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भक्त मनकोजी बोधला की मार्मिक कथा
भक्त मनकोजी बोधला की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त मनकोजी बोधला (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त मनकोजी बोधला]- भक्तमाल


ये दारागारपुत्राप्तान् प्राणान् वित्तमिमं परम् l

हित्वा मां शरणं याताः कथं तांस्त्यक्तुमुत्सहे ॥

(श्रीमद्भा0 9 4 65)

मनकोजी बोधला बरार प्रान्तके प्रसिद्ध नगर धामनगाँवके पटेल थे। इनकी स्त्रीका नाम था मामाताई। इनके यमाजी नामका एक पुत्र तथा भागीरथी नामकी एक कन्या थी । स्त्री पतिव्रता थी, पतिकी सेवामें लगी रहती थी। पुत्र सुशील था, विनयी था। माता-पिताकी आज्ञा मानकर चलनेवाला था। कन्या सुन्दरी तथा गुणवती थी। पूरा परिवार साधु-ब्राह्मणोंकी सेवा करनेवाला, सदाचारी और भगवान्का भक्त था । घरमें भरपूर धन था। कोठे अन्नसे भरे थे। गोशाला में बैल, गाय और भैंसोंकी पाँत बँधा करती थी। सदा अतिथियोंका सत्कार होता था।

एक बार देशमें अकाल पड़ गया। मनुष्य अन्न बिना और पशु चारे बिना मरने लगे। मनकोजी बोधलाने पत्नीसे कहा- 'देखो! आज भगवान् ही भूखे और दरिद्रके रूपमें हमसे पूजा चाहते हैं। घरमें जो अन्न धन है, वह उन्हींकी कृपाका प्रसाद है। भूखोंको अन्न, प्यासोंको जल, नंगोंको वस्त्र और रोगियोंको ओषधि देना ही भगवान्‌की सच्ची पूजा है। पर देखो, कहीं दानका अभिमान न आ जाय। कृपा करके ही भगवान् पूजा स्वीकार करते यह भाव बना रहे। नम्रतापूर्वक मीठी वाणीसे सबका सत्कार करते हुए ही पूजा अर्पण करनी चाहिये।' पतिकी आज्ञा माननेवाली निर्लोभ मामाताईने बड़ी प्रसन्नतासे यह आज्ञा स्वीकार की।

भूखोंको अन्न, नंगोंको वस्त्र और अनाथोंको अबाध आश्रय मिलने लगा। दूर-दूरसे सैकड़ों सहस्रों कंगाल, भूखे लोगोंकी भीड़ आने लगी। चीनीपर चींटियोंकी भाँति क्षुधार्तोकी भीड़ बढ़ती गयी। मनकोजी और मामाताई बड़े प्रेमसे सबका सत्कार करते थे, किंतु उनके पास धन तो था परिमित हो! अन्न समाप्त हो गया, वस्त्र बँट गये, सोना और रत्न बेंचकर जो मिला, वह भी बाँट दिया गया । घरमें चारा नहीं रहा तो पशु भी दान कर दिये गये। घरमें बरतनतक न रहे। धामनगाँव-जैसेनगरके पटेल मनकोजी बोधला अब स्त्रीके साथ दूसरोंके घर मजदूरी करके अपना और बच्चोंका पेट पालने लगे। इस त्यागमें वे बहुत प्रसन्न थे। भोगका आनन्द तो मादक होता है, दुर्गुणोंको जन्म देता है, क्षणिक होता है और उसका अन्त कष्ट, रोग, शत्रुता और नरकमें होता है; किंतु त्यागका आनन्द तो सच्चा आनन्द है। वह हृदयको निर्मल कर देता है। उससे समस्त सद्गुण जाग उठते हैं। वह जीवको भगवान्‌के चरणोंमें ले जाता है। इस त्यागके आनन्दसे मनकोजीका हृदय पूर्ण हो गया था। ये परिवारके साथ मजदूरी करते और अपने पदार्थोंसे रहित खाली मकानमें स्त्री-पुत्रके साथ भगवान् के नामका कीर्तन करते। संसारकी बाधाएँ भगवान्ने स्वयं दूर कर दी थीं उनकी ।

