज्ञा ली। व्रत लेनेके विरुद्ध जितनी भी लुभावनी दलीलें हो सकती हैं, इनमेंसे किसीके वशीभूत मैं न हुआ। अटल व्रत एक किलेकी तरह है, जो भयङ्कर मोह उत्पन्न करनेवाली वस्तुओं और प्रलोभनोंसे मनुष्यकी रक्षा कर सकता है; यह हमारी दुर्बलताओं और चञ्चलताओंका अचूक इलाज है। साधकावस्थामें जब मनुष्यपर मोह और विकारोंका आक्रमण होता है, तब व्रत उसकी रक्षाके लिये अनिवार्य ही है।

ब्रह्मचर्यकी व्याख्या करते हुए वे कहते हैं- "ब्रह्मचर्यका अर्थ है-मन, वचन और कर्मसे इन्द्रियाँका संयम ब्रह्मचारी और भोगोके जीवनमें क्या अन्तर है, यह समझ सेना ठीक होगा। दोनों अपनी आँखोंसे देखते हैं लेकिन ब्रह्मचारी देव दर्शन करता है और भोगी नाटक-सिनेमा देखनेमें लीन रहता है। दोनों कर्णेन्द्रियोंका उपयोग करते हैं; लेकिन जहाँ ब्रह्मचारी ईश्वरभजन सुनता है, वहाँ भोगी विलासी गीतोंको सुननेमें मग्न रहता है। दोनों जागरण करते हैं; परंतु एक अपने हृदयस्थ ईश्वरकी आराधना करता है तो दूसरा नाच-गानमें अपनी सुध भुला देता है। दोनों आहार करते हैं; एक शरीरको ईश्वरका निवास समझकर उसकी रक्षाभरके लिये कुछ खा लेता है और दूसरा स्वादके लिये पेटमें अनेक पदार्थ भरकर उसे और दुर्गन्धित बनाता है। ऐसे ही ब्रह्मचर्यका पालन करनेके लिये सतत प्रयत्नशील रहनेकी आवश्यकता है। परंतु जो ईश्वर-साक्षात्कारके लिये ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहते हैं, वे यदि अपने प्रयत्नके साथ ही ईश्वरपर श्रद्धा रखेंगे तो उन्हें निराश होनेका कारण नहीं ही रहेगा। इसलिये आत्मार्थी अर्थात् आत्माका साक्षात्कार करनेवाले के लिये अन्तिम साधन तो 'राम-नाम' और 'राम-कृपा' हो

है। इस बातका अनुभव मैंने अपने जीवनमें किया है।" ईश्वरके प्रति श्रद्धा ही उनके जीवनकी धुरी थी जिसके बलपर वे प्रत्येक क्षेत्रमें कूद पड़ते और सफल होते ईश्वरको वे सदा-सर्वदा अपने सामने उपस्थित अनुभव करते और कभी भेद-भाव उनके मनमें नहीं आता ईश्वरके अस्तित्वमें उनका अडिग विश्वास था। इसके सम्बन्धमें कोई शङ्का करता तो वे कहते यदि ईश्वर नहीं है तो हम भी नहीं हो सकते। इसीलिये हम सब उसे एक आवाजसे अनेक और अनन्त नामोंसे पुकारते हैं। वह एक है, अनेक है। अणुसे छोटा है और हिमालय से भी बड़ा है। समुद्रके एक बिन्दुमें भी समा जा सकता है और ऐसा भारी है कि सात समुद्र मिलकर भी उसे सहन नहीं कर सकते। उसे जानने के लिये बुद्धिवादका उपयोग ही क्या हो सकता है, वह तो बुद्धिसे अतीत है। ईश्वरका अस्तित्व माननेके लिये श्रद्धाको आवश्यकता है। मेरी श्रद्धा बुद्धिसे भी इतनी अधिक आगे दौड़ती है कि मैं समस्त संसारका विरोध होनेपर भी यही कहूँगा कि ईश्वर है, वह है ही है।"

उनसे किसीने श्रद्धाका अर्थ पूछा, इसके उत्तरमें वे बोले- 'श्रद्धाका अर्थ है आत्मविश्वास आत्मविश्वासका अर्थ है-ईश्वरपर विश्वास जब चारों और काले बादल दिखायी देते हों, किनारा कहीं नजर न आता हो और ऐसा मालूम होता हो कि बस, अब डूबे, तब भी जिसे यह विश्वास होता है कि मैं हर्गिज न डुलूँगा, उसे कहते हैं श्रद्धावान्।' अपनी श्रद्धाको व्यक्त करते हुए उन्होंने हिंदी नवजीवनमें एक बार लिखा था- 'काशीविश्वनाथकी भव्य मूर्ति मौ0 हसरत मोहानीके नजदीक एक पत्थरका टुकड़ा हो, पर मेरे लिये तो वह ईश्वरकी प्रतिमा है। मेरा हृदय उसका दर्शन करके द्रवित होता है, यह श्रद्धाकी बात है। जब मैं गायका दर्शन करता हूँ, तब मुझे किसी भक्ष्य पशुका दर्शन नहीं होता: उसमें मुझे एक करुण काव्य दिखायी देता है। मैं उसकी पूजा करूँगा और फिर करूंगा और यदि सारा जगत् मेरे विरुद्ध उठ खड़ा हो तो उसका मुकाबला करूँगा। ईश्वर एक है, पर वह मुझे पत्थरकी पूजा करनेकी श्रद्धा प्रदान करता है।'

ऐसे भावसे ओतप्रोत होकर एक बार फिर उन्होंने लिखा था मैं यह कहनेका साहस करता हूँ किश्रद्धा और विश्वास न रहे तो क्षणभरमै प्रलय हो जाय। सच्ची श्रद्धा मानी हैं उन लोगोंके युक्तियुक्त अनुभवोंका आदर करना, जिनके विषयमें हमारा विश्वास है कि उन्होंने तपस्या और भक्तिसे पवित्र जीवन बिताया है। इसलिये प्राचीन कालके अवतारों या नबियोंमें विश्वास करना कुछ बेमतलब विश्वास नहीं है, बल्कि वह है आत्मा की आन्तरिक भूखको सन्तुष्टि।"

