⮪ All भक्त चरित्र

भक्तिकी परम आदर्श श्रीगोपीजन की मार्मिक कथा
भक्तिकी परम आदर्श श्रीगोपीजन की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तिकी परम आदर्श श्रीगोपीजन (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तिकी परम आदर्श श्रीगोपीजन]- भक्तमाल


भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-'उन गोपियोंका मन मेरा मन हो गया उनके प्राण, उनका जीवनसर्वस्व मैं ही हूँ। मेरे लिये उन्होंने अपने शरीरके सारे सम्बन्धोंको छोड़ दिया है। उन्होंने अपनी बुद्धिसे केवल मुझको ही अपना प्यारा, प्रियतम और आत्मा मान लिया है।'

कलिन्दनन्दिनी श्रीयमुनाजीके तटपर बृहद्वन नामका एक अतिशय सुन्दर वन था। इस वनमें एवं वनके पार्श्व देशोंमें अनेकों व्रज बसे हुए थे। इन व्रजोंमें अगणित गोप निवास करते थे। प्रत्येक गोपके पास अपार गोधनकी सम्पत्ति थी। गोपालन ही इनकी एकमात्र जीविका थी। सब घरोंमें दूध-दधिकी धारा बहा करती। बड़े सुखसे इनका जीवन बीतता था। छल-कपट ये जानते ही नहींथे। धर्ममें पूर्ण निष्ठा थी। इन्हीं गोपोंके घर श्रीगोपीजनोंका अवतरण हुआ था - विश्वमें श्रीकृष्णप्रेमका आदर्श स्थापित करनेके लिये, एक नवीन मार्ग दिखाकर त्रितापसे जलते हुए जगत्के प्राणियोंको और उधर परमहंस मुनिजनोंको भगवत्प्रेमसुधाकी धारासे सिक्त कर, उस प्रवाहमें बहाकर अचिन्त्य अनिर्वचनीय चिन्मय आनन्दमय लीलारससिन्धुमें सदाके लिये निमग्न कर देनेके लिये।

लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्वकी बात है, उपर्युक्त व्रजोंके गोपोंके एकच्छत्र अधिपति महाराज नन्दके पुत्ररूपमें यशोदा रानीके गर्भ से परब्रह्म पुरुषोत्तम गोलोकविहारी स्वयं भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रका अवतार हुआ। व्रजपुरकी वसुन्धरापर यशोदानन्दनकी विश्वमोहिनी लीला प्रसरित हुई। सबको अपने सौभाग्यका परम फल प्राप्त होनेलगा। इनमें सर्वप्रथम अवसर मिला वहाँकी वात्सल्यवती गोपियोंको इन जोंमें जितनी पुत्रवती गोपियाँ थीं. सबने अखिल ब्रह्माण्डनायक यशोदानन्दनको अपने अङ्कमें धारण किया, वे उन्हें अपना स्तनदुग्ध पिलाकर कृतार्थ हुई। योगीन्द्रमुनीन्द्रगण अपने ध्यानपथमें भी जिनका स्पर्श पा लेनेके लिये सदा लालायित रहते हैं, उन अनन्तैश्वर्यनिकेतन महामहेश्वरको, अपने विशुद्ध वात्सल्यमय प्रेमको भेंट चढ़ाकर इन गोपियोंने—मानो वे उनके ही हाथकी कठपुतली हों- इस रूपमें पाया। सर्वेश्वरकी वह प्रेमाधीनता, भक्तवश्यता देखने ही योग्य थी-

देत करताल वे लाल गोपाल सों
पकर ब्रजवाल कपि ज्यों नचावै ॥
कोड कहै ललन पकराव मोहि पाँवरी,
को कहै लाल बलि लाओ पीढ़ी।
कोड कहै ललन गहाव मोहि सोहनी,
कोऊ कह लाल चढ़ि जाउ सीढ़ी।
कोड कहै ललन देखी मोर कैसे नये
कोठ कह भ्रमर कैसे गुजारें।
कोड कहै पौर लगि दौर आओ लाल!
रीझ मोतीन के हारु वारे ।।
जो कछु कहूँ ब्रजवधू सोइ सोइ करत,
तोतरे बैन बोलन रोय परत वस्तु जब भारी न उठे तब, सुहावें।
चूम मुख जननी उर सौ लगावें ॥
दन कहि लौनी पुनि चाहि रहत बदन,
हंस स्वभुज बीच लै लै कलोलें।
धाम के काम बजवाम सब भूल रहीं,
कान्ह बलराम के संग डोलें ॥
सुर गिरिधरन मधु चरित मधु पान के
और अमृत कछू आन लागे।
और सुख रेक की कौन इच्छा करे,
मुक्ति लॉन सी खारी लागे ॥

किंतु इन वात्सल्यवतो गोपिकाओं की अपेक्षा भी निर्मलतर, निर्मलतम प्रेमका निदर्शन व्यक्त हुआ मधुरभाव से श्रीकृष्णचन्द्र के प्रति आत्मनिवेदन, सर्वसमर्पण करनेवाली श्रीगोपीजनोंमें। व्रजकी इन गोपकुमारिका ओंका, गोपसुन्दरियोंकाश्रीकृष्णप्रेम जगत्के अनादि इतिहासमें सर्वथा अप्रतिम बना रहेगा। प्रेमकी जैसी अनन्यता इनमें हुई और फिर सर्वथा निर्वाध भगवत्सेवाका जो अधिकार इन्हें प्राप्त | हुआ, वह अन्यत्र कहीं है ही नहीं।

उस समयकी बात हैं जब व्रजराजकुमार रँगते अपने आँगनमें खेल रहे थे। कुछ बड़ी आयुकी गोपकुमारिकाएँ भी अपनी जननियोंके साथ नन्दभवन इन्हें देखने आया करतीं। सब की सब सरलमति बालिकाएँ थी, पर श्रीकृष्णचन्द्र के महामरकत श्यामल अड्रॉपर दृष्टि पड़ते ही इनकी दशा विचित्र हो जाती। ये ऐसी निष्यन्द हो जाती मानो सचमुच कनकपुत्तलिका ही हो। न जाने, इनकी समस्त शैशवोचित चञ्चलता उस समय कहाँ चली जाती। जो गोपबालक थे, वे जब श्रीकृष्णचन्द्रके समीप आते, उनकी माताएँ जब उन्हें नीलसुन्दरके पास लातीं, तब वे तो अतिशय उल्लासमें भरकर किलकने लगते, अत्यन्त चञ्चल हो उठते। पर उनसे सर्वथा विपरीत दशा इन बालिकाओंकी होती, वे विचित्र गम्भीर हो जातीं। केवल इनकी ही नहीं; जो बहुत छोटी थीं, अथवा श्रीकृष्णचन्द्रकी समवयस्का या उनसे कुछ मास बड़ी थीं, उनकी भी यही दशा होती । वृद्धा गोपिकाएँ स्पष्ट देखतीं- 'यह सुकुमार कलिका-सी नन्हीं बालिका - जिसे जन्में एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ है, उसने देखा यशोदाके नीलमणिकी ओर केवल आ क्षणभर ही, और बस, माताकी गोदमें वह सर्वथा स्थिर हो गयी, उसके नेत्रोंका स्पन्दन भी रुद्ध हो गया। माताएँ एक बार तो आश्चर्य करने लगतीं। पर फिर तुरंत ही उनका समाधान हो जाता-'इस साँवरे शिशुका रूप ही ऐसा है- जडमें विकृति हो जाती हैं, ये तो चेतन हैं।' उन माताओंको क्या पता कि ये समस्त बालिकाएँ व्रजमें जन्मी ही हैं श्रीकृष्णचन्द्रके लिये। वे नहीं जानतीं कि ये नन्दनन्दन श्रीकृष्णचन्द्र ही त्रेताके दशरथनन्दन श्रीरामचन्द्र हैं। कोशलपुरसे ये मिथिला पधारे थे। श्रीजनकनन्दिनीका स्वयंवर था धनुर्भङ्गके अनन्तर श्रीवैदेहीने जयमाला राघवेन्द्र के गले में डाली। रघुकुलचन्द्रका विवाह सम्पन्न हुआ उस समय मिथिलाको पुरन्धियों उनका कोटि मदन- सुन्दर रूप देखकर विमोहित हो गयीं। प्राणोंमेंउत्कण्ठा जाग उठी-' आह, हमारे पति ये होते !' किंतु सर्वसमर्थ श्रीराधव उस समय तो मर्यादापुरुषोत्तम थे। इसीलिये सत्यसङ्कल्प प्रभुने यही वरदान दिया- देवियो ! शोक मत करो, 'मा शोकं कुरुत स्त्रियः': द्वापर के अन्तमें तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा-

