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जननी कौसल्या की मार्मिक कथा
जननी कौसल्या की अधबुत कहानी - Full Story of जननी कौसल्या (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [जननी कौसल्या]- भक्तमाल


बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची कीरति जासु सकल जग माची।।
प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू । बिस्व सुखद खल कमल तुसारू ।।

रामायणमें महारानी कौसल्याजीका चरित्र बहुत ही उदार और आदर्श है। ये महाराज दशरथकी सबसे बड़ी पत्नी और भगवान् श्रीरामचन्द्रकी जननी थीं। प्राचीन कालमें मनु - शतरूपाने तप करके श्रीभगवान्‌को पुत्ररूपसे प्राप्त करनेका वरदान पाया था; वे ही मनु-शतरूपा यहाँ दशरथ - कौसल्या और भगवान् श्रीराम ही पुत्ररूपसे उनके घर अवतरित हुए हैं। श्रीकौसल्याजीके चरित्रका प्रारम्भ अयोध्याकाण्डसे होता है। भगवान् श्रीरामका राज्याभिषेक होनेवाला है। नगरभरमें उत्सवकी तैयारियाँहो रही हैं। आज माता कौसल्याके आनन्दका पार नहीं है; वे रामकी मङ्गल कामनासे अनेक प्रकारके यज्ञ, दान, देवपूजन और उपवास-व्रतमें संलग्न हैं। श्रीसीतारामको राज्यसिंहासनपर देखनेकी निश्चित आशासे उनका रोम रोम खिल रहा है। परंतु श्रीराम दूसरी ही लीला करना चाहते हैं। सौन्दर्योपासक महाराज दशरथ कैकेयीके साथ वचनबद्ध होकर श्रीरामको वनवास देनेके लिये बाध्य हो जाते हैं।

धर्मके लिये त्याग

प्रातः काल श्रीरामचन्द्र माता कैकेयी और पिता दशरथ महाराजसे मिलकर वनगमनका निश्चय कर लेतेहैं और माता कौसल्यासे आज्ञा लेनेके लिये उनके महलमें पधारते हैं। कौसल्या उस समय ब्राह्मणोंके द्वारा अग्निमें हवन करवा रही हैं और मन-ही-मन सोच रही हैं कि 'मेरे राम इस समय कहाँ होंगे, शुभ लग्न किस समय है?' इतनेमें ही नित्य प्रसन्नमुख और उत्साहपूर्ण हृदयवाले श्रीरामचन्द्र माताके समीप जा पहुँचते हैं। रामको देखते ही माता तुरंत उठकर वैसे ही सामने जाती हैं जैसे घोड़ी बछेरेके पास जाती है। राम माताको पास आयी देख उनके गले लग जाते हैं और माता भी भुजाओंसे पुत्रको आलिङ्गन कर उनका सिर सूँघने लगती हैं। (वा0 रा0 2।20 । 20-21)

इस समय कौसल्याके हृदयमें वात्सल्य रसकी बाढ़ आ गयी, उनके नेत्रोंसे प्रेमाश्रुओंकी धारा बहने लगी। कुछ देरतक तो यही अवस्था रही, फिर कौसल्या रामपर निछावर करके बहुमूल्य वस्त्राभूषण बाँटने लगीं। श्रीराम चुपचाप खड़े थे। अब स्नेहमयी मातासे रहा नहीं गया। उन्होंने हाथ पकड़कर पुत्रको नन्हें-से शिशुकी भाँति गोदमें बैठा लिया और लगीं प्यार करने।

बार बार मुख चुंबति माता नयन नेह जलु पुलकित गाता ॥ जैसे रंक कुबेरके पदको प्राप्तकर फूला नहीं समाता, आज वही दशा कौसल्याकी है। इतनेमें स्मरण आया कि दिन बहुत चढ़ गया है। मेरे प्यारे रामने अभी कुछ खाया भी नहीं होगा। अतएव माँ कहने लगी

तात जाउँ बलि बेगि नहाहू जो मन भाव मधुर कछु खाहू ।। माता सोच रही हैं कि 'लगनमें बहुत देर होगी, मेरा राम इतनी देर भूखा कैसे रह सकेगा। कुछ मिठाई हो खा ले, दो-चार फल ही ले ले तो ठीक है।' उन्हें यह पता नहीं था कि राम तो दूसरे ही कामसे यहाँ आये हैं। भगवान् रामने कहा- 'माता ! पिताजीने मुझको वनका राज्य दिया है, जहाँ सभी प्रकारसे मेरा बड़ा कल्याण होगा।' तुम प्रसन्न चित्तसे मुझको वन जानेके लिये आज्ञा दे दो, चौदह साल बनमें निवासकर पिताजीके वचनोंको सत्य करके पुनः इन चरणोंके दर्शन करूँगा। माता! तुम किसी तरह दुःख न करो।'

रामके ये वचन कौसल्याके हृदयमें शूलकी भाँति बिंध गये। हा कहाँ तो चक्रवर्ती साम्राज्य के ऊंचेसिंहासनपर बैठनेकी बात और कहाँ अब प्राणाराम रामको वन जाना पड़ेगा। कौसल्याजीके हृदयका विषाद कहा नहीं जाता, वह मूर्च्छित होकर गिर पड़ीं और थोड़ी देर बाद जगकर भाँति-भाँति से विलाप करने लगीं।

