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भक्तिमती शबरी की मार्मिक कथा
भक्तिमती शबरी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तिमती शबरी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तिमती शबरी]- भक्तमाल


त्रेतायुगका समय है, वर्णाश्रम धर्मकी पूर्ण प्रतिष्ठा है, वनोंमें स्थान-स्थानपर ऋषियोंके पवित्र आश्रम बने हुए हैं। तपोधन ऋषियोंके यज्ञभूमसे दिशाएँ आच्छादित और वेदध्वनिसे आकाश मुखरित हो रहा है। ऐसे समय दण्डकारण्यमें पति-पुत्र- विहीना, भक्ति- श्रद्धा सम्पन्ना एक वृद्धा भीलनी रहती थी, जिसका नाम था शबरी

शबरीने एक बार मतंग ऋषिके दर्शन किये। संतदर्शनसे उसे परम हर्ष हुआ और उसने विचार किया कि यदि मुझसे ऐसे महात्माओंकी सेवा बन सके तो मेरा कल्याण होना कोई बड़ी बात नहीं है। यह सोचकर उसने ऋषियोंके आश्रमोंसे थोड़ी दूरपर अपनी छोटी-सी कुटिया बना ली और कन्द-मूल-फलसे अपना उदर पोषण करती हुई अपनेको नीच समझकर वह अप्रकटरूपसे ऋषियोंकी सेवा करने लगी। जिस मार्गसे ऋषिगण स्नान करने जाया करते, उष:कालके पूर्व ही उसको झाड़ बुहारकर साफ कर देती, कहीं भी कंकड़ या काँटा नहीं रहने पाता। इसके सिवा वह आश्रमोंके समीप ही प्रातः कालके पहले-पहले ईधनके सूखे ढेर लगा देती। कैंकरीले और कैटीले रास्तेको निष्कण्टक और कंकड़ोंसे रहित देखकर तथा द्वारपर समिधाका संग्रह देखकर ऋषियोंको बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने अपने शिष्योंको यह पता लगानेकी आज्ञा दी कि प्रतिदिन इन कामको कौन कर जाता है। आज्ञाकारी शिष्य रातको पहरा देने लगे और उसी दिन रातके पिछले पहर शबरी ईंधनका बोझा रखती हुई पकड़ी गयी। शबरी बहुत ही डर गयी। शिष्यगण उसे मतंग मुनिके सामने ले गये और उन्होंने मुनिसे कहा कि 'महाराज ! प्रतिदिन रास्ता साफ करने और ईंधन रख जानेवाले चोरको आज हमने पकड़ लिया है। यह भीलनी ही प्रतिदिन ऐसा किया करती है।' शिष्योंकी बातको सुनकर भयकातरा शबरीसे मुनिने पूछा, 'तू कौन है और किसलिये प्रतिदिन मार्ग बुहारने और ईंधन लानेका काम करती है?' भक्तिमती शबरीने काँपते हुए अत्यन्त विनयपूर्वक प्रणाम करके कहा, 'नाथ मेरा नाम शबरी है. मन्दभाग्यसे मेरा जन्म नीच | कुलमें हुआ है, मैं इसी वनमें रहती हूँ और आप-जैसे तपोधन मुनियोंके दर्शनसे अपनेको पवित्र करती हूँ। अन्य किसी प्रकारकी सेवामें अपना अनधिकार समझकर मैंने इस प्रकारकी सेवामें ही मन लगाया है। भगवन् आपकी सेवाके योग्य नहीं कृपापूर्वक मेरे अपराधको क्षमा करें। शबरीके इन दीन और यथार्थ वचनोंको सुनकर मुनि मतंगने दयापरवश हो अपने शिष्योंसे कहा कि 'यह बड़ी भाग्यवती है, इसे आश्रमके बाहर एक कुटियामें रहने दो और इसके लिये अन्नादिका उचित प्रबन्ध कर दो।' ऋषिके दयापूर्ण वचन सुनकर शबरीने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा-'कृपानाथ! मैं तो कन्दमूलादिसे ही अपना उदर-पोषण कर लिया करती हूँ। आपका अन्न प्रसाद तो मुझे इसीलिये इच्छित है कि इससे मुझपर आपकी वास्तविक कृपा होगी, जिससे मैं कृतार्थ हो सकूँगी। मुझे न तो वैभवकी इच्छा है और न मुझे यह असार संसार ही प्रिय लगता है। दीनबन्धो ! मुझे तो आप ऐसा आशीर्वाद दें कि जिससे मेरी भगवान्में प्रीति हो।' विनयावनत श्रद्धालु शयरीके ऐसे वचन सुनकर मुनि मतंगने कुछ देर सोच-विचारकर प्रेमपूर्वक उससे कहा-' कल्याणि तु निर्भय होकर यहाँ रह और तू भगवान्‌के नामका जप किया कर ऋषिकी कृपासे शबरी जटा - चीर-धारिणी होकर भगवद्भजनमें निरत हो आश्रम में रहने लगी। अन्यान्य ऋषियोंको यह बात अच्छी नहीं लगी। उन्होंने मतंग ऋषिसे कह दिया कि "आपने नीच जाति शबरीको आश्रममें स्थान दिया है, इससे हमलोग आपके साथ भोजन करना तो दूर रहा, सम्भाषण भी करना नहीं चाहते।' भक्तितत्वके मर्मज्ञ मतंगने इन शब्दोंपर कोई ध्यान नहीं दिया। वे इस बातको जानते थे कि ये सब भ्रममें हैं, शबरीके स्वरूपका इन्हें ज्ञान नहीं है, शबरी केवल नीच जातिकी साधारण स्त्री ही नहीं है, वह एक भगवद्भक्तिपरायणा उच्च आत्मा है। उन्होंने इसका कुछ भी विचार नहीं किया और वे अपने उपदेशसे शबरीको भक्ति बढ़ाते रहे। इस प्रकार भगवद्गुण-स्मरण और गान करते-करते बहुत समय बीत गया। मतंग ऋषिने शरीर छोड़नेका इच्छा की, यह जानकर शिष्योंको बड़ा दुःख हुआ, शबरी अत्यन्त क्लेशके कारण क्रन्दन करने लगी। गुरुदेवका परमधाममें पधारना उसके लिये असहनीय हो । गया। वह बोली- 'नाथ! आप अकेले ही न जायें, यह किङ्करी भी आपके साथ जानेको तैयार है।' विषण्णवदना कृताञ्जलि दीना शबरीको सम्मुख देखकर मतंग ऋषिने कहा- 'सुव्रते ! तू यह विषाद छोड़ दे, कोसलकिशोर भगवान् श्रीरामचन्द्र इस समय चित्रकूटमें हैं। वे यहाँ अवश्य पधारेंगे। उन्हें तू इन्हीं चर्म चक्षुओंसे प्रत्यक्ष देख सकेगी, वे साक्षात् परमात्मा नारायण हैं। उनके दर्शनसे तेरा कल्याण हो जायगा। भक्तवत्सल भगवान् जब तेरे आश्रममें पधारें, तब उनका भलीभाँति आतिथ्य करके अपने जीवनको सफल करना। तबतक तू श्रीराम-नामका जप करती हुई उनकी प्रतीक्षा कर।'

