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भक्तिमती गजदेवी और हरदेवी की मार्मिक कथा
भक्तिमती गजदेवी और हरदेवी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तिमती गजदेवी और हरदेवी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तिमती गजदेवी और हरदेवी]- भक्तमाल


हरदेवी विशालापुरीके सेठ स्थानकदेवकी एकमात्र कन्या थी। माताका नाम गजदेवी था। एकमात्र सन्तान होनेसे हरदेवी माता-पिताको बहुत ही प्यारी थी। घरमें किसी चौजको कमी नहीं थी। हरदेवीका पालन-पोषण बड़े ही लाड़-चावसे हुआ था। हरदेवीकी माता बड़ी ही विदुषी थी और उसका हृदय भक्तिसे भरा था। वह नित्य श्रद्धापूर्वक भगवान् श्रीकृष्णकी पूजा करती। माताकी पूजाके समय हरदेवी पास बैठी रहती, वह भी माताको देखादेखी खेलने में भगवान्‌को पूजा किया करती माता ही सन्तानको प्रथम गुरु होती है। माताके स्वभाव, आचरण, चरित्र और व्यवहारका बालकके जीवनपर अमिट प्रभाव पड़ता है। हरदेवीके हृदयमें भी इसीके अनुसार भक्तिके अकुर पैदा हो गये।

उचित शिक्षा-दीक्षा आदिके अनन्तर हरदेवी जब विवाहके योग्य हुई, तब बड़ी धूम-धामसे उसका विवाह चम्पकपुरीके सेठ गुणदेवके पुत्र हर्षदेवके साथ कर दिया गया। विवाह बड़े आनन्दसे हो गया। विदाईका दिन था। अकस्मात् हरदेवीकी माता गजदेवीको बुखार चढ़ आया। घरमें भीड़ बहुत थी, दवाकी चेष्टा नहीं हो सकी।गजदेवीका बुखार बहुत तेजी से बढ़ने लगा। यह अपने भगवान्‌के पूजा- भवनमें जाकर उनके सामने पड़ गयी। उसकी आँखोंमें आँसू थे और बड़ी हो गदद वाणी से उसने कहना आरम्भ किया-

भगवन्। मालूम होता है, तुम अब मुझे अपने श्रीचरणोंमें बुलाना चाहते हो मुझे इस बातका स्मरण होते ही बड़ा हर्ष हो रहा है। उसी हर्षके मारे नेत्रील आँसुओंकी धारा बह रही है। हे मेरे अनन्त प्राणप्रियतम तुम अन्तर्यामी हो, जानते हो मेरे मनमें बरसों से कभी कोई भी कामना नहीं उठी। मैं यही चाहती हूँ, कोई कामना मेरे मनमें कभी उठे ही नहीं। मेरा मन सदा यहाँ कहता है कि तुम्हारी इच्छाका अनुसरण करनेमें ही परम कल्याण है। इससे मैं सदा यही प्रयत्न करती हूँ कि मेरे मनमें कोई इच्छा न रहे, सारी इच्छाएँ तुम्हारी इच्छाने विलीन हो जायें। तुम्हारी इच्छा ही सफल हो और तुमने सदा मेरी इस भावनाको बल दिया है तथा अपनी और खींचा है। आज तुम सदाके लिये अपनी सेवाने बुलानेकी व्यवस्था कर रहे हो, इससे बढ़कर मेरे लिये प्रसन्नताकी बात और क्या हो सकती है। परंतु मेरेस्वामिन्! पता नहीं क्यों शायद इसमें भी तुम्हारी ही प्रेरणा हो मेरे मनमें एक कामना जाग्रत हो रही है। वह यह कि इस बालिका हरदेवीकी आत्माको भी तुम अपने पावन चरणोंमें स्वीकार कर लो यह तुम्हारी हो हो जय यद्यपि इसका विवाह हो गया है, आज यह अपने यतिकै घर जा रही है, तथापि इसके परम लक्ष्य तो तुम्हीं हो। बस, मैं तुमसे केवल इतना ही वरदान चाहती हूँ। कि इसपर तुम्हारी कृपादृष्टि सदा बनी रहे और अन्तमें इसे भी सेवाधिकार प्राप्त हो। मेरे पति तो मेरी जीवन यात्रा के साथी हो रहे हैं, उनके लिये मैं क्या माँगें।'

गजदेवीकी सच्ची और पवित्र प्रार्थना स्वीकृत हो गयी। भगवान्ने प्रकट होकर कहा-'देवि! तुम मेरी भक्ता हो, मेरे ही परमधाममें जा रही हो और सदा वहाँ रहोगी। हरदेवी तुम्हारी पुत्री है - इस सम्बन्धसे वह मेरी भक्तिको प्राप्त होती ही, परंतु अब तो तुमने उसके लिये वर माँग लिया है। तुम्हारी यह चाह बड़ी उत्तम है। तुम निश्चिन्त हो जाओ, तुम्हारी चाहके अनुसार हरदेवी मेरी परम भक्ता होगी और यथावसर मेरे परम धाममें आकर तुमसे मिलेगी। तुम्हारे सङ्गके प्रभावसे तुम्हारे पति भी मेरे परमधाममें ही आयेंगे। उनके लिये कुछ भी माँगनेकी आवश्यकता नहीं है।' इसके बाद गजदेवीने देखा- ज्योतिर्मय प्रकाशके अंदर भगवान् अन्तर्धान हो गये!

गजदेवोको बड़े जोरका ज्वर था, वह विवाहके सब कार्योंसे अलग होकर भगवान्‌ के पूजा-मन्दिरमें पड़ी थी सेठको पता लगा, तब वे वहाँ आये। गजदेवीने कहा- 'स्वामिन्! आज यह दासी आपसे अलग हो रही है। विदा दीजिये। मेरे अबतकके अपराधोंको क्षमा कॉजिये और आशीर्वाद दीजिये कि इसकी आत्मा भगवान् श्रीकृष्णको चरण-रज पाकर धन्य हो जाय।' स्थानकदेव पत्नीकी ये बातें सुनकर स्तम्भित रह गये। वे बोले-'प्रिये! अशुभ क्यों बोल रही हो? ऐसा कौन- सा रोग है? ज्वर है, उतर जायगा। अभी वैद्यराजको बुलाता हूँ।'

गज़देवीने हाथ जोड़कर प्रार्थना की- 'स्वामिन्! अब वैद्यराजजी इस शरीरको नहीं उबार सकेंगे। मुझे मेरे भगवान्ने बुला लिया है। अब तो मैं आपकी चरण-रजही चाहती हूँ। मुझे आज्ञा दीजिये। इसमें अशुभ क्या है। जीवन और मरण दोनों हो भगवान्के विधान हैं। जो जन्मा है, उसे मरना ही पड़ेगा। यदि जन्म शुभ है तो मृत्यु अशुभ क्यों है मृत्यु न हो तो नवीन सुन्दर जन्मकी प्राप्ति कैसे हो सकती है। पुरातनका संहार सुन्दर नवीनको सृष्टिके लिये ही तो होता है। फिर मैं तो परम भाग्यवती हूँ, जो आपकी चरणधूलिको सिर चढ़ाकर आपके सामने जा रही हूँ और जा रही हूँ आपके, अपने एवं अखिल ब्रह्माण्डोंके परमपति भगवान् श्रीकृष्णकी बुलाहटसे उनकी नित्य सेवाधिकारिणी बनकर मेरा जन्म-जीवन आज सफल हो गया। आज इस जीवको अनादिकालीन साथ पूरी हो रही है। मेरी यहाँ प्रार्थना है कि आप भी अपना जीवन भगवान् श्रीकृष्णके अनन्य भजनमें लगा दीजिये। मुझे पता लग गया है कि आपपर भगवान् श्रीकृष्णको बड़ी ही कृपा है।'