कौसल्याके मनमें आया कि पिताकी अपेक्षा माताका स्थान ऊँचा है; यदि महाराजने रामको वनवास दिया है तो क्या हुआ, मैं नहीं जाने दूँगी। परंतु फिर सोचा कि 'यदि बहिन कैकेयीने आज्ञा दे दी होगी तो मेरा रोकनेका क्या अधिकार है; क्योंकि मातासे भी सौतेली माताका दर्जा ऊँचा माना गया है।' इस विचारसे कौसल्या श्रीरामको रोकनेका भाव छोड़कर मार्मिक शब्दोंमें कहती है जी केवल पितु आयसु ताता ती जनि जाडु जानि यदि माता ॥ जी पितु मातु कहेड बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना ॥

मातासे कहा गया कि 'पिताकी ही नहीं, माता कैकेयीकी भी यही सम्मति है।' यहाँपर कौसल्याने बड़ी बुद्धिमानीके साथ यह भी सोचा कि यदि मैं श्रीरामको हठपूर्वक रखना चाहूंगी तो धर्म जायगा ही, साथ ही दोनों भाइयोंमें परस्पर विरोध भी हो सकता है।

राख सुतहि कर अनुरोधू धरमु जाइ अरु बंधु बिरोधू ॥ अतएव सब तरहसे सोचकर धर्मपरायणा साध्वी कौसल्याने हृदयको कठिन करके रामसे कह दिया कि 'बेटा! जब पिता-माता दोनोंकी आज्ञा है और तुम भी इसको धर्मसम्मत समझते हो तो मैं तुम्हें रोककर धर्ममें बाधा नहीं देना चाहती; जाओ और धर्मका पालन करते रहो।' मेरा एक अनुरोध अवश्य है-

मानि मातु कर नात बलि सुरति बिसरि जनि जाइ ॥

पातिव्रतधर्म कह तो दिया; परंतु फिर हृदयमें तूफान आया। अब कौसल्या साथ ले चलनेके लिये आग्रह करने लगीं और बोलीं

यथा हि धेतुः स्वं वत्सं गच्छन्तमनुगच्छति। अहं त्वानुगमिष्यामि यत्र वत्स गमिष्यसि ।।

(बा0 रा0 अ0 2।24।9)

'बेटा जैसे गाय अपने बछडेके पीछे, जहाँ वह जाता है वहीं जाती है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे साथ तुम जहाँ जाओगे, वहीं जाऊँगी।' इसपर भगवान् श्रीराममाताको अवसर जानकर पातिव्रत धर्मका बड़ा हो सुन्दर उपदेश दिया, जो स्त्रीमात्रके लिये मनन करने योग्य है। भगवान् बोले

'माताजी! पतिको परित्याग कर देना स्त्रीके लिये बहुत बड़ी क्रूरता है; तुमको मनसे भी ऐसा सोचना नहीं चाहिये, करना तो दूर रहा। जबतक ककुत्स्थवंशी मेरे पिताजी जीवित हैं, तबतक तुमको उनको सेवा ही करनी चाहिये; यही सनातन धर्म है। सधवा स्त्रियोंके लिये पति ही देवता है और पति हो प्रभु है। महाराज तो तुम्हारे और मेरे स्वामी और राजा हैं। भाई भरत भी धर्मात्मा और प्राणिमात्रके साथ प्रिय आचरण करनेवाले हैं; वे भी तुम्हारी सेवा ही करेंगे, क्योंकि उनका धर्ममें नित्य प्रेम है। माता! मेरे जानेके बाद तुमको बड़ी सावधानीके साथ ऐसा प्रयत्न करना चाहिये कि जिससे महाराज दुःखी होकर दारुण शोकसे अपने प्राण न त्याग दें। सावधान होकर सर्वदा वृद्ध महाराजके हितकी ओर ध्यान दो। व्रत-उपवासादि नियमोंमें तत्पर रहनेवाली धर्मात्मा स्त्री भी यदि अपने पतिके अनुकूल नहीं रहती तो वह अधम गतिको प्राप्त होती है; परंतु जो देवताओंका पूजन-वन्दन आदि बिलकुल न करके भी पतिकी सेवा करती है, उसको उसीके फलस्वरूप उत्तम स्वर्गकी प्राप्ति होती है। अतएव पतिका हित चाहनेवाली प्रत्येक स्पोको केवल पतिकी सेवामें ही लगे रहना चाहिये। स्त्रियोंके लिये श्रुति स्मृतिमें एकमात्र यही धर्म बतलाया गया है।' (वा0 रा0 2।24)

साध्वी कौसल्या तो पतिव्रता शिरोमणि थीं ही, पुत्र- स्नेहसे रामके साथ जानेको तैयार हो गयी थीं, अब पुत्रके द्वारा पातिव्रत धर्मका महत्त्व सुनते ही पुनः कर्तव्यपर डट गर्यो और श्रीरामको वन-गमन करनेके लिये उन्होंने आज्ञा दे दीं। कौसल्याके पातिव्रतके सम्बन्धमें निम्नलिखित उदाहरण और भी ध्यान देने योग्य है-जिस समय श्रीसीताजी स्वामी श्रीरामके साथ वन जानेको तैयार होती हैं, उस समय कौसल्याजी उत्तम आचरणवाली सीताको हृदयसे लगाकर और उनका सिर