शबरीको इस प्रकार आश्वासन देकर मुनि दिव्यलोकको चले गये। इधर शबरीने श्रीराम-नाममें ऐसा मन लगाया कि उसे दूसरी किसी बातका ध्यान ही नहीं रहा। शबरी कन्द-मूल-फलोंपर अपना जीवन निर्वाह करती हुई भगवान् श्रीरामके शुभागमनकी प्रतीक्षा करने लगी। ज्यों-ही-ज्यों दिन बीतते हैं, त्यों-ही-त्यों शबरीकी राम दर्शन- लालसा प्रबल होती जाती है। जरा-सा शब्द सुनते ही वह दौड़कर बाहर जाती है और बड़ी आतुरताके साथ प्रत्येक वृक्ष, लता, पत्र, पुष्प और फलोंसे तथा पशु-पक्षियोंसे पूछती है कि 'अब श्रीराम कितनी दूर हैं, यहाँ कब पहुँचेंगे?' प्रातःकाल कहती है कि भगवान् आज सन्ध्याको आयेंगे। सायंकाल फिर कहती है, कल सवेरे तो अवश्य पधारेंगे। कभी घरके बाहर जाती है, कभी भीतर आती है। कहीं मेरे रामके कोमल चरण कमलोंमें चोट न लग जाय, इसी चिन्तासे बार-बार रास्ता साफ करती और काँटे कंकड़ोंको बुहारती है। घरको नित्य गोवर - गोमूत्रसे लीप-पोतकर ठीक करती है। नित नयी मिट्टी-गोबरकी चौकी बनाती है। कभी चमककर उठती है, कभी बाहर जाती है और सोचती अ है, भगवान् बाहर आ ही गये होंगे। वनमें जिस पेड़का स फल सबसे अधिक सुस्वाद और मीठा लगता है, वही अपने रामके लिये बड़े चावसे रख छोड़ती है। इस प्रकार शबरी उन राजीवलोचन रामके शुभ दर्शनकी उत्कण्ठासे 'रामागमनकाङ्क्षया' पागल सी हो गयी है। सूखे पत्ते वृक्षोंसे झड़कर नीचे गिरते हैं तो उनके शब्दको शबरी अपने प्रिय रामके पैरोंको आहट समझकर दौड़ती है। इस तरह आठों पहर उसका चित्त श्रीराममें रमा रहने लगा, परंतु राम नहीं आये। एक बार मुनिबालकोंने कहा- 'शबरी! तेरे राम आ रहे हैं।' फिर क्या था। बेर आदि फलोंको आँगनमें रखकर वह दौड़ी सरोवरसे जल लानेके लिये। प्रेमके उन्मादमें उसे शरीरकी सुधि नहीं थी एक ऋषि स्नान करके लौट रहे थे। शबरीने उन्हें देखा नहीं और उनसे उसका स्पर्श हो गया। मुनि बड़े क्रुद्ध हुए। वे बोले-'कैसी दुष्टा है! जान-बूझकर हमलोगोंका अपमान करती है। शबरीने अपनी धुन में कुछ भी नहीं सुना और वह सरोवरपर चली गयी। ऋषि भी पुनः स्नान करनेको उसके पीछे-पीछे गये। ऋषिने ज्यों ही जलमें प्रवेश किया, त्यों ही जलमें कीड़े पड़ गये और उसका वर्ण रुधिर-सा हो गया। इतनेपर भी उनको यह ज्ञान नहीं हुआ कि यह भगवद्भक्तिपरायणा शबरीके तिरस्कारका फल है। इधर जल लेकर शबरी पहुँचने ही नहीं पायी थी कि दूरसे भगवान् श्रीराम 'मेरी शबरी कहाँ है?" पूछते हुए दिखायी दिये। यद्यपि अन्यान्य मुनियोंको भी यह निश्चय था कि भगवान् अवश्य पधारेंगे, फिर भी उनकी ऐसी धारणा थी कि वे सर्वप्रथम हमारे ही आश्रमोंमें पदार्पण करेंगे। परंतु दीनवत्सल भगवान् श्रीरामचन्द्र जब पहले उनके यहाँ न जाकर शबरीकी मँढ़ेयाका पता पूछने लगे, तब उन तपोबलके अभिमानी मुनियोंको बड़ा आश्चर्य हुआ। शवरीके कानोंमें भी सरल ऋषिबालकोंके द्वारा यह बात पहुँची। श्रीरामका अपने प्रति इतना अनुग्रह देखकर शबरीको जो सुख हुआ, उसकी कल्पना कौन कर सकता है।

