भगवान्की सखी आदर्श भगवद्-विश्वासकी मूर्ति | देवी द्रौपदी पाञ्चालनरेश राजा द्रुपदकी अयोनिजा कन्या थीं। इनकी उत्पत्ति यज्ञवेदीसे हुई थी। इनका रूप- f लावण्य अनुपम था। अङ्गकान्ति श्याम सुन्दर होनेसे इनको लोग 'कृष्णा' भी कहते थे। इनके शरीरसे तुरंतके खिले हुए कमलकी मधुर सुगन्ध निकलकर एक कोसतक फैलती रहती थी। इनके प्राकट्यके समय आकाशवाणी हुई थी- 'देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये क्षत्रियोंके संहारके उद्देश्यसे इस रमणी-रत्नका प्राकट्य हुआ है। इसके कारण कौरवोंको बड़ा भय होगा।' पूर्वजन्ममें दिये हुए भगवान् शङ्करके वरदानसे इन्हें इस जन्ममें पाँच पति प्राप्त हुए। अकेले अर्जुनके द्वारा स्वयंवरमें जीती जानेपर भी माता कुन्तीकी आज्ञासे इन्हें पाँचों भाइयोंने ब्याहा था।
द्रौपदी उच्च कोटिकी पतिव्रता एवं भगवद्भक्ता थीं। इनकी भगवान् श्रीकृष्णके चरणोंमें अविचल प्रीति थी। ये उन्हें अपना सखा, रक्षक, हितैषी एवं परम आत्मीय तो मानती ही थीं; उनकी सर्वव्यापकता एवं सर्वशक्तिमत्ता में भी इनका पूर्ण विश्वास था। जब कौरवोंकी सभामें दुष्ट दुःशासनने इन्हें नंगी करना चाहा और सभासदोंमेंसे किसीका साहस न हुआ कि इस अमानुषी अत्याचारको रोके, उस समय अपनी लाज बचानेका कोई दूसरा उपाय न देख इन्होंने अत्यन्त आतुर होकर भगवान् श्रीकृष्णको पुकारा-
गोविन्द द्वारकावासिन् कृष्ण गोपीजनप्रिय ॥
कौरवः परिभूतां मां किं न जानासि केशव।
हे नाथ! हे रमानाथ! व्रजनाथार्त्तिनाशन! ॥ कौरवार्णवमग्रां जनार्दन !
मामुद्धरस्व कृष्ण कृष्ण महायोगिन्
विश्वात्मन् विश्वभावन ॥
प्रपन्नां पाहि गोविन्द ! कुरुमध्येऽवसीदतीम् ।
(महा0 सभा0 68 41-44)
'हे गोविन्द! हे द्वारकावासी! हे सच्चिदानन्दस्वरूप प्रेमघन! हे गोपीजनवल्लभ! हे केशव। मैं कौरवोंके द्वारा अपमानित हो रही हूँ, इस बातको क्या आप नहींजानते? हे नाथ! हे रमानाथ! हे व्रजनाथ, हे आर्तिनाशन जनार्दन मैं कौरव समुद्रमें डूब रही हूँ, आप मुझे इससे निकालिये। कृष्ण! कृष्ण! महायोगी! विश्वात्मा! विश्वके जीवनदाता गोविन्द ! मैं कौरवोंसे घिरकर बड़े संकटमें पड़ी हुई हूँ, आपकी शरण हूँ, मेरी रक्षा कीजिये।'
सच्चे हृदयकी करुण पुकार भगवान् तुरंत सुनते हैं। श्रीकृष्ण उस समय द्वारकामें थे वहाँसे वे तुरंत दौड़े आये और धर्मरूपसे द्रौपदीके वस्त्रोंके रूपमें प्रकट होकर उनकी लाज बचायी। भगवान्की कृपासे द्रौपदीकी साड़ी अनन्तगुना बढ़ गयी। दुःशासन उसे जितना ही खींचता था, उतना ही वह बढ़ती जाती थी। देखते-देखते वहाँ वस्त्रका ढेर लग गया। महाबली दुःशासनकी दस हजार हाथियोंके बलवाली प्रचण्ड भुजाएँ थक गयीं, परन्तु साड़ीका छोर हाथ नहीं आया। 'दस हजार गजबल धक्यौ, घट्यों न दस गज चीर।' उपस्थित सारे समाजने भगवद्भक्ति एवं पातिव्रतका अद्भुत चमत्कार देखा। अन्तमें दुःशासन हारकर लज्जित हो बैठ गया। भक्तवत्सल प्रभुने अपने भक्तकी लाज रख ली। धन्य भक्तवत्सलता!
एक दिनको बात है-जब पाण्डव द्रौपदीके साथ काम्यक वनमें निवास कर रहे थे, दुर्योधनके भेजे हुए महर्षि दुर्वासा अपने दस हजार शिष्योंको साथ लेकर पाण्डवोंके पास आये। दुष्टमति दुर्योधनने जान-बूझकर उन्हें ऐसे समय भेजा जब कि सब लोग भोजन करके विश्राम कर रहे थे। महाराज युधिष्ठिरने अतिथिसेवाके उद्देश्यसे ही भगवान् सूर्यदेवसे एक ऐसा चमत्कारी वर्तन प्राप्त किया था, जिसमें पकाया हुआ थोड़ा-सा भी भोजन अक्षय हो जाता था; परंतु उसमें शर्त यही थी कि जबतक द्रौपदी भोजन नहीं कर चुकती थीं, तभीतक उस बर्तनमें यह चमत्कार रहता था। युधिष्ठिरने महर्षिको शिष्यमण्डलीके सहित भोजनके लिये आमन्त्रित किया और दुर्वासाजी स्नानादि नित्यकर्मसे निवृत्त होनेके लिये सबके साथ गङ्गातटपर चले गये।
दुर्वासाजी के साथ दस हजार शिष्योंका एक पूरा का पूरा विश्वविद्यालय चला करता था। धर्मराजने उनसबको भोजनका निमन्त्रण तो दे दिया और ऋषिने उसे स्वीकार भी कर लिया; परन्तु किसीने भी इसका विचार नहीं किया कि द्रौपदी भोजन कर चुकी है, इसलिये सूर्यके दिये हुए बर्तनसे तो उन लोगोंके भोजनकी व्यवस्था हो नहीं सकती थी। द्रौपदी बड़ी चिन्तामें पड़ गयी। उन्होंने सोचा- ऋषि यदि बिना भोजन किये वापस लौट जाते हैं तो वे बिना शाप दिये नहीं मानेंगे।' उनका क्रोधी स्वभाव जगद्विख्यात था। द्रौपदीको और कोई उपाय नहीं सूझा। तब उन्होंने मन-ही-मन भक्तभयभजन भगवान् श्रीकृष्णका स्मरण किया और इस आपत्तिसे उबारनेको उनसे विश्वासपूर्ण आतं प्रार्थना करते हुए अन्तमें कहा- आपने जैसे राजसभायें दुःशासनके अत्याचारसे मुझे बचाया था, वैसे ही यहाँ भी इस महान् संकटसे दुरंत बचाइये-