मनकोजी बोधलाका सदासे नियम था कि प्रत्येक एकादशीको पण्ढरपुर जाते थे। चन्द्रभागा स्नान करके भगवान् के दर्शन करते, रात्रि जागरण करते और द्वादशीको चन्द्रभागा के तटपर अपने सामने ब्राह्मणोंको भोजन कराके गरीबोंको अन्न-वस्त्र बाँटकर त्रयोदशीको लौट आते। एकादशी आनेवाली थी; किंतु अब तो उनके पास एक कौड़ी भी नहीं थी और मनकोजीको अपना नियम तो पूरा करना ही चाहिये। पतिव्रता पत्नीको चिन्तित होते देखकर उन्होंने समझा दिया कि चिन्ताका कोई कारण नहीं। मार्गके जंगलसे सूखी लकड़ियाँ चुनकर वे पण्ठरपुर बेच लेंगे और इससे काम चल जायगा। मार्गमें लकड़ियाँ एकत्र करके उनका गट्ठा लेकर वे पण्ढरपुर पहुँचे। लकड़ी बेचनेपर तीन पैसे मिले। चन्द्रभागामें स्नान करके उन पैसोंके फूल पत्ते लेकर श्रीपाण्डुरङ्गका उन्होंने पूजन किया और रात्रिजागरण किया।

एकादशीके उपवासके पश्चात् द्वादशीको सबेरे हो मनकोजी जंगलसे लकड़ियाँ से आये उन्हें बेचनेपर तीन पैसे मिले, उनका आटा लेकर चन्द्रभागाके किनारे ब्राह्मण भोजनकी इच्छासे ब्राह्मणका रास्ता देखने लगे। दोपहर हो गया, पर किसी ब्राह्मणने सूखा आटा लेना | स्वीकार नहीं किया। द्वादशीको पण्ढरपुरमें चन्द्रभागाकेतटपर जहाँ सैकड़ों धनी ब्राह्मणोंको भोजन कराके दक्षिणा देने एकत्र होते हैं, वहाँ एक दरिद्रका सूखा आटा कौन ले? न दाल, न साग, न घी और न दक्षिणा देनेको एक छदाम। बोधलाके नेत्र भर आये। वे रोते-रोते सोचने लगे- 'क्या आज मेरा नियम भंग होगा?"

दरिद्र भक्तकी प्रेमभरी भेंटका स्वाद तो शबरीके बेर, सुदामाके तन्दुल और विदुर-पत्नीके केलोंके छिलके खानेवाले पाण्डुरङ्ग ही जानते हैं। वे आज मनकोजीके आटेका स्वाद पानेको उत्सुक हो उठे। दरिद्र बूढ़े ब्राह्मणका वेष बनाये, लाठी टेकते आये और बोले-'अरे ओ भगत! मुझे बड़ी भूख लगी है। तेरे पास कुछ हो तो जल्दी दे मुझे।'

मनकोजीको तो जैसे वरदान मिला; परंतु यह सोचकर कि ब्राह्मणको स्थिति स्पष्ट बता देनी चाहिये, वे बोले-'महाराज! मेरे पास केवल सूखा आटा है और कुछ भी नहीं है।'

ये ब्राह्मण तो आये ही थे वह आटा लेने, बोले—' भाई मैं कहाँ चावल-दाल, घी-शक्कर माँगता हूँ। मुझे बहुत भूख लगी है। आटा दे जल्दी, बाटियाँ बनाकर खाऊँगा।' बोधलाने आटा दे दिया। वे चाहते थे कि ब्राह्मण उनके सामने भोजन बनाकर खायें, सदा सामने भोजन करानेका नियम था पर आज सूखा आटा देकर उनमें कुछ कहनेका साहस नहीं था। घट घटकी जाननेवाले वे ब्राह्मण देवता ही बोले- 'अब खड़ा खड़ा क्या देखता है। कुछ कण्डे माँग ला तो मैं यहीं बाटियाँ बना लूँ। भूखके मारे मुझसे कहीं जाया नहीं जायगा।'

