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माता कैकेयी की मार्मिक कथा
माता कैकेयी की अधबुत कहानी - Full Story of माता कैकेयी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [माता कैकेयी]- भक्तमाल


रामायणमें महारानी कैकेयीका चरित्र सबसे अधिक बदनाम है। जिसने सारे विश्वके परमप्रिय प्राणाराम रामको बिना अपराध वनमें भिजवानेका अपराध किया— उसका पापिनी, कलंकिनी, राक्षसी, कुलविनाशिनी कहलाना कोई आश्चर्यकी बात नहीं। समस्त सद्गुणोंके आधार, जगदाधार राम जिसकी आँखोंके काँटे हो गये, उसपर गालियोंकी बौछार न हो तो किसपर हो। इसीसे लाखों वर्ष बीत जानेपर भी आज जगत्के नर-नारी कैकेयीका नाम सुनते ही नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं और मौका पानेपर उसे दो-चार ऊँचे-नीचे शब्द सुनानेसे बाज नहीं आते। परंतु इससे यह नहीं समझना चाहिये कि कैकेयी सर्वथा दुर्गुणोंकी ही खान थीं, उनमें कोई सद्गुण था ही नहीं। सच्ची बात तो यह है कि यदि कैकेयीके श्रीरामवनवासका कारण होनेका प्रसङ्ग निकाल लिया जाय तो कैकेयीका चरित्र रामायणके प्रायः सभी स्त्री-चरित्रोंमें शायद बढ़कर समझा जाय। कैकेयीके रामवनवासका कारण होनेमें एक बड़ा भारी रहस्य छिपा हुआ है, जिसका उद्घाटन होनेपर यह सिद्ध हो जाता है कि श्रीरामके अनन्य और अनुकूल भक्तोंमें कैकेयीजीका स्थान सबसे ऊँचा है। इस विषयपर आगे चलकर यथामति विचार प्रकट किये जायँगे। पहले कैकेयीके अन्य गुणोंकी ओर दृष्टि डालिये।

कैकेयी महाराज कैकयकी पुत्री और दशरथजीकी छोटी रानी थीं। ये केवल अप्रतिम सुन्दरी ही नहीं थीं, प्रथम श्रेणीकी पतिव्रता और वीराङ्गना भी थीं। बुद्धिमत्ता, सरलता, निर्भयता, दयालुता आदि सद्गुणोंका कैकेयीके जीवनमें पूर्ण विकास था। इन्होंने अपने प्रेम और सेवाभावसे महाराजके हृदयपर इतना अधिकार कर लिया। था कि महाराज तीनों पटरानियोंमें कैकेयीको ही सबसे अधिक मानते थे। कैकेयी पति सेवाके लिये सभी कुछ कर सकती थीं। एक समय महाराज दशरथ देवताओंकी सहायता के लिये शम्बरासुर नामक राक्षससे युद्ध करने गये। उस समय कैकेयीजी भी पतिके साथ रणाङ्गणमेंगयी थीं आराम या भोग भोगनेके लिये नहीं, सेवा और 1 शूरतासे पतिदेवको सुख पहुँचाने के लिये कैकेयीका पातिव्रत और वीरत्व इसीसे प्रकट होता है कि उन्होंने एक समय महाराज दशरथके सारथिके मर जानेपर स्वयं बड़ी ही कुशलतासे सारथिका कार्य करके महाराजको संकटसे बचाया था। उसी युद्धमें दूसरी बार एक घटना यह हुई कि महाराज घोर युद्ध कर रहे थे, इतनेमें उनके रथके पहियेको धुरी गिर पड़ी। राजाको इस बातका पता नहीं लगा। कैकेयीने इस घटनाको देख लिया और पतिकी विजय कामनासे महाराजसे बिना कुछ कहे-सुने तुरंत धुरीकी जगह अपना हाथ डाल दिया और बड़ी धीरतासे बैठी रहीं। उस समय वेदनाके मारे कैकेयीके आँखोंके कोये काले पड़ गये, परंतु उन्होंने अपना हाथ नहीं हटाया। इस विकट समयमें यदि कैकेयीने बुद्धिमत्ता और सहनशीलतासे काम न लिया होता तो महाराजके प्राण बचने कठिन थे।

शत्रुओंका संहार करनेके बाद जब महाराजको इस घटनाका पता लगा, तब उनके आश्चर्यका पार नहीं रहा। उनका हृदय कृतज्ञता तथा आनन्दसे भर गया। ऐसी वीरता और त्यागपूर्ण क्रिया करनेपर भी उनके मनमें कोई अभिमान नहीं, वे पतिपर कोई अहसान नहीं करतीं। महाराज वरदान देना चाहते हैं तो वे कह देती हैं कि 'मुझे तो आपके प्रेमके सिवा अन्य कुछ भी नहीं चाहिये।' जब महाराज किसी तरह नहीं मानते और दो वर देनेके लिये हठ करने लगते हैं, तब देवी प्रेरणावश 'आवश्यक होनेपर माँग लूँगी' कहकर अपना पिण्ड छुड़ा लेती हैं। उनका यह अपूर्व त्याग सर्वथा सराहनीय है।