द्वापरान् करिष्यामि भवतीनां मनोरथम् । परा श्रद्धा एवं

भक्तिके द्वारा तुम सब व्रजमें गोपी बनोगीश्रद्धया परया भक्त्या व्रजे गोप्यो भविष्यथ ।उसीके परिणामस्वरूप ये मिथिलाको ललनाएँ ही बालिकाएँ बनकर उनके घर पधारी हैं, श्रीकृष्णचन्द्रके चारु पादपद्मोंमें न्यौछावर होनेके लिये ही आयी हैं-भला, इस रहस्यको वे वृद्धा भोली गोपिकाएँ क्या जानें? इसके अतिरिक्त कोशल देशकी ओर लौटते हुए दूल्हा श्रीरामको देखकर न जाने कितनी पुर रमणियाँ विमोहित हुई और अशेषदर्शी कोशलेन्द्रनन्दनने उन्हें भी यह मूक स्वीकृति दी थी- 'व्रजे गोप्यो भविष्यथ ।' अपने वनवासी रूपके दर्शनसे मुग्ध हुए दण्डकारण्यके ऋषियोंको भी उन्होंने द्वापरके अन्तमें गोपी बननेका वरदान दिया था। प्रजारञ्जनका पवित्र आदर्श रखते हुए राजा रामचन्द्रने अपनी प्राणप्रिया जानकीका- उनके सर्वथा नित्य पवित्र रहनेपर भी परित्याग किया। तथा फिर जब-जब वे यज्ञ करने बैठे, तब-तब प्रत्येक यज्ञमें ही उनकी अर्द्धाङ्गिनीके स्थानपर स्वर्णनिर्मित सीता विराजतीं। सर्वेश्वरकी मायाका क्या कहना है- एक दिन ये अगणित स्वर्णसीता मूर्तियाँ चैतन्यधन बन गयीं और सबके लिये राघवेन्द्र के मुखसे यह वरदान घोषित हुआ था-'तुम सभी पुण्य वृन्दावनमें गोपी बनोगी, मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूंगा।' रुचिपुत्र श्रीयज्ञभगवानके सौन्दर्य से विमोहित हुई देवाङ्गनाओंने तपस्या करके, परमा भक्तिसे श्रीहरिको संतुष्टकर गोपी बननेका अधिकार पाया था श्रुतियोंको गोपी बननेका वरदान मिला था। न जाने किन-किनने श्रीहरिके विभिन्न अवतारोंके द्वारा प्रत्यक्ष या मृक 'एवमस्तु' का वरदान पाकर द्वापरके शेषकालमें गोपीपदका सौभाग्य लाभ किया था। प्रपञ्चगत कितने बड़भागी जीवोंने, बड़े-बड़े ऋषि-मुनियोंने, साक्षात् ब्रह्मविद्या आदिने शतसहस्रजन्मोंकी उपासनासे जगदीश्वरकी कृपा प्राप्त की थी और उनके मुखसे निर्गत 'तथास्तु' का बल लेकर व्रजकी गोपी बननेके अधिकारी हुए थे। इन सबकी गणना किसके पास है? एकमात्र श्रीकृष्णचन्द्रकी अचिन्त्यलीला महाशक्तिको ही इसका पूर्ण विवरण ज्ञात रहता है। व्रजकी सीधी-सादी वृद्धा गोपियोंको इस रहस्यका क्या पता। इतना ही नहीं, वे बेचारी नहीं जानतीं कि स्वयं गोलोकविहारी ही व्रजमें पधारे हैं और जब वे आये हैं, तब गोलोकविहारिणी भी आयी ही होंगी, उनके नित्य परिकरोंका भी अवतरण अवश्य हुआ होगा। धराका | दुःसह दैत्यभारसे पीड़ित होना, विधाताके समीप जाकर अपना दुःख निवेदन करना, ब्रह्माका जगन्नाथकी स्तुति करना, परमपुरुषके अवतरणका संदेश प्राप्त करना, परमपुरुषको प्राणप्रियाको सेवाके लिये सुरवनिताओंके प्रति भूतलपर उत्पन्न होनेका आदेश होना- यह कथा इन आभीर- गोपिका ने सुनी नहीं है इसलिये वे कल्पना ही नहीं कर सकतीं कि इन गोपबालिकाओंके रूपमें नित्यलीलाके महामहिम परिकर हैं, अपने स्वामीकी भुवनपावनी लीलामें योगदान करने आये हैं; देवाङ्गनाएँ हैं, श्रुतिगण हैं, प्रपञ्चके अगणित सौभाग्यशाली साधनसिद्ध प्राणी हैं, जो यहाँ गोपी बनकर कृतार्थ होने आये हैं। वे स्वयं कौन हैं, यही उन्हें पता नहीं है। फिर अपनी पुत्रियों इन गोप-बालिकाओंके सम्बन्धमें वे कैसे जायें। श्रीकृष्णचन्द्रकी अघटन-घटना-पटीयसी योगमायाकी यवनिकाकी ओटमें क्या है, इसे कोई जान नहीं सकता। स्मृतिका जितना अंश लीलारस-पोषणके लिये आवश्यक होता है, उतने अंशपरसे योगमाया आवरण हटा लेती है; शेष भाग पूर्णतया आवृत ही रहता है। यही कारण है कि यशोदानन्दनको देखते ही इन नन्हीं-सी बालिकाओंको अथवा किञ्चित् वयस्का गोपकुमारिकाओंकी दशा ऐसी क्यों हो जाती है, इसका वास्तविक रहस्य वे वृद्धा गोपियाँ नहीं जान सकती थीं।

दिन बीतते क्या देर लगती है। जो वयस्का गोपकुमारिकाएँ थीं, वे व्याहके योग्य हो गयीं। गोपन इन विभिन्न व्रजोंमें अच्छे घर-वर देखकर उनका ब्याह किया। विवाह सभी संस्कार विधिवत् सम्पन्न हुए,भोवरें फिरौं। पर आदिसे अन्ततक एक अतिशय आश्चर्यमयी घटना उन दुलहिन बनी हुई गोपबालिकाओंकी आँखोंके सामने घटित हो रही थी। इसे और तो किसीने नहाँ देखा; पर बालिका स्पष्टरूपसे अनुभव कर रही थी, वरके उसके भावी पतिके अणु अणुमें नन्दनन्दन श्रीकृष्णचन्द्र समाये हुए हैं, उसके साथ भाँवरें नन्दनन्दनने ही दी हैं, उसका पाणिग्रहण श्रीकृष्णचन्द्रने किया है। वह स्वप्न देख रही है, या जाग्रत्में ही सचमुच ऐसा हो रहा है- वह कुछ समझ नहीं पाती थी। उसका रोम रोम एक अनिर्वचनीय आनन्दमें परिप्लुत हो रहा था। भ्रान्त-सो हुई वह अपने व्याहकी विधि देखती जा रही थी। जिसके साथ उसने अपनी सगाईकी बात सुन रखी थी, वह वर क्षणभरके लिये भी उसके दृष्टिपथमें न आया। अञ्चलको ओटमें विस्फारित नेत्रोंसे वह एकत्रित समुदायकी ओर कभी देखती, पर कुछ भी निर्णय नहीं कर पाती। निर्णय कर लेना उसके वशको बात ही नहीं है। वास्तवमें तो बात यह है-गोपी न तो स्वप्न देख रही थी, न उसे मतिभ्रम हुआ था। वह सर्वथा सत्यका ही दर्शन कर रही थी। सचमुच श्रीकृष्णचन्द्रने ही उसका पाणिग्रहण किया था। जो एकमात्र उनकी ही हो चुकी हैं, उनके लिये ही व्रजमें आयी है, उन्हें परपुरुष स्पर्श भी कैसे कर सकता है। यह तो लीलारसकी वृद्धिके लिये विवाहका अभिनय था। इसका नियन्त्रण कर रही श्री श्रीकृष्णचन्द्र अधिमहाशक्ति योगमाया लोकदृष्टिमें यह प्रतीति हुई कि अमुक गोपाल अमुकगोपालकके साथ विवाह हुआ। पर सनातन सत्य सिद्धान्त है- व्रजसुन्दरियोंका कभी क्षणभरके लिये भी मायिक पतियोंसे मिलन होता ही नहीं

न जातु व्रजदेवीनां पतिभिः सह सङ्गमः ।'

.एक कालमें एक ही स्थानपर सत्यको आवृत कर योगमाया किसे कब प्रतीति करा देंगी, इसे वे ही जानती हैं गोपबालाने अभी-अभी सत्यको प्रत्यक्ष देखा है; किंतु पुनः उसकी स्मृतिमें आगे कितना उलट-फेर वे करती रहेंगी और परिणामस्वरूप उसका श्रीकृष्णप्रेम उत्तरोत्तर कितना निखरता जायगा इसकी इयत्ता नहीं है। जो हो, प्रायः प्रत्येक विवाहमें ही दुलहिन गोपीकोऔरोंकी प्रतीतिसे सर्वथा विरुद्ध उपर्युक्त अनुभूति ही हुई। और जहाँ ऐसी अनुभूति नहीं हुई, वहाँ आगे चलकर श्रीकृष्णमिलनमें, भगवत्पादपद्मोंके स्पर्शमें किञ्चित व्यवधान हो हो गया। उन-उन व्रजसुन्दरियोंको श्रीकृष्णचन्द्रकी चरणसेवा मिली अवश्य पर इस देहसे नहीं-इस देहको छोड़ देनेके अनन्तर ।

जो गोपकुमारिकाएँ श्रीकृष्णचन्द्रकी समवयस्का थीं या उनसे कुछ ही छोटी या बड़ी थीं-उनके लिये एक दूसरी ही बात हुई। समस्त व्रज बृहद्वनसे उठकर वृन्दावन चला आया और वहाँ श्रीकृष्णचन्द्रकी वत्सचारणलीला आरम्भ हुई। फिर उनकी आयुका चौथा वर्ष आरम्भ होनेपर शरद् ऋतु ब्रह्माने समस्त गोवत्स एवं गोपशिशुओंका अपहरण किया। एक वर्षके लिये स्वयं श्रीकृष्णचन्द्र ही विभिन्न व्रजोंके असंख्य बालक एवं गोवत्सोका रूप धारणकर लीला करते रहे। किसी व्रजवासी गोपको गन्धतक न मिली कि उनके पुत्र तो ब्रह्माकी मायासे मुग्ध होकर कहीं अन्यत्र पड़े हैं और नन्दनन्दन ही उनकी सन्तानके रूपमें खेल रहे हैं। इसी बीचमें योगमायाकी प्रेरणासे सबने अपनी कन्याओंकी सगाई की। धर्मकी साक्षी देकर सबने व्रजबालक बने हुए श्रीकृष्णचन्द्रको ही अपनी कन्या देनेका वचन दे डाला। सबके अनजानमें ही श्रीकृष्णचन्द्र उन समस्त गोपकुमारिकाओंके भावी पति बन गये।

इस प्रकार गोपसुन्दरियोंके, गोपकुमारिकाओंके श्रीकृष्णसेवाधिकार प्राप्त होनेकी भूमिका प्रस्तुत हुई । और जब नन्दनन्दनको आठवाँ वर्ष लगा एवं लगभग एक मास और बीत गया; वृन्दावनमें शरद्की शोभा विकसित होने लगी, तब श्रीगोपीजनोंमें श्रीकृष्णमिलनकी उत्कण्ठा (पूर्वराग) जगानेका कार्य भी सम्पन्न हो गया। अवश्य ही एक प्रकारसे नहीं। स्वेच्छामय श्रीकृष्णचन्द्र श्रीगोपीजनोंके प्रेमविवर्धनके लिये जहाँ जो पद्धति उपयुक्त थी, उसीको अपनाया। उनके पौगण्डवयः श्रित श्यामल अङ्गोंके अन्तरालसे कैशोर झाँक-सा रहा था। और सच तो यह है कि वे तो नित्यकिशोर हैं। इसी कैशोर रूपकी आवश्यकता थी श्रीगोपीजनोंकी आँखोंके लिये, उनके प्रेमोपहारको ग्रहण करनेके लिये। इसीलियेवह उनके समक्ष व्यक्त होने लगा। और फिर एक दिन
गूँज उठौ वंशीध्वनि। इससे पूर्व भी वंशीका स्वर ब्रज सुन्दरियोंने सुना अवश्य था पर आजको तान निराली श्री कन्धों में प्रवेश करते ही गोपसुन्दरियोंकी दशा कुछ को कुछ हो गयी-

