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मीराँबाई की मार्मिक कथा
मीराँबाई की अधबुत कहानी - Full Story of मीराँबाई (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [मीराँबाई]- भक्तमाल


भारतको नारी जातिको धन्य करनेवाली भक्तिपरायणा मीराँबाईका जन्म मारवाड़के कुड़को नामक ग्राममें संवत् 1558-59 के लगभग हुआ था। इनके पिताका नाम राठौर श्रीरतनसिंहजो था। ये मेड़ताके राव दूदाजीके चतुर्थ पुत्र थे। मीराँ अपने पिता-माताकी इकलौती लड़की थी, बड़े लाड़-चावसे पाली गयी थी: मोरकि चित्तको वृत्तियाँ बचपनसे ही भगवान्‌को ओर झुकी हुई थीं। एक दिन उनके घरमें एक साधु आये, साधुके पास भगवान्‌की एक सुन्दर मूर्ति थी। मीराने साधुसे कहकर वह मूर्ति ले ली। साधुने मूर्ति देकर मौराँसे कहा कि 'ये भगवान् हैं, इनका नाम श्रीगिरधरलालजी है, तू प्रतिदिन प्रेमके साथ इनकी पूजा किया कर।' सरलहृदया बालिका मोरी सच्चे मनसे भगवान्‌को सेवा करने लगी। भौरों इस समय दस वर्षकी थी, परंतु दिनभर उसी मूर्तिको नहलाने, चन्दन- पुष्प चढ़ाने, भोग लगाने और आरती उतारने आदिके काममें लगी रहती।

इसी बीच मीराँ स्वयं भी पद रचना करने लगी; जब वह स्वरचित सुन्दर पदोंको भगवान्‌ के सामने मधुर स्वरोंमें गाती तो प्रेमका प्रवाह सा वह जाता। सुननेवाले नर-नारियोंके हृदयमें प्रेम उमड़ने लगता। इस प्रकार भाव तरङ्गोंमें पाँच साल बीत गये संवत् 1573 में मौरीका विवाह चित्तौड़ के सीसोदिया वंशमें महाराणा साँगाजीके ज्येष्ठ कुमार भोजराजके साथ सम्पन्न हुआ। विवाहके समय एक अद्भुत घटना हुई। श्रीकृष्णप्रेमकी साक्षात् मूर्ति मीराने अपने श्याम गिरधरलालजीको पहले से ही मण्डपमें विराजित कर दिया और कुमार भोजराजके साथ फेरा लेते समय श्रीगिरधरगोपालजीके साथ भी फेरे ले लिये। मीराँने समझा कि आज भगवान् के साथ मेरा विवाह भी हो गया।

मीरोंकी माताको इस घटनाका पता था, उसने मोरौसे कहा कि 'पुत्री! मैंने यह क्या खेल किया ?" मीराने मुसकराते हुए कहा-

माई म्होंने सुपनें बरी गोपाल ।

राती पीती चुनड़ी ओढ़ी, मेहंदी हाथ रसाल ॥

कोई औरको यसै भाँवरी, म्हाँके जग जंजाल मीराँके प्रभु गिरधरनागर करौ सगाई हाल ।। मीरांके भगवत्प्रेमके इस अनोखे भावको देखकर माता बड़ी प्रसन्न हुई। जब सखियोंको इस बातका पता लग, तब उन्होंने दिल्लगी करते हुए मीरी गिरधरलाल जीके साथ फेरे लेनेका कारण पूछा। मीराने कहा

ऐसे बर को के बरूँ, जो जन और मर जाय। वर बरिये गोपालजी, म्हारो चुड़लो अमर हो जाय ॥

प्राणोंकी पुतली मीराँको माता-पिताने दहेज में बहुत स्वा धन दिया, परंतु मौका मन उदास ही देखा तो माताने पूछा कि 'बेटी! तू क्या चाहती है? तुझे जो चाहिये, सो ले ले।' मीराने मातासे कहा

देरी माई अब म्हाँको गिरधरलाल ।

प्यारे चरण की आन करति हौं, और न दे मणि लाल ॥

नातो सागो परिवारो सारो, मुनें लगे मानों काल।

मीराँके प्रभु गिरधरनागर, छबि लखि भई निहाल ॥

भक्तको अपने भगवान्के अतिरिक्त और क्या चाहिये। माताने बड़े प्रेमसे गिरधरलालजीका सिंहासन मीरोंकी पालकीमें रखवा दिया। कुमार भोजराज नववधूको लेकर राजधानी में आये। घर-घर मङ्गल बधाइयाँ बँटने लगी। रूप- गुणवती बहूको देखकर सास प्रसन्न हो गयी। कुलाचार के अनुसार देवपूजाकी तैयारी हुई, परंतु मोरोंने कहा कि 'मैं तो एक गिरधरलालजीके सिवा और किसीको नहीं पूजूँगी।' सास बड़ी नाराज हुई, मीराँको दो-चार कड़ी मीठी भी सुनायी; परंतु मीराँ अपने प्रणपर अटल रही!

राजपूताने में प्रतिवर्ष गौरी पूजन हुआ करता है। छोटी-छोटी लड़कियाँ और सुहागिन स्त्रियाँ सुन्दर रूप गुण-सम्पन्न वर और अचल सुहागके लिये बड़े चावसे 'गौर'-पूजा करती हैं। मीरोंसे भी गौर पूजनेको कहा गया, मीराने साफ जवाब दे दिया। सारा रनिवास मीरोंसे नाराज हो गया। सास और ननद ऊदाबाईने मोराँको बहुत समझाया, परंतु वह नहीं मानी। उसने कहा-

ना रहे पूजाँ गौरज्याजी ना पूज अन देव ।

म्हे पूजा रणछोड़जी सासु थे कोई जाणो भेव ॥

सास बड़ी नाराज हुई। समवयस्क सहेलियोंने

मीराँसे कहा कि 'बहिन! यह तो सुहागकी पूजा है, सभीको करनी चाहिये।' मीराने उत्तर दिया कि 'बहिनो! मेरा सुहाग तो सदा ही अचल है; जिसको अपने सुहागमें सन्देह हो, वह गिरधरलालजीको छोड़कर दूसरेको पूजे।' मौके इन शब्दोंका मर्म जिसने समझा, वह तो धन्य हो गयी; परंतु अधिकांश स्त्रियोंको यह बात बहुत बुरी लगी।