भरत, शत्रुघ्न ननिहाल चले गये हैं। पीछेसे महाराजने चैत्रमासमें औरामके राज्याभिषेकको तैयारी की। किसी भी कारणसे हो, उस समय महाराज दशरथने इस महान् उत्सवमें भरत और शत्रुघ्नको बुलवानेकी भी आवश्यकता नहीं समझी, न कैकयराजको ही निमन्त्रण दिया गया। कहा जाता है कि कैकेयीके विवाहके समय महाराज दशरथने इन्हींके द्वारा उत्पन्न होनेवाले पुत्रको राज्यका अधिकारी मान लिया था परंतु रघुवंशको प्रथा औरश्रीरामके प्रति अधिक अनुराग होनेके कारण चुपचाप युवराजपद प्रदान करनेकी तैयारी कर ली गयी। यही कारण था कि रानी कैकेयीके महलोंमें भी इस उत्सवके समाचार पहलेसे नहीं पहुँचे थे। रानी कैकेयी अपना स्वत्व जानती थीं, उन्हें पता था कि भरतको मेरे पुत्रके ते राज्याधिकार मिलना चाहिये; परंतु कैकेयी इस बातकी कुछ भी परवा न करके राम-राज्याभिषेककी बात सुनते ही प्रसन्न हो गयीं। देवप्रेरित कुबड़ी मन्थराने आकर जब उन्हें यह समाचार सुनाया, तब वे आनन्दमें डूब गयीं। वे मन्थराको पुरस्कारमें एक दिव्य उत्तम गहना देकर - 'दिव्यमाभरणं तस्यै कुब्जायै प्रददी शुभम्'- कहती हैं

इदं तु मन्थरे मह्यमाख्यातं परमं प्रियम् ।
एतन्मे प्रियमाख्यातं किं वा भूयः करोमि ते ॥
रामे वा भरते वाहं विशेषं नोपलक्षये ।
तस्मात्तुष्टास्मि यद्राजा रामं राज्येऽभिषेक्ष्यति ॥
न मे परं किञ्चिदितो वरं पुनःप्रियं प्रिया सुवचं वचोऽमृतम् ।
तथा ह्यवोचस्त्वमतः प्रियोत्तरंवरं परं ते प्रददामि तं वृणु ॥

(वा0 रा0 27 34-36)

'मन्थरे! तूने मुझको यह बड़ा हो प्रिय संवाद सुनाया है, इसके बदले मैं तेरा और क्या उपकार करूँ? यद्यपि भरतको राज्य देनेकी बात हुई थी, फिर भी राम और भरतमें मैं कोई भेद नहीं देखती। मैं इस बात से बहुत प्रसन्न हूँ कि महाराज कल रामका राज्याभिषेक करेंगे। हे प्रियवादिनी। रामके राज्याभिषेकका संवाद सुननेसे बढ़कर मुझे अन्य कुछ भी प्रिय नहीं है। ऐसा अमृतके समान सुखप्रद वचन सब नहीं सुना सकते। तूने यह वचन सुनाया हैं, इसके लिये तू जो चाहे सो पुरस्कार माँग से मैं तुझे देती हूँ।

इसपर मन्थरा गहनेको फेंककर कैकेयीको बहुत कुछ उलटा-सीधा समझाती है; परंतु फिर भी कैकेयी तो श्रीरामके गुणोंकी प्रशंसा करती हुई यही कहती हैं कि 'श्रीरामचन्द्र धर्मज्ञ, गुणवान् संयतेन्द्रिय, सत्यव्रती और पवित्र हैं। वे राजाके ज्येष्ठ पुत्र हैं, अतएव हमारी कुलप्रथाके अनुसार उन्हें युवराजपदका अधिकार है।दीर्घायु राम अपने भाइयों और सेवकोंको पिताकी तरह पालन करेंगे। मन्थरा तू ऐसे रामचन्द्रके अभिषेककी बात सुनकर क्यों दुःखी हो रही है? यह तो अभ्युदयका समय है। ऐसे समयमें तू जल क्यों रही है? इस भावी कल्याणमें तू क्यों दुःख कर रही है?

यथा वै भरतो मान्यस्तथा भूयोऽपि राघवः । कौसल्यातोऽतिरिक्तं च मम शुश्रूषते बहु ॥ राज्यं यदि हि रामस्य भरतस्यापि तत्तदा। मन्यते हि यथाऽऽत्मानं तथा भ्रातुंस्तु राघवः ॥

(पा0 रा0 28 18-19) '

मुझे भरत जितना प्यारा है, उससे कहीं अधिक प्यारे राम है; क्योंकि राम मेरी सेवा कौसल्यासे भी अधिक करते हैं। रामको यदि राज्य मिलता है तो वह भरतको ही मिलता है, ऐसा समझना चाहिये, क्योंकि राम सब भाइयोंको अपने ही समान समझते हैं।'

इसपर जब मन्थरा महाराज दशरथकी निन्दा करके कैकेयीको फिर उभाड़ने लगी, तब तो कैकेयीने बड़ी बुरी तरह उसे फटकार दिया-