सूपकर निम्नलिखित उपदेश करती हैं 'पुत्री! जो स्त्रियाँ पतिके द्वारा सब प्रकारसे सम्मानपानेपर भी गरीबीकी हालतमें उनकी सेवा नहीं करतीं, वे असतो मानी जाती हैं। जो स्त्रियों सती हैं, वे ही शीलवती और सत्यवादिनी होती हैं, बड़ोंक उपदेशके अनुसार उनका बर्ताव होता है, वे अपने कुलकी मर्यादाका कभी उल्लङ्घन नहीं करतीं और अपने एकमात्र पतिको ही परम पूज्य देवता मानती हैं। बेटी पुत्र रामको पिताने वनवासी बना दिया है; वह धनी हो या निर्धन, तेरे लिये तो वही देवता है। अतः कभी उसका तिरस्कार न करना।'

प्रभा ।। यद्यपि परम सती सीताजीको पातिव्रतका उपदेश करना सूर्यको दीपक दिखाना है, तथापि सीताने सासके वचनोंसे कुछ बुरा नहीं माना या अपना अपमान नहीं समझा और उनकी बातें धर्मार्थयुक्त समझ हाथ जोड़कर कहा-'माताजी मैं आपके उपदेशानुसार ही करूंगी: पतिके साथ किस प्रकारका बर्ताव करना चाहिये, इस विषयका उपदेश माता-पिताके द्वारा मुझको प्राप्त हो चुका है। आप असाध्वी स्त्रियोंके साथ मेरी तुलना न करें

धर्माद्विचलितुं नाहमलं चन्द्रादिव
नातन्त्री वाद्यते वीणा नाचको विद्यते रथः ।
नापतिः सुखमेधेत या स्यादपि शतात्मजा ।
मितं ददाति हि पिता मितं भ्राता मितं सुतः ।
अमितस्य तु दातारं भर्तारं का न पूजयेत्

( वा0 रा0 2। 39 । 28-30)
'मैं कदापि धर्मसे विचलित न हो सकूँगी। जिस प्रकार चन्द्रमासे चाँदनी अलग नहीं होती, जिस प्रकार बिना तारके वीणा नहीं बजती, जिस प्रकार बिना पहियेके रथ नहीं चल सकता, उसी प्रकार स्त्री चाहे सौ. पुत्रोंकी भी माँ क्यों न हो जाय, पति बिना वह कभी सुखी नहीं हो सकती। पिता, माता, भाई और पुत्र आदि जो कुछ सुख देते हैं, वह परिमित होता है और केवल इसी लोकके लिये होता है; परंतु पति तो मोक्षरूप अपरिमित सुखका दाता है। अतएव ऐसी कौन दुष्टा स्त्री है, जो अपने पतिकी सेवा न करेगी।'

जब श्रीराम वनको चले जाते हैं और महाराज दशरथ दुःखी होकर कौसल्याके भवनमें आते हैं, तब आवेशमें आकर वे उन्हें कुछ कठोर वचन कह बैठतीहैं; इसके उत्तरमें जब दुःखी महाराज आर्तभावसे हाथ जोड़कर कौसल्यासे क्षमा माँगते हैं, तब कौसल्या भयभीत होकर अपने कृत्यपर बड़ा भारी पश्चात्ताप करती हैं। उनकी आँखोंसे निर्झरकी तरह आँसू बहने लगते हैं, और वे महाराजके हाथ पकड़ उन्हें अपने मस्तकपर रखकर घबराहटके साथ कहती हैं-'नाथ! मुझसे बड़ी भूल हुई। मैं धरतीपर सिर टेककर प्रार्थना करती हूँ, आप मुझपर प्रसन्न होइये। मैं पुत्रवियोगसे पीड़ित हूँ, आप क्षमा कीजिये। देव! आपको जब मुझ दासीसे क्षमा माँगनी पड़ी, तब मैं आज पातिव्रत धर्मसे भ्रष्ट हो गयी। आज मेरे शीलपर कलङ्क लग गया। अब मैं क्षमाके योग्य नहीं रही, मुझे अपनी दासी जानकर उचित दण्ड दीजिये। अनेक प्रकारकी सेवाओंके द्वारा प्रसन्न करनेयोग्य बुद्धिमान् स्वामी जिस स्त्रीको प्रसन्न करनेके लिये बाध्य होता है, उस स्त्रीके लोक-परलोक दोनों नष्ट हो जाते हैं। हे स्वामिन्! मैं धर्मको जानती हूँ, आप सत्यवादी हैं, यह भी मैं जानती हूँ। मैंने जो कुछ कहा सो पुत्र शोककी अतिशय पीड़ासे घबराकर कहा है।' कौसल्याके इन वचनोंसे राजाको कुछ सान्त्वना हुई और उनकी आँख लग गयी।

उपर्युक्त अवतरणोंसे यह पता लगता है कि कौसल्या पातिव्रत धर्मके पालनमें बहुत ही आगे बढ़ी हुई थीं। स्त्रियोंको इस प्रसङ्गसे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये।