मीराँकी इस भक्तिभावनाको देखकर कुमार भोजराज पहले तो कुछ नाराज हुए, परंतु अन्तमें मीरांके सरल हृदयको शुद्ध भक्तिसे उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने मीराके लिये अलग श्रीरणछोड़जीका मन्दिर बनवा दिया। कुमार भोजराज एक साहसी बोर और साहित्यप्रेमी युवक थे। मीराँकी पदरचनासे उन्हें बड़ा हर्ष होता और इसमें वे अपना गौरव मानते। मीराँका प्रेम-पुलकित मुखचन्द्र वे जब देखते, तभी उनका मन मौराँकी ओर खिंच जाता। जब मीरों नये-नये पद बनाकर पतिको गाकर सुनाती, तब कुमारका हृदय आनन्दसे भर जाता।

यद्यपि मीराँ अपना सच्चा पति केवल श्रीगिरधलालजीको ही मानती थी और प्रायः अपना सारा समय उन्हींकी सेवामें लगाती, फिर भी उसने अपने लौकिक पति कुमार भोजराजको कभी नाराज नहीं होने दिया। अपने सुन्दर और सरल स्वभावसे तथा निःस्वार्थ सेवाभावसे उसे सदा प्रसन्न रखा। कहते हैं कुछ समय बाद मीराँकी अनुमति लेकर कुमारने दूसरा विवाह कर लिया था। मोरोको इस विवाहसे बड़ी प्रसन्नता हुई। उसे इस बातका सदा संकोच रहता था कि मैं स्वामीकी मन:कामना पूरी नहीं कर सकती। अब दूसरी रानीसे पतिको परितृप्त देखकर और पतिके भी परम पति परमात्माकी सेवामें अपना पूरा समय लगने की सम्भावना समझकर मीराँको बड़ा आह्लाद हुआ।

मीराँ अपना सारा समय भजन-कीर्तन और साधु सङ्गतिमें लगाने लगी। वह कभी विरहसे होकर रोने लगती, कभी ध्यानमें साक्षात्कार कर हँसती, कभी प्रेमसे नाचती, भूख-प्यासका कोई पता नहीं। लगातार कई दिनोंतक बिना खाये-पिये प्रेम-समाधिमें पड़ी रहती। कोई समझाने आता तो उससे भी केवलश्रीकृष्ण प्रेमकी ही बातें करतीं। दूसरी बात उसे सुहाती नहीं। शरीर दुर्बल हो गया; घरवालोंने समझा बीमार है, वैद्य बुलाये गये, मारवाड़से पिता भी वैद्य लेकर आये। मीराने कहा-

हे से मैं तो राम दिवानी, मेरो दरद न जाणे कोय।

सूखी ऊपर सेज हमारी, किस विध सोणा होय ॥

गगनमंडल पैसेज पिया की, किस विथ मिलना होय।

पायल की गति पायल जाणे, की जिण लाई होय ॥

जीहर की गति जौहरी जारी की जिण जौहर होय।

दरद की भारी बन बन डोलू, बंद मिल्या नहि कोय।।

मौरों को प्रभु पीर मिर्ट जब बंद सांवलिया होय।

वैद्य देख गये। परंतु इन अलौकिक प्रेमके दीवानोंको दवा बेचारे इन वैद्योंके पास कहाँसे आयी। विरहकातरा मीराने श्यामवियोगमें यह पद गाया-

नातो नांव को जी म्हांसू तनक न तोड्यो जाय ॥ टेक ॥

पाना ज्यूँ पीळी पड़ी रे, लोग कहें पिंडरोग।

छाने लोण है किया रे, राम मिलण के जोग ।

बाबल बंद बुलाइया रे, पकड़ दिखाई म्हारी बाँह l

मूरख बंद मरम नहि जाणे, कसक कळेजे मौह ॥

जाओ बंद पर आपणे रे म्हारो नांव न लेय।

मैं तो दाझी बिरह की रे, काहे कूं औषध देय ॥

माँस गळ गळ छीजिया रे, करक रह्या गळ आय l

आंगळिया की मूंदड़ी म्हारे आवण लागी बाँह ॥

रह रह पापी पपीहड़ा रे, पिय को नाँव न लेय।

जे कोई विरहण साम्हळ रे, पिव कारण जिव देय।

डिण मंदिर जिण आँगण रे, छिण छिण ठाड़ी होयll

घायल ज्यूँ घूमूँ खड़ी, म्हारी विधा न मुझे कोय ॥

काड़ कलेजो में धरे, कागा तू ले जाए।

जिण देसी म्हारो पिव बसैर, उण देखत तूं खाय ॥

म्हारे नातो नाम को रे, और न नातो कोय।

मी व्याकुल बिरहणी, हरि दरसण दीन्पो मोय ॥

कैसी उत्कण्ठा है। कैसा उन्माद है। कितनी मनोहर लालसा है!!! भगवान् इसीसे वश होते हैं, इसीसे वे बिक जाते हैं। मीराने इसी मूल्यपर उनको खरीदा था।

विवाहके बाद इस प्रकार भक्तिके प्रवाहमें दस साल बीत गये। संवत् 1580 के आसपास कुमार भोजराजकादेहान्त हो गया। महाराणा साँगाजी भी परलोकवासी हो गये। राजगद्दीपर मीरॉके दूसरे देवर विक्रमाजीत आसीन हुए मीरों भगवत्प्रेमके कारण वैधव्यके दुःखसे दुःखित नहीं हुई। साधु-महात्माओंका सङ्ग बढ़ता गया, मीराँकी भक्तिका प्रवाह उत्तरोत्तर जोरसे बहने लगा। राणा विक्रमाजीतको मीराँका रहन-सहन, बिना किसी रुकावटके साधु- वैष्णवोंका महलोंमें आना-जाना और चौबीसों घंटे कीर्तन होना बहुत अखरने लगा। उन्होंने मीराँको समझानेकी बड़ी चेष्टा की चम्पा और चमेली नामकी दो दासियों इसी हेतु मौके पास रखो गर्यो राणाकी बहिन ऊदाबाई भी मीराँको समझाती रही; परंतु मीरौं अपने मार्गसे जरा भी नहीं डिगी मीराँजीने समझानेवाली सखियों पहले तो नम्रतापूर्वक अपना सङ्कल्प सुनाया अन्तमें स्पष्ट कह दिया-

बरजी मैं काढू की न रहूँ। सुणी री सखी!