ईदृशी यदि रामे च बुद्धिस्तव समागता । जिह्वायाश्छेदनं चैव कर्तव्यं तव पापिनि ॥

पुनि अस कबहुँ कहसि घरफोरी ती धार जीभ कढ़ावडे तोरी।। इस प्रसङ्गसे पता लगता है कि कैकेयी श्रीरामको कितना अधिक प्यार करती थीं और उन्हें श्रीरामके राज्याभिषेकमें कितना बड़ा सुख था। इसके बाद मन्थराके पुनः बहकानेपर कैकेयीके द्वारा जो कुछ कार्य हुआ, उसे यहाँ लिखनेकी आवश्यकता नहीं। उसी कुकार्यके लिये तो कैकेयी आजतक पापिनी और अनर्थको मूलकारणरूपा कहलाती हैं; परंतु विचार करनेकी बात है कि श्रीरामको इतना चाहनेवाली, कुलप्रथा और कुलकी रक्षाका सर्वदा ध्यान रखनेवाली, परम सुशीला कैकेयीने राज्यलोभसे ऐसा अनर्थ क्यों किया। जो थोड़ी देर पहले रामको भरतसे अधिक प्रिय बतलाकर उनके राज्याभिषेकके सुसंवादपर दिव्याभरण पुरस्कार देती थीं और राम तथा दशरथकी निन्दा करनेपर, भरतको राज्य देनेकी प्रतिज्ञा जाननेपर भी, मन्थरको 'परफोरी' कहकर उसकी जीभ निकलवाना चाहती थीं, वे ही जरा-सी देरमें इतनी कसे बदल जातीहैं कि वे रामको चौदह सालके लिये वनके दुःख सहन
करनेके लिये भेज देती हैं और भरतके शील स्वभावको जानती हुई भी उनके लिये राज्यका वरदान चाहती हैं? इसमें रहस्य है; वह रहस्य यह है कि कैकेयीका जन्म भगवान् श्रीरामकी लीलामें प्रधान कार्य करनेके लिये ही हुआ था। कैकेयी भगवान् श्रीरामको परब्रह्म परमात्मा समझती थीं और श्रीरामके लीलाकार्यमें सहायक बननेके लिये उन्होंने श्रीरामकी रुचिके अनुसार यह जहरकी पैंट पी थी। यदि कैकेयी श्रीरामको वन भिजवानेमें कारण न बनतीं तो श्रीरामका लीलाकार्य ही सम्पन्न न होता। न सीताका हरण होता और न राक्षसराज रावण अपनी सेनासहित मरता। श्रीरामने अवतार धारण किया था- 'दुष्कृतोंका विनाश करके साधुओंका परित्राण करनेके लिये।' दुष्टोंके विनाशके लिये हेतुकी आवश्यकता श्री बिना अपराध मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम किसीपर आक्रमण करने क्यों जाते आजकलके राज्यलोभी लोगोंकी भाँति वे जबरदस्ती परस्वापहरण करना तो चाहते ही नहीं थे। मर्यादाकी रक्षा करके ही सारा काम करना था उन्हें। रावणको मारनेका कार्य भी दयाको लिये हुए था, मारकर ही उसका उद्धार करना था। दुष्टकार्य करनेवालोंका वध करके ही साधु और दुष्टोंका- दोनोंका परित्राण करना था। साधुओंको दुष्टोंसे बचाकर सदुपदेशसे और दुष्टोंका कालमूर्ति होकर मृत्युरूपसे एक ही वारसे दो शिकार करने थे। पर इस कार्यके लिये भी कारण चाहिये, वह कारण था सीताहरण इसके सिवा अनेक शाप- वरदानोंको भी सच्चा करना था, पहलेके हेतुओंकी मर्यादा रखनी थी; परंतु वन गये बिना सीताहरण होता कैसे? राज्याभिषेक हो जाता तो वन जानेका कोई कारण नहीं रह जाता। महाराज दशरथकी मृत्युका समय समीप आ पहुँचा था, उसके लिये भी किसी निमित्तकी रचना करनी थी। अतएव इस निमित्तके लिये देवी कैकेयीका चुनाव किया गया और महाराज दशरथकी मृत्यु एवं रावणका वध, इन दोनों कार्योंके लिये कैकेयीके द्वारा राम वनवासकी व्यवस्था करायी गयी। सर्वनियन्ता भगवान् श्रीरामकी ही प्रेरणासे देवताओंके
द्वारा प्रेरित होकर जब सरस्वती देवी कैकेयीकी बुद्धि
फेर गयीं और जब उनपर उसका पूरा असर होगया- 'भावी बस प्रतीति उर आई तब भगवदिच्छानुसार बरतनेवाली कैकेयी भगवान्के मायावश ऐसा कार्य कर बैठीं, जो अत्यन्त क्रूर होनेपर भी भगवान्की लीलाकी सम्पूर्णताके लिये अत्यन्त आवश्यक था।