लालना गर्ने अंग अनंग तये। कर तान सरासन बान हये ।। इक मूर्छि गिरी न सम्हार तहाँ उर माँझ मनोभव पीर महाँ ।। इक आनन चंद लख ललक दुग चाहि चकोर लगे चलकै ॥

इक तान बिंधी दुग को बरखे इक चालन सीस कर हरखें। इक रूप अमी धर ध्यान रही। इक चित्र लिखी इमि भोड़ गई। वे सचमुच ही क्षणोंमें ही सर्वथा बदल गयीं।

हृदयका सञ्चित श्रीकृष्ण- प्रेम उमड़ा और उसके प्रवाहमें उनके प्राण, मन, इन्द्रियाँ, शरीर-सभी वह चले। योगमायाने इस अवसरपर भी अपने अञ्चलकी किञ्चित् छावासी डाल दी गोपसुन्दरियोंको स्मृतिका कुछ अंश ढक गया और वे सोचने लगीं, अनुभव करने लगीं कि इससे पूर्व उन्होंने कभी श्रीकृष्णचन्द्र के दर्शन नहीं किये, कभी वंशीकी यह अमृतधारा कर्णपथमें आयी हो नहीं। प्रथम बार श्रीकृष्णचन्द्र के दर्शन हुए हैं, प्रथम बार वंशीसे झरते हुए पीयूषका वे पान कर सकी हैं। कितनी तो यह भी भूल गयीं कि यह श्यामवर्ण सौन्दर्यनिधि बालक कौन हैं और परस्पर एक दूसरीसे परिचय पूछने लगों- 'री बहिन ! ये किनके पुत्र हैं?'

गोपसुन्दरियोंके लिये श्रीकृष्णचन्द्रके अतिरिक्त अ अन्य कुछ रहा ही नहीं। वे मन-ही-मन नन्दनन्दनपर न्योछावर हो गयीं। घर, माता-पिता, भाई-बन्धु, पति, ममता सिमटकर श्रीकृष्णचन्द्रमें केन्द्रित हो गयी। अब वे अन्यमनस्क -सी रहने लगीं। निरन्तर उनके नेत्र सजल रहने लगे। प्राणोंमें एक विचित्र व्यथा थी, जिसे वे प्रकट भी नहीं कर पाती थीं, सह भी नहीं सकती थीं। श्रीकृष्णदर्शनके लिये सतत रहती। प्रातः एवं सायं अपने द्वारपर खड़ी हो जातीं। वन जाते हुए बज लौटते हुए श्रीकृष्णचन्द्र के दर्शन जहाँ जिस स्थानसे हो सकते, वहीं वे चली जातीं। गृहकार्य पड़ा रहता। गुरुजन खीझत, झल्लाते, समझाते, किंतु सिर तीचा कर लेनेके अतिरिक्त वे और कोई उत्तर न देतोंकितनोंके अङ्ग पीले पड़ गये। अभिभावकोंने समझा ये रुग्ण हो गयी हैं। उनके लिये वैद्य बुलाये गये। वैद्योंने बताया- किसी गहरी चिन्ताके कारण इनकी ऐसी अवस्था हो गयी है। पर क्या चिन्ता है-यह किसीको पता नहीं लग सका। भाव बढ़ते-बढ़ते यह दशा हुई कि उनके द्वारा गृहकार्य होना सर्वथा असम्भव हो गया। बे करें तो क्या करें। उनके नेत्रोंमें, मनमें श्रीकृष्णचन्द्र समा गये थे। सचेत करनेपर वे कार्यभार सँभालने अवश्य चलतीं, पर ज्यों चलतीं कि दीखता, आगे-पीछे दाहिने बाँयें चारों ओरसे हमें घेरकर श्रीकृष्णचन्द्र साथ चल रहे हैं। झाड़ू देने चलती, तो प्रतीत होता झाडूके कण कणमें श्रीकृष्णचन्द्र समाये हुए हैं। दहीके भाँडमें, मन्थन - डोरीमें, मथानी में श्रीकृष्णचन्द्र खड़े हँसते दीखते। वे कैसे दही बिलोयें? वर्तन माँजने जातीं, उनके कङ्कणसे झन् झन् शब्द होता और उन्हें अनुभव होने लगता श्रीकृष्णचन्द्रके नूपुरकी रुनझुन रुनझुन ध्वनि है। वे चकित नेत्रोंसे द्वारकी ओर देखने लगतीं और उन्हें यही भान होता - 'वह देखो, द्वारपर वे खड़े हैं।' दीपक सँजोकर वे दीपदान करने चलतों पर दीपककी लौमें श्रीकृष्णचन्द्र नाचते दीखते और दीपक हाथसे गिर जाता। चलते-फिरते, सोते-जागते किसी ओर भी दृष्टि फेरते समय श्रीकृष्णचन्द्र उनके सामने निरन्तर बने रहते थे। इस परिस्थितिमें घरके काम कैसे हों। कितनी तो उन्मत्तप्राय हो गयीं। सिरपर दहीका माट लिये वे आत नन्दव्रजमें दही बेचने और 'दही लो' के बदले पुकार उठतीं 'श्रीकृष्ण लो!' 'श्रीकृष्ण लो।' लोग चकित नेत्रोंसे देखते और वे बावरी-सी इस वीथीसे उस वीथीमें फिरती रहतीं। जिनका बाह्य ज्ञान लुप्त नहीं हुआ था एवं हृदयमें निरन्तर श्रीकृष्णको स्फूर्ति रहनेपर भी किसी प्रकार अपनेको सँभालने में समर्थ थीं, उनका कार्य रह गया था केवल श्रीकृष्णनामका गान—पनघटपर, यमुना तटपर गोष्ठमें, व्रजपुरकी गलियोंमें, हाटमें मिलकर परस्पर एक दूसरीके प्रति अपने प्राणवल्लभ श्रीकृष्णचन्द्रके सम्बन्धको चर्चा करते रहना-
हे सखि सुनु यह वचन अनुपा नयनवंत कहें यह फल रूपा।।
नंदसुअन दरसन में आना। अपर लाभ कछु मैं नहिं जाना ।।
उन गोपकुमारियोंकी दशा भी विचित्र थी। ये प्रायः श्रीकृष्णचन्द्रके समान वयकी ही थीं। किंतु जैसे नन्दनन्दन कैशोर शोभासे मण्डित हो चुके थे, वैसे ही इनके शैशवकी ओरसे नवयौवन व्यक्त होनेकी प्रस्तावना कर रहा था। सब की सब अविवाहिता थीं। इन सबने देखा व्रजराजतनयकी उस सौन्दर्यराशिको; इनके प्राण, मनमें भी वह रूप समा गया। फिर तो आराधना आरम्भ हुई नन्दनन्दनको पतिरूपमें पानेके लिये। हेमन्तके प्रथम मासमें दल की दल ये श्रीयमुनाके तटपर अरुणोदयसे पूर्व एकत्र हो जातीं। परस्परका स्नेह भी अद्भुत ही था। एक-दूसरीका हाथ पकड़े उच्चकण्ठसे श्रीकृष्णचन्द्रकी लीलाका गान करती चलतीं। स्नान करके जलके समीप भगवती कात्यायनी महामाया देवीकी बालुकामयी प्रतिमा बनाकर विविध उपचारोंसे पूजा करतीं और अन्तस्तलकी श्रद्धासे प्रार्थना करतीं—'माता ! नन्दनन्दनको हमारा पति बना दो, हम तुम्हें नमस्कार कर रही हैं- - 'नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः।' एक मासतक निर्बाध यह व्रत चलता रहा। योगेश्वरेश्वर श्रीकृष्णचन्द्रका हृदय द्रवित हो उठा इनकी यह अतुलनीय लगन देखकर। चराचरके अधीश्वर, सर्वव्यापक, अन्तर्यामी, विश्वात्मा, व्रजराजनन्दन स्वयं पधारे उनके व्रतको सफल करनेके लिये। चीरहरण - श्रीकृष्णमिलनमें बाधक समस्त आवरणोंको दूर कर देनेकी पवित्रतम लीला सम्पन्न हुई। आज इनगोपकुमारिकाओंका सर्वस्व समर्पण संस्कार पूर्ण हुआ स्वयं अखिलात्मा महामहेश्वर- उनके ही प्रियतम प्राणवल्लभ व्रजराज दुलारेके हाथ सेवाधिकारप्राप्तिका वचन पाकर वे कृतार्थ हुई। प्राणोंमें गूँज उठा श्रीकृष्णचन्द्रके द्वारा दिया हुआ उस समयका यह वरदान' देखो, आगामी शारदीय रात्रियोंमें तुम सब मेरे साथ रमण करोगी- मेरे स्वरूपानन्दका निर्बाध उपभोग, मेरी सेवाका सुख पाओगी 'मयेमा रंस्यथ क्षपाः ।'

इसके दूसरे वर्ष शारदीय पूर्णिमाको उज्ज्वल रात्रिमें गोपसुन्दरियोंका, गोपकुमारिकाओंका महारासके लिये आह्वान हुआ । इनकी मिलनोत्कण्ठा चरम सीमाको स्पर्श करने लगी थी। ठीक उसी समय श्रीकृष्णचन्द्रकी वंशी पुनः बज उठी। आज इस समयकी ध्वनि प्रविष्ट भी हुई केवल उनके ही कानोंमें। ध्वनि पुकार रही थी उन्हें ही उनके नाम ले-लेकर। उनका मन तो श्रीकृष्णचन्द्रके पास था ही। शरीरमें मनकी छायामात्र थी। वह भी आज ध्वनिके साथ ही चली गयी और तब दौड़ीं उस स्वरके पीछे-पीछे सब की सब गोपबालाएँ। जो जहाँ जिस अवस्थामें थी, वह वहींसे वैसे ही दौड़ पड़ी। दूध दुहना बीचमें ही रह गया दुग्धपूर्ण पात्र, सिद्ध हुए भोज्य अन्न चूल्हेपर ही रह गये भोजन परोसनेका कार्य जितना हो चुका था, उतना ही रह गया; घरके शिशुओंका संलालन, अपने पतियोंकी सेवा धरी रही; अपने सामने भोजनके लिये परसी हुई थाली पड़ी ही रह गयी; अपने शरीरमें अङ्गरागलेपनकी, अङ्ग-मार्जनकी, नेत्रोंमें अञ्जनदानकी क्रिया भी जितनी हो चुकी थी, उतनी ही रही और वे सब कुछ छोड़कर, भूलकर चल पड़ीं श्रीकृष्णचन्द्रकी और कहाँ पहननेके वस्त्र कहाँ पहन लिये गये, किस अङ्गके आभूषण कहाँ धारण कर लिये गये-कितनी उलट-पुलट हो गयी है, कैसी विचित्र वेशभूषासे सज्जित होकर वे जा रही हैं, यह ज्ञान भी उन्हें नहीं पति आरि गुरुजनोंने उन्हें रोकनेका कम प्रयास नहीं किया। पर तो चली हो गयीं, जा पहुँचीं श्रीकृष्णचन्द्रके चरणप्रान्त में हाँ, कुछ अवश्य रोक ली गयीं। पतियोंने द्वार बंद क दिये; किंतु पतियोंका अधिकार, बल प्रयोग शरीरपर था न? मन एवं प्राणपर तो नहीं? फिर विलम्ब क्यये रुद्ध हुई. विरहसे जलती गोपसुन्दरियाँ ध्यानस्थ हो गयीं। श्रीकृष्णचन्द्रके चरण उनके ध्यानपथमें उतर आये।

और इधर टूटा उनका समस्त बन्धन इस गुणमय देहको | सदाके लिये छोड़कर वे भी जा खड़ी हुई अपने प्रियतम प्राणवल्लभ श्रीकृष्णचन्द्र के अत्यन्त समीप जहुर्गुणमयं देहं सद्यः प्रक्षीणबन्धनाः।' उनके ये शरीर सचमुच पतिभुक्त हो चुके थे, श्रीकृष्णचन्द्रको सेवाके अयोग्य थे। प्राकृतांश किञ्चित् अवशिष्ट था उनमें। इसीलिये उनका परित्याग करके ही श्रीकृष्णचन्द्रकी साक्षात् सेवा सर्वथा निर्वाध परिपूर्ण सेवाका अधिकार वे पा सकीं।

उधर जो वंशीरवसे आकर्षित होकर राशि - राशि गोपसुन्दरियाँ एकत्रित हुई थीं, उनकी पहले तो अत्यन्त कठिन प्रेम परीक्षा हुई। पर इसमें वे सब की सब उत्तीर्ण हुई। उनके परमोज्ज्वल भावके मूल्यमें विश्वात्मा उनके हाथों बिक गये गोपसुन्दरियाँ श्रीकृष्णचन्द्रके हृदयसे लगकर कृतार्थ हो गयीं। उसी समय वियोगकी लीला भी हुई, श्रीकृष्णचन्द्र कुछ समयके लिये अन्तर्धान हुए और तब निखरा गोपसुन्दरियोंके प्रेमका रूप । श्रीकृष्णविरहमें उनके द्वारा घटित चेष्टाएँ, उनका श्रीकृष्णगान, प्रलाप, करुण क्रन्दन- सभी सदा अद्वितीय ही रहेंगे। कृष्णचन्द्र कहीं गये थोड़े थे। वहीं थे, छिपकर प्रेमसुख ले रहे थे। वे उनके बीचमें हो मन्मथ मन्मथरूप प्रकट हो गये। गोपसुन्दरियोंने उनके लिये अपने उत्तरीयका आसन बिछाया। स्नेहभारसे दबे हुए वे विराजे उसी ओढ़नीके आसनपर कौन? वे विराजे, जिनके लिये अपने हृदयमें आसन बिछाकर योगेश्वर मुनीश्वर प्रतीक्षा करते रहते हैं जो हो, अपने दर्शनसे, प्रेमभरी वाणी से श्रीकृष्णचन्द्रने सबके प्राण शीतल कर दिये। फिर महारास हुआ। इस प्रकार गोपसुन्दरियोंके सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण हुए। आदिसे अन्ततक यह ऐसी विश्वपावन लीला हुई कि जिसे श्रद्धापूर्वक निरन्तर सुनकर, गाकर विश्वके प्राणी आज भी महा भयङ्कर हृदरोग-काम-विकारसं त्राण पा लेते हैं।

दो वर्ष, कुछ महीनोंतक गोपीजन प्रतिदिन ही अतुलनीय परमानन्दरसका उपभोग करती रहीं। दिनके समय तो वे श्रीकृष्णभावनाके स्रोतमें अवगाहन करतीरहतीं एवं रात्रिके समय निमग्न हो जातीं रास-रस सिन्धु पर सहसा एक दिन उनकी एकमात्र निधि हो छिन गयी, श्रीकृष्णचन्द्र मथुरा चले गये। प्रियतमके विरहमें उनकी क्या दशा हुई इसे कोई कैसे चित्रित करे। उनके अन्तरकी व्यथाको उन्होंके प्राणोंकी छायामें अपने प्राण मिलाकर कोई अतिशय बड़भागी अनुभव भले कर ले, अन्यथा वाणीमें तो वह आनेसे रही। बाह्य दशाके सम्बन्धमें वाणी संक्षेपमें इतना ही कह सकती है-उसके बाद गोपबालाओंने अपने केश नहीं सँवारे, उनकी वे सुचिक्कण काली घुँघराली अलकें- जिन्हें अखिलात्मा स्वयं भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र स्पर्शकर प्रेमविल हो जाते- उलझकर जटा-सी बनती गयीं। किसीने फिर गोपसुन्दरियोंके अधरॉपर पानकी लाली नहीं देखी, अङ्गपर उन्हें आभूषण धारण करते नहीं देखा। उनका शरीर क्षीण क्षीणतर होता गया। मलिन वस्त्र धारण किये यमुनाके तटपर वन-वृक्षोंके नीचे गिरिराजके चरणप्रान्तमें जहाँ-जहाँ श्रीकृष्णचन्द्रके चरण-चिह्नको भावना होती, वहीं वे बैठी रहतीं। उनके नेत्र निरन्तर झरते रहते। पहले भी वेश- विन्यास ये अपने लिये तो करती नहीं थीं, करती थीं श्रीकृष्णचन्द्र के सुखके लिये अपने अको सजाने के रूपमें इनके द्वारा विशुद्ध भगवत्सेवा होती थी। इनके इस सजे हुए रूपको देखकर श्रीकृष्णचन्द्रमुखी होते हैं, इसीलिये ये भृङ्गार धारण करती थीं। जब श्रीकृष्ण हो चले गये, तब फिर क्या सजना। यही काम और प्रेममें अन्तर है। 'काम चाहता है अपना सुख, अपनी इन्द्रियोंकी तृप्ति' और 'प्रेम चाहता है एकमात्र सबके नित्य प्रेमास्पदस्वरूप श्रीकृष्णचन्द्रका सुख अपने द्वारा वे सुखी हों।" श्रीगोपीजनोंमें आदिसे अन्ततक विशुद्ध प्रेमका प्रवाह है। इन्होंने श्रीकृष्णचन्द्रके लिये लोकधर्म- लोकाचारका त्याग किया: वेदधर्म-कर्माचरणको जला दी देहधर्म-त्-पिपासा आदिको भी सर्वधा भूलकर इनके साधनोंकी उपेक्षा कर दी; कौन क्या कहता है, इसकी परवा-लज्जा छोड़ दी। और तो क्या, ये सतकुलरमणी थीं आर्यपथमें पूर्ण प्रतिष्ठित थीं, यह इनके लिये दुस्त्यज था, इसे भी इन्होंने श्रीकृष्णचन्द्रके लिये छोड़ दिया आत्मीय स्वजनोंका भी परित्यागकिया; उनके द्वारा की हुई समस्त ताड़नाको भना श्री उपेक्षा कर दी। अपने सुख के सभी साधन विसर्जनकर इन्होंने श्रीकृष्णचन्द्र प्रेम किया। अ सुखको वासना, हम श्रीकृष्णसे सुखी हो- यह ि कभी इनमें जागी ही नहीं इसीलिये ये श्रीकृष्ण लिये निरन्तर तड़पती रही, पर इतना निकट होनेपर भी वे कभी मधुपुरी नहीं गयीं। क्या पता हमारे ज प्रियतमके सुखमें व्याघात हो-इस भावनाने कभी उन्हें वृन्दावनकी सीमासे पार नहीं जाने दिया। इसीको कहते। हैं वास्तविक श्रीकृष्णप्रेम । इनके इस निर्मलतम प्रेमम | कहीं कामकी गन्ध भी नहीं है। श्रीकृष्ण-सुखके लिये ही इनका श्रीकृष्ण सम्बन्ध है। कुछ दिन पश्चात् श्रीकृष्णचन्द्रके भेजे हुएआये इन्हें सान्त्वना देने। बड़े ही तत्त्वज्ञानी थे उद्धव, परआकर दूब गये वे ब्रजसुन्दरियोंके प्रेमपयोधिमें—

उमग्यौ ज्यों तहँ सलिल, सिंधु लतन की धारन।
भीजत अंबुज नीर, कंचुकी भूषन हारन ॥
ताही प्रेम प्रवाह में, कधी चले बहाय
भले ग्यान की मैंड हाँ, व्रज में प्रगट्या आय ॥

कूलके न भएउद्भव चाहने लगे किसी प्रकार इस वृन्दावनमें लता - पत्रके रूपमें उत्पन्न हो जाऊँ और श्रीगोपीजनको चरणरज मुझपर निरन्तर पड़ती रहे।'

