चार सौ वर्ष से अधिक बीत चुके, बंगालके सिंहासनपर हुसैनशाह नामक एक मुसलमान शासक अधिष्ठित था, जो अपनेको बंगालका बादशाह कहता था। बंगालकी राजधानी उस समय राजमहलके समीप बसे हुए गौड़ नामक नगरमें थी (यह गौड़ इस समय नष्ट हो गया है)। यद्यपि बादशाह मुसलमान था, तथापि उसके उच्चपदस्थ कर्मचारी प्राय: हिंदू ही थे। बादशाहके उच्चपदाधिकारियोंमें दक्षिणके दो ब्राह्मणबन्धु मन्त्रीके पदपर प्रतिष्ठित थे। ये अपने देशसे आकर बंगालके रामकेलि नामक गाँवमें बस गये थे और अपनी विद्या-बुद्धिसे इन्होंने इतना ऊँचा पद प्राप्त कर लिया था। राज्यमें ये दबीर खास औरसाकर मल्लिकके नामसे प्रसिद्ध थे। ये दोनों पदवियाँ थीं। सनातनका असली नाम 'अमर' और रूपका नाम 'सन्तोष' था। हुसैनशाह इन्हें अपना दाहिना हाथ समझता था। वेष-भूषासे ये पूरे मुसलमान प्रतीत होते थे। इन्होंने प्रचुर धन उपार्जन किया था। रामकेलि ग्राममें ये राजा कहलाते थे। इतना सब होनेपर भी इनका हृदय हिंदूभावोंसे भरा था। श्रीराम और श्रीकृष्णके प्रति इनका अनुराग था। ब्राह्मण-साधुओंमें इनकी भक्ति थी। रामकेलि ग्राममें इनके घरपर ब्राह्मण-साधुओंका प्रायः मेला-सा लगा रहता था। धनकी कमी नहीं थी, मनमें उदारता थी, धन बँटता था। अनेक विद्वान् ब्राह्मणोंका भरण-पोषण इनकेद्वारा हुआ करता था। इनके छोटे भाई 'अनुपम' घर रहा करते थे और ये दोनों अधिकांश समय बादशाहके पास गौड़में रहते थे।
श्रीचैतन्य महाप्रभुका नाम सुनकर उनके प्रति स्वाभाविक ही इनकी श्रद्धा हो गयी और उस श्रद्धाने क्रमशः बढ़कर एक प्रकारकी विरह वेदनाका-सा रूप धारण कर लिया। दोनों भाई श्रीचैतन्यके दर्शनके लिये बड़े उत्कण्ठित हो गये। दबीर खास और साकर मल्लिककी तीव्र दर्शनाभिलाषाने श्रीचैतन्यमहाप्रभुके मनको खींच लिया। महाप्रभुसे अब नहीं रहा गया और वे वृन्दावन जानेके बहाने गङ्गाजीके किनारे-किनारे चलकर गौड़के समीप जा पहुँचे। जब महाप्रभु गौड़के समीप पहुँचे, तब उनके हजारों भक्तोंके दलकी तुमुल हरिध्वनिसे सारा नगर गूँज उठा, बादशाहने कोलाहल सुनकर सोचा कि हो न हो आज गौड़पर कोई शत्रु चढ़ आया है। उसे बड़ा भय हुआ। उसने दबीर खास और साकर मल्लिकको बुलाया और उनसे संन्यासीके सम्बन्धमें पूछा। इन दोनों भाइयोंने अबतक महाप्रभुके दर्शन नहीं किये थे, परंतु इनका प्रगाढ़ विश्वास था कि श्रीचैतन्य साक्षात् ईश्वर हैं। उन्होंने अनेक प्रकारसे महाप्रभुके गुणगान करते हुए बादशाह से कहा- 'हुजूर! मालूम होता है, साक्षात् भगवान् धराधाममें | अवतीर्ण होकर संन्यासीके वेषमें घूम रहे हैं। जिनके अनुग्रहसे आप आज गौड़के बादशाह हैं, वही भगवान् आज आपके दरवाजेपर पधारे हैं।'
यह सुनकर बादशाहने बड़ी नम्रता से कहा-'मुझे भी कुछ ऐसा ही मालूम होता है। मैं गौड़का बादशाह हूँ, लाखों आदमियोंके मारने-जिलानेका अखायार रखता है लेकिन अगर मैं एक मामूली नौकरको भी एक दिनको तनख्वाह न दूँ तो वह अपनी रजामन्दीसे मेरी किसी वातको सुनना नहीं चाहेगा। अगर मैं अपनी फौजको छः महीने तनख्वाह न बाँहूँ तो शायद वही मुझे कत्ल करनेके लिये साजिश करने लगे। तावकी बात है कि इस कंगाल फकीरके पास एक कौड़ी न होनेपर भी हजारों आदमी अपना घर-बार छोड़कर और नींद-भूखको भुलाकर गुलाम बने साथ घूम रहे हैं। ईश्वरके सिवा ऐस ताकत और किसमें हो सकती है।'बादशाहने बातें तो बड़ी अच्छी कहीं, परंतु उन दोनों भाइयोंके मनमें यह भय बना ही रहा कि कहाँ स्वेच्छाचारी मुसलमान बादशाह महाप्रभुके दलको कोई कष्ट न पहुँचा दे। वे चाहते थे कि महाप्रभु यहाँसे शीघ्र ही चले जायें तो ठीक है। परंतु उनका दर्शन करने के लिये दोनोंके मनमें बड़ी उत्कण्ठा हो रही थी। इसलिये बाहर के बाहर उन्हें लौटाना भी नहीं चाहते थे। महाप्रभु गौड़में आ पहुँचे। वे दर्शन दिये बिना कब लौटनेवाले थे, वे तो आये ही थे दोनों भाइयोंको संसार कूपसे खींचकर बाहर निकालनेके लिये। रातको दोनों भाई महाप्रभुके दरबार में पहुँचे। प्रभु अपने प्रियतम परमात्माके प्रेममें समाधिस्थ थे। श्रीनित्यानन्दजीने चेष्टा करके उनकी समाधि भङ्ग करवाकर दोनों भाइयोंका परिचय कराया। दोनों मुँहमें तिनके दबाकर और गलेमें कपड़ा डालकर महाप्रभुके चरणोंमें गिर पड़े और बोले-
'प्रभो! आपने पतित और दोनोंका परित्राण करनेके लिये ही पृथ्वीपर पदार्पण किया है, हम जैसे दयनीय पतित आपको और कहाँ मिलेंगे? आपने जगाई-मधाईका उद्धार किया, परंतु वे तो अज्ञानसे पाप करते थे । उद्धार तो सबसे पहले हमारा होना चाहिये, क्योंकि हमने तो जान-बूझकर पाप किये हैं, वास्तविक पतित तो हमीं हैं नाथ! अब आपके सिवा हमें और कहीं ठौर नहीं है।' महाप्रभु उनकी निष्कपट दीनताको देखकर मुग्ध हो
गये, दयासे उनका हृदय द्रवित हो गया। वे बोले-'उठो, दीनताको दूर करो; तुम्हारी इस दीनताको देखकर मेरा हृदय फटा जा रहा है, तुम मुझे बड़े प्रिय हो। मैं यहाँ तुम्हीं दोनों भाइयोंसे मिलने आया हूँ। तुम निश्चिन्त रहो। शीघ्र ही तुमपर श्रीकृष्णकी कृपा होगी। आजसे तुम्हारा नाम 'सनातन' और 'रूप' हुआ।' महाप्रभुके वचन सुनकर सनातन और रूपका हृदय आनन्दसे भर गया और वे कृतज्ञतापूर्ण दृष्टिसे महाप्रभुके मुख कमलको और एकटकी लगाकर देखने लगे। उनके जीवन स्रोतकी दिशा सहसा बदल गयी!