तुम चेतन होके, मन री बात कहूँ ।।

साधु संगत कर हरि सुख लेऊँ, जग सूँ मैं दूर रहूँ।

तन धन मेरो सब ही जाओ, भल मेरो सीस लहूँ ॥

मन मेरो लाग्यो सुमरण सेती, सबका में बोल सहूँ।

मीरों के प्रभु गिरधरनागर सतगुरु सरण गहूँ ॥

सखियोंने कहा 'मौरोजी! आप भगवान् प्रेम करती हैं तो करें, इसमें किसोको कोई आपत्ति नहीं; परंतु कुलकी लाज छोड़कर दिन-रात साधुओंको मण्डली में रहना और नाचना गाना उचित नहीं। इससे महाराणा बहुत नाराज हैं।' मोरॉने कहा-

सीसोधी रूठो तो म्हारो काई कर लेसी।

म्हे तो गुण गोविंदरा गास्याँ हो माय ॥

राणाजी रूट्यो तो बाँरो देस रखासी l

हरिजी रूठ्या किठे जास्याँ हो माय ॥

लोक लाज की काण न मानों।

निरभ निसाण पुरास्याँ हो माय ॥

राम नाम की झवाझ चलास्याँ ।

भवसागर तिर जास्याँ हो माय ॥

मीरा सरण साँवल गिरधर की।

चरण कमल लिपटास्याँ हो भाय ॥

कैसा अटल निश्चय है! कितना अचल विश्वास है !
कितनी निर्भयता है! कैसा अद्भुत त्याग है! ऊदा और दासियाँ आयी थीं समझानेको, परंतु मीराँकी शुद्ध प्रेमाभक्तिको देखकर उनका चित्त भी उसी ओर लग गया। वे भी मीराँके इस गहरे प्रेमरंगमें रँग गयीं। अन्तमें राणाने चरणामृतके नामसे मीराँके पास विषका प्याला भेजा। चरणामृतका नाम सुनते ही मीराँ बड़े प्रेमसे उसे पी गयी। भगवान् ने अपना विरद सम्हाला, विष अमृत हो गया, मीराँका बाल भी बाँका नहीं हुआ। बलिहारी है ! भगवत्कृपासे क्या नहीं होता ।दासियोंने जाकर यह समाचार राणाजीको सुनाया, वे तो दंग रह गये। कलियुगमें यह दूसरा प्रह्लाद कहाँसे आ गया?

मीराँके आठों पहर भजन-कीर्तनमें बीतने लगे। नींद-भूखका कोई पता नहीं, शरीरकी सुधि नहीं, वह दिनभर रोती और गाया करती ! वह रातको मन्दिरके पट बंद करके भगवान्के आगे उन्मत्त होकर नाचती । मानो भगवान् प्रत्यक्ष प्रकट होकर मीराँके साथ बातचीत करते । महलोंमें तरह-तरहकी चर्चा होने लगी। सखियोंने कहा 'मीराँ! तुम युवती स्त्री हो, दिनभर किसकी बाट देखती हो, किसके लिये यों क्षण-क्षणमें सिसक-सिसककर रोया करती हो?'दासियोंने समझाया कि 'बाईजी! यह सारी बात तो ! ठीक है, परंतु इस तरह करनेसे आपका कुल लज्जितहोता है।' मीराने कहा- 'क्या करूँ, मेरे वशकी बात नहीं।'

मनुष्य प्रायः अपने ही मनके पापका दूसरेपर आरोप किया करता है। किसीने जाकर राणाजीके कान भर दिये, उन्हें समझा दिया कि 'मीराँका तो चरित्र भ्रष्ट हो गया है। दिनभर तो वह विरहिणीकी तरह रोया करती है और रातको आधी रातके समय उसके महलमें किसी दूसरे पुरुषकी आवाज सुनायी देती है। हो न हो कुछ न-कुछ दालमें काला अवश्य ही है।'

राणाको यह बात सुनकर बड़ा क्रोध हुआ, उसी दिन रातको वे आधी रातके समय नंगी तलवार हाथमें लेकर मीराँके महलमें गये। किवाड़ बंद थे, राणाको भी अंदरसे किसी पुरुषकी आवाज सुन पड़ी; नहीं कह सकते कि यह राणाके दृढ़ सङ्कल्पका फल था या भगवान्की लीला थी। खैर, राणाने अकस्मात् किवाड़ खुलवाये। देखते हैं तो मीराँ प्रेमसमाधिमें बैठी है। दूसरा कोई नहीं है। राणाने मीराँको चेत कराकर पूछा कि 'बताओ, तुम्हारे पास दूसरा कौन था?' मीराने झटसे जवाब दिया- 'मेरे छैलछबीले गिरधरलालजीके सिवा और कौन होता। जगत्में दूसरा कोई हो तो आये।' राणा इन वचनोंका मर्म क्यों समझने लगे? उन्होंने बड़ी सावधानीसे सारे महलमें खोज की; परंतु कहीं कोई नहीं दीख पड़ा, तब लज्जित होकर लौट गये।

कहते हैं कि मीराँके पदोंकी प्रशंसा सुनकर एक बार तानसेनको साथ लेकर बादशाह अकबर वैष्णवके वेषमें मीरांके पास आये थे और मीराँकी भक्तिका अद्भुत प्रभाव देखकर रणछोड़जीके लिये एक अमूल्य हार देकर लौट गये थे। इससे भी लोगों में बड़ी चर्चा फैली। राणाने क्रोधित होकर मीराँके नाशके लिये एक पिटारीमें काली नागिनको बंद करके शालग्रामजीकी मूर्तिके नामसे उसके पास भेजी। शालग्रामका नाम सुनते ही मीराँके नेत्र डबडबा आये। उसने बड़े उत्साहसे पिटारी खोली; देखती है तो सचमुच उसमें एक श्रीशालग्रामजीकी सुन्दरमूर्ति और एक मनोहर पुष्पोंकी माला है। मीरों प्रभुके दर्शन करके नाचने लगी।

मीरों मगन भट्ट हरिके गुण गाय ॥

साँप पिटारा राणा भेज्या, भौरों हाथ दिया जाय।

न्हाय धोय जब देखण लागी, साळगराम गड़ पाय॥

मीरों के प्रभु सदा सहाई, राखे विप्र हटाय

भजन भाव में मस्त डोलती, गिरधर पै बलि जाय ॥

राणाजीने और भी अनेक उपायोंसे उसे डिगाना चाहा, परंतु मीरों किसी तरह भी नहीं डिगी। जब राणा बहुत सताने लगे, तब मीराने गोसाईं तुलसीदासजीको एक पत्र लिखा-

