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परमहंस स्वामी श्रीसियारामजी महाराज की मार्मिक कथा
परमहंस स्वामी श्रीसियारामजी महाराज की अधबुत कहानी - Full Story of परमहंस स्वामी श्रीसियारामजी महाराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [परमहंस स्वामी श्रीसियारामजी महाराज]- भक्तमाल


'कल्याण' के पाठक स्वामी श्रीसियारामजी महाराजके नामसे परिचित ही हैं। 'कल्याण' के पिछले अङ्कों में उनके सम्बन्धमें समय-समयपर लेख छपते रहे हैं। इस लेखमें महाराजजीके जीवनकी कुछ शिक्षाप्रद घटनाओं तथा कतिपय उपदेशोंका ही संक्षेपसे उल्लेख किया जायगा।

शिक्षाकालमें भी जीवनके उद्देश्यकी चिन्ता आपके मित्र श्री अयोध्याप्रसादजीको एक दिन पता चला कि महात्माजी (आपके सच्चे व्यवहार और आत्म-कल्याणकी दृढ़ जागरूक भावनासे प्रभावित आपके साथी इसी नामसे आपको स्मरण करते थे) प्रात:कालसे रो रहे हैं। कारण पूछनेपर उत्तर मिला कि 'संसारकी समस्याका हल नहीं सूझता कि ईश्वरने हमें इस सृष्टि में क्यों भेज दिया। कष्ट सहते हुए भी इसका मर्म हम नहीं समझते और अपने कर्तव्य तथा लक्ष्यका भी कुछ पता नहीं चलता।' अपने जीवनके लक्ष्यको पा लेनेकी तीव्र भावना जिसके मनमें बचपनमें होती है, वही आगामी जीवनमें आत्मकल्याणके पथपर अग्रगामी होकर प्रभुभक्त बनता है। विद्यार्थी जीवनमें भी आपका सत्सङ्गके लिये उत्साह तथा प्रेम था। जब भी समय मिलता, साधुसङ्गमें उपस्थित हो जाते थे। सत्सङ्ग तथा तीर्थयात्रा आपकेजीवनकी प्यारी वस्तुएँ थीं।

कर्तव्यपरायणता

कपूरथला कालेजमें जब आप शिक्षकका कार्य करते. थे, उस समय एक उच्च राज्यकर्मचारीने आपसे प्रार्थना की कि 'आप मेरे पुत्रोंको प्राइवेट ट्यूशनके रूपमें पढ़ायें।' आपने कहा कि 'प्राइवेट ट्यूशनमें मुझे जो शक्ति व्यय करनी पड़ेगी, कालेजकी पढ़ाईमें उतनी शक्ति कम लगेगी; यह ईमानदारी नहीं है। कालेजसे जो वेतन मिलता है, उसको भोगते हुए बाहरी कार्यमें शक्तिका व्यय करना पाप है।' प्रिंसिपलके यह कहनेपर कि 'मैं आपको आज्ञा देता हूँ, आप पढ़ायें; अब आपके ऊपर इसकी जिम्मेदारी नहीं रही।' वे विद्यार्थी उनके पास पढ़नेके लिये आते रहे। इस बातपर आश्चर्य हुआ कि वे विद्यार्थी प्रो0 सियारामके उसी पत्रमें अनुत्तीर्ण हो गये, जिसके कि वे स्वयं परीक्षक थे। आपने कहा कि 'जब विद्यार्थी कमसमझ थे, तब उन्हें अनुत्तीर्ण होना ही था । बदनामीके भयसे मैं उन्हें उत्तीर्ण करके कैसे पापका भागी बन सकता था । '

ईश्वरविश्वास

एक बार एक टीलेपर यह विचार लेकर बैठ गये। | कि यहाँसे हिलेंगे नहीं; देखें, भगवान् कैसे शरीरकी रक्षाकरता है। किसीको सूचना नहीं दी। वहाँ पहले एक आदमी आया, जो खिचड़ी पकनेको रख गया। परंतु वह खिचड़ी कच्ची रह गयी। पर आपका चित्त कुछ भी। करनेका नहीं था। पीछे दूसरा आदमी आया, वह घरसे खिचड़ी बनाकर ले आया। उसके पश्चात् वह वहीं भोजन पहुँचा जाया करता था ।