मनकोजी बोधला दौड़कर यात्रियोंसे सूखे कण्डे माँग लाये, अनि ले आये। यज्ञभोक्ता सर्वेश्वर अपने हाथों भक्तका दिया आटा सानने बैठे। समस्त ऐश्वर्यकी अधीश्वरी भगवती महालक्ष्मी भी भक्तोंके ऐसे उपहारका एक कण पानेको ललचाया करती हैं। वे जानती हैं कि उनके स्वामी ऐसे मधुर पदार्थ पाकर उन्हें सर्वथा भूल जाते हैं। माँगकर आग्रहपूर्वक वे लेने न पहुँचें तो उन्हें एक कण भी नहीं मिलेगा। आज बोधलाके सूखे आटेका लालच उन्हें भी खींच लाया। वे रुक्मिणीजी बुढ़ियाब्राह्मणी बनकर ब्राह्मणके पास आय और बोलीं- 'मुझे छोड़कर यजमानका दिया अन्न आप क्या अकेले ही खाना चाहते हैं?' भगवान् मुसकरा दिये। उन वृद्धा मैयाने बाटियाँ बनानी प्रारम्भ कीं।

बोधलाको एक ही चिन्ता थी—'आटा तो एकके पेट भरने जितना ही नहीं था, दो कैसे भोजन करेंगे।' ब्राह्मण देवताने उन्हें भी भोजन करनेको कहा तो उन्होंने कह दिया- 'मैं तो बचा हुआ जूठन प्रसाद पा लूँगा।' जगन्नाथ पाण्डुरङ्ग और जगदम्बा रुक्मिणीजीने भरपेट भोजन किया। तृप्त होकर बोधलाके देखते-देखते ही वे अदृश्य हो गये। अब कहीं मनकोजी बोधलाको पता | लगा कि उनका आटा स्वीकार करने ब्राह्मणके वेषमें स्वयं विट्ठलदेव ही पधारे थे। वे भावगद्रद हो गये।

मनकोजी बोधला वहाँसे मन्दिरमें भगवान्‌ के दर्शन करने गये। उनको लगा कि आज पाण्डुरङ्ग साक्षात् सामने खड़े होकर मुसकरा रहे हैं। उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की' दयामय! आपकी कृपाको धन्य है। बड़े-बड़े धनियाँके नाना प्रकारके भोगोंको छोड़कर आप मुझ कंगालके सूखे
आटेपर रीझ गये। आपने मुझे कृतार्थ कर दिया।' भगवान्ने कहा- 'भाई! मैं तो सब कहीं जाना चाहता हूँ, पर बड़ी-बड़ी नारो मुझे पूछता ही कौन है।" मनकोजीने कहा- 'भगवन्! ऐसा कैसे हो सकता है।' भगवान् बोले-'देखो, अमुक धनी के यहाँ मिठाइयाँ बन रही हैं। ब्राह्मणोंको निमन्त्रण भेज दिया गया है। एक हजार ब्राह्मण कल वे जिमायेंगे। मैं भी वहाँ जाऊँगा। तुम द्वारपर रहना।'

दूसरे दिन बोधला उन धनीके द्वारपर पहुँच गये। एक हजार पत्तलें और आसन बिछ गये थे। मुनीमजी निमन्त्रित ब्राह्मणोंकी सूचीमें नाम देख-देखकर ब्राह्मणों को बैठा रहे थे स्वयं बाबूजी खड़े होकर देख रहे थे कि एक भी फालतू आदमी न आ जाय। इतनेमें वे ही बूढ़े ब्राह्मण लाठी टेकते, कमरमें टाटका टुकड़ा लपेटे आये और सेठजीसे कहने लगे-'मैं बहुत भूखा हूँ।'

बाबूजीने नाम पूछा, सूची देखी और कहा-'आपको तो निमन्त्रण नहीं दिया गया। आप भोजन नहीं कर सकते।'वृद्ध ब्राह्मणने कहा-'आप एक हजार ब्राह्मण जिमा रहे हैं, मैं बूढ़ा हूँ, भूखा हूँ; एक अधिक जिमा देंगे तोकोई हानि न होगी।' बाबूजी बिगड़े- 'हम भिखमंगोंको खिलाने नहीं आये हैं। चले जाओ, यहाँ कुछ नहीं मिलेगा।'

ब्राह्मणदेवता भी पूरे हठी निकले। वे एक पत्तलपर बैठते हुए बोले- 'मैं तो खाकर हो जाऊँगा।"

अब बाबूजीका पारा चढ़ गया। वे गरजते हुए बोले 'इस बदमाशको पकड़कर निकाल दो! बापका घर बना लिया है कि जबरदस्ती बैठ गया। ब्राह्मणने प्रार्थना की तो क्रोध और भड़क गया। बाबूजीने अपने नौकरोंसे धक्का दिलाकर द्वारसे बाहर निकलवा दिया उन्हें ।

बोधला यह सब दूर खड़े देख रहे थे। भगवान्ने पास आकर उनसे कहा-'देख लिया न? हम जैसोंको तो यहाँ धक्के हो मिलते हैं। अब इस अभिमानका फल भी देखते जाओ।' बड़े जोरकी आँधी आयो, पत्तलें तो क्या छप्परतक उड़ गये। मिठाइयाँ नष्ट हो गयीं। ब्राह्मण सब प्राण लेकर भाग गये। भगवान्ने कहा- 'बोधला! मैं तुम्हारे जैसे भक्तों का रूखा सूखा अन्न तो बड़े प्रेमसे पा लेता हूँ, पर दम्भियोंके पक्वान्न नहीं ग्रहण करता।'

भगवान्‌को प्रणाम करके बोधला अपने ग्रामको ओर चले। उन्होंने एकादशीका व्रत किया, द्वादशी भी व्रत ही बनी रही और आज त्रयोदशी हो गयी। भूख-प्यास से अत्यन्त व्याकुल हो गये वे भगवान्ने अपने भक्तको सेवा करनेके लिये योजना बनायी। बोधलाजीने भार्ग एक सुन्दर बगीचा देखा। उन्हें बड़ा आक्षर्य हुआ कि यह बगीचा तो पहले कभी देखा नहीं था। भूख लगी थी, प्याससे मुख सूख रहा था, विश्राम करनेकी इच्छा थी मनने मान लिया था कि मार्ग भूलकर कहाँ दूसरी ओर आ निकले हैं किंतु दूसरेके बगीचेमें बिना पूछे जायें कैसे? इतनेमें इस समस्त सृष्टिरूपी बगीचेको रक्षा करनेवाली रुक्मिणी मैया मालिनके वेषमें आर्यों और कहने लगी- भगतजी! आप थके जान पड़ते हैं। आप पण्ढरपुरके यात्री हैं, अतः आपके सत्कारका पुण्य हमें भी मिलना चाहिये। बगीचेके स्वामी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे बैलोंको सँभाले हैं, नहीं तो स्वयं आते।अपनी चरण रजसे हमारी कुटिया आप पवित्र करें।'

मनकोजी बगीचे में गये। माली बने भगवान्ने उन्हें पैर धोनेको जल दिया। फल ले आये उनके लिये। स्वयं रुक्मिणीजीने छील बनाकर फलोंको बोधलाके सम्मुख रखा बोधलाने मन-ही-मन पाण्डुरङ्गको भोग लगाकर प्रसाद पाया। जल पिया। आजके फलोंका स्वाद फिर संसारके पदार्थों में कहाँसे आये। बोधलाकी सब थकावट, सारी भूख-प्यास दूर हो गयी। वे आनन्दमग्न हो गये। विश्राम करके, मालीसे विदा होकर जैसे ही वे बगीचेसे निकले, वैसे ही उनके सामने ही पूरा बगीचा अदृश्य हो गया। अब मनकोजी समझ गये कि उनके प्रभुने हो | उनके लिये यह व्यवस्था की थी। वहीं भूमिमें मस्तक रखकर अपने कृपासिन्धु विट्ठलको प्रणाम किया उन्होंने। वहाँसे भगवन्नाम कीर्तन करते घर आये।

इस वर्ष वर्षा अच्छी हुई। मनकोजी बोधलाके खेतमें खूब जुआर लगी है। मनकोजी खेतकी रखवाली करने बैठे हैं। खेतमें चिड़ियाँ आयीं। उन्हें उड़ाने उठते ही मनकोजीके चित्राने कहा--'जो भगवान् अनके एक दानेसे इतने दाने बना देते हैं, उन्होंने ही तो चिड़ियोंको भी भेजा है। मैं क्यों इनको खानेसे रोकूँ।' पक्षी मनमाना चुराकर पेट भरनेपर उड़ गये। मनकोजीको स्त्री गामाताई जब खेतपर आयीं, तब उन्हें खेत कुछ उजड़ा जान पड़ा। उन्होंने समझा कि उनके उदार स्वामीने सिट्टे तोड़कर भिखारियोंको दिये हैं। बराबर दरिद्रताके क्लेश भोगने से मामाताई कुछ व्याकुल सी हो गयी थीं। उन्होंने कहा- 'यदि आप इसी प्रकार भिखारियोंको खेत लुटा देंगे तो हमारे बच्चे क्या खायेंगे? अब आपको पण्डरीनाथको शपथ है जो अपने हाथसे एक भी सिट्टा तोड़कर किसीको दें!'