स्वस्तिश्री तुलसी गुणभूषण दूषण हरण गुसांई।

बारहिं बार प्रणाम करहुँ, अब हरहु सोक समुदाई ॥

घर के स्वजन हमारे जेते, सबन उपाधि बढ़ाई।

साधु संग अरु भजन करत मोहिं देत कलेस महाई।।

सो तो अब छूटत नहिं क्योंहूँ, लगी लगन बरियाई ।

बाळपणे में मीरों कीन्ही गिरधरलाल मिताई ॥

मेरे मात तात सम तुम हो, हरिभक्तन सुखदाई।

मोकों कहा उचित करिबो, अब सो लिखिये समुझाई ॥

गोसाईजी महाराजने उत्तरमें यह प्रसिद्ध पद लिख भेजा-

जाके प्रिय न राम वैदेही।

सो छाड़िए कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही ।।

नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लीं।

अंजन कहा आंखि जेहि फूट, बहुतक कहाँ कहाँ लौं ।

तुलसी सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रान ते प्यारो।

जासों होय सनेह राम पद एतो मतो हमारो॥

इस पत्रको पाकर मीराँने घर छोड़कर वृन्दावन जानेका निश्चय कर लिया। राणाजीको तो इस बातसे बड़ी प्रसन्नता हुई, परंतु ऊदाजी और मीरॉकी अन्यान्य प्रेमिका सखियोंको बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने मौरीको रोकना चाहा, परन्तु मीरोंने किसीकी कुछ नहीं सुनी, वह झटपट महलसे निकलकर वृन्दावनको ओर चल पड़ी।प्रीतमकी खोजमें जानेवाले कभी पीछेको नहीं देखा करते, मीराँ भी आज उस परम प्यारे श्यामसुन्दरकी खोजमें उन्मादिनी होकर दौड़ रही है। धन्य है ! मीराँ वृन्दावन पहुँची और वहाँ श्यामसुन्दरके प्रत्यक्ष दर्शनके लिये विरहके गीत गाती कुञ्ज-कुञ्जमें भटकने लगी। जो उसे देखता, वही भक्ति रससे भीग जाता था ।

प्रेमरसमें छकी हुई मीराँ विरहके गीत गाती फिरती । जब भक्त भगवान् के लिये व्याकुल होते हैं, तब भगवान् भी उनसे मिलनेके लिये वैसे ही व्याकुल हो उठते हैं।

बंसीवाला आज्यो म्हारे देस थाँरी साँवरी सूरत बाळो भेस ॥

आऊँ आऊँ कह गया जी, कर गया कौल अनेक ।

गिणताँ गिणताँ घिस गई जी, म्हाँरी आँगळियाँ री रेख ॥

मैं बैरागण आदि की जी, थारे म्हारे कदको सनेद ।

बिन पाणी बिन साव जी, होय गई धोय सफेद ॥

जोगण होकर जंगळ हेरूँ, थारो नाम न पायो भेस।

थारी सुरत के कारणे मैं तो धारया छे भगवाँ भेस ॥

मोर मुकुट पीतांबर सोहै, घूँघरवाळा केस ।

मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, मिल्याँ मिटेगो कलेस ॥
भक्त भगवान्‌को बाध्य कर लेते हैं। मीराँके निकट हु बाध्य होकर भगवान्को आना पड़ा। उस मनोहर छबिको निरख मीराँ मोहित हो गयी। नाच-नाचकर गाने लगी-
उस रूपराशिको देखकर किसका चित्त उन्मत्त नहीं हो जाता! जो उसे देख पाया, वही पागल हो गया। मीराँ पागलकी तरह चारों ओर उसकी मधुर छविका दर्शनकरती हुई गाती फिरती है-

एक बार मीराँजी वृन्दावनमें श्रीचैतन्यमहाप्रभुके शिष्य परमभक्त जीव गोस्वामीजीका दर्शन करनेके लिये गयीं। गोसाईजीने भीतरसे कहला भेजा कि हम स्त्रियोंसे नहीं मिलते। मीराँने इसपर उत्तर दिया कि 'महाराज! आजतक तो वृन्दावनमें पुरुष एक श्रीनन्दनन्दन ही थे, और सभी स्त्रियाँ थीं; आज आप एक नये पुरुष प्रकट हुए हैं!' मीराँका रहस्यमय उत्तर सुनकर जीवजी महाराज नंगे पैरों बाहर आकर बड़े प्रेमसे मीराँजीसे मिले।

कुछ काल वृन्दावनमें निवास करके सं0 1600 के आसपास मौरों द्वारकाजी चली गयीं और वहाँ श्रीरणछोड़ भगवान् के दर्शन और भजनमें अपना समय बिताने लगीं। कहते हैं एक बार चित्तौड़से राणाजी उन्हें वापस लौटानेके लिये द्वारकाजी गये थे। मीराँजीके चले जानेके बाद चित्तौड़में बड़े उपद्रव होने लगे थे। लोगोंने राणाको समझाया कि आपने मीरों सरीखी भगवत्-प्रेमिकाका तिरस्कार किया है, उसीका यह फल है। राणा इसीलिये मीराँसे क्षमा-याचना करके उसे वापस लौटाकर ले जाना चाहते थे। परंतु मीराँने जाना किसी तरह भी स्वीकार नहीं किया।
मीरनेि कहा -

राणाजी म्हारी प्रीति पुरवली म्हे कोई करौ ॥

राम नाम बिन नहीं आवड़े, हिवड़ो झोला खाय ।

भोजनिया नहिं भाव म्हाँने, नीदड़ली नहिं आय ॥

राठौड़ाँ की धीयड़ी जी, सीसोद्या के साथ। ले जाती बैकुंठको म्हाँरी नेक न मानी बात ॥ राणाजीको यों ही वापस लौटना पड़ा। मीरा प्रभुके सामने गाने लगी-

रमैया मैं तो थारे रँग राती ॥

औराँके पिया परदेस बसत हैं, लिख लिख भेजें पाती।

मेरा पिया मेरे हृदय बसत है, रोळ करूँ दिन राती ॥

चूवा चोला पहर सखी री, मैं झुरमट रमवा जाती ।

झुरमट में मोहिं मोहन मिलिया, घाल मिली गळबाँथी ॥

और सखी मद पी पी माती, मैं बिन पियाँ ही माती।

प्रेम भठीको मैं मद पीयो, छकी फिरूँ दिन राती ॥

सुरत निरत को दिवलो जोयो, मनसा पूरण बाती

अगम घाणि को तेल सिंचायो, बाळ रही दिन राती ॥

जाऊँ नी पीहरिये, जाऊँ नी सासरिये, हरि सूँ सेन

लगाती। मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, हरि चरणा चित लाती ॥

मीराँजी श्रीद्वारकाधीशजीके मन्दिरमें आकर प्रेममें उन्मत्त होकर गाने लगीं-

सजन ! सुध ज्यूँ जाणौं त्यूँ लीजै ।

तुम बिन मेरे और न कोई, कृपा रावरी कीजै ॥

दिन नहिं भूख, रैण नहिं निद्रा, यों तन पलपल छीजै ।

दूसरा पद-

अब तो निभायाँ सरेगी, बाँह गहे की लाज ।

समरथ सरण तुम्हारी सइयाँ, सरब सुधारण काज ॥

भवसागर संसार अपरबळ, जामें तुम हो जहाज ।

निरधाराँ आधार जगत गुरु, तुम बिन होय अकाज ॥

जुग जुग भीर हरी भक्तन की, दीनी मोच्छ समाज ।

मीराँ सरण गही चरणन की, लाज रखौ महाराज ॥

- यों कहकर मीराँ नाचने लगी और अन्तमें भगवान् रणछोड़जीकी मूर्तिमें समा गयी !