गाँधीजीका जीवन जो इतना व्यापक और सार्वजनिक बना, उसका एक ही आधार उनकी 'एकमेवाद्वितीयम्' ईश्वरमें अडिग और अमल श्रद्धा ही थी। उनके जीवनकी प्रत्येक क्रिया एक ही दृष्टिसे होती थी कि किस प्रकार आत्मदर्शन- ईश्वरका साक्षात्कार हो। वे कहते हैं-'मैं जो कुछ लिखता और करता हूँ, वह भी इसी उद्देश्यसे और राजनीतिक क्षेत्रमें जो मैं कूदा, सो भी इसी बातको सामने रखकर।' इसीको लक्ष्यकर वे अपना हृदय ही खोल देते हैं इस सत्यनारायणकी शोधके लिये मैं अपनी प्रिय से प्रिय वस्तुको भी छोड़ देनेके लिये तैयार हूँ और इस शोधरूपों यज्ञमें अपने शरीरको भी होम देनेकी मैंने तैयारी कर ली है। मुझे विश्वास है कि इतनी शक्ति मुझमें है। परंतु जबतक इस सत्यका साक्षात्कार नहीं हो जाता, तबतक मेरा अन्तरात्मा जिसे सत्य समझता है, उसी सत्यको अपना आधार मानकर, दीप स्तम्भ समझकर उसके सहारे में अपना जीवन आगे बढ़ा रहा हूँ।'

अक्टूबर 1926 ई0 में उन्होंने नवजीवनमें एक लेख लिखा था। उसका शीर्षक था रामनाम और राष्ट्रसेवा उसका उपसंहार करते हुए उन्होंने लिखा- 'मेरे लिये तो राष्ट्रसेवाका अर्थ मानव जातिकी सेवा है- यहाँतक कि कुटुम्बको निर्लिप्त भावसे की गयी सेवा भी मानव जातिकी सेवा है। इस प्रकारकी कौटुम्बिक सेवा अवश्य हो राष्ट्रसेवाकी ओर ले जाती है। रामनामसे मनुष्यमें अनासक्ति और समता आती है। रामनाम आपत्तिकालमें उसे कभी धर्मच्युत नहीं होने देता। गरीब से गरीब लोगोंको सेवा किये बिना या उनकेहितमें अपना हित माने बिना मोक्ष पाना में असम्भव मानता हूँ।"

1946 ई0 की बात है। एक भाईने प्रश्न किया कि 'सेवाकार्यके कठिन अवसरोंपर भगवद्भक्तिके नित्यनियम नहीं निभ पाते, तो क्या इसमें कोई हर्ज है? दोनों किसको प्रधानता दी जाय। सेवाकार्यको अथवा मालाजपको?"

इसके उत्तरमें उन्होंने लिखा- कठिन सेवाकार्य है या उससे भी कठिन अवसर हो तो भी भगवद्भक्ति यानी रामनाम बंद हो ही नहीं सकता। उसका बाह्यरूप प्रसङ्गके मुताबिक बदलता रहेगा। माला छूटने से रामनाम जो हृदयमें अङ्कित हो चुका है, वह थोड़े ही छूट सकता है।"

रामधुनकी महिमाका गान करते हुए गाँधीजी कहते हैं—'मैं बिना किसी हिचकिचाहटके यह कह सकता हूँ कि लाखों आदमियोंद्वारा सच्चे दिलसे एक ताल और लयके साथ गायी जानेवाली रामधुनकी ताकत फौजी ताकतके दिखावेसे बिलकुल अलग और कई गुना बड़ी बड़ी होती है। दिलसे भगवान्‌का नाम लेनेसे आजकी बरबादीकी जगह स्थायी शान्ति और आनन्द पैदा होगा।'

भीतरी और बाहरी पवित्रताका उल्लेख करते हुए गाँधीजी कहते हैं-'जो आदमी रामनाम जपकर अपनी अन्तरात्माको पवित्र बना लेता है, वह बाहरी गंदगीको बरदाश्त नहीं कर सकता। अगर लाखों-करोड़ों लोग सच्चे हृदयसे रामनाम जपें, तो न तो दंगे-जो समाजिक रोग है- हों और न बीमारी हो। दुनियामें रामराज्य कायम हो जाय।'

यह सभी जानते हैं कि गाँधीजी हिंदू-मुस्लिम एकताके बड़े पक्षपाती थे और इसके लिये ये बड़े-से बड़ा त्याग करने को तैयार थे। परंतु गौमें उनकी इतनी भक्ति थी कि वे गोरक्षाके प्रश्नके सामने हिंदू-मुस्लिम एकताको भी त्याग सकते थे। काका कालेलकरजीने उनके कुछ संस्मरण लिखे हैं, उसमें आया है-

मद्रासका सन् 1926 का कांग्रेस अधिवेशन था हम श्रीश्रीनिवास अय्यंगरजीके मकानपर ठहरे थे हिंदू-मुस्लिम एकताके निस्बत एक मसविदा तैयारकरके बापूकी सम्मतिके लिये लाये। वह मसविदा उनके | हाथमें आया तो वे कहने लगे-'किसीके भी प्रयत्नसे | और कैसी भी शर्तपर हिंदू-मुस्लिम समझौता हो जाय तो मंजूर है। मुझे इसमें क्या दिखाना है।' फिर भी वह मसविदा बापूको दिखाया गया। उन्होंने सरसरी निगाह से देखकर कहा-'ठीक है।'