इसके बाद महाप्रभुने सनातनके परामर्शसे इतने लोगोंको साथ लेकर वृन्दावन जानेका विचार छोड़ दिया और वापस नीलाचल (पुरी) की ओर लौट गये। इधर रूप सनातनकी दशा कुछ और हो हो गयौ। वैराग्य उमड़ पड़ा। राज्य-वैभव और मन्त्रित्वसे मन हट गया। एक क्षण भी राजकाजमें रहना उनके लिये नरक यन्त्रणाके समान दुःखदायी हो गया। सनातनको अनुमतिसे रूप तो छुट्टी लेकर अपने घर रामकेलि चले गये। सनातन बीमारीका बहाना करके डेरेपर ही रहने लगे। रूपने दो गुप्तचर महाप्रभुके समीप नीलाचल भेज दिये और उन्हें ताकीद कर दी कि महाप्रभुके वृन्दावनकी ओर प्रयाण करते हो शीघ्र लौटकर मुझे सूचना देना। इस बीचमें धन-सम्पत्तिको लुटाकर रूप वृन्दावन जानेकी तैयारी करने लगे। इनके छोटे भाईका नाम अनुपम था, वह पहले से ही बड़ा श्रद्धालु था। उसने भी भाईके साथ ही घर छोड़ने की तैयारी कर ली। रूप सनातनके कोई सन्तान नहीं थी अनुपमके 'जीव' नामक एक पुत्र था, उसे थोड़ा सा धन सौंपकर शेष सारा धन गरीबोंको लुटा दिया गया। इतनेमें समाचार मिला कि सनातनको बादशाहने कैद कर लिया है। जानी हुई-सी बात थी। रूप और अनुपमने शीघ्र ही चले जानेका विचार किया और चरोंके नीलाचलसे लौटते हो महाप्रभुके वृन्दावन गमनकी बात सुनकर दोनों भाई वृन्दावनको चल दिये। जाते समय एक पत्र सनातनको इस आशयका लिख गये कि 'हमलोग दोनों वृन्दावन जा रहे हैं। किसी प्रकार पिण्ड छुड़ाकर आप भी शीघ्र आइये, आवश्यक व्ययके लिये दस हजार रुपये मोदीके यहाँ रख दिये गये हैं।'
सदा अमौरी ठाटमें रहनेवाले रूप और अनुपमकी आज कुछ विचित्र हो अवस्था है। उन्होंने सारे वस्त्र और आभूषण उतारकर फेंक दिये है, तनपर एक-एक फटी गुदड़ी है और कमरमें एक-एक कौपीन है। भूख-प्यास और नींदकी कुछ भी परवा नहीं है, पासमें एक कौड़ी नहीं है। वे सहर्ष कष्ट सहन करते हुए पैदल चले जा रहे हैं। अपने-आप जो कुछ खानेको मिल जाता है, उसीसे उदरपूर्ति करके रातको चाहे जहाँ पड़ रहते हैं; परंतु उनके मनमें कोई दुःख नहीं है। चलते-चलते. दोनों भाई प्रयाग पहुँचे। यहाँ जाते हो अनायास पता लग गया कि महाप्रभु यहाँपर हैं। दोनों भाई दाँतों तले तिनका दबाकर जगत्के बड़े-से-बड़े दौन और कंगालकीतरह काँपते-रोते और पड़ते-उठते महाप्रभुके चरणों में जाकर गिर पड़े और दोनों ही प्रेमके आवेशमें मतवाले से हो गये। कुछ समयके बाद धीरज धरकर बोले- 'हे दीनदयामय! हे पतितपावन। हे नाथ! हम जैसे पतितोंको तुम्हारे अतिरिक्त और कौन आश्रय देगा?' महाप्रभुने इससे पूर्व सिर्फ एक दिन रातके समय रूपको देखा था, परंतु अब उसे देखते ही तुरंत पहचानकर महाप्रभु हँसकर बोले-
'उठो, उठो, रूप! दीनता छोड़ दो, तुमलोगोंपर श्रीकृष्णकी अपार कृपा है। तभी तो उन्होंने तुमलोगोंको विषय-कूपसे निकाल लिया है। रूप! भगवान्को जितने भक्त प्रिय हैं, उतने और कोई नहीं। भगवान्ने कहा है
न मेऽभक्तश्चतुर्वेदी मद्भक्तः श्वपचः प्रियः ।
तस्मै देयं ततो ग्राह्यं स च पूज्यो यथा ह्यहम् ॥
"चारों वेदोंको जाननेवाला भी यदि मेरा भक्त न हो तो वह मुझे प्रिय नहीं है; परंतु मेरा भक्त चाण्डाल भी मुझे प्रिय है। मैं उसको अपना प्रेम देता हूँ और उससे प्रेम ग्रहण करता हूँ। जगत्में जिस प्रकार में सबका पूज्य हूँ, उसी प्रकार मेरा भक्त भी है।' इस श्लोकको पढ़कर महाप्रभुने प्रेमसे अश्रुपात करते हुए दोनों बन्धुओंको बलपूर्वक अपनी छातीसे लगा लिया और अपने पास | बैठाकर समस्त वृत्तान्त पूछने लगे। रूपने कहा- 'प्रभो! सुना है कि सनातनको बादशाहने कैद कर लिया है।' प्रभु बोले- 'घबराओ मत ! सनातन कैदसे छूट गया है और मेरे समीप आ रहा है!' रूप और अनुपम उस दिन महाप्रभुके पास ही रहे और वहीं प्रसाद लिया।
महाप्रभुने कई दिनोंतक उन्हें प्रयागमें अपने पास रखा। रूपके द्वारा प्रभुको बहुत बड़ा कार्य करवाना था, वृन्दावनकी दिव्य प्रेमलीलाको पुनर्जीवन देना था। इसलिये रूपको एकान्तमें रखकर लगातार कई दिनोंतक महाप्रभुने उसको भक्तिका यथार्थ रहस्य भलीभाँति समझाकर अन्तमें कहा-'रूप! मैं काशी जाता हूँ। तुम वृन्दावन जाओ, मेरी आज्ञाका पालन करो, जीवोंका कल्याण करो, अपने सुखकी आशा छोड़कर वृन्दावन जाओ और इसके बाद यदि इच्छा हो तो मुझसे नीलाचलमें मिलना।' यों कहकर प्रभु वहाँसे चल दिये और बड़े कष्टसे धैर्य धारणकरप्रभुके आज्ञानुसार रूप अपने छोटे भाई अनुपमके साथ वृन्दावनको चले!