नृत्यत नूपुर बाँधि कै, गावत लै करतार

देखत ही हरि में मिली, तृन सम गनि संसार ॥

मीराँको निज लीन किय, नागर नंदकिसोर ।

जग प्रतीत हित- नाथ-मुख, रह्यो चूनरी छोर ॥

कहा जाता है किं संवत् 1630 के अनुमान मीराँजीका देह भगवान्‌में मिला था। मीराँजीने कई ग्रन्थ रचे थे, जो इस समय नहीं मिलते। मीराँके भजन तो प्रसिद्ध हैं; जो उन्हें गाता और सुनता है वही प्रेममें मत्त हो जाता है। मीराँने प्रकट होकर भारतवर्ष, हिंदूजाति और नारी-कुलको पावन और धन्य कर दिया ।



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bhaaratako naaree jaatiko dhany karanevaalee bhaktiparaayana meeraanbaaeeka janm maaravaada़ke kuda़ko naamak graamamen sanvat 1558-59 ke lagabhag hua thaa. inake pitaaka naam raathaur shreeratanasinhajo thaa. ye meda़taake raav doodaajeeke chaturth putr the. meeraan apane pitaa-maataakee ikalautee lada़kee thee, bada़e laada़-chaavase paalee gayee thee: moraki chittako vrittiyaan bachapanase hee bhagavaan‌ko or jhukee huee theen. ek din unake gharamen ek saadhu aaye, saadhuke paas bhagavaan‌kee ek sundar moorti thee. meeraane saadhuse kahakar vah moorti le lee. saadhune moorti dekar mauraanse kaha ki 'ye bhagavaan hain, inaka naam shreegiradharalaalajee hai, too pratidin premake saath inakee pooja kiya kara.' saralahridaya baalika moree sachche manase bhagavaan‌ko seva karane lagee. bhauron is samay das varshakee thee, parantu dinabhar usee moortiko nahalaane, chandana- pushp chadha़aane, bhog lagaane aur aaratee utaarane aadike kaamamen lagee rahatee.

isee beech meeraan svayan bhee pad rachana karane lagee; jab vah svarachit sundar padonko bhagavaan‌ ke saamane madhur svaronmen gaatee to premaka pravaah sa vah jaataa. sunanevaale nara-naariyonke hridayamen prem umada़ne lagataa. is prakaar bhaav tarangonmen paanch saal beet gaye sanvat 1573 men maureeka vivaah chittauda़ ke seesodiya vanshamen mahaaraana saangaajeeke jyeshth kumaar bhojaraajake saath sampann huaa. vivaahake samay ek adbhut ghatana huee. shreekrishnapremakee saakshaat moorti meeraane apane shyaam giradharalaalajeeko pahale se hee mandapamen viraajit kar diya aur kumaar bhojaraajake saath phera lete samay shreegiradharagopaalajeeke saath bhee phere le liye. meeraanne samajha ki aaj bhagavaan ke saath mera vivaah bhee ho gayaa.

meeronkee maataako is ghatanaaka pata tha, usane morause kaha ki 'putree! mainne yah kya khel kiya ?" meeraane musakaraate hue kahaa-

maaee mhonne supanen baree gopaal .

raatee peetee chunaड़ee odha़ee, mehandee haath rasaal ..

koee aurako yasai bhaanvaree, mhaanke jag janjaal meeraanke prabhu giradharanaagar karau sagaaee haal .. meeraanke bhagavatpremake is anokhe bhaavako dekhakar maata bada़ee prasann huee. jab sakhiyonko is baataka pata lag, tab unhonne dillagee karate hue meeree giradharalaal jeeke saath phere leneka kaaran poochhaa. meeraane kahaa

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deree maaee ab mhaanko giradharalaal .

pyaare charan kee aan karati haun, aur n de mani laal ..

naato saago parivaaro saaro, munen lage maanon kaala.

meeraanke prabhu giradharanaagar, chhabi lakhi bhaee nihaal ..

bhaktako apane bhagavaanke atirikt aur kya chaahiye. maataane bada़e premase giradharalaalajeeka sinhaasan meeronkee paalakeemen rakhava diyaa. kumaar bhojaraaj navavadhooko lekar raajadhaanee men aaye. ghara-ghar mangal badhaaiyaan bantane lagee. roopa- gunavatee bahooko dekhakar saas prasann ho gayee. kulaachaar ke anusaar devapoojaakee taiyaaree huee, parantu moronne kaha ki 'main to ek giradharalaalajeeke siva aur kiseeko naheen poojoongee.' saas bada़ee naaraaj huee, meeraanko do-chaar kada़ee meethee bhee sunaayee; parantu meeraan apane pranapar atal rahee!

raajapootaane men prativarsh gauree poojan hua karata hai. chhotee-chhotee lada़kiyaan aur suhaagin striyaan sundar roop guna-sampann var aur achal suhaagake liye bada़e chaavase 'gaura'-pooja karatee hain. meeronse bhee gaur poojaneko kaha gaya, meeraane saaph javaab de diyaa. saara ranivaas meeronse naaraaj ho gayaa. saas aur nanad oodaabaaeene moraanko bahut samajhaaya, parantu vah naheen maanee. usane kahaa-

na rahe poojaan gaurajyaajee na pooj an dev .

mhe pooja ranachhoड़jee saasu the koee jaano bhev ..

saas bada़ee naaraaj huee. samavayask saheliyonne

meeraanse kaha ki 'bahina! yah to suhaagakee pooja hai, sabheeko karanee chaahiye.' meeraane uttar diya ki 'bahino! mera suhaag to sada hee achal hai; jisako apane suhaagamen sandeh ho, vah giradharalaalajeeko chhoda़kar doosareko pooje.' mauke in shabdonka marm jisane samajha, vah to dhany ho gayee; parantu adhikaansh striyonko yah baat bahut buree lagee.