इतनेमें ही भगवान् श्रीराम लक्ष्मणसहित शबरीके आश्रममें पहुँचे —
सबरी देखि राम गृहँ आए। मुनि के बचन समुझि जिय भए । सरसिज लोचन बाहु बिसाला जटा मुकुट सिर उर धनमाला ॥ स्याम गौर सुंदर दोउ भाई सबरी परी चरन लपटाई॥ 1 प्रेम मगन मुख वचन न आया। पुनि पुनि पद सरोज सिर नावा (रामचरितमानस)

आज शबरीके आनन्दका पार नहीं है। यह प्रेममें पगली होकर नाचने लगी। हाथसे ताल दे-देकर नृत्य करनेमें वह इतनी मग्र हुई कि उसे अपने उत्तरीय वस्त्रतकका ध्यान नहीं रहा, शरीरकी सारी सुध-बुध जाती रही। इस तरह शबरीको आनन्दसागरमें निमन देखकर भगवान् बड़े ही सुखी हुए और उन्होंने मुसकराते हुए लक्ष्मणकी ओर देखा। तब श्रीलक्ष्मणजीने हँसते हुए गम्भीर स्वरसे कहा कि 'शबरी! क्या तू नाचती ही रहेगी? देख श्रीराम कितनी देर खड़े हैं? क्या इनको बैठाकर तू इनका आतिथ्य नहीं करेगी?" इन शब्दोंसे शवरीको चेत हुआ और उस धर्मपरायणा तापसी सिद्धा संन्यासिनीने धीमान् श्रीराम-लक्ष्मणको देखकर उनके चरणोंमें हाथ जोड़कर प्रणाम किया और पाद्य, आचमन आदिसे उनका पूजन किया। (वा0 रा0 3।74 6-7)

सादर जल ले चरन पखारे पुनि सुंदर आसन बैठारे ॥

भगवान् श्रीराम उस धर्मनिरता शबरीसे पूछने लागे तपोधने! तुमने साधनके समस्त विपर तो विजय पायी है? तुम्हारा तप तो बढ़ रहा है? तुमने कोप और आहारका संयम तो किया है? चारुभाषिणि! तुम्हारे नियम तो सब बराबर पालन हो रहे हैं? तुम्हारे मनमें शान्ति तो हैं? तुम्हारी गुरुसेवा सफल तो हो गयी? अब तुम क्या चाहती हो?' (वा0 रा0 3।74 8-9)

श्रीरामके ये वचन सुनकर वह सिद्धपुरुषोंमें मान्य वृद्धा तापसी बोली- भगवन्! आप मुझे 'सिद्धा' 'सिद्धसम्मता' 'तापसी' आदि कहकर लज्जित न कीजिये। मैंने तो आज आपके दर्शनसे ही जन्म सफल कर लिया है। हे भगवन्! आज आपके दर्शनसे मेरे सभी तप सिद्ध हो गये हैं, मेरा जन्म सफल हो गया। आज मेरी गुरुओंकी पूजा सफल हो गयी; मेरा तप सफल हो गया। हे पुरुषोत्तम! आप देवताओंमें श्रेष्ठ रामकी कृपासे अब मुझे अपने स्वर्गापवर्गमें कोई सन्देह नहीं रहा।
( वा0 रा0 3 । 74 । 11-12 )

शबरी अधिक नहीं बोल सकी। उसका गला प्रेमसे रुँध गया। थोड़ी देर चुप रहकर फिर बोली 'प्रभो! आपके लिये संग्रह किये हुए कन्द-मूल फलादि तो अभी रखे ही हैं। भगवन्! मुझ अनाथिनीके फलोंको ग्रहणकर मेरा मनोरथ सफल कीजिये।' यों कहकर शबरी फलोंको लाकर भगवान्‌को देने लगी और भगवान् बड़े प्रेमसे पवित्र प्रेम - रससे पूर्ण उन फलोंकी बार-बार सराहना करते हुए उन्हें खाने लगे।

पद्मपुराणमें भगवान् व्यासजीने कहा है —

फलानि च सुपक्वानि मूलानि मधुराणि च ।
स्वयमास्वाद्य माधुर्यं परीक्ष्य परिभक्ष्य च ॥ पश्चान्निवेदयामास राघवाभ्यां दृढव्रता ।
फलान्यास्वाद्य काकुत्स्थस्तस्यै मुक्तिं परां ददौ ॥

शबरी वनके पके हुए मूल और फलोंको स्वयं चख चखकर परीक्षा करके भगवान्‌को देने लगी। * जो अत्यन्त मधुर फल होते वही भगवान्‌के निवेदन करती और भगवान् मानो कई दिनोंके भूखे हों, ऐसे चाव और भावसे उनको पाने लगे।

बेर बेर बेर लै सराहें बेर बेर बहु,

'रसिकबिहारी' देत बंधु कहँ फेर फेर ।

चाखि चाखि भाखँ यह वाहू तें महान मीठो,

लेहु तो लखन यों बखानत हैं हेर हेर ।।

बेर बेर देवेको सबरी सुबेर बेर

तोक रघुबीर बेर बेर ताहि टेर टेर

घेर जनि लाओ बेर बेर जनि लाओ बेर,

थेर जनि लाओ बेर लाओ कहें घेर बेर।।

यही नहीं, भगवान् श्रीराघवेन्द्र शबरीजीके इन प्रेमसुधा रसपूर्ण फलोंका स्वाद कभी नहीं भूले घरमै, गुरुजीके यहाँ, मित्रोंके घरपर, ससुरालमें- जहाँ कहीं इनका स्वागत-सत्कार हुआ, भोजन कराया गया, वहीं ये शबरीके फलोंकी सराहना करना नहीं भूले-

घर, गुरुगृर्ह, प्रियसदन, सासुरे भइ जब जहँ पहुनाई।

तब त कहि सबरी के फलनि को रुचि माधुरी न पाई ।।

अस्तु, इस तरह भक्तवत्सल भगवान्के परम अनुग्रहसे शबरीने अपनी मनोगत अभिलाषा पूर्ण हुई जानकर परम प्रसन्नता लाभ की। तदनन्तर वह हाथ जोड़कर सामने खड़ी हो गयी। प्रभुको देख-देखकर उसकी प्रीति सरितामें अत्यन्त बाढ़ आ गयी। उसने कहा केहि विधि अस्तुति करों तुम्हारी।