कर्तव्यनिष्ठा

दशरथजी श्रीरामके वियोगमें व्याकुल हैं, खान-पान छूट गया है, मृत्युके चिह्न प्रत्यक्ष दीख पड़ने लगे हैं. नगर और महलोंमें हाहाकार मचा हुआ है। ऐसी अवस्थामें धीरज धारणकर अपने दुःखको भुला श्रीरामकी माता कौसल्या, जिनका प्राणाधार पुत्र वधूसहित वनवासी हो चुका है, अपने उत्तरदायित्व और कर्तव्यको समझती हुई महाराजसे कहती हैं

नाथ समुझि मन करिअ
विचारू राम बियोग पयोध अपारू ।।
करनधार तुम्ह अवध जहाजू
चक्रे सकल प्रिय पथिक समाजू ॥
धीर धरिअ त पाइअ पारू नाहि
त ब्रूहिहि सबु परिवारू ।।
जी जिये धरिअ विनय प्रिय
मोरी राम लखन सिय मिलहिं बहोरी ।।


धन्य रामजननी देवी कौसल्या ऐसी अवस्थामेंतुम्हीं ऐसे आदर्श वचन कह सकती हो, धन्य तुम्हारे धैर्य, साहस, पातिव्रत, विश्वास और तुम्हारी आदर्श कर्तव्य-निशाको l

वधू- प्रेम

कौसल्याको अपनी पुत्रवधू सीताके प्रति कितना वात्सल्य प्रेम था, इसका दिग्दर्शन नीचेके कुछ शब्दोंसे होता है। जब सीताजी रामके साथ वन जाना चाहती हैं, तब रोती हुई कौसल्या कहती हैं-

मैं पुनि पुत्रवधू प्रिय पाई रूप रासि गुन सील सुहाई ॥ जयन पुतरि करि प्रीति बढ़ाई राखे प्रान जानकिहिं लाई ॥
पलंग पीठ तजि गोद हिंडोरा सियै न दीन्ह पगु अवनि कठोरा।।
जिअनमूरि जिमि जोगवत रहऊँ दीप याति नहि टारन कहकै ॥

जब सुमन्त श्रीसीता-राम-लक्ष्मणको वनमें छोड़कर अयोध्या आते हैं, तब कौसल्या अनेक प्रकार चिन्ता करती हुई पुत्रवधूका कुशल समाचार पूछती हैं। फिर जब चित्रकूटमें सीताको देखती हैं, तब बड़ा ही दुःख करती हुई कहती हैं-'बेटी! धूपसे सूखे हुए कमलके समान, मसले हुए कुमुदके समान, धूलसे लिपटे हुए सोनेके समान और बादलोंसे छिपाये हुए चन्द्रमाके समान तेरा यह मलिन मुख देखकर मेरे हृदयमें जो दुःखरूपी अरणीसे उत्पन्न शोकाग्नि है, वह मुझे जला रही है।'

यदि आज सभी सासुओंका बर्ताव पुत्रवधुओंके साथ
ऐसा हो जाय, तो घर-घरमें सुखका स्रोत बहने लगे।
राम-भरतमें समानभाव और प्रजा हितकौसल्या राम और भरतमें कोई अन्तर नहीं मानती थीं। उनका हृदय विशाल था। जब भरतजी ननिहाल से आते हैं और अनेक प्रकारसे विलाप करते हुए एवं अपनेको धिक्कारते हुए, सारे अनथका कारण अपनेको मानते हुए माता कौसल्याके सामने फूट-फूटकर रोने लगते हैं, तब माता सहसा उठकर आँसू बहाती हुई भरतको हृदयसे लगा लेती हैं और ऐसा मानती हैं मानों राम ही लौट आये। उस समय शोक और स्नेह उनके हृदयमें नहीं समाता, तथापि वे बेटे भरतको धीरज बँधाती हुई कोमल वाणीसे कहती हैं -
अजहुँ बच्छ बलि धीरज धर कुसम समुझि सोक परिहरछू ।।
जनि मानहु हिये हानि गलानी। काल करम गति अघटित जानी।।
राम प्रान तें प्रान तुम्हारे तुम्ह रघुपतिहि प्रानतु ते प्यारे ॥ विधु विष चवै वै हिमु आगी होइ बारिचर बारि बिरागी ।। भएँ ग्यानु बरु मिटै न मोहू तुम्ह रामहि प्रतिकूल न होहू ।। मत तुम्हार यहु जो जग कहहीं सो सपनेहुँ सुख सुगति न लहहीं ॥ अस कहि मातु भरतु हियँ लाए धन पय स्त्रवहिं नयन जल छाए।

कैसे आदर्श वाक्य हैं। रामकी माता ऐसी न हों तो और कौन होगी!