"शामकी प्रार्थना करके बापू जल्दी सो गये। सुबह बहुत जल्दी उठे। महादेव भाईको जगाया। मैं भी जग गया। कहने लगे- 'बड़ी गलती हो गयी। कल शामका मसविदा मैंने ध्यानसे नहीं पढ़ा। यों ही कह दिया कि ठीक है। रातको याद आयी कि उसमें मुसलमानोंको गोवध करनेकी आम इजाजत दी गयी है और हमारा गोरक्षाका सवाल यों ही छोड़ दिया गया है। यह मुझसे कैसे बरदाश्त होगा। वे गायका वध करें तो हम उन्हें जबर्दस्ती तो नहीं रोक सकते। लेकिन उनकी सेवा करके उन्हें समझा सकते हैं न? मैं तो स्वराज्यके लिये भी गोरक्षाका आदर्श नहीं छोड़ सकता। उन लोगोंको अभी जाकर कह आओ कि वह समझौता मुझे मान्य नहीं है। नतीजा चाहे जो कुछ भी हो, किंतु मैं बेचारी गायोंको इस तरह छोड़ नहीं सकता।'

"सामान्य तौरपर कैसी भी हालतमें बापूकी आवाज में क्षोभ नहीं रहता। वे शान्तिसे ही बोलते थे, लेकिन ऊपरकी बातें बोलते समय वे उत्तेजित से मालूम होते थे। मैंने मनमें कहा-'अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्। यद्राज्यलाभलोभेन गां परित्यक्तुमुद्यताः ।।' बापूकी हालत ऐसी ही थी।"

साम्प्रदायिक विद्वेषको मिटाने और मानवमें भाईचारेकी भावना जाग्रदकर उसे भगवदुन्मुख करनेके लिये गांधीजी नोआखाली में गाँव-गाँव घूमकर अपना दिव्य सन्देश सबको सुना रहे थे। अधिक तितिक्षासे उनका शरीर काफी कृश हो गया था, पर बुढ़ापे में भी रामनामके प्रतापसे वे तेजस्वी दीखते थे। शरीरकी बढ़ती दुर्बलतापर उनका ध्यान नहीं था। एक दिन बकरीका दूध नहींमिला। गाँधीजीने कहा-'चलो, नारियलका दूध ही सही।' आठ औंस जितना वे बकरीका दूध पिया करते थे- उन्हें पिलाया गया; परंतु हजम करनेमें बहुत भारी पड़ा और उससे उन्हें दस्त होने लगे। इससे सन्ध्यातक गाँधीजीको इतनी कमजोरी आ गयी कि बाहरसे झोपड़ी में आते-आते उन्हें चक्कर आने लगे और रास्ते में ही वे मूर्छित हो गये। उनके भाईकी सुपुत्री मनुबेन उनके साथ थी वह घबरायी और डॉक्टरको बुलानेके लिये पत्र लिखकर भेजनेवाली ही थी कि इतनेमें गाँधीजीको होरा आ गया। मनुको उन्होंने बुलाया और कहा, 'तुमको चाहिये कि सच्चे दिलसे रामनाम लेती रहो। मैं स्वयं अपने मनमें रामनाम ले ही रहा था। तुम भी किसीको बुलाने की बजाय रामनाम शुरू कर देती तो मुझे बहुत अच्छा लगता। यदि रामनामका मन्त्र मेरे दिलमें पूरा पूरा रम जायगा, तो मैं कभी बीमार होकर नहीं मरूँगा। यह नियम केवल मेरे लिये ही नहीं, सबके लिये है ।' यह घटना 30 जनवरी 1947 के दिन घटी थी बापूके निर्वाणसे ठीक एक वर्ष पूर्व अटल श्रद्धा, अचल विश्वास, सत्यका आग्रह, अहिंसाका पालन, बुरे करनेवालेका भी भला चाहना और भला करना, क्रोधका बदला सेवासे देना, रामनाममें अटल विश्वास, गोमाताकी भक्ति आदि अनेकों अप्रतिम गुणोंका समूह यदि एक जगह देखना हो तो वर्तमान युगमें वह गाँधीजी में मिल सकता है। वे युगपुरुष थे, संत थे और सच्चे साधक थे।

रामनाममें उनकी यह श्रद्धा अन्तिम क्षणतक अडिग रही। वधिकने महात्मा गाँधीकी छातीमें तीन गोलियाँ पिस्तौल से छोड़ीं, वे रामनाम लेते हुए गिर पड़े और उनका आत्मा अपने अंशी भगवान्‌में सदाके लिये मिल गया। उनकी बात सत्य निकली, 'मैं बीमार होकर कभी नहीं मरूंगा यदि मेरे दिलगें रामनाम पूरा-पूरा रम गया तो।' भगवान् सदा भक्तमें घुले-मिले रहते हैं-भक्तकी महिमा प्रभु ही जान सकते हैं।



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eesha vaasyamidah sarv yatkinch jagatyaan jagat .

ten tyakten bhunjeetha ma gridhah kasyasviddhanam ..

(eeshaavaasyopanishad)

'is brahmaandamen jo kuchh yah jagat hai, sab eeshvarase vyaapt hai. us eeshvarake dvaara tumhaare liye jo kuchh tyaag kiya gaya hai arthaat pradaan kiya gaya hai, useeko anaasaktaroopase bhogo. kiseeke dhanakee ichchha mat karo. "