अधम जाति मैं जड़मति भारी॥

अधम ते अधम अधम अति नारी।

तिन्ह महँ मैं मतिमंद अधारी ॥

(रामचरितमानस) आतंत्राणपरायण पतितपावन भक्तवत्सल श्रीरामने उत्तरमें कहा, 'भामिनि! तुम मेरी बात सुनो। मैं एकमात्र भक्तिका नाता मानता हूँ। जो मेरी भक्ति करता है, वह मेरा है और मैं उसका हूँ। जाति-पांति, कुल, धर्म, बड़ाई, द्रव्य, बल, कुटुम्ब, गुण, चतुराई-सब कुछ हो; पर यदि भक्ति न हो तो वह मनुष्य बिना जलके बादलोंके समान शोभाहीन और व्यर्थ है।'

अध्यात्मरामायण में भगवान् श्रीराम कहते हैं -

पुंस्त्वे स्त्रीत्वे विशेषो वा जातिनामाश्रमादयः ।

न कारणं मद्धजने भक्तिरेव हि कारणम् ॥

यज्ञदानतपोभिर्वा वेदाध्ययनकर्मभिः ।

नैव द्रष्टुमहं शक्यो मद्भक्तिविमुखैः सदा ॥

(3 । 10 । 20-21)

'पुरुष स्त्री या अन्यान्य जाति और आश्रम आदि मेरे भजनमें कारण नहीं हैं; केवल भक्ति ही एक कारण है।'
'जो मेरी भक्तिसे विमुख हैं, यज्ञ, दान, तप और वेदाध्ययन करके भी वे मुझे नहीं देख सकते।' यही घोषणा भगवान्ने गोतामें की है।

इसके बाद भगवान्ने शबरीको नवधा भक्तिका स्वरूप बतलाया और कहा-

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं।

सावधान सुनु धरु मन माहीं ॥

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा

दूसरि रति मम कथा प्रसंगा ॥

गुरु पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान ।

चौथ भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान ॥

मन्त्र जाप मम दृढ़ विस्वासा

पंचम भजन सो बेद प्रकासा ॥

छठ दम सील बिरति बहु करमा ।

निरत निरंतर सज्जन धरमा ।।

सातवें सम मोहिमय जग देखा।

मोतें संत अधिक करि लेखा ॥

जथालाभ संतोषा।

सपनेहुँ नहिं देखड़ परदोषा ॥

आठव

नवम सरल सब सन छलहीना।

मम भरोस हिय हरष न दीना

नव महुँ एकड़ जिन्ह के होई।

नारि पुरुष सचराचर कोई ॥

सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें।

सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें ॥

जोगि वृंद दुरलभ गति जोई।

तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई ॥

उसी समय दण्डकारण्यवासी अनेक ऋषि-मुनि शबरीजीके आश्रम में आ गये। मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम और लक्ष्मणने खड़े होकर मुनियोंका स्वागत किया और उनसे कुशल प्रश्न किया। सबने उत्तरमें यही कहा 'रघुश्रेष्ठ! आपके दर्शनसे हम सब निर्भय हो गये हैं।'

त्वद्दर्शनाद् रघुश्रेष्ठ जाताः स्मो निर्भया वयम् ॥ "प्रभी हम बड़े अपराधी हैं। इस परम भक्तिमती | शबरीके कारण हमने मतंग-जैसे महानुभावका तिरस्कारकिया। योगिराजोंके लिये भी जो परम दुर्लभ हैं-ऐसे आप साक्षात् नारायण जिसके घरपर पधारे हैं, वह भक्तिमती शबरी सर्वथा धन्य है। हमने बड़ी भूल की।' इस प्रकार सब ऋषि-मुनि पश्चात्ताप करते हुए भगवान्से विनय करने लगे। आज दण्डकारण्यवासी ज्ञानाभिमानियोंकी आँखें खुलीं।

'हमारे तीन जन्मोंको (एक गर्भसे, दूसरे उपनयनसे और तीसरे यज्ञदीक्षासे), विद्याको, ब्रह्मचर्यव्रतको, बहुत जाननेको, उत्तम कुलको, यज्ञादि क्रियाओंमें चतुर होनेको बार-बार धिक्कार है; क्योंकि हम श्रीहरिके विमुख हैं। निःसन्देह भगवान्की माया बड़े-बड़े योगियोंको मोहित कर देती है। अहो! हम लोगोंके गुरु ब्राह्मण कहलाते हैं, परंतु अपने ही सच्चे स्वार्थसे (हरिकी भक्तिमें) चूक 'गये।' अस्तु ।

ऋषि-मुनियाँको पश्चात्ताप करते देखकर श्रीलक्ष्मणजीने उनके तपकी प्रशंसा करके उन्हें कुछ सान्त्वना दी। तदनन्तर एक ऋषिने कहा-'शरणागतवत्सल! यहाँके सुन्दर सरोवरके जलमें कीड़े क्यों पड़ रहे हैं तथा वह रुधिर सा क्यों हो गया है?' लक्ष्मणजीने हँसते हुए कहा-
'मतंग मुनिके साथ द्वेष करने तथा शबरी जैसी रामभक्ता साध्वीका अपमान करनेके कारण आपकेअभिमानरूपी दुर्गुणसे ही यह सरोवर इस दशाको प्राप्त हो गया है।'

मतङ्गमुनिविद्वेषाद् रामभक्तावमानतः l

जलमेतादृशं जातं भवतामभिमानतः ॥

कुछ वर माँग।' शबरीने कहा-

इसके फिर पूर्ववत् होनेका एक यही उपाय है कि शबरी एक बार फिरसे उसका स्पर्श करे। भगवान्‌की आज्ञासे शबरीने जलाशयमें प्रवेश किया और तुरंत ही जल पूर्ववत् निर्मल हो गया। यह है भक्तोंकी महिमा ! भगवान्ने प्रसन्न होकर फिर शबरीसे कहा कि 'तू कुछ वर माँग।' शबरीने कहा-
यत्त्वां साक्षात्प्रपश्यामि नीचवंशभवाप्यहम् l

तथापि याचे भगवंस्त्वयि भक्तिर्दृढा मम ॥

'मैं अत्यन्त नीच कुलमें जन्म लेनेपर भी आपका साक्षात् दर्शन कर रही हूँ, यह क्या साधारण अनुग्रहका फल है; तथापि मैं यही चाहती हूँ कि आपमें मेरी दृढ़ भक्ति सदा बनी रहे।' भगवान्ने हँसते हुए कहा- 'यही होगा।'

शबरीने पार्थिव देह परित्याग करनेके लिये भगवान्की आज्ञा चाही, भगवान्ने उसे आज्ञा दे दी। शबरी मुनिजनोंके सामने ही देह छोड़कर परम धामको प्रयाण कर गयी और सब ओर जय-जयकारकी ध्वनि होने लगी।



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tretaayugaka samay hai, varnaashram dharmakee poorn pratishtha hai, vanonmen sthaana-sthaanapar rishiyonke pavitr aashram bane hue hain. tapodhan rishiyonke yajnabhoomase dishaaen aachchhaadit aur vedadhvanise aakaash mukharit ho raha hai. aise samay dandakaaranyamen pati-putra- viheena, bhakti- shraddha sampanna ek vriddha bheelanee rahatee thee, jisaka naam tha shabaree

shabareene ek baar matang rishike darshan kiye. santadarshanase use param harsh hua aur usane vichaar kiya ki yadi mujhase aise mahaatmaaonkee seva ban sake to mera kalyaan hona koee bada़ee baat naheen hai. yah sochakar usane rishiyonke aashramonse thoda़ee doorapar apanee chhotee-see kutiya bana lee aur kanda-moola-phalase apana udar poshan karatee huee apaneko neech samajhakar vah aprakataroopase rishiyonkee seva karane lagee. jis maargase rishigan snaan karane jaaya karate, usha:kaalake poorv hee usako jhaada़ buhaarakar saaph kar detee, kaheen bhee kankada़ ya kaanta naheen rahane paataa. isake siva vah aashramonke sameep hee praatah kaalake pahale-pahale eedhanake sookhe dher laga detee. kainkareele aur kaiteele raasteko nishkantak aur kankada़onse rahit dekhakar tatha dvaarapar samidhaaka sangrah dekhakar rishiyonko bada़a aashchary hua aur unhonne apane shishyonko yah pata lagaanekee aajna dee ki pratidin in kaamako kaun kar jaata hai. aajnaakaaree shishy raatako pahara dene lage aur usee din raatake pichhale pahar shabaree eendhanaka bojha rakhatee huee pakada़ee gayee. shabaree bahut hee dar gayee. shishyagan use matang munike saamane le gaye aur unhonne munise kaha ki 'mahaaraaj ! pratidin raasta saaph karane aur eendhan rakh jaanevaale chorako aaj hamane pakada़ liya hai. yah bheelanee hee pratidin aisa kiya karatee hai.' shishyonkee baatako sunakar bhayakaatara shabareese munine poochha, 'too kaun hai aur kisaliye pratidin maarg buhaarane aur eendhan laaneka kaam karatee hai?' bhaktimatee shabareene kaanpate hue atyant vinayapoorvak pranaam karake kaha, 'naath mera naam shabaree hai. mandabhaagyase mera janm neech | kulamen hua hai, main isee vanamen rahatee hoon aur aapa-jaise tapodhan muniyonke darshanase apaneko pavitr karatee hoon. any kisee prakaarakee sevaamen apana anadhikaar samajhakar mainne is prakaarakee sevaamen hee man lagaaya hai. bhagavan aapakee sevaake yogy naheen kripaapoorvak mere aparaadhako kshama karen. shabareeke in deen aur yathaarth vachanonko sunakar muni matangane dayaaparavash ho apane shishyonse kaha ki 'yah bada़ee bhaagyavatee hai, ise aashramake baahar ek kutiyaamen rahane do aur isake liye annaadika uchit prabandh kar do.' rishike dayaapoorn vachan sunakar shabareene haath joda़kar pranaam kiya aur kahaa-'kripaanaatha! main to kandamoolaadise hee apana udara-poshan kar liya karatee hoon. aapaka ann prasaad to mujhe iseeliye ichchhit hai ki isase mujhapar aapakee vaastavik kripa hogee, jisase main kritaarth ho sakoongee. mujhe n to vaibhavakee ichchha hai aur n mujhe yah asaar sansaar hee priy lagata hai. deenabandho ! mujhe to aap aisa aasheervaad den ki jisase meree bhagavaanmen preeti ho.' vinayaavanat shraddhaalu shayareeke aise vachan sunakar muni matangane kuchh der socha-vichaarakar premapoorvak usase kahaa-' kalyaani tu nirbhay hokar yahaan rah aur too bhagavaan‌ke naamaka jap kiya kar rishikee kripaase shabaree jata - cheera-dhaarinee hokar bhagavadbhajanamen nirat ho aashram men rahane lagee. anyaany rishiyonko yah baat achchhee naheen lagee. unhonne matang rishise kah diya ki "aapane neech jaati shabareeko aashramamen sthaan diya hai, isase hamalog aapake saath bhojan karana to door raha, sambhaashan bhee karana naheen chaahate.' bhaktitatvake marmajn matangane in shabdonpar koee dhyaan naheen diyaa. ve is baatako jaanate the ki ye sab bhramamen hain, shabareeke svaroopaka inhen jnaan naheen hai, shabaree keval neech jaatikee saadhaaran stree hee naheen hai, vah ek bhagavadbhaktiparaayana uchch aatma hai. unhonne isaka kuchh bhee vichaar naheen kiya aur ve apane upadeshase shabareeko bhakti badha़aate rahe. is prakaar bhagavadguna-smaran aur gaan karate-karate bahut samay beet gayaa. matang rishine shareer chhoda़neka ichchha kee, yah jaanakar shishyonko baड़a duhkh hua, shabaree atyant kleshake kaaran krandan karane lagee. gurudevaka paramadhaamamen padhaarana usake liye asahaneey ho . gayaa. vah bolee- 'naatha! aap akele hee n jaayen, yah kinkaree bhee aapake saath jaaneko taiyaar hai.' vishannavadana kritaanjali deena shabareeko sammukh dekhakar matang rishine kahaa- 'suvrate ! too yah vishaad chhoda़ de, kosalakishor bhagavaan shreeraamachandr is samay chitrakootamen hain. ve yahaan avashy padhaarenge. unhen too inheen charm chakshuonse pratyaksh dekh sakegee, ve saakshaat paramaatma naaraayan hain. unake darshanase tera kalyaan ho jaayagaa. bhaktavatsal bhagavaan jab tere aashramamen padhaaren, tab unaka bhaleebhaanti aatithy karake apane jeevanako saphal karanaa. tabatak too shreeraama-naamaka jap karatee huee unakee prateeksha kara.'

shabareeko is prakaar aashvaasan dekar muni divyalokako chale gaye. idhar shabareene shreeraama-naamamen aisa man lagaaya ki use doosaree kisee baataka dhyaan hee naheen rahaa. shabaree kanda-moola-phalonpar apana jeevan nirvaah karatee huee bhagavaan shreeraamake shubhaagamanakee prateeksha karane lagee. jyon-hee-jyon din beetate hain, tyon-hee-tyon shabareekee raam darshana- laalasa prabal hotee jaatee hai. jaraa-sa shabd sunate hee vah dauda़kar baahar jaatee hai aur bada़ee aaturataake saath pratyek vriksh, lata, patr, pushp aur phalonse tatha pashu-pakshiyonse poochhatee hai ki 'ab shreeraam kitanee door hain, yahaan kab pahunchenge?' praatahkaal kahatee hai ki bhagavaan aaj sandhyaako aayenge. saayankaal phir kahatee hai, kal savere to avashy padhaarenge. kabhee gharake baahar jaatee hai, kabhee bheetar aatee hai. kaheen mere raamake komal charan kamalonmen chot n lag jaay, isee chintaase baara-baar raasta saaph karatee aur kaante kankada़onko buhaaratee hai. gharako nity govar - gomootrase leepa-potakar theek karatee hai. nit nayee mittee-gobarakee chaukee banaatee hai. kabhee chamakakar uthatee hai, kabhee baahar jaatee hai aur sochatee hai, bhagavaan baahar a hee gaye honge. vanamen jis peda़ka s phal sabase adhik susvaad aur meetha lagata hai, vahee apane raamake liye bada़e chaavase rakh chhoda़tee hai. is prakaar shabaree un raajeevalochan raamake shubh darshanakee utkanthaase 'raamaagamanakaankshayaa' paagal see ho gayee hai. sookhe patte vrikshonse jhada़kar neeche girate hain to unake shabdako shabaree apane priy raamake paironko aahat samajhakar dauda़tee hai. is tarah aathon pahar usaka chitt shreeraamamen rama rahane laga, parantu raam naheen aaye. ek baar munibaalakonne kahaa- 'shabaree! tere raam a rahe hain.' phir kya thaa. ber aadi phalonko aanganamen rakhakar vah dauda़ee sarovarase jal laaneke liye. premake unmaadamen use shareerakee sudhi naheen thee ek rishi snaan karake laut rahe the. shabareene unhen dekha naheen aur unase usaka sparsh ho gayaa. muni bada़e kruddh hue. ve bole-'kaisee dushta hai! jaana-boojhakar hamalogonka apamaan karatee hai. shabareene apanee dhun men kuchh bhee naheen suna aur vah sarovarapar chalee gayee. rishi bhee punah snaan karaneko usake peechhe-peechhe gaye. rishine jyon hee jalamen pravesh kiya, tyon hee jalamen keeda़e pada़ gaye aur usaka varn rudhira-sa ho gayaa. itanepar bhee unako yah jnaan naheen hua ki yah bhagavadbhaktiparaayana shabareeke tiraskaaraka phal hai. idhar jal lekar shabaree pahunchane hee naheen paayee thee ki doorase bhagavaan shreeraam 'meree shabaree kahaan hai?" poochhate hue dikhaayee diye. yadyapi anyaany muniyonko bhee yah nishchay tha ki bhagavaan avashy padhaarenge, phir bhee unakee aisee dhaarana thee ki ve sarvapratham hamaare hee aashramonmen padaarpan karenge. parantu deenavatsal bhagavaan shreeraamachandr jab pahale unake yahaan n jaakar shabareekee mandha़eyaaka pata poochhane lage, tab un tapobalake abhimaanee muniyonko bada़a aashchary huaa. shavareeke kaanonmen bhee saral rishibaalakonke dvaara yah baat pahunchee. shreeraamaka apane prati itana anugrah dekhakar shabareeko jo sukh hua, usakee kalpana kaun kar sakata hai.

itanemen hee bhagavaan shreeraam lakshmanasahit shabareeke aashramamen pahunche —
sabaree dekhi raam grihan aae. muni ke bachan samujhi jiy bhae . sarasij lochan baahu bisaala jata mukut sir ur dhanamaala .. syaam gaur sundar dou bhaaee sabaree paree charan lapataaee.. 1 prem magan mukh vachan n aayaa. puni puni pad saroj sir naava (raamacharitamaanasa)

aaj shabareeke aanandaka paar naheen hai. yah premamen pagalee hokar naachane lagee. haathase taal de-dekar nrity karanemen vah itanee magr huee ki use apane uttareey vastratakaka dhyaan naheen raha, shareerakee saaree sudha-budh jaatee rahee. is tarah shabareeko aanandasaagaramen niman dekhakar bhagavaan bada़e hee sukhee hue aur unhonne musakaraate hue lakshmanakee or dekhaa. tab shreelakshmanajeene hansate hue gambheer svarase kaha ki 'shabaree! kya too naachatee hee rahegee? dekh shreeraam kitanee der khaड़e hain? kya inako baithaakar too inaka aatithy naheen karegee?" in shabdonse shavareeko chet hua aur us dharmaparaayana taapasee siddha sannyaasineene dheemaan shreeraama-lakshmanako dekhakar unake charanonmen haath joda़kar pranaam kiya aur paady, aachaman aadise unaka poojan kiyaa. (vaa0 raa0 3.74 6-7)

saadar jal le charan pakhaare puni sundar aasan baithaare ..