रूप और अनुपमको वृन्दावन भेजकर महाप्रभु काशी चले गये और वहाँ श्रीचन्द्रशेखरके मकानमें ठहरे। इधर सनातनने गौड़के कारागारमें रूपका पत्र पाकर शीघ्र ही वहाँसे निकलकर महाप्रभुके समीप जानेका विचार कर लिया तथा मौकेसे द्वाररक्षकको कुछ देकर वे कारागारसे निकल पड़े और सात हजार मुहरें देकर उसीकी सहायता से रातोरात गङ्गाके उस पार चले गये। ईशान नामक एक नौकर इनके साथ था। उसने छिपाकर आठ मुहरें अपने पास रख ली थीं। पातड़ा ग्राम में भौमिकोंने मुहरोंके लोभसे सनातनका बड़ा आदर किया। उनके मनमें पाप था, वे रातको सनातन और ईशानको मारकर मुहरें छीनना चाहते थे। सनातनने मनमें सोचा कि ये लोग मेरा इतना सम्मान क्यों करते हैं, इनको लुभानेकी मेरे पास तो कोई वस्तु नहीं है। उनके मनमें सन्देह हुआ और उन्होंने ईशानसे पूछा-'मालूम होता है। तुम्हारे पास कुछ धन है।' ईशानने एक मुहर छिपाकर कहा- 'हाँ, सात मुहरें हैं।' कहा-'भाई। इस पापको अपने पास क्यों रखा। यदि तुम इस समय न बताते तो रातको ये भौमिक बिना मारे न छोड़ते।' उससे सातों मुहरें लेकर सनातनने भौमिकोंको दे दीं, शेष एक मुहरका और पता लगनेपर सनातनने यह मुहर ईशानको देकर उसे वापस देश लौटा दिया, सारा बखेड़ा निपटा। सुखपूर्वक सनातन अकेले ही चलने लगे। सन्ध्याके समय हाजीपुर नामक स्थानमें पहुंचे और एक जगह बैठकर बड़े कैसे स्वरसे श्रीकृष्णके पावन नामका कीर्तन करने लगे। उन्हें सच्ची शान्ति और विश्रान्ति इसीमें मिलती थी। वास्तवमें बात भी ऐसी ही हैं।
सनातनके बहनोई श्रीकान्त बहुत दिनोंसे हाजीपुरमें थे। ये गौड़ बादशाहके लिये पोड़े खरीदने आये थे। सन्ध्याका समय था, श्रीकान्त एक तरफ बैठे आराम कर रहे थे। उनके कानोंमें हरिनामकी मीठी आवाज गयी, पहचाना हुआ-सा स्वर था, श्रीकान्त उठकर सनातनके पास आये और देखते ही अवाक रह गये। उन्होंने सनातन सम्बन्धी कोई बात नहीं सुनी थी। उन्हें बड़ाआश्चर्य हुआ। उन्होंने देखा, सनातनका शरीर जीर्ण हो गया है, वे फटी हुई मैली-सी धोती पहने हुए हैं, दाढ़ी बढ़ रही है, मुखपर वैराग्यको छाया पड़ी हुई है और जोर जोरसे मतवालेकी भाँति हरिनामका उच्चारण कर रहे हैं। श्रीकान्तने सनातनको पुकारकर सचेत किया और उनके पास बैठकर इस हालतका कारण पूछा। सनातनने संक्षेपमें सारी कहानी सुना दी। श्रीकान्तने कहा-'ऐसा ठीक नहीं, घर लौट चलिये।' सनातनने कहा- 'घर ही तो जा रहा हूँ। अबतक घर भूला हुआ था, पराये घरको घर माने हुए था; अब पता लग गया है, इसलिये तो दौड़ता हूँ। आँखे खुलनेपर स्वप्रके महलोंमें कौन रहता है। जबतक संसारका मायामय घर घर मालूम होता है तबतक असली घर दूर रहता है। जिसको कभी अपने असली घरका पता लग जाता है वह तो इसी प्रकार मतवाला होकर दौड़ता है।" श्रीकान्तने समझानेकी बड़ी चेष्टा की, परंतु समझे हुएको भूला हुआ क्या समझायेगा। जहाँ वैराग्यका सागर उमड़ा हो, वहाँ विषयरूपी कूड़ेको कहाँ स्थान मिल सकता है। श्रीकान्तको बातें सनातनके जाग्रत् हृदयको स्पर्श नहीं कर सकीं, ऊपर ही ऊपर उड़ गयीं। श्रीकान्तने समझा कि अब ये नहीं मानेंगे। अतएव सनातनके घर लौटनेकी आशा छोड़कर उन्होंने उनके राह खर्चके लिये कुछ देना चाहा। सनातनने कुछ भी नहीं लिया। गहरा जाड़ा पड़ रहा था, श्रीकान्तने एक बढ़िया दुशाला देना चाहा, सनातनने उसे भी नहीं लिया। श्रीकान्त रोने लगे, उनका रोना देखकर सनातनका मन पिघला भक्त बड़े कोमलहृदय होते हैं, उनसे दूसरेका दुःख नहीं देखा जाता। अतएव श्रीकान्तके मनको शान्त और सुखी करनेके लिये उन्होंने उनसे एक कम्बल ले लिया और देखते ही देखते कहाँसे चल पड़े। श्रीकान्त चुपचाप खड़े रोते रह गये।
महाप्रभु जिस राहसे, जिस गाँवसे और जिस नगरसे जाते थे, सभी जगह अपना एक निशान छोड़ जाते थे वह था हरिनामको तुमुल और मत्त ध्वनि। अतएव सनातनको खोज करनेको आवश्यकता नहीं पड़ी। वे प्रेममें झूमते हुए हरिनामपरायण लोगोंको महाप्रभुका मार्ग चिन्ह समझकर काशी जा पहुँचे और वहाँ जाकरइसी प्रकार सीधे चन्द्रशेखरके मकानके समीप पहुँच गये। खोज प्रत्यक्ष थी। लाखों नर-नारी मिलकर हरिध्वनि कर रहे थे। सनातनका मन प्रफुल्लित और शरीर पुलकित हो गया। वे धीरे-धीरे जाकर चन्द्रशेखर के दरवाजे पर बैठ गये। महाप्रभु घरके भीतर हैं और सनातन बाहर बैठे हुए प्रभुके श्रीचरणोंका ध्यान कर रहे हैं। अंदर जानेका साहस नहीं होता। अपने पापोंको स्मरण करके मनमें सोचते हैं कि 'क्या मुझपर भी प्रभुकी कृपा होगी? मुझ सरीखे घोर नारकी जीवकी ओर क्या प्रभु निहारेंगे?" सनातनके मनमें कहीं पर भी कपट या दम्भकी गन्धतक नहीं है। सरल और शुद्ध हृदयसे पापोंकी स्मृतिके अनुतापसे दग्ध होते हुए सनातन आज प्रभुकी शरण चाहते हैं।
सर्वज्ञ महाप्रभुने घर के अंदर बैठे हुए ही इस बातको जान लिया कि बाहर सनातन बैठे हैं। अतएव उन्होंने चन्द्रशेखरसे कहा कि 'दरवाजेपर जो वैष्णव बैठा है, उसे अंदर बुला लाओ।' आज्ञानुसार चन्द्रशेखर बाहर गया और वहाँ किसी वैष्णवको न देखकर वापस लौटकर बोला कि 'बाहर तो कोई वैष्णव नहीं है?" महाप्रभुने कहा- 'क्या दरवाजेपर कोई नहीं बैठा है? चन्द्रशेखरने कहा- 'दरवाजेपर एक फकीर-सा तो बैठा है।' महाप्रभुने कहा-'जाओ उसीको बुला लाओ।' सनातनके कपड़े-लते वैष्णव से नहीं थे परंतु उसका अन्तर तो विष्णुमय था । अन्तरको पहचानना अन्तर्यामीका ही काम है।
चन्द्रशेखर यह सुनकर आश्चर्य करने लगा। सोचने लगा कि आज प्रभु इस फकीरको क्यों बुला रहे हैं। परंतु महाप्रभुके सामने कुछ कहने का साहस नहीं हुआ और कहनेका उसने बाहर जाकर सनातनसे कहा- 'आप कौन हैं? आपको प्रभु बुला रहे हैं।' प्रभु बुला रहे हैं। इन शब्दोंने बिजलीका सा काम किया। सनातनके हृदय में हर्ष, आशा, चिन्ता, भय, भक्ति और लज्जा आदि अनेक भावोंकी तरतें उठने लगीं। उन्होंने कहा है क्या प्रभु बुलाते हैं? क्या सचमुच ही मुझे बुलाते हैं? आप भूल तो नहीं रहे हैं? भला, प्रभु मुझे क्यों बुलाने लगे थे और किसीको बुलाते होंगे।' चन्द्रशेखरने कहा'प्रभु आपको ही बुलाते हैं, आप अंदर पधारिये।" सनातनके हृदयमें आनन्दका समुद्र उमड़ पड़ा, परंतु अपनी स्वाभाविक दीनतासे वे दाँतों तले तिनका दबाकर अपराधीको भाँति चुपचाप अंदर जाकर प्रभुके चरणोंमें लकुटकी तरह गिर पड़े। दोनों नेत्रोंसे आँसुओंकी अजन धारा बहने लगी। सनातन बोले- 'प्रभो! मैं पामर हूँ मैंने आजीवन कामादि पविकारोंकी सेवा की हैं, विषयभोगको ही सुख माना है, दिन-रात नीचोंके साथ नीच कर्म करनेमें रत रहा हूँ। इस मनुष्य जन्मको मैंने व्यर्थ ही खो दिया; मुझ सरीखा पापी, अधम, नीच और कुटिल और कौन होगा। प्रभो आज तुम्हारे चरणोंकी शरणमें आया हूँ, अपनी स्वाभाविक दयालुताकी तरफ खयाल करके मुझे चरणोंमें स्थान दो इस अधमको इन चरणोंके सिवा और कहाँ आश्रय मिलेगा।'
प्रभु सनातनके इन शब्दोंको नहीं सुन सके, उनका हृदय दयासे द्रवित हो गया। सनातनको जबरदस्ती उठाकर प्रभुने अपनी छातीसे लिपटा लिया। सनातनके नेत्रोंकी अश्रुधारा मानो मन्दाकिनीकी धारा बनकर महाप्रभुके सशरीर चरणोंको धोने लगी और महाप्रभुके नेत्रोंकी प्रेमाश्रुधारा सनातनके मस्तकको सिञ्चनकर उसे सहसा पापमुक्त करने लगी।