मामाताई तो चली गयी थीं घर और बोधला खेतकी रक्षापर बैठे थे। पण्ढरपुरसे साधु-यात्रियोंका एक दल उधरसे जा रहा था। वे लोग भूखे थे। उन्होंने दो-चार सिट्टे माँगे बोधलाने कहा- 'मेरी स्त्री मुझे शपथ दिलवा गयी है, इसलिये मैं अपने हाथसे तो सिट्टे तोड़कर दूंगा नहीं आपलोग स्वयं भले तोड़ लें।' सैकड़ों साधु थे खुली आज्ञा पाकर खेतमें घुस गये।सारा खेत साफ हो गया। बोधला निश्चिन्त मनसे भगवान्का गुण गाये बैठे रहे। स्त्री-पुत्र जब खेतपर आये, तब खेतकी दशा देखकर रो पड़े। परंतु थे वे भी भगवान्‌के भक्त। यह जानकर कि पण्ढरीनाथके यात्री उनका ज्वार खा गये, वे सन्तुष्ट हो गये।

बोधलाके खेत उजड़ने की बात गाँवमें फैलते ही लोगोंने नाना प्रकारसे आलोचना करना प्रारम्भ कर दिया। जो दुर्जन लोग सत्पुरुषोंको सङ्कटमें पड़ा देखकर सन्तुष्ट होते हैं, वे बोधलाको कष्ट देनेका षड्यन्त्र करने लगे। उन्होंने लगान अफसरसे कहा- 'पहले बोधलासे लगान वसूल किया जाय। जबतक वह लगान नहीं देगा, हमलोग भी नहीं देंगे।' अफसरने हवलदारको रुपये माँगने बोधलाके घर भेजा। बोधलाकेघरमें था ही क्या जो देते। गाँवकी नगाउ साहुकारिनमे भी व्याजपर रुपये देना स्वीकार नहीं किया। विवश होकर बोधला रुपये उधार लेने रलेरास नामक पासके गाँवमें गये। इधर दुष्टोंने हल्ला कर दिया कि मनकोजी भाग गया। फल यह हुआ कि हवलदार कुर्की लेकर आया। मामाताईको घरसे निकाल कर उसने परमें ताला बंद कर दिया और उनकी गाय-बकरियाँ भी कुर्क कर लीं।

अब भक्तवत्सल प्रभुने धामनगाँवके विठ्या महारका रूप धारण किया। भक्तोंके योग-क्षेमका वहन करनेकीउन्होंने प्रतिज्ञा की है । लगान-अफसरके पास जाकर मनकोजी बोधलाका पूरा रुपया देकर उन्होंने रसीद कटवा ली। घरका ताला खुल गया। कुर्की उठ गयी। गाँववालोंको भी अब लाचार होकर रुपये भरने पड़े ! उधर मनकोजी बोधलाको ब्याजपर रुपये मिल गये थे। वे रुपये लेकर अफसरके पास पहुँचे और क्षमा-प्रार्थना करने लगे, तब अफसरने कहा-'तुम्हारे रुपये तो विठ्या महारने भर दिये हैं। तुम्हारे घरवालोंने रुपये भेजे होंगे।' बोधला घर आये। घरपर तो फूटी कौड़ी नहीं थी, लगान कौन कैसे भेजता ! घरवाले तो जानते थे कि मनकोजीने रुपये भरे हैं, इसीसे कुर्की उठी है। बेचारा धामनगाँवका विठ्या महार- उसे कुछ पता नहीं था। उसके पास भला इतने रुपये कहाँसे आते। वह तो मनकोजीके पैरों पड़ रहा था कि मुझे तो कुछ भी पता नहीं।

अब मनकोजी समझ गये कि उनके लिये पाण्डुरंग विठ्या महार बने। भक्तके लिये वे करुणासागर कब क्या नहीं बन सकते। गाँवके कुछ लोगोंने आश्चर्यसे उसी समय खेतकी ओरसे दौड़ते हुए आकर समाचार दिया 'मनकोजीका खेत बड़े-बड़े मोटे सिट्टोंसे लहलहा रहा है। इतना जुआर तो किसी खेतमें कभी नहीं देखने सुनने में आया।'



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ye daaraagaaraputraaptaan praanaan vittamiman param l

hitva maan sharanan yaataah kathan taanstyaktumutsahe ..