bhagavaan shreeraam us dharmanirata shabareese poochhane laage tapodhane! tumane saadhanake samast vipar to vijay paayee hai? tumhaara tap to badha़ raha hai? tumane kop aur aahaaraka sanyam to kiya hai? chaarubhaashini! tumhaare niyam to sab baraabar paalan ho rahe hain? tumhaare manamen shaanti to hain? tumhaaree guruseva saphal to ho gayee? ab tum kya chaahatee ho?' (vaa0 raa0 3.74 8-9)

shreeraamake ye vachan sunakar vah siddhapurushonmen maany vriddha taapasee bolee- bhagavan! aap mujhe 'siddhaa' 'siddhasammataa' 'taapasee' aadi kahakar lajjit n keejiye. mainne to aaj aapake darshanase hee janm saphal kar liya hai. he bhagavan! aaj aapake darshanase mere sabhee tap siddh ho gaye hain, mera janm saphal ho gayaa. aaj meree guruonkee pooja saphal ho gayee; mera tap saphal ho gayaa. he purushottama! aap devataaonmen shreshth raamakee kripaase ab mujhe apane svargaapavargamen koee sandeh naheen rahaa.
( vaa0 raa0 3 . 74 . 11-12 )

shabaree adhik naheen bol sakee. usaka gala premase rundh gayaa. thoda़ee der chup rahakar phir bolee 'prabho! aapake liye sangrah kiye hue kanda-mool phalaadi to abhee rakhe hee hain. bhagavan! mujh anaathineeke phalonko grahanakar mera manorath saphal keejiye.' yon kahakar shabaree phalonko laakar bhagavaan‌ko dene lagee aur bhagavaan bada़e premase pavitr prem - rasase poorn un phalonkee baara-baar saraahana karate hue unhen khaane lage.

padmapuraanamen bhagavaan vyaasajeene kaha hai —

phalaani ch supakvaani moolaani madhuraani ch .
svayamaasvaady maadhuryan pareekshy paribhakshy ch .. pashchaannivedayaamaas raaghavaabhyaan dridhavrata .
phalaanyaasvaady kaakutsthastasyai muktin paraan dadau ..

shabaree vanake pake hue mool aur phalonko svayan chakh chakhakar pareeksha karake bhagavaan‌ko dene lagee. * jo atyant madhur phal hote vahee bhagavaan‌ke nivedan karatee aur bhagavaan maano kaee dinonke bhookhe hon, aise chaav aur bhaavase unako paane lage.

ber ber ber lai saraahen ber ber bahu,

'rasikabihaaree' det bandhu kahan pher pher .

chaakhi chaakhi bhaakhan yah vaahoo ten mahaan meetho,

lehu to lakhan yon bakhaanat hain her her ..

ber ber deveko sabaree suber bera

tok raghubeer ber ber taahi ter ter

gher jani laao ber ber jani laao ber,

ther jani laao ber laao kahen gher bera..

yahee naheen, bhagavaan shreeraaghavendr shabareejeeke in premasudha rasapoorn phalonka svaad kabhee naheen bhoole gharamai, gurujeeke yahaan, mitronke gharapar, sasuraalamen- jahaan kaheen inaka svaagata-satkaar hua, bhojan karaaya gaya, vaheen ye shabareeke phalonkee saraahana karana naheen bhoole-

ghar, gurugrirh, priyasadan, saasure bhai jab jahan pahunaaee.

tab t kahi sabaree ke phalani ko ruchi maadhuree n paaee ..

astu, is tarah bhaktavatsal bhagavaanke param anugrahase shabareene apanee manogat abhilaasha poorn huee jaanakar param prasannata laabh kee. tadanantar vah haath joda़kar saamane khada़ee ho gayee. prabhuko dekha-dekhakar usakee preeti saritaamen atyant baadha़ a gayee. usane kaha kehi vidhi astuti karon tumhaaree.

adham jaati main jada़mati bhaaree..

adham te adham adham ati naaree.

tinh mahan main matimand adhaaree ..

(raamacharitamaanasa) aatantraanaparaayan patitapaavan bhaktavatsal shreeraamane uttaramen kaha, 'bhaamini! tum meree baat suno. main ekamaatr bhaktika naata maanata hoon. jo meree bhakti karata hai, vah mera hai aur main usaka hoon. jaati-paanti, kul, dharm, bada़aaee, dravy, bal, kutumb, gun, chaturaaee-sab kuchh ho; par yadi bhakti n ho to vah manushy bina jalake baadalonke samaan shobhaaheen aur vyarth hai.'

adhyaatmaraamaayan men bhagavaan shreeraam kahate hain -

punstve streetve vishesho va jaatinaamaashramaadayah .

n kaaranan maddhajane bhaktirev hi kaaranam ..

yajnadaanatapobhirva vedaadhyayanakarmabhih .

naiv drashtumahan shakyo madbhaktivimukhaih sada ..