'जिसको तुम सरीखी कृष्ण भक्ता पत्नी प्राप्त हुई, उसपर श्रीकृष्णकी कृपा क्यों न होगी। प्रिये। धन्य हो तुम जो तुम्हारा जीवन भगवान् श्रीकृष्णके चरणोंमें अर्पित हो गया ! और मैं भी धन्य हूँ जो तुम्हारे सङ्गसे मेरे हृदयमें पवित्र भावका प्रादुर्भाव हुआ और भगवान् श्रीकृष्णको भक्ति मिली।' स्थानकदेवने गदद होकर कहा।

'अब आप पधारिये। हरदेवीको विदा कीजिये। जानेके पहले एक बार वह मुझसे मिल ले। आप निश्चय रखिये, मैं उसके विदा होनेके बाद ही शरीर त्याग करूंगी। आप निश्चिन्त होकर विवाहका काम कीजिये। मैं अपने भगवान्‌के श्रीचरणों में सुखसे पड़ी हूँ।'

स्थानकदेवका हृदय बदल चुका था। अब उनके मनमें शोक-विषाद कुछ भी नहीं रहा। भक्तिके उच्छ्वाससे उनका हृदय आनन्दसे भर रहा है। वे पत्नीको मृत्युमें भगवान्‌का शुभ विधान देखकर प्रफुल्लित हो रहे हैं। उन्हें यह जानकर बड़ी प्रसन्नता है कि यह मरकर इससे कहीं अच्छी स्थितिको 'नहीं-नहीं, परम और अनन्त महासुखकी दुर्लभ स्थितिको प्राप्त करने जा रही है। इसका यह मरण इसके लिये बड़ा ही मङ्गलमय है। इस अवस्थामें ऐसा कौन आत्मीय होगा, जो अपने आत्मीयको ऐसी कल्याणकारिणी मृत्युसे प्रसन्न न हो। अतएव वेहर्षित चित्तसे वहाँसे उठकर चले आये और पुत्री हरदेवीकी विदाईके काममें लग गये। हरदेवीसे कह दिया कि 'तेरी मा पूजा मन्दिरमें तुझे बुला रही है।'

पिताकी बात सुनकर हरदेवी तुरंत माताके पास गयी। माताको ज्वराक्रान्त देखकर उसे बड़ी चिन्ता हुई। वह माके पास बैठ गयी। उसने देखा-मा मुसकरा रही है, उसका चेहरा खिल रहा है और एक प्रकाशका मण्डल उसके चारों ओर छाया हुआ है। इतनेमें माताने बड़े दुलारसे हरदेवीका हाथ अपने हाथमें लेकर कहा 'बेटी! तू जानती हैं, यह संसार असार है- श्रीकृष्णका भजन ही इसमें एकमात्र सार है। मैं आज इस असार संसारको छोड़कर श्रीकृष्णकी सेवा करने उनके परमधाममें जा रही हूँ। श्रीकृष्णने स्वयं मुझको बुलाया है। तू यह न समझना, मैं तुझे असहाय छोड़ जाती हूँ तू जानती है-मनुष्य में जो कुछ भी बुद्धि, विद्या, शक्ति, सामर्थ्य, तेज, प्रभाव आदि है, सब श्रीकृष्णका दिया हुआ है। उन्हीं श्रीकृष्णके हाथोंमें तुझे सौंपकर में जा रही हैं। वे ही विश्वम्भर स्वयं तेरी सँभाल करेंगे। उनसे बढ़कर सँभाल करनेवाला और कौन होगा। मुझे अनुमति दे, मैं जाऊँ। बेटी तुझे श्रीकृष्णकी पूजामें बड़ा आनन्द आता है। मुझे बुलाकर श्रीकृष्णने तेरे लिये बड़ी सुविधा कर दी है। अब इन भगवान्‌को तू ले जा नियमितरूपसे श्रद्धा भक्तिपूर्वक इनकी पूजा किया करना। कभी कुछ कहने-सुननेकी आवश्यकता हो तो निस्संकोच इन्हींसे कहा करना। ये अवश्य तेरी बातें सुनेंगे और उसी समय उचित व्यवस्था भी कर देंगे। देख तो तेरे विश्वासके लिये ये अभी तेरी गोदमें चले आते हैं।'

इतना कहना था कि भगवान्‌को मूर्ति सिंहासनसहित आकाशमें चलकर हरदेवीकी गोदमें आ गयी। फिर क्या था, हरदेवीको दृढ़ विश्वास हो गया और भगवत्प्रेरणासे माताके भावी वियोगका सारा शोक पलभरमें नष्ट हो गया। अब उसने माताकी प्रसन्नता, मुसकराहट और उसके तेजोमण्डलका मर्म समझा। उसने मन्त्र-मुग्धकी तरह हँसते हुए कहा- 'मा! ऐसा ही होगा। मैं आजसे इनकी हो गयी और ये मेरे हो गये। अब मुझे विश्वास है कि तुम्हारी जगह ये ही तुमसे भी बढ़कर मेरी रक्षाकरेंगे। तुम तो मेरे साथ नहीं जा सकती. परंतु नित्य मेरे पास रहेंगे। तुम आनन्दसे इनकी सेवामें जाओ। जब इन्होंने स्वयं तुमको अपने पास बुलाया है, तब तुम्हें रोकनेका पाप कौन कर सकता है। जाओ मा, जाओ भगवान्को सेवा करो। तुम धन्य हो, जो भगवान्‌को इन प्रियपात्र हो और मैं भी धन्य हूँ, जो मुझे तुम जैसी सच्ची माताकी कोख से पैदा होनेका सौभाग्य मिला है। मा। मुझे आशीर्वाद देती जाओ कि मैं भी तुम्हारी ही तरह भजन कर सकूँ और अन्तमें उनको सेवामें ले तो कडे।"

गजदेवीने कहा- 'बेटी ऐसा ही होगा, अवश्यमेव ऐसा ही होगा। तू निश्चिन्त रह। हाँ, एक बात कहनी है— अन्तिम और सच्चा सम्बन्ध तो एकमात्र भगवान्का ही है; परंतु यह संसार भी भगवान्‌का है, इसलिये इसमें हमें सभी व्यवहार भगवान्‌के इच्छा और आज्ञानुसार हो करने चाहिये। अवश्य ही करने चाहिये अपने भगवान्‌को प्रसन्नताके लिये हो। शास्त्र भगवान्‌को हो आज्ञा है और उनमें स्त्रीके लिये पति सेवाको ही मुख्य धर्म बतलाया गया है। पतिके सम्बन्धसे सास-ससुरकी सेवा भी अवश्य करनी चाहिये। तू भगवान्‌को भता है, ध्यान रखना - इस व्यवहारमें कोई त्रुटि न आने पाये। सदाचार सादगी, सेवा, सहिष्णुता और संयम तो सभीके लिये आवश्यक हैं। भक्तके लिये तो ये सर्वधा स्वाभाविक होने चाहिये।'

"माता! ऐसा ही होगा लाख दुःख उठानेपर भी तुम्हारी यह बेटी अपने कर्तव्यसे कभी नहीं डिगेगी'- हरदेवने दृढ़ता और उल्लासके साथ कहा!

'बेटी बड़ी-बड़ी परीक्षाएँ होती हैं। बड़े-बड़े भयके प्रसङ्ग आते हैं भगवान्पर आस्था रखेगी तो | उनकी कृपाशक्तिसे तेरा व्रत अनायास ही निभ जायगा और तू अपने परम लक्ष्य भगवान्‌को प्राप्त करके कृतार्थ हो जायगी। बेटी मैं हृदयसे आशीर्वाद देती हूँ कि मन सदा श्रीभगवान्के चरण कमलोंका चञ्चरीक बना रहे और तू कभी भी उनको कृपासे वञ्चित न हो।'

'मा-मेरी मा! मैं अत्यन्त बड़भागिनी हूँ जो तुम्हारी बेटी हूँ ऐसी मा कितनी हैं, जो अपनी सन्तानको श्रीभगवान्के चरणोंकी भक्ति करनेका आदेश औरआशीर्वाद देती है?'- हरदेवीने आँसू बहाते हुए कहा।

धन्य है माता और पुत्री दोनोंको। सचमुच वही माता है- पिता पिता है जो अपनी सन्तानको भगवान्के मार्गपर चलाता है और उसको अग्रसर करनेमें सब 707 शुभ प्रकारकी सहायता करता है। हरदेवीको उसके पिताने बुला लिया। वह भगवान्के सिंहासनको लेकर चली गयी। सिंहासनको सुरक्षित स्थानमें। पंधराकर उसने माताके पास कई चतुर और स्वामिभक्त सेविकाओंको भेज दिया जो प्रसन्नतासे उसकी यथायोग्य भेवा करने लगीं। यद्यपि विदाईके दिन माताके बीमार और मरणासन्न हो जानेपर हरदेवीको जगत्की चालके अनुसार बहुत शोक होना चाहिये था और हरदेवीके पिता स्थानकदेवके लिये भी यह कम चिन्ताका प्रसङ्ग नहीं था, फिर भी भगवदिच्छासे दोनोंके ही हृदय बदल चुके थे। वे गजदेवीके भगवान्के परमधाम गमनकी खुशीमें मस्त थे और स्वयं भी उन दोनोंके हृदयोद्यानमें भक्ति-लतिका लहलहा रही धो तथा अपने मधुर पुष्पोंके सुन्दर सौरभसे क्षण-क्षणमें उन्हें मुग्ध कर रही थी। वे विवाहका कार्य तो मानो परवश-किसीकी प्रेरणासे कर रहे थे। सब कार्य भलीभाँति सम्पन्न हुए। हरदेवीके विदा होनेका समय आ गया। उसने एक बार फिर माताके श्रीचरणोंमें जाकर प्रणाम किया और उसका आशीर्वाद प्राप्त करके पिताके चरणोंमें गिरकर रथमें सवार हो गयी। भगवान्‌के सिंहासनको अपनी गोदमें से लिया कन्याको माताकी अनुपस्थिति दोनों ओरके सभी बरातियोंको बहुत ही खल रही थी और वे सभी उदास से हो रहे थे।

कन्या विदा हो गयी। स्थानकदेव तुरंत गजदेवीके पस चले आये। थोड़ी देर बाद राजदेवीने हँसते-हँसते भगवान् के पावन नामोंका उच्चारण करते हुए पतिके बागोंमें सिर रखकर नश्वर शरीरको छोड़ दिया। उस समय उसके शरीरसे दिव्य तेज निकलता हुआ दिखायी दिया और आकाशसे मधुर शङ्खध्वनि सुनायी पड़ी स्थानकदेवने श्रद्धापूर्वक एवं विधिवत् पत्नीका अन्त्येष्टि संस्कार और श्राद्धादि कर्म किये।

(2)

हरदेवीके ससुर गुणदेव वास्तवमें सद्गुणों के घर थे।पिताकी भाँति पुत्र हर्षदेव भी बहुत अच्छे स्वभावका था, परंतु हर्षदेवकी माता समलाका स्वभाव बड़ा ही क्रूर था, वह मौका पाते ही हरदेवीके साथ निर्दय व्यवहार करती थी परंतु ससुरके अच्छे स्वभावके कारण हरदेवीको कोई खास कष्ट नहीं था।

दैवको गति विचित्र है। डेढ़ सालके बाद सेठ गुणदेवका देहान्त हो गया। अब तो समला सर्वतन्त्र क स्वतन्त्र हो गयी। वह जो चाहती सो करती। यद्यपि हर्षदेवका स्वभाव सुन्दर और सौम्य था, फिर भी वह सङ्कोचवश माताके सामने कुछ भी बोलना नहीं चाहता था। इससे समलाका मन और भी बढ़ गया, वह पुत्रको के अपने पक्षमें मानकर बहूको विशेषरूपसे सताने लगी। भी पहननेको अच्छे कपड़े न देना, खानेको रूखी-सूखी के रोटियाँ देना- वह भी भर पेट नहीं, बात-बातपर झिड़कना, हरेक काममें दोष निकालना, उसके माता ही पिताको गालियाँ बकना आदि बातें तो उसके लिये में स्वाभाविक थीं। कभी-कभी तो वह हाथ भी उठा लेती नो थी। उसने बर्तन मांजने और झाड़ू देनेवाले नौकरको ति अलग कर दिया, आटा पीसनेवाली नौकरानीको जवाब रने दे दिया इसीलिये कि ये सब काम हरदेवीसे कराये र जायें। हरदेवीको किसी भी कामसे कोई इनकार नहीं था, करन उसे किसी बातका मनमें दुःख ही था। वह माताकी में बात याद करके चुपचाप हर्षित मनसे सब कुछ सहन करती। अत्यन्त सुखमें पली होने तथा वर्तन माँजने और आटा पीसने आदिका अभ्यास न होनेके कारण उसे स्वाभाविक ही शारीरिक थकावटका अनुभव तो होता ही था। पर वह उससे दुःखी नहीं होती थी। मनमें सोचती श्री भगवान् मेरी परीक्षा लेते हैं। फिर यह दृढ़ निश्चय करती कि मैं इस परीक्षामें भगवान्‌की कृपासे कभी भी अनुत्तीर्ण नहीं होऊँगी। कितना भी दुःख आये भगवान्का आशीर्वाद समझकर उसे सिर चढ़ाऊँगी और कभी मन मैला न होने दूंगी। वह ऐसा ही करती सासको झिड़कन और गालियाँ उसे दुलार और आशीर्वाद-सी जान पड़तीं। वह अम्लान मनसे सब काम किया करती। तन मनसे पतिकी सेवा करती और नित्य नियमसे श्रीभगवान्की पूजा करती पूजाके बाद यही प्रार्थना करती कि'भगवन्! मैं तुम्हारी हूँ, मुझे कभी विसराना नहीं। तुम्हारी मङ्गलमयी इच्छा पूर्ण हो, इसीमें मेरा मङ्गल है।' वह कभी भगवान् के सामने सासके अत्याचारोंके लिये रोती नहीं। न कभी पतिसे ही सासकी शिकायत करती।

हर्षदेवको निर्दोष और परम शीलवती पत्नीके प्रति अपनी माताका इस प्रकारका क्रूर बर्ताव देखकर बड़ा दुःख होता था। उसने एक दिन एकान्तमें हरदेवीसे कहा- 'प्रिये। तुम मानवी नहीं हो, तुम तो स्वर्गकी देवी हो। तुमपर जान-बूझकर इतना अत्याचार होता है, परंतु तुम कभी चूँतक नहीं करती। मैंने तुम्हारे चेहरेपर भी कभी उदासी नहीं कुछ होता ही नहीं। तुमने कभी आजतक मुझसे इस सम्बन्धमें एक शब्द भी नहीं कहा। परंतु प्रिये! मेरा हृदय जला जा रहा है। अब यह जुल्म मुझसे देखा नहीं जाता। मैं आजतक कुछ नहीं बोला, परंतु अब तो हद हो गयी है। तुम्हारी राय हो तो हमलोग यहाँसे और कहाँ चले जायें या माताको ही अलग कर दें।'

'मेरे हृदयेश्वर! आप जरा भी दुःख न करें। मैं सच कहती हूँ मुझे तनिक भी कष्ट नहीं है। में प्रतिदिन दोनों समय जब अपने भगवान्‌की पूजा करती हूँ, तब मुझे इतना आनन्द मिलता है कि उसमें जीवनभरके बड़े-से बड़े सन्ताप अनायास ही अपनी सत्ता खो देते हैं। फिर आपकी सेवाका जो आनन्द है वह तो मेरे प्राणोंका आधार है हो मैं बहुत मुखी हूँ, प्राणनाथ आपके चरणोंमें रहकर मुझे किसी प्रकारका सन्ताप नहीं है। माताजी अपने स्वभाववश जो कुछ कहती करती हैं, है इससे वस्तुतः उन्हींको कष्ट होता है। सच मानिये, स्वामिन् झिड़कन, अपमान और गाली आदि उन्होंकोर मिलते और जलाते हैं जो इनको ग्रहण करते हैं। मैं इन्हें सेती ही नहीं। कभी लेती भी हूँ तो आशीर्वादरूपसे फिर मेरे लिये ये दुःखदायी क्यों होने लगे। हाँ, कभी कभी इस बातका तो मुझे दुःख अवश्य होता है कि मैं माताजीके दुःखमें निमित्त बनती हूँ। आप कोई चिन्ता न करें। संसारमें सब कुछ हमारे भगवान् के विधानसे हमारे मङ्गलके लिये ही होता है। मुझे इस बातका विश्वास हैं, इसीसे मैं सदा प्रसन्न रहती हूँ।''तो माताजीको छोड़कर अलग जानेकी आवश्यकता है, न उन्हें अलग करनेकी हमलोग यदि । उनकी बातें न सहकर इस बुढ़ापेमें उन्हें अकेली छोड़ देंगे तो उनकी सेवा कौन करेगा। सबसे अधिक दुःखकी बात तो यह होगी कि हम माताजीकी सेवाके सौभाग्यसे वंचित हो जायेंगे। यह सन्तान बड़ी ही अभागिनी है जिसको अपने बूढ़े माता-पिताकी सेवा करनेका सुअवसर नहीं मिलता और उसके दुर्भाग्य तथा दुष्कर्मका तो कहना ही क्या है कि जो किसी भी प्रतिकूलताके कारण माता-पिताकी प्राप्त हुई सेवाको छोड़ बैठता है। फिर, वे बेचारी कहती ही क्या हैं। मुझे तो आजतक कभी उनकी कोई भी बात बुरी नहीं लगी। सासकी सीखभरी झिड़कन सहना तो बहूका सौभाग्य है।'

हरदेवीकी बात सुनकर हर्षदेवका हृदय गदद हो गया। उसके चित्तमें हरदेवीके प्रति बड़ी भक्ति उत्पन्न हो गयी और वह अपनेको धन्य मानने लगा ऐसी धर्मशीला पत्नी पाकर उसने कहा-'देवि! इसीसे तो मैं कहता हूँ तुम मानवी नहीं हो तुम्हारे इन ऊँचे भावोंके सामने किसका मस्तक नहीं झुक जायगा। तुम धन्य हो! तुम्हारे माता-पिता धन्य हैं, जिनके घर तुम सरीखी देवीने अवतार लिया। तुम्हारी एक-एक बात अनमोल है। परंतु क्या करूँ; जब माताजी बिना किसी कसूरके जान बूझकर तुम्हें गालियाँ बकती हैं और बाघिनीकी तरह मारने-काटने दौड़ती हैं, तब यद्यपि मैं आजतक कुछ बोला नहीं, फिर भी मुझे बड़ा दुःख होता है। मन होता है कि इस अन्यायका खुलकर विरोध करूँ; परंतु कुछ तो माताजी के संकोचसे रुक जाता हूँ और कुछ तुम्हारा यह दैवी स्वभाव मुझे रोक देता है। जो कुछ भी हो, कल मैं उनसे प्रार्थना अवश्य करूंगा।'

इतना कहकर हर्षदेव चला गया। हरदेवी कुछ कहना चाहती थी, परंतु उसे अवसर ही नहीं मिला। दूसरे दिन हरदेवी बर्तन माँज रही थी, कुछ पुराने जंग लगे हुए बर्तन उसे माँजनेको सासने दिये थे। जंग रगड़-रगड़कर उतारने में देर लगी। इतनेमें सास समला लाल-पीली हो गयी और अनाप-शनाप गालियाँ बकने लगी। इसी बीचमें हर्षदेव वहाँ आ गया। उसको माताकायह बर्ताव बुरा मालूम हुआ। उसने नम्रतासे माताको समझाने की चेष्टा की तो उसका गुस्सा और भी बढ़ गया। अब वह हर्षदेवको भी बुरा-भला कहने लगी। हर्षदेवको | बहुत दुःख हुआ; परंतु वह हरदेवीके शील-स्वभावके । संकोचसे कुछ भी बोला नहीं। जब दूसरा पक्ष कुछ भी नहीं बोलता, तब पहले पक्षको बक-बकाकर स्वयं ही चुप हो जाना पड़ता है। समला जब बोलते-बोलते थक गयी, तब अपने-आप ही चुप हो गयी। हर्षदेव विषादभरे हृदयसे बाहर चला गया। हर्षदेवका विषाद देखकर हरदेवीको दुःख हुआ। वह सारा काम निपटाकर अपने भगवान् के पूजा- मन्दिरमें गयी और वहाँ जाकर भगवान्से कातर प्रार्थना करने लगी। उसने कहा-

'भगवन्! मैंने कभी कुछ भी नहीं चाहा, आज पतिदेवको उदास देखकर एक चाह उत्पन्न हुई है-वह यह कि मेरी सासका स्वभाव सात्त्विक बना दिया जाय। वे समय-समयपर झल्लाकर हमलोगों के साथ ही आपको भी बुरा-भला कह बैठती हैं। प्रभो! इस अपराधके लिये उन्हें क्षमा किया जाय। इसीके साथ, नाथ! मेरी चिरकालकी आकाइक्षा है कि मैं आपके दिव्य स्वरूपके साक्षात् दर्शन करूँ। मेरे मनमें यह चाह तो थी ही, इस समय प्रार्थना करते-करते पता नहीं क्यों मेरी यह चाह अत्यन्त प्रबल हो गयी है। प्रभो! आप अन्तर्यामी हैं, घट-घटकी जानते हैं। यदि मेरी सच्ची चाह है, यदि यास्तवमें आप मेरी व्याकुलताको इस प्रकारको तीव्र समझते हैं कि अब आपको प्रत्यक्ष देखे बिना मेरा जीवन असम्भव है तो कृपा करके मुझे दर्शन दीजिये। आप सर्वसमर्थ हैं, मैं अत्यन्त दीन हीन और मलिनमति हूँ, मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं। आपकी भक्तिका तत्त्व भी मैं नहीं जानती। इतना ही जानती हूँ कि आप मेरे सर्वस्व है और मैं आपकी है। आपके सिवा मेरे और कोई भी सहारा नहीं है। संसारके सब कार्य आपको प्रसन्नता के लिये आपके लिये ही करते हैं। पतिके द्वारा मैं आपकी ही उपासना करती हूँ। मुझे उसके बदले में आपकी प्रसन्नताके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं चाहिये। यदि यह सत्य हो तो आप कृपा करके दर्शन दीजिये।'यों कहकर हरदेवी कातरभावसे रोने लगी। उसकी घिग्घी बंध गयी, गला रुक गया, बोली बंद हो गयी। भगवान् अब नहीं रह सके। वहीं अपने विग्रहके सामने ही प्रकट हो गये-बड़ी मनोहर मञ्जुल शोभा धारण किये हुए नीलश्याम वर्ण है। गलेमें रत्नोंकी माला है, करकमलोंमें मुरली है, होठोंपर मधुर मुसकान है, नेत्रोंसे कृपा और प्रेमको सुधा धारा बह रही है। सौन्दर्य और माधुर्यकी अप्रतिम छवि हैं। हरदेवी भगवान्‌को सामने देखकर आनन्दसागरमें डूब गयी। वह कुछ भी बोल नहीं सकी। तब श्रीभगवान्ने कहा-'बेटी मैं तुझपर अति न हूँ तूने अपने आचरणों और अकृत्रिम भक्ति मुझे वशमें कर लिया है। तेरी सासका स्वभाव सुधरना तो तभी निश्चय हो गया था जब तू वधू बनकर उसके घर आयी थी। अब तो तेरी कृपासे वह असाधारण भक्त बन गयी है। तूने अपने पति और सास दोनोंका उद्धार कर दिया। तेरा ससुर तो पहले ही तेरे प्रतापसे सद्गतिको प्राप्त हो चुका था। अब मेरी कृपासे तुम तीनों मेरी भक्ति करते हुए सुन्दर सदाचारपूर्ण जीवन बिताओगे और अन्तमें मेरे परमधाममें आकर मेरी सेवाका अधिकार प्राप्त करोगे।'