samudrakee uttaal tarangonse takaraatee huee kaathiyaavaada़kee porabandar athava sudaamaapureemen mahaatma gaandheejeeka janm aashvin vadee 12 sanvat 1925 arthaat 2 aktoobar 1869 eesveeko pavitr vaishnavakulamen huaa. porabandar raajyamen unake pita karmachandajee gaandhee deevaan the; vahaan unake pitaamah bhee pradhaan mantree rah chuke the. dhaarmik aacharan to karmachandajeekee kulaparamparaase hee sahaj roopamen chala a raha thaa. nity niyamase praatah snaanase nivritt hote hee ve mandironmen bhagavaan‌ke darshanaarth jaate, kathaa-puraana) sunate, dharmacharcha karate. raamaayanaka paath gharamen hota aur bhagavadaaraadhanaake samay ve gadgad ho uthate. ve kutumb - premee, satyapriy aur udaarahriday the. rishvatase sada door bhaagate the. isee kaaran ve achook nyaay karate aur raajakaajamen unakee prasiddhi huee. gaandheejeekee maata putaleebaaee to saakshaat maano vaishnavadharmakee jeetee-jaagatee moorti hee theen. poojaa-paath kiye bina kabhee bhojan naheen karatee theen, dev mandirake darshan nity niyamase karatee theen. kathin se kathin vrat ve shraddhaapoorvak nibha leteen. chaaturmaasy aur chaandraayan vrat to unhonne jeevanamen kaee baar kiye the. raamanaamamen atoot shraddha aur usaka niyamapoorvak jap unake svabhaavagat thaa. aisee satee-saadhvee maataaka prabhaav bhala, baalak mohanadaasapar pada़e bina kaise rahataa! is baatako gaandheejeene svayan sveekaar kiya hai. ve apanee maataajeeko hee apana sadguru maanate the. unakee dee hueetulaseekee kanthee, jab ve bairistar hokar dakshin aphreeka ja rahe the, tab bhee unake galemen shobha pa rahee thee.

paanch varshatak unake pita roga-shayyaapar pada़e rahe, is beech gaandheejee sadaa-sarvada unakee sevaamen satark rahate. raamacharitamaanasaka paath chalata rahata, isaka prabhaav unake manapar pada़a aur bhaktibhaavakee jaagriti huee, jo nirantar badha़tee hee gayee. 63 varshakee aayumen unake pitaaka dehaavasaan hua, jisase unako haardik duhkh to huaa; par unhonne jo upadesh praapt kiye the, unake balapar ve sada dridha़ rahe.

shreegaandheejeeka vilaayat jaana nishchit hua, unakee maata ghabaraayee. jabatak mohanadaasase unhonne teen pratijnaaen naheen karava leen, tabatak use vilaayat jaanekee unhonne sveekriti naheen dee. 'maans, madira aur stree' se door rahana - yahee teen pratijnaaen theen, jo gaandheejeene sveekaar kee aur raama-naamake bharose unako aajeevan nibhaayaa. un dinon landanamen bina maans khaaye rahana praayah asambhav sa thaa; mitr maansaahaar karaneko roj samajhaate, daleelen dete parantu maataase vishvaasaghaat karana unake liye asahy thaa. apanee aatmakathaamen ve likhate hain-'roj main eeshvarase rakshaakee praarthana karata aur roj vah pooree hotee.' vilaayat men ek 'shaakaahaarasangha' bana, usake sakriy sadasy shreegaandheejee the. bhinna-bhinn dharmaanuyaayiyonse unaka sampark badha़aa. do thiyaॉsaphist mitronkee preranaase unako vilaayat men geeta paढ़neka suavasar milaa. doosare adhyaayake 61ven tatha 62ven shlokaka unake hridayapar paryaapt prabhaav pada़aa. geetaake adhyayanase manasahit indriyonko vashamen n karanevaale manushy ke patanaka chitr unake saamane khinchane laga aur ve saavadhaan hone lage. isee beech 1890 ee0 men portasmathamen shaakaahaariyonka ek sammelan | huaa. usamen gaandheejeeko tatha unake ek aur bhaarateeyamitrako nimantran milaa. ve donon ek mahilaake gharamen thaharaaye gaye. vah ek badanaam ghar tha, parantu svaagatasamitiko kuchh pata naheen thaa. raatako sabhaase donon mitronne lautakar bhojan kiyaa. tadanantar ve log us mahilaake saath taash khelane lage. vinod aarambh hua aur nirdosh vinod ashleel vinodamen parinat ho gayaa. gaandheejeeka man kuchh deela hone laga aur us malin vinodamen unako bhee ras aane lagaa. taash ek or rakhanekee naubat aanevaalee hee shree ki unake saathee ke hridayamen bhagavaan a viraaje aur ve bole-'are tujhamen yah kaliyug kyon? yah tera kaam nahaan, bhaag yahaanse.' gaandheejee baala-baal bache. ve svayan aatmakathaamen is sambandhamen kahate hain-main lajjit huaa. hridayamen is mitraka upakaar maana, maataake saamane kee huee 1 pratijna yaad aayee. vahaanse bhaaga aur kaanpata hua apane kamaremen pahunchaa. eeshvarake sambandhamen main vishesh kuchh jaanakaaree naheen rakhata tha ki ve hamaare andar kis prakaar kaam karate hain, par saadhaaran arthamen mainne yahee samajha ki eeshvarane mujhe bacha liyaa. main raamanaam lete hue is sankatase bachaa.' aage chalakar ve likhate hain 'mainne dekha hai, jab saaree aashaaen toot jaatee hain, kuchh bhee karate dharate naheen banata, tab kaheen-na-kaheense sahaayata a pahunchatee hai. stuti, upaasana, praarthana vaham naheen hai. balki hamaara khaana peena, chalanaa-baithana aadi jitana saty hai, usase bhee ye cheejen adhik saty hain. yah kahane men bhee atishayokti naheen ki yahee saty hai, aur sab mithya hai.'

raamanaamakee mahimaamen unhonne bahut kuchh kaha hai. 1925 ee0 men navajeevanamen unhonne likha tha paavan honeke liye raamanaam hridayase lena chaahiye, jeebh aur hridayako ekaras karake raamanaam lena chaahiye. main apana anubhav sunaata hoon, sansaaramen yadi men vyabhichaaree honese bacha hoon to raamanaamakee hee badaulat maine daave to bada़e bada़e kiye hain; parantu yadi mere paas raamanaam n hota to teen striyonko men bahin kahane ke laayak n raha hotaa. jaba-jab mujhapar vikat prasang aaye hain, mainne raamanaam liya hai aur main bach gaya hoon. anek sankatonse raamanaamanemeree raksha kee hai.'