meeraankee is bhaktibhaavanaako dekhakar kumaar bhojaraaj pahale to kuchh naaraaj hue, parantu antamen meeraanke saral hridayako shuddh bhaktise unhen bada़ee prasannata huee. unhonne meeraake liye alag shreeranachhoड़jeeka mandir banava diyaa. kumaar bhojaraaj ek saahasee bor aur saahityapremee yuvak the. meeraankee padarachanaase unhen bada़a harsh hota aur isamen ve apana gaurav maanate. meeraanka prema-pulakit mukhachandr ve jab dekhate, tabhee unaka man mauraankee or khinch jaataa. jab meeron naye-naye pad banaakar patiko gaakar sunaatee, tab kumaaraka hriday aanandase bhar jaataa.

yadyapi meeraan apana sachcha pati keval shreegiradhalaalajeeko hee maanatee thee aur praayah apana saara samay unheenkee sevaamen lagaatee, phir bhee usane apane laukik pati kumaar bhojaraajako kabhee naaraaj naheen hone diyaa. apane sundar aur saral svabhaavase tatha nihsvaarth sevaabhaavase use sada prasann rakhaa. kahate hain kuchh samay baad meeraankee anumati lekar kumaarane doosara vivaah kar liya thaa. moroko is vivaahase bada़ee prasannata huee. use is baataka sada sankoch rahata tha ki main svaameekee mana:kaamana pooree naheen kar sakatee. ab doosaree raaneese patiko paritript dekhakar aur patike bhee param pati paramaatmaakee sevaamen apana poora samay lagane kee sambhaavana samajhakar meeraanko bada़a aahlaad huaa.

meeraan apana saara samay bhajana-keertan aur saadhu sangatimen lagaane lagee. vah kabhee virahase hokar rone lagatee, kabhee dhyaanamen saakshaatkaar kar hansatee, kabhee premase naachatee, bhookha-pyaasaka koee pata naheen. lagaataar kaee dinontak bina khaaye-piye prema-samaadhimen pada़ee rahatee. koee samajhaane aata to usase bhee kevalashreekrishn premakee hee baaten karateen. doosaree baat use suhaatee naheen. shareer durbal ho gayaa; gharavaalonne samajha beemaar hai, vaidy bulaaye gaye, maaravaada़se pita bhee vaidy lekar aaye. meeraane kahaa-

he se main to raam divaanee, mero darad n jaane koya.

sookhee oopar sej hamaaree, kis vidh sona hoy ..

gaganamandal paisej piya kee, kis vith milana hoya.

paayal kee gati paayal jaane, kee jin laaee hoy ..

jeehar kee gati jauharee jaaree kee jin jauhar hoya.

darad kee bhaaree ban ban doloo, band milya nahi koya..

mauron ko prabhu peer mirt jab band saanvaliya hoya.

vaidy dekh gaye. parantu in alaukik premake deevaanonko dava bechaare in vaidyonke paas kahaanse aayee. virahakaatara meeraane shyaamaviyogamen yah pad gaayaa-

naato naanv ko jee mhaansoo tanak n todyo jaay .. tek ..

paana jyoon peelee paड़ee re, log kahen pindaroga.

chhaane lon hai kiya re, raam milan ke jog .

baabal band bulaaiya re, pakada़ dikhaaee mhaaree baanh l

moorakh band maram nahi jaane, kasak kaleje mauh ..

jaao band par aapane re mhaaro naanv n leya.

main to daajhee birah kee re, kaahe koon aushadh dey ..

maans gal gal chheejiya re, karak rahya gal aay l

aangaliya kee moondaड़ee mhaare aavan laagee baanh ..

rah rah paapee papeehada़a re, piy ko naanv n leya.

je koee virahan saamhal re, piv kaaran jiv deya.

din mandir jin aangan re, chhin chhin thaaड़ee hoyall

ghaayal jyoon ghoomoon khada़ee, mhaaree vidha n mujhe koy ..

kaada़ kalejo men dhare, kaaga too le jaae.

jin desee mhaaro piv basair, un dekhat toon khaay ..

mhaare naato naam ko re, aur n naato koya.

mee vyaakul birahanee, hari darasan deenpo moy ..

kaisee utkantha hai. kaisa unmaad hai. kitanee manohar laalasa hai!!! bhagavaan iseese vash hote hain, iseese ve bik jaate hain. meeraane isee moolyapar unako khareeda thaa.

vivaahake baad is prakaar bhaktike pravaahamen das saal beet gaye. sanvat 1580 ke aasapaas kumaar bhojaraajakaadehaant ho gayaa. mahaaraana saangaajee bhee paralokavaasee ho gaye. raajagaddeepar meeraॉke doosare devar vikramaajeet aaseen hue meeron bhagavatpremake kaaran vaidhavyake duhkhase duhkhit naheen huee. saadhu-mahaatmaaonka sang baढ़ta gaya, meeraankee bhaktika pravaah uttarottar jorase bahane lagaa. raana vikramaajeetako meeraanka rahana-sahan, bina kisee rukaavatake saadhu- vaishnavonka mahalonmen aanaa-jaana aur chaubeeson ghante keertan hona bahut akharane lagaa. unhonne meeraanko samajhaanekee bada़ee cheshta kee champa aur chamelee naamakee do daasiyon isee hetu mauke paas rakho garyo raanaakee bahin oodaabaaee bhee meeraanko samajhaatee rahee; parantu meeraun apane maargase jara bhee naheen digee meeraanjeene samajhaanevaalee sakhiyon pahale to namrataapoorvak apana sankalp sunaaya antamen spasht kah diyaa-

barajee main kaadhoo kee n rahoon. sunee ree sakhee!

tum chetan hoke, man ree baat kahoon ..

saadhu sangat kar hari sukh leoon, jag soon main door rahoon.

tan dhan mero sab hee jaao, bhal mero sees lahoon ..

man mero laagyo sumaran setee, sabaka men bol sahoon.

meeron ke prabhu giradharanaagar sataguru saran gahoon ..

sakhiyonne kaha 'maurojee! aap bhagavaan prem karatee hain to karen, isamen kisoko koee aapatti naheen; parantu kulakee laaj chhoda़kar dina-raat saadhuonko mandalee men rahana aur naachana gaana uchit naheen. isase mahaaraana bahut naaraaj hain.' moraॉne kahaa-

seesodhee rootho to mhaaro kaaee kar lesee.

mhe to gun govindara gaasyaan ho maay ..

raanaajee rootyo to baanro des rakhaasee l

harijee roothya kithe jaasyaan ho maay ..

