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स्वामी श्रीनिरञ्जनानन्दजी तीर्थ की मार्मिक कथा
स्वामी श्रीनिरञ्जनानन्दजी तीर्थ की अधबुत कहानी - Full Story of स्वामी श्रीनिरञ्जनानन्दजी तीर्थ (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [स्वामी श्रीनिरञ्जनानन्दजी तीर्थ]- भक्तमाल


स्वामी निरञ्जनानन्दजी तीर्थका जन्म संवत् 1903 | वि0 में भाद्रपद शुक्ल तृतीयाको उत्तरप्रदेशके उन्नाव जनपदके काँथा ग्राममें पण्डित गयादोनजी मित्रके घर हुआ था। बचपन से ही उनकी रुचि अध्यात्मपरक थी। काँथाके तालुकेदार 'शिवसिंह सरोज' के रचयिता श्रीशिवसिंहजी उनके परम मित्र थे। उनके सम्पर्कमें स्वामी निरञ्जनानन्दजीने काव्य तथा संगीत विद्यामें पर्याप्त निपुणता प्राप्त की थी। दोनोंका बहुत दिनोंतक साथ रहा। सन् 1857 का भारतीय स्वतन्त्रतासंग्राम समाप्त होनेपर शिवसिंहजी गोंडाके थानेदार नियुक्त हुए और स्वामीजी संन्यास लेनेके पूर्व उन्होंके साथ थानेपर बारह रुपये मासिकपर उनके सहायक अथवा लेखकके रूपमें जीविका निर्वाह करते रहे। गोंडाके प्रसिद्ध वैष्णव विश्वेश्वरदाससे 'नारायणमन्त्र' की दीक्षा लेकर उन्होंने गृहस्थाश्रमका त्याग कर दिया। काँथाकी सीमापर एक जीर्ण-शीर्ण मन्दिरमें रहकर श्रीहनुमान्जीकी भक्ति करने लगे। यथावकाश उन्होंने तीर्थयात्रा आरम्भ की, निवृत्ति मार्गके पूर्णावलम्बी हो चले। काशी पहुँचकर संवत्1952 वि0 में उन्होंने स्वामी परमानन्दजी तीर्थसे संन्यास दीक्षा लो। संन्यास ग्रहणके पश्चात् वे सई नदीके तटपर एकान्त तथा रमणीय स्थानमें कुटी बनाकर विरक्तभावसे भजन करने लगे। संवत् 1962 वि0 में ककहा ग्रामके निकट ढाकके जंगलमें रहकर तपस्या करने लगे। वे शङ्करजीके एक तीन-चार सौ साल पूर्व बने हुए जीर्ण मन्दिरमें रहने लगे।

महात्मा निरञ्जनानन्दजी तीर्थ भगवल्लोला सम्बन्धी उत्सव भी किया करते थे। धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढ़ने लगी। दूर-दूरसे आकर लोग उनके शिष्य बनने लगे। महात्माजीको रामायण पाठमें बड़ी श्रद्धा थी, एक दिनके लिये भी उनके रामायण पाठका क्रम नहीं टूटा। वे उच्च कोटिके ज्ञानी महात्मा होनेके साथ ही एक सच्चे भक्त भी थे। दैवी सम्पत्तिसे पूर्ण समृद्ध थे।

उन्होंने विनयबसीठी, निरञ्जन-भजनावली, धनुषयज्ञ, राग संग्रह आदि ग्रन्थोंकी रचना को थी। संवत् 1981 वि0 की फाल्गुन शुक्ल द्वितीयाको तीसरे पहर उन्होंने अपनी कुटीके समीप ही एक पौपल-वृक्षके नौचे समाधि ले ली।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [svaamee shreeniranjanaanandajee teertha]- Bhaktmaal


svaamee niranjanaanandajee teerthaka janm sanvat 1903 | vi0 men bhaadrapad shukl triteeyaako uttarapradeshake unnaav janapadake kaantha graamamen pandit gayaadonajee mitrake ghar hua thaa. bachapan se hee unakee ruchi adhyaatmaparak thee. kaanthaake taalukedaar 'shivasinh saroja' ke rachayita shreeshivasinhajee unake param mitr the. unake samparkamen svaamee niranjanaanandajeene kaavy tatha sangeet vidyaamen paryaapt nipunata praapt kee thee. dononka bahut dinontak saath rahaa. san 1857 ka bhaarateey svatantrataasangraam samaapt honepar shivasinhajee gondaake thaanedaar niyukt hue aur svaameejee sannyaas leneke poorv unhonke saath thaanepar baarah rupaye maasikapar unake sahaayak athava lekhakake roopamen jeevika nirvaah karate rahe. gondaake prasiddh vaishnav vishveshvaradaasase 'naaraayanamantra' kee deeksha lekar unhonne grihasthaashramaka tyaag kar diyaa. kaanthaakee seemaapar ek jeerna-sheern mandiramen rahakar shreehanumaanjeekee bhakti karane lage. yathaavakaash unhonne teerthayaatra aarambh kee, nivritti maargake poornaavalambee ho chale. kaashee pahunchakar sanvat1952 vi0 men unhonne svaamee paramaanandajee teerthase sannyaas deeksha lo. sannyaas grahanake pashchaat ve saee nadeeke tatapar ekaant tatha ramaneey sthaanamen kutee banaakar viraktabhaavase bhajan karane lage. sanvat 1962 vi0 men kakaha graamake nikat dhaakake jangalamen rahakar tapasya karane lage. ve shankarajeeke ek teena-chaar sau saal poorv bane hue jeern mandiramen rahane lage.

mahaatma niranjanaanandajee teerth bhagavallola sambandhee utsav bhee kiya karate the. dheere-dheere unakee khyaati badha़ne lagee. doora-doorase aakar log unake shishy banane lage. mahaatmaajeeko raamaayan paathamen bada़ee shraddha thee, ek dinake liye bhee unake raamaayan paathaka kram naheen tootaa. ve uchch kotike jnaanee mahaatma honeke saath hee ek sachche bhakt bhee the. daivee sampattise poorn samriddh the.

unhonne vinayabaseethee, niranjana-bhajanaavalee, dhanushayajn, raag sangrah aadi granthonkee rachana ko thee. sanvat 1981 vi0 kee phaalgun shukl dviteeyaako teesare pahar unhonne apanee kuteeke sameep hee ek paupala-vrikshake nauche samaadhi le lee.

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