(shreemadbhaa0 9 4 65)

manakojee bodhala baraar praantake prasiddh nagar dhaamanagaanvake patel the. inakee streeka naam tha maamaataaee. inake yamaajee naamaka ek putr tatha bhaageerathee naamakee ek kanya thee . stree pativrata thee, patikee sevaamen lagee rahatee thee. putr susheel tha, vinayee thaa. maataa-pitaakee aajna maanakar chalanevaala thaa. kanya sundaree tatha gunavatee thee. poora parivaar saadhu-braahmanonkee seva karanevaala, sadaachaaree aur bhagavaanka bhakt tha . gharamen bharapoor dhan thaa. kothe annase bhare the. goshaala men bail, gaay aur bhainsonkee paant bandha karatee thee. sada atithiyonka satkaar hota thaa.

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bodhalaako ek hee chinta thee—'aata to ekake pet bharane jitana hee naheen tha, do kaise bhojan karenge.' braahman devataane unhen bhee bhojan karaneko kaha to unhonne kah diyaa- 'main to bacha hua joothan prasaad pa loongaa.' jagannaath paandurang aur jagadamba rukmineejeene bharapet bhojan kiyaa. tript hokar bodhalaake dekhate-dekhate hee ve adrishy ho gaye. ab kaheen manakojee bodhalaako pata | laga ki unaka aata sveekaar karane braahmanake veshamen svayan vitthaladev hee padhaare the. ve bhaavagadrad ho gaye.

manakojee bodhala vahaanse mandiramen bhagavaan‌ ke darshan karane gaye. unako laga ki aaj paandurang saakshaat saamane khada़e hokar musakara rahe hain. unhonne haath joda़kar praarthana kee' dayaamaya! aapakee kripaako dhany hai. bada़e-bada़e dhaniyaanke naana prakaarake bhogonko chhoda़kar aap mujh kangaalake sookhe
aatepar reejh gaye. aapane mujhe kritaarth kar diyaa.' bhagavaanne kahaa- 'bhaaee! main to sab kaheen jaana chaahata hoon, par bada़ee-bada़ee naaro mujhe poochhata hee kaun hai." manakojeene kahaa- 'bhagavan! aisa kaise ho sakata hai.' bhagavaan bole-'dekho, amuk dhanee ke yahaan mithaaiyaan ban rahee hain. braahmanonko nimantran bhej diya gaya hai. ek hajaar braahman kal ve jimaayenge. main bhee vahaan jaaoongaa. tum dvaarapar rahanaa.'

doosare din bodhala un dhaneeke dvaarapar pahunch gaye. ek hajaar pattalen aur aasan bichh gaye the. muneemajee nimantrit braahmanonkee soocheemen naam dekha-dekhakar braahmanon ko baitha rahe the svayan baaboojee khada़e hokar dekh rahe the ki ek bhee phaalatoo aadamee n a jaaya. itanemen ve hee boodha़e braahman laathee tekate, kamaramen taataka tukada़a lapete aaye aur sethajeese kahane lage-'main bahut bhookha hoon.'

baaboojeene naam poochha, soochee dekhee aur kahaa-'aapako to nimantran naheen diya gayaa. aap bhojan naheen kar sakate.'vriddh braahmanane kahaa-'aap ek hajaar braahman jima rahe hain, main boodha़a hoon, bhookha hoon; ek adhik jima denge tokoee haani n hogee.' baaboojee bigada़e- 'ham bhikhamangonko khilaane naheen aaye hain. chale jaao, yahaan kuchh naheen milegaa.'

braahmanadevata bhee poore hathee nikale. ve ek pattalapar baithate hue bole- 'main to khaakar ho jaaoongaa."

ab baaboojeeka paara chadha़ gayaa. ve garajate hue bole 'is badamaashako pakada़kar nikaal do! baapaka ghar bana liya hai ki jabaradastee baith gayaa. braahmanane praarthana kee to krodh aur bhada़k gayaa. baaboojeene apane naukaronse dhakka dilaakar dvaarase baahar nikalava diya unhen .

