(१)
जब जगज्जननीने मुझे 'बच्चा' कहा
कई वर्ष हो गये, जब मैंने मानसरोवर कैलासकी यात्रा की थी। मार्गदर्शक, रसोइयेके अतिरिक्त केवल एक सहयात्री थे। हम दोनों एक छोटे तम्बूमें सोते थे और रसोइया तथा मार्गदर्शक दूसरे तम्बूमें।
"दादा, मेरा मनोरथ सफल हो गया।' वे सहयात्री आयुमें छोटे होनेसे मुझे 'दादा' कहते थे। मानसरोवरके किनारे हमारा शिविर था। प्रातः उठकर उन्होंने बड़े उत्फुल्ल मुखसे यह सुनाया।
'हुआ क्या?' मैंने पूछा।
उन्होंने जो कुछ कहा, उसका सारांश दे रहा हूँ। उनके शब्द अब ठीक-ठीक स्मरण नहीं हैं। घरपर कभी उनको कोई महात्मा मिले थे। उन सन्तने कहा था 'यदि तुम मानसरोवरकी यात्रा करो और वहाँ सूर्योदयसे सूर्यास्ततक खुले आकाशके नीचे व्रत करके रहो, तो रात्रिमें तुम्हें उमा-महेश्वरके दर्शन होंगे।'
उन्होंने पहले दिन दोनों समय खाया नहीं था। पूछनेपर कोई ठीक कारण न बताकर कह दिया था 'इच्छा नहीं है।' मानसरोवरके किनारे दिनभर दूरतक घूमते रहे थे।
'मुझे दर्शन हो गये!' उन्होंने बतलाया- मैंने आपको जगानेका दो-तीन बार प्रयत्न किया; किंतु 'माँ'ने रोक दिया, यह कहकर - 'बच्चा सो रहा है। जगा मत।'
स्पष्ट कर दूँ कि मैंने कुछ देखा या अनुभव कियानहीं। मैं उनकी बात ही दे रहा हूँ। उन्होंने सच कहा होगा-ऐसा मुझे विश्वास है। 'तुमको कुछ वरदान मिला ?' मैंने पूछा।
उन्होंने एक हस्तलिखित कागज निकाला। उसमें केवल बहुतसे नामोंकी सूची थी। उन्होंने बतलाया 'यह मेरे पूर्वजों आदिकी नामावली है, जो मैं पूछ पाछकर बना सका। मैंने प्रभुसे वरदान माँगा-इनलोगोंको नरकसे निकाल दें! प्रभुने सूची पढ़नेको कहा। मैं एक-एक नाम पढ़ता जाता था और वे हाथसे निकालनेका हलका संकेत करते जाते थे।'
और कुछ ?' मैंने पूछा। -'सूची पूरी हुई और प्रभु
'नहीं।' उन्होंने कहा- "
अदृश्य हो गये माँके साथ।'
'हाय रे भाग्य!' मेरे मुखसे निकल गया 'कल्पवृक्षके नीचे पहुँचकर भी तुम कंगाल ही रहे।'
'आप यदि नींदमें न होते तो क्या माँगते ?' उन्होंने पूछा। 'मैं क्यों माँगता ?' मैंने कहा-'मुझे जो माँगना
था, वह तो नींदमें होनेपर भी मुझे मिल गया।'
'क्या मिला आपको ?' बहुत चाँके थे वे। 'जगज्जननीने 'बच्चा' कहा था न मुझे ?' मैंने पूछा।
'कहा तो था। मैंने दो-तीन बार जगानेका प्रयत्न किया और प्रत्येक बार माँने मना किया। प्रत्येक बार 'बच्चा' कहा। पिछली बार तो उनके स्वरमें रोषभरी झिड़की थी।' वे बोले । 'जागनेपर भी मैं और क्या माँगनेवाला था। मुझेकहना ही यह था कि अपने श्रीमुखसे एक बार 'पुत्र'कहकर सम्बोधित करो।'
'प्रभु यदि माँगनेको कहते' उन्होंने बात बिना समझे पूछा- 'क्या माँगते आप ?"