इतना कहकर भगवान् सहसा अन्तर्धान हो गये। हरदेवी स्तब्ध थी। उसका मन मुग्ध हो रहा था। इतनेमें उसने देखा, सास समला पास खड़ी है और रो-रोकर भगवान् से क्षमा-प्रार्थना कर रही है। हरदेवी उठी। सास अपने दोषोंका वर्णन करते हुए उससे क्षमा माँगने लगी। हरदेवीने सकुचाकर सासके चरण पकड़ लिये। समलाने उसे उठाकर हृदयसे लगा लिया। दोनोंके नेत्रोंसे प्रेमके आँसू बहने लगे। हर्षदेव घर लौटा तो माता की ऐसी बदली हुई हालत देखकर आनन्दमग्न हो गया। तीनोंकी जीवनधारा एक ही परम लक्ष्यकी ओर जोरसे बहने लगी। एक लक्ष्य, एक साधन, एक मार्ग मानो एक ही जगह जानेवाले तीन सहयोगी यात्री बड़े प्रेमसे एक दूसरेकी सहायता करते हुए आगे बढ़ रहे हो अडोस पड़ोसपर भी तीनोंके प्रेमका बड़ा प्रभाव पड़ा। इतना ही नहीं, उनके आचरणसे सारे नगरके नर-नारी सदाचारी और भगवद्भक्त बनने लगे।



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haradevee vishaalaapureeke seth sthaanakadevakee ekamaatr kanya thee. maataaka naam gajadevee thaa. ekamaatr santaan honese haradevee maataa-pitaako bahut hee pyaaree thee. gharamen kisee chaujako kamee naheen thee. haradeveeka paalana-poshan bada़e hee laada़-chaavase hua thaa. haradeveekee maata bada़ee hee vidushee thee aur usaka hriday bhaktise bhara thaa. vah nity shraddhaapoorvak bhagavaan shreekrishnakee pooja karatee. maataakee poojaake samay haradevee paas baithee rahatee, vah bhee maataako dekhaadekhee khelane men bhagavaan‌ko pooja kiya karatee maata hee santaanako pratham guru hotee hai. maataake svabhaav, aacharan, charitr aur vyavahaaraka baalakake jeevanapar amit prabhaav pada़ta hai. haradeveeke hridayamen bhee iseeke anusaar bhaktike akur paida ho gaye.

uchit shikshaa-deeksha aadike anantar haradevee jab vivaahake yogy huee, tab bada़ee dhooma-dhaamase usaka vivaah champakapureeke seth gunadevake putr harshadevake saath kar diya gayaa. vivaah bada़e aanandase ho gayaa. vidaaeeka din thaa. akasmaat haradeveekee maata gajadeveeko bukhaar chadha़ aayaa. gharamen bheeda़ bahut thee, davaakee cheshta naheen ho sakee.gajadeveeka bukhaar bahut tejee se badha़ne lagaa. yah apane bhagavaan‌ke poojaa- bhavanamen jaakar unake saamane pada़ gayee. usakee aankhonmen aansoo the aur bada़ee ho gadad vaanee se usane kahana aarambh kiyaa-

bhagavan. maaloom hota hai, tum ab mujhe apane shreecharanonmen bulaana chaahate ho mujhe is baataka smaran hote hee bada़a harsh ho raha hai. usee harshake maare netreel aansuonkee dhaara bah rahee hai. he mere anant praanapriyatam tum antaryaamee ho, jaanate ho mere manamen barason se kabhee koee bhee kaamana naheen uthee. main yahee chaahatee hoon, koee kaamana mere manamen kabhee uthe hee naheen. mera man sada yahaan kahata hai ki tumhaaree ichchhaaka anusaran karanemen hee param kalyaan hai. isase main sada yahee prayatn karatee hoon ki mere manamen koee ichchha n rahe, saaree ichchhaaen tumhaaree ichchhaane vileen ho jaayen. tumhaaree ichchha hee saphal ho aur tumane sada meree is bhaavanaako bal diya hai tatha apanee aur kheencha hai. aaj tum sadaake liye apanee sevaane bulaanekee vyavastha kar rahe ho, isase badha़kar mere liye prasannataakee baat aur kya ho sakatee hai. parantu meresvaamin! pata naheen kyon shaayad isamen bhee tumhaaree hee prerana ho mere manamen ek kaamana jaagrat ho rahee hai. vah yah ki is baalika haradeveekee aatmaako bhee tum apane paavan charanonmen sveekaar kar lo yah tumhaaree ho ho jay yadyapi isaka vivaah ho gaya hai, aaj yah apane yatikai ghar ja rahee hai, tathaapi isake param lakshy to tumheen ho. bas, main tumase keval itana hee varadaan chaahatee hoon. ki isapar tumhaaree kripaadrishti sada banee rahe aur antamen ise bhee sevaadhikaar praapt ho. mere pati to meree jeevan yaatra ke saathee ho rahe hain, unake liye main kya maangen.'

gajadeveekee sachchee aur pavitr praarthana sveekrit ho gayee. bhagavaanne prakat hokar kahaa-'devi! tum meree bhakta ho, mere hee paramadhaamamen ja rahee ho aur sada vahaan rahogee. haradevee tumhaaree putree hai - is sambandhase vah meree bhaktiko praapt hotee hee, parantu ab to tumane usake liye var maang liya hai. tumhaaree yah chaah bada़ee uttam hai. tum nishchint ho jaao, tumhaaree chaahake anusaar haradevee meree param bhakta hogee aur yathaavasar mere param dhaamamen aakar tumase milegee. tumhaare sangake prabhaavase tumhaare pati bhee mere paramadhaamamen hee aayenge. unake liye kuchh bhee maanganekee aavashyakata naheen hai.' isake baad gajadeveene dekhaa- jyotirmay prakaashake andar bhagavaan antardhaan ho gaye!

gajadevoko bada़e joraka jvar tha, vah vivaahake sab kaaryonse alag hokar bhagavaan‌ ke poojaa-mandiramen pada़ee thee sethako pata laga, tab ve vahaan aaye. gajadeveene kahaa- 'svaamin! aaj yah daasee aapase alag ho rahee hai. vida deejiye. mere abatakake aparaadhonko kshama kaॉjiye aur aasheervaad deejiye ki isakee aatma bhagavaan shreekrishnako charana-raj paakar dhany ho jaaya.' sthaanakadev patneekee ye baaten sunakar stambhit rah gaye. ve bole-'priye! ashubh kyon bol rahee ho? aisa kauna- sa rog hai? jvar hai, utar jaayagaa. abhee vaidyaraajako bulaata hoon.'

gaja़deveene haath joda़kar praarthana kee- 'svaamin! ab vaidyaraajajee is shareerako naheen ubaar sakenge. mujhe mere bhagavaanne bula liya hai. ab to main aapakee charana-rajahee chaahatee hoon. mujhe aajna deejiye. isamen ashubh kya hai. jeevan aur maran donon ho bhagavaanke vidhaan hain. jo janma hai, use marana hee pada़egaa. yadi janm shubh hai to mrityu ashubh kyon hai mrityu n ho to naveen sundar janmakee praapti kaise ho sakatee hai. puraatanaka sanhaar sundar naveenako srishtike liye hee to hota hai. phir main to param bhaagyavatee hoon, jo aapakee charanadhooliko sir chadha़aakar aapake saamane ja rahee hoon aur ja rahee hoon aapake, apane evan akhil brahmaandonke paramapati bhagavaan shreekrishnakee bulaahatase unakee nity sevaadhikaarinee banakar mera janma-jeevan aaj saphal ho gayaa. aaj is jeevako anaadikaaleen saath pooree ho rahee hai. meree yahaan praarthana hai ki aap bhee apana jeevan bhagavaan shreekrishnake anany bhajanamen laga deejiye. mujhe pata lag gaya hai ki aapapar bhagavaan shreekrishnako bada़ee hee kripa hai.'

