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श्रीरामकृष्ण परमहंस की मार्मिक कथा
श्रीरामकृष्ण परमहंस की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीरामकृष्ण परमहंस (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीरामकृष्ण परमहंस]- भक्तमाल


श्रीरामकृष्ण परमहंस, जिनकी जन्मशताब्दी भारतवर्षभरमें | तथा यूरोप और अमेरिकाके विभिन्न भागोंमें मनायी गयी है तथा जो एक मतसे आधुनिक भारतके संतशिरोमणि गिने जाते हैं, 17 फरवरी सन् 1836 को बंगालप्रान्तान्तर्गत हुगली जिलेके 'कामारपुकुर' नामक एक अप्रसिद्ध गाँव में पैदा हुए थे। इनका घरका नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था और इनके माता-पिता बड़े ईश्वरप्रेमी, धार्मिक और उच्च आध्यात्मिक आदर्शोंसे सम्पन्न सनातनी ब्राह्मण थे।

श्रीरामकृष्णका असाधारण घटनाओंसे परिपूर्ण प्रारम्भिक जीवन जन्मस्थानमें ही व्यतीत हुआ। चार सालको अवस्थामें ही वे पहले पहल समाधिस्थ हुए और दिनों दिन उनकी यह प्रवृत्ति बलवती होती गयी। पुस्तकी विद्यासे अरुचि होनेके कारण ग्रामीण प्राइमरी पाठशालासे उनकी शिक्षा समाप्त हो गयी; परंतु अपने अनुकरणीय चरित्र, कलानिपुणता, मधुर सुरीले स्वर, अपूर्व आनन्दमय अनुभव, अलौकिक व्यक्तित्व, असाधारण बुद्धि तथा सभी जातियों और सम्प्रदायोंके लोगोंसे निष्काम प्रेमके कारण वे आस-पासके समस्त ग्रामनिवासियोंकी प्रशंसा तथा भक्तिके पात्र हो गये।

सन् 1853 ई0 में श्रीरामकृष्ण अपने सबसे बड़े भाई रामकुमार चटर्जीके साथ कलकत्ते आये और सन् 1856 ई0 में जब रानी रासमणिने इनके बड़े भाईको कलकत्तेके निकटवर्ती दक्षिणेश्वरमन्दिरका प्रधान पुजारी नियुक्त किया, तब ये उनके सहायक बन गये। रामकुमारकी मृत्युके बाद से कई महीने वहीं बड़े भाईके स्थानपर रहे। इसी समय इनकी हिंदूधर्मके विभिन्न अङ्गोको साधना आरम्भ हुई, जो बारह वर्षतक चलती रही। यहाँपर इन्होंने किस प्रकार तपस्या और त्यागमय जीवन व्यतीत किया, किस प्रकार तोतापुरीसे संन्यास लिया और उन्होंने इनका नाम 'रामकृष्ण परमहंस' रखा और किस प्रकार इन्होंने तान्त्रिक साधना तथा ख्रीष्ट और इस्लाम धर्मके अनुसार उन-उन धर्मोके अनुयायियोंकी भाँति उपासना | की इन सब बातोंका वर्णन स्थानाभावके कारण नहीं हो सकता।बचपन से ही श्रीरामकृष्ण गंदी साम्प्रदायिकता तथा संकुचित भावोंके विरोधी थे; किंतु साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि सभी सम्प्रदाय और मत-मतान्तर सच्चे जिज्ञासुओंको समस्त धमकि सर्वसम्मत लक्ष्यतक पहुँचाने के लिय भिन्न-भिन्न रास्ते हैं। संसारके भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों और मत-मतान्तरोके अनुसार साधना करके उन्होंने प्रत्येक विशिष्ट धर्मके सर्वोच्च ध्येयको प्राप्त किया और साधनाद्वारा प्राप्त अपनी आध्यात्मिक अनुभूतियोंका पुत्र मानवजातिको दिया। उनके प्रत्येक विचार सोधे ईश्वरसे प्राप्त होते थे। उनमें मानवीय बुद्धि, संस्कार अथवा पाण्डित्यकी करामातों का सम्मिश्रण नहीं था। जन्मसे लेकर मृत्युपर्यन्त उनका प्रत्येक कार्य असाधारण था। उनके जीवनकी प्रत्येक अवस्था किसी नये शास्त्रका एक-एक अध्याय थी, जिसे मानो पौरस्त्य और पाश्चात्य सभी लोगों को लाभ पहुँचाने के लिये तथा बीसवाँ शताब्दीको अध्यात्मसम्बन्धी आवश्यकताओंको पूर्ण करनेके लिये स्वयं भगवान्ने अपने अलक्ष्य हाथोंसे खास तौरपर लिखा था।