lok laaj kee kaan n maanon.

nirabh nisaan puraasyaan ho maay ..

raam naam kee jhavaajh chalaasyaan .

bhavasaagar tir jaasyaan ho maay ..

meera saran saanval giradhar kee.

charan kamal lipataasyaan ho bhaay ..

kaisa atal nishchay hai! kitana achal vishvaas hai !
kitanee nirbhayata hai! kaisa adbhut tyaag hai! ooda aur daasiyaan aayee theen samajhaaneko, parantu meeraankee shuddh premaabhaktiko dekhakar unaka chitt bhee usee or lag gayaa. ve bhee meeraanke is gahare premarangamen rang gayeen. antamen raanaane charanaamritake naamase meeraanke paas vishaka pyaala bhejaa. charanaamritaka naam sunate hee meeraan bada़e premase use pee gayee. bhagavaan ne apana virad samhaala, vish amrit ho gaya, meeraanka baal bhee baanka naheen huaa. balihaaree hai ! bhagavatkripaase kya naheen hota .daasiyonne jaakar yah samaachaar raanaajeeko sunaaya, ve to dang rah gaye. kaliyugamen yah doosara prahlaad kahaanse a gayaa?

meeraanke aathon pahar bhajana-keertanamen beetane lage. neenda-bhookhaka koee pata naheen, shareerakee sudhi naheen, vah dinabhar rotee aur gaaya karatee ! vah raatako mandirake pat band karake bhagavaanke aage unmatt hokar naachatee . maano bhagavaan pratyaksh prakat hokar meeraanke saath baatacheet karate . mahalonmen taraha-tarahakee charcha hone lagee. sakhiyonne kaha 'meeraan! tum yuvatee stree ho, dinabhar kisakee baat dekhatee ho, kisake liye yon kshana-kshanamen sisaka-sisakakar roya karatee ho?'daasiyonne samajhaaya ki 'baaeejee! yah saaree baat to ! theek hai, parantu is tarah karanese aapaka kul lajjitahota hai.' meeraane kahaa- 'kya karoon, mere vashakee baat naheen.'

manushy praayah apane hee manake paapaka doosarepar aarop kiya karata hai. kiseene jaakar raanaajeeke kaan bhar diye, unhen samajha diya ki 'meeraanka to charitr bhrasht ho gaya hai. dinabhar to vah virahineekee tarah roya karatee hai aur raatako aadhee raatake samay usake mahalamen kisee doosare purushakee aavaaj sunaayee detee hai. ho n ho kuchh na-kuchh daalamen kaala avashy hee hai.'

raanaako yah baat sunakar bada़a krodh hua, usee din raatako ve aadhee raatake samay nangee talavaar haathamen lekar meeraanke mahalamen gaye. kivaada़ band the, raanaako bhee andarase kisee purushakee aavaaj sun pada़ee; naheen kah sakate ki yah raanaake dridha़ sankalpaka phal tha ya bhagavaankee leela thee. khair, raanaane akasmaat kivaada़ khulavaaye. dekhate hain to meeraan premasamaadhimen baithee hai. doosara koee naheen hai. raanaane meeraanko chet karaakar poochha ki 'bataao, tumhaare paas doosara kaun thaa?' meeraane jhatase javaab diyaa- 'mere chhailachhabeele giradharalaalajeeke siva aur kaun hotaa. jagatmen doosara koee ho to aaye.' raana in vachanonka marm kyon samajhane lage? unhonne bada़ee saavadhaaneese saare mahalamen khoj kee; parantu kaheen koee naheen deekh pada़a, tab lajjit hokar laut gaye.

kahate hain ki meeraanke padonkee prashansa sunakar ek baar taanasenako saath lekar baadashaah akabar vaishnavake veshamen meeraanke paas aaye the aur meeraankee bhaktika adbhut prabhaav dekhakar ranachhoड़jeeke liye ek amooly haar dekar laut gaye the. isase bhee logon men bada़ee charcha phailee. raanaane krodhit hokar meeraanke naashake liye ek pitaareemen kaalee naaginako band karake shaalagraamajeekee moortike naamase usake paas bhejee. shaalagraamaka naam sunate hee meeraanke netr dabadaba aaye. usane bada़e utsaahase pitaaree kholee; dekhatee hai to sachamuch usamen ek shreeshaalagraamajeekee sundaramoorti aur ek manohar pushponkee maala hai. meeron prabhuke darshan karake naachane lagee.

meeron magan bhatt harike gun gaay ..

saanp pitaara raana bhejya, bhauron haath diya jaaya.

nhaay dhoy jab dekhan laagee, saalagaraam gada़ paaya..

meeron ke prabhu sada sahaaee, raakhe vipr hataay

bhajan bhaav men mast dolatee, giradhar pai bali jaay ..

raanaajeene aur bhee anek upaayonse use digaana chaaha, parantu meeron kisee tarah bhee naheen digee. jab raana bahut sataane lage, tab meeraane gosaaeen tulaseedaasajeeko ek patr likhaa-

svastishree tulasee gunabhooshan dooshan haran gusaanee.

baarahin baar pranaam karahun, ab harahu sok samudaaee ..

ghar ke svajan hamaare jete, saban upaadhi badha़aaee.

saadhu sang aru bhajan karat mohin det kales mahaaee..

so to ab chhootat nahin kyonhoon, lagee lagan bariyaaee .

baalapane men meeron keenhee giradharalaal mitaaee ..

mere maat taat sam tum ho, haribhaktan sukhadaaee.

mokon kaha uchit karibo, ab so likhiye samujhaaee ..

gosaaeejee mahaaraajane uttaramen yah prasiddh pad likh bhejaa-

jaake priy n raam vaidehee.

so chhaada़ie koti bairee sam jadyapi param sanehee ..

naate neh raam ke maniyat suhrid susevy jahaan leen.

anjan kaha aankhi jehi phoot, bahutak kahaan kahaan laun .

tulasee so sab bhaanti param hit poojy praan te pyaaro.

jaason hoy saneh raam pad eto mato hamaaro..

is patrako paakar meeraanne ghar chhoda़kar vrindaavan jaaneka nishchay kar liyaa. raanaajeeko to is baatase bada़ee prasannata huee, parantu oodaajee aur meeraॉkee anyaany premika sakhiyonko baड़a duhkh huaa. unhonne maureeko rokana chaaha, parantu meeronne kiseekee kuchh naheen sunee, vah jhatapat mahalase nikalakar vrindaavanako or chal pada़ee.preetamakee khojamen jaanevaale kabhee peechheko naheen dekha karate, meeraan bhee aaj us param pyaare shyaamasundarakee khojamen unmaadinee hokar dauda़ rahee hai. dhany hai ! meeraan vrindaavan pahunchee aur vahaan shyaamasundarake pratyaksh darshanake liye virahake geet gaatee kunja-kunjamen bhatakane lagee. jo use dekhata, vahee bhakti rasase bheeg jaata tha .