दुःशासनादहं पूर्व सभायां मोचिता यथा । सङ्कटादस्मान्मामुद्धर्तुमिहार्हसि ॥
तथैव
(महा0 वन0 263 । 16)
श्रीकृष्ण तो सदा सर्वत्र निवास करते और घट घटको जाननेवाले हैं, वे तुरंत वहाँ आ पहुँचे। उन्हें देखकर द्रौपदीके शरीरमें मानो प्राण लौट आये, डूबते हुएको मानो सच्चा सहारा मिल गया। द्रौपदीने संक्षेपमें उन्हें सारी बात सुना दी। श्रीकृष्णने अधीरता प्रदर्शित करते हुए कहा और सब बात पीछे होगी। पहले मुझे जल्दी कुछ खाने को दो मुझे बड़ी भूख लगी है। तुम जानती नहीं हो में कितनी दूरसे हारा थका आया हूँ।' द्रौपदी लाजके मारे गड़-सी गयीं। उन्होंने रुकते-रुकते कहा-'प्रभो! मैं अभी-अभी खाकर उठी हूँ। अब तो उस वर्तनमें कुछ भी नहीं बचा है।' श्रीकृष्णने कहा- 'जरा अपना वर्तन मुझे दिखाओ तो सही कृष्णा उसे ले आय श्रीकृष्णने हाथमें लेकर देखा तो उसके गलेमें उन्हें एक सागका पत्ता चिपका हुआ मिला। उन्होंने उसीको मुँह में डालकर कहा-'इस सागके पत्तेसे सम्पूर्ण जगत्के आत्मा यज्ञभोक्ता परमेश्वर तृप्त हो जायें।' इसके बाद उन्होंने सहदेवसे कहा भैया अब तुम मुनीश्वरोंको भोजनके लिये बुला लाओ। सहदेवने गङ्गातटपर जाकर देखा तो वहाँ उन्हें कोई नहीं मिला। बात यह हुई किजिस समय श्रीकृष्णने सागका पत्ता मुँह में डालकर वह सङ्कल्प किया, उस समय मुनीश्वरलोग जलमें खड़े होकर। अघमर्पण कर रहे थे। उन्हें अकस्मात् ऐसा अनुभव होने लगा मानो उन सबका पेट गलेतक अन्नसे भर गया हो। ये सब एक दूसरेके मुँहकी ओर ताकने लगे और कहने लगे कि 'अब हमलोग वहाँ जाकर क्या खायेंगे।' | दुर्वासाने चुपचाप भाग जाना ही श्रेयस्कर समझा क्यों वे यह जानते थे कि पाण्डव भगवद्भक्त हैं और अम्बरीषके यहाँ उनपर जो कुछ बीती थी, उसके बादसे उन्हें भगवद्भकोंसे बड़ा डर लगने लगा था। बस सब लोग वहाँसे चुपचाप भाग निकले। सहदेवको वहाँ रहनेवाले तपस्वियोंसे उन सबके भाग जानेका समाचार मिला और उन्होंने लौटकर सारी बात धर्मराजसे कह दी। इस प्रकार द्रौपदीकी श्रीकृष्णभक्तिसे पाण्डवोंकी एक भारी विपत्ति सहज ही टल गयी। श्रीकृष्णने प्रकट होकर उन्हें महर्षि दुर्वासा दुर्दमनीय क्रोधानलसे बचा लिया और इस प्रकार अपनी शरणागतवत्सलताका परिचय दिया।
राजसूय यज्ञको समाप्तिपर श्रीकृष्णचन्द्र द्वारका चले गये थे। शाल्वने अपने कामचारी विमान सौभके द्वारा उत्पात मचा रखा था। पहुँचते ही केशवने शाल्वपर आक्रमण किया। सौभको गदाघातसे चूर्ण करके, शाल्व तथा उसके सैनिकोंको परमधाम भेजकर जब वे द्वारकामें लौटे, तब उन्हें पाण्डवोंके जुए में हारनेका समाचार मिला। वे सीधे हस्तिनापुर आये और वहाँसे जहाँ वनमें पाण्डव अपनी स्त्रियों, बालकों तथा प्रजावर्ग एवं विप्रोंके साथ थे पहुँचे। पाण्डवोंसे मिलकर उन्होंने कौरवोंके प्रति रोष प्रकट किया।
द्रौपदीने श्रीकृष्णसे वहाँ कहा- 'मधुसूदन! मैंने महर्षि असित और देवलसे सुना है कि आप ही सृष्टिकर्ता हैं। परशुरामजीने बताया था कि आप साक्षात् अपराजित विष्णु हैं। आप ही यज्ञ, ऋषि, देवता तथा पञ्चभूतस्वरूप हैं। जगत् आपके एक अंशमें स्थित है। त्रिलोकीमें आप व्यास हैं। निर्मलहृदय महर्षियोंके हृदय आप ही स्फुरित होते हैं। आप ही ज्ञानियों तथा योगियोंकी परम गति हैं। आप विभु हैं, सर्वात्मा हैंआपकी शक्तिसे ही सबको शक्ति प्राप्त होती है। आप ही मुत्यु, जीवन एवं कर्मके अधिष्ठाता हैं। आप ही परमेश्वर हैं। मैं अपना दुःख आपसे न कहूँ तो किससे कहूँ।'
यों कहते-कहते द्रौपदीके से को झड़ी लग गयी। वे फुफकार मारती हुई कहने लगीं-'मैं महापराक्रमी पाण्डवोंकी पत्नी, धृष्टद्युप्रकी बहिन और आपकी सखी हूँ। कौरवोंकी भरी सभामें मेरे केश पकड़कर मुझे घसीटा गया। मैं एकवस्त्रा रजस्वला थी, मुझे नग्न करनेका प्रयत्न किया गया। ये मेरे पति मेरी रक्षा न कर सके। इसी नीच दुर्योधनने भीमको विष देकर जलमें बाँधकर फेंक दिया। था। इसी दुष्टने पाण्डवोंको लाक्षाभवनमें भस्म करनेका प्रयत्न किया था। इसी पिशाचने मेरे केश पकड़कर घसीटवाया और आज भी वह जीवित है।'
पाञ्चाली फूट-फूटकर रोने लगीं। उनकी वाणी अस्पष्ट हो गयी। वे श्रीकृष्णको उलाहना दे रही थीं- तुम मेरे सम्बन्धी हो, मैं अग्निसे उत्पन्न गौरवमयी नारी हूँ, तुमपर मेरा पवित्र अनुराग है, तुमपर मेरा अधिकार है और रक्षा करनेमें तुम समर्थ हो। तुम्हारे रहते मेरी यह दशा हो रही है!