bodhala yah sab door khada़e dekh rahe the. bhagavaanne paas aakar unase kahaa-'dekh liya na? ham jaisonko to yahaan dhakke ho milate hain. ab is abhimaanaka phal bhee dekhate jaao.' bada़e jorakee aandhee aayo, pattalen to kya chhapparatak uda़ gaye. mithaaiyaan nasht ho gayeen. braahman sab praan lekar bhaag gaye. bhagavaanne kahaa- 'bodhalaa! main tumhaare jaise bhakton ka rookha sookha ann to bada़e premase pa leta hoon, par dambhiyonke pakvaann naheen grahan karataa.'

bhagavaan‌ko pranaam karake bodhala apane graamako or chale. unhonne ekaadasheeka vrat kiya, dvaadashee bhee vrat hee banee rahee aur aaj trayodashee ho gayee. bhookha-pyaas se atyant vyaakul ho gaye ve bhagavaanne apane bhaktako seva karaneke liye yojana banaayee. bodhalaajeene bhaarg ek sundar bageecha dekhaa. unhen bada़a aakshary hua ki yah bageecha to pahale kabhee dekha naheen thaa. bhookh lagee thee, pyaasase mukh sookh raha tha, vishraam karanekee ichchha thee manane maan liya tha ki maarg bhoolakar kahaan doosaree or a nikale hain kintu doosareke bageechemen bina poochhe jaayen kaise? itanemen is samast srishtiroopee bageecheko raksha karanevaalee rukminee maiya maalinake veshamen aaryon aur kahane lagee- bhagatajee! aap thake jaan pada़te hain. aap pandharapurake yaatree hain, atah aapake satkaaraka puny hamen bhee milana chaahiye. bageecheke svaamee aapakee prateeksha kar rahe hain. ve bailonko sanbhaale hain, naheen to svayan aate.apanee charan rajase hamaaree kutiya aap pavitr karen.'

manakojee bageeche men gaye. maalee bane bhagavaanne unhen pair dhoneko jal diyaa. phal le aaye unake liye. svayan rukmineejeene chheel banaakar phalonko bodhalaake sammukh rakha bodhalaane mana-hee-man paandurangako bhog lagaakar prasaad paayaa. jal piyaa. aajake phalonka svaad phir sansaarake padaarthon men kahaanse aaye. bodhalaakee sab thakaavat, saaree bhookha-pyaas door ho gayee. ve aanandamagn ho gaye. vishraam karake, maaleese vida hokar jaise hee ve bageechese nikale, vaise hee unake saamane hee poora bageecha adrishy ho gayaa. ab manakojee samajh gaye ki unake prabhune ho | unake liye yah vyavastha kee thee. vaheen bhoomimen mastak rakhakar apane kripaasindhu vitthalako pranaam kiya unhonne. vahaanse bhagavannaam keertan karate ghar aaye.

is varsh varsha achchhee huee. manakojee bodhalaake khetamen khoob juaar lagee hai. manakojee khetakee rakhavaalee karane baithe hain. khetamen chida़iyaan aayeen. unhen uda़aane uthate hee manakojeeke chitraane kahaa--'jo bhagavaan anake ek daanese itane daane bana dete hain, unhonne hee to chida़iyonko bhee bheja hai. main kyon inako khaanese rokoon.' pakshee manamaana churaakar pet bharanepar uda़ gaye. manakojeeko stree gaamaataaee jab khetapar aayeen, tab unhen khet kuchh ujada़a jaan paड़aa. unhonne samajha ki unake udaar svaameene sitte toda़kar bhikhaariyonko diye hain. baraabar daridrataake klesh bhogane se maamaataaee kuchh vyaakul see ho gayee theen. unhonne kahaa- 'yadi aap isee prakaar bhikhaariyonko khet luta denge to hamaare bachche kya khaayenge? ab aapako pandareenaathako shapath hai jo apane haathase ek bhee sitta toda़kar kiseeko den!'

maamaataaee to chalee gayee theen ghar aur bodhala khetakee rakshaapar baithe the. pandharapurase saadhu-yaatriyonka ek dal udharase ja raha thaa. ve log bhookhe the. unhonne do-chaar sitte maange bodhalaane kahaa- 'meree stree mujhe shapath dilava gayee hai, isaliye main apane haathase to sitte toड़kar doonga naheen aapalog svayan bhale toda़ len.' saikada़on saadhu the khulee aajna paakar khetamen ghus gaye.saara khet saaph ho gayaa. bodhala nishchint manase bhagavaanka gun gaaye baithe rahe. stree-putr jab khetapar aaye, tab khetakee dasha dekhakar ro pada़e. parantu the ve bhee bhagavaan‌ke bhakta. yah jaanakar ki pandhareenaathake yaatree unaka jvaar kha gaye, ve santusht ho gaye.