premarasamen chhakee huee meeraan virahake geet gaatee phiratee . jab bhakt bhagavaan ke liye vyaakul hote hain, tab bhagavaan bhee unase milaneke liye vaise hee vyaakul ho uthate hain.

banseevaala aajyo mhaare des thaanree saanvaree soorat baalo bhes ..

aaoon aaoon kah gaya jee, kar gaya kaul anek .

ginataan ginataan ghis gaee jee, mhaanree aangaliyaan ree rekh ..

main bairaagan aadi kee jee, thaare mhaare kadako saned .

bin paanee bin saav jee, hoy gaee dhoy saphed ..

jogan hokar jangal heroon, thaaro naam n paayo bhesa.

thaaree surat ke kaarane main to dhaaraya chhe bhagavaan bhes ..

mor mukut peetaanbar sohai, ghoongharavaala kes .

meeraan ke prabhu giradhar naagar, milyaan mitego kales ..
bhakt bhagavaan‌ko baadhy kar lete hain. meeraanke nikat hu baadhy hokar bhagavaanko aana pada़aa. us manohar chhabiko nirakh meeraan mohit ho gayee. naacha-naachakar gaane lagee-
us rooparaashiko dekhakar kisaka chitt unmatt naheen ho jaataa! jo use dekh paaya, vahee paagal ho gayaa. meeraan paagalakee tarah chaaron or usakee madhur chhavika darshanakaratee huee gaatee phiratee hai-

ek baar meeraanjee vrindaavanamen shreechaitanyamahaaprabhuke shishy paramabhakt jeev gosvaameejeeka darshan karaneke liye gayeen. gosaaeejeene bheetarase kahala bheja ki ham striyonse naheen milate. meeraanne isapar uttar diya ki 'mahaaraaja! aajatak to vrindaavanamen purush ek shreenandanandan hee the, aur sabhee striyaan theen; aaj aap ek naye purush prakat hue hain!' meeraanka rahasyamay uttar sunakar jeevajee mahaaraaj nange pairon baahar aakar bada़e premase meeraanjeese mile.

kuchh kaal vrindaavanamen nivaas karake san0 1600 ke aasapaas mauron dvaarakaajee chalee gayeen aur vahaan shreeranachhoda़ bhagavaan ke darshan aur bhajanamen apana samay bitaane lageen. kahate hain ek baar chittauda़se raanaajee unhen vaapas lautaaneke liye dvaarakaajee gaye the. meeraanjeeke chale jaaneke baad chittauda़men bada़e upadrav hone lage the. logonne raanaako samajhaaya ki aapane meeron sareekhee bhagavat-premikaaka tiraskaar kiya hai, useeka yah phal hai. raana iseeliye meeraanse kshamaa-yaachana karake use vaapas lautaakar le jaana chaahate the. parantu meeraanne jaana kisee tarah bhee sveekaar naheen kiyaa.
meeranei kaha -

raanaajee mhaaree preeti puravalee mhe koee karau ..

raam naam bin naheen aavada़e, hivada़o jhola khaay .

bhojaniya nahin bhaav mhaanne, needada़lee nahin aay ..

raathauड़aan kee dheeyada़ee jee, seesodya ke saatha. le jaatee baikunthako mhaanree nek n maanee baat .. raanaajeeko yon hee vaapas lautana pada़aa. meera prabhuke saamane gaane lagee-

ramaiya main to thaare rang raatee ..

auraanke piya parades basat hain, likh likh bhejen paatee.

mera piya mere hriday basat hai, rol karoon din raatee ..

choova chola pahar sakhee ree, main jhuramat ramava jaatee .

jhuramat men mohin mohan miliya, ghaal milee galabaanthee ..

aur sakhee mad pee pee maatee, main bin piyaan hee maatee.

prem bhatheeko main mad peeyo, chhakee phiroon din raatee ..

surat nirat ko divalo joyo, manasa pooran baatee

agam ghaani ko tel sinchaayo, baal rahee din raatee ..

jaaoon nee peehariye, jaaoon nee saasariye, hari soon sena

lagaatee. meeraan ke prabhu giradhar naagar, hari charana chit laatee ..

meeraanjee shreedvaarakaadheeshajeeke mandiramen aakar premamen unmatt hokar gaane lageen-

sajan ! sudh jyoon jaanaun tyoon leejai .

tum bin mere aur n koee, kripa raavaree keejai ..

din nahin bhookh, rain nahin nidra, yon tan palapal chheejai .

doosara pada-

ab to nibhaayaan saregee, baanh gahe kee laaj .

samarath saran tumhaaree saiyaan, sarab sudhaaran kaaj ..

bhavasaagar sansaar aparabal, jaamen tum ho jahaaj .

niradhaaraan aadhaar jagat guru, tum bin hoy akaaj ..

jug jug bheer haree bhaktan kee, deenee mochchh samaaj .

meeraan saran gahee charanan kee, laaj rakhau mahaaraaj ..

- yon kahakar meeraan naachane lagee aur antamen bhagavaan ranachhoda़jeekee moortimen sama gayee !

nrityat noopur baandhi kai, gaavat lai karataara

dekhat hee hari men milee, trin sam gani sansaar ..

meeraanko nij leen kiy, naagar nandakisor .

jag prateet hita- naatha-mukh, rahyo choonaree chhor ..

kaha jaata hai kin sanvat 1630 ke anumaan meeraanjeeka deh bhagavaan‌men mila thaa. meeraanjeene kaee granth rache the, jo is samay naheen milate. meeraanke bhajan to prasiddh hain; jo unhen gaata aur sunata hai vahee premamen matt ho jaata hai. meeraanne prakat hokar bhaaratavarsh, hindoojaati aur naaree-kulako paavan aur dhany kar diya .

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मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
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मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
मेरा आपकी कृपा से,
सब काम हो रहा है
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
तीनो लोकन से न्यारी राधा रानी हमारी।
राधा रानी हमारी, राधा रानी हमारी॥
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चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना
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तेरे दर पे सर झुकाना
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बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
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श्याम मैं तो मर जाऊंगी
जीवन खतम हुआ तो जीने का ढंग आया
जब शमा बुझ गयी तो महफ़िल में रंग आया
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,
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