भक्तवत्सल और न सुन सके। उन्होंने कहा—'कल्याणी ! जिनपर तुम रुष्ट हुई हो, उनका जीवन समाप्त हुआ समझो। उनकी स्त्रियाँ भी इसी प्रकार रोयेंगी और उनके अश्रु सूखनेका मार्ग नष्ट हो चुका रहेगा। थोड़े दिनों में अर्जुन के बाणों से गिरकर वे श्रृंगाल और कुत्तोंके आहार बनेंगे। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि तुम सम्राज्ञी बनकर रहोगी। आकाश फट जाय, समुद्र सूख जायें, हिमालय चूर हो जाय पर मेरी बात असत्य न होगी, न होगी।'
इसी यात्रामें एक दिन बातों ही बातोंमें सत्यभामाजीने द्रौपदीसे पूछा- 'बहिन! मैं तुमसे एक बात पूछती हूँ। मैं देखती हूँ कि तुम्हारे शूरवीर और बलवान् पति सदा तुम्हारे अधीन रहते हैं; इसका क्या कारण है? क्या तुम कोई जंतर-मंतर या औषध जानती हो? अथवा क्या तुमने जप, तप, व्रत, होम या विद्यासे उन्हें वशमें कर रखा है? मुझे भी कोई ऐसा उपाय बताओ, जिससे भगवान् श्यामसुन्दर मेरे वंशमें हो जायें।' देवी द्रौपदीनेकहा- 'बहिन! आप श्यामसुन्दरकी पटरानी एवं प्रियतमा होकर कैसी बातें कर रही हैं। सती-साध्वी स्त्रियाँ जंतर-मंतर आदिसे उतनी ही दूर रहती हैं, जितनी साँप बिच्छूसे क्या पतिको जंतर-मंतर आदिसे वशमें किया जा सकता है? भोली-भाली अथवा दुराचारिणी स्त्रियाँ ही पतिको वशमें करनेके लिये इस प्रकारके प्रयोग किया करती हैं। ऐसा करके वे अपना तथा अपने पतिका अहित हो करती हैं। ऐसी स्त्रियोंसे तो सदा दूर रहना चाहिये।'
इसके बाद उन्होंने बतलाया कि अपने पतियोंको प्रसन्न रखनेके लिये वे किस प्रकारका आचरण करती थीं। उन्होंने कहा- 'बहिन में अहङ्कार और काम क्रोधका परित्याग करके बड़ी सावधानीसे सब पाण्डवोंकी और उनकी स्त्रियोंकी सेवा करती हूँ। मैं ईर्ष्या दूर रहती हूँ और मनको वशमें रखकर केवल सेवाकी इच्छासे हो अपने पतियोंके मन रखती हूँ। मैं कटुभाषणसे दूर रहती हूँ, असभ्यतासे खड़ी नहीं होती, खोटी बातोंपर दृष्टि नहीं डालती, बुरी जगहपर नहीं बैठती, दूषित आचरणके पास नहीं फटकती तथा पतियोंके अभिप्रायपूर्ण संकेतका अनुसरण करती हूँ देवता, मनुष्य, गन्धर्व, युवा धनी अथवा रूपवान् कैसा हो पुरुष क्यों न हो. मेरा मन पाण्डवोंके सिवा और कहीं नहीं जाता। अपने पतियोंके भोजन किये बिना में भोजन नहीं करती, स्नान किये बिना स्नान नहीं करती और बैठे बिना स्वयं नहीं बैठती। जब-जब मेरे पति घर आते हैं, तब-तब मैं खड़ी होकर उन्हें आसन और जल देती हूँ मैं घरके बर्तनोंको माँ धोकर साफ रखती हूँ, मधुर रसोई तैयार करती हूँ. समयपर भोजन कराती हूँ। सदा सजग रहती हूँ, घरमें अनाजकी रक्षा करती हूँ और घरको झाड़-बुहारकर साफ रखती है। मैं बातचीतमें किसीका तिरस्कार नहीं करती, कुलटा स्त्रियोंके पास नहीं फटकती और सदा ही पतियोंके अनुकूल रहकर आलस्यसे दूर रहती हूँ। मैं दरवाजेपर बार-बार जाकर खड़ी नहीं होती तथा खुली अथवा कूड़ा-करकट डालने की जगहपर भी अधिक नहीं ठहरती, किन्तु सदा ही सत्यभाषण और पतिसेवामें तत्पर रहती हूँ। पतिदेवके बिना अकेली रहना मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। जब किसी कौटुम्बिक कार्यसेपतिदेव बाहर चले जाते हैं, तब में पुष्प और चन्दनादिको छोड़कर नियम और व्रतोंका पालन करती हुई समय बिताती हूँ। मेरे पति जिस चीजको नहीं खाते, नहीं पीते अथवा सेवन नहीं करते, मैं भी उससे दूर रहती हूँ। स्त्रियोंके लिये शास्त्रने जो जो बातें बतायी हैं, उन सबका मैं पालन करती हूँ। शरीरको यथाप्राप्त वस्त्रालङ्कारोंसे सुसज्जित रखती हूँ तथा सर्वदा सावधान रहकर पतिदेवका प्रिय करनेमें तत्पर रहती हूँ।
"सासजीने मुझे कुटुम्ब सम्बन्धी जो-जो धर्म बताये हैं, उन सबका मैं पालन करती हूँ। भिक्षा देना, पूजन, श्राद्ध त्यौहारोंपर पकवान बनाना, माननीयोंका आदर करना तथा और भी मेरे लिये जो-जो धर्म विहित हैं, उन सभीका में सावधानीसे रात-दिन आचरण करती हूँ; मैं विनय और नियमोंको सर्वदा सब प्रकार अपनाये रहती हूँ। मेरे विचारसे तो स्त्रियोंका सनातनधर्म पतिके अधीन रहना ही है, वही उनका इष्टदेव है। मैं अपने पतियोंसे बढ़कर कभी नहीं रहती, उनसे अच्छा भोजन नहीं करती, उनसे बढ़िया वस्त्राभूषण नहीं पहनती और न कभी सासजीसे वाद-विवाद करती हूँ, तथा सदा ही संयमका पालन करती हूँ। मैं सदा अपने पतियोंसे पहले उठती है तथा बड़े-बूढ़ोंकी सेवामें लगी रहती हूँ। अपनी सासकी में भोजन, वस्त्र और जल आदिसे सदा ही सेवा करती रहती हूँ। वस्त्र, आभूषण और भोजनादिमें में कभी उनकी अपेक्षा अपने लिये कोई विशेषता नहीं रखती। पहले महाराज युधिष्ठिरके दस हजार दासियाँ थीं। मुझे उन सबके नाम, रूप, वस्त्र आदि सबका पता था और इस बातका भी ध्यान रहता था कि किसने क्या काम कर लिया है और क्या नहीं। जिस समय इन्द्रप्रस्थमें रहकर महाराज युधिष्ठिर पृथ्वी-पालन करते थे, उस समय उनके साथ एक लाख घोड़े और उतने ही हाथी चलते थे। उनकी गणना और प्रबन्ध में ही करती थी और में ही उनको आवश्यकताएँ सुनती थी। अन्तःपुरके रखालों और गड़रियोंसे लेकर सभी सेवकोंके काम काजकी देख-रेख भी मैं ही किया करती थी। "महाराजकी जो कुछ आय व्यय और बचत होती थी, उस सबका विवरण में अकेली ही रखती थी।पाण्डवलोग कुटुम्बका सारा भार मेरे ऊपर छोड़कर पूजा-पाठ में लगे रहते थे और आये-गयोंका स्वागत सत्कार करते थे; और मैं सब प्रकारका सुख छोड़कर उसकी सँभाल करती थी। मेरे पतियोंका जो अटूट खजाना था, उसका पता भी मुझ एकको ही था। मैं भूख-प्यासको सहकर रात-दिन पाण्डवोंकी सेवामें लगी रहती। उस समय रात और दिन मेरे लिये समान हो गये थे। मैं सदा ही सबसे पहले उठती और सबसे पीछे सोती थी। सत्यभामाजी! पतियोंको अनुकूल करनेका मुझे तो यही उपाय मालूम है।' एक आदर्श गृहपत्नीको घरमें किस प्रकार रहना चाहिये इसकी शिक्षा हमें द्रौपदीके जीवनसे लेनी चाहिये।