'तुम जानते हो कि पुत्रको माता-पितासे लड़ने झगड़नेका भी अधिकार है।' मैंने उन्हें बतलाया- 'और मेरा स्वभाव झगड़ा मोल लेनेवाला है।'
'आप प्रभुसे झगड़ा करते ?' आश्चर्यसे देखते रह गये वे ।
'मैं कहता- आप पिता हैं। बच्चेपर प्रसन्न हैं तो जो प्रसन्नता हो दे दें; किंतु मैं भिखारी हूँ-यह आप क्यों समझते हैं? माता-पिताका जो कुछ है, वह तो पुत्रका स्वत्व है। उससे बाहर कुछ बचता है क्या?' उन सज्जनको पश्चात्ताप हुआ। वे अपने और सूचीके सब नामोंके लिये मोक्ष माँग सकते थे; किंतुअभीष्टका कामनाका पात्र होता ही बहुत छोटा है। उसे लेकर जानेवालेके हाथ उतना ही तो आयेगा, जितना बड़ा उसका पात्र होगा।
शंकर परम कल्याणप्रदाता प्रभु हैं अनंगमोचन होकर । वस्तुतः जीवको लघु-बन्धनग्रस्त किया है। कामनाओं-उसके छोटे-बड़े अभीष्टोंने इस कामना समूहका ही ध्वंस अभीष्ट है। कामनाशका ही नाम कल्याण है और कामनाश होता है तब, जब कामारिको अपने चिन्तनका विषय बनाया जाता है।
(२)
अकल्पनीय दीर्घ छायाकृतिद्वारा जीवनरक्षा
मैं कैलास-मानसरोवरकी यात्रापर जा रहा था। गर्योगसे कुछ और यात्री साथ हो गये थे। हमलोगोंने हिमशिखरके नीचे विश्राम किया था रात्रिमें और चार बजे ही चढ़ाई प्रारम्भ कर दी थी। सूर्योदयसे पूर्व यदि हिमशिखर पार हो जाय तो ठीक। धूपमें प्रखरता आनेसे पूर्व जो बरफ पत्थर सी कठोर है, वही धूप होनेपर नरम हो जायगी। उसमें कहाँ घुटनोंतक और कहीं कटितक धँसना पड़ेगा, कहना कठिन है।
गयोंगसे तकलाकोट जानेके इस भार्गमें केवल एक हिमशिखर पार करना पड़ता है। हम आधीके लगभग चढ़ाईपर पहुँचे होंगे कि हिमपात प्रारम्भ हो गया। इस वर्ष ग्रीष्मारम्भमें अभीतक मार्ग खुला नहीं था। केवल कुछ बकरीवाले एक दिन पूर्व गये थे। हमारा यात्री दल पहला ही था। सर्वत्र भूमि हिमसे पर्याप्त ऊँचाईतक ढकी थी।
जैसे कद्दूकसपर कसकर बहुत पतली नारियलकी गिरी टोकरोंसे ऊपरसे गिरायी जा रही हो, ऐसा था वह हिमपात हमें अपने आगे कठिनाईसे एक या दो फुट दीखता था। बहुत घने कुहरेसे भी घना था वह अन्धकार ।
मार्गदर्शकने हिमपातके प्रारम्भमें ही चेतावनी दी 'मेरे खोजपर ही पैर रखकर चलें उतराईमें साथ रहें सब। जहाँ-तहाँ मार्गसे थोड़े ही इधर-उधर गहरे खड्ड हिमसे ढके हैं।'
हिमपात कोई पद चिह्न दो क्षण भी नहीं रहने देताथा कठिन चढ़ाई, प्राणवायुकी वायुमण्डलमें कमी और ऊपरसे यह हिमवर्षा। सबको अपनी-अपनी पड़ी थी। सब आगे-पीछे हो गये। कौन कितना पीछे है, यह न देखा जा सकता था, न देखनेका अवकाश था। मार्गदर्शक अवश्य बीच-बीचमें पुकार लेता था।
मैं पूरा बल लगाकर चढ़ रहा था। दूसरोंकी अपेक्षा पर्वतीय चढ़ाईका मुझे अभ्यास भी था। मैंने मार्गदर्शक के शब्द पीछे सुने। उसकी उपेक्षा करके बढ़ता गया। किसी भी प्रकार यह विकट चढ़ाई पार कर लेनेकी धुन थी।
शिखरपर पहुँचा तो हिमपात अधिक बढ़ गया। शीतका यह हाल कि नाकसे निकली श्वासका पानी मूछोंपर हिम बनकर जम गया था। श्वास लेनेमें कष्ट हो रहा था, उस ऊँचाईपर। अतः रुककर प्रतीक्षा कर लेनेका, साथियोंको आ जाने देनेका धैर्य नहीं रहा। मैं उतरने लग गया। जैसी खड़ी कठिन चढ़ाई थी, वैसा ही खड़ा उतार था। एक बार चला तो पैरोंकी गति स्वतः बढ़ती गयी।
'तिष्ठ!' सहसा बड़े कड़े स्वरोंमें किसीने समीपसे ही कहा। मेरे पद एकाएक रुक गये। मैंने खड़े होकर इधर-उधर देखा। सघन हिमपातके कारण कुछ देखना सम्भव नहीं था। बस, ऐसा लगा कि दाहिनी और एक मानवाकार, पर बहुत अकल्पनीय कोई दीर्घ छाया-सी है। इससे अधिक दीखनेकी आशा उस हिमपातमें नहीं थी।
'अपनी छड़ीसे सम्मुख देखो।' अत्यन्त सरल संस्कृतमें फिर मुझसे कहा गया। मैंने हाथकी छड़ी अपनेसे थोड़े आगे भूमिमें गड़ानेका प्रयत्न किया तो वह भीतर घुसती चली गयी। एक बार मेरा पूरा शरीर काँप गया। इसका अर्थ था कि मैं कोमल हिमसे ढके किसी गहरे खड़के कगारपर खड़ा था। एक पद और उठा होता तो पता नहीं, कई सौ या कई सहस्र फुट गहरे हिमके नीचे देह पहुँच गया होता।
'आप कौन ?' दो क्षण लगे मुझे अपनेको स्थिर करनेमें। दो पद पीