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महामना भक्त मालवीयजी की मार्मिक कथा
महामना भक्त मालवीयजी की अधबुत कहानी - Full Story of महामना भक्त मालवीयजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [महामना भक्त मालवीयजी]- भक्तमाल


प्रातःस्मरणीय पण्डित प्रेमधरजी प्रयागमें परम भागवत भक्त थे। भगवान् श्रीराधा-कृष्णकी आराधना करना ही उनके जीवनका एकमात्र प्रधान कार्य था। भगवान्‌को कभी माला पहनाना, कभी भोग लगाना, कभी आरती उतारना, कभी मतवाले होकर उनके सामने नाचना और कभी स्तोत्रपाठ करना बस इन्हीं कामोंमें वे लगे रहते थे। उनके घरमें भगवान्‌की दो फुट ऊँची साँवले रंगकी सुन्दर मूर्ति थी। प्रेमधरजीने एक बार 108 दिनोंमें श्रीमद्भागवतके 108 पाठ किये थे। इनके पुत्र पण्डित व्रजनाथजी भी परम भागवत थे और भगवान् श्रीराधा कृष्णके अनन्य भक्त थे। बड़ी सुन्दर भागवतकी कथा कहा करते थे। पण्डित व्रजनाथजीके छः पुत्र और दो कन्याएँ-यों आठ संतानें हुई। इनमें पाँचवीं संतान हमारे महामना पं0 मदनमोहनजी मालवीय थे। इनका जन्म

सं0 1918 वि0 पौषकृष्णा अष्टमीको प्रयागमें हुआ था। श्रीमदनमोहनजीने अपने परम भागवत, श्रीराधा कृष्णके अनन्य भक्त, दैवीसम्पत्ति सम्पन्न पितामह और पितासे भगवान्की भक्ति और दैवीसम्पत्तिको, जो वास्तविक सच्ची सम्पत्ति है, उत्तराधिकारके रूपमें प्राप्त किया था। मालवीयजीके पवित्र और आदर्श जीवनपर जितना लिखा जाय, उतना ही थोड़ा है। इस प्रकारके पवित्रचरित्रमहापुरुषोंके स्मरणसे ही चित्तमें पवित्रता आती है। देशका और धर्मका ऐसा कोई कार्य नहीं, जिसमें मालवीयजीने भाग न लिया हो। हिंदू-विश्वविद्यालय तो आपकी अमर कीर्ति है ही; पर आपने जो लाखों-करोड़ों देशवासियोंके हृदयोंमें अपने पवित्रतम, उज्ज्वल, धर्म भक्तिपूर्ण जीवनके आदर्श भर दिये हैं, उनका मूल्य कोई आँक नहीं सकता। मालवीयजीके एक-एक गुणपर सोदाहरण बड़ी-बड़ी पुस्तकें लिखी जा सकती हैं। विनय और नम्रताके साथ असीम दृढ़ता, सदाचारकी कट्टरताके साथ उदारता, खान-पान और वेश-भूषामें जीवनके आरम्भसे लेकर अन्ततक परिवर्तनहीन आचरणके | साथ विभिन्न प्रकृति और पद-पदपर आचार परिवर्तन करनेवाले लोगोंके साथ प्रेमपूर्ण सहयोग, एक चींटीकी हत्या देखनेमें भी दुःखका अनुभव करनेवाले कोमल हृदयके साथ आततायीके वधको धर्म स्वीकार करनेवाला वज्रहृदय, एकताके पूर्ण पक्षपाती होनेके साथ ही सनातनधर्म, आर्य-संस्कृति और भारतीय आदर्शपर मर मिटनेकी शिक्षा-दीक्षा, बुद्धिवादके महान् आदर्श होनेके साथ-साथ श्रद्धा-भक्तियुक्त तथा पितृपरम्परागत आचरणोंके प्रति आदर; अधिक क्या, साधुतापूर्ण दैवी-सम्पत्ति और | पवित्र नीतिके प्रायः सभी गुणोंका एकत्र प्रत्यक्ष आचरणगतसमावेश देखना हो तो मालवीयजीके जीवनकी पुण्यमयं झाँकी करनी चाहिये।

भगवान् के प्रति इनकी कितनी आस्तिकता थी, इसका पता व्याख्यानोंसे नहीं मालवीयजीके व्यक्तिगत घरेलू आचरणोंसे लगता है। अपने विपत्तिग्रस्त पुत्रको घरेलू पत्रमें आप लिखते हैं-"विपत्तिसे प्राण पानेका सर्वोत्तम उपाय है भगवान्‌को शरणागति' भगवान्‌ने गीतामें कहा है

'मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।'

तुम मुझमें मन लगाओ। मेरी कृपासे समस्त संकटोंसे तर जाओगे।" एक बार अपने एक पुत्रको तारमें आपने लिखा था, 'श्रीमद्भागवतके आठवें स्कन्धके तीसरे अध्यायका आर्त्त होकर पाठ करो। सारे संकटोंसे अवश्य छूट जाओगे।' एक बार अपने एक प्रेमीको आपने बतलाया था - "मेरी माताने मुझे लड़कपनमें एक अमूल्य वस्तु दी थी और कहा था कि 'बच्चा, इसका सेवन करनेसे तुम कभी असफल नहीं होओगे। माँने कहा था कि कहीं भी जाते समय 'नारायण नारायण' का उच्चारण और मनसे नारायणका स्मरण कर लिया करो तो तुम्हारी वह यात्रा अवश्य सफल होगी।' तबसे अबतक मैं सदा स्मरण करता हूँ और दो-ही चार बार ऐसा हुआ है जब मैं भूला और मेरा अनुभव है कि उस यात्रामें में असफल भी रहा।" भगवान्‌की कृपा, श्रीमद्भागवतशास्त्र और भगवन्नामपर इनकी कैसी निष्ठा थी, इसका पता इन उदाहरणोंसे लग जाता है।

एक बार प्रयागमें कुम्भके समय 'गीता-ज्ञानयज्ञ' का आयोजन किया गया था उसमें गीता ग्रन्थोंकी सुन्दर प्रदर्शनी की गयी थी और गीतापारायण तथा गीतापर प्रवचनों और कथाओंका आयोजन किया गया था। पूज्यपाद मालवीयजी महाराज उसके सभापति थे उस समय महीनेभरतक प्रतिदिन प्रातःकाल त्रिवेणीमें स्नान करके रेशमी तथा ऊनी वस्त्र पहने श्रीमालवीयजी मण्डपमें आते और पण्डितोंके साथ बैठकर श्रद्धा भक्तिपूर्वक अठारह अध्याय गीताका पाठ करते थे। दिनमें प्रवचन होता था। लोगोंको बड़ा आश्चर्य होता था कि विभिन्न प्रकारके आवश्यक और उपयोगी कार्योगेव्यस्त रहनेवाले मालवीयजी महाराजको इतना समय कैसे मिल जाता है।

आप सनातनधर्मसभा, हिंदू महासभा, कांग्रेस, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गोरक्षा-संघ- नाना प्रकारकी संस्थाओंके और विचारोंके बहुमुखी नेता, संचालक और प्राण थे।

श्रीमालवीयजीकी सरलता, उनकी अहिंसा वृत्ति, सत्य, प्रेम, अक्रोध और त्यागको महिमाका उल्लेख करनेके लिये तो एक-एक विस्तृत ग्रन्थकी अपेक्षा है। थे अत्यन्त उदार थे। उनका द्वार सबके लिये समानरूपसे खुला रहता था। संसारके सभी प्राणी उसमें समा सकते थे। सबके लिये उनके मनमें प्रेम था, सबके गुणोंकी वे प्रशंसा करते थे। किसीकी निन्दाको कल्पना न तो कभी उनका मन करता था और न उनकी वाणी। उनकी उदारतामें समस्त विश्व स्वच्छन्द धूम सकता था। एक बार बम्बई में एक विद्वान्ने उनसे कहा-'मालवीयजी। आप मुझे सौ गाली दीजिये- मुझे क्रोध नहीं आयेगा।' मालवीयजीने हँसते हुए कहा-'महाराज! आपके क्रोधको परीक्षा तो पीछे होगी, पर मेरी जबान तो पहले ही गंदी हो जायगी।"

दयाकी तो वे जैसे जीवित प्रतिमा ही थे। मालवीयजीका वर्णन करते हुए लीडरके प्रतिष्ठित सम्पादक स्व0 श्री सो0 वाई0 चिन्तामणिजीने कहा था कि 'वे सिरसे पैरतक हृदय ही हृदय हैं।' इस एक वाक्यमें मालवीयजीका पूरा चित्र आ गया है। एक दिनकी बात है, प्रयागमें घण्टाघरको और वे जा रहे थे। पथकी एक रुग्ण भिखारिनका आर्तनाद उनके कानोंमें पहुंचा ही था कि मालवीयजी उसके समीप बैठ गये और उसकी पौड़ाके सम्बन्धमें उससे प्रेमपूर्वक प्रश्न करने लगे। श्रीमालवीयजीका वहाँ बैठना था कि थोड़ी ही देरमें पर्याप्त भीड़ एकत्र हो गयाँ और उसके टीनमें पैसे पड़ने लग गये। आपने तुरंत एका मँगवाया और उस असहाय भिखारिनको उसपर बैठाकर अस्पतालकी ओर चल पड़े।

एक बार एक कुत्तेके कानके समीप घाव हो गया था। वह पीड़ासे छटपटाता हुआ इधर से उधर भागता फिरता था। ऐसी दशा में कुत्ते पागलों जैसे काट लिया करते हैं, किंतु श्रीमालवीयजी उसका दुःख दूर करनेकेलिये पागल से हो गये। पूछ-ताछकर ओषधि ले आये और स्वयं बाँसको इंडोमें कपड़ा बांधकर उसमें दवा डुबो डुबोकर लगाने लगे। कुत्ता गुर्राता पर इन्हें अपनी तो चिन्ता नहीं थी, कुत्तेको अच्छा करना था। पीड़ा शान्त होनेपर कुत्तेको नींद आ गयी, यह देखकर मालवीयजीको शान्ति मिली।

हृदय उनका कितना कोमल था, इसके लिये एक सज्जनने कहा था- 'मैं दावेके साथ कह सकता हूँ कि शायद वर्तमान महापुरुषोंमें कोई भी व्यक्ति इतना कोमल न होगा जितने मालवीयजी, जो किसीको निराश नहीं करते और जिनसे कभी किसीको हानि तो पहुँच ही नहीं 1 सकती। मालवीयजीकी ख्याति कितनी थी, यह तो कहनेकी वस्तु नहीं; किंतु उन्हें अभिमान स्पर्श भी नहीं कर सका। किसी समय उन्हें इक्के और ताँगेपर बैठे बाहर जाते देखा जा सकता था बड़प्पनके लिये मोटरकी अपेक्षा होती है पर उनको समयपर जो मिल गया, ई उसीसे काम चला लिया। उनके सुकार्योंकी प्रशंसा की जाती तो लज्जित होते हुए वे बड़े ही विनयसे उत्तर देते "इसमें मैंने क्या किया है सब भगवान् विश्वनाथजीकी कृपा है और आपलोगोंका आशीर्वाद है।'

श्रीमालवीयजी भारतके प्राण थे और भारत तथा भारतीयता उनका प्राण थी। श्रीमती एनी बेसेंटने कहा था- 'मैं दावेके साथ कह सकती हूँ कि विभिन्न मतोंके बीच केवल मालवीयजी ही भारतीय एकताकी मूर्ति बने खड़े हुए हैं।' महात्मा गान्धीके जीवनपर श्रीमालीजीका अद्भुत प्रभाव पड़ा था। इस कारण गान्धीजीके वे बड़े ही आदरणीय थे। श्रीगान्धीजीने स्वयं लिखा है- 'मैं तो मालवीयजी महाराजका पुजारी हूँ। यौवनकालसे आरम्भ करके आजतक उनकी देशभक्तिका प्रवाह अविच्छिन्न चलता आया है। मैं उनको सर्वश्रेष्ठ हिंदू मानता हूँ, जो यद्यपि आचारमें बड़े नियमित है, किंतु विचारमें बड़े उदार हैं। वे किसीसे द्वेष कर ही नहीं सकते हैं। उनके विशाल हृदयमें शत्रु भी समा सकते हैं। यह नरवीर हमारे लिये दीर्घायु हों।'

श्रीमालवीय धर्मको प्राण समझते थे और भगवान् तो उनके जीवनके आधार ही थे। विश्वके कण-कणमेंसे ही प्रभु व्याप्त हैं, सारी लीला उनके ही द्वारा हो रही है-यह उनका दृढ़ विश्वास था और उन परमात्मा के चरणोंमें प्रीति करनेके लिये वे बार-बार उपदेश दिया। करते थे। उनकी कुछ पंक्तियाँ नीचे अविकल उद्धृत की जाती हैं। उससे उनके विचारोंका अनुमान लगाया जा सकेगा साथ ही विद्यार्थियोंके लिये, जो भावी राष्ट्रके निर्माता है, उनकी क्या सलाह थी यह विदित हो जायगा। उन्होंने कहा था

"जो काम करे, वह परमात्मा श्रीकृष्णभगवान्को अर्पण कर दे। ईश्वरको पवित्र भाव, पवित्र विचार अर्पण किये जाते हैं। झूठे व्यवहार परमात्माको अच्छे नहीं लगते। ईश्वर सत्यका प्रेमी है सब धर्मो में हिंदू धर्मको विशेषता यह है कि वह ब्रह्मचर्यका महत्त्व बताता है। ब्रह्मचर्य जीवन है। ब्रह्मचर्यव्रत पालनकर पचीस वर्षतक विद्या प्राप्त करे। सन्ध्या, नित्यकर्म और ईश्वर-प्रार्थना करके शरीर और आत्माको पुष्ट करे। | पचीस से पचासतक गृहस्थ बने, कुल-मर्यादाका पालन करे, माता-पिताकी सेवा करे, अपनी पत्नीके सिवा अन्य स्वीपर मातृभाव रखे। सन्तान पैदा करे, सामाजिक जीवन बिताये अतिथि सत्कार, श्राद्ध-तर्पण, कुटुम्ब पालन करे। पचाससे पचहत्तरतक वानप्रस्थ रहे। गृहस्थीका भार सन्तानको दे और उनको शिक्षा देकर उज्ज्वल जीवन करे। परमात्माकी ओर लक्ष्य बढ़ावे। पचहत्तर वर्षके उपरान्त संन्यासी हो। लोकसुखसे विमुख हो। परमात्माका चिन्तन और ध्यान करे।

ब्रह्मचर्यका आजीवन पालन करे। केवल सन्तान प्रातिके लिये विवाह कहा गया है, विषय-भोगके लिये नहीं सब जीव भोग-विलासमें लिप्त रहते हैं, केवल मनुष्य विवेकसे अपना जीवन उज्ज्वल करता है, प्राणायाम करके मन और इन्द्रियोंको रोकता है। मनुष्य परोपकार करके अपना और दूसरोंका हित करता है।

'यदि पाप किया है तो प्रायश्चित्त कर ले। आगे फिर पाप न करे सबेरे और शामको सन्ध्या करके ईश्वरसे प्रार्थना कर ले। जैसे स्नानसे शरीर शुद्ध होता है, वैसे ही भजनसे हृदय सबसे पहले धर्मभार और परमात्माका | स्मरण, दूसरा काम माता-पिता और गुरुकी सेवा, तीसराकाम प्राणिमात्रका लाभ, चौथा देश सेवा और तब जगत्को सेवाका भार से।'

सत्येन ब्रह्मचर्येण व्यायामेनाथ विद्यया।

देशभक्त्याऽऽत्मत्यागेन सम्मानाहः सदा भव ॥

'सत्य बोले, ब्रह्मचर्य व्रत पालन करे, व्यायाम करे, विद्या पढ़े, देश सेवा करे और लोकमें सम्मान प्राप्त करे। यह अन्तिम उपदेश हर छात्रको हमेशा स्मरण रखना चाहिये और उसके अनुसार आजीवन आचरण करना प्रत्येक व्यक्तिका धर्म है।'

विद्यार्थियोंको वे उन्नत बननेके लिये बार-बार उपदेश और आदेश देते थे। वे छात्रोंको बार-बार कहते 'सभी बातोंमें संयम रखो वाणीमें संयम, भोजनमें संयम रखो और अपने सभी कार्योंमें शीलवान् बनो। शीलसे ही मनुष्य मनुष्य बनता है। 'शीलं परं भूषणम् !' शील ही पुरुषका सबसे उत्तम भूषण है। सादा जीवन और उच्च विचारका आदर्श न भूलो। स्त्री जातिका सदा आदर करो। जो बड़ी हैं, उन्हें माताके समान देखो। जो बराबर हैं, उन्हें बहनके समान और जो छोटी हैं, उन्हें पुत्रीके समान देखो। उनके प्रति कभी कोई रूखापन या अपराध न करो।'

श्रीमालवीयजीने भारतको उन्नतिके लिये गो-रक्षण अत्यन्त आवश्यक समझा था। उन्होंने सन् 1938 ई0 में नासिक पञ्चवटी पिंजरापोलके मैदानमें कहा था-'हिंदुस्थानके कल्याणके लिये गो-रक्षा अनिवार्य है। संसारका जो उपकार गो माताने किया है, उसके महत्त्वको जानते हुए भी लोग उपेक्षा करते हैं और गो-रक्षाके प्रश्नपर ध्यान नहीं देते। यह उनका भ्रम और अन्याय है। जो लोग गो वध करते अथवा गो-वध करना अपना धर्म समझते हैं, उनके अज्ञानका ठिकाना नहीं। गो-जैसे उपकारी प्राणीका बंध करना कभी भी धर्मसङ्गत नहीं कहा जा सकता। याद रहे कि इस्लाम या कुरानशरीफमें गो-वधका विधान नहीं है, जो हमें उसके रोकने में मजहबको अड़चन पड़े। गोमाताकी सभी सन्तान है। हिंदू मुसलमान या ईसाईका सवाल गो-माताके यहाँ नहीं है।उदार अकबरको इस बातका ज्ञान था। उसने गो-वध बंद करा दिया था। सँभलों और औरोंको समझाओ कि दिव्य जीवनके लिये गो-सेवा कितने महत्वकी चीज है। विश्वास रखो कि यदि आप गो-पालनके लिये तैयार हो गये तो परमात्मा अवश्य आपकी मदद करेगा और आप जरूर अपने काममें सफल होंगे।'

मालवीयजीका सारा जीवन भारतवर्ष, सनातन-धर्म और हिंदू जातिकी सेवामें बीता। वे जीवनके प्रभातकालसे ही मानवताकी रक्षा और समृद्धिकी चिन्तामें लगे थे। इसीलिये उन्होंने भारतवर्ष, सनातन धर्म और हिंदू जातिको सेवाका कार्य उठाया था। काशीका हिंदू विश्वविद्यालय उनको अमिट कीर्तिका उद्घोष करता है। श्रीमालवीयजी प्राणिमात्रके सुहृद् मनुष्यमात्र हितचिन्तक और भारतीयोंके सखा थे। जीवनके अन्तमें तो वे कई वर्षोंसे दुर्बल रहने लगे थे, किंतु पूर्व बंगालके निरपराध नर-नारियोंपर होनेवाले बर्बर अत्याचारोंने उन्हें आकुल कर दिया। उनका हृदय दुःख, सन्ताप और सहानुभूतिसे भर गया। फलतः वे शय्यापर पड़ गये। उस समय जो भी उनके पास जाता, उससे वे महामना नोआखालीके ही सम्बन्धमें पूछते। उनके जीवनका अन्तिम वक्तव्य नोआखालीसे त्रस्त मानवताके लिये था। उसकी एक एक पंकि उनके हृदयकी व्याकुलता और व्यथाको प्रकट करती है।

हिंदुओंकी पीड़ा महामना सह नहीं सके। वे तड़पते हुए भी हिंदुओंको सङ्गठित होने और अपनी तथा अपने देशको रक्षाके लिये मर मिटनेके लिये अन्तमें भी लड़खड़ाती साँसमें बोलते गये। अन्ततः वे महाप्राण भारतके प्राण, भूतलके प्राण, धर्मके स्तम्भ और पवित्र आचारके मूर्तिमान् विग्रह, हिंदूजातिके आत्मा, महर्षि श्रीमालवीयजी संवत् 2003 वि0 की मार्गशीर्ष कृष्ण 4 को दिनमें 4 बजकर 13 मिनटपर काशीधाममें भगवान् विश्वनाथ के चरणोंमें समा गये आर्यमेदिनीका अनुपम रत्न लुप्त हो गया। कालके क्रूर करोंसे विश्वकी अमूल्य निधि लुट गयी। भारतके कोटि-कोटि हृदय अधीर और नेत्र अश्रुपूरित हो गये।



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shreemaalaveeyajee bhaaratake praan the aur bhaarat tatha bhaarateeyata unaka praan thee. shreematee enee besentane kaha thaa- 'main daaveke saath kah sakatee hoon ki vibhinn matonke beech keval maalaveeyajee hee bhaarateey ekataakee moorti bane khaड़e hue hain.' mahaatma gaandheeke jeevanapar shreemaaleejeeka adbhut prabhaav pada़a thaa. is kaaran gaandheejeeke ve bada़e hee aadaraneey the. shreegaandheejeene svayan likha hai- 'main to maalaveeyajee mahaaraajaka pujaaree hoon. yauvanakaalase aarambh karake aajatak unakee deshabhaktika pravaah avichchhinn chalata aaya hai. main unako sarvashreshth hindoo maanata hoon, jo yadyapi aachaaramen bada़e niyamit hai, kintu vichaaramen bada़e udaar hain. ve kiseese dvesh kar hee naheen sakate hain. unake vishaal hridayamen shatru bhee sama sakate hain. yah naraveer hamaare liye deerghaayu hon.'

shreemaalaveey dharmako praan samajhate the aur bhagavaan to unake jeevanake aadhaar hee the. vishvake kana-kanamense hee prabhu vyaapt hain, saaree leela unake hee dvaara ho rahee hai-yah unaka dridha़ vishvaas tha aur un paramaatma ke charanonmen preeti karaneke liye ve baara-baar upadesh diyaa. karate the. unakee kuchh panktiyaan neeche avikal uddhrit kee jaatee hain. usase unake vichaaronka anumaan lagaaya ja sakega saath hee vidyaarthiyonke liye, jo bhaavee raashtrake nirmaata hai, unakee kya salaah thee yah vidit ho jaayagaa. unhonne kaha thaa

"jo kaam kare, vah paramaatma shreekrishnabhagavaanko arpan kar de. eeshvarako pavitr bhaav, pavitr vichaar arpan kiye jaate hain. jhoothe vyavahaar paramaatmaako achchhe naheen lagate. eeshvar satyaka premee hai sab dharmo men hindoo dharmako visheshata yah hai ki vah brahmacharyaka mahattv bataata hai. brahmachary jeevan hai. brahmacharyavrat paalanakar pachees varshatak vidya praapt kare. sandhya, nityakarm aur eeshvara-praarthana karake shareer aur aatmaako pusht kare. | pachees se pachaasatak grihasth bane, kula-maryaadaaka paalan kare, maataa-pitaakee seva kare, apanee patneeke siva any sveepar maatribhaav rakhe. santaan paida kare, saamaajik jeevan bitaaye atithi satkaar, shraaddha-tarpan, kutumb paalan kare. pachaasase pachahattaratak vaanaprasth rahe. grihastheeka bhaar santaanako de aur unako shiksha dekar ujjval jeevan kare. paramaatmaakee or lakshy badha़aave. pachahattar varshake uparaant sannyaasee ho. lokasukhase vimukh ho. paramaatmaaka chintan aur dhyaan kare.

brahmacharyaka aajeevan paalan kare. keval santaan praatike liye vivaah kaha gaya hai, vishaya-bhogake liye naheen sab jeev bhoga-vilaasamen lipt rahate hain, keval manushy vivekase apana jeevan ujjval karata hai, praanaayaam karake man aur indriyonko rokata hai. manushy paropakaar karake apana aur doosaronka hit karata hai.

'yadi paap kiya hai to praayashchitt kar le. aage phir paap n kare sabere aur shaamako sandhya karake eeshvarase praarthana kar le. jaise snaanase shareer shuddh hota hai, vaise hee bhajanase hriday sabase pahale dharmabhaar aur paramaatmaaka | smaran, doosara kaam maataa-pita aur gurukee seva, teesaraakaam praanimaatraka laabh, chautha desh seva aur tab jagatko sevaaka bhaar se.'

satyen brahmacharyen vyaayaamenaath vidyayaa.

deshabhaktyaa''tmatyaagen sammaanaahah sada bhav ..

'saty bole, brahmachary vrat paalan kare, vyaayaam kare, vidya padha़e, desh seva kare aur lokamen sammaan praapt kare. yah antim upadesh har chhaatrako hamesha smaran rakhana chaahiye aur usake anusaar aajeevan aacharan karana pratyek vyaktika dharm hai.'

vidyaarthiyonko ve unnat bananeke liye baara-baar upadesh aur aadesh dete the. ve chhaatronko baara-baar kahate 'sabhee baatonmen sanyam rakho vaaneemen sanyam, bhojanamen sanyam rakho aur apane sabhee kaaryonmen sheelavaan bano. sheelase hee manushy manushy banata hai. 'sheelan paran bhooshanam !' sheel hee purushaka sabase uttam bhooshan hai. saada jeevan aur uchch vichaaraka aadarsh n bhoolo. stree jaatika sada aadar karo. jo bada़ee hain, unhen maataake samaan dekho. jo baraabar hain, unhen bahanake samaan aur jo chhotee hain, unhen putreeke samaan dekho. unake prati kabhee koee rookhaapan ya aparaadh n karo.'

shreemaalaveeyajeene bhaaratako unnatike liye go-rakshan atyant aavashyak samajha thaa. unhonne san 1938 ee0 men naasik panchavatee pinjaraapolake maidaanamen kaha thaa-'hindusthaanake kalyaanake liye go-raksha anivaary hai. sansaaraka jo upakaar go maataane kiya hai, usake mahattvako jaanate hue bhee log upeksha karate hain aur go-rakshaake prashnapar dhyaan naheen dete. yah unaka bhram aur anyaay hai. jo log go vadh karate athava go-vadh karana apana dharm samajhate hain, unake ajnaanaka thikaana naheen. go-jaise upakaaree praaneeka bandh karana kabhee bhee dharmasangat naheen kaha ja sakataa. yaad rahe ki islaam ya kuraanashareephamen go-vadhaka vidhaan naheen hai, jo hamen usake rokane men majahabako ada़chan paड़e. gomaataakee sabhee santaan hai. hindoo musalamaan ya eesaaeeka savaal go-maataake yahaan naheen hai.udaar akabarako is baataka jnaan thaa. usane go-vadh band kara diya thaa. sanbhalon aur auronko samajhaao ki divy jeevanake liye go-seva kitane mahatvakee cheej hai. vishvaas rakho ki yadi aap go-paalanake liye taiyaar ho gaye to paramaatma avashy aapakee madad karega aur aap jaroor apane kaamamen saphal honge.'

maalaveeyajeeka saara jeevan bhaaratavarsh, sanaatana-dharm aur hindoo jaatikee sevaamen beetaa. ve jeevanake prabhaatakaalase hee maanavataakee raksha aur samriddhikee chintaamen lage the. iseeliye unhonne bhaaratavarsh, sanaatan dharm aur hindoo jaatiko sevaaka kaary uthaaya thaa. kaasheeka hindoo vishvavidyaalay unako amit keertika udghosh karata hai. shreemaalaveeyajee praanimaatrake suhrid manushyamaatr hitachintak aur bhaarateeyonke sakha the. jeevanake antamen to ve kaee varshonse durbal rahane lage the, kintu poorv bangaalake niraparaadh nara-naariyonpar honevaale barbar atyaachaaronne unhen aakul kar diyaa. unaka hriday duhkh, santaap aur sahaanubhootise bhar gayaa. phalatah ve shayyaapar pada़ gaye. us samay jo bhee unake paas jaata, usase ve mahaamana noaakhaaleeke hee sambandhamen poochhate. unake jeevanaka antim vaktavy noaakhaaleese trast maanavataake liye thaa. usakee ek ek panki unake hridayakee vyaakulata aur vyathaako prakat karatee hai.

hinduonkee peeda़a mahaamana sah naheen sake. ve tada़pate hue bhee hinduonko sangathit hone aur apanee tatha apane deshako rakshaake liye mar mitaneke liye antamen bhee lada़khada़aatee saansamen bolate gaye. antatah ve mahaapraan bhaaratake praan, bhootalake praan, dharmake stambh aur pavitr aachaarake moortimaan vigrah, hindoojaatike aatma, maharshi shreemaalaveeyajee sanvat 2003 vi0 kee maargasheersh krishn 4 ko dinamen 4 bajakar 13 minatapar kaasheedhaamamen bhagavaan vishvanaath ke charanonmen sama gaye aaryamedineeka anupam ratn lupt ho gayaa. kaalake kroor karonse vishvakee amooly nidhi lut gayee. bhaaratake koti-koti hriday adheer aur netr ashrupoorit ho gaye.

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मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
मेरा अवगुण भरा रे शरीर,
हरी जी कैसे तारोगे, प्रभु जी कैसे
राधे मोरी बंसी कहा खो गयी,
कोई ना बताये और शाम हो गयी,
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
पारवती भी मना कर ना माने त्रिपुरारी,
वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
जीवन खतम हुआ तो जीने का ढंग आया
जब शमा बुझ गयी तो महफ़िल में रंग आया
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
यह मेरी अर्जी है,
मैं वैसी बन जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है
शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
राधा राधा राधा राधा
तेरे दर की भीख से है,
मेरा आज तक गुज़ारा
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
ज़िंदगी मे हज़ारो का मेला जुड़ा
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा
मीठी मीठी मेरे सांवरे की मुरली बाजे,
होकर श्याम की दीवानी राधा रानी नाचे
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
रसिया को नार बनावो री रसिया को
रसिया को नार बनावो री रसिया को
किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
मैं मिलन की प्यासी धारा
तुम रस के सागर रसिया हो
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया ।
राम एक देवता, पुजारी सारी दुनिया ॥
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
मुझे रास आ गया है,
तेरे दर पे सर झुकाना

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बड़े नसीब से होते हैं, तेरे दरबार के
बाबा नसीब से होते हैं, तेरे दरबार के
काहे रोए यहाँ तेरा कोई नहीं,
किसको सुनाए यहाँ कोई नही,
बाबा मेरे बाबा,
भोले मेरे बाबा...
मिश्री चढ़ाऊ पान चढ़ाऊ,
लगाऊं भोग मैं छप्पन थारे,
ला ला ला ला...
तेरी बंसुरिया दिल ले गयी,