gaandheejeeka jeevan tyaagamay thaa. san 1901 men jab ve dakshin aphreekaase bhaarat lautanevaale the, tab vahaanke bhaarateeyonne unhen unakee sevaake upalakshamen bahumooly vastuen bhent kee; parantu unhonne un sabako vaheen ek trastake supurd kar diya, jisase vahaanko bhaarateey janataako seva hotee rahe. gaandheejeene is sambandhamen kaha, 'mera yah nishchit mat ho gaya hai ki loka-sevakako jo bhent milatee hai, vah usakee nijee vastu kadaapi naheen ho sakatee.'

san 1902 kee baat hai. gaandheejee dakshin aphreekaase, laute the aur bambaee men vakaalat aarambh karanevaale the. vaheen giragaanv men rahaneke liye ek ghar bhee kiraaye par le liya thaa. parantu bhagavaan‌ko ichchha ghar liye abhee kuchh hee din hue the ki unaka das varshaka doosara lada़ka manilaal beemaar ho gayaa. bhayaanak jvarane aakraman kiya tha, jvar utarata ho n thaa. use ghabaraahat to thee hee, raatako sannipaatake lakshan bhee dikhaayee dene lage. daॉktarane dekha to kahaa-'ise dava kam hee kaam degee, ab to ise anda aur murgeeka shoraba denekee aavashyakata hai.' gaandheejeene uttar diyaa- 'daॉktar saahaba! ham to sab annaahaaree hain. mera vichaar to ise inamense ek bhee vastu deneka naheen hai. aap doosaree koee vastu batala sakate hain?' daॉktar bole-'aapake lada़keko jaan khatare men hai. doodh aur paanee milaakar diya ja sakata hai, par usase poora poshan naheen mil sakataa. aap jaanate hain ki main to bahut se hindoo parivaaronmen jaaya karata hoon; par davaake roopamen jo ham chaahate hain, unhen dete hain aur ve use lete bhee hain. main samajhata hoon ki aap bhee apane lada़ke ke saath aisee sakhtee n karen to achchha hogaa.' gaandheejee bole-'main to samajhata hoon ki manushyake dharmakee kasautee aise hee samayamen hotee hai. theek ho ya galat, mainne to isako dharm maana hai ki manushyako maansaadi naheen khaana chaahiye. jeevanake saadhanonkee bhee ek seema hotee hai. jeeneke liye bhee aisee vastuonko hamen naheen grahan karana chaahiye mere dharmako maryaada mujhe aur mere parivaar kelogonko aise samayapar bhee maans aadika upayog karanese rokatee hai. isaliye aap jis khatareko dekhate hain, mujhako use uthaana hee chaahiye. aap baalakakee naada़ee evan hridayakee gatiko dekhaneke liye avashy padhaarane kee kripa karate rahen, main svayan isakee jal chikitsa karoongaa.' bhale paarasee daaktarane baat sveekaar kar lee.

gaandheejeene jala- chikitsa aarambh kar dee aur phal bhagavaanpar chhoda़ diyaa. us samay unamen vichaaronkee baadha़ a rahee thee aur mana-hee-man ve kahate-' jeeva! jo too apane liye karata hai, vaheen lada़keke liye bhee karega to parameshvar santosh maanenge. tujhe jal chikitsaapar shraddha hai, davaapar naheen daॉktar jeevanadaan to dete naheen. ve bhee to prayog hee karate hain n jeevanakee dor to ekamaatr eeshvarake haathamen hee hai. eeshvaraka naam le aur usapar shraddha rakh apane maargako n chhoda़.' lada़kekee avastha kharaab ho gayee, raatrika samay thaa. use unhonne ek geelee nichoda़ee huee chaadarase pairase lekar siratak lapet diya aur ooparase do kambal udha़a diye. sirapar geela tauliya rakh diyaa. baalakaka shareer tavekee tarah tap raha tha, paseena aata hee n thaa. gaandheejee thak gaye the. ve lada़keko usako maanke paas chhoda़ svayan chaupaatee chale gaye aur ghoomane lage. ve likhate hain-" shatake das baje honge. aadamiyonkee aavaaj kam ho gayee thee. mera hriday praarthanaamen talleen tha, kah raha thaa-'he eeshvara! is dharmasankatamen too meree laaj rakha.' munhase raama-raamakee rat chal rahee thee." bhagavaan sachche hridayakee pukaar sunate hain. lautakar aaye to manilaalane pukaaraa-'baapoo a gaye?" usee raat manilaalako itana paseena aaya ki var jaata rahaa. manilaal achchha ho gaya aur bhagavaanne gaandheejeekee laaj rakh lee.

san 1903 kee baat hai, dakshin aphreekaamen ve bina parivaarake gaye hue the. vaheen apane deshake logonkee seva karaneka nishchay kiyaa. bhagavadgeetaaka adhyayan phirase aarambh kiya, jisase unako antardrishti badha़ne lagee. geetaake terah adhyaay unhonne kanthasth kar liye the.geetaake prati unakee bhakti badha़ne lagee aur vah unake liye aachaara-vyavahaarakee ek achook maargadarshika ban gayee. gaandheejee kahate hain-" use mera dhaarmik kosh ho kahana chaahiye. aachaara-sambandhee apanee kathinaaiyon aur usakee atapatee gutthiyonko geetaake dvaara sulajhaataa. usake 'aparigraha', 'samabhaava' ityaadi shabdonne to mujhe jaise pakada़ hee liyaa. yahee dhun rahatee thee ki 'samabhaava' kaise praapt karoon, kaise usaka paalan karoon. hamaara apamaan karanevaala adhikaaree, rishvatakhor, chalate raaste virodh karanevaale, kal jinaka saath tha aise saathee unamen aur un sajjanonmen, jinhonne hamapar bhaaree upakaar kiya hai, kya koee bhed naheen hai? aparigrahaka paalan kis tarah sambhav hai? kya yah hamaaree deh hee hamaare liye kam parigrah hai? stree-purush, baala-bachche aadi yadi parigrah naheen hai, to phir kya hain? dharmaka tattv dikhaayee pada़aa. trastee yon karoda़onkee sampatti rakhate hain, par usakee ek paaeepar bhee unaka adhikaar naheen hotaa. isee prakaar mumukshuko apana aacharan rakhana chaahiye yah paath mainne geetaase seekhaa. aparigrah honeke liye, samabhaav rakhaneke liye hetuka aur hridayaka parivartan aavashyak hai- yah yaat mujhe deepakakee bhaanti spasht dikhaayee dene lagee. mainne ek das hajaaraka jeevanabeema bambaee men kara liya tha, turant use radd karaane ko likh diyaa. baala-bachchonkee aur grihineeko raksha vah eeshvar karega, jisane unako aur hamako paida kiya hai." gaandheejee kahate hain-'mere liye to geeta hee sansaarake sab dharmagranthonkee kunjee ho gayee hai. sansaarake sab dharmagranthonmen gahare se gahare jo rahasy bhare hue hain, un sabako yah mere liye kholakar rakh detee hai."