द्रौपदीके जिन लंबे-लंबे काले बालोंका कुछ ही दिन पहले राजसूय यज्ञमें अवभृथ स्नानके समय मन्त्रपूत जलसे अभिषेक किया गया था, उन्हीं बालोंका दुष्ट दुःशासनके द्वारा भरी सभामें खींचा जाना द्रौपदीको कभी नहीं भूला उस अभूतपूर्व अपमानकी आग उनके हृदयमें सदा ही जला करती थी। इसीलिये जब-जब उनके सामने कौरवोंसे सन्धि करनेकी बात आयी, तब-तब इन्होंने उसका विरोध ही किया और बराबर अपने अपमान की याद दिलाकर अपने पतियोंको युद्धके लिये प्रोत्साहित करती रहीं । अन्तमें जब यही तय हुआ कि एक बार कौरवोंको समझा-बुझाकर देख लिया जाय, और जब भगवान् श्रीकृष्ण पाण्डवोंकी ओरसे सन्धिका प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाने लगे, उस समय भी इन्हें अपने अपमान की बात नहीं भूली और इन्होंने अपने लंबे-लंबे काले बालोंको उन्हें दिखाते हुए श्रीकृष्णसे कहा-'श्रीकृष्ण! तुम सन्धि करने जा रहे हो सो तो ठीक है; परंतु तुम मेरे इन खुले केशोंको न भूल जाना जाहु भले कुरुराज पै धारि दूत को वेसभूलि न जैयो पै वहाँ केसी। कृष्णा केस 'मधुसूदन। क्या मेरे ये केश आजीवन खुले ही रहेंगे? यदि पाण्डव युद्ध नहीं करना चाहते तो मैं अपने पाँचों पुत्रोंको आदेश दूंगी, बेटा अभिमन्यु उनका नेतृत्व करेगा, मेरे वृद्ध पिता और भाई सहायता करेंगे। परश्रीकृष्ण! तुम्हारा चक्र क्या शान्त ही रहेगा?'
इसपर श्रीकृष्णने गम्भीरताके साथ कहा-'कृष्णे ! आँसुओंको रोको; मैंने प्रतिज्ञा की है, और प्रकृतिके सारे नियमोंके पलट जानेपर भी वह मिथ्या नहीं होगी। तुम्हारा जिनपर कोप है, उनकी विधवा पत्नियोंको तुम शीघ्र ही रोते देखोगी।'
काम्यक- वनमें जब दुष्ट जयद्रथ द्रौपदीको बलपूर्वक ले जानेकी चेष्टा करने लगा, तब इन वीराङ्गनाने उसे इतने जोरसे धक्का दिया कि वह कटे हुए पेड़की तरह जमीनपर गिर पड़ा; किंतु फिर तुरंत ही उठ खड़ा हुआ और इन्हें बलपूर्वक रथपर बैठाकर ले चला जब भीम अर्जुन उसे पकड़ लाये और उसको अपने दुष्कर्मका पर्याप्त दण्ड मिल गया, तब इन्होंने दया करके उसे छुड़ा दिया। क्रोधके साथ-साथ क्षमाका कैसा अपूर्व मेल है! इनका पातिव्रत-तेज तो अपूर्व था ही। जिस किसीने भी इनके साथ छेड़-छाड़ को उसीको प्राणोंसे हाथ धोने पड़े। दुर्योधन, दुःशासन, कर्ण, जयद्रथ, कीचक आदि सबकी यही दशा हुई। महाभारत युद्धमें जो कौरवोंका सर्वनाश हुआ, उसका मूल सती द्रौपदीका अपमान ही था।
महाभारत समाप्त हुआ। पाण्डव सेना शान्तिसे शयन कर रही थी। श्रीकृष्ण पाँचों पाण्डवों तथा द्रौपदीको लेकर उपप्लव्य नगर चले गये थे। प्रातः दूतने समाचार दिया कि रात्रिमें शिविरमै अग्नि लगाकर सबको निर्दयतापूर्वक मार डाला। यह सुनते ही सब रथमें बैठकर शिविरमें पहुँचे। अपने मृत पुत्रोंको देखकर द्रौपदीने बड़े करुण स्वरमें क्रन्दन करते हुए कहा- 'मेरे पराक्रमी पुत्र यदि युद्धमें लड़ते हुए मारे गये होते तो मैं सन्तोष कर लेती। क्रूर ब्राह्मणने निर्दयतापूर्वक उन्हें सोते समय मार डाला है।"
द्रौपदीको धर्मराजने समझानेका प्रयत्न किया परंतु पुत्रके शवोंके पास रोती माताको क्या समझायेगा कोई। भीमने क्रोधित होकर अश्वत्थामाका पीछा किया। श्रीकृष्णने बताया कि नीच अश्वत्थामा भीमपर ब्रह्मास्त्र-प्रयोग कर सकता है। अर्जुनको लेकर वे भी पीछे रथमें बैठकर गये। अश्वत्थामाने ब्रह्मास्त्रका प्रयोग किया। उसे शान्तकरनेको अर्जुनने भी उसी अस्त्रसे उसे शान्त करना चाहा। दोनों ब्रह्मास्त्रोंने प्रलयका दृश्य उपस्थित कर दिया। भगवान् व्यास तथा देवर्षि नारदने प्रकट होकर ब्रह्मास्त्रोंको लौटा लेनेका आदेश दिया। अर्जुनने ब्रह्मास्त्र लौटा लिया। पकड़कर द्रोण-पुत्रको उन्होंने बाँध लिया और अपने शिविरमें ले आये।
अश्वत्थामा पशुकी भाँति बँधा हुआ था। निन्दित कर्म करनेसे उसकी श्री नष्ट हो गयी थी। उसने सिर झुका रखा था। अर्जुनने उसे लाकर द्रौपदीके सम्मुख खड़ा कर दिया। गुरुपुत्रको इस दशामें देखकर द्रौपदीको दया आ गयी। उन्होंने कहा- 'इन्हें जल्दी छोड़ दो। जिनसे सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रोंकी आपलोगोंने शिक्षा पायी है, वे भगवान् द्रोणाचार्य ही पुत्ररूपमें स्वयं उपस्थित हैं। जैसे पुत्रोंके शोकमें मुझे दुःख हो रहा है, मैं रो रही हूँ, ऐसा ही प्रत्येक स्त्रीको होता होगा। इनकी माता देवी कृपीको यह शोक न हो। वे पुत्रशोकमें मेरी तरह न रोयें! ब्राह्मण सब प्रकार पूज्य होता है। इन्हें शीघ्र छोड़ दो! ब्राह्मणोंका हमारे द्वारा अनादर नहीं होना चाहिये।' धन्य माताका हृदय !
भीमसेन अश्वत्थामाके वधके पक्षमें थे। अन्तमें श्रीकृष्णकी सम्मतिसे द्रोणपुत्रके मस्तकपर रहनेवाली मणि छीनकर अर्जुनने उसे शिविरसे बाहर निकाल दिया।
तद्वारकासे लौटकर अर्जुनने जब यदुवंशके संक्षयका समाचार दिया, तब परीक्षित्का राज्याभिषेक करके धर्मराजने अपने राजोचित वस्त्रोंका त्याग कर दिया। में मौन व्रत लेकर वे निकल पड़े। भाइयोंने भी उन्हींका अनुकरण किया। द्रौपदीने भी वल्कल पहना और पतियोंके पीछे चल पड़ीं। धर्मराज सीधे उत्तर चलते गये। बदरिकाश्रमसे ऊपर वे हिमप्रदेशमें जा रहे थे। द्रौपदी सबके पीछे चल रही थीं। सब मौन थे। कोई किसीकी और देखता नहीं था। द्रौपदीने अपना चित्त सब ओरसे एकाग्र करके परात्पर भगवान् श्रीकृष्णमें लगा दिया था। उन्हें शरीरका पता नहीं था। हिमपर फिसलकर वे गिर पड़ीं। शरीर उसी श्वेत हिमराशिमें विलीन हो गया। महारानी द्रौपदी तो परम तत्त्वसे एक हो चुकी थीं। वे तो वस्तुतः भगवान्की अभिन्न शक्ति ही थीं।
bhagavaankee sakhee aadarsh bhagavad-vishvaasakee moorti | devee draupadee paanchaalanaresh raaja drupadakee ayonija kanya theen. inakee utpatti yajnavedeese huee thee. inaka roopa- f laavany anupam thaa. angakaanti shyaam sundar honese inako log 'krishnaa' bhee kahate the. inake shareerase turantake khile hue kamalakee madhur sugandh nikalakar ek kosatak phailatee rahatee thee. inake praakatyake samay aakaashavaanee huee thee- 'devataaonka kaary siddh karaneke liye kshatriyonke sanhaarake uddeshyase is ramanee-ratnaka praakaty hua hai. isake kaaran kauravonko bada़a bhay hogaa.' poorvajanmamen diye hue bhagavaan shankarake varadaanase inhen is janmamen paanch pati praapt hue. akele arjunake dvaara svayanvaramen jeetee jaanepar bhee maata kunteekee aajnaase inhen paanchon bhaaiyonne byaaha thaa.
draupadee uchch kotikee pativrata evan bhagavadbhakta theen. inakee bhagavaan shreekrishnake charanonmen avichal preeti thee. ye unhen apana sakha, rakshak, hitaishee evan param aatmeey to maanatee hee theen; unakee sarvavyaapakata evan sarvashaktimatta men bhee inaka poorn vishvaas thaa. jab kauravonkee sabhaamen dusht duhshaasanane inhen nangee karana chaaha aur sabhaasadonmense kiseeka saahas n hua ki is amaanushee atyaachaarako roke, us samay apanee laaj bachaaneka koee doosara upaay n dekh inhonne atyant aatur hokar bhagavaan shreekrishnako pukaaraa-
govind dvaarakaavaasin krishn gopeejanapriy ..
kauravah paribhootaan maan kin n jaanaasi keshava.
he naatha! he ramaanaatha! vrajanaathaarttinaashana! .. kauravaarnavamagraan janaardan !
maamuddharasv krishn krishn mahaayogin
vishvaatman vishvabhaavan ..
prapannaan paahi govind ! kurumadhye'vaseedateem .
(mahaa0 sabhaa0 68 41-44)
'he govinda! he dvaarakaavaasee! he sachchidaanandasvaroop premaghana! he gopeejanavallabha! he keshava. main kauravonke dvaara apamaanit ho rahee hoon, is baatako kya aap naheenjaanate? he naatha! he ramaanaatha! he vrajanaath, he aartinaashan janaardan main kaurav samudramen doob rahee hoon, aap mujhe isase nikaaliye. krishna! krishna! mahaayogee! vishvaatmaa! vishvake jeevanadaata govind ! main kauravonse ghirakar bada़e sankatamen pada़ee huee hoon, aapakee sharan hoon, meree raksha keejiye.'
sachche hridayakee karun pukaar bhagavaan turant sunate hain. shreekrishn us samay dvaarakaamen the vahaanse ve turant dauड़e aaye aur dharmaroopase draupadeeke vastronke roopamen prakat hokar unakee laaj bachaayee. bhagavaankee kripaase draupadeekee saada़ee anantaguna badha़ gayee. duhshaasan use jitana hee kheenchata tha, utana hee vah badha़tee jaatee thee. dekhate-dekhate vahaan vastraka dher lag gayaa. mahaabalee duhshaasanakee das hajaar haathiyonke balavaalee prachand bhujaaen thak gayeen, parantu saada़eeka chhor haath naheen aayaa. 'das hajaar gajabal dhakyau, ghatyon n das gaj cheera.' upasthit saare samaajane bhagavadbhakti evan paativrataka adbhut chamatkaar dekhaa. antamen duhshaasan haarakar lajjit ho baith gayaa. bhaktavatsal prabhune apane bhaktakee laaj rakh lee. dhany bhaktavatsalataa!
ek dinako baat hai-jab paandav draupadeeke saath kaamyak vanamen nivaas kar rahe the, duryodhanake bheje hue maharshi durvaasa apane das hajaar shishyonko saath lekar paandavonke paas aaye. dushtamati duryodhanane jaana-boojhakar unhen aise samay bheja jab ki sab log bhojan karake vishraam kar rahe the. mahaaraaj yudhishthirane atithisevaake uddeshyase hee bhagavaan sooryadevase ek aisa chamatkaaree vartan praapt kiya tha, jisamen pakaaya hua thoda़aa-sa bhee bhojan akshay ho jaata thaa; parantu usamen shart yahee thee ki jabatak draupadee bhojan naheen kar chukatee theen, tabheetak us bartanamen yah chamatkaar rahata thaa. yudhishthirane maharshiko shishyamandaleeke sahit bhojanake liye aamantrit kiya aur durvaasaajee snaanaadi nityakarmase nivritt honeke liye sabake saath gangaatatapar chale gaye.
durvaasaajee ke saath das hajaar shishyonka ek poora ka poora vishvavidyaalay chala karata thaa. dharmaraajane unasabako bhojanaka nimantran to de diya aur rishine use sveekaar bhee kar liyaa; parantu kiseene bhee isaka vichaar naheen kiya ki draupadee bhojan kar chukee hai, isaliye sooryake diye hue bartanase to un logonke bhojanakee vyavastha ho naheen sakatee thee. draupadee bada़ee chintaamen pada़ gayee. unhonne sochaa- rishi yadi bina bhojan kiye vaapas laut jaate hain to ve bina shaap diye naheen maanenge.' unaka krodhee svabhaav jagadvikhyaat thaa. draupadeeko aur koee upaay naheen soojhaa. tab unhonne mana-hee-man bhaktabhayabhajan bhagavaan shreekrishnaka smaran kiya aur is aapattise ubaaraneko unase vishvaasapoorn aatan praarthana karate hue antamen kahaa- aapane jaise raajasabhaayen duhshaasanake atyaachaarase mujhe bachaaya tha, vaise hee yahaan bhee is mahaan sankatase durant bachaaiye-
duhshaasanaadahan poorv sabhaayaan mochita yatha . sankataadasmaanmaamuddhartumihaarhasi ..
tathaiva
(mahaa0 vana0 263 . 16)
shreekrishn to sada sarvatr nivaas karate aur ghat ghatako jaananevaale hain, ve turant vahaan a pahunche. unhen dekhakar draupadeeke shareeramen maano praan laut aaye, doobate hueko maano sachcha sahaara mil gayaa. draupadeene sankshepamen unhen saaree baat suna dee. shreekrishnane adheerata pradarshit karate hue kaha aur sab baat peechhe hogee. pahale mujhe jaldee kuchh khaane ko do mujhe bada़ee bhookh lagee hai. tum jaanatee naheen ho men kitanee doorase haara thaka aaya hoon.' draupadee laajake maare gada़-see gayeen. unhonne rukate-rukate kahaa-'prabho! main abhee-abhee khaakar uthee hoon. ab to us vartanamen kuchh bhee naheen bacha hai.' shreekrishnane kahaa- 'jara apana vartan mujhe dikhaao to sahee krishna use le aay shreekrishnane haathamen lekar dekha to usake galemen unhen ek saagaka patta chipaka hua milaa. unhonne useeko munh men daalakar kahaa-'is saagake pattese sampoorn jagatke aatma yajnabhokta parameshvar tript ho jaayen.' isake baad unhonne sahadevase kaha bhaiya ab tum muneeshvaronko bhojanake liye bula laao. sahadevane gangaatatapar jaakar dekha to vahaan unhen koee naheen milaa. baat yah huee kijis samay shreekrishnane saagaka patta munh men daalakar vah sankalp kiya, us samay muneeshvaralog jalamen khada़e hokara. aghamarpan kar rahe the. unhen akasmaat aisa anubhav hone laga maano un sabaka pet galetak annase bhar gaya ho. ye sab ek doosareke munhakee or taakane lage aur kahane lage ki 'ab hamalog vahaan jaakar kya khaayenge.' | durvaasaane chupachaap bhaag jaana hee shreyaskar samajha kyon ve yah jaanate the ki paandav bhagavadbhakt hain aur ambareeshake yahaan unapar jo kuchh beetee thee, usake baadase unhen bhagavadbhakonse bada़a dar lagane laga thaa. bas sab log vahaanse chupachaap bhaag nikale. sahadevako vahaan rahanevaale tapasviyonse un sabake bhaag jaaneka samaachaar mila aur unhonne lautakar saaree baat dharmaraajase kah dee. is prakaar draupadeekee shreekrishnabhaktise paandavonkee ek bhaaree vipatti sahaj hee tal gayee. shreekrishnane prakat hokar unhen maharshi durvaasa durdamaneey krodhaanalase bacha liya aur is prakaar apanee sharanaagatavatsalataaka parichay diyaa.
raajasooy yajnako samaaptipar shreekrishnachandr dvaaraka chale gaye the. shaalvane apane kaamachaaree vimaan saubhake dvaara utpaat macha rakha thaa. pahunchate hee keshavane shaalvapar aakraman kiyaa. saubhako gadaaghaatase choorn karake, shaalv tatha usake sainikonko paramadhaam bhejakar jab ve dvaarakaamen laute, tab unhen paandavonke jue men haaraneka samaachaar milaa. ve seedhe hastinaapur aaye aur vahaanse jahaan vanamen paandav apanee striyon, baalakon tatha prajaavarg evan vipronke saath the pahunche. paandavonse milakar unhonne kauravonke prati rosh prakat kiyaa.
draupadeene shreekrishnase vahaan kahaa- 'madhusoodana! mainne maharshi asit aur devalase suna hai ki aap hee srishtikarta hain. parashuraamajeene bataaya tha ki aap saakshaat aparaajit vishnu hain. aap hee yajn, rishi, devata tatha panchabhootasvaroop hain. jagat aapake ek anshamen sthit hai. trilokeemen aap vyaas hain. nirmalahriday maharshiyonke hriday aap hee sphurit hote hain. aap hee jnaaniyon tatha yogiyonkee param gati hain. aap vibhu hain, sarvaatma hainaapakee shaktise hee sabako shakti praapt hotee hai. aap hee mutyu, jeevan evan karmake adhishthaata hain. aap hee parameshvar hain. main apana duhkh aapase n kahoon to kisase kahoon.'
yon kahate-kahate draupadeeke se ko jhada़ee lag gayee. ve phuphakaar maaratee huee kahane lageen-'main mahaaparaakramee paandavonkee patnee, dhrishtadyuprakee bahin aur aapakee sakhee hoon. kauravonkee bharee sabhaamen mere kesh pakada़kar mujhe ghaseeta gayaa. main ekavastra rajasvala thee, mujhe nagn karaneka prayatn kiya gayaa. ye mere pati meree raksha n kar sake. isee neech duryodhanane bheemako vish dekar jalamen baandhakar phenk diyaa. thaa. isee dushtane paandavonko laakshaabhavanamen bhasm karaneka prayatn kiya thaa. isee pishaachane mere kesh pakada़kar ghaseetavaaya aur aaj bhee vah jeevit hai.'
paanchaalee phoota-phootakar rone lageen. unakee vaanee aspasht ho gayee. ve shreekrishnako ulaahana de rahee theen- tum mere sambandhee ho, main agnise utpann gauravamayee naaree hoon, tumapar mera pavitr anuraag hai, tumapar mera adhikaar hai aur raksha karanemen tum samarth ho. tumhaare rahate meree yah dasha ho rahee hai!