अब प्रश्न यह है कि जब कैकेयी भगवान्‌की परम भक्त थीं, प्रभुकी इस आभ्यन्तरिक गुह्यलीला के अतिरिक्त प्रकाशमें भी श्रीरामसे अत्यन्त प्यार करती थीं, राज्यमें और परिवारमें उनकी बड़ी सुख्याति थी. सारा कुटुम्ब कैकेयोसे प्रसन्न था, फिर भगवान्ने उसीके द्वारा यह भीषण कार्य कराकर उसे कुटुम्बियों और अवधवासियकि द्वारा तिरस्कृत, पुत्रद्वारा अपमानित और इतिहासमें सदाके लिये लोकनिन्दित क्यों बनाया? जब भगवान् ही सबके प्रेरक हैं, तब साध्वी सरला कैकेयीके मनमें सरस्वतीके द्वारा ऐसी प्रेरणा ही क्यों करवायी, जिससे उनका जीवन सदाके लिये दुःखी और नाम सदाके लिये बदनाम हो गया?' इसीमें तो रहस्य है। भगवान् श्रीराम साक्षात् सच्चिदानन्द परमात्मा हैं, कैकेयी उनकी परम अनुरागिणी सेविका हैं। जो सबसे गुह्य और कठिन कार्य होता है, उसको सबके सामने न तो प्रकाशित ही किया जा सकता हैं और न हर कोई उसे करनेमें ही समर्थ होता है। वह कार्य तो किसी अत्यन्त कठोरकर्मी, घनिष्ठ और परम प्रेमीके द्वारा ही करवाया जाता है। खास करके जिस कार्यमें कर्ताकी बदनामी हो, ऐसे कार्यके लिये तो उसीको चुना जाता है, जो अत्यन्त ही अन्तरङ्ग हो । रामका लोकापवाद मिटानेके लिये श्रीसीताजी वनवास स्वीकार करती हुई सन्देशा कहलाती हैं कि 'मैं जानती हूँ मेरी शुद्धतामें आपको सन्देह नहीं है केवल आप लोकापवादके भयसे मुझे त्याग रहे हैं। तथापि मेरे तो आप ही परम गति हैं। आपका लोकापवाद दूर हो, मुझे अपने शरीरके लिये कुछ भी शोक नहीं है।' यहाँ सीताजी 'रामकाज' के लिये कष्ट सहती हैं। परंतु उनकी बदनामी नहीं होती, प्रशंसा होती है; उनके पातिव्रतको आजतक पूजा होती है। परंतु कैकेयीका कार्य इससे अत्यन्त महान् है। उसे तो 'रामकाज' के लिये रामविरोधी प्रख्यात होना पड़ेगा। 'यावच्चन्द्रदिवाकरौ' गालियाँ सहनी पड़ेंगी। पापिनी, कलंकिनी, कुलघातिनीकी उपाधियाँ ग्रहण करनी पड़ेंगी, वैधव्यका दुःख स्वीकारकर पुत्रऔर नगरवासियोंके द्वारा तिरस्कृत होना पड़ेगा तथापि 'रामकाज' जरूर करना पड़ेगा। यही रामको इच्छा है और इस 'रामकाज' के लिये रामने कैकेयीको ही प्रधान पात्र चुना है। इसीसे यह कलङ्कका चिर टीका उन्होंके सिर पोता गया है। यह इसीलिये कि वे परब्रह्म श्रीरामकी परम अन्तरङ्ग प्रेमपात्री हैं, वे श्रीरामकी लीलाओंमें सहायिका हैं, उन्हें बदनामी खुशनामी से कोई काम नहीं, उन्हें तो सब कुछ सहकर भी 'रामकाज' करना है। रामरूपी सूत्रधार जो कुछ पार्ट दें, उनके नाटककी साङ्गताके लिये उनके आज्ञानुसार इन्हें तो वही खेल खेलना है, चाहे वह कितना ही क्रूर क्यों न हो। कैकेयी अपना पार्ट बड़ा अच्छा खेलती हैं। राम अपने 'काज' के लिये सीता और लक्ष्मणको लेकर खुशी-खुशी बनके लिये विदा होते हैं। कैकेयी इस समय पार्ट खेल रही थीं, इसीलिये उनको उस सूत्रधारसे, नाटकके स्वामीसे, जिसके इंगितसे जगन्नाटकका प्रत्येक परदा पड़ रहा है और उसमें प्रत्येक क्रिया सुचारुरूपसे हो रही है, एकान्तमें मिलनेका अवसर नहीं मिलता। इसीलिये वे भरतके साथ वन जाती हैं और वहाँ श्रीरामसे-नाटकके स्वामीसे एकान्तमें मिलकर अपने पार्टके लिये पूछती हैं और साधारण स्त्रीकी भाँति लीलासे ही लीलामयसे उनको दुःख पहुँचानेके लिये क्षमा चाहती हैं, परंतु लीलामय भेद खोलकर साफ कह देते हैं कि 'यह तो मेरा ही कार्य था, मेरी ही इच्छासे, मेरी मायासे हुआ था। तुम तो निमित्तमात्र थी; सुखसे भजन करो और मुक्त हो जाओ।' वहाँका प्रसङ्ग इस प्रकार है जब भरत श्रीरामको लौटा ले जानेका बहुत आग्रह करते हैं, किसी प्रकार नहीं मानते, तब भगवान् श्रीरामका रहस्य जाननेवाले मुनि वसिष्ठ श्रीरामके संकेतसे भरतको अलग ले जाकर एकान्तमें समझाते हैं-'पुत्र आज मैं तुझे एक गुप्त रहस्य सुना रहा हूँ। श्रीराम साक्षात् नारायण हैं: पूर्वकालमें ब्रह्माजीने इनसे रावण वधके लिये प्रार्थना की थी, इसीसे इन्होंने दशरथके यहाँ पुत्ररूपसे अवतार लिया है। श्रीसीताजी साक्षात् योगमाया हैं। श्रीलक्ष्मण शेषके अवतार हैं, जो सदा श्रीरामके साथ उनकी सेवामें लगे रहते हैं। श्रीरामको रावणका वध करना है, इससे वे जरूर वनमें रहेंगे; तेरी माताका कोई दोष नहीं है-

कैकेय्या वरदानादि परिभाषणम् ॥
सर्व देवकृतं नोचेदेवं सा भाषयेत्कथम् ।
तस्मान्यजाग्रहं तात रामस्य विनिवर्तने ॥

'कैकेयीने जो वरदान माँगे और निष्ठुर वचन कहे थे, सो सब देवका कार्य था-रामकाज था। नहीं तो भला, कैकेयी कभी ऐसा कह सकती? अतएव तुम रामको अयोध्या लौटा ले चलने का आग्रह छोड़ दो।"

रास्तेमें भरद्वाज मुनिने भी संकेतसे कहा था 'भरत! तू माता कैकेयीपर दोषारोपण मत कर। रामका वनवास समस्त देव-दानव और ऋषियोंके परम हित और परम सुखका कारण होगा।' अब श्रीवसिष्ठजी से स्पष्ट परिचय प्राप्तकर भरत समझ जाते हैं और श्रीरामको चरण पादुका सादर लेकर अयोध्या लौटने की तैयारी करते हैं। इधर कैकेयीजी एकान्तमें श्रीरामके समीप जाकर आँखोंसे आँसुओंको धारा बहाती हुई व्याकुल हृदयसे हाथ जोड़कर कहती हैं-'श्रीराम! तुम्हारे राज्याभिषेकमें मैंने विघ्न किया था। उस समय मेरी बुद्धि देवताओंने बिगाड़ दी थी और मेरा चित्त तुम्हारी मायासे मोहित हो गया था। अतएव मेरी इस दुष्टताको तुम क्षमा करो; क्योंकि साधु क्षमाशील हुआ करते हैं। फिर तुम तो साक्षात् विष्णु हो, इन्द्रियोंसे अव्यक्त सनातन परमात्मा हो, मायासे मनुष्यरूपधारी होकर समस्त विश्वको मोहित कर रहे हो। तुम्हींसे प्रेरित होकर लोग साधु-असाधु कर्म करते हैं। यह सारा विश्व तुम्हारे अधीन है, अस्वतन्त्र है, अपनी इच्छासे कुछ भी नहीं कर सकता। जैसे कठपुतलियाँ नचानेवालेके इच्छानुसार ही नाचती हैं, वैसे ही यह बहुरूपधारिणी नर्तकी माया तुम्हारे ही अधीन है। तुम्हें देवताओंका कार्य करना था. अतएव तुमने ही ऐसा करनेके लिये मुझे प्रेरणा की। हे विश्वेश्वर हे अनन्त । हे जगन्नाथ! मेरी रक्षा करो। मैं तुम्हें नमस्कार करती है। तुम अपनी तत्त्वज्ञानरूपी निर्मल तीक्ष्णधार तलवारसे मेरी पुत्र- वित्तादि विषयोंमें स्नेहरूपी फाँसी काट दो। मैं तुम्हारे शरण हूँ।'
(अध्यात्मरामायण)

कैकेयीके स्पष्ट और सरल वचन सुनकर भगवान्ने हँसते हुए कहा-'हे महाभागे। तुम जो कुछ कहती हो. सत्य कहती हो इसमें किञ्चित् भी मिथ्या नहीं है।
देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये मेरी ही प्रेरणासे उस समय तुम्हारे मुखसे वैसे वचन निकले थे। इसमें तुम्हारा कुछ भी दोष नहीं है। तुमने तो मेरा ही काम किया है। अब तुम जाओ और हृदयमें सदा मेरा ध्यान करती रहो। तुम्हारा स्नेहपाश सब ओरसे टूट जायगा और मेरी इस भक्तिके कारण तुम शीघ्र ही मुक्त हो जाओगी। मैं सर्वत्र समदृष्टि हूँ। मेरे न तो कोई द्वेष्य है और न प्रिय। मुझे जो भजता है, मैं भी उसीको भजता हूँ; परंतु हे माता ! जिनकी बुद्धि मेरी मायासे मोहित है, वे मुझको तत्त्वसे न जानकर सुख-दुःखोंका भोक्ता साधारण मनुष्य मानते हैं। यह बड़े सौभाग्यका विषय है। कि तुम्हारे हृदयमें मेरा यह भवनाशक तत्त्वज्ञान हो गया। है। अपने घरमें रहकर मेरा स्मरण करती रहो। तुम कभी कर्मोंसे लिप्त नहीं होओगी।'
(अध्यात्मरामायण)

भगवान्के इन वचनोंसे कैकेयीकी स्थितिका पता लगता है। भगवान्‌के कथनका सार यही है कि "तुम 'महाभाग्यवती' हो, लोग चाहे तुम्हें अभागिनी मानते रहें। तुम निर्दोष हो, लोग चाहे तुम्हें दोषी समझें। तुम्हारे
द्वारा तो यह कार्य मैंने ही करवाया था। जिन लोगोंकीबुद्धि मायामोहित है, वे ही तुमको मामूली स्त्री समझते हैं, तुम्हारे हृदयमें तो मेरा तत्त्वज्ञान है, तुम धन्य हो !" भगवान् श्रीरामके इन वचनोंको सुनकर कैकेयी आनन्द और आश्चर्यपूर्ण हृदयसे सैकड़ों बार साष्टाङ्ग प्रणाम और प्रदक्षिणा करके सानन्द भरतके साथ अयोध्या लौट गयीं।

उपर्युक्त स्पष्ट वर्णनसे यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि कैकेयीने जान-बूझकर स्वार्थबुद्धिसे कोई अनर्थ नहीं किया था। उन्होंने जो कुछ किया, सो श्रीरामकी प्रेरणासे 'रामकाज' के लिये! इस विवेचनसे यह प्रमाणित जाता है कि कैकेयी बहुत ही उच्चकोटिकी भक्तहृदया देवी थीं। वे सरल, स्वार्थहीन, प्रेममय, स्नेह-वात्सल्ययुक्त, धर्मपरायणा, बुद्धिमती, आदर्श पतिव्रता, निर्भय वीराङ्गना होनेके साथ ही भगवान् श्रीरामकी अनन्य भक्ता थीं। उनकी जो कुछ बदनामी हुई और हो रही है, सो सब श्रीरामकी अन्तरङ्ग प्रीतिका निदर्शनरूप ही है। जिस देवीने जगत्के आधार, प्रेमके समुद्र, अनन्य रामभक्त भरतको जन्म दिया, वह देवी कदापि तिरस्कारके योग्य नहीं हो सकती, ऐसी प्रातः स्मरणीया देवीके चरणोंमें बार-बार अनन्त प्रणाम हैं।



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idan tu manthare mahyamaakhyaatan paraman priyam .
etanme priyamaakhyaatan kin va bhooyah karomi te ..
raame va bharate vaahan visheshan nopalakshaye .
tasmaattushtaasmi yadraaja raaman raajye'bhishekshyati ..
n me paran kinchidito varan punahpriyan priya suvachan vacho'mritam .
tatha hyavochastvamatah priyottaranvaran paran te pradadaami tan vrinu ..