वास्तवमें श्रीकृष्ण-वियोगकी यह लीला तो हुई थी प्रेमको परिपुष्टिके लियेन विना विप्रलम्भेन सम्भोगः पुष्टिमश्रुते। साथ ही यदि यह लीला न होती तो प्रेमकी चरम परिणतिका रूप एवं भगवान्‌की प्रेमाधीनताका उच्चतम निदर्शन जगत्में अप्रकट हो रह जाता श्रीगोपीजन जैसे श्रीकृष्णचन्द्रके लिये व्याकुल थीं, वैसे ही श्रीकृष्ण भी उनके लिये सतत व्याकुल रहते थे। केवल द्वारकेशको रानियाँ - विशेषत: पट्टमहिषियों ही जानती थीं कि उनके स्वामीकी क्या दशा है वृन्दावनकी, श्रीगोपीजनोंकी स्मृतिको लेकर उन्हें आशर्य होता था, वे समझ नहीं पाती थीं। कभी वे सोचने लगतीं कि हममें ऐसी कौन सी त्रुटि है, जो हमारे नाथके हृदयमें आज भी हमारी अपेक्षा बहुत-बहुत अधिक स्थान सुरक्षित है श्रीगोपीजनलिये। द्वारकेशने उनकी इस शङ्काका एक दिन समाधान कर दिया। कहते हैं कि सहसा द्वारकेश्वर रुग्ण हो गये। उस चिदानन्दमय शरीरमें भी कहीं रोग होता है? यह तो प्रभुका अभिनय था। जो हो, उदरमें पीड़ा थी। सब उपचार हो चुके, पर पीड़ा मिटी नहीं। देवर्षि नारद पधारे। प्रभुने बताया- 'देवर्षे! पीड़ा हो रही है; इसकी ओषधि भी है। पर अनुपान तुम ला दो। किसी सच्चे भक्तकी चरणधूलि ला दो, फिर मैं उसे सिरपर धारणकर स्वस्थ हो जाऊँगा। फिर तो पूरी द्वारावती छान डाली नारदने और सारे भूतलपर घूम आये। किंतु किसीने भी नरकके भयसे त्रिभुवनपतिको चरणधूलि नहीं दी। वे निराश लौट आये। केवल व्रजमें जाना वे भूल गये थे। प्रभुने आग्रह करके इस बार वहीं भेजा। वियोगिनी व्रजबालाओंने घेर लिया देवर्षिको। वे पूछने लगीं अपने प्रियतमकी कुशल। उन्होंने भी सारी बात बता दी। सबके नेत्र बहने लगे। तुरंत एक साथ ही सबने अपने चरण आगे कर दिये और गदद कण्ठसे वे बोलीं- 'देवर्षे ! जितनी रज चाहिये, ले जाओ। हमारे प्रियतमकी पीड़ा मिट जाय, वे सुखी हो जायें। इसके बदले यदि हमेंअनन्त जन्मोंतक नरकमें जलना पड़े तो यही होने दो। इसीमें हमें परम सुख है। प्रियतमका सुख ही हमारा सुख है, बाबा!' देवर्षिने एक बार तो स्वयं उस पावन रजमें स्नान किया और द्वारका लौट आये। भगवान् तो नित्य स्वस्थ थे ही। पर पट्टमहिषियोंकी आँखें खुल गयीं।

कुरुक्षेत्रमें गोपसुन्दरियोंका श्रीकृष्णचन्द्रसे मिलन हुआ। प्रियतमसे मिलकर वे शीतल हुई। इसके अनन्तर जब लीला समेटनेका समय आया, गोलोकविहारिणी अपने नित्य धाममें पधारने लगीं, तब श्रीगोपीजन भी उनके साथ ही अन्तर्हित हो गयीं। जो नित्य गोपिकाएँ हैं, उनके लिये तो कोई प्रश्न ही नहीं है। जो साधनसिद्धा गोपिकाएँ थीं, वे भी नित्यलीलामें सदाके लिये प्रविष्ट हो गयीं।



You may also like these:



bhaktikee param aadarsh shreegopeejana ki marmik katha
bhaktikee param aadarsh shreegopeejana ki adhbut kahani - Full Story of bhaktikee param aadarsh shreegopeejana (hindi)

[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhaktikee param aadarsh shreegopeejana]- Bhaktmaal


bhagavaan shreekrishn kahate hain-'un gopiyonka man mera man ho gaya unake praan, unaka jeevanasarvasv main hee hoon. mere liye unhonne apane shareerake saare sambandhonko chhoda़ diya hai. unhonne apanee buddhise keval mujhako hee apana pyaara, priyatam aur aatma maan liya hai.'

kalindanandinee shreeyamunaajeeke tatapar brihadvan naamaka ek atishay sundar van thaa. is vanamen evan vanake paarshv deshonmen anekon vraj base hue the. in vrajonmen aganit gop nivaas karate the. pratyek gopake paas apaar godhanakee sampatti thee. gopaalan hee inakee ekamaatr jeevika thee. sab gharonmen doodha-dadhikee dhaara baha karatee. bada़e sukhase inaka jeevan beetata thaa. chhala-kapat ye jaanate hee naheenthe. dharmamen poorn nishtha thee. inheen goponke ghar shreegopeejanonka avataran hua tha - vishvamen shreekrishnapremaka aadarsh sthaapit karaneke liye, ek naveen maarg dikhaakar tritaapase jalate hue jagatke praaniyonko aur udhar paramahans munijanonko bhagavatpremasudhaakee dhaaraase sikt kar, us pravaahamen bahaakar achinty anirvachaneey chinmay aanandamay leelaarasasindhumen sadaake liye nimagn kar deneke liye.

lagabhag paanch hajaar varsh poorvakee baat hai, uparyukt vrajonke goponke ekachchhatr adhipati mahaaraaj nandake putraroopamen yashoda raaneeke garbh se parabrahm purushottam golokavihaaree svayan bhagavaan shreekrishnachandraka avataar huaa. vrajapurakee vasundharaapar yashodaanandanakee vishvamohinee leela prasarit huee. sabako apane saubhaagyaka param phal praapt honelagaa. inamen sarvapratham avasar mila vahaankee vaatsalyavatee gopiyonko in jonmen jitanee putravatee gopiyaan theen. sabane akhil brahmaandanaayak yashodaanandanako apane ankamen dhaaran kiya, ve unhen apana stanadugdh pilaakar kritaarth huee. yogeendramuneendragan apane dhyaanapathamen bhee jinaka sparsh pa leneke liye sada laalaayit rahate hain, un anantaishvaryaniketan mahaamaheshvarako, apane vishuddh vaatsalyamay premako bhent chaढ़aakar in gopiyonne—maano ve unake hee haathakee kathaputalee hon- is roopamen paayaa. sarveshvarakee vah premaadheenata, bhaktavashyata dekhane hee yogy thee-

det karataal ve laal gopaal son
pakar brajavaal kapi jyon nachaavai ..
kod kahai lalan pakaraav mohi paanvaree,
ko kahai laal bali laao peedha़ee.
kod kahai lalan gahaav mohi sohanee,
kooo kah laal chadha़i jaau seedha़ee.
kod kahai lalan dekhee mor kaise naye
koth kah bhramar kaise gujaaren.
kod kahai paur lagi daur aao laala!
reejh moteen ke haaru vaare ..
jo kachhu kahoon brajavadhoo soi soi karat,
totare bain bolan roy parat vastu jab bhaaree n uthe tab, suhaaven.
choom mukh jananee ur sau lagaaven ..
dan kahi launee puni chaahi rahat badan,
hans svabhuj beech lai lai kalolen.
dhaam ke kaam bajavaam sab bhool raheen,
kaanh balaraam ke sang dolen ..
sur giridharan madhu charit madhu paan ke
aur amrit kachhoo aan laage.
aur sukh rek kee kaun ichchha kare,
mukti laॉn see khaaree laage ..

kintu in vaatsalyavato gopikaaon kee apeksha bhee nirmalatar, nirmalatam premaka nidarshan vyakt hua madhurabhaav se shreekrishnachandr ke prati aatmanivedan, sarvasamarpan karanevaalee shreegopeejanonmen. vrajakee in gopakumaarika onka, gopasundariyonkaashreekrishnaprem jagatke anaadi itihaasamen sarvatha apratim bana rahegaa. premakee jaisee ananyata inamen huee aur phir sarvatha nirvaadh bhagavatsevaaka jo adhikaar inhen praapt | hua, vah anyatr kaheen hai hee naheen.

us samayakee baat hain jab vrajaraajakumaar rangate apane aanganamen khel rahe the. kuchh bada़ee aayukee gopakumaarikaaen bhee apanee jananiyonke saath nandabhavan inhen dekhane aaya karateen. sab kee sab saralamati baalikaaen thee, par shreekrishnachandr ke mahaamarakat shyaamal adraॉpar drishti pada़te hee inakee dasha vichitr ho jaatee. ye aisee nishyand ho jaatee maano sachamuch kanakaputtalika hee ho. n jaane, inakee samast shaishavochit chanchalata us samay kahaan chalee jaatee. jo gopabaalak the, ve jab shreekrishnachandrake sameep aate, unakee maataaen jab unhen neelasundarake paas laateen, tab ve to atishay ullaasamen bharakar kilakane lagate, atyant chanchal ho uthate. par unase sarvatha vipareet dasha in baalikaaonkee hotee, ve vichitr gambheer ho jaateen. keval inakee hee naheen; jo bahut chhotee theen, athava shreekrishnachandrakee samavayaska ya unase kuchh maas bada़ee theen, unakee bhee yahee dasha hotee . vriddha gopikaaen spasht dekhateen- 'yah sukumaar kalikaa-see nanheen baalika - jise janmen ek varsh bhee poora naheen hua hai, usane dekha yashodaake neelamanikee or keval a kshanabhar hee, aur bas, maataakee godamen vah sarvatha sthir ho gayee, usake netronka spandan bhee ruddh ho gayaa. maataaen ek baar to aashchary karane lagateen. par phir turant hee unaka samaadhaan ho jaataa-'is saanvare shishuka roop hee aisa hai- jadamen vikriti ho jaatee hain, ye to chetan hain.' un maataaonko kya pata ki ye samast baalikaaen vrajamen janmee hee hain shreekrishnachandrake liye. ve naheen jaanateen ki ye nandanandan shreekrishnachandr hee tretaake dasharathanandan shreeraamachandr hain. koshalapurase ye mithila padhaare the. shreejanakanandineeka svayanvar tha dhanurbhangake anantar shreevaideheene jayamaala raaghavendr ke gale men daalee. raghukulachandraka vivaah sampann hua us samay mithilaako purandhiyon unaka koti madana- sundar roop dekhakar vimohit ho gayeen. praanonmenutkantha jaag uthee-' aah, hamaare pati ye hote !' kintu sarvasamarth shreeraadhav us samay to maryaadaapurushottam the. iseeliye satyasankalp prabhune yahee varadaan diyaa- deviyo ! shok mat karo, 'ma shokan kurut striyah': dvaapar ke antamen tumhaara manorath poorn hogaa-