निरभिमानता

जब कभी सत्सङ्ग आते और उन्हें भजनमें प्रवृत्त किया जाता, तब उनका शरीर क्रियाओंसे सूक्ष्म तथा दुर्बल हो जाता था। ऐसी दशामें आप सर्वदा अपने शिष्योंकी सेवा किया करते थे। उन्हें रोटी बनाकर खिलाते थे। ऐसा अनुपम तथा निरभिमानात व्यवहार था। शिष्यको मित्र समझना, उसके साथ समानताका व्यवहार ही नहीं, अपितु समयपर सेवा भी करना, नम्रता रखना, कभी बड़े नहीं बनना उनका सबके प्रति ऐसा ही वर्ताव देखा गया। कहा करते थे कि 'हमें कोई शिष्य नहीं भासता, भाग्यानुसार अपनी-अपनी सेवा सभी ले रहे हैं।' यह भी कहा करते थे कि 'सब संतोंके दर्शन करने चाहिये। पता नहीं किसके प्रसादसे संसारके दुःखोंका निपटारा हो जाय। अथवा किस महात्माकी वातसे हमारे हृदयकी ग्रन्थि कट जाय। कभी किसी महात्माकी बात जँच जाती है, समय ऐसा होता है; अथवा किसीकी शैली ऐसी होती है कि हृदयमें बात जँच जाती है।" एकाग्रता तथा तालीनता कई बार आप गङ्गाकी ओर मुख करके बाह्य जगत्‌को भूले हुए बैठे रहते थे। पीछे कई लोग आकर खड़े हो जाते थे और बहुत देरतक उन्हें बोध भी नहीं होता था कि कोई व्यक्ति आया है। सामान तैयार है। लारी लानेके लिये आदमी गया।

एक स्थानसे प्रस्थान करना है कि महाराजजी समाधिस्थ हो गये। आने-जानेवाले सज्जनोंके पदाघातोंसे भी ध्यान नहीं टूटता। बहुत देरके बाद जागते थे।

जहाँ भी रहते, उनकी ऐसी मानसिक स्थिति हमेशा देखने में आती थी।

यम-नियमका पालन आवश्यक है

जब कभी कोईभजनमें लगाये जानेका आग्रहकरता था, तब आप कहा करते कि 'किसीको भजनमें प्रवृत करनेमें संकोच होता है, क्योंकि व्यवहार शुद्ध न होनेसे उन्नति नहीं होती। यदि पहले कुछ उन्नति हो भी जाय तो आगे गाड़ी रुक जाती है।' आप यम-नियमके पालनपर बहुत अधिक बल देते थे। उनके सम्पर्क में आनेवाले अथवा उनके उपदेशोंको सुननेवाले सज्जनोंके मनपर यह प्रभाव पड़ता कि वे वैराग्य तथा व्यवहार शुद्धिपर अधिक बल देते थे। इसका मुख्य कारण यही प्रतीत होता है कि वर्तमान कालमें आचार-व्यवहारकी शुद्धि तथा वैराग्यपर जनसाधारणको आस्था नहीं है। साधक भी इन दो अत्युपयोगी साधनोंकी ओर ध्यान न देकर अन्य सरल उपायोंसे लक्ष्य प्राप्तिकी आशा करते हैं।

शुद्ध मनपर बाह्य घटनाओंका प्रभाव आपके रहनेके स्थानकी खिड़कीपर एक कपड़ेका पर्दा लटकाया गया तो आपने कहा कि इस पर्देसे खूनकी गन्ध आती है। कपड़ा नया था। पीछे पता चला कि जो | पैसा उस कपड़ेको खरीदनेमें खर्च हुआ था, वह खूनके मुकद्दमेसे आया था।

हवन करते समय एक बार जो लकड़ियाँ आय, उन्हें छूने तथा पकड़नेमें घृणा तथा घबराहटके भाव उदय होते थे। कारण खोज करनेपर पता चला कि ये लकड़ियाँ एक ऐसे मकानकी छतमेंसे आयी हैं, जहाँ बहुत दिन पहले एक हत्या हुई थी।

एक छोटी बच्चीके आग्रह करनेपर उसे ध्यान करनेके लिये अपने पास बैठाया। थोड़ी ही देर में वह बोली कि मुझे दूसरे कमरेकी वस्तुएँ दीख रही हैं।' महाराजजीने इस बातकी सत्यताकी खोज करनेके लिये अपने आप जाकर उस कमरेकी चीजोंकी व्यवस्थामें कुछ उलट-फेर कर दिया और वापस आकर उस लड़कीसे पूछा तो उसने आँखें बंद किये हुए ही बता दिया कि अब वस्तुओंके क्रममें अमुक परिवर्तन हो 4 -गया है।' महापुरुषोंके अपने प्रभावसे ही ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं; परंतु उन्हें इसका कोई मान अथवा अभिमान नहीं होता।