(vaa0 raa0 27 34-36)

'manthare! toone mujhako yah bada़a ho priy sanvaad sunaaya hai, isake badale main tera aur kya upakaar karoon? yadyapi bharatako raajy denekee baat huee thee, phir bhee raam aur bharatamen main koee bhed naheen dekhatee. main is baat se bahut prasann hoon ki mahaaraaj kal raamaka raajyaabhishek karenge. he priyavaadinee. raamake raajyaabhishekaka sanvaad sunanese badha़kar mujhe any kuchh bhee priy naheen hai. aisa amritake samaan sukhaprad vachan sab naheen suna sakate. toone yah vachan sunaaya hain, isake liye too jo chaahe so puraskaar maang se main tujhe detee hoon.

isapar manthara gahaneko phenkakar kaikeyeeko bahut kuchh ulataa-seedha samajhaatee hai; parantu phir bhee kaikeyee to shreeraamake gunonkee prashansa karatee huee yahee kahatee hain ki 'shreeraamachandr dharmajn, gunavaan sanyatendriy, satyavratee aur pavitr hain. ve raajaake jyeshth putr hain, ataev hamaaree kulaprathaake anusaar unhen yuvaraajapadaka adhikaar hai.deerghaayu raam apane bhaaiyon aur sevakonko pitaakee tarah paalan karenge. manthara too aise raamachandrake abhishekakee baat sunakar kyon duhkhee ho rahee hai? yah to abhyudayaka samay hai. aise samayamen too jal kyon rahee hai? is bhaavee kalyaanamen too kyon duhkh kar rahee hai?

yatha vai bharato maanyastatha bhooyo'pi raaghavah . kausalyaato'tiriktan ch mam shushrooshate bahu .. raajyan yadi hi raamasy bharatasyaapi tattadaa. manyate hi yathaa''tmaanan tatha bhraatunstu raaghavah ..

(paa0 raa0 28 18-19) '

mujhe bharat jitana pyaara hai, usase kaheen adhik pyaare raam hai; kyonki raam meree seva kausalyaase bhee adhik karate hain. raamako yadi raajy milata hai to vah bharatako hee milata hai, aisa samajhana chaahiye, kyonki raam sab bhaaiyonko apane hee samaan samajhate hain.'

isapar jab manthara mahaaraaj dasharathakee ninda karake kaikeyeeko phir ubhaada़ne lagee, tab to kaikeyeene bada़ee buree tarah use phatakaar diyaa-

eedrishee yadi raame ch buddhistav samaagata . jihvaayaashchhedanan chaiv kartavyan tav paapini ..

puni as kabahun kahasi gharaphoree tee dhaar jeebh kaढ़aavade toree.. is prasangase pata lagata hai ki kaikeyee shreeraamako kitana adhik pyaar karatee theen aur unhen shreeraamake raajyaabhishekamen kitana bada़a sukh thaa. isake baad mantharaake punah bahakaanepar kaikeyeeke dvaara jo kuchh kaary hua, use yahaan likhanekee aavashyakata naheen. usee kukaaryake liye to kaikeyee aajatak paapinee aur anarthako moolakaaranaroopa kahalaatee hain; parantu vichaar karanekee baat hai ki shreeraamako itana chaahanevaalee, kulapratha aur kulakee rakshaaka sarvada dhyaan rakhanevaalee, param susheela kaikeyeene raajyalobhase aisa anarth kyon kiyaa. jo thoda़ee der pahale raamako bharatase adhik priy batalaakar unake raajyaabhishekake susanvaadapar divyaabharan puraskaar detee theen aur raam tatha dasharathakee ninda karanepar, bharatako raajy denekee pratijna jaananepar bhee, mantharako 'paraphoree' kahakar usakee jeebh nikalavaana chaahatee theen, ve hee jaraa-see deramen itanee kase badal jaateehain ki ve raamako chaudah saalake liye vanake duhkh sahana
karaneke liye bhej detee hain aur bharatake sheel svabhaavako jaanatee huee bhee unake liye raajyaka varadaan chaahatee hain? isamen rahasy hai; vah rahasy yah hai ki kaikeyeeka janm bhagavaan shreeraamakee leelaamen pradhaan kaary karaneke liye hee hua thaa. kaikeyee bhagavaan shreeraamako parabrahm paramaatma samajhatee theen aur shreeraamake leelaakaaryamen sahaayak bananeke liye unhonne shreeraamakee ruchike anusaar yah jaharakee paint pee thee. yadi kaikeyee shreeraamako van bhijavaanemen kaaran n banateen to shreeraamaka leelaakaary hee sampann n hotaa. n seetaaka haran hota aur n raakshasaraaj raavan apanee senaasahit marataa. shreeraamane avataar dhaaran kiya thaa- 'dushkritonka vinaash karake saadhuonka paritraan karaneke liye.' dushtonke vinaashake liye hetukee aavashyakata shree bina aparaadh maryaadaapurushottam shreeraam kiseepar aakraman karane kyon jaate aajakalake raajyalobhee logonkee bhaanti ve jabaradastee parasvaapaharan karana to chaahate hee naheen the. maryaadaakee raksha karake hee saara kaam karana tha unhen. raavanako maaraneka kaary bhee dayaako liye hue tha, maarakar hee usaka uddhaar karana thaa. dushtakaary karanevaalonka vadh karake hee saadhu aur dushtonkaa- dononka paritraan karana thaa. saadhuonko dushtonse bachaakar sadupadeshase aur dushtonka kaalamoorti hokar mrityuroopase ek hee vaarase do shikaar karane the. par is kaaryake liye bhee kaaran chaahiye, vah kaaran tha seetaaharan isake siva anek shaapa- varadaanonko bhee sachcha karana tha, pahaleke hetuonkee maryaada rakhanee thee; parantu van gaye bina seetaaharan hota kaise? raajyaabhishek ho jaata to van jaaneka koee kaaran naheen rah jaataa. mahaaraaj dasharathakee mrityuka samay sameep a pahuncha tha, usake liye bhee kisee nimittakee rachana karanee thee. ataev is nimittake liye devee kaikeyeeka chunaav kiya gaya aur mahaaraaj dasharathakee mrityu evan raavanaka vadh, in donon kaaryonke liye kaikeyeeke dvaara raam vanavaasakee vyavastha karaayee gayee. sarvaniyanta bhagavaan shreeraamakee hee preranaase devataaonke
dvaara prerit hokar jab sarasvatee devee kaikeyeekee buddhi
pher gayeen aur jab unapar usaka poora asar hogayaa- 'bhaavee bas prateeti ur aaee tab bhagavadichchhaanusaar baratanevaalee kaikeyee bhagavaanke maayaavash aisa kaary kar baitheen, jo atyant kroor honepar bhee bhagavaankee leelaakee sampoornataake liye atyant aavashyak thaa.