सनातन कहने लगे- 'प्रभो! मुझे आप क्यों स्पर्श करते हैं। मेरा यह कलुषित कलेवर आपके स्पर्श-योग्य नहीं है। इस घृणित और दूषित देहको आप स्पर्श न कीजिये।' प्रभुने कहा-'सनातन! दीनताका त्याग करो l
'तुम्हारी दीनता देखकर मेरा कलेजा फटा जाता है; जब श्रीकृष्ण कृपा करते हैं तब भले-बुरेका विचार नहीं करते श्रीकृष्ण तुम्हारे सम्मुख हुए हैं तुमपर श्रीकृष्णकी इतनी कृपा है कि उसका वर्णन नहीं हो सकता। तभी तो उन्होंने तुम्हें विषयकूपसे निकाल लिया है। तुम्हारा शरीर निष्पाप है; क्योंकि तुम्हारी बुद्धि श्रीकृष्णभक्ति में लगी हुई है। मैं तो अपनेको पवित्र करनेके लिये ही तुम्हें स्पर्श करता हूँ।' क्योंकि
'भक्तिबले पार तुमि ब्रह्माण्ड शोधिते'
'तुम अपने भक्तिबलसे सारे ब्रह्माण्डको पवित्र करनेमें समर्थ हो।'
अक्ष्णोः फलं त्वादृशदर्शनं हि
तन्वाः फलं त्वादृशगात्रसङ्गः ।
जिह्वाफलं त्वादृशकीर्तनं हि
सुदुर्लभा भागवता हि लोके ॥
(हरिभक्तिसुधोदय 13 2)
'तुम जैसे भक्तोंके दर्शनमें ही आँखोंकी सफलता है, तुम जैसे भक्तोंके अङ्गस्पर्शमें ही शरीरकी सफलता
है और तुम जैसे भक्तोंके गुणगानमें ही जीभकी सफलता है । संसारमें भागवतोंके दर्शन अत्यन्त दुर्लभ हैं।'
यों कहकर महाप्रभुने सनातनके भाग्यकी बड़ी ही प्रशंसा की और कहा कि श्रीकृष्ण प्रेम होनेपर वास्तवमें ऐसी ही दीनता हुआ करती है। इसके बाद महाप्रभुने सनातनसे उसकी कारामुक्तिके सम्बन्धमें पूछा। सनातनने संक्षेपसे सारी कथा सुना दी।
महाप्रभुने चन्द्रशेखरसे कहा कि 'सनातनका मस्तक मुण्डनकर और इसे स्नान करवाकर नये कपड़े पहना दो।' स्नान कर चुकनेपर जब तपन मिश्र नामक एक भक्त सनातनको नयी धोती देने लगे तब सनातनने कहा- 'यदि आप मुझे वस्त्र देना चाहते हैं तो कोई फटा पुराना कपड़ा दे दीजिये, मुझे नये कपड़ेसे क्या प्रयोजन है।' सनातनका आग्रह देखकर मिश्रने एक पुरानी धोती दे दी और सनातनने फाड़कर उसके दो कौपीन बना लिये। सनातनके इस वैराग्यको देखकर महाप्रभु मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए, परंतु श्रीकान्तकी दी हुई कम्बल सनातनके कंधेपर इस समय भी पड़ी हुई थी। महाप्रभुने दो-चार बार उसकी ओर देखा; तब सनातनने समझा कि मैंने अबतक यह सुन्दर कम्बल अपने पास रख छोड़ी है, मेरी विषयवासना दूर नहीं हुई है, इसीसे प्रभु बार-बार इसकी ओर ताककर मुझे सावधान कर रहे हैं। सनातनने गङ्गा-तटपर जाकर वह कम्बल एक गरीबको दे दिया, बदलेमें उससे फटी गुदड़ी लेकर उसे ओढ़ लिया। जब महाप्रभुने सनातनको गुदड़ी ओढ़े देखा तब वे बड़े प्रसन्न हुए और बोले कि 'सनातन! श्रीकृष्णने तुम्हारे विषय-रोगको आज समूल नष्ट कर दिया; भला, उत्तम वैद्य रोगका जरा-सा अंश भी शेष क्यों रहने देता है?"
महाप्रभुने सनातनको लगातार दो महीनेतक भक्तितत्त्वकी परमोत्तम शिक्षा देकर उनसे वृन्दावन जानेको कहा और यहाँ रूप अनुपम के साथ मिलकर श्रीकृष्णका कार्य सम्पादन करनेके लिये आदेश दिया।
महाप्रभु तो नीलाचल चले गये और उनकी आज्ञा पाकर सनातन वृन्दावन आये। वृन्दावन आनेपर पता लगा कि उनके भाई रूप और अनुपम दूसरे मार्गसे काशी होते हुए देश चले गये हैं। सनातन वनमें एक पेड़के तले रहने लगे। प्रतिदिन जंगलसे लकड़ियाँ लाकर बाजारमें बेचते और उसीसे अपना निर्वाह करते; जो कुछ बच रहता सो दीन-दुखियोंको बाँट देते। एक दिन जो बंगालके हर्ताकर्ता थे, आज वे ही हरिप्रेमकी मादकताके प्रभावसे ऐसे दोन बन गये।
कुछ समयतक वृन्दावनमें निवास करके सनातन महाप्रभुसे मिलनेके लिये नीलाचलकी ओर चले। रास्ते में उन्हें चर्मरोग हो गया। कविराज गोस्वामीने लिखा है कि झारखण्डके दूषित जलपानसे उनके यह रोग हो गया था। जो कुछ भी हो, सनातन रोगाक्रान्त होकर नीलाचल पहुँचे और अपनेको दीन-हीन और पतित मानकर श्रीहरिदासजीके यहाँ ठहर गये। श्रीहरिदासजीके यहाँ महाप्रभु रोज जाया करते। उन्होंने जाकर सनातनको देखा, सनातन दूरसे ही चरणोंमें प्रणाम करने लगे। महाप्रभुने दौड़कर उन्हें छातीसे लगाना चाहा पर सनातन पीछे हट गये और बोले कि 'प्रभो! आप मुझे स्पर्श न करें; मैं अत्यन्त नौच तो हूँ ही, तिसपर मुझे कोढ़ हो गया है। इसलिये क्षमा करें।' महाप्रभुने कहा 'सनातन! तुम्हारा शरीर मेरे लिये बड़ा हो पवित्र है, तुम श्रीकृष्णके भक्त हो; तुमसे जो घृणा करेगा, वही अस्पृश्य है' यों कहकर महाप्रभुने सनातनको जबरदस्ती छाती लिपटा लिया, सनातनके कोड़का मवाद महाप्रभुके सारे शरीरमें लग गया। महाप्रभुने सनातनसे कहा कि 'तुम्हारे दोनों भाई यहाँ आकर दस महीने रहे थे। इसके बाद रूप तो वापस वृन्दावन लौट गये हैं और अनुपमको यहाँ श्रीकृष्णकी प्राप्ति हो गयी है।' छोटे भाईका मरण सुनकर सनातनको खेद हुआ। प्रभुने आश्वासन देकर सनातनसे कहा कि 'तुम यहीं हरिदासजीके पास रहो तुम दोनोंका ही श्रीकृष्णमें बड़ा प्रेम है, तुमलोगोंपर शीघ्र ही श्रीकृष्णकृपा करेंगे।' यों कहकर महाप्रभु चले गये और इसी प्रकार रोज-रोज वहाँ आकर सनातनको आलिङ्गन करने लगे। सनातनके मनमें इससे बड़ा क्षोभ होता था।
भगवान् मङ्गलमय परम पिता हैं, वे तो अपनी सन्तानपर नित्य दयामय हैं; उनसे कुछ भी माँगना उनकी दयालुतापर अविश्वास करना है। सनातनने कुष्ठकी भयानक पीड़ा सहर्ष सहन की; परंतु किसी समय भी उनके मनमें यह संकल्प नहीं उठा कि मैं प्रभुसे अपने रोगकी निवृत्तिके लिये कुछ प्रार्थना करूँ। इन्हीं सब बातोंको दिखलानेके लिये समर्थ होनेपर भी उन्होंने केवल दर्शनमात्रसे सनातनके रोगका नाश नहीं किया। जब जगत् सनातनके अतुलनीय निष्कपट, निष्काम प्रेम और उनकी अनुकरणीय दीनतासे परिचित हो गया, बस, उसी समय सनातन रोगमुक्त हो गये। तदनन्तर महाप्रभुने सनातनको वृन्दावन जाकर जीवोंका उद्धार करनेकी अनुमति दी। महाप्रभुको छोड़कर जानेमें सनातनको असीम कष्ट था; परन्तु उनकी आज्ञाका उल्लङ्घन करना सनातनको उससे भी अधिक कष्टकर प्रतीत हुआ। सनातन वृन्दावन चले गये। रूप भी पहुँच गये। दोनोंने मिलकर वृन्दावनके उद्धारका कार्य किया।
सनातनने 'बृहद्भागवतामृत', 'हरिभक्तिविलास','लीलास्तव', 'स्मरणीय टीका', 'दिग्दर्शनी टीका' और श्रीमद्भागवतके दशम स्कन्धपर 'वैष्णवतोषिणी' नामक टीका बनायी। रूपने 'भक्तिरसामृतसिन्धु', 'मथुरामाहात्म्य', 'पदावली', 'हंसदूत', 'उद्धवसंदेश', 'अष्टादशकच्छन्दः', 'स्तत्रमाला', 'उत्कलिकावली', 'प्रेमेन्दुसागर', 'नाटकचन्द्रिका', 'लघुभागवततोषिणी', 'विदग्धमाधव', 'ललितमाधव', 'उज्ज्वलनीलमणि', 'दानकेलिभानिका' और 'गोविन्द विरुदावली' आदि अनेक अनुपम ग्रन्थोंकी रचना की। 'विदग्धमाधव' की रचना वि0 संवत् 1582 में हुई थी। इन सब ग्रन्थोंमें भक्त, भक्ति और श्रीकृष्णतत्त्व आदिका बड़ा विशद वर्णन है।
दोनों भाई वहाँ वृक्षोंके नीचे सोते रहते भीख माँगकर रूखी-सूखी खाते, फटी लँगोटी पहनते, गुदड़ी और करवा साथ रखते। आठ पहरमें केवल चार घड़ी सोते और शेष सब समय करते श्रीकृष्णका नाम-जप सङ्कीर्तन और शास्त्रोंका प्रणयन।
