(१) प्रभुकृपासे मरणासन्न माँकी इच्छापूर्ति
पुरानी बात है-कलकत्ते में सर कैलासचन्द्र वसु प्रसिद्ध डॉक्टर हो गये हैं। उनकी माता बीमार थीं। एक दिन श्रीवसु महोदयने देखा-माताकी बीमारी बढ़ गयी है, कब प्राण चले जायें, कुछ पता नहीं। रात्रिका समय था। कैलास बाबूने बड़ी नम्रताके साथ माताजीसे पूछा- 'मी तुम्हारे मनमें किसी चीजकी इच्छा हो तो बताओ, मैं उसे पूरी कर दूँ।' माता कुछ देर चुप रहकर बोलीं- 'बेटा! उस दिन मैंने बम्बईके अंजीर खाये थे मेरी इच्छा है अंजीर मिल जायें तो मैं खा लूँ।' उन दिनों कलकत्तेके बाजारमें हरे अंजीर नहीं मिलते थे। बम्बईसे मँगाने में समय अपेक्षित था। हवाई जहाज थे नहीं। रेलके मार्ग से भी आजकलकी अपेक्षा अधिक समय लगता था। कैलास बाबू बड़े दुखी हो गये-भने अन्तिम समयमें एक चीज माँगी और मैं माँकी उस माँगको पूरी नहीं कर सका, इससे बढ़कर मेरे लिये दुःखकी बात और क्या होगी ? पर कुछ भी उपाय नहीं सूझा। रुपयोंसे मिलनेवाली चीज होती तो कोई बात ही नहीं थी । कलकत्ते या बंगालमें कहीं अंजीर होते नहीं, बाजारमें मिलते नहीं। बम्बई से आनेमें तीन दिन लगते हैं। टेलीफोन भी नहीं, जो सूचना दे दें। तबतक पता नहीं-माताजी जीवित रहें या नहीं, अथवा जीवित भी रहें तो खा सकें या नहीं। कैलास बाबू निराश होकर पड़ गये और मन-ही-मन रोते हुए कहने लगे— 'हे भगवन्! क्या मैं इतना अभागा हूँ कि माँकी अन्तिम चाहको पूरी होते नहीं देखूंगा।' रातके लगभग ग्यारह बजे किसीने दरवाजा खोलनेके लिये बाहरसे आवाज दी। डॉक्टर वसुनेसमझा, किसी रोगीके यहाँसे बुलावा आया होगा। उनका चित्त बहुत खिन्न था। उन्होंने कह दिया 'इस समय मैं नहीं जा सकूँगा।' बाहर खड़े आदमीने कहा- 'मैं बुलाने नहीं आया हूँ, एक चीज लेकर आया हूँ- दरवाजा खोलिये।' दरवाजा खोला गया। सुन्दर टोकरी हाथमें लिये एक दरबानने भीतर आकर कहा- 'डॉक्टर साहब! हमारे बाबूजी अभी बम्बईसे आये हैं, वे सबेरे ही रंगून चले जायेंगे, उन्होंने यह अंजीरकी टोकरी भेजी है, वे बम्बईसे लाये हैं। मुझसे कहा है कि मैं सबेरे चला जाऊँगा अभी अंजीर दे आओ। इसीलिये मैं अभी लेकर आ गया। कष्टके लिये क्षमा कीजियेगा।'
कैलास बाबू अंजीरका नाम सुनते ही उछल पड़े। उन्हें उस समय कितना और कैसा अभूतपूर्व आनन्द हुआ, इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता। उनकी आँखोंमें हर्षके आँसू आ गये, शरीरमें आनन्दसे रोमांच हो आया। अंजीरकी टोकरीको लेकर वे माताजी के पास पहुंचे और बोले-'मी लोभगवान्ने अंजीर तुम्हारे लिये भेजे हैं।' उस समय माताका प्रसन्नमुख देखकर कैलास बाबू इतने प्रसन्न हुए, मानो उन्हें जीवनका परम दुर्लभ महान् फल प्राप्त हो गया हो।