ab prashn yah hai ki jab kaikeyee bhagavaan‌kee param bhakt theen, prabhukee is aabhyantarik guhyaleela ke atirikt prakaashamen bhee shreeraamase atyant pyaar karatee theen, raajyamen aur parivaaramen unakee bada़ee sukhyaati thee. saara kutumb kaikeyose prasann tha, phir bhagavaanne useeke dvaara yah bheeshan kaary karaakar use kutumbiyon aur avadhavaasiyaki dvaara tiraskrit, putradvaara apamaanit aur itihaasamen sadaake liye lokanindit kyon banaayaa? jab bhagavaan hee sabake prerak hain, tab saadhvee sarala kaikeyeeke manamen sarasvateeke dvaara aisee prerana hee kyon karavaayee, jisase unaka jeevan sadaake liye duhkhee aur naam sadaake liye badanaam ho gayaa?' iseemen to rahasy hai. bhagavaan shreeraam saakshaat sachchidaanand paramaatma hain, kaikeyee unakee param anuraaginee sevika hain. jo sabase guhy aur kathin kaary hota hai, usako sabake saamane n to prakaashit hee kiya ja sakata hain aur n har koee use karanemen hee samarth hota hai. vah kaary to kisee atyant kathorakarmee, ghanishth aur param premeeke dvaara hee karavaaya jaata hai. khaas karake jis kaaryamen kartaakee badanaamee ho, aise kaaryake liye to useeko chuna jaata hai, jo atyant hee antarang ho . raamaka lokaapavaad mitaaneke liye shreeseetaajee vanavaas sveekaar karatee huee sandesha kahalaatee hain ki 'main jaanatee hoon meree shuddhataamen aapako sandeh naheen hai keval aap lokaapavaadake bhayase mujhe tyaag rahe hain. tathaapi mere to aap hee param gati hain. aapaka lokaapavaad door ho, mujhe apane shareerake liye kuchh bhee shok naheen hai.' yahaan seetaajee 'raamakaaja' ke liye kasht sahatee hain. parantu unakee badanaamee naheen hotee, prashansa hotee hai; unake paativratako aajatak pooja hotee hai. parantu kaikeyeeka kaary isase atyant mahaan hai. use to 'raamakaaja' ke liye raamavirodhee prakhyaat hona pada़egaa. 'yaavachchandradivaakarau' gaaliyaan sahanee pada़engee. paapinee, kalankinee, kulaghaatineekee upaadhiyaan grahan karanee pada़engee, vaidhavyaka duhkh sveekaarakar putraaur nagaravaasiyonke dvaara tiraskrit hona pada़ega tathaapi 'raamakaaja' jaroor karana pada़egaa. yahee raamako ichchha hai aur is 'raamakaaja' ke liye raamane kaikeyeeko hee pradhaan paatr chuna hai. iseese yah kalankaka chir teeka unhonke sir pota gaya hai. yah iseeliye ki ve parabrahm shreeraamakee param antarang premapaatree hain, ve shreeraamakee leelaaonmen sahaayika hain, unhen badanaamee khushanaamee se koee kaam naheen, unhen to sab kuchh sahakar bhee 'raamakaaja' karana hai. raamaroopee sootradhaar jo kuchh paart den, unake naatakakee saangataake liye unake aajnaanusaar inhen to vahee khel khelana hai, chaahe vah kitana hee kroor kyon n ho. kaikeyee apana paart bada़a achchha khelatee hain. raam apane 'kaaja' ke liye seeta aur lakshmanako lekar khushee-khushee banake liye vida hote hain. kaikeyee is samay paart khel rahee theen, iseeliye unako us sootradhaarase, naatakake svaameese, jisake ingitase jagannaatakaka pratyek parada pada़ raha hai aur usamen pratyek kriya suchaaruroopase ho rahee hai, ekaantamen milaneka avasar naheen milataa. iseeliye ve bharatake saath van jaatee hain aur vahaan shreeraamase-naatakake svaameese ekaantamen milakar apane paartake liye poochhatee hain aur saadhaaran streekee bhaanti leelaase hee leelaamayase unako duhkh pahunchaaneke liye kshama chaahatee hain, parantu leelaamay bhed kholakar saaph kah dete hain ki 'yah to mera hee kaary tha, meree hee ichchhaase, meree maayaase hua thaa. tum to nimittamaatr thee; sukhase bhajan karo aur mukt ho jaao.' vahaanka prasang is prakaar hai jab bharat shreeraamako lauta le jaaneka bahut aagrah karate hain, kisee prakaar naheen maanate, tab bhagavaan shreeraamaka rahasy jaananevaale muni vasishth shreeraamake sanketase bharatako alag le jaakar ekaantamen samajhaate hain-'putr aaj main tujhe ek gupt rahasy suna raha hoon. shreeraam saakshaat naaraayan hain: poorvakaalamen brahmaajeene inase raavan vadhake liye praarthana kee thee, iseese inhonne dasharathake yahaan putraroopase avataar liya hai. shreeseetaajee saakshaat yogamaaya hain. shreelakshman sheshake avataar hain, jo sada shreeraamake saath unakee sevaamen lage rahate hain. shreeraamako raavanaka vadh karana hai, isase ve jaroor vanamen rahenge; teree maataaka koee dosh naheen hai-

kaikeyya varadaanaadi paribhaashanam ..
sarv devakritan nochedevan sa bhaashayetkatham .
tasmaanyajaagrahan taat raamasy vinivartane ..