श्रीरूप और सनातन दोनों श्रीवृन्दावनमें ही गोलोकवासी हुए। एक समय जो विद्या, पद, ऐश्वर्य और मानमें मत्त थे, वे ही भगवत्कृपासे अत्यन्त विलक्षण निरभिमानी, निर्लोभी, वैराग्यवान् और परम प्रेमिक बन गये।
chaar sau varsh se adhik beet chuke, bangaalake sinhaasanapar husainashaah naamak ek musalamaan shaasak adhishthit tha, jo apaneko bangaalaka baadashaah kahata thaa. bangaalakee raajadhaanee us samay raajamahalake sameep base hue gauda़ naamak nagaramen thee (yah gauda़ is samay nasht ho gaya hai). yadyapi baadashaah musalamaan tha, tathaapi usake uchchapadasth karmachaaree praaya: hindoo hee the. baadashaahake uchchapadaadhikaariyonmen dakshinake do braahmanabandhu mantreeke padapar pratishthit the. ye apane deshase aakar bangaalake raamakeli naamak gaanvamen bas gaye the aur apanee vidyaa-buddhise inhonne itana ooncha pad praapt kar liya thaa. raajyamen ye dabeer khaas aurasaakar mallikake naamase prasiddh the. ye donon padaviyaan theen. sanaatanaka asalee naam 'amara' aur roopaka naam 'santosha' thaa. husainashaah inhen apana daahina haath samajhata thaa. vesha-bhooshaase ye poore musalamaan prateet hote the. inhonne prachur dhan upaarjan kiya thaa. raamakeli graamamen ye raaja kahalaate the. itana sab honepar bhee inaka hriday hindoobhaavonse bhara thaa. shreeraam aur shreekrishnake prati inaka anuraag thaa. braahmana-saadhuonmen inakee bhakti thee. raamakeli graamamen inake gharapar braahmana-saadhuonka praayah melaa-sa laga rahata thaa. dhanakee kamee naheen thee, manamen udaarata thee, dhan bantata thaa. anek vidvaan braahmanonka bharana-poshan inakedvaara hua karata thaa. inake chhote bhaaee 'anupama' ghar raha karate the aur ye donon adhikaansh samay baadashaahake paas gauda़men rahate the.
shreechaitany mahaaprabhuka naam sunakar unake prati svaabhaavik hee inakee shraddha ho gayee aur us shraddhaane kramashah badha़kar ek prakaarakee virah vedanaakaa-sa roop dhaaran kar liyaa. donon bhaaee shreechaitanyake darshanake liye bada़e utkanthit ho gaye. dabeer khaas aur saakar mallikakee teevr darshanaabhilaashaane shreechaitanyamahaaprabhuke manako kheench liyaa. mahaaprabhuse ab naheen raha gaya aur ve vrindaavan jaaneke bahaane gangaajeeke kinaare-kinaare chalakar gauda़ke sameep ja pahunche. jab mahaaprabhu gauda़ke sameep pahunche, tab unake hajaaron bhaktonke dalakee tumul haridhvanise saara nagar goonj utha, baadashaahane kolaahal sunakar socha ki ho n ho aaj gauda़par koee shatru chadha़ aaya hai. use bada़a bhay huaa. usane dabeer khaas aur saakar mallikako bulaaya aur unase sannyaaseeke sambandhamen poochhaa. in donon bhaaiyonne abatak mahaaprabhuke darshan naheen kiye the, parantu inaka pragaadha़ vishvaas tha ki shreechaitany saakshaat eeshvar hain. unhonne anek prakaarase mahaaprabhuke gunagaan karate hue baadashaah se kahaa- 'hujoora! maaloom hota hai, saakshaat bhagavaan dharaadhaamamen | avateern hokar sannyaaseeke veshamen ghoom rahe hain. jinake anugrahase aap aaj gauda़ke baadashaah hain, vahee bhagavaan aaj aapake daravaajepar padhaare hain.'
yah sunakar baadashaahane bada़ee namrata se kahaa-'mujhe bhee kuchh aisa hee maaloom hota hai. main gauda़ka baadashaah hoon, laakhon aadamiyonke maarane-jilaaneka akhaayaar rakhata hai lekin agar main ek maamoolee naukarako bhee ek dinako tanakhvaah n doon to vah apanee rajaamandeese meree kisee vaatako sunana naheen chaahegaa. agar main apanee phaujako chhah maheene tanakhvaah n baanhoon to shaayad vahee mujhe katl karaneke liye saajish karane lage. taavakee baat hai ki is kangaal phakeerake paas ek kauda़ee n honepar bhee hajaaron aadamee apana ghara-baar chhoda़kar aur neenda-bhookhako bhulaakar gulaam bane saath ghoom rahe hain. eeshvarake siva ais taakat aur kisamen ho sakatee hai.'baadashaahane baaten to bada़ee achchhee kaheen, parantu un donon bhaaiyonke manamen yah bhay bana hee raha ki kahaan svechchhaachaaree musalamaan baadashaah mahaaprabhuke dalako koee kasht n pahuncha de. ve chaahate the ki mahaaprabhu yahaanse sheeghr hee chale jaayen to theek hai. parantu unaka darshan karane ke liye dononke manamen bada़ee utkantha ho rahee thee. isaliye baahar ke baahar unhen lautaana bhee naheen chaahate the. mahaaprabhu gauda़men a pahunche. ve darshan diye bina kab lautanevaale the, ve to aaye hee the donon bhaaiyonko sansaar koopase kheenchakar baahar nikaalaneke liye. raatako donon bhaaee mahaaprabhuke darabaar men pahunche. prabhu apane priyatam paramaatmaake premamen samaadhisth the. shreenityaanandajeene cheshta karake unakee samaadhi bhang karavaakar donon bhaaiyonka parichay karaayaa. donon munhamen tinake dabaakar aur galemen kapada़a daalakar mahaaprabhuke charanonmen gir pada़e aur bole-
'prabho! aapane patit aur dononka paritraan karaneke liye hee prithveepar padaarpan kiya hai, ham jaise dayaneey patit aapako aur kahaan milenge? aapane jagaaee-madhaaeeka uddhaar kiya, parantu ve to ajnaanase paap karate the . uddhaar to sabase pahale hamaara hona chaahiye, kyonki hamane to jaana-boojhakar paap kiye hain, vaastavik patit to hameen hain naatha! ab aapake siva hamen aur kaheen thaur naheen hai.' mahaaprabhu unakee nishkapat deenataako dekhakar mugdh ho
gaye, dayaase unaka hriday dravit ho gayaa. ve bole-'utho, deenataako door karo; tumhaaree is deenataako dekhakar mera hriday phata ja raha hai, tum mujhe bada़e priy ho. main yahaan tumheen donon bhaaiyonse milane aaya hoon. tum nishchint raho. sheeghr hee tumapar shreekrishnakee kripa hogee. aajase tumhaara naam 'sanaatana' aur 'roopa' huaa.' mahaaprabhuke vachan sunakar sanaatan aur roopaka hriday aanandase bhar gaya aur ve kritajnataapoorn drishtise mahaaprabhuke mukh kamalako aur ekatakee lagaakar dekhane lage. unake jeevan srotakee disha sahasa badal gayee!