प्रार्थनाकी स्वीकृति

रुद्रनाथ में ठहरे हुए आपने एक बार श्रीरुद्रनाथजीसेप्रार्थना की कि 'यदि हमारा कोई भोग हो तो वह भोग यहीं समाप्त कर दीजिये।' उसी दिन लकड़ी काटते समय आप लुढ़क गये और पर्याप्त चोट आयी। सिरसे खून भी बहुत निकला। परंतु आप प्रसन्न थे कि श्रीरुद्रनाथजीने हमारी प्रार्थना स्वीकार कर ली।

स्वतन्त्रताकी शिक्षा सत्संगियोंको प्रायः उपदेश देते थे कि भोजन बनाना आदि सब कार्य अपने-आप करनेका अभ्यास होना चाहिये। स्वयं भी अपने हाथसे ही प्रायः भोजन बनाते, थे। रोगी होनेपर भी शरीरकी सफाई, उपवास आदि तथा त्रिफला, बनफशा आदि ओषधियोंसे ही कार्य चलाते थे। डाक्टर या वैद्यकी बहुत कम सहायता लेते थे। सत्संगियों को भी ऐसा ही करनेका उपदेश भी करते थे और उसे अपने व्यवहारसे जँचाते थे।

कुछ उपदेश – न्याययुक्त व्यवहार तथा ईश्वरप्रदत्त फलपर सन्तोष

कोई मनुष्य सबको खुश नहीं कर सकता। वह सिर्फ ईश्वरके सामने साफ दिल रह सकता है। ईश्वर उसके सलूकका फल जरूर देंगे। हानि-लाभ सब अपने कमोंके मुताबिक होता है। ईश्वरके व्यापर भरोसा रखकर सब करना चाहिये। जब किसीके साथ काम पड़ता हो, तब साफ तौरपर शर्तें तय करो और बाद दिल साफ रखते हुए ईश्वरको हाजिर नाजिर समझकर काम करते जाओ। इतनेपर अगर दूसरा खुश न हो तो तुम्हारा कोई कसूर नहीं।

सम्बन्धियोंमें यथार्थदृष्टि

मुसाफिरको दृष्टिसे देखनेपर सब सम्बन्ध कल्पित मालूम होते हैं। ट्रेनके डिब्बेमें बहुत से आदमी सवार रहते हैं, यात्रा समाप्त होनेपर उतरते जाते हैं। जबतक रहते हैं, एक-दूसरेकी सहायता करते हैं, मित्रता हो जाती है। मगर चले जानेपर कोई मोह नहीं करता। ऐसे ही विचार गृहस्थीको रखने चाहिये। संयोग-वियोग | होनेका नाम ही सृष्टि है। अपना कर्तव्य करते जाओ इतना ही सम्बन्ध है; और कोई सम्बन्ध नहीं।

कर्मका लक्ष्य ईश्वर प्रसन्नता

सेवा सबको करते जाओ और सृष्टिका नाटक देखतेरहो। फिरसे देखनेकी इच्छा न रहने पाये; नहीं तो फिर यह झगड़ा आकर खड़ा हो जायगा। बाजीगरकी वृत्ति | रहे। मदारी खेल दूसरोंको दिखलाता है परंतु अपने-आप उसमें आसक्त नहीं होता। उसका उद्देश्य केवल लोगोंको प्रसन्न करके पैसा कमाना होता है। इसी तरह अगर केवल ईश्वरको प्रसन्न करना लक्ष्य हो तो ठीक है; वे आप ही संभाल लेंगे।

गृहस्थीको शिक्षा

1 स्त्रीको हिंदी पढ़ाना चाहिये, जिससे वह धर्मग्रन्थ पढ़ सके।

2- स्त्रीको कहना कि मैं तुमसे तब प्रसन्न होऊँगा, जब तुम हर प्रकारसे सास-ससुरकी तन मनसे सेवा करोगी।

3- विषयभोगमें बहुत न फँसना, ब्रह्मचर्यके नियमका पालन करना चाहिये।

4- लोगोंसे व्यावहारिक वार्तालाप जरूरतसे ज्यादा न करे और न बहुत मिले-जुले। 5- जहाँतक हो, दिमागी ताकतका संग्रह रखे ।

6- गृहस्थी अपना कर्तव्य करते हुए तमाशा देखनेवाला बनने की कोशिश करे। दूसरोंके योग तथा बुद्धिको पलटना आपके अधीन नहीं, इसकी रग ईश्वरके हाथमें है। आप सिर्फ अपने कर्त्तव्यके उत्तरदाता हैं।

7- सास-बहूके झगड़ेको निपटाना कठिन है। कुछ न कुछ कसूर दोनों तरफ होता है। 8- धर्मशास्त्र के अनुसार पंद्रह प्रतिशत अपनी आमदनीका गृहस्थीको धर्मार्थ खर्च करना चाहिये।

स्त्रीको शिक्षा

1- पतिकी सेवा करना, उनको सन्तुष्ट रखना और उनकी आज्ञा लेकर भजनमें प्रवृत्त होना।

2- आहार सात्त्विक करना और स्वादको जीतना। 3- व्यवहारको सरल और निष्कपट बनाना।

4-मोटा कपड़ा पहनना और शृङ्गारको छोड़ना। 5- विधवाएँ अपने बाल कटवायें। चकी तथा चर्चा चलायें।

6- पतिके आज्ञामें रहना। अगर पति कोई ऐसी बात | करे, जो धर्मशास्त्र के प्रतिकूल हो, तो मधुर वाणीसे उसेसमझा दें।

• परमहंस स्वामी श्री

निष्पाप जीवन बितानेके नियम

1- अहिंसा - मन-वचन-कर्मसे किसीको दुःख न देना। यदि अपने प्राण और धर्मकी रक्षाके लिये धर्मानुसार किसीको दुःख पहुँच जाय तो दोष नहीं। या दूसरोंकी भलाई करनेमें उसको या दूसरेको शास्त्रानुसार दुःख पहुँच जाय तो दोष नहीं।

2- सत्य - जैसा दिलमें भाव हो, वैसा ही करना या कहना। भाव प्रकट करनेमें साफ शब्द बोलने चाहिये। यदि दूसरेको हानि पहुँचाने के लिये झूठ बोला जातो बहुत दोष लगता है। अपनी जान, माल और धर्मकी रक्षाके लिये झूठ बोलनेमें थोड़ा या बहुत कम दोष लगता है।

3- चोरी-किसीका हक छिपाकर या चालाकीसे या जबर्दस्ती लेना।

4- ब्रह्मचर्य - मन, वचन, कर्मसे पराये पुरुष या स्त्री

या किसी पुरुष या स्त्रीके सङ्गकी इच्छा न रखना। 5-विषय-त्याग - अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध- किसीकी इच्छा न करना।

6- भोजन धार्मिक कमाईका होना चाहिये। रसवाला, चिकना, हृदयको हितकारी, नीरोग रखनेवाला, आयु, बाल और बुद्धिको बढ़ानेवाला होना चाहिये बड़ा चटपटा, तीक्ष्ण, रूखा, कड़वा, बहुत नमकीन और बहुत गरम नहीं होना चाहिये। हृदयमें जलन पैदा करनेवाला, अपवित्र, दुर्गन्धित, बासी और भारी भोजन नहीं करना चाहिये।

7- व्यवहारमें मनको पवित्र रखना चाहिये। मन सरल रहे। छल, कपट, ईर्ष्या, द्वेषसे बचना चाहिये। 8-शरीरकी शुद्धि उसे नीरोग रखनेके लिये जितनी जिस समय आवश्यक समझी जाय, उतनी करनी चाहिये।

9- संसारी और योगका या कोई धर्मका काम करनेपर जितना या जैसा परिणाम हो, उसपर सन्तोष करना चाहिये।

10- सुख-दुःख, मान-अपमान, स्तुति-निन्दा, नेकनामी बदनामी तथा हानि-लाभमें हर्ष शोक नहीं करना चाहिये।
बल्कि विचारना चाहिये कि मेरे पिछले कर्मानुसार जैसा कुछ मेरा भोग था, वैसा ही मेरे सामने आ गया। दूसरा केवल भोग सिद्ध करनेमें निमित्तमात्र है।

11- पढ़नेके लिये कोई धर्मपुस्तक, जिससे

भक्ति, धर्म और वैराग्य बढ़े होनी चाहिये।

12-धर्म-कर्म करते हुए या किसीका उपकार करते हुए ईश्वरसे या संसारसे बदलेकी इच्छा नहीं करनी चाहिये। जिस तरह वे हमारा कल्याण समझेंगे, वैसे ही वे आप ही कर देंगे। भगवानूपर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखते हुए उनकी रजामें राजी रहना चाहिये। शान्ति और वैराग्य

विषयोंसे उपरामता आये बिना मनको शान्ति कहाँ मिल सकती है। प्रभुकी शरणमें वे ही विश्राम पा सकते हैं, जो मायासे विमुख हो चुके हैं। यम-नियम परमावश्यक हैं। पापको छोड़े बिना और शास्त्रानुसार व्यवहारको शुद्ध किये बिना तप और साधन कुछ नहीं चल सकते। प्रायः लोग सिद्धियोंसे आकर्षित होकर योगकी ओर दृष्टि देते हैं, परन्तु यम और नियमके बिना योग निरर्थक है।

प्रश्न-क्या वैराग्यके बिना ब्रह्मप्राप्ति हो सकती है? उत्तर- वह उतनी ही संभव है, जितना पोठपर पत्थरोंको गठरी लेकर पहाड़पर सीधा चढ़ना। विषयोंमें चित्त फँसा होनेसे सारा परिश्रम निष्फल हो जाता है। पहले वैराग्य होना जरूरी हैं।

वैराग्यके बिना अभ्यासमें बहुत पुरुषार्थ करना निरर्थक है। योगकी क्रिया कोई वैराग्यसे बढ़कर फलदायक नहीं हो सकती। कमजोरी और बीमारीमें भी वैराग्यका सहारा रहता है। सत्यके ग्रहण और असत्यके त्यागसे वैराग्यकी प्राप्ति होती है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकारका त्याग करनेसे वैराग्यकी सिद्धि होती है। वैराग्य ही सबसे मुख्य है।

वैराग्य प्राप्तिका उपाय - दोषदृष्टिके बिना पदार्थोंसे वैराग्य होना सम्भव नहीं है। पीतलको सोना मत समझो। गुलाबका फूल गुलाबी दीखता है परंतु दूसरी ओर सफेद है। फूलकी डंडी दूरसे चिकनी दीखती है परंतु छूनेपर खुरदरी निकलती है। विषयोंमें इसी प्रकार धोखे से सुख दीखता है। इसी प्रकार संसारमें बड़ा धोखा है। मनुष्यभ्रममें पड़ा हुआ अनुमानके सहारे धोखा खाता है। यथार्थ बोधसे यह धोखा मिट सकता है।

जिस वस्तुकी प्राप्ति हमारे लिये ठीक न हो, उसका हठसे त्याग करना उचित है। फिर कुछ काल पश्चात् चित्त आप ही उसका चिन्तन छोड़ देगा। बिना हठके कोई काम नहीं हो सकता। विषयोंमें दोषदृष्टि विचार और युक्तिसे पैदा करनी चाहिये।

शारीरिक दुःख शारीरिक कुपथ्यसे और मानसिक दुःख मानसिक कुपथ्यसे उत्पन्न होता है; वह कुपथ्यसे अधिक तेज होता है, शान्त नहीं हो सकता। उसका प्रथम और अन्तिम इलाज परहेज है। शत्रुसे असावधान कभी नहीं होना चाहिये। जो पुरुष चोरोंकी सरायमें रहता है और असावधान सोता है, वह लूटा जाता है।

स्वाद- विजय

भोजन स्वादिष्ट बनाकर नहीं करना चाहिये। सप्ताहमें एक दिन बिना नमक-मसालेका दाल-साग खाय । सोंठ फंकी ले ले, घी पहले पी ले। फिर रूखा फुल्का-दाल खाये। दूधमें मीठा न डाले, जरूरी हो तो मीठा पहले खाकर फिर दूध पी ले। नमक खानेकी जरूरत हो तोनमक पहले खाकर फीका भोजन पीछे खाय ।

धैर्य

यदि किसीको इतना पता चल जाय कि असल विरक्ति ऐसी है और वह लक्ष्यको पकड़कर वहाँ पहुँचनेके लिये अपनी शक्तिके अनुसार चल पड़े और बिना कदम पीछे हटाये आगे ही चलता रहे, तो उसपर ईश्वरकी बड़ी कृपा समझनी चाहिये। ग्रन्थोंको पढ़ लेना तो कठिन बात नहीं है, परंतु उनके अनुसार आचरण करना बड़े धैर्यका काम है। अधीर और विचारशून्य इस मार्गका अधिकारी नहीं है। जो मार खानेसे घबरायेगा नहीं, वह जल्दी सफलता प्राप्त करेगा।