'kaikeyeene jo varadaan maange aur nishthur vachan kahe the, so sab devaka kaary thaa-raamakaaj thaa. naheen to bhala, kaikeyee kabhee aisa kah sakatee? ataev tum raamako ayodhya lauta le chalane ka aagrah chhoda़ do."

raastemen bharadvaaj munine bhee sanketase kaha tha 'bharata! too maata kaikeyeepar doshaaropan mat kara. raamaka vanavaas samast deva-daanav aur rishiyonke param hit aur param sukhaka kaaran hogaa.' ab shreevasishthajee se spasht parichay praaptakar bharat samajh jaate hain aur shreeraamako charan paaduka saadar lekar ayodhya lautane kee taiyaaree karate hain. idhar kaikeyeejee ekaantamen shreeraamake sameep jaakar aankhonse aansuonko dhaara bahaatee huee vyaakul hridayase haath joda़kar kahatee hain-'shreeraama! tumhaare raajyaabhishekamen mainne vighn kiya thaa. us samay meree buddhi devataaonne bigaada़ dee thee aur mera chitt tumhaaree maayaase mohit ho gaya thaa. ataev meree is dushtataako tum kshama karo; kyonki saadhu kshamaasheel hua karate hain. phir tum to saakshaat vishnu ho, indriyonse avyakt sanaatan paramaatma ho, maayaase manushyaroopadhaaree hokar samast vishvako mohit kar rahe ho. tumheense prerit hokar log saadhu-asaadhu karm karate hain. yah saara vishv tumhaare adheen hai, asvatantr hai, apanee ichchhaase kuchh bhee naheen kar sakataa. jaise kathaputaliyaan nachaanevaaleke ichchhaanusaar hee naachatee hain, vaise hee yah bahuroopadhaarinee nartakee maaya tumhaare hee adheen hai. tumhen devataaonka kaary karana thaa. ataev tumane hee aisa karaneke liye mujhe prerana kee. he vishveshvar he anant . he jagannaatha! meree raksha karo. main tumhen namaskaar karatee hai. tum apanee tattvajnaanaroopee nirmal teekshnadhaar talavaarase meree putra- vittaadi vishayonmen sneharoopee phaansee kaat do. main tumhaare sharan hoon.'
(adhyaatmaraamaayana)

kaikeyeeke spasht aur saral vachan sunakar bhagavaanne hansate hue kahaa-'he mahaabhaage. tum jo kuchh kahatee ho. saty kahatee ho isamen kinchit bhee mithya naheen hai.
devataaonka kaary siddh karaneke liye meree hee preranaase us samay tumhaare mukhase vaise vachan nikale the. isamen tumhaara kuchh bhee dosh naheen hai. tumane to mera hee kaam kiya hai. ab tum jaao aur hridayamen sada mera dhyaan karatee raho. tumhaara snehapaash sab orase toot jaayaga aur meree is bhaktike kaaran tum sheeghr hee mukt ho jaaogee. main sarvatr samadrishti hoon. mere n to koee dveshy hai aur n priya. mujhe jo bhajata hai, main bhee useeko bhajata hoon; parantu he maata ! jinakee buddhi meree maayaase mohit hai, ve mujhako tattvase n jaanakar sukha-duhkhonka bhokta saadhaaran manushy maanate hain. yah bada़e saubhaagyaka vishay hai. ki tumhaare hridayamen mera yah bhavanaashak tattvajnaan ho gayaa. hai. apane gharamen rahakar mera smaran karatee raho. tum kabhee karmonse lipt naheen hoogee.'
(adhyaatmaraamaayana)

bhagavaanke in vachanonse kaikeyeekee sthitika pata lagata hai. bhagavaan‌ke kathanaka saar yahee hai ki "tum 'mahaabhaagyavatee' ho, log chaahe tumhen abhaaginee maanate rahen. tum nirdosh ho, log chaahe tumhen doshee samajhen. tumhaare
dvaara to yah kaary mainne hee karavaaya thaa. jin logonkeebuddhi maayaamohit hai, ve hee tumako maamoolee stree samajhate hain, tumhaare hridayamen to mera tattvajnaan hai, tum dhany ho !" bhagavaan shreeraamake in vachanonko sunakar kaikeyee aanand aur aashcharyapoorn hridayase saikada़on baar saashtaang pranaam aur pradakshina karake saanand bharatake saath ayodhya laut gayeen.

uparyukt spasht varnanase yah bhaleebhaanti siddh ho jaata hai ki kaikeyeene jaana-boojhakar svaarthabuddhise koee anarth naheen kiya thaa. unhonne jo kuchh kiya, so shreeraamakee preranaase 'raamakaaja' ke liye! is vivechanase yah pramaanit jaata hai ki kaikeyee bahut hee uchchakotikee bhaktahridaya devee theen. ve saral, svaarthaheen, premamay, sneha-vaatsalyayukt, dharmaparaayana, buddhimatee, aadarsh pativrata, nirbhay veeraangana honeke saath hee bhagavaan shreeraamakee anany bhakta theen. unakee jo kuchh badanaamee huee aur ho rahee hai, so sab shreeraamakee antarang preetika nidarshanaroop hee hai. jis deveene jagatke aadhaar, premake samudr, anany raamabhakt bharatako janm diya, vah devee kadaapi tiraskaarake yogy naheen ho sakatee, aisee praatah smaraneeya deveeke charanonmen baara-baar anant pranaam hain.

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जय राधे राधे, राधे राधे
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