bhaktavatsal aur n sun sake. unhonne kahaa—'kalyaanee ! jinapar tum rusht huee ho, unaka jeevan samaapt hua samajho. unakee striyaan bhee isee prakaar royengee aur unake ashru sookhaneka maarg nasht ho chuka rahegaa. thoda़e dinon men arjun ke baanon se girakar ve shrringaal aur kuttonke aahaar banenge. main pratijna karata hoon ki tum samraajnee banakar rahogee. aakaash phat jaay, samudr sookh jaayen, himaalay choor ho jaay par meree baat asaty n hogee, n hogee.'
isee yaatraamen ek din baaton hee baatonmen satyabhaamaajeene draupadeese poochhaa- 'bahina! main tumase ek baat poochhatee hoon. main dekhatee hoon ki tumhaare shooraveer aur balavaan pati sada tumhaare adheen rahate hain; isaka kya kaaran hai? kya tum koee jantara-mantar ya aushadh jaanatee ho? athava kya tumane jap, tap, vrat, hom ya vidyaase unhen vashamen kar rakha hai? mujhe bhee koee aisa upaay bataao, jisase bhagavaan shyaamasundar mere vanshamen ho jaayen.' devee draupadeenekahaa- 'bahina! aap shyaamasundarakee pataraanee evan priyatama hokar kaisee baaten kar rahee hain. satee-saadhvee striyaan jantara-mantar aadise utanee hee door rahatee hain, jitanee saanp bichchhoose kya patiko jantara-mantar aadise vashamen kiya ja sakata hai? bholee-bhaalee athava duraachaarinee striyaan hee patiko vashamen karaneke liye is prakaarake prayog kiya karatee hain. aisa karake ve apana tatha apane patika ahit ho karatee hain. aisee striyonse to sada door rahana chaahiye.'
isake baad unhonne batalaaya ki apane patiyonko prasann rakhaneke liye ve kis prakaaraka aacharan karatee theen. unhonne kahaa- 'bahin men ahankaar aur kaam krodhaka parityaag karake bada़ee saavadhaaneese sab paandavonkee aur unakee striyonkee seva karatee hoon. main eershya door rahatee hoon aur manako vashamen rakhakar keval sevaakee ichchhaase ho apane patiyonke man rakhatee hoon. main katubhaashanase door rahatee hoon, asabhyataase khada़ee naheen hotee, khotee baatonpar drishti naheen daalatee, buree jagahapar naheen baithatee, dooshit aacharanake paas naheen phatakatee tatha patiyonke abhipraayapoorn sanketaka anusaran karatee hoon devata, manushy, gandharv, yuva dhanee athava roopavaan kaisa ho purush kyon n ho. mera man paandavonke siva aur kaheen naheen jaataa. apane patiyonke bhojan kiye bina men bhojan naheen karatee, snaan kiye bina snaan naheen karatee aur baithe bina svayan naheen baithatee. jaba-jab mere pati ghar aate hain, taba-tab main khada़ee hokar unhen aasan aur jal detee hoon main gharake bartanonko maan dhokar saaph rakhatee hoon, madhur rasoee taiyaar karatee hoon. samayapar bhojan karaatee hoon. sada sajag rahatee hoon, gharamen anaajakee raksha karatee hoon aur gharako jhaada़-buhaarakar saaph rakhatee hai. main baatacheetamen kiseeka tiraskaar naheen karatee, kulata striyonke paas naheen phatakatee aur sada hee patiyonke anukool rahakar aalasyase door rahatee hoon. main daravaajepar baara-baar jaakar khada़ee naheen hotee tatha khulee athava kooda़aa-karakat daalane kee jagahapar bhee adhik naheen thaharatee, kintu sada hee satyabhaashan aur patisevaamen tatpar rahatee hoon. patidevake bina akelee rahana mujhe bilakul pasand naheen hai. jab kisee kautumbik kaaryasepatidev baahar chale jaate hain, tab men pushp aur chandanaadiko chhoda़kar niyam aur vratonka paalan karatee huee samay bitaatee hoon. mere pati jis cheejako naheen khaate, naheen peete athava sevan naheen karate, main bhee usase door rahatee hoon. striyonke liye shaastrane jo jo baaten bataayee hain, un sabaka main paalan karatee hoon. shareerako yathaapraapt vastraalankaaronse susajjit rakhatee hoon tatha sarvada saavadhaan rahakar patidevaka priy karanemen tatpar rahatee hoon.
"saasajeene mujhe kutumb sambandhee jo-jo dharm bataaye hain, un sabaka main paalan karatee hoon. bhiksha dena, poojan, shraaddh tyauhaaronpar pakavaan banaana, maananeeyonka aadar karana tatha aur bhee mere liye jo-jo dharm vihit hain, un sabheeka men saavadhaaneese raata-din aacharan karatee hoon; main vinay aur niyamonko sarvada sab prakaar apanaaye rahatee hoon. mere vichaarase to striyonka sanaatanadharm patike adheen rahana hee hai, vahee unaka ishtadev hai. main apane patiyonse badha़kar kabhee naheen rahatee, unase achchha bhojan naheen karatee, unase badha़iya vastraabhooshan naheen pahanatee aur n kabhee saasajeese vaada-vivaad karatee hoon, tatha sada hee sanyamaka paalan karatee hoon. main sada apane patiyonse pahale uthatee hai tatha baड़e-booढ़onkee sevaamen lagee rahatee hoon. apanee saasakee men bhojan, vastr aur jal aadise sada hee seva karatee rahatee hoon. vastr, aabhooshan aur bhojanaadimen men kabhee unakee apeksha apane liye koee visheshata naheen rakhatee. pahale mahaaraaj yudhishthirake das hajaar daasiyaan theen. mujhe un sabake naam, roop, vastr aadi sabaka pata tha aur is baataka bhee dhyaan rahata tha ki kisane kya kaam kar liya hai aur kya naheen. jis samay indraprasthamen rahakar mahaaraaj yudhishthir prithvee-paalan karate the, us samay unake saath ek laakh ghoda़e aur utane hee haathee chalate the. unakee ganana aur prabandh men hee karatee thee aur men hee unako aavashyakataaen sunatee thee. antahpurake rakhaalon aur gada़riyonse lekar sabhee sevakonke kaam kaajakee dekha-rekh bhee main hee kiya karatee thee. "mahaaraajakee jo kuchh aay vyay aur bachat hotee thee, us sabaka vivaran men akelee hee rakhatee thee.paandavalog kutumbaka saara bhaar mere oopar chhoda़kar poojaa-paath men lage rahate the aur aaye-gayonka svaagat satkaar karate the; aur main sab prakaaraka sukh chhoda़kar usakee sanbhaal karatee thee. mere patiyonka jo atoot khajaana tha, usaka pata bhee mujh ekako hee thaa. main bhookha-pyaasako sahakar raata-din paandavonkee sevaamen lagee rahatee. us samay raat aur din mere liye samaan ho gaye the. main sada hee sabase pahale uthatee aur sabase peechhe sotee thee. satyabhaamaajee! patiyonko anukool karaneka mujhe to yahee upaay maaloom hai.' ek aadarsh grihapatneeko gharamen kis prakaar rahana chaahiye isakee shiksha hamen draupadeeke jeevanase lenee chaahiye.