geeta aur raamacharitamaanasako mahima gaandheejee ek jagah is prakaar kahate hain-'bhagavadeeta aur tulaseedaasako raamaayanase mujhe atyadhik shaanti milatee hai. main kabool karata hoon ki kuraan, baaibil tatha duniyaake anyaany dharmoke prati mera ati aadarabhaav hote hue bhee mere hridayapar unaka utana asar naheen hota, jitana ki shreekrishnako geeta aur tulaseedaasakee raamaayanaka hota hai.'1906 ee0 men gaandheejeene 30 varshako aayu jeevanaparyant brahmacharyapaalanaka vrat liya aur antatak nishthaapoorvak nibhaayaa. brahmacharyaheen jeevan unhen shushk aur pashuvat maaloom hotaa. is sambandhamen ve kahate hain-'mainne sanyamabhang karanevaale vishayonse bachanekee atal pratijna lee. vrat leneke viruddh jitanee bhee lubhaavanee daleelen ho sakatee hain, inamense kiseeke vasheebhoot main n huaa. atal vrat ek kilekee tarah hai, jo bhayankar moh utpann karanevaalee vastuon aur pralobhanonse manushyakee raksha kar sakata hai; yah hamaaree durbalataaon aur chanchalataaonka achook ilaaj hai. saadhakaavasthaamen jab manushyapar moh aur vikaaronka aakraman hota hai, tab vrat usakee rakshaake liye anivaary hee hai.

brahmacharyakee vyaakhya karate hue ve kahate hain- "brahmacharyaka arth hai-man, vachan aur karmase indriyaanka sanyam brahmachaaree aur bhogoke jeevanamen kya antar hai, yah samajh sena theek hogaa. donon apanee aankhonse dekhate hain lekin brahmachaaree dev darshan karata hai aur bhogee naataka-sinema dekhanemen leen rahata hai. donon karnendriyonka upayog karate hain; lekin jahaan brahmachaaree eeshvarabhajan sunata hai, vahaan bhogee vilaasee geetonko sunanemen magn rahata hai. donon jaagaran karate hain; parantu ek apane hridayasth eeshvarakee aaraadhana karata hai to doosara naacha-gaanamen apanee sudh bhula deta hai. donon aahaar karate hain; ek shareerako eeshvaraka nivaas samajhakar usakee rakshaabharake liye kuchh kha leta hai aur doosara svaadake liye petamen anek padaarth bharakar use aur durgandhit banaata hai. aise hee brahmacharyaka paalan karaneke liye satat prayatnasheel rahanekee aavashyakata hai. parantu jo eeshvara-saakshaatkaarake liye brahmachary ka paalan karana chaahate hain, ve yadi apane prayatnake saath hee eeshvarapar shraddha rakhenge to unhen niraash honeka kaaran naheen hee rahegaa. isaliye aatmaarthee arthaat aatmaaka saakshaatkaar karanevaale ke liye antim saadhan to 'raama-naama' aur 'raama-kripaa' ho

hai. is baataka anubhav mainne apane jeevanamen kiya hai." eeshvarake prati shraddha hee unake jeevanakee dhuree thee jisake balapar ve pratyek kshetramen kood pada़te aur saphal hote eeshvarako ve sadaa-sarvada apane saamane upasthit anubhav karate aur kabhee bheda-bhaav unake manamen naheen aata eeshvarake astitvamen unaka adig vishvaas thaa. isake sambandhamen koee shanka karata to ve kahate yadi eeshvar naheen hai to ham bhee naheen ho sakate. iseeliye ham sab use ek aavaajase anek aur anant naamonse pukaarate hain. vah ek hai, anek hai. anuse chhota hai aur himaalay se bhee bada़a hai. samudrake ek bindumen bhee sama ja sakata hai aur aisa bhaaree hai ki saat samudr milakar bhee use sahan naheen kar sakate. use jaanane ke liye buddhivaadaka upayog hee kya ho sakata hai, vah to buddhise ateet hai. eeshvaraka astitv maananeke liye shraddhaako aavashyakata hai. meree shraddha buddhise bhee itanee adhik aage dauda़tee hai ki main samast sansaaraka virodh honepar bhee yahee kahoonga ki eeshvar hai, vah hai hee hai."

unase kiseene shraddhaaka arth poochha, isake uttaramen ve bole- 'shraddhaaka arth hai aatmavishvaas aatmavishvaasaka arth hai-eeshvarapar vishvaas jab chaaron aur kaale baadal dikhaayee dete hon, kinaara kaheen najar n aata ho aur aisa maaloom hota ho ki bas, ab doobe, tab bhee jise yah vishvaas hota hai ki main hargij n duloonga, use kahate hain shraddhaavaan.' apanee shraddhaako vyakt karate hue unhonne hindee navajeevanamen ek baar likha thaa- 'kaasheevishvanaathakee bhavy moorti mau0 hasarat mohaaneeke najadeek ek pattharaka tukada़a ho, par mere liye to vah eeshvarakee pratima hai. mera hriday usaka darshan karake dravit hota hai, yah shraddhaakee baat hai. jab main gaayaka darshan karata hoon, tab mujhe kisee bhakshy pashuka darshan naheen hotaa: usamen mujhe ek karun kaavy dikhaayee deta hai. main usakee pooja karoonga aur phir karoonga aur yadi saara jagat mere viruddh uth khaड़a ho to usaka mukaabala karoongaa. eeshvar ek hai, par vah mujhe pattharakee pooja karanekee shraddha pradaan karata hai.'