dvaaparaan karishyaami bhavateenaan manoratham . para shraddha evan

bhaktike dvaara tum sab vrajamen gopee banogeeshraddhaya paraya bhaktya vraje gopyo bhavishyath .useeke parinaamasvaroop ye mithilaako lalanaaen hee baalikaaen banakar unake ghar padhaaree hain, shreekrishnachandrake chaaru paadapadmonmen nyauchhaavar honeke liye hee aayee hain-bhala, is rahasyako ve vriddha bholee gopikaaen kya jaanen? isake atirikt koshal deshakee or lautate hue doolha shreeraamako dekhakar n jaane kitanee pur ramaniyaan vimohit huee aur asheshadarshee koshalendranandanane unhen bhee yah mook sveekriti dee thee- 'vraje gopyo bhavishyath .' apane vanavaasee roopake darshanase mugdh hue dandakaaranyake rishiyonko bhee unhonne dvaaparake antamen gopee bananeka varadaan diya thaa. prajaaranjanaka pavitr aadarsh rakhate hue raaja raamachandrane apanee praanapriya jaanakeekaa- unake sarvatha nity pavitr rahanepar bhee parityaag kiyaa. tatha phir jaba-jab ve yajn karane baithe, taba-tab pratyek yajnamen hee unakee arddhaangineeke sthaanapar svarnanirmit seeta viraajateen. sarveshvarakee maayaaka kya kahana hai- ek din ye aganit svarnaseeta moortiyaan chaitanyadhan ban gayeen aur sabake liye raaghavendr ke mukhase yah varadaan ghoshit hua thaa-'tum sabhee puny vrindaavanamen gopee banogee, main tumhaara manorath poorn karoongaa.' ruchiputr shreeyajnabhagavaanake saundary se vimohit huee devaanganaaonne tapasya karake, parama bhaktise shreehariko santushtakar gopee bananeka adhikaar paaya tha shrutiyonko gopee bananeka varadaan mila thaa. n jaane kina-kinane shreeharike vibhinn avataaronke dvaara pratyaksh ya mrik 'evamastu' ka varadaan paakar dvaaparake sheshakaalamen gopeepadaka saubhaagy laabh kiya thaa. prapanchagat kitane bada़bhaagee jeevonne, bada़e-bada़e rishi-muniyonne, saakshaat brahmavidya aadine shatasahasrajanmonkee upaasanaase jagadeeshvarakee kripa praapt kee thee aur unake mukhase nirgat 'tathaastu' ka bal lekar vrajakee gopee bananeke adhikaaree hue the. in sabakee ganana kisake paas hai? ekamaatr shreekrishnachandrakee achintyaleela mahaashaktiko hee isaka poorn vivaran jnaat rahata hai. vrajakee seedhee-saadee vriddha gopiyonko is rahasyaka kya pataa. itana hee naheen, ve bechaaree naheen jaanateen ki svayan golokavihaaree hee vrajamen padhaare hain aur jab ve aaye hain, tab golokavihaarinee bhee aayee hee hongee, unake nity parikaronka bhee avataran avashy hua hogaa. dharaaka | duhsah daityabhaarase peeda़it hona, vidhaataake sameep jaakar apana duhkh nivedan karana, brahmaaka jagannaathakee stuti karana, paramapurushake avataranaka sandesh praapt karana, paramapurushako praanapriyaako sevaake liye suravanitaaonke prati bhootalapar utpann honeka aadesh honaa- yah katha in aabheera- gopika ne sunee naheen hai isaliye ve kalpana hee naheen kar sakateen ki in gopabaalikaaonke roopamen nityaleelaake mahaamahim parikar hain, apane svaameekee bhuvanapaavanee leelaamen yogadaan karane aaye hain; devaanganaaen hain, shrutigan hain, prapanchake aganit saubhaagyashaalee saadhanasiddh praanee hain, jo yahaan gopee banakar kritaarth hone aaye hain. ve svayan kaun hain, yahee unhen pata naheen hai. phir apanee putriyon in gopa-baalikaaonke sambandhamen ve kaise jaayen. shreekrishnachandrakee aghatana-ghatanaa-pateeyasee yogamaayaakee yavanikaakee otamen kya hai, ise koee jaan naheen sakataa. smritika jitana ansh leelaarasa-poshanake liye aavashyak hota hai, utane anshaparase yogamaaya aavaran hata letee hai; shesh bhaag poornataya aavrit hee rahata hai. yahee kaaran hai ki yashodaanandanako dekhate hee in nanheen-see baalikaaonko athava kinchit vayaska gopakumaarikaaonkee dasha aisee kyon ho jaatee hai, isaka vaastavik rahasy ve vriddha gopiyaan naheen jaan sakatee theen.

din beetate kya der lagatee hai. jo vayaska gopakumaarikaaen theen, ve vyaahake yogy ho gayeen. gopan in vibhinn vrajonmen achchhe ghara-var dekhakar unaka byaah kiyaa. vivaah sabhee sanskaar vidhivat sampann hue,bhovaren phiraun. par aadise antatak ek atishay aashcharyamayee ghatana un dulahin banee huee gopabaalikaaonkee aankhonke saamane ghatit ho rahee thee. ise aur to kiseene nahaan dekhaa; par baalika spashtaroopase anubhav kar rahee thee, varake usake bhaavee patike anu anumen nandanandan shreekrishnachandr samaaye hue hain, usake saath bhaanvaren nandanandanane hee dee hain, usaka paanigrahan shreekrishnachandrane kiya hai. vah svapn dekh rahee hai, ya jaagratmen hee sachamuch aisa ho raha hai- vah kuchh samajh naheen paatee thee. usaka rom rom ek anirvachaneey aanandamen pariplut ho raha thaa. bhraanta-so huee vah apane vyaahakee vidhi dekhatee ja rahee thee. jisake saath usane apanee sagaaeekee baat sun rakhee thee, vah var kshanabharake liye bhee usake drishtipathamen n aayaa. anchalako otamen visphaarit netronse vah ekatrit samudaayakee or kabhee dekhatee, par kuchh bhee nirnay naheen kar paatee. nirnay kar lena usake vashako baat hee naheen hai. vaastavamen to baat yah hai-gopee n to svapn dekh rahee thee, n use matibhram hua thaa. vah sarvatha satyaka hee darshan kar rahee thee. sachamuch shreekrishnachandrane hee usaka paanigrahan kiya thaa. jo ekamaatr unakee hee ho chukee hain, unake liye hee vrajamen aayee hai, unhen parapurush sparsh bhee kaise kar sakata hai. yah to leelaarasakee vriddhike liye vivaahaka abhinay thaa. isaka niyantran kar rahee shree shreekrishnachandr adhimahaashakti yogamaaya lokadrishtimen yah prateeti huee ki amuk gopaal amukagopaalakake saath vivaah huaa. par sanaatan saty siddhaant hai- vrajasundariyonka kabhee kshanabharake liye bhee maayik patiyonse milan hota hee naheen

n jaatu vrajadeveenaan patibhih sah sangamah .'

.ek kaalamen ek hee sthaanapar satyako aavrit kar yogamaaya kise kab prateeti kara dengee, ise ve hee jaanatee hain gopabaalaane abhee-abhee satyako pratyaksh dekha hai; kintu punah usakee smritimen aage kitana ulata-pher ve karatee rahengee aur parinaamasvaroop usaka shreekrishnaprem uttarottar kitana nikharata jaayaga isakee iyatta naheen hai. jo ho, praayah pratyek vivaahamen hee dulahin gopeekoauronkee prateetise sarvatha viruddh uparyukt anubhooti hee huee. aur jahaan aisee anubhooti naheen huee, vahaan aage chalakar shreekrishnamilanamen, bhagavatpaadapadmonke sparshamen kinchit vyavadhaan ho ho gayaa. una-un vrajasundariyonko shreekrishnachandrakee charanaseva milee avashy par is dehase naheen-is dehako chhoda़ deneke anantar .

jo gopakumaarikaaen shreekrishnachandrakee samavayaska theen ya unase kuchh hee chhotee ya bada़ee theen-unake liye ek doosaree hee baat huee. samast vraj brihadvanase uthakar vrindaavan chala aaya aur vahaan shreekrishnachandrakee vatsachaaranaleela aarambh huee. phir unakee aayuka chautha varsh aarambh honepar sharad ritu brahmaane samast govats evan gopashishuonka apaharan kiyaa. ek varshake liye svayan shreekrishnachandr hee vibhinn vrajonke asankhy baalak evan govatsoka roop dhaaranakar leela karate rahe. kisee vrajavaasee gopako gandhatak n milee ki unake putr to brahmaakee maayaase mugdh hokar kaheen anyatr pada़e hain aur nandanandan hee unakee santaanake roopamen khel rahe hain. isee beechamen yogamaayaakee preranaase sabane apanee kanyaaonkee sagaaee kee. dharmakee saakshee dekar sabane vrajabaalak bane hue shreekrishnachandrako hee apanee kanya deneka vachan de daalaa. sabake anajaanamen hee shreekrishnachandr un samast gopakumaarikaaonke bhaavee pati ban gaye.

is prakaar gopasundariyonke, gopakumaarikaaonke shreekrishnasevaadhikaar praapt honekee bhoomika prastut huee . aur jab nandanandanako aathavaan varsh laga evan lagabhag ek maas aur beet gayaa; vrindaavanamen sharadkee shobha vikasit hone lagee, tab shreegopeejanonmen shreekrishnamilanakee utkantha (poorvaraaga) jagaaneka kaary bhee sampann ho gayaa. avashy hee ek prakaarase naheen. svechchhaamay shreekrishnachandr shreegopeejanonke premavivardhanake liye jahaan jo paddhati upayukt thee, useeko apanaayaa. unake paugandavayah shrit shyaamal angonke antaraalase kaishor jhaanka-sa raha thaa. aur sach to yah hai ki ve to nityakishor hain. isee kaishor roopakee aavashyakata thee shreegopeejanonkee aankhonke liye, unake premopahaarako grahan karaneke liye. iseeliyevah unake samaksh vyakt hone lagaa. aur phir ek dina
goonj uthau vansheedhvani. isase poorv bhee vansheeka svar braj sundariyonne suna avashy tha par aajako taan niraalee shree kandhon men pravesh karate hee gopasundariyonkee dasha kuchh ko kuchh ho gayee-

laalana garne ang anang taye. kar taan saraasan baan haye .. ik moorchhi giree n samhaar tahaan ur maanjh manobhav peer mahaan .. ik aanan chand lakh lalak dug chaahi chakor lage chalakai ..