bodhalaake khet ujada़ne kee baat gaanvamen phailate hee logonne naana prakaarase aalochana karana praarambh kar diyaa. jo durjan log satpurushonko sankatamen paड़a dekhakar santusht hote hain, ve bodhalaako kasht deneka shadyantr karane lage. unhonne lagaan aphasarase kahaa- 'pahale bodhalaase lagaan vasool kiya jaaya. jabatak vah lagaan naheen dega, hamalog bhee naheen denge.' aphasarane havaladaarako rupaye maangane bodhalaake ghar bhejaa. bodhalaakegharamen tha hee kya jo dete. gaanvakee nagaau saahukaariname bhee vyaajapar rupaye dena sveekaar naheen kiyaa. vivash hokar bodhala rupaye udhaar lene raleraas naamak paasake gaanvamen gaye. idhar dushtonne halla kar diya ki manakojee bhaag gayaa. phal yah hua ki havaladaar kurkee lekar aayaa. maamaataaeeko gharase nikaal kar usane paramen taala band kar diya aur unakee gaaya-bakariyaan bhee kurk kar leen.

ab bhaktavatsal prabhune dhaamanagaanvake vithya mahaaraka roop dhaaran kiyaa. bhaktonke yoga-kshemaka vahan karanekeeunhonne pratijna kee hai . lagaana-aphasarake paas jaakar manakojee bodhalaaka poora rupaya dekar unhonne raseed katava lee. gharaka taala khul gayaa. kurkee uth gayee. gaanvavaalonko bhee ab laachaar hokar rupaye bharane pada़e ! udhar manakojee bodhalaako byaajapar rupaye mil gaye the. ve rupaye lekar aphasarake paas pahunche aur kshamaa-praarthana karane lage, tab aphasarane kahaa-'tumhaare rupaye to vithya mahaarane bhar diye hain. tumhaare gharavaalonne rupaye bheje honge.' bodhala ghar aaye. gharapar to phootee kauda़ee naheen thee, lagaan kaun kaise bhejata ! gharavaale to jaanate the ki manakojeene rupaye bhare hain, iseese kurkee uthee hai. bechaara dhaamanagaanvaka vithya mahaara- use kuchh pata naheen thaa. usake paas bhala itane rupaye kahaanse aate. vah to manakojeeke pairon pada़ raha tha ki mujhe to kuchh bhee pata naheen.

ab manakojee samajh gaye ki unake liye paandurang vithya mahaar bane. bhaktake liye ve karunaasaagar kab kya naheen ban sakate. gaanvake kuchh logonne aashcharyase usee samay khetakee orase dauda़te hue aakar samaachaar diya 'manakojeeka khet bada़e-bada़e mote sittonse lahalaha raha hai. itana juaar to kisee khetamen kabhee naheen dekhane sunane men aayaa.'

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कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
अपनी वाणी में अमृत घोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
मेरी करुणामयी सरकार पता नहीं क्या दे
क्या दे दे भई, क्या दे दे
नी मैं दूध काहे नाल रिडका चाटी चो
लै गया नन्द किशोर लै गया,
ज़री की पगड़ी बाँधे, सुंदर आँखों वाला,
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए।
जुबा पे राधा राधा राधा नाम हो जाए॥
एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
पारवती भी मना कर ना माने त्रिपुरारी,
बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया।
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
कारे से लाल बनाए गयी रे,
गोरी बरसाने वारी
शिव समा रहे मुझमें
और मैं शून्य हो रहा हूँ
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
ऐसी होली तोहे खिलाऊँ
दूध छटी को याद दिलाऊँ
मेरा अवगुण भरा शरीर, कहो ना कैसे
कैसे तारोगे प्रभु जी मेरो, प्रभु जी
वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
मैं मिलन की प्यासी धारा
तुम रस के सागर रसिया हो
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
यह मेरी अर्जी है,
मैं वैसी बन जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है
कोई कहे गोविंदा कोई गोपाला,
मैं तो कहूँ सांवरिया बांसुरी वाला ।
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
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इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
सारी दुनियां है दीवानी, राधा रानी आप
कौन है, जिस पर नहीं है, मेहरबानी आप की
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किशोरी तेरे चरणन में, महारानी तेरे

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