aise bhaavase otaprot hokar ek baar phir unhonne likha tha main yah kahaneka saahas karata hoon kishraddha aur vishvaas n rahe to kshanabharamai pralay ho jaaya. sachchee shraddha maanee hain un logonke yuktiyukt anubhavonka aadar karana, jinake vishayamen hamaara vishvaas hai ki unhonne tapasya aur bhaktise pavitr jeevan bitaaya hai. isaliye praacheen kaalake avataaron ya nabiyonmen vishvaas karana kuchh bematalab vishvaas naheen hai, balki vah hai aatma kee aantarik bhookhako santushti."

gaandheejeeka jeevan jo itana vyaapak aur saarvajanik bana, usaka ek hee aadhaar unakee 'ekamevaadviteeyam' eeshvaramen adig aur amal shraddha hee thee. unake jeevanakee pratyek kriya ek hee drishtise hotee thee ki kis prakaar aatmadarshana- eeshvaraka saakshaatkaar ho. ve kahate hain-'main jo kuchh likhata aur karata hoon, vah bhee isee uddeshyase aur raajaneetik kshetramen jo main kooda, so bhee isee baatako saamane rakhakara.' iseeko lakshyakar ve apana hriday hee khol dete hain is satyanaaraayanakee shodhake liye main apanee priy se priy vastuko bhee chhoda़ deneke liye taiyaar hoon aur is shodharoopon yajnamen apane shareerako bhee hom denekee mainne taiyaaree kar lee hai. mujhe vishvaas hai ki itanee shakti mujhamen hai. parantu jabatak is satyaka saakshaatkaar naheen ho jaata, tabatak mera antaraatma jise saty samajhata hai, usee satyako apana aadhaar maanakar, deep stambh samajhakar usake sahaare men apana jeevan aage badha़a raha hoon.'

aktoobar 1926 ee0 men unhonne navajeevanamen ek lekh likha thaa. usaka sheershak tha raamanaam aur raashtraseva usaka upasanhaar karate hue unhonne likhaa- 'mere liye to raashtrasevaaka arth maanav jaatikee seva hai- yahaantak ki kutumbako nirlipt bhaavase kee gayee seva bhee maanav jaatikee seva hai. is prakaarakee kautumbik seva avashy ho raashtrasevaakee or le jaatee hai. raamanaamase manushyamen anaasakti aur samata aatee hai. raamanaam aapattikaalamen use kabhee dharmachyut naheen hone detaa. gareeb se gareeb logonko seva kiye bina ya unakehitamen apana hit maane bina moksh paana men asambhav maanata hoon."

1946 ee0 kee baat hai. ek bhaaeene prashn kiya ki 'sevaakaaryake kathin avasaronpar bhagavadbhaktike nityaniyam naheen nibh paate, to kya isamen koee harj hai? donon kisako pradhaanata dee jaaya. sevaakaaryako athava maalaajapako?"

isake uttaramen unhonne likhaa- kathin sevaakaary hai ya usase bhee kathin avasar ho to bhee bhagavadbhakti yaanee raamanaam band ho hee naheen sakataa. usaka baahyaroop prasangake mutaabik badalata rahegaa. maala chhootane se raamanaam jo hridayamen ankit ho chuka hai, vah thoda़e hee chhoot sakata hai."

raamadhunakee mahimaaka gaan karate hue gaandheejee kahate hain—'main bina kisee hichakichaahatake yah kah sakata hoon ki laakhon aadamiyondvaara sachche dilase ek taal aur layake saath gaayee jaanevaalee raamadhunakee taakat phaujee taakatake dikhaavese bilakul alag aur kaee guna bada़ee bada़ee hotee hai. dilase bhagavaan‌ka naam lenese aajakee barabaadeekee jagah sthaayee shaanti aur aanand paida hogaa.'

bheetaree aur baaharee pavitrataaka ullekh karate hue gaandheejee kahate hain-'jo aadamee raamanaam japakar apanee antaraatmaako pavitr bana leta hai, vah baaharee gandageeko baradaasht naheen kar sakataa. agar laakhon-karoda़on log sachche hridayase raamanaam japen, to n to dange-jo samaajik rog hai- hon aur n beemaaree ho. duniyaamen raamaraajy kaayam ho jaaya.'

yah sabhee jaanate hain ki gaandheejee hindoo-muslim ekataake bada़e pakshapaatee the aur isake liye ye bada़e-se bada़a tyaag karane ko taiyaar the. parantu gaumen unakee itanee bhakti thee ki ve gorakshaake prashnake saamane hindoo-muslim ekataako bhee tyaag sakate the. kaaka kaalelakarajeene unake kuchh sansmaran likhe hain, usamen aaya hai-

madraasaka san 1926 ka kaangres adhiveshan tha ham shreeshreenivaas ayyangarajeeke makaanapar thahare the hindoo-muslim ekataake nisbat ek masavida taiyaarakarake baapookee sammatike liye laaye. vah masavida unake | haathamen aaya to ve kahane lage-'kiseeke bhee prayatnase | aur kaisee bhee shartapar hindoo-muslim samajhauta ho jaay to manjoor hai. mujhe isamen kya dikhaana hai.' phir bhee vah masavida baapooko dikhaaya gayaa. unhonne sarasaree nigaah se dekhakar kahaa-'theek hai.'