'jisako tum sareekhee krishn bhakta patnee praapt huee, usapar shreekrishnakee kripa kyon n hogee. priye. dhany ho tum jo tumhaara jeevan bhagavaan shreekrishnake charanonmen arpit ho gaya ! aur main bhee dhany hoon jo tumhaare sangase mere hridayamen pavitr bhaavaka praadurbhaav hua aur bhagavaan shreekrishnako bhakti milee.' sthaanakadevane gadad hokar kahaa.

'ab aap padhaariye. haradeveeko vida keejiye. jaaneke pahale ek baar vah mujhase mil le. aap nishchay rakhiye, main usake vida honeke baad hee shareer tyaag karoongee. aap nishchint hokar vivaahaka kaam keejiye. main apane bhagavaan‌ke shreecharanon men sukhase pada़ee hoon.'

sthaanakadevaka hriday badal chuka thaa. ab unake manamen shoka-vishaad kuchh bhee naheen rahaa. bhaktike uchchhvaasase unaka hriday aanandase bhar raha hai. ve patneeko mrityumen bhagavaan‌ka shubh vidhaan dekhakar praphullit ho rahe hain. unhen yah jaanakar bada़ee prasannata hai ki yah marakar isase kaheen achchhee sthitiko 'naheen-naheen, param aur anant mahaasukhakee durlabh sthitiko praapt karane ja rahee hai. isaka yah maran isake liye bada़a hee mangalamay hai. is avasthaamen aisa kaun aatmeey hoga, jo apane aatmeeyako aisee kalyaanakaarinee mrityuse prasann n ho. ataev veharshit chittase vahaanse uthakar chale aaye aur putree haradeveekee vidaaeeke kaamamen lag gaye. haradeveese kah diya ki 'teree ma pooja mandiramen tujhe bula rahee hai.'

pitaakee baat sunakar haradevee turant maataake paas gayee. maataako jvaraakraant dekhakar use bada़ee chinta huee. vah maake paas baith gayee. usane dekhaa-ma musakara rahee hai, usaka chehara khil raha hai aur ek prakaashaka mandal usake chaaron or chhaaya hua hai. itanemen maataane bada़e dulaarase haradeveeka haath apane haathamen lekar kaha 'betee! too jaanatee hain, yah sansaar asaar hai- shreekrishnaka bhajan hee isamen ekamaatr saar hai. main aaj is asaar sansaarako chhoda़kar shreekrishnakee seva karane unake paramadhaamamen ja rahee hoon. shreekrishnane svayan mujhako bulaaya hai. too yah n samajhana, main tujhe asahaay chhoda़ jaatee hoon too jaanatee hai-manushy men jo kuchh bhee buddhi, vidya, shakti, saamarthy, tej, prabhaav aadi hai, sab shreekrishnaka diya hua hai. unheen shreekrishnake haathonmen tujhe saunpakar men ja rahee hain. ve hee vishvambhar svayan teree sanbhaal karenge. unase badha़kar sanbhaal karanevaala aur kaun hogaa. mujhe anumati de, main jaaoon. betee tujhe shreekrishnakee poojaamen bada़a aanand aata hai. mujhe bulaakar shreekrishnane tere liye bada़ee suvidha kar dee hai. ab in bhagavaan‌ko too le ja niyamitaroopase shraddha bhaktipoorvak inakee pooja kiya karanaa. kabhee kuchh kahane-sunanekee aavashyakata ho to nissankoch inheense kaha karanaa. ye avashy teree baaten sunenge aur usee samay uchit vyavastha bhee kar denge. dekh to tere vishvaasake liye ye abhee teree godamen chale aate hain.'

itana kahana tha ki bhagavaan‌ko moorti sinhaasanasahit aakaashamen chalakar haradeveekee godamen a gayee. phir kya tha, haradeveeko dridha़ vishvaas ho gaya aur bhagavatpreranaase maataake bhaavee viyogaka saara shok palabharamen nasht ho gayaa. ab usane maataakee prasannata, musakaraahat aur usake tejomandalaka marm samajhaa. usane mantra-mugdhakee tarah hansate hue kahaa- 'maa! aisa hee hogaa. main aajase inakee ho gayee aur ye mere ho gaye. ab mujhe vishvaas hai ki tumhaaree jagah ye hee tumase bhee badha़kar meree rakshaakarenge. tum to mere saath naheen ja sakatee. parantu nity mere paas rahenge. tum aanandase inakee sevaamen jaao. jab inhonne svayan tumako apane paas bulaaya hai, tab tumhen rokaneka paap kaun kar sakata hai. jaao ma, jaao bhagavaanko seva karo. tum dhany ho, jo bhagavaan‌ko in priyapaatr ho aur main bhee dhany hoon, jo mujhe tum jaisee sachchee maataakee kokh se paida honeka saubhaagy mila hai. maa. mujhe aasheervaad detee jaao ki main bhee tumhaaree hee tarah bhajan kar sakoon aur antamen unako sevaamen le to kade."

gajadeveene kahaa- 'betee aisa hee hoga, avashyamev aisa hee hogaa. too nishchint raha. haan, ek baat kahanee hai— antim aur sachcha sambandh to ekamaatr bhagavaanka hee hai; parantu yah sansaar bhee bhagavaan‌ka hai, isaliye isamen hamen sabhee vyavahaar bhagavaan‌ke ichchha aur aajnaanusaar ho karane chaahiye. avashy hee karane chaahiye apane bhagavaan‌ko prasannataake liye ho. shaastr bhagavaan‌ko ho aajna hai aur unamen streeke liye pati sevaako hee mukhy dharm batalaaya gaya hai. patike sambandhase saasa-sasurakee seva bhee avashy karanee chaahiye. too bhagavaan‌ko bhata hai, dhyaan rakhana - is vyavahaaramen koee truti n aane paaye. sadaachaar saadagee, seva, sahishnuta aur sanyam to sabheeke liye aavashyak hain. bhaktake liye to ye sarvadha svaabhaavik hone chaahiye.'

"maataa! aisa hee hoga laakh duhkh uthaanepar bhee tumhaaree yah betee apane kartavyase kabhee naheen digegee'- haradevane dridha़ta aur ullaasake saath kahaa!

'betee bada़ee-bada़ee pareekshaaen hotee hain. bada़e-bada़e bhayake prasang aate hain bhagavaanpar aastha rakhegee to | unakee kripaashaktise tera vrat anaayaas hee nibh jaayaga aur too apane param lakshy bhagavaan‌ko praapt karake kritaarth ho jaayagee. betee main hridayase aasheervaad detee hoon ki man sada shreebhagavaanke charan kamalonka chanchareek bana rahe aur too kabhee bhee unako kripaase vanchit n ho.'