महाराजकी दाह-क्रियाके उपरान्त जब वसिष्ठजी और नगरके लोग भरतको राजगद्दीपर बैठाना चाहते हैं। और जब भरत किसी प्रकार भी नहीं मानते, तब माता कौसल्या प्रजाके सुखके लिये धीरज धरकर कहती हैं ।

पूत पध्य गुर आयसु अहई ||
सो आदरिअ करिअ हित मानी ।
तजिअ विषाद काल गति जानी ॥
बन रघुपति सुरपति नरनाडू तुम्ह एहि
भाँति तात कदराहू ॥
परिजन प्रजा सचिव सब अंबा
तुम्हही सुत सब कहें अवलंबा ।।
लखि बिधि बाम काल कठिनाई।
धीरजु धरहु मातु बलि जाई ।।
सिर धरि गुर आयसु अनुसरहू।
प्रजा पालि परिजन दुख हरहू ।।

प्रजा हितका इतना ध्यान श्रीराम-माताको होना ही चाहिये। माताने रामके वन जाते समय भी कहा था- 'मुझे इस बातका तनिक भी दुःख नहीं है कि रामको राज्यके बदले वन मिल रहा है। मुझे तो इसी बातकी चिन्ता है कि रामके बिना महाराज दशरथ, पुत्र भरत और प्रजाको महान् क्लेश होगा

राजु देन कहि दीन्ह बनु मोहि न सो दुख लेसु ।
तुम्ह बिनु भरतहि भूपतिहि प्रजहि प्रचंड कलेसु ॥

पुत्र-प्रेम

कौसल्याकी पुत्रवत्सलता आदर्श है। रामके बनवाससे कौसल्याको प्राणान्त क्लेश है; परन्तु प्यारे पुत्र श्रीरामकी धर्मरक्षाके लिये कौसल्या उन्हें रोकती नहीं, वरं कहती है।

न शक्यसे वारयितुं गच्छेदानीं रघूत्तम ।
शीघ्रं च विनिवर्तस्व वर्तस्व च सतां क्रमे ॥
यं पालयसि धर्म त्वं प्रीत्या च नियमेन च।
वै राघवशार्दूल धर्मस्त्वामभिरक्षतु ॥

( वा0 रा0 2।25। 2-3)

'बेटा। मैं तुझे इस समय वन जानेसे रोक नहीं सकती। तू जा और शीघ्र ही लौटकर आ सत्पुरुषोंके मार्गका अनुसरण करता रह तू प्रेम और नियमके साथ जिस धर्मका पालन कर रहा है, वह धर्म ही तेरी रक्षा करे।' इस प्रकार धर्मपर दृढ़ रहने और महात्माओंके सन्मार्गका अनुसरण करनेकी शिक्षा देती हुई माता पुत्रकी मङ्गलरक्षा करती है और कहती हैं-

पितु बनदेव मातु बनदेवी खग मृग चरन सरोरुह सेवी ।। अंतहुँ उचित नृपहि बनवासू ।
बय बिलोकि हियँ होइ हरासू ॥
कर्तव्यपरायणा धर्मशीला त्यागमूर्ति


माता कौसल्या इस प्रकार पुत्रको सहर्ष वनमें भेज देती हैं। वियोगके दावानलसे हृदय दग्ध हो रहा है; परंतु पुत्रके धर्मको टेक और उसकी हर्ष-शोक-रहित सुख-दुःख-शून्य आनन्दमयी मञ्जुल मूर्तिकी ओर देख-देखकर अपनेको गौरवान्वित समझती है। यह है सच्चा प्रेम यहाँ मोहको तनिक भी अवकाश नहीं। भरतजीके सामने कौसल्या गौरवके साथ प्यारे पुत्र श्रीरामकी प्रशंसा करती हुई कहती हैं-'बेटा! महाराजने तेरे बड़े भाई रामको राज्यके बदले वनवास दे दिया; परंतु इससे रामके मुखपर म्लानता भी नहीं आयी।

पितु आयस भूषन बसन तात तजे रघुबीर।
बिसम हरषु न हृदयँ कछु पहिरे बलकल चीर ।।
मुख प्रसन्न मन रंग न रोषू सब कर
सब बिधि करि परितोषू ।।
चले बिपिन सुनि सियसँग लागी।
रहइ न राम चरन अनुरागी ॥
सुनतर्हि लखनु चले उठि साथा।
रहहिं न जतन किए रघुनाथा ॥
तब रघुपति सबही सिरु नाई।
चले संग सिय अरु लघु भाई ॥


यह सब होनेपर भी माताका हृदय पुत्रका मधुर मुखड़ा देखनेके लिये निरन्तर व्याकुल है। चौदह साल नही हो कठिनतासे श्रीरामके ध्रुव सत्य वचनोंकी आशापर बीतते हैं । लङ्का विजयकर श्रीराम जब अयोध्या लौटते हैं और जब माताको यह समाचार मिलता है, तब ये सुनते ही इस प्रकार दौड़ती हैं, जैसे गाय बछड़ेके लिये दौड़ा करती है।

कौसल्यादि मातु सब धाई। निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई।।

जनु धेनु बालक बच्छ तजि
गृह चरन बन परबस गई l
दिन अस्त पुर रुख स्त्रवत थन
हुंकार करि धावति भई l



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maataase kaha gaya ki 'pitaakee hee naheen, maata kaikeyeekee bhee yahee sammati hai.' yahaanpar kausalyaane bada़ee buddhimaaneeke saath yah bhee socha ki yadi main shreeraamako hathapoorvak rakhana chaahoongee to dharm jaayaga hee, saath hee donon bhaaiyonmen paraspar virodh bhee ho sakata hai.

raakh sutahi kar anurodhoo dharamu jaai aru bandhu birodhoo .. ataev sab tarahase sochakar dharmaparaayana saadhvee kausalyaane hridayako kathin karake raamase kah diya ki 'betaa! jab pitaa-maata dononkee aajna hai aur tum bhee isako dharmasammat samajhate ho to main tumhen rokakar dharmamen baadha naheen dena chaahatee; jaao aur dharmaka paalan karate raho.' mera ek anurodh avashy hai-

maani maatu kar naat bali surati bisari jani jaai ..