isake baad mahaaprabhune sanaatanake paraamarshase itane logonko saath lekar vrindaavan jaaneka vichaar chhoda़ diya aur vaapas neelaachal (puree) kee or laut gaye. idhar roop sanaatanakee dasha kuchh aur ho ho gayau. vairaagy umada़ pada़aa. raajya-vaibhav aur mantritvase man hat gayaa. ek kshan bhee raajakaajamen rahana unake liye narak yantranaake samaan duhkhadaayee ho gayaa. sanaatanako anumatise roop to chhuttee lekar apane ghar raamakeli chale gaye. sanaatan beemaareeka bahaana karake derepar hee rahane lage. roopane do guptachar mahaaprabhuke sameep neelaachal bhej diye aur unhen taakeed kar dee ki mahaaprabhuke vrindaavanakee or prayaan karate ho sheeghr lautakar mujhe soochana denaa. is beechamen dhana-sampattiko lutaakar roop vrindaavan jaanekee taiyaaree karane lage. inake chhote bhaaeeka naam anupam tha, vah pahale se hee bada़a shraddhaalu thaa. usane bhee bhaaeeke saath hee ghar chhoda़ne kee taiyaaree kar lee. roop sanaatanake koee santaan naheen thee anupamake 'jeeva' naamak ek putr tha, use thoda़a sa dhan saunpakar shesh saara dhan gareebonko luta diya gayaa. itanemen samaachaar mila ki sanaatanako baadashaahane kaid kar liya hai. jaanee huee-see baat thee. roop aur anupamane sheeghr hee chale jaaneka vichaar kiya aur charonke neelaachalase lautate ho mahaaprabhuke vrindaavan gamanakee baat sunakar donon bhaaee vrindaavanako chal diye. jaate samay ek patr sanaatanako is aashayaka likh gaye ki 'hamalog donon vrindaavan ja rahe hain. kisee prakaar pind chhuda़aakar aap bhee sheeghr aaiye, aavashyak vyayake liye das hajaar rupaye modeeke yahaan rakh diye gaye hain.'
sada amauree thaatamen rahanevaale roop aur anupamakee aaj kuchh vichitr ho avastha hai. unhonne saare vastr aur aabhooshan utaarakar phenk diye hai, tanapar eka-ek phatee gudaड़ee hai aur kamaramen eka-ek kaupeen hai. bhookha-pyaas aur neendakee kuchh bhee parava naheen hai, paasamen ek kauda़ee naheen hai. ve saharsh kasht sahan karate hue paidal chale ja rahe hain. apane-aap jo kuchh khaaneko mil jaata hai, useese udarapoorti karake raatako chaahe jahaan pada़ rahate hain; parantu unake manamen koee duhkh naheen hai. chalate-chalate. donon bhaaee prayaag pahunche. yahaan jaate ho anaayaas pata lag gaya ki mahaaprabhu yahaanpar hain. donon bhaaee daanton tale tinaka dabaakar jagatke bada़e-se-bada़e daun aur kangaalakeetarah kaanpate-rote aur pada़te-uthate mahaaprabhuke charanon men jaakar gir pada़e aur donon hee premake aaveshamen matavaale se ho gaye. kuchh samayake baad dheeraj dharakar bole- 'he deenadayaamaya! he patitapaavana. he naatha! ham jaise patitonko tumhaare atirikt aur kaun aashray degaa?' mahaaprabhune isase poorv sirph ek din raatake samay roopako dekha tha, parantu ab use dekhate hee turant pahachaanakar mahaaprabhu hansakar bole-
'utho, utho, roopa! deenata chhoda़ do, tumalogonpar shreekrishnakee apaar kripa hai. tabhee to unhonne tumalogonko vishaya-koopase nikaal liya hai. roopa! bhagavaanko jitane bhakt priy hain, utane aur koee naheen. bhagavaanne kaha hai
n me'bhaktashchaturvedee madbhaktah shvapachah priyah .
tasmai deyan tato graahyan s ch poojyo yatha hyaham ..
"chaaron vedonko jaananevaala bhee yadi mera bhakt n ho to vah mujhe priy naheen hai; parantu mera bhakt chaandaal bhee mujhe priy hai. main usako apana prem deta hoon aur usase prem grahan karata hoon. jagatmen jis prakaar men sabaka poojy hoon, usee prakaar mera bhakt bhee hai.' is shlokako paढ़kar mahaaprabhune premase ashrupaat karate hue donon bandhuonko balapoorvak apanee chhaateese laga liya aur apane paas | baithaakar samast vrittaant poochhane lage. roopane kahaa- 'prabho! suna hai ki sanaatanako baadashaahane kaid kar liya hai.' prabhu bole- 'ghabaraao mat ! sanaatan kaidase chhoot gaya hai aur mere sameep a raha hai!' roop aur anupam us din mahaaprabhuke paas hee rahe aur vaheen prasaad liyaa.
mahaaprabhune kaee dinontak unhen prayaagamen apane paas rakhaa. roopake dvaara prabhuko bahut bada़a kaary karavaana tha, vrindaavanakee divy premaleelaako punarjeevan dena thaa. isaliye roopako ekaantamen rakhakar lagaataar kaee dinontak mahaaprabhune usako bhaktika yathaarth rahasy bhaleebhaanti samajhaakar antamen kahaa-'roopa! main kaashee jaata hoon. tum vrindaavan jaao, meree aajnaaka paalan karo, jeevonka kalyaan karo, apane sukhakee aasha chhoda़kar vrindaavan jaao aur isake baad yadi ichchha ho to mujhase neelaachalamen milanaa.' yon kahakar prabhu vahaanse chal diye aur bada़e kashtase dhairy dhaaranakaraprabhuke aajnaanusaar roop apane chhote bhaaee anupamake saath vrindaavanako chale!
roop aur anupamako vrindaavan bhejakar mahaaprabhu kaashee chale gaye aur vahaan shreechandrashekharake makaanamen thahare. idhar sanaatanane gauda़ke kaaraagaaramen roopaka patr paakar sheeghr hee vahaanse nikalakar mahaaprabhuke sameep jaaneka vichaar kar liya tatha maukese dvaararakshakako kuchh dekar ve kaaraagaarase nikal pada़e aur saat hajaar muharen dekar useekee sahaayata se raatoraat gangaake us paar chale gaye. eeshaan naamak ek naukar inake saath thaa. usane chhipaakar aath muharen apane paas rakh lee theen. paatada़a graam men bhaumikonne muharonke lobhase sanaatanaka bada़a aadar kiyaa. unake manamen paap tha, ve raatako sanaatan aur eeshaanako maarakar muharen chheenana chaahate the. sanaatanane manamen socha ki ye log mera itana sammaan kyon karate hain, inako lubhaanekee mere paas to koee vastu naheen hai. unake manamen sandeh hua aur unhonne eeshaanase poochhaa-'maaloom hota hai. tumhaare paas kuchh dhan hai.' eeshaanane ek muhar chhipaakar kahaa- 'haan, saat muharen hain.' kahaa-'bhaaee. is paapako apane paas kyon rakhaa. yadi tum is samay n bataate to raatako ye bhaumik bina maare n chhoda़te.' usase saaton muharen lekar sanaatanane bhaumikonko de deen, shesh ek muharaka aur pata laganepar sanaatanane yah muhar eeshaanako dekar use vaapas desh lauta diya, saara bakheda़a nipataa. sukhapoorvak sanaatan akele hee chalane lage. sandhyaake samay haajeepur naamak sthaanamen pahunche aur ek jagah baithakar bada़e kaise svarase shreekrishnake paavan naamaka keertan karane lage. unhen sachchee shaanti aur vishraanti iseemen milatee thee. vaastavamen baat bhee aisee hee hain.