(3 . 10 . 20-21)

'purush stree ya anyaany jaati aur aashram aadi mere bhajanamen kaaran naheen hain; keval bhakti hee ek kaaran hai.'
'jo meree bhaktise vimukh hain, yajn, daan, tap aur vedaadhyayan karake bhee ve mujhe naheen dekh sakate.' yahee ghoshana bhagavaanne gotaamen kee hai.

isake baad bhagavaanne shabareeko navadha bhaktika svaroop batalaaya aur kahaa-

navadha bhagati kahaun tohi paaheen.

saavadhaan sunu dharu man maaheen ..

pratham bhagati santanh kar sangaa

doosari rati mam katha prasanga ..

guru pad pankaj seva teesari bhagati amaan .

chauth bhagati mam gun gan karai kapat taji gaan ..

mantr jaap mam dridha़ visvaasaa

pancham bhajan so bed prakaasa ..

chhath dam seel birati bahu karama .

nirat nirantar sajjan dharama ..

saataven sam mohimay jag dekhaa.

moten sant adhik kari lekha ..

jathaalaabh santoshaa.

sapanehun nahin dekhada़ paradosha ..

aathava

navam saral sab san chhalaheenaa.

mam bharos hiy harash n deenaa

nav mahun ekada़ jinh ke hoee.

naari purush sacharaachar koee ..

soi atisay priy bhaamini moren.

sakal prakaar bhagati driढ़ toren ..

jogi vrind duralabh gati joee.

to kahun aaju sulabh bhai soee ..

usee samay dandakaaranyavaasee anek rishi-muni shabareejeeke aashram men a gaye. maryaadaapurushottam bhagavaan shreeraam aur lakshmanane khada़e hokar muniyonka svaagat kiya aur unase kushal prashn kiyaa. sabane uttaramen yahee kaha 'raghushreshtha! aapake darshanase ham sab nirbhay ho gaye hain.'

tvaddarshanaad raghushreshth jaataah smo nirbhaya vayam .. "prabhee ham bada़e aparaadhee hain. is param bhaktimatee | shabareeke kaaran hamane matanga-jaise mahaanubhaavaka tiraskaarakiyaa. yogiraajonke liye bhee jo param durlabh hain-aise aap saakshaat naaraayan jisake gharapar padhaare hain, vah bhaktimatee shabaree sarvatha dhany hai. hamane bada़ee bhool kee.' is prakaar sab rishi-muni pashchaattaap karate hue bhagavaanse vinay karane lage. aaj dandakaaranyavaasee jnaanaabhimaaniyonkee aankhen khuleen.

'hamaare teen janmonko (ek garbhase, doosare upanayanase aur teesare yajnadeekshaase), vidyaako, brahmacharyavratako, bahut jaananeko, uttam kulako, yajnaadi kriyaaonmen chatur honeko baara-baar dhikkaar hai; kyonki ham shreeharike vimukh hain. nihsandeh bhagavaankee maaya bada़e-bada़e yogiyonko mohit kar detee hai. aho! ham logonke guru braahman kahalaate hain, parantu apane hee sachche svaarthase (harikee bhaktimen) chook 'gaye.' astu .

rishi-muniyaanko pashchaattaap karate dekhakar shreelakshmanajeene unake tapakee prashansa karake unhen kuchh saantvana dee. tadanantar ek rishine kahaa-'sharanaagatavatsala! yahaanke sundar sarovarake jalamen keeda़e kyon pada़ rahe hain tatha vah rudhir sa kyon ho gaya hai?' lakshmanajeene hansate hue kahaa-
'matang munike saath dvesh karane tatha shabaree jaisee raamabhakta saadhveeka apamaan karaneke kaaran aapakeabhimaanaroopee durgunase hee yah sarovar is dashaako praapt ho gaya hai.'

matangamunividveshaad raamabhaktaavamaanatah l

jalametaadrishan jaatan bhavataamabhimaanatah ..

kuchh var maanga.' shabareene kahaa-

isake phir poorvavat honeka ek yahee upaay hai ki shabaree ek baar phirase usaka sparsh kare. bhagavaan‌kee aajnaase shabareene jalaashayamen pravesh kiya aur turant hee jal poorvavat nirmal ho gayaa. yah hai bhaktonkee mahima ! bhagavaanne prasann hokar phir shabareese kaha ki 'too kuchh var maanga.' shabareene kahaa-
yattvaan saakshaatprapashyaami neechavanshabhavaapyaham l

tathaapi yaache bhagavanstvayi bhaktirdridha mam ..

'main atyant neech kulamen janm lenepar bhee aapaka saakshaat darshan kar rahee hoon, yah kya saadhaaran anugrahaka phal hai; tathaapi main yahee chaahatee hoon ki aapamen meree dridha़ bhakti sada banee rahe.' bhagavaanne hansate hue kahaa- 'yahee hogaa.'

shabareene paarthiv deh parityaag karaneke liye bhagavaankee aajna chaahee, bhagavaanne use aajna de dee. shabaree munijanonke saamane hee deh chhoda़kar param dhaamako prayaan kar gayee aur sab or jaya-jayakaarakee dhvani hone lagee.

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तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
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जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम
तेरा पल पल बिता जाए रे
मुख से जप ले नमः शवाए
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
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राम एक देवता, पुजारी सारी दुनिया ॥
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राधा नाम में कितनी शक्ति है, इस राह पर
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
मेरी बाँह पकड़ लो इक बार,सांवरिया
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श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम
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श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार
एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
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अमृत है हरी नाम जगत में,
हम प्रेम दीवानी हैं, वो प्रेम दीवाना।
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अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
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तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
राधा राधा राधा राधा
आज बृज में होली रे रसिया।
होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥
मेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा
मुझे तेरा ही सहारा महारानी, चरणों से
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हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
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कृपा करो भानु दुलारी, श्री राधे बरसाने
राधा नाम की लगाई फुलवारी, के पत्ता
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जय हो जय हो तेरी जय हो हनुमान,
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कहां से आए और कहां तुम्हें जाना,
राम लखन से पूछे हनुमाना,
हे त्रिलोकीनाथ महादेव शिव शंकर,
नाथों के नाथ महादेव शिव शंकर,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते रहो,
मन को विषयो के विष से बचाते रहो,
शंभू शरणे पड़ी मांगू घड़ी रे घड़ी दुख
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