paativratadharm kah to diyaa; parantu phir hridayamen toophaan aayaa. ab kausalya saath le chalaneke liye aagrah karane lageen aur boleen

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(baa0 raa0 a0 2.24.9)

'beta jaise gaay apane bachhadeke peechhe, jahaan vah jaata hai vaheen jaatee hai, vaise hee main bhee tumhaare saath tum jahaan jaaoge, vaheen jaaoongee.' isapar bhagavaan shreeraamamaataako avasar jaanakar paativrat dharmaka bada़a ho sundar upadesh diya, jo streemaatrake liye manan karane yogy hai. bhagavaan bole

'maataajee! patiko parityaag kar dena streeke liye bahut bada़ee kroorata hai; tumako manase bhee aisa sochana naheen chaahiye, karana to door rahaa. jabatak kakutsthavanshee mere pitaajee jeevit hain, tabatak tumako unako seva hee karanee chaahiye; yahee sanaatan dharm hai. sadhava striyonke liye pati hee devata hai aur pati ho prabhu hai. mahaaraaj to tumhaare aur mere svaamee aur raaja hain. bhaaee bharat bhee dharmaatma aur praanimaatrake saath priy aacharan karanevaale hain; ve bhee tumhaaree seva hee karenge, kyonki unaka dharmamen nity prem hai. maataa! mere jaaneke baad tumako bada़ee saavadhaaneeke saath aisa prayatn karana chaahiye ki jisase mahaaraaj duhkhee hokar daarun shokase apane praan n tyaag den. saavadhaan hokar sarvada vriddh mahaaraajake hitakee or dhyaan do. vrata-upavaasaadi niyamonmen tatpar rahanevaalee dharmaatma stree bhee yadi apane patike anukool naheen rahatee to vah adham gatiko praapt hotee hai; parantu jo devataaonka poojana-vandan aadi bilakul n karake bhee patikee seva karatee hai, usako useeke phalasvaroop uttam svargakee praapti hotee hai. ataev patika hit chaahanevaalee pratyek spoko keval patikee sevaamen hee lage rahana chaahiye. striyonke liye shruti smritimen ekamaatr yahee dharm batalaaya gaya hai.' (vaa0 raa0 2.24)

saadhvee kausalya to pativrata shiromani theen hee, putra- snehase raamake saath jaaneko taiyaar ho gayee theen, ab putrake dvaara paativrat dharmaka mahattv sunate hee punah kartavyapar dat garyo aur shreeraamako vana-gaman karaneke liye unhonne aajna de deen. kausalyaake paativratake sambandhamen nimnalikhit udaaharan aur bhee dhyaan dene yogy hai-jis samay shreeseetaajee svaamee shreeraamake saath van jaaneko taiyaar hotee hain, us samay kausalyaajee uttam aacharanavaalee seetaako hridayase lagaakar aur unaka sira

soopakar nimnalikhit upadesh karatee hain 'putree! jo striyaan patike dvaara sab prakaarase sammaanapaanepar bhee gareebeekee haalatamen unakee seva naheen karateen, ve asato maanee jaatee hain. jo striyon satee hain, ve hee sheelavatee aur satyavaadinee hotee hain, baड़onk upadeshake anusaar unaka bartaav hota hai, ve apane kulakee maryaadaaka kabhee ullanghan naheen karateen aur apane ekamaatr patiko hee param poojy devata maanatee hain. betee putr raamako pitaane vanavaasee bana diya hai; vah dhanee ho ya nirdhan, tere liye to vahee devata hai. atah kabhee usaka tiraskaar n karanaa.'

prabha .. yadyapi param satee seetaajeeko paativrataka upadesh karana sooryako deepak dikhaana hai, tathaapi seetaane saasake vachanonse kuchh bura naheen maana ya apana apamaan naheen samajha aur unakee baaten dharmaarthayukt samajh haath joda़kar kahaa-'maataajee main aapake upadeshaanusaar hee karoongee: patike saath kis prakaaraka bartaav karana chaahiye, is vishayaka upadesh maataa-pitaake dvaara mujhako praapt ho chuka hai. aap asaadhvee striyonke saath meree tulana n karen

dharmaadvichalitun naahamalan chandraadiva
naatantree vaadyate veena naachako vidyate rathah .
naapatih sukhamedhet ya syaadapi shataatmaja .
mitan dadaati hi pita mitan bhraata mitan sutah .
amitasy tu daataaran bhartaaran ka n poojayet

( vaa0 raa0 2. 39 . 28-30)
'main kadaapi dharmase vichalit n ho sakoongee. jis prakaar chandramaase chaandanee alag naheen hotee, jis prakaar bina taarake veena naheen bajatee, jis prakaar bina pahiyeke rath naheen chal sakata, usee prakaar stree chaahe sau. putronkee bhee maan kyon n ho jaay, pati bina vah kabhee sukhee naheen ho sakatee. pita, maata, bhaaee aur putr aadi jo kuchh sukh dete hain, vah parimit hota hai aur keval isee lokake liye hota hai; parantu pati to moksharoop aparimit sukhaka daata hai. ataev aisee kaun dushta stree hai, jo apane patikee seva n karegee.'

