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गंगासम्बन्धी मेरी कृपानुभूति

आजसे एक दशक पूर्वकी घटना है। यह कोई कहानी नहीं, बल्कि स्वयंके जीवनमें घटी सत्य घटना है। घटनाका वर्णन करना हमारा अभीष्ट नहीं, अभीष्ट तो गंगाजी से सम्बन्धित वह अनुभूति है एवं उनकी महत्ताका जो यत्किंचित् भान हुआ, उसका वर्णन है।

घटना रात्रिके लगभग १२ बजेकी है। बाह्य कक्षमें हम पति, पत्नी एवं छोटा बेटा सोये थे। तभी एकाएक बड़ा बेटा अन्दरसे आया और इतना ही कह पाया कि कोई चीज बाहरसे आयी और पंखेसे टपककर मेरे अन्दर घुस गयी। मेरे पाँव टूट रहे हैं, दम निकल रहा है। कहते कहते गिर गया, आवाज बन्द हो गयी। हम तीनों प्राणी जग गये और बुरी तरह घबरा गये कि इस मध्य रात्रिके समय करें तो करें क्या? किसको बुलायें? कहाँ जायँ ? डॉक्टरके पास जायँ या क्या करें?

ईश्वरीय प्रेरणासे मैं पूजाघरमें गया और वहाँ रखा गंगाजल लाया । मन्त्र स्मरण नहीं, कौन-सा पढ़ा था। बेटेके ऊपर छींटे लगाये। उल्लेखनीय है कि बेटा सोनेसे पहले ठाकुरजीकी स्तुति करके ही सोता है। छींटे लगते ही उसके ऊपर तीव्र आवेश आया और आदेश मिला कि तुम सभी बाह्य कक्षमें नहीं, अन्दर जहाँ पूजागृह है, वहाँ जाकर लेटो। बेटेके शरीरमें अब कुछ जान आ चुकी थी, इसी मध्य एक घटना और घटी। मुख्य द्वारपर दो बार खटका हुआ, जिसे सभीने स्पष्ट सुना था। हम बाहर देखने जाने लगे। पुनः बेटेको आवेश आया और कहा कि कोई भी रात्रिभर देहलीसे बाहर नहीं जायगा। नींद रात्रिभरकिसीको नहीं आयी, जैसे-तैसे रात्रि काटी गयी। स्वाभाविक है, प्रातः होते ही इस घटनाकी चर्चा परिवारीजनोंमें की गयी। किसीने कुछ, किसीने कुछ सलाहदी। डॉक्टरको दिखाया, उन्होंने चिकित्सकीय परीक्षणमें सब कुछ सामान्य बताया। बहुत ठोकरें खायीं, पैसे भी खर्च किये, पर कोई तथ्य हाथ नहीं आया, बस एक ही बात आती थी कि उस रात्रि बेटेपर मारण-प्रयोग किया गया था। कुछ आसुरी शक्तियोंको घरपर भेजा गया था। एक घरमें प्रवेश कर गयी, जिसने बेटेपर आक्रमण किया, दो बाहर थीं, जिससे दरवाजा खटका। यदि कोई जाता तो उसकी मौत हो सकती थी

इस घटना के समय स्वयंका भी स्वास्थ्य खराब चल रहा था और कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता था कि शायद ये शरीर अब नहीं रहेगा। समय व्यतीत हुआ। कुछ शुभ चिन्तकोंने कहा कि कुछ महीने गंगास्नान कर आओ। हमने प्रतिमाह अमावस्याको गंगा स्नानहेतु जाना प्रारम्भ किया।
तबसे आजतक प्रतिमाह गंगाजी जाते हैं, अत्यन्त आनन्द आता है। कोई कामना नहीं है। परिवारमें सब ठीक है। हम भी स्वस्थ हैं, बेटा भी ठीक है। यही हमारी अनुभूति है। जो कुछ देखा, वह कितना सत्य है- यह तो हम नहीं कह सकते, किंतु इतना अवश्य कह सकते हैं कि रोग एवं दुष्ट आत्माओंसे ग्रसित बहुत-से लोगोंको भी गंगामाँकी कृपासे मुक्त होते देखा है। ऐसे लोग भी हैं, जो प्रतिमाह हजारों कि०मी० दूरसे स्नान करने आते हैं और कहते हैं कि हमें कुछ मिले अथवा ना मिले, आत्मशान्ति अवश्य मिलती है, जैसे- कोई बालक कितने ही कष्टमें क्यों न हो, माँकी गोदमें आकर कोमल हाथोंका स्पर्श प्राप्त करते ही कष्टोंसे मुक्तिका अनुभव करता है, ठीक इसी प्रकारकी मेरी अनुभूति है। गंगामाँ सबका कल्याण करें। यही हमारी प्रार्थना है।

[ काणि डॉ० श्रीराधेश्यामजी अग्रवाल ]



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gangaasambandhee meree kripaanubhooti

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ghatana raatrike lagabhag 12 bajekee hai. baahy kakshamen ham pati, patnee evan chhota beta soye the. tabhee ekaaek bada़a beta andarase aaya aur itana hee kah paaya ki koee cheej baaharase aayee aur pankhese tapakakar mere andar ghus gayee. mere paanv toot rahe hain, dam nikal raha hai. kahate kahate gir gaya, aavaaj band ho gayee. ham teenon praanee jag gaye aur buree tarah ghabara gaye ki is madhy raatrike samay karen to karen kyaa? kisako bulaayen? kahaan jaayan ? daॉktarake paas jaayan ya kya karen?

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[ kaani daॉ0 shreeraadheshyaamajee agravaal ]

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