sanaatanake bahanoee shreekaant bahut dinonse haajeepuramen the. ye gauda़ baadashaahake liye poda़e khareedane aaye the. sandhyaaka samay tha, shreekaant ek taraph baithe aaraam kar rahe the. unake kaanonmen harinaamakee meethee aavaaj gayee, pahachaana huaa-sa svar tha, shreekaant uthakar sanaatanake paas aaye aur dekhate hee avaak rah gaye. unhonne sanaatan sambandhee koee baat naheen sunee thee. unhen bada़aaaashchary huaa. unhonne dekha, sanaatanaka shareer jeern ho gaya hai, ve phatee huee mailee-see dhotee pahane hue hain, daadha़ee badha़ rahee hai, mukhapar vairaagyako chhaaya pada़ee huee hai aur jor jorase matavaalekee bhaanti harinaamaka uchchaaran kar rahe hain. shreekaantane sanaatanako pukaarakar sachet kiya aur unake paas baithakar is haalataka kaaran poochhaa. sanaatanane sankshepamen saaree kahaanee suna dee. shreekaantane kahaa-'aisa theek naheen, ghar laut chaliye.' sanaatanane kahaa- 'ghar hee to ja raha hoon. abatak ghar bhoola hua tha, paraaye gharako ghar maane hue thaa; ab pata lag gaya hai, isaliye to dauda़ta hoon. aankhe khulanepar svaprake mahalonmen kaun rahata hai. jabatak sansaaraka maayaamay ghar ghar maaloom hota hai tabatak asalee ghar door rahata hai. jisako kabhee apane asalee gharaka pata lag jaata hai vah to isee prakaar matavaala hokar dauda़ta hai." shreekaantane samajhaanekee bada़ee cheshta kee, parantu samajhe hueko bhoola hua kya samajhaayegaa. jahaan vairaagyaka saagar umada़a ho, vahaan vishayaroopee kooda़eko kahaan sthaan mil sakata hai. shreekaantako baaten sanaatanake jaagrat hridayako sparsh naheen kar sakeen, oopar hee oopar uda़ gayeen. shreekaantane samajha ki ab ye naheen maanenge. ataev sanaatanake ghar lautanekee aasha chhoda़kar unhonne unake raah kharchake liye kuchh dena chaahaa. sanaatanane kuchh bhee naheen liyaa. gahara jaada़a pada़ raha tha, shreekaantane ek badha़iya dushaala dena chaaha, sanaatanane use bhee naheen liyaa. shreekaant rone lage, unaka rona dekhakar sanaatanaka man pighala bhakt bada़e komalahriday hote hain, unase doosareka duhkh naheen dekha jaataa. ataev shreekaantake manako shaant aur sukhee karaneke liye unhonne unase ek kambal le liya aur dekhate hee dekhate kahaanse chal pada़e. shreekaant chupachaap khada़e rote rah gaye.
mahaaprabhu jis raahase, jis gaanvase aur jis nagarase jaate the, sabhee jagah apana ek nishaan chhoda़ jaate the vah tha harinaamako tumul aur matt dhvani. ataev sanaatanako khoj karaneko aavashyakata naheen pada़ee. ve premamen jhoomate hue harinaamaparaayan logonko mahaaprabhuka maarg chinh samajhakar kaashee ja pahunche aur vahaan jaakaraisee prakaar seedhe chandrashekharake makaanake sameep pahunch gaye. khoj pratyaksh thee. laakhon nara-naaree milakar haridhvani kar rahe the. sanaatanaka man praphullit aur shareer pulakit ho gayaa. ve dheere-dheere jaakar chandrashekhar ke daravaaje par baith gaye. mahaaprabhu gharake bheetar hain aur sanaatan baahar baithe hue prabhuke shreecharanonka dhyaan kar rahe hain. andar jaaneka saahas naheen hotaa. apane paaponko smaran karake manamen sochate hain ki 'kya mujhapar bhee prabhukee kripa hogee? mujh sareekhe ghor naarakee jeevakee or kya prabhu nihaarenge?" sanaatanake manamen kaheen par bhee kapat ya dambhakee gandhatak naheen hai. saral aur shuddh hridayase paaponkee smritike anutaapase dagdh hote hue sanaatan aaj prabhukee sharan chaahate hain.
sarvajn mahaaprabhune ghar ke andar baithe hue hee is baatako jaan liya ki baahar sanaatan baithe hain. ataev unhonne chandrashekharase kaha ki 'daravaajepar jo vaishnav baitha hai, use andar bula laao.' aajnaanusaar chandrashekhar baahar gaya aur vahaan kisee vaishnavako n dekhakar vaapas lautakar bola ki 'baahar to koee vaishnav naheen hai?" mahaaprabhune kahaa- 'kya daravaajepar koee naheen baitha hai? chandrashekharane kahaa- 'daravaajepar ek phakeera-sa to baitha hai.' mahaaprabhune kahaa-'jaao useeko bula laao.' sanaatanake kapaड़e-late vaishnav se naheen the parantu usaka antar to vishnumay tha . antarako pahachaanana antaryaameeka hee kaam hai.
chandrashekhar yah sunakar aashchary karane lagaa. sochane laga ki aaj prabhu is phakeerako kyon bula rahe hain. parantu mahaaprabhuke saamane kuchh kahane ka saahas naheen hua aur kahaneka usane baahar jaakar sanaatanase kahaa- 'aap kaun hain? aapako prabhu bula rahe hain.' prabhu bula rahe hain. in shabdonne bijaleeka sa kaam kiyaa. sanaatanake hriday men harsh, aasha, chinta, bhay, bhakti aur lajja aadi anek bhaavonkee taraten uthane lageen. unhonne kaha hai kya prabhu bulaate hain? kya sachamuch hee mujhe bulaate hain? aap bhool to naheen rahe hain? bhala, prabhu mujhe kyon bulaane lage the aur kiseeko bulaate honge.' chandrashekharane kahaa'prabhu aapako hee bulaate hain, aap andar padhaariye." sanaatanake hridayamen aanandaka samudr umada़ pada़a, parantu apanee svaabhaavik deenataase ve daanton tale tinaka dabaakar aparaadheeko bhaanti chupachaap andar jaakar prabhuke charanonmen lakutakee tarah gir pada़e. donon netronse aansuonkee ajan dhaara bahane lagee. sanaatan bole- 'prabho! main paamar hoon mainne aajeevan kaamaadi pavikaaronkee seva kee hain, vishayabhogako hee sukh maana hai, dina-raat neechonke saath neech karm karanemen rat raha hoon. is manushy janmako mainne vyarth hee kho diyaa; mujh sareekha paapee, adham, neech aur kutil aur kaun hogaa. prabho aaj tumhaare charanonkee sharanamen aaya hoon, apanee svaabhaavik dayaalutaakee taraph khayaal karake mujhe charanonmen sthaan do is adhamako in charanonke siva aur kahaan aashray milegaa.'
prabhu sanaatanake in shabdonko naheen sun sake, unaka hriday dayaase dravit ho gayaa. sanaatanako jabaradastee uthaakar prabhune apanee chhaateese lipata liyaa. sanaatanake netronkee ashrudhaara maano mandaakineekee dhaara banakar mahaaprabhuke sashareer charanonko dhone lagee aur mahaaprabhuke netronkee premaashrudhaara sanaatanake mastakako sinchanakar use sahasa paapamukt karane lagee.
sanaatan kahane lage- 'prabho! mujhe aap kyon sparsh karate hain. mera yah kalushit kalevar aapake sparsha-yogy naheen hai. is ghrinit aur dooshit dehako aap sparsh n keejiye.' prabhune kahaa-'sanaatana! deenataaka tyaag karo l
'tumhaaree deenata dekhakar mera kaleja phata jaata hai; jab shreekrishn kripa karate hain tab bhale-bureka vichaar naheen karate shreekrishn tumhaare sammukh hue hain tumapar shreekrishnakee itanee kripa hai ki usaka varnan naheen ho sakataa. tabhee to unhonne tumhen vishayakoopase nikaal liya hai. tumhaara shareer nishpaap hai; kyonki tumhaaree buddhi shreekrishnabhakti men lagee huee hai. main to apaneko pavitr karaneke liye hee tumhen sparsh karata hoon.' kyonki
'bhaktibale paar tumi brahmaand shodhite'
'tum apane bhaktibalase saare brahmaandako pavitr karanemen samarth ho.'
akshnoh phalan tvaadrishadarshanan hi
tanvaah phalan tvaadrishagaatrasangah .
jihvaaphalan tvaadrishakeertanan hi
sudurlabha bhaagavata hi loke ..