ik taan bindhee dug ko barakhe ik chaalan sees kar harakhen. ik roop amee dhar dhyaan rahee. ik chitr likhee imi bhoda़ gaee. ve sachamuch hee kshanonmen hee sarvatha badal gayeen.

hridayaka sanchit shreekrishna- prem umada़a aur usake pravaahamen unake praan, man, indriyaan, shareera-sabhee vah chale. yogamaayaane is avasarapar bhee apane anchalakee kinchit chhaavaasee daal dee gopasundariyonko smritika kuchh ansh dhak gaya aur ve sochane lageen, anubhav karane lageen ki isase poorv unhonne kabhee shreekrishnachandr ke darshan naheen kiye, kabhee vansheekee yah amritadhaara karnapathamen aayee ho naheen. pratham baar shreekrishnachandr ke darshan hue hain, pratham baar vansheese jharate hue peeyooshaka ve paan kar sakee hain. kitanee to yah bhee bhool gayeen ki yah shyaamavarn saundaryanidhi baalak kaun hain aur paraspar ek doosareese parichay poochhane lagon- 'ree bahin ! ye kinake putr hain?'

gopasundariyonke liye shreekrishnachandrake atirikt any kuchh raha hee naheen. ve mana-hee-man nandanandanapar nyochhaavar ho gayeen. ghar, maataa-pita, bhaaee-bandhu, pati, mamata simatakar shreekrishnachandramen kendrit ho gayee. ab ve anyamanask -see rahane lageen. nirantar unake netr sajal rahane lage. praanonmen ek vichitr vyatha thee, jise ve prakat bhee naheen kar paatee theen, sah bhee naheen sakatee theen. shreekrishnadarshanake liye satat rahatee. praatah evan saayan apane dvaarapar khada़ee ho jaateen. van jaate hue baj lautate hue shreekrishnachandr ke darshan jahaan jis sthaanase ho sakate, vaheen ve chalee jaateen. grihakaary pada़a rahataa. gurujan kheejhat, jhallaate, samajhaate, kintu sir teecha kar leneke atirikt ve aur koee uttar n detonkitanonke ang peele pada़ gaye. abhibhaavakonne samajha ye rugn ho gayee hain. unake liye vaidy bulaaye gaye. vaidyonne bataayaa- kisee gaharee chintaake kaaran inakee aisee avastha ho gayee hai. par kya chinta hai-yah kiseeko pata naheen lag sakaa. bhaav badha़te-badha़te yah dasha huee ki unake dvaara grihakaary hona sarvatha asambhav ho gayaa. be karen to kya karen. unake netronmen, manamen shreekrishnachandr sama gaye the. sachet karanepar ve kaaryabhaar sanbhaalane avashy chalateen, par jyon chalateen ki deekhata, aage-peechhe daahine baanyen chaaron orase hamen gherakar shreekrishnachandr saath chal rahe hain. jhaada़oo dene chalatee, to prateet hota jhaadooke kan kanamen shreekrishnachandr samaaye hue hain. daheeke bhaandamen, manthan - doreemen, mathaanee men shreekrishnachandr khada़e hansate deekhate. ve kaise dahee biloyen? vartan maanjane jaateen, unake kankanase jhan jhan shabd hota aur unhen anubhav hone lagata shreekrishnachandrake noopurakee runajhun runajhun dhvani hai. ve chakit netronse dvaarakee or dekhane lagateen aur unhen yahee bhaan hota - 'vah dekho, dvaarapar ve khada़e hain.' deepak sanjokar ve deepadaan karane chalaton par deepakakee laumen shreekrishnachandr naachate deekhate aur deepak haathase gir jaataa. chalate-phirate, sote-jaagate kisee or bhee drishti pherate samay shreekrishnachandr unake saamane nirantar bane rahate the. is paristhitimen gharake kaam kaise hon. kitanee to unmattapraay ho gayeen. sirapar daheeka maat liye ve aat nandavrajamen dahee bechane aur 'dahee lo' ke badale pukaar uthateen 'shreekrishn lo!' 'shreekrishn lo.' log chakit netronse dekhate aur ve baavaree-see is veetheese us veetheemen phiratee rahateen. jinaka baahy jnaan lupt naheen hua tha evan hridayamen nirantar shreekrishnako sphoorti rahanepar bhee kisee prakaar apaneko sanbhaalane men samarth theen, unaka kaary rah gaya tha keval shreekrishnanaamaka gaana—panaghatapar, yamuna tatapar goshthamen, vrajapurakee galiyonmen, haatamen milakar paraspar ek doosareeke prati apane praanavallabh shreekrishnachandrake sambandhako charcha karate rahanaa-
he sakhi sunu yah vachan anupa nayanavant kahen yah phal roopaa..
nandasuan darasan men aanaa. apar laabh kachhu main nahin jaana ..
un gopakumaariyonkee dasha bhee vichitr thee. ye praayah shreekrishnachandrake samaan vayakee hee theen. kintu jaise nandanandan kaishor shobhaase mandit ho chuke the, vaise hee inake shaishavakee orase navayauvan vyakt honekee prastaavana kar raha thaa. sab kee sab avivaahita theen. in sabane dekha vrajaraajatanayakee us saundaryaraashiko; inake praan, manamen bhee vah roop sama gayaa. phir to aaraadhana aarambh huee nandanandanako patiroopamen paaneke liye. hemantake pratham maasamen dal kee dal ye shreeyamunaake tatapar arunodayase poorv ekatr ho jaateen. parasparaka sneh bhee adbhut hee thaa. eka-doosareeka haath pakada़e uchchakanthase shreekrishnachandrakee leelaaka gaan karatee chalateen. snaan karake jalake sameep bhagavatee kaatyaayanee mahaamaaya deveekee baalukaamayee pratima banaakar vividh upachaaronse pooja karateen aur antastalakee shraddhaase praarthana karateen—'maata ! nandanandanako hamaara pati bana do, ham tumhen namaskaar kar rahee hain- - 'nandagopasutan devi patin me kuru te namah.' ek maasatak nirbaadh yah vrat chalata rahaa. yogeshvareshvar shreekrishnachandraka hriday dravit ho utha inakee yah atulaneey lagan dekhakara. charaacharake adheeshvar, sarvavyaapak, antaryaamee, vishvaatma, vrajaraajanandan svayan padhaare unake vratako saphal karaneke liye. cheeraharan - shreekrishnamilanamen baadhak samast aavaranonko door kar denekee pavitratam leela sampann huee. aaj inagopakumaarikaaonka sarvasv samarpan sanskaar poorn hua svayan akhilaatma mahaamaheshvara- unake hee priyatam praanavallabh vrajaraaj dulaareke haath sevaadhikaarapraaptika vachan paakar ve kritaarth huee. praanonmen goonj utha shreekrishnachandrake dvaara diya hua us samayaka yah varadaana' dekho, aagaamee shaaradeey raatriyonmen tum sab mere saath raman karogee- mere svaroopaanandaka nirbaadh upabhog, meree sevaaka sukh paaogee 'mayema ransyath kshapaah .'

isake doosare varsh shaaradeey poornimaako ujjval raatrimen gopasundariyonka, gopakumaarikaaonka mahaaraasake liye aahvaan hua . inakee milanotkantha charam seemaako sparsh karane lagee thee. theek usee samay shreekrishnachandrakee vanshee punah baj uthee. aaj is samayakee dhvani pravisht bhee huee keval unake hee kaanonmen. dhvani pukaar rahee thee unhen hee unake naam le-lekara. unaka man to shreekrishnachandrake paas tha hee. shareeramen manakee chhaayaamaatr thee. vah bhee aaj dhvanike saath hee chalee gayee aur tab dauda़een us svarake peechhe-peechhe sab kee sab gopabaalaaen. jo jahaan jis avasthaamen thee, vah vaheense vaise hee dauda़ pada़ee. doodh duhana beechamen hee rah gaya dugdhapoorn paatr, siddh hue bhojy ann choolhepar hee rah gaye bhojan parosaneka kaary jitana ho chuka tha, utana hee rah gayaa; gharake shishuonka sanlaalan, apane patiyonkee seva dharee rahee; apane saamane bhojanake liye parasee huee thaalee pada़ee hee rah gayee; apane shareeramen angaraagalepanakee, anga-maarjanakee, netronmen anjanadaanakee kriya bhee jitanee ho chukee thee, utanee hee rahee aur ve sab kuchh chhoda़kar, bhoolakar chal pada़een shreekrishnachandrakee aur kahaan pahananeke vastr kahaan pahan liye gaye, kis angake aabhooshan kahaan dhaaran kar liye gaye-kitanee ulata-pulat ho gayee hai, kaisee vichitr veshabhooshaase sajjit hokar ve ja rahee hain, yah jnaan bhee unhen naheen pati aari gurujanonne unhen rokaneka kam prayaas naheen kiyaa. par to chalee ho gayeen, ja pahuncheen shreekrishnachandrake charanapraant men haan, kuchh avashy rok lee gayeen. patiyonne dvaar band k diye; kintu patiyonka adhikaar, bal prayog shareerapar tha na? man evan praanapar to naheen? phir vilamb kyaye ruddh huee. virahase jalatee gopasundariyaan dhyaanasth ho gayeen. shreekrishnachandrake charan unake dhyaanapathamen utar aaye.

aur idhar toota unaka samast bandhan is gunamay dehako | sadaake liye chhoda़kar ve bhee ja khada़ee huee apane priyatam praanavallabh shreekrishnachandr ke atyant sameep jahurgunamayan dehan sadyah praksheenabandhanaah.' unake ye shareer sachamuch patibhukt ho chuke the, shreekrishnachandrako sevaake ayogy the. praakritaansh kinchit avashisht tha unamen. iseeliye unaka parityaag karake hee shreekrishnachandrakee saakshaat seva sarvatha nirvaadh paripoorn sevaaka adhikaar ve pa sakeen.