jab shreeraam vanako chale jaate hain aur mahaaraaj dasharath duhkhee hokar kausalyaake bhavanamen aate hain, tab aaveshamen aakar ve unhen kuchh kathor vachan kah baithateehain; isake uttaramen jab duhkhee mahaaraaj aartabhaavase haath joda़kar kausalyaase kshama maangate hain, tab kausalya bhayabheet hokar apane krityapar bada़a bhaaree pashchaattaap karatee hain. unakee aankhonse nirjharakee tarah aansoo bahane lagate hain, aur ve mahaaraajake haath pakada़ unhen apane mastakapar rakhakar ghabaraahatake saath kahatee hain-'naatha! mujhase bada़ee bhool huee. main dharateepar sir tekakar praarthana karatee hoon, aap mujhapar prasann hoiye. main putraviyogase peeda़it hoon, aap kshama keejiye. deva! aapako jab mujh daaseese kshama maanganee pada़ee, tab main aaj paativrat dharmase bhrasht ho gayee. aaj mere sheelapar kalank lag gayaa. ab main kshamaake yogy naheen rahee, mujhe apanee daasee jaanakar uchit dand deejiye. anek prakaarakee sevaaonke dvaara prasann karaneyogy buddhimaan svaamee jis streeko prasann karaneke liye baadhy hota hai, us streeke loka-paralok donon nasht ho jaate hain. he svaamin! main dharmako jaanatee hoon, aap satyavaadee hain, yah bhee main jaanatee hoon. mainne jo kuchh kaha so putr shokakee atishay peeda़aase ghabaraakar kaha hai.' kausalyaake in vachanonse raajaako kuchh saantvana huee aur unakee aankh lag gayee.

uparyukt avataranonse yah pata lagata hai ki kausalya paativrat dharmake paalanamen bahut hee aage badha़ee huee theen. striyonko is prasangase shiksha grahan karanee chaahiye.


kartavyanishthaa

dasharathajee shreeraamake viyogamen vyaakul hain, khaana-paan chhoot gaya hai, mrityuke chihn pratyaksh deekh pada़ne lage hain. nagar aur mahalonmen haahaakaar macha hua hai. aisee avasthaamen dheeraj dhaaranakar apane duhkhako bhula shreeraamakee maata kausalya, jinaka praanaadhaar putr vadhoosahit vanavaasee ho chuka hai, apane uttaradaayitv aur kartavyako samajhatee huee mahaaraajase kahatee hain

naath samujhi man karia
vichaaroo raam biyog payodh apaaroo ..
karanadhaar tumh avadh jahaajoo
chakre sakal priy pathik samaajoo ..
dheer dhari t paai paaroo naahi
t broohihi sabu parivaaroo ..
jee jiye dhari vinay priy
moree raam lakhan siy milahin bahoree ..


dhany raamajananee devee kausalya aisee avasthaamentumheen aise aadarsh vachan kah sakatee ho, dhany tumhaare dhairy, saahas, paativrat, vishvaas aur tumhaaree aadarsh kartavya-nishaako l

vadhoo- prema

kausalyaako apanee putravadhoo seetaake prati kitana vaatsaly prem tha, isaka digdarshan neecheke kuchh shabdonse hota hai. jab seetaajee raamake saath van jaana chaahatee hain, tab rotee huee kausalya kahatee hain-

main puni putravadhoo priy paaee roop raasi gun seel suhaaee .. jayan putari kari preeti badha़aaee raakhe praan jaanakihin laaee ..
palang peeth taji god hindora siyai n deenh pagu avani kathoraa..
jianamoori jimi jogavat rahaoon deep yaati nahi taaran kahakai ..

jab sumant shreeseetaa-raama-lakshmanako vanamen chhoda़kar ayodhya aate hain, tab kausalya anek prakaar chinta karatee huee putravadhooka kushal samaachaar poochhatee hain. phir jab chitrakootamen seetaako dekhatee hain, tab bada़a hee duhkh karatee huee kahatee hain-'betee! dhoopase sookhe hue kamalake samaan, masale hue kumudake samaan, dhoolase lipate hue soneke samaan aur baadalonse chhipaaye hue chandramaake samaan tera yah malin mukh dekhakar mere hridayamen jo duhkharoopee araneese utpann shokaagni hai, vah mujhe jala rahee hai.'

yadi aaj sabhee saasuonka bartaav putravadhuonke saatha
aisa ho jaay, to ghara-gharamen sukhaka srot bahane lage.
raama-bharatamen samaanabhaav aur praja hitakausalya raam aur bharatamen koee antar naheen maanatee theen. unaka hriday vishaal thaa. jab bharatajee nanihaal se aate hain aur anek prakaarase vilaap karate hue evan apaneko dhikkaarate hue, saare anathaka kaaran apaneko maanate hue maata kausalyaake saamane phoota-phootakar rone lagate hain, tab maata sahasa uthakar aansoo bahaatee huee bharatako hridayase laga letee hain aur aisa maanatee hain maanon raam hee laut aaye. us samay shok aur sneh unake hridayamen naheen samaata, tathaapi ve bete bharatako dheeraj bandhaatee huee komal vaaneese kahatee hain -
ajahun bachchh bali dheeraj dhar kusam samujhi sok pariharachhoo ..
jani maanahu hiye haani galaanee. kaal karam gati aghatit jaanee..
raam praan ten praan tumhaare tumh raghupatihi praanatu te pyaare .. vidhu vish chavai vai himu aagee hoi baarichar baari biraagee .. bhaen gyaanu baru mitai n mohoo tumh raamahi pratikool n hohoo .. mat tumhaar yahu jo jag kahaheen so sapanehun sukh sugati n lahaheen .. as kahi maatu bharatu hiyan laae dhan pay stravahin nayan jal chhaae.