उनके चरित्र और उपदेश इतने अलौकिक एवं चमत्कारपूर्ण थे कि उनके 16 अगस्त 1886 को संसारसे कूच करनेके दस वर्षके भीतर हो भूतपूर्व प्रोफेसर सो0 एच0 टॉनीने लन्दन के 'इम्पीरियल और कार्ट रिव्यू के सन् 1896 ई0 के जनवरीके अङ्क 'एक आधुनिक हिंदू संत' (श्रीरामकृष्ण शीर्षक लेख छपवाया था दिवंगत प्रोफेसर मैक्समूलरने भी सन् 1896 ई0 के 'नाइन्टीन्य सेंचुरी' (उन्नीसवीं शताब्दी) नामकी अंग्रेजी पत्रिकाके अगस्त अङ्कमें A Real Mahatrna" (एक वास्तविक महात्मा) इस शौर्षकसे महात्मा रामकृष्णके जीवनका संक्षिप्त परिचय लिखा और बादमें 'Ramkrishna: His Life and Sayings' (श्रीरामकृष्ण, उनके चरित्र और उपदेश) नामकी पुस्तक लिखी।

सन् 1903 ई0 में न्यूयार्क (अमेरिका) को वेदान्तसोसायटीने Sayings of Ramkrishna' (रामकृष्ण के उपदेश) तथा सन् 1907 ई0 में Gospelof Ramkrishna' (रामकृष्णका सन्देश) नामक ग्रन्थ प्रकाशित किये। इस 'सन्देश' का बादमें यूरोपकी स्पैनिश, पुर्तगीज, डैनिश, स्कैण्डिनेवियन और जेकोस्लैवाकी भाषामें अनुवाद हुआ।

श्रीरामकृष्णके प्राकट्यका हेतु उनके अवतारका हेतु अपने जीवनके द्वारा यह दिखलाना था कि किस प्रकार कोई सच्चा आत्मज्ञानी इन्द्रियके विषयोंसे बहिर्मुख होकर परमानन्दमें लीन रह सकता है। वे यह सिद्ध करनेके लिये आये थे कि प्रत्येक आत्मा अमर है और ब्रह्मत्वको प्राप्त करनेकी सामर्थ्य रखता है। विभिन्न सम्प्रदायोंके अन्तस्तलमें सैद्धान्तिक एकता दिखाकर उनमें मेल स्थापित करना ही उनके जीवनका उद्देश्य था। पहले-पहल श्रीरामकृष्णने ही यह सिद्ध करके दिखाया कि समस्त धर्म एक नित्य सत्यकी ओर ले जानेवाले विभिन्न मार्ग हैं। परमात्मा एक है, किन्तु उसके अनेक रूप हैं। विभिन्न जातियाँ उसकी पूजा विभिन्न नामों और रूपोंसे करती हैं। वह साकार भी है और निराकार भी और दोनोंसे परे निर्गुण भी है। उसके नाम और रूप होनेपर भी वह बिना नाम और बिना रूपका है।

उनका ध्येय था-परमात्माको विश्वका माता-पितासिद्ध करना तथा इस प्रकार स्त्रीत्वके आदर्शको जगदम्बाके पदपर प्रतिष्ठित करना। अपनी स्त्रीको वे मानवीरूपमें जगदम्बा ही समझते थे और 'षोडशी देवी' कहकर उसकी पूजा करते थे। इस प्रकार इस विलासिताके युगमें भी भौतिकेतर - आध्यात्मिक विवाहकी सत्यता उन्होंने प्रमाणित की । उनकी स्त्री भगवती कुमारी शारदादेवीने पवित्रता, सतीत्व और जगन्मातृत्वका आदर्श स्थापित किया और वे भी श्रीरामकृष्णको मानवरूपमें जगदीश्वर मानकर ही उनकी भक्ति करती थीं। संसारके धार्मिक इतिहासमें इस प्रकारके आध्यात्मिक विवाहका अन्य कोई उदाहरण नहीं मिलता। अपितु श्रीरामकृष्णने आध्यात्मिक जगत्‌में गुरुको स्त्रीरूपमें मानकर स्त्रीत्वके आदर्शको और भी ऊँचा बना दिया। धार्मिक इतिहासमें स्त्रीत्वको इतना सम्मान देनेवाला अन्य कोई मसीहा अथवा नेता नहीं देखा गया।

श्रीरामकृष्ण स्पर्शमात्रसे ही किसी भी पापीके चरित्रको अपनी दैवी शक्तिद्वारा पलट देते थे और उसे आध्यात्मिक जगत् में पहुँचा देते थे। वे दूसरोंके पाप अपने ऊपर ले लिया करते थे और अपनी आत्मिक शक्ति उनमें डालकर तथा उन्हें ईश्वरके दर्शन कराकर उनको पवित्र कर देते थे। ऐसी अलौकिक शक्ति साधारण संतों और महात्माओंमें देखनेको नहीं मिलती।



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san 1903 ee0 men nyooyaark (amerikaa) ko vedaantasosaayateene Sayings of Ramkrishna' (raamakrishn ke upadesha) tatha san 1907 ee0 men Gospelof Ramkrishna' (raamakrishnaka sandesha) naamak granth prakaashit kiye. is 'sandesha' ka baadamen yooropakee spainish, purtageej, dainish, skaindineviyan aur jekoslaivaakee bhaashaamen anuvaad huaa.

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