udhar jo vansheeravase aakarshit hokar raashi - raashi gopasundariyaan ekatrit huee theen, unakee pahale to atyant kathin prem pareeksha huee. par isamen ve sab kee sab utteern huee. unake paramojjval bhaavake moolyamen vishvaatma unake haathon bik gaye gopasundariyaan shreekrishnachandrake hridayase lagakar kritaarth ho gayeen. usee samay viyogakee leela bhee huee, shreekrishnachandr kuchh samayake liye antardhaan hue aur tab nikhara gopasundariyonke premaka roop . shreekrishnavirahamen unake dvaara ghatit cheshtaaen, unaka shreekrishnagaan, pralaap, karun krandana- sabhee sada adviteey hee rahenge. krishnachandr kaheen gaye thoड़e the. vaheen the, chhipakar premasukh le rahe the. ve unake beechamen ho manmath manmatharoop prakat ho gaye. gopasundariyonne unake liye apane uttareeyaka aasan bichhaayaa. snehabhaarase dabe hue ve viraaje usee oढ़neeke aasanapar kauna? ve viraaje, jinake liye apane hridayamen aasan bichhaakar yogeshvar muneeshvar prateeksha karate rahate hain jo ho, apane darshanase, premabharee vaanee se shreekrishnachandrane sabake praan sheetal kar diye. phir mahaaraas huaa. is prakaar gopasundariyonke sampoorn manorath poorn hue. aadise antatak yah aisee vishvapaavan leela huee ki jise shraddhaapoorvak nirantar sunakar, gaakar vishvake praanee aaj bhee maha bhayankar hridaroga-kaama-vikaarasan traan pa lete hain.

do varsh, kuchh maheenontak gopeejan pratidin hee atulaneey paramaanandarasaka upabhog karatee raheen. dinake samay to ve shreekrishnabhaavanaake srotamen avagaahan karateerahateen evan raatrike samay nimagn ho jaateen raasa-ras sindhu par sahasa ek din unakee ekamaatr nidhi ho chhin gayee, shreekrishnachandr mathura chale gaye. priyatamake virahamen unakee kya dasha huee ise koee kaise chitrit kare. unake antarakee vyathaako unhonke praanonkee chhaayaamen apane praan milaakar koee atishay bada़bhaagee anubhav bhale kar le, anyatha vaaneemen to vah aanese rahee. baahy dashaake sambandhamen vaanee sankshepamen itana hee kah sakatee hai-usake baad gopabaalaaonne apane kesh naheen sanvaare, unakee ve suchikkan kaalee ghungharaalee alaken- jinhen akhilaatma svayan bhagavaan shreekrishnachandr sparshakar premavil ho jaate- ulajhakar jataa-see banatee gayeen. kiseene phir gopasundariyonke adharaॉpar paanakee laalee naheen dekhee, angapar unhen aabhooshan dhaaran karate naheen dekhaa. unaka shareer ksheen ksheenatar hota gayaa. malin vastr dhaaran kiye yamunaake tatapar vana-vrikshonke neeche giriraajake charanapraantamen jahaan-jahaan shreekrishnachandrake charana-chihnako bhaavana hotee, vaheen ve baithee rahateen. unake netr nirantar jharate rahate. pahale bhee vesha- vinyaas ye apane liye to karatee naheen theen, karatee theen shreekrishnachandr ke sukhake liye apane ako sajaane ke roopamen inake dvaara vishuddh bhagavatseva hotee thee. inake is saje hue roopako dekhakar shreekrishnachandramukhee hote hain, iseeliye ye bhringaar dhaaran karatee theen. jab shreekrishn ho chale gaye, tab phir kya sajanaa. yahee kaam aur premamen antar hai. 'kaam chaahata hai apana sukh, apanee indriyonkee tripti' aur 'prem chaahata hai ekamaatr sabake nity premaaspadasvaroop shreekrishnachandraka sukh apane dvaara ve sukhee hon." shreegopeejanonmen aadise antatak vishuddh premaka pravaah hai. inhonne shreekrishnachandrake liye lokadharma- lokaachaaraka tyaag kiyaa: vedadharma-karmaacharanako jala dee dehadharma-t-pipaasa aadiko bhee sarvadha bhoolakar inake saadhanonkee upeksha kar dee; kaun kya kahata hai, isakee paravaa-lajja chhoda़ dee. aur to kya, ye satakularamanee theen aaryapathamen poorn pratishthit theen, yah inake liye dustyaj tha, ise bhee inhonne shreekrishnachandrake liye chhoda़ diya aatmeey svajanonka bhee parityaagakiyaa; unake dvaara kee huee samast taaड़naako bhana shree upeksha kar dee. apane sukh ke sabhee saadhan visarjanakar inhonne shreekrishnachandr prem kiyaa. sukhako vaasana, ham shreekrishnase sukhee ho- yah i kabhee inamen jaagee hee naheen iseeliye ye shreekrishn liye nirantar tada़patee rahee, par itana nikat honepar bhee ve kabhee madhupuree naheen gayeen. kya pata hamaare j priyatamake sukhamen vyaaghaat ho-is bhaavanaane kabhee unhen vrindaavanakee seemaase paar naheen jaane diyaa. iseeko kahate. hain vaastavik shreekrishnaprem . inake is nirmalatam premam | kaheen kaamakee gandh bhee naheen hai. shreekrishna-sukhake liye hee inaka shreekrishn sambandh hai. kuchh din pashchaat shreekrishnachandrake bheje hueaaye inhen saantvana dene. bada़e hee tattvajnaanee the uddhav, paraaakar doob gaye ve brajasundariyonke premapayodhimen—

umagyau jyon tahan salil, sindhu latan kee dhaarana.
bheejat anbuj neer, kanchukee bhooshan haaran ..
taahee prem pravaah men, kadhee chale bahaaya
bhale gyaan kee maind haan, vraj men pragatya aay ..

koolake n bhaeudbhav chaahane lage kisee prakaar is vrindaavanamen lata - patrake roopamen utpann ho jaaoon aur shreegopeejanako charanaraj mujhapar nirantar pada़tee rahe.'

vaastavamen shreekrishna-viyogakee yah leela to huee thee premako paripushtike liyen vina vipralambhen sambhogah pushtimashrute. saath hee yadi yah leela n hotee to premakee charam parinatika roop evan bhagavaan‌kee premaadheenataaka uchchatam nidarshan jagatmen aprakat ho rah jaata shreegopeejan jaise shreekrishnachandrake liye vyaakul theen, vaise hee shreekrishn bhee unake liye satat vyaakul rahate the. keval dvaarakeshako raaniyaan - visheshata: pattamahishiyon hee jaanatee theen ki unake svaameekee kya dasha hai vrindaavanakee, shreegopeejanonkee smritiko lekar unhen aashary hota tha, ve samajh naheen paatee theen. kabhee ve sochane lagateen ki hamamen aisee kaun see truti hai, jo hamaare naathake hridayamen aaj bhee hamaaree apeksha bahuta-bahut adhik sthaan surakshit hai shreegopeejanaliye. dvaarakeshane unakee is shankaaka ek din samaadhaan kar diyaa. kahate hain ki sahasa dvaarakeshvar rugn ho gaye. us chidaanandamay shareeramen bhee kaheen rog hota hai? yah to prabhuka abhinay thaa. jo ho, udaramen peeda़a thee. sab upachaar ho chuke, par peeda़a mitee naheen. devarshi naarad padhaare. prabhune bataayaa- 'devarshe! peeda़a ho rahee hai; isakee oshadhi bhee hai. par anupaan tum la do. kisee sachche bhaktakee charanadhooli la do, phir main use sirapar dhaaranakar svasth ho jaaoongaa. phir to pooree dvaaraavatee chhaan daalee naaradane aur saare bhootalapar ghoom aaye. kintu kiseene bhee narakake bhayase tribhuvanapatiko charanadhooli naheen dee. ve niraash laut aaye. keval vrajamen jaana ve bhool gaye the. prabhune aagrah karake is baar vaheen bhejaa. viyoginee vrajabaalaaonne gher liya devarshiko. ve poochhane lageen apane priyatamakee kushala. unhonne bhee saaree baat bata dee. sabake netr bahane lage. turant ek saath hee sabane apane charan aage kar diye aur gadad kanthase ve boleen- 'devarshe ! jitanee raj chaahiye, le jaao. hamaare priyatamakee peeda़a mit jaay, ve sukhee ho jaayen. isake badale yadi hamenanant janmontak narakamen jalana pada़e to yahee hone do. iseemen hamen param sukh hai. priyatamaka sukh hee hamaara sukh hai, baabaa!' devarshine ek baar to svayan us paavan rajamen snaan kiya aur dvaaraka laut aaye. bhagavaan to nity svasth the hee. par pattamahishiyonkee aankhen khul gayeen.

kurukshetramen gopasundariyonka shreekrishnachandrase milan huaa. priyatamase milakar ve sheetal huee. isake anantar jab leela sametaneka samay aaya, golokavihaarinee apane nity dhaamamen padhaarane lageen, tab shreegopeejan bhee unake saath hee antarhit ho gayeen. jo nity gopikaaen hain, unake liye to koee prashn hee naheen hai. jo saadhanasiddha gopikaaen theen, ve bhee nityaleelaamen sadaake liye pravisht ho gayeen.

1377 Views





Bhajan Lyrics View All

सारी दुनियां है दीवानी, राधा रानी आप
कौन है, जिस पर नहीं है, मेहरबानी आप की
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
हर साँस में हो सुमिरन तेरा,
यूँ बीत जाये जीवन मेरा
ये तो बतादो बरसानेवाली,मैं कैसे
तेरी कृपा से है यह जीवन है मेरा,कैसे
मेरी बाँह पकड़ लो इक बार,सांवरिया
मैं तो जाऊँ तुझ पर कुर्बान, सांवरिया
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
ऐसी होली तोहे खिलाऊँ
दूध छटी को याद दिलाऊँ
रंगीलो राधावल्लभ लाल, जै जै जै श्री
विहरत संग लाडली बाल, जै जै जै श्री
प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भारत शीश धरी लीन्ही
श्याम बुलाये राधा नहीं आये,
आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ ।
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
शिव समा रहे मुझमें
और मैं शून्य हो रहा हूँ
कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
प्रीतम बोलो कब आओगे॥
बालम बोलो कब आओगे॥
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
रंग डालो ना बीच बाजार
श्याम मैं तो मर जाऊंगी
हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
राधा राधा राधा राधा
ਮੇਰੇ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਨਾ ਵੇਖਿਓ ਜੀ,
ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ

New Bhajan Lyrics View All

श्री राम दीवाना जा रहा था हवा के झोके
तीर भरत ने मार दिया हाय रे धोखे से,
भगता दी झोली खैर पाई रखदा,
मेरा हारावाला रोनका लगाई रखदा,
श्याम पत्थर ना मारो बुरी बात है,
सब बना खेल मेरा बिगड़ जाएगा॥
असीं अपना हाल सुनाउँन लई,
माँ तेरे दर ते आए हां,
पावन परम पुनीता,
भजो रे मन श्री राम सीता,