(haribhaktisudhoday 13 2)
'tum jaise bhaktonke darshanamen hee aankhonkee saphalata hai, tum jaise bhaktonke angasparshamen hee shareerakee saphalataa
hai aur tum jaise bhaktonke gunagaanamen hee jeebhakee saphalata hai . sansaaramen bhaagavatonke darshan atyant durlabh hain.'
yon kahakar mahaaprabhune sanaatanake bhaagyakee bada़ee hee prashansa kee aur kaha ki shreekrishn prem honepar vaastavamen aisee hee deenata hua karatee hai. isake baad mahaaprabhune sanaatanase usakee kaaraamuktike sambandhamen poochhaa. sanaatanane sankshepase saaree katha suna dee.
mahaaprabhune chandrashekharase kaha ki 'sanaatanaka mastak mundanakar aur ise snaan karavaakar naye kapada़e pahana do.' snaan kar chukanepar jab tapan mishr naamak ek bhakt sanaatanako nayee dhotee dene lage tab sanaatanane kahaa- 'yadi aap mujhe vastr dena chaahate hain to koee phata puraana kapada़a de deejiye, mujhe naye kapada़ese kya prayojan hai.' sanaatanaka aagrah dekhakar mishrane ek puraanee dhotee de dee aur sanaatanane phaada़kar usake do kaupeen bana liye. sanaatanake is vairaagyako dekhakar mahaaprabhu mana-hee-man bada़e prasann hue, parantu shreekaantakee dee huee kambal sanaatanake kandhepar is samay bhee pada़ee huee thee. mahaaprabhune do-chaar baar usakee or dekhaa; tab sanaatanane samajha ki mainne abatak yah sundar kambal apane paas rakh chhoda़ee hai, meree vishayavaasana door naheen huee hai, iseese prabhu baara-baar isakee or taakakar mujhe saavadhaan kar rahe hain. sanaatanane gangaa-tatapar jaakar vah kambal ek gareebako de diya, badalemen usase phatee gudada़ee lekar use odha़ liyaa. jab mahaaprabhune sanaatanako gudada़ee odha़e dekha tab ve bada़e prasann hue aur bole ki 'sanaatana! shreekrishnane tumhaare vishaya-rogako aaj samool nasht kar diyaa; bhala, uttam vaidy rogaka jaraa-sa ansh bhee shesh kyon rahane deta hai?"
mahaaprabhune sanaatanako lagaataar do maheenetak bhaktitattvakee paramottam shiksha dekar unase vrindaavan jaaneko kaha aur yahaan roop anupam ke saath milakar shreekrishnaka kaary sampaadan karaneke liye aadesh diyaa.
mahaaprabhu to neelaachal chale gaye aur unakee aajna paakar sanaatan vrindaavan aaye. vrindaavan aanepar pata laga ki unake bhaaee roop aur anupam doosare maargase kaashee hote hue desh chale gaye hain. sanaatan vanamen ek peड़ke tale rahane lage. pratidin jangalase lakada़iyaan laakar baajaaramen bechate aur useese apana nirvaah karate; jo kuchh bach rahata so deena-dukhiyonko baant dete. ek din jo bangaalake hartaakarta the, aaj ve hee haripremakee maadakataake prabhaavase aise don ban gaye.
kuchh samayatak vrindaavanamen nivaas karake sanaatan mahaaprabhuse milaneke liye neelaachalakee or chale. raaste men unhen charmarog ho gayaa. kaviraaj gosvaameene likha hai ki jhaarakhandake dooshit jalapaanase unake yah rog ho gaya thaa. jo kuchh bhee ho, sanaatan rogaakraant hokar neelaachal pahunche aur apaneko deena-heen aur patit maanakar shreeharidaasajeeke yahaan thahar gaye. shreeharidaasajeeke yahaan mahaaprabhu roj jaaya karate. unhonne jaakar sanaatanako dekha, sanaatan doorase hee charanonmen pranaam karane lage. mahaaprabhune dauda़kar unhen chhaateese lagaana chaaha par sanaatan peechhe hat gaye aur bole ki 'prabho! aap mujhe sparsh n karen; main atyant nauch to hoon hee, tisapar mujhe kodha़ ho gaya hai. isaliye kshama karen.' mahaaprabhune kaha 'sanaatana! tumhaara shareer mere liye bada़a ho pavitr hai, tum shreekrishnake bhakt ho; tumase jo ghrina karega, vahee asprishy hai' yon kahakar mahaaprabhune sanaatanako jabaradastee chhaatee lipata liya, sanaatanake koड़ka mavaad mahaaprabhuke saare shareeramen lag gayaa. mahaaprabhune sanaatanase kaha ki 'tumhaare donon bhaaee yahaan aakar das maheene rahe the. isake baad roop to vaapas vrindaavan laut gaye hain aur anupamako yahaan shreekrishnakee praapti ho gayee hai.' chhote bhaaeeka maran sunakar sanaatanako khed huaa. prabhune aashvaasan dekar sanaatanase kaha ki 'tum yaheen haridaasajeeke paas raho tum dononka hee shreekrishnamen bada़a prem hai, tumalogonpar sheeghr hee shreekrishnakripa karenge.' yon kahakar mahaaprabhu chale gaye aur isee prakaar roja-roj vahaan aakar sanaatanako aalingan karane lage. sanaatanake manamen isase bada़a kshobh hota thaa.
bhagavaan mangalamay param pita hain, ve to apanee santaanapar nity dayaamay hain; unase kuchh bhee maangana unakee dayaalutaapar avishvaas karana hai. sanaatanane kushthakee bhayaanak peeda़a saharsh sahan kee; parantu kisee samay bhee unake manamen yah sankalp naheen utha ki main prabhuse apane rogakee nivrittike liye kuchh praarthana karoon. inheen sab baatonko dikhalaaneke liye samarth honepar bhee unhonne keval darshanamaatrase sanaatanake rogaka naash naheen kiyaa. jab jagat sanaatanake atulaneey nishkapat, nishkaam prem aur unakee anukaraneey deenataase parichit ho gaya, bas, usee samay sanaatan rogamukt ho gaye. tadanantar mahaaprabhune sanaatanako vrindaavan jaakar jeevonka uddhaar karanekee anumati dee. mahaaprabhuko chhoda़kar jaanemen sanaatanako aseem kasht thaa; parantu unakee aajnaaka ullanghan karana sanaatanako usase bhee adhik kashtakar prateet huaa. sanaatan vrindaavan chale gaye. roop bhee pahunch gaye. dononne milakar vrindaavanake uddhaaraka kaary kiyaa.
sanaatanane 'brihadbhaagavataamrita', 'haribhaktivilaasa','leelaastava', 'smaraneey teekaa', 'digdarshanee teekaa' aur shreemadbhaagavatake dasham skandhapar 'vaishnavatoshinee' naamak teeka banaayee. roopane 'bhaktirasaamritasindhu', 'mathuraamaahaatmya', 'padaavalee', 'hansadoota', 'uddhavasandesha', 'ashtaadashakachchhandah', 'statramaalaa', 'utkalikaavalee', 'premendusaagara', 'naatakachandrikaa', 'laghubhaagavatatoshinee', 'vidagdhamaadhava', 'lalitamaadhava', 'ujjvalaneelamani', 'daanakelibhaanikaa' aur 'govind virudaavalee' aadi anek anupam granthonkee rachana kee. 'vidagdhamaadhava' kee rachana vi0 sanvat 1582 men huee thee. in sab granthonmen bhakt, bhakti aur shreekrishnatattv aadika bada़a vishad varnan hai.
donon bhaaee vahaan vrikshonke neeche sote rahate bheekh maangakar rookhee-sookhee khaate, phatee langotee pahanate, gudada़ee aur karava saath rakhate. aath paharamen keval chaar ghada़ee sote aur shesh sab samay karate shreekrishnaka naama-jap sankeertan aur shaastronka pranayana.
shreeroop aur sanaatan donon shreevrindaavanamen hee golokavaasee hue. ek samay jo vidya, pad, aishvary aur maanamen matt the, ve hee bhagavatkripaase atyant vilakshan nirabhimaanee, nirlobhee, vairaagyavaan aur param premik ban gaye.