"shaamakee praarthana karake baapoo jaldee so gaye. subah bahut jaldee uthe. mahaadev bhaaeeko jagaayaa. main bhee jag gayaa. kahane lage- 'bada़ee galatee ho gayee. kal shaamaka masavida mainne dhyaanase naheen padha़aa. yon hee kah diya ki theek hai. raatako yaad aayee ki usamen musalamaanonko govadh karanekee aam ijaajat dee gayee hai aur hamaara gorakshaaka savaal yon hee chhoda़ diya gaya hai. yah mujhase kaise baradaasht hogaa. ve gaayaka vadh karen to ham unhen jabardastee to naheen rok sakate. lekin unakee seva karake unhen samajha sakate hain na? main to svaraajyake liye bhee gorakshaaka aadarsh naheen chhoda़ sakataa. un logonko abhee jaakar kah aao ki vah samajhauta mujhe maany naheen hai. nateeja chaahe jo kuchh bhee ho, kintu main bechaaree gaayonko is tarah chhoda़ naheen sakataa.'

"saamaany taurapar kaisee bhee haalatamen baapookee aavaaj men kshobh naheen rahataa. ve shaantise hee bolate the, lekin ooparakee baaten bolate samay ve uttejit se maaloom hote the. mainne manamen kahaa-'aho bat mahatpaapan kartun vyavasita vayam. yadraajyalaabhalobhen gaan parityaktumudyataah ..' baapookee haalat aisee hee thee."

saampradaayik vidveshako mitaane aur maanavamen bhaaeechaarekee bhaavana jaagradakar use bhagavadunmukh karaneke liye gaandheejee noaakhaalee men gaanva-gaanv ghoomakar apana divy sandesh sabako suna rahe the. adhik titikshaase unaka shareer kaaphee krish ho gaya tha, par budha़aape men bhee raamanaamake prataapase ve tejasvee deekhate the. shareerakee badha़tee durbalataapar unaka dhyaan naheen thaa. ek din bakareeka doodh naheenmilaa. gaandheejeene kahaa-'chalo, naariyalaka doodh hee sahee.' aath auns jitana ve bakareeka doodh piya karate the- unhen pilaaya gayaa; parantu hajam karanemen bahut bhaaree pada़a aur usase unhen dast hone lage. isase sandhyaatak gaandheejeeko itanee kamajoree a gayee ki baaharase jhopada़ee men aate-aate unhen chakkar aane lage aur raaste men hee ve moorchhit ho gaye. unake bhaaeekee suputree manuben unake saath thee vah ghabaraayee aur daॉktarako bulaaneke liye patr likhakar bhejanevaalee hee thee ki itanemen gaandheejeeko hora a gayaa. manuko unhonne bulaaya aur kaha, 'tumako chaahiye ki sachche dilase raamanaam letee raho. main svayan apane manamen raamanaam le hee raha thaa. tum bhee kiseeko bulaane kee bajaay raamanaam shuroo kar detee to mujhe bahut achchha lagataa. yadi raamanaamaka mantr mere dilamen poora poora ram jaayaga, to main kabhee beemaar hokar naheen maroongaa. yah niyam keval mere liye hee naheen, sabake liye hai .' yah ghatana 30 janavaree 1947 ke din ghatee thee baapooke nirvaanase theek ek varsh poorv atal shraddha, achal vishvaas, satyaka aagrah, ahinsaaka paalan, bure karanevaaleka bhee bhala chaahana aur bhala karana, krodhaka badala sevaase dena, raamanaamamen atal vishvaas, gomaataakee bhakti aadi anekon apratim gunonka samooh yadi ek jagah dekhana ho to vartamaan yugamen vah gaandheejee men mil sakata hai. ve yugapurush the, sant the aur sachche saadhak the.

raamanaamamen unakee yah shraddha antim kshanatak adig rahee. vadhikane mahaatma gaandheekee chhaateemen teen goliyaan pistaul se chhoda़een, ve raamanaam lete hue gir pada़e aur unaka aatma apane anshee bhagavaan‌men sadaake liye mil gayaa. unakee baat saty nikalee, 'main beemaar hokar kabhee naheen maroonga yadi mere dilagen raamanaam pooraa-poora ram gaya to.' bhagavaan sada bhaktamen ghule-mile rahate hain-bhaktakee mahima prabhu hee jaan sakate hain.

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सत्यम शिवम सुन्दरम
सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है
राधे तेरे चरणों की अगर धूल जो मिल जाए
सच कहता हू मेरी तकदीर बदल जाए
मैं मिलन की प्यासी धारा
तुम रस के सागर रसिया हो
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
सब हो गए भव से पार, लेकर नाम तेरा
नाम तेरा हरि नाम तेरा, नाम तेरा हरि नाम
किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,
मेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा
मुझे तेरा ही सहारा महारानी, चरणों से
वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
रंग डालो ना बीच बाजार
श्याम मैं तो मर जाऊंगी
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
सब के संकट दूर करेगी, यह बरसाने वाली,
बजाओ राधा नाम की ताली ।
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
दुनिया का बन कर देख लिया, श्यामा का बन
राधा नाम में कितनी शक्ति है, इस राह पर
जगत में किसने सुख पाया
जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
नटवर नागर नंदा, भजो रे मन गोविंदा
शयाम सुंदर मुख चंदा, भजो रे मन गोविंदा
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया, दिल दीवाना हो गया ॥
शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
मेरी रसना से राधा राधा नाम निकले,
हर घडी हर पल, हर घडी हर पल।
हम प्रेम दीवानी हैं, वो प्रेम दीवाना।
ऐ उधो हमे ज्ञान की पोथी ना सुनाना॥
तीनो लोकन से न्यारी राधा रानी हमारी।
राधा रानी हमारी, राधा रानी हमारी॥
हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप ताप और साधन क्या जाने
सांवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठानी
यह तो जाने दुनिया सारी है
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
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तेरी बंसी पवाडे पाए लख अड़ेया ।

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बिगड़ी बनेगी तेरी,