'maa-meree maa! main atyant bada़bhaaginee hoon jo tumhaaree betee hoon aisee ma kitanee hain, jo apanee santaanako shreebhagavaanke charanonkee bhakti karaneka aadesh auraaasheervaad detee hai?'- haradeveene aansoo bahaate hue kahaa.

dhany hai maata aur putree dononko. sachamuch vahee maata hai- pita pita hai jo apanee santaanako bhagavaanke maargapar chalaata hai aur usako agrasar karanemen sab 707 shubh prakaarakee sahaayata karata hai. haradeveeko usake pitaane bula liyaa. vah bhagavaanke sinhaasanako lekar chalee gayee. sinhaasanako surakshit sthaanamen. pandharaakar usane maataake paas kaee chatur aur svaamibhakt sevikaaonko bhej diya jo prasannataase usakee yathaayogy bheva karane lageen. yadyapi vidaaeeke din maataake beemaar aur maranaasann ho jaanepar haradeveeko jagatkee chaalake anusaar bahut shok hona chaahiye tha aur haradeveeke pita sthaanakadevake liye bhee yah kam chintaaka prasang naheen tha, phir bhee bhagavadichchhaase dononke hee hriday badal chuke the. ve gajadeveeke bhagavaanke paramadhaam gamanakee khusheemen mast the aur svayan bhee un dononke hridayodyaanamen bhakti-latika lahalaha rahee dho tatha apane madhur pushponke sundar saurabhase kshana-kshanamen unhen mugdh kar rahee thee. ve vivaahaka kaary to maano paravasha-kiseekee preranaase kar rahe the. sab kaary bhaleebhaanti sampann hue. haradeveeke vida honeka samay a gayaa. usane ek baar phir maataake shreecharanonmen jaakar pranaam kiya aur usaka aasheervaad praapt karake pitaake charanonmen girakar rathamen savaar ho gayee. bhagavaan‌ke sinhaasanako apanee godamen se liya kanyaako maataakee anupasthiti donon orake sabhee baraatiyonko bahut hee khal rahee thee aur ve sabhee udaas se ho rahe the.

kanya vida ho gayee. sthaanakadev turant gajadeveeke pas chale aaye. thoda़ee der baad raajadeveene hansate-hansate bhagavaan ke paavan naamonka uchchaaran karate hue patike baagonmen sir rakhakar nashvar shareerako chhoda़ diyaa. us samay usake shareerase divy tej nikalata hua dikhaayee diya aur aakaashase madhur shankhadhvani sunaayee pada़ee sthaanakadevane shraddhaapoorvak evan vidhivat patneeka antyeshti sanskaar aur shraaddhaadi karm kiye.

(2)

haradeveeke sasur gunadev vaastavamen sadgunon ke ghar the.pitaakee bhaanti putr harshadev bhee bahut achchhe svabhaavaka tha, parantu harshadevakee maata samalaaka svabhaav bada़a hee kroor tha, vah mauka paate hee haradeveeke saath nirday vyavahaar karatee thee parantu sasurake achchhe svabhaavake kaaran haradeveeko koee khaas kasht naheen thaa.

daivako gati vichitr hai. dedha़ saalake baad seth gunadevaka dehaant ho gayaa. ab to samala sarvatantr k svatantr ho gayee. vah jo chaahatee so karatee. yadyapi harshadevaka svabhaav sundar aur saumy tha, phir bhee vah sankochavash maataake saamane kuchh bhee bolana naheen chaahata thaa. isase samalaaka man aur bhee badha़ gaya, vah putrako ke apane pakshamen maanakar bahooko vishesharoopase sataane lagee. bhee pahananeko achchhe kapada़e n dena, khaaneko rookhee-sookhee ke rotiyaan denaa- vah bhee bhar pet naheen, baata-baatapar jhida़kana, harek kaamamen dosh nikaalana, usake maata hee pitaako gaaliyaan bakana aadi baaten to usake liye men svaabhaavik theen. kabhee-kabhee to vah haath bhee utha letee no thee. usane bartan maanjane aur jhaada़oo denevaale naukarako ti alag kar diya, aata peesanevaalee naukaraaneeko javaab rane de diya iseeliye ki ye sab kaam haradeveese karaaye r jaayen. haradeveeko kisee bhee kaamase koee inakaar naheen tha, karan use kisee baataka manamen duhkh hee thaa. vah maataakee men baat yaad karake chupachaap harshit manase sab kuchh sahan karatee. atyant sukhamen palee hone tatha vartan maanjane aur aata peesane aadika abhyaas n honeke kaaran use svaabhaavik hee shaareerik thakaavataka anubhav to hota hee thaa. par vah usase duhkhee naheen hotee thee. manamen sochatee shree bhagavaan meree pareeksha lete hain. phir yah driढ़ nishchay karatee ki main is pareekshaamen bhagavaan‌kee kripaase kabhee bhee anutteern naheen hooongee. kitana bhee duhkh aaye bhagavaanka aasheervaad samajhakar use sir chaढ़aaoongee aur kabhee man maila n hone doongee. vah aisa hee karatee saasako jhida़kan aur gaaliyaan use dulaar aur aasheervaada-see jaan pada़teen. vah amlaan manase sab kaam kiya karatee. tan manase patikee seva karatee aur nity niyamase shreebhagavaankee pooja karatee poojaake baad yahee praarthana karatee ki'bhagavan! main tumhaaree hoon, mujhe kabhee visaraana naheen. tumhaaree mangalamayee ichchha poorn ho, iseemen mera mangal hai.' vah kabhee bhagavaan ke saamane saasake atyaachaaronke liye rotee naheen. n kabhee patise hee saasakee shikaayat karatee.

harshadevako nirdosh aur param sheelavatee patneeke prati apanee maataaka is prakaaraka kroor bartaav dekhakar bada़a duhkh hota thaa. usane ek din ekaantamen haradeveese kahaa- 'priye. tum maanavee naheen ho, tum to svargakee devee ho. tumapar jaana-boojhakar itana atyaachaar hota hai, parantu tum kabhee choontak naheen karatee. mainne tumhaare cheharepar bhee kabhee udaasee naheen kuchh hota hee naheen. tumane kabhee aajatak mujhase is sambandhamen ek shabd bhee naheen kahaa. parantu priye! mera hriday jala ja raha hai. ab yah julm mujhase dekha naheen jaataa. main aajatak kuchh naheen bola, parantu ab to had ho gayee hai. tumhaaree raay ho to hamalog yahaanse aur kahaan chale jaayen ya maataako hee alag kar den.'

'mere hridayeshvara! aap jara bhee duhkh n karen. main sach kahatee hoon mujhe tanik bhee kasht naheen hai. men pratidin donon samay jab apane bhagavaan‌kee pooja karatee hoon, tab mujhe itana aanand milata hai ki usamen jeevanabharake bada़e-se bada़e santaap anaayaas hee apanee satta kho dete hain. phir aapakee sevaaka jo aanand hai vah to mere praanonka aadhaar hai ho main bahut mukhee hoon, praananaath aapake charanonmen rahakar mujhe kisee prakaaraka santaap naheen hai. maataajee apane svabhaavavash jo kuchh kahatee karatee hain, hai isase vastutah unheenko kasht hota hai. sach maaniye, svaamin jhiड़kan, apamaan aur gaalee aadi unhonkor milate aur jalaate hain jo inako grahan karate hain. main inhen setee hee naheen. kabhee letee bhee hoon to aasheervaadaroopase phir mere liye ye duhkhadaayee kyon hone lage. haan, kabhee kabhee is baataka to mujhe duhkh avashy hota hai ki main maataajeeke duhkhamen nimitt banatee hoon. aap koee chinta n karen. sansaaramen sab kuchh hamaare bhagavaan ke vidhaanase hamaare mangalake liye hee hota hai. mujhe is baataka vishvaas hain, iseese main sada prasann rahatee hoon.''to maataajeeko chhoda़kar alag jaanekee aavashyakata hai, n unhen alag karanekee hamalog yadi . unakee baaten n sahakar is budha़aapemen unhen akelee chhoda़ denge to unakee seva kaun karegaa. sabase adhik duhkhakee baat to yah hogee ki ham maataajeekee sevaake saubhaagyase vanchit ho jaayenge. yah santaan bada़ee hee abhaaginee hai jisako apane boodha़e maataa-pitaakee seva karaneka suavasar naheen milata aur usake durbhaagy tatha dushkarmaka to kahana hee kya hai ki jo kisee bhee pratikoolataake kaaran maataa-pitaakee praapt huee sevaako chhoda़ baithata hai. phir, ve bechaaree kahatee hee kya hain. mujhe to aajatak kabhee unakee koee bhee baat buree naheen lagee. saasakee seekhabharee jhiड़kan sahana to bahooka saubhaagy hai.'