draupadeeke jin lanbe-lanbe kaale baalonka kuchh hee din pahale raajasooy yajnamen avabhrith snaanake samay mantrapoot jalase abhishek kiya gaya tha, unheen baalonka dusht duhshaasanake dvaara bharee sabhaamen kheencha jaana draupadeeko kabhee naheen bhoola us abhootapoorv apamaanakee aag unake hridayamen sada hee jala karatee thee. iseeliye jaba-jab unake saamane kauravonse sandhi karanekee baat aayee, taba-tab inhonne usaka virodh hee kiya aur baraabar apane apamaan kee yaad dilaakar apane patiyonko yuddhake liye protsaahit karatee raheen . antamen jab yahee tay hua ki ek baar kauravonko samajhaa-bujhaakar dekh liya jaay, aur jab bhagavaan shreekrishn paandavonkee orase sandhika prastaav lekar hastinaapur jaane lage, us samay bhee inhen apane apamaan kee baat naheen bhoolee aur inhonne apane lanbe-lanbe kaale baalonko unhen dikhaate hue shreekrishnase kahaa-'shreekrishna! tum sandhi karane ja rahe ho so to theek hai; parantu tum mere in khule keshonko n bhool jaana jaahu bhale kururaaj pai dhaari doot ko vesabhooli n jaiyo pai vahaan kesee. krishna kes 'madhusoodana. kya mere ye kesh aajeevan khule hee rahenge? yadi paandav yuddh naheen karana chaahate to main apane paanchon putronko aadesh doongee, beta abhimanyu unaka netritv karega, mere vriddh pita aur bhaaee sahaayata karenge. parashreekrishna! tumhaara chakr kya shaant hee rahegaa?'
isapar shreekrishnane gambheerataake saath kahaa-'krishne ! aansuonko roko; mainne pratijna kee hai, aur prakritike saare niyamonke palat jaanepar bhee vah mithya naheen hogee. tumhaara jinapar kop hai, unakee vidhava patniyonko tum sheeghr hee rote dekhogee.'
kaamyaka- vanamen jab dusht jayadrath draupadeeko balapoorvak le jaanekee cheshta karane laga, tab in veeraanganaane use itane jorase dhakka diya ki vah kate hue peda़kee tarah jameenapar gir pada़aa; kintu phir turant hee uth khada़a hua aur inhen balapoorvak rathapar baithaakar le chala jab bheem arjun use pakada़ laaye aur usako apane dushkarmaka paryaapt dand mil gaya, tab inhonne daya karake use chhuda़a diyaa. krodhake saatha-saath kshamaaka kaisa apoorv mel hai! inaka paativrata-tej to apoorv tha hee. jis kiseene bhee inake saath chheda़-chhaada़ ko useeko praanonse haath dhone pada़e. duryodhan, duhshaasan, karn, jayadrath, keechak aadi sabakee yahee dasha huee. mahaabhaarat yuddhamen jo kauravonka sarvanaash hua, usaka mool satee draupadeeka apamaan hee thaa.
mahaabhaarat samaapt huaa. paandav sena shaantise shayan kar rahee thee. shreekrishn paanchon paandavon tatha draupadeeko lekar upaplavy nagar chale gaye the. praatah dootane samaachaar diya ki raatrimen shiviramai agni lagaakar sabako nirdayataapoorvak maar daalaa. yah sunate hee sab rathamen baithakar shiviramen pahunche. apane mrit putronko dekhakar draupadeene bada़e karun svaramen krandan karate hue kahaa- 'mere paraakramee putr yadi yuddhamen lada़te hue maare gaye hote to main santosh kar letee. kroor braahmanane nirdayataapoorvak unhen sote samay maar daala hai."
draupadeeko dharmaraajane samajhaaneka prayatn kiya parantu putrake shavonke paas rotee maataako kya samajhaayega koee. bheemane krodhit hokar ashvatthaamaaka peechha kiyaa. shreekrishnane bataaya ki neech ashvatthaama bheemapar brahmaastra-prayog kar sakata hai. arjunako lekar ve bhee peechhe rathamen baithakar gaye. ashvatthaamaane brahmaastraka prayog kiyaa. use shaantakaraneko arjunane bhee usee astrase use shaant karana chaahaa. donon brahmaastronne pralayaka drishy upasthit kar diyaa. bhagavaan vyaas tatha devarshi naaradane prakat hokar brahmaastronko lauta leneka aadesh diyaa. arjunane brahmaastr lauta liyaa. pakada़kar drona-putrako unhonne baandh liya aur apane shiviramen le aaye.
ashvatthaama pashukee bhaanti bandha hua thaa. nindit karm karanese usakee shree nasht ho gayee thee. usane sir jhuka rakha thaa. arjunane use laakar draupadeeke sammukh khada़a kar diyaa. guruputrako is dashaamen dekhakar draupadeeko daya a gayee. unhonne kahaa- 'inhen jaldee chhoda़ do. jinase sampoorn astra-shastronkee aapalogonne shiksha paayee hai, ve bhagavaan dronaachaary hee putraroopamen svayan upasthit hain. jaise putronke shokamen mujhe duhkh ho raha hai, main ro rahee hoon, aisa hee pratyek streeko hota hogaa. inakee maata devee kripeeko yah shok n ho. ve putrashokamen meree tarah n royen! braahman sab prakaar poojy hota hai. inhen sheeghr chhoda़ do! braahmanonka hamaare dvaara anaadar naheen hona chaahiye.' dhany maataaka hriday !
bheemasen ashvatthaamaake vadhake pakshamen the. antamen shreekrishnakee sammatise dronaputrake mastakapar rahanevaalee mani chheenakar arjunane use shivirase baahar nikaal diyaa.
tadvaarakaase lautakar arjunane jab yaduvanshake sankshayaka samaachaar diya, tab pareekshitka raajyaabhishek karake dharmaraajane apane raajochit vastronka tyaag kar diyaa. men maun vrat lekar ve nikal pada़e. bhaaiyonne bhee unheenka anukaran kiyaa. draupadeene bhee valkal pahana aur patiyonke peechhe chal pada़een. dharmaraaj seedhe uttar chalate gaye. badarikaashramase oopar ve himapradeshamen ja rahe the. draupadee sabake peechhe chal rahee theen. sab maun the. koee kiseekee aur dekhata naheen thaa. draupadeene apana chitt sab orase ekaagr karake paraatpar bhagavaan shreekrishnamen laga diya thaa. unhen shareeraka pata naheen thaa. himapar phisalakar ve gir pada़een. shareer usee shvet himaraashimen vileen ho gayaa. mahaaraanee draupadee to param tattvase ek ho chukee theen. ve to vastutah bhagavaankee abhinn shakti hee theen.