बात यह थी, एक गुजराती सज्जन, जिनका फार्म कलकते और रंगूनमें भी था, डॉक्टर कैलास बाबूके बड़े प्रेमी थे। वे जब-जब बम्बईसे आते, तब अंजीर लाया करते थे। भगवान्के मंगल-विधानका आश्चर्य देखिये, कैलास बाबूकी मरणासन्न माता आज रातको अंजीर चाहती हैं और उनकी चाहको पूर्ण करनेकी व्यवस्था बम्बई में चार दिन पहले ही हो जाती है, ठीक समयपर अंजीर कलकत्ते उनके पास आ पहुँचते हैं। एक दिन पीछे भी नहीं, पहले भी नहीं। *(२) भगवान्ने भोजन-व्यवस्था की पुरानी बात है। स्वर्गीय भाई कृष्णकान्तजी मालवीय नैनी जेलमें थे, उनको बस्ती स्थानान्तरित किया गया। श्रीकृष्णकान्तजी मुझे अपना भाई मानते थे। उनकी मेरे प्रति अकृत्रिम प्रीति तथा परम आत्मीयता थी। इससे उन्होंने गीताप्रेसके पतेसे मेरे नाम तार दिया कि 'हमलोग कई आदमी रेलसे गोरखपुर होकर बस्ती जा रहे हैं-गोरखपुर स्टेशनपर भोजनकी व्यवस्था कीजिये।' गोरखपुरमें उन दिनों संध्याको लगभग पाँच बजे ट्रेन पहुँचती थी। तार गीताप्रेस में आया। उन लोगोंने कुछ भी व्यवस्था न करके तार मेरे पास एक साइकिलवाले आदमीके हाथ भेज दिया, मैं प्रेससे लगभग साढ़े तीन मील दूर ऐसी जगह रहता था, जहाँ उन दिनों इक्के, ताँगे कुछ भी नहीं मिलते थे। न मोटर थी, न टेलीफोन। वह आदमी लगभग चार बजे मेरे पास पहुँचा घरमें भोजनका सामान भी बनाया तैयार नहीं था। प्रेसके लोगोंपर मुझे झुंझलाहट हुई कि उन्होंने व्यवस्था न करके तार मेरे पास क्यों भेज दिया। स्टेशन यहाँसे तीन मील दूर है, सवारी पास नहीं, सामान तैयार नहीं। कुल १५ २० मिनटका समय ट्रेन आनेमें है। मेरे मनमें बड़ा खेद था - ' भाई कृष्णकान्तजीको भोजन नहीं मिलेगा, वे क्या समझेंगे।' – मैंने भगवान्को स्मरण किया।
इतनेमें देखता हूँ तो दो इक्के आकर बगीचे में खड़े हो गये। साथमें एक सज्जन थे। उन्होंने कहा 'बाबू बालमुकुन्दजीके यहाँ प्रसाद था। उन्होंने आपके लिये भेजा है।' मैं जिस बगीचेमें रहता था, वह उन्हींका था, वे मेरे प्रति बड़ा स्नेह रखते थे। मैंने देखा-कई तरहकी मिठाई, पूरी, नमकीन, साग, अचार, सूखा मेवा, फल पर्याप्त मात्रामें हैं। मेरी प्रसन्नताका पार नहीं। मैंने मन-ही-मन कहा- भगवान्ने कैसीसुनी। उन्हीं इक्कोंको पूरे सामानसहित एक आदमी साथ देकर मैंने स्टेशन भेज दिया कह दिया जल्दी ले जाना, कहीं गाड़ी छूट न जाय। गाड़ी दस-पन्द्रह मिनट लेट आयी। सामान पहुँच गया। वे लोग एक दर्जन से ज्यादा आदमी थे। सबने भरपेट भोजन किया। मेरा आदमी लौटकर आया, तबतक मुझे चिन्ता रही कहीं गाड़ी छूट तो नहीं गयी होगी। आदमीने लौटकर सब समाचार सुनाया तो मेरे हृदय में भगवान् के मंगल-विधान के प्रति महान् विश्वास हो गया। कैसा सुन्दर विधान है? मुझे जरूरत पौने पाँच बजे हुई, तार अभी मिला। परंतु उस जरूरतको पूरी करने की तैयारी कहीं बहुत पहले हो गयी और ठीक जरूरतके समयपर सामान पहुँच गया। सामान भी इतना कि जिससे इतने लोग तृप्त हो गये। मुझे तो पता भी नहीं था कि कितने आदमी खानेवाले हैं। इक्के भी साथ आ गये-जिससे सामान स्टेशनपर भेजा जा सका। ठीक समयपर सामान पहुँचा। एक घण्टे बाद पहुँचता, तब भी इस काममें नहीं आता और दो-एक घण्टे पहले पहुँच गया होता तो उसे दूसरे काममें ले लिया जाता, इस कामके लिये नहीं बचता।
इससे सिद्ध होता है कि कोई ऐसी सदा जाग्रत् रहकर व्यवस्था करनेवाली अचिन्त्य महान् शक्ति है, जो आगे से आगे यथायोग्य व्यवस्था करती रहती है-और वही शक्ति जगत्का संचालन करती है। उसके मंगल-विधानके अनुसार सब कार्य सुव्यवस्थित रूपसे होते रहते हैं। जो स्थिति अब सामने आती है, उसकी तैयारी बहुत पहले हो जाती है। मनुष्य उस परम शक्तिपर विश्वास करके निश्चिन्त रह सके तो भगवान्की सेवाके भावसे सब कार्य करता हुआ भी वह सदा सुखी रह सकता है।