सच्चे जिज्ञासुमें ये गुण होने चाहिये

(1) सच्चा वैराग्य। (2) जीभके स्वादसे हटना । (3) बातका धनी होना। (4) पापसे घृणा (5) स्वास्थ्यको ठीक रखना, कुपथ्य न करना। (6) तन, मन, धन और समयको किफायतसे खर्च करना । (7) व्रत ले तो कष्ट आनेपर भी उसे निभाना । (8) काम . दिखावेसे न करना। (9) अपने रहनेका तथा जीवनका भार दूसरेपर न डालना। (10) इरादेका पक्का रहना।



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musaaphirako drishtise dekhanepar sab sambandh kalpit maaloom hote hain. trenake dibbemen bahut se aadamee savaar rahate hain, yaatra samaapt honepar utarate jaate hain. jabatak rahate hain, eka-doosarekee sahaayata karate hain, mitrata ho jaatee hai. magar chale jaanepar koee moh naheen karataa. aise hee vichaar grihastheeko rakhane chaahiye. sanyoga-viyog | honeka naam hee srishti hai. apana kartavy karate jaao itana hee sambandh hai; aur koee sambandh naheen.

karmaka lakshy eeshvar prasannataa

seva sabako karate jaao aur srishtika naatak dekhateraho. phirase dekhanekee ichchha n rahane paaye; naheen to phir yah jhagada़a aakar khada़a ho jaayagaa. baajeegarakee vritti | rahe. madaaree khel doosaronko dikhalaata hai parantu apane-aap usamen aasakt naheen hotaa. usaka uddeshy keval logonko prasann karake paisa kamaana hota hai. isee tarah agar keval eeshvarako prasann karana lakshy ho to theek hai; ve aap hee sanbhaal lenge.

grihastheeko shikshaa

1 streeko hindee padha़aana chaahiye, jisase vah dharmagranth paढ़ sake.

2- streeko kahana ki main tumase tab prasann hooonga, jab tum har prakaarase saasa-sasurakee tan manase seva karogee.

3- vishayabhogamen bahut n phansana, brahmacharyake niyamaka paalan karana chaahiye.

4- logonse vyaavahaarik vaartaalaap jarooratase jyaada n kare aur n bahut mile-jule. 5- jahaantak ho, dimaagee taakataka sangrah rakhe .

6- grihasthee apana kartavy karate hue tamaasha dekhanevaala banane kee koshish kare. doosaronke yog tatha buddhiko palatana aapake adheen naheen, isakee rag eeshvarake haathamen hai. aap sirph apane karttavyake uttaradaata hain.

7- saasa-bahooke jhagada़eko nipataana kathin hai. kuchh n kuchh kasoor donon taraph hota hai. 8- dharmashaastr ke anusaar pandrah pratishat apanee aamadaneeka grihastheeko dharmaarth kharch karana chaahiye.

streeko shikshaa

1- patikee seva karana, unako santusht rakhana aur unakee aajna lekar bhajanamen pravritt honaa.

2- aahaar saattvik karana aur svaadako jeetanaa. 3- vyavahaarako saral aur nishkapat banaanaa.

4-mota kapada़a pahanana aur shringaarako chhoda़naa. 5- vidhavaaen apane baal katavaayen. chakee tatha charcha chalaayen.

6- patike aajnaamen rahanaa. agar pati koee aisee baat | kare, jo dharmashaastr ke pratikool ho, to madhur vaaneese usesamajha den.

• paramahans svaamee shree

nishpaap jeevan bitaaneke niyama

1- ahinsa - mana-vachana-karmase kiseeko duhkh n denaa. yadi apane praan aur dharmakee rakshaake liye dharmaanusaar kiseeko duhkh pahunch jaay to dosh naheen. ya doosaronkee bhalaaee karanemen usako ya doosareko shaastraanusaar duhkh pahunch jaay to dosh naheen.

2- saty - jaisa dilamen bhaav ho, vaisa hee karana ya kahanaa. bhaav prakat karanemen saaph shabd bolane chaahiye. yadi doosareko haani pahunchaane ke liye jhooth bola jaato bahut dosh lagata hai. apanee jaan, maal aur dharmakee rakshaake liye jhooth bolanemen thoda़a ya bahut kam dosh lagata hai.