kaise aadarsh vaaky hain. raamakee maata aisee n hon to aur kaun hogee!

mahaaraajakee daaha-kriyaake uparaant jab vasishthajee aur nagarake log bharatako raajagaddeepar baithaana chaahate hain. aur jab bharat kisee prakaar bhee naheen maanate, tab maata kausalya prajaake sukhake liye dheeraj dharakar kahatee hain .

poot padhy gur aayasu ahaee ||
so aadari kari hit maanee .
taji vishaad kaal gati jaanee ..
ban raghupati surapati naranaadoo tumh ehi
bhaanti taat kadaraahoo ..
parijan praja sachiv sab anbaa
tumhahee sut sab kahen avalanba ..
lakhi bidhi baam kaal kathinaaee.
dheeraju dharahu maatu bali jaaee ..
sir dhari gur aayasu anusarahoo.
praja paali parijan dukh harahoo ..

praja hitaka itana dhyaan shreeraama-maataako hona hee chaahiye. maataane raamake van jaate samay bhee kaha thaa- 'mujhe is baataka tanik bhee duhkh naheen hai ki raamako raajyake badale van mil raha hai. mujhe to isee baatakee chinta hai ki raamake bina mahaaraaj dasharath, putr bharat aur prajaako mahaan klesh hogaa

raaju den kahi deenh banu mohi n so dukh lesu .
tumh binu bharatahi bhoopatihi prajahi prachand kalesu ..

putra-prema

kausalyaakee putravatsalata aadarsh hai. raamake banavaasase kausalyaako praanaant klesh hai; parantu pyaare putr shreeraamakee dharmarakshaake liye kausalya unhen rokatee naheen, varan kahatee hai.

n shakyase vaarayitun gachchhedaaneen raghoottam .
sheeghran ch vinivartasv vartasv ch sataan krame ..
yan paalayasi dharm tvan preetya ch niyamen cha.
vai raaghavashaardool dharmastvaamabhirakshatu ..

( vaa0 raa0 2.25. 2-3)

'betaa. main tujhe is samay van jaanese rok naheen sakatee. too ja aur sheeghr hee lautakar a satpurushonke maargaka anusaran karata rah too prem aur niyamake saath jis dharmaka paalan kar raha hai, vah dharm hee teree raksha kare.' is prakaar dharmapar dridha़ rahane aur mahaatmaaonke sanmaargaka anusaran karanekee shiksha detee huee maata putrakee mangalaraksha karatee hai aur kahatee hain-

pitu banadev maatu banadevee khag mrig charan saroruh sevee .. antahun uchit nripahi banavaasoo .
bay biloki hiyan hoi haraasoo ..
kartavyaparaayana dharmasheela tyaagamoorti


maata kausalya is prakaar putrako saharsh vanamen bhej detee hain. viyogake daavaanalase hriday dagdh ho raha hai; parantu putrake dharmako tek aur usakee harsha-shoka-rahit sukha-duhkha-shoony aanandamayee manjul moortikee or dekha-dekhakar apaneko gauravaanvit samajhatee hai. yah hai sachcha prem yahaan mohako tanik bhee avakaash naheen. bharatajeeke saamane kausalya gauravake saath pyaare putr shreeraamakee prashansa karatee huee kahatee hain-'betaa! mahaaraajane tere bada़e bhaaee raamako raajyake badale vanavaas de diyaa; parantu isase raamake mukhapar mlaanata bhee naheen aayee.

pitu aayas bhooshan basan taat taje raghubeera.
bisam harashu n hridayan kachhu pahire balakal cheer ..
mukh prasann man rang n roshoo sab kar
sab bidhi kari paritoshoo ..
chale bipin suni siyasang laagee.
rahai n raam charan anuraagee ..
sunatarhi lakhanu chale uthi saathaa.
rahahin n jatan kie raghunaatha ..
tab raghupati sabahee siru naaee.
chale sang siy aru laghu bhaaee ..


yah sab honepar bhee maataaka hriday putraka madhur mukhada़a dekhaneke liye nirantar vyaakul hai. chaudah saal nahee ho kathinataase shreeraamake dhruv saty vachanonkee aashaapar beetate hain . lanka vijayakar shreeraam jab ayodhya lautate hain aur jab maataako yah samaachaar milata hai, tab ye sunate hee is prakaar dauda़tee hain, jaise gaay bachhada़eke liye dauda़a karatee hai.

kausalyaadi maatu sab dhaaee. nirakhi bachchh janu dhenu lavaaee..

janu dhenu baalak bachchh taji
grih charan ban parabas gaee l
din ast pur rukh stravat thana
hunkaar kari dhaavati bhaee l

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तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
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