[ श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार ]
(1) prabhukripaase maranaasann maankee ichchhaapoorti
puraanee baat hai-kalakatte men sar kailaasachandr vasu prasiddh daॉktar ho gaye hain. unakee maata beemaar theen. ek din shreevasu mahodayane dekhaa-maataakee beemaaree badha़ gayee hai, kab praan chale jaayen, kuchh pata naheen. raatrika samay thaa. kailaas baaboone bada़ee namrataake saath maataajeese poochhaa- 'mee tumhaare manamen kisee cheejakee ichchha ho to bataao, main use pooree kar doon.' maata kuchh der chup rahakar boleen- 'betaa! us din mainne bambaeeke anjeer khaaye the meree ichchha hai anjeer mil jaayen to main kha loon.' un dinon kalakatteke baajaaramen hare anjeer naheen milate the. bambaeese mangaane men samay apekshit thaa. havaaee jahaaj the naheen. relake maarg se bhee aajakalakee apeksha adhik samay lagata thaa. kailaas baaboo bada़e dukhee ho gaye-bhane antim samayamen ek cheej maangee aur main maankee us maangako pooree naheen kar saka, isase badha़kar mere liye duhkhakee baat aur kya hogee ? par kuchh bhee upaay naheen soojhaa. rupayonse milanevaalee cheej hotee to koee baat hee naheen thee . kalakatte ya bangaalamen kaheen anjeer hote naheen, baajaaramen milate naheen. bambaee se aanemen teen din lagate hain. teleephon bhee naheen, jo soochana de den. tabatak pata naheen-maataajee jeevit rahen ya naheen, athava jeevit bhee rahen to kha saken ya naheen. kailaas baaboo niraash hokar pada़ gaye aur mana-hee-man rote hue kahane lage— 'he bhagavan! kya main itana abhaaga hoon ki maankee antim chaahako pooree hote naheen dekhoongaa.' raatake lagabhag gyaarah baje kiseene daravaaja kholaneke liye baaharase aavaaj dee. daॉktar vasunesamajha, kisee rogeeke yahaanse bulaava aaya hogaa. unaka chitt bahut khinn thaa. unhonne kah diya 'is samay main naheen ja sakoongaa.' baahar khada़e aadameene kahaa- 'main bulaane naheen aaya hoon, ek cheej lekar aaya hoon- daravaaja kholiye.' daravaaja khola gayaa. sundar tokaree haathamen liye ek darabaanane bheetar aakar kahaa- 'daॉktar saahaba! hamaare baaboojee abhee bambaeese aaye hain, ve sabere hee rangoon chale jaayenge, unhonne yah anjeerakee tokaree bhejee hai, ve bambaeese laaye hain. mujhase kaha hai ki main sabere chala jaaoonga abhee anjeer de aao. iseeliye main abhee lekar a gayaa. kashtake liye kshama keejiyegaa.'
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