3- choree-kiseeka hak chhipaakar ya chaalaakeese ya jabardastee lenaa.

4- brahmachary - man, vachan, karmase paraaye purush ya stree

ya kisee purush ya streeke sangakee ichchha n rakhanaa. 5-vishaya-tyaag - arthaat shabd, sparsh, roop, ras, gandha- kiseekee ichchha n karanaa.

6- bhojan dhaarmik kamaaeeka hona chaahiye. rasavaala, chikana, hridayako hitakaaree, neerog rakhanevaala, aayu, baal aur buddhiko baढ़aanevaala hona chaahiye baड़a chatapata, teekshn, rookha, kada़va, bahut namakeen aur bahut garam naheen hona chaahiye. hridayamen jalan paida karanevaala, apavitr, durgandhit, baasee aur bhaaree bhojan naheen karana chaahiye.

7- vyavahaaramen manako pavitr rakhana chaahiye. man saral rahe. chhal, kapat, eershya, dveshase bachana chaahiye. 8-shareerakee shuddhi use neerog rakhaneke liye jitanee jis samay aavashyak samajhee jaay, utanee karanee chaahiye.

9- sansaaree aur yogaka ya koee dharmaka kaam karanepar jitana ya jaisa parinaam ho, usapar santosh karana chaahiye.

10- sukha-duhkh, maana-apamaan, stuti-ninda, nekanaamee badanaamee tatha haani-laabhamen harsh shok naheen karana chaahiye.
balki vichaarana chaahiye ki mere pichhale karmaanusaar jaisa kuchh mera bhog tha, vaisa hee mere saamane a gayaa. doosara keval bhog siddh karanemen nimittamaatr hai.

11- padha़neke liye koee dharmapustak, jisase

bhakti, dharm aur vairaagy badha़e honee chaahiye.

12-dharma-karm karate hue ya kiseeka upakaar karate hue eeshvarase ya sansaarase badalekee ichchha naheen karanee chaahiye. jis tarah ve hamaara kalyaan samajhenge, vaise hee ve aap hee kar denge. bhagavaanoopar poorn shraddha aur vishvaas rakhate hue unakee rajaamen raajee rahana chaahiye. shaanti aur vairaagya

vishayonse uparaamata aaye bina manako shaanti kahaan mil sakatee hai. prabhukee sharanamen ve hee vishraam pa sakate hain, jo maayaase vimukh ho chuke hain. yama-niyam paramaavashyak hain. paapako chhoda़e bina aur shaastraanusaar vyavahaarako shuddh kiye bina tap aur saadhan kuchh naheen chal sakate. praayah log siddhiyonse aakarshit hokar yogakee or drishti dete hain, parantu yam aur niyamake bina yog nirarthak hai.

prashna-kya vairaagyake bina brahmapraapti ho sakatee hai? uttara- vah utanee hee sanbhav hai, jitana pothapar pattharonko gatharee lekar pahaada़par seedha chadha़naa. vishayonmen chitt phansa honese saara parishram nishphal ho jaata hai. pahale vairaagy hona jarooree hain.

vairaagyake bina abhyaasamen bahut purushaarth karana nirarthak hai. yogakee kriya koee vairaagyase badha़kar phaladaayak naheen ho sakatee. kamajoree aur beemaareemen bhee vairaagyaka sahaara rahata hai. satyake grahan aur asatyake tyaagase vairaagyakee praapti hotee hai. kaam, krodh, lobh, moh, ahankaaraka tyaag karanese vairaagyakee siddhi hotee hai. vairaagy hee sabase mukhy hai.

vairaagy praaptika upaay - doshadrishtike bina padaarthonse vairaagy hona sambhav naheen hai. peetalako sona mat samajho. gulaabaka phool gulaabee deekhata hai parantu doosaree or saphed hai. phoolakee dandee doorase chikanee deekhatee hai parantu chhoonepar khuradaree nikalatee hai. vishayonmen isee prakaar dhokhe se sukh deekhata hai. isee prakaar sansaaramen bada़a dhokha hai. manushyabhramamen pada़a hua anumaanake sahaare dhokha khaata hai. yathaarth bodhase yah dhokha mit sakata hai.

jis vastukee praapti hamaare liye theek n ho, usaka hathase tyaag karana uchit hai. phir kuchh kaal pashchaat chitt aap hee usaka chintan chhoda़ degaa. bina hathake koee kaam naheen ho sakataa. vishayonmen doshadrishti vichaar aur yuktise paida karanee chaahiye.

shaareerik duhkh shaareerik kupathyase aur maanasik duhkh maanasik kupathyase utpann hota hai; vah kupathyase adhik tej hota hai, shaant naheen ho sakataa. usaka pratham aur antim ilaaj parahej hai. shatruse asaavadhaan kabhee naheen hona chaahiye. jo purush choronkee saraayamen rahata hai aur asaavadhaan sota hai, vah loota jaata hai.

svaada- vijaya

bhojan svaadisht banaakar naheen karana chaahiye. saptaahamen ek din bina namaka-masaaleka daala-saag khaay . sonth phankee le le, ghee pahale pee le. phir rookha phulkaa-daal khaaye. doodhamen meetha n daale, jarooree ho to meetha pahale khaakar phir doodh pee le. namak khaanekee jaroorat ho tonamak pahale khaakar pheeka bhojan peechhe khaay .

dhairya

yadi kiseeko itana pata chal jaay ki asal virakti aisee hai aur vah lakshyako pakada़kar vahaan pahunchaneke liye apanee shaktike anusaar chal pada़e aur bina kadam peechhe hataaye aage hee chalata rahe, to usapar eeshvarakee bada़ee kripa samajhanee chaahiye. granthonko padha़ lena to kathin baat naheen hai, parantu unake anusaar aacharan karana bada़e dhairyaka kaam hai. adheer aur vichaarashoony is maargaka adhikaaree naheen hai. jo maar khaanese ghabaraayega naheen, vah jaldee saphalata praapt karegaa.

sachche jijnaasumen ye gun hone chaahiye

(1) sachcha vairaagya. (2) jeebhake svaadase hatana . (3) baataka dhanee honaa. (4) paapase ghrina (5) svaasthyako theek rakhana, kupathy n karanaa. (6) tan, man, dhan aur samayako kiphaayatase kharch karana . (7) vrat le to kasht aanepar bhee use nibhaana . (8) kaam . dikhaavese n karanaa. (9) apane rahaneka tatha jeevanaka bhaar doosarepar n daalanaa. (10) iraadeka pakka rahanaa.

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ये सारे खेल तुम्हारे है
जग कहता खेल नसीबों का
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
होरी का तोहे बड़ा चाव...
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार
साँवरिया ऐसी तान सुना,
ऐसी तान सुना मेरे मोहन, मैं नाचू तू गा ।
आप आए नहीं और सुबह हो मई
मेरी पूजा की थाली धरी रह गई
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
पारवती भी मना कर ना माने त्रिपुरारी,
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
मेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा
मुझे तेरा ही सहारा महारानी, चरणों से
तुम रूठे रहो मोहन,
हम तुमको मन लेंगे
जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री
दासी की झोली भर दो लाडली श्री राधे॥
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
आँखों को इंतज़ार है सरकार आपका
ना जाने होगा कब हमें दीदार आपका
कारे से लाल बनाए गयी रे,
गोरी बरसाने वारी
सब हो गए भव से पार, लेकर नाम तेरा
नाम तेरा हरि नाम तेरा, नाम तेरा हरि नाम
शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
राधे राधे बोल, श्याम भागे चले आयंगे।
एक बार आ गए तो कबू नहीं जायेंगे ॥
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
श्याम बंसी ना बुल्लां उत्ते रख अड़ेया
तेरी बंसी पवाडे पाए लख अड़ेया ।
रसिया को नार बनावो री रसिया को
रसिया को नार बनावो री रसिया को
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
लाडली अद्बुत नज़ारा तेरे बरसाने में
लाडली अब मन हमारा तेरे बरसाने में है।
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
ना मैं मीरा ना मैं राधा,
फिर भी श्याम को पाना है ।

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हंस वाहिनी सुर की देवी,
तेरे शरन मे आए हैं,
छोड़ जगत के काम छोड़ सीना जोरी रे,
ले लो हरि का नाम जिंदगी थोड़ी है...
मिश्री से मीठो नाम हमारी राधा रानी को
राधा रानी को पटरानी को ॥
मेरी क़िस्मत का सितारा, आपके हाथों में
आपके हाथों में है, आपके हाथों में है...
हनुमान तेरे जैसा कोई लाल नहीं देखा,
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