haradeveekee baat sunakar harshadevaka hriday gadad ho gayaa. usake chittamen haradeveeke prati bada़ee bhakti utpann ho gayee aur vah apaneko dhany maanane laga aisee dharmasheela patnee paakar usane kahaa-'devi! iseese to main kahata hoon tum maanavee naheen ho tumhaare in oonche bhaavonke saamane kisaka mastak naheen jhuk jaayagaa. tum dhany ho! tumhaare maataa-pita dhany hain, jinake ghar tum sareekhee deveene avataar liyaa. tumhaaree eka-ek baat anamol hai. parantu kya karoon; jab maataajee bina kisee kasoorake jaan boojhakar tumhen gaaliyaan bakatee hain aur baaghineekee tarah maarane-kaatane dauda़tee hain, tab yadyapi main aajatak kuchh bola naheen, phir bhee mujhe bada़a duhkh hota hai. man hota hai ki is anyaayaka khulakar virodh karoon; parantu kuchh to maataajee ke sankochase ruk jaata hoon aur kuchh tumhaara yah daivee svabhaav mujhe rok deta hai. jo kuchh bhee ho, kal main unase praarthana avashy karoongaa.'

itana kahakar harshadev chala gayaa. haradevee kuchh kahana chaahatee thee, parantu use avasar hee naheen milaa. doosare din haradevee bartan maanj rahee thee, kuchh puraane jang lage hue bartan use maanjaneko saasane diye the. jang ragada़-ragada़kar utaarane men der lagee. itanemen saas samala laala-peelee ho gayee aur anaapa-shanaap gaaliyaan bakane lagee. isee beechamen harshadev vahaan a gayaa. usako maataakaayah bartaav bura maaloom huaa. usane namrataase maataako samajhaane kee cheshta kee to usaka gussa aur bhee badha़ gayaa. ab vah harshadevako bhee buraa-bhala kahane lagee. harshadevako | bahut duhkh huaa; parantu vah haradeveeke sheela-svabhaavake . sankochase kuchh bhee bola naheen. jab doosara paksh kuchh bhee naheen bolata, tab pahale pakshako baka-bakaakar svayan hee chup ho jaana pada़ta hai. samala jab bolate-bolate thak gayee, tab apane-aap hee chup ho gayee. harshadev vishaadabhare hridayase baahar chala gayaa. harshadevaka vishaad dekhakar haradeveeko duhkh huaa. vah saara kaam nipataakar apane bhagavaan ke poojaa- mandiramen gayee aur vahaan jaakar bhagavaanse kaatar praarthana karane lagee. usane kahaa-

'bhagavan! mainne kabhee kuchh bhee naheen chaaha, aaj patidevako udaas dekhakar ek chaah utpann huee hai-vah yah ki meree saasaka svabhaav saattvik bana diya jaaya. ve samaya-samayapar jhallaakar hamalogon ke saath hee aapako bhee buraa-bhala kah baithatee hain. prabho! is aparaadhake liye unhen kshama kiya jaaya. iseeke saath, naatha! meree chirakaalakee aakaaiksha hai ki main aapake divy svaroopake saakshaat darshan karoon. mere manamen yah chaah to thee hee, is samay praarthana karate-karate pata naheen kyon meree yah chaah atyant prabal ho gayee hai. prabho! aap antaryaamee hain, ghata-ghatakee jaanate hain. yadi meree sachchee chaah hai, yadi yaastavamen aap meree vyaakulataako is prakaarako teevr samajhate hain ki ab aapako pratyaksh dekhe bina mera jeevan asambhav hai to kripa karake mujhe darshan deejiye. aap sarvasamarth hain, main atyant deen heen aur malinamati hoon, mujhe kuchh bhee jnaan naheen. aapakee bhaktika tattv bhee main naheen jaanatee. itana hee jaanatee hoon ki aap mere sarvasv hai aur main aapakee hai. aapake siva mere aur koee bhee sahaara naheen hai. sansaarake sab kaary aapako prasannata ke liye aapake liye hee karate hain. patike dvaara main aapakee hee upaasana karatee hoon. mujhe usake badale men aapakee prasannataake atirikt aur kuchh bhee naheen chaahiye. yadi yah saty ho to aap kripa karake darshan deejiye.'yon kahakar haradevee kaatarabhaavase rone lagee. usakee ghigghee bandh gayee, gala ruk gaya, bolee band ho gayee. bhagavaan ab naheen rah sake. vaheen apane vigrahake saamane hee prakat ho gaye-bada़ee manohar manjul shobha dhaaran kiye hue neelashyaam varn hai. galemen ratnonkee maala hai, karakamalonmen muralee hai, hothonpar madhur musakaan hai, netronse kripa aur premako sudha dhaara bah rahee hai. saundary aur maadhuryakee apratim chhavi hain. haradevee bhagavaan‌ko saamane dekhakar aanandasaagaramen doob gayee. vah kuchh bhee bol naheen sakee. tab shreebhagavaanne kahaa-'betee main tujhapar ati n hoon toone apane aacharanon aur akritrim bhakti mujhe vashamen kar liya hai. teree saasaka svabhaav sudharana to tabhee nishchay ho gaya tha jab too vadhoo banakar usake ghar aayee thee. ab to teree kripaase vah asaadhaaran bhakt ban gayee hai. toone apane pati aur saas dononka uddhaar kar diyaa. tera sasur to pahale hee tere prataapase sadgatiko praapt ho chuka thaa. ab meree kripaase tum teenon meree bhakti karate hue sundar sadaachaarapoorn jeevan bitaaoge aur antamen mere paramadhaamamen aakar meree sevaaka adhikaar praapt karoge.'

itana kahakar bhagavaan sahasa antardhaan ho gaye. haradevee stabdh thee. usaka man mugdh ho raha thaa. itanemen usane dekha, saas samala paas khada़ee hai aur ro-rokar bhagavaan se kshamaa-praarthana kar rahee hai. haradevee uthee. saas apane doshonka varnan karate hue usase kshama maangane lagee. haradeveene sakuchaakar saasake charan pakada़ liye. samalaane use uthaakar hridayase laga liyaa. dononke netronse premake aansoo bahane lage. harshadev ghar lauta to maata kee aisee badalee huee haalat dekhakar aanandamagn ho gayaa. teenonkee jeevanadhaara ek hee param lakshyakee or jorase bahane lagee. ek lakshy, ek saadhan, ek maarg maano ek hee jagah jaanevaale teen sahayogee yaatree bada़e premase ek doosarekee sahaayata karate hue aage badha़ rahe ho ados pada़osapar bhee teenonke premaka bada़a prabhaav pada़aa. itana hee naheen, unake aacharanase saare nagarake nara-naaree sadaachaaree aur bhagavadbhakt banane lage.

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तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
प्रीतम बोलो कब आओगे॥
बालम बोलो कब आओगे॥
कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे,
कोई सोना की जो होती, हीरा मोत्यां की जो
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
होरी का तोहे बड़ा चाव...
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
राधा राधा राधा राधा
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
तीनो लोकन से न्यारी राधा रानी हमारी।
राधा रानी हमारी, राधा रानी हमारी॥
शिव समा रहे मुझमें
और मैं शून्य हो रहा हूँ
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
राधे मोरी बंसी कहा खो गयी,
कोई ना बताये और शाम हो गयी,
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
नी मैं दूध काहे नाल रिडका चाटी चो
लै गया नन्द किशोर लै गया,
मीठी मीठी मेरे सांवरे की मुरली बाजे,
होकर श्याम की दीवानी राधा रानी नाचे
राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
श्याम देखा घनश्याम देखा
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
आज बृज में होली रे रसिया।
होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥

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जय भैरव नटराजा,
रूद्र सदा शिवराजा,
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श्याम बाबा की कृपा से तुम, ना होना
हारे का सहारा मेरा खाटू वाला श्याम,
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उसके लिए भी मांगो जिसने श्याम से
ज़रा सुनियो बांसुरी बजदी है,
मेरे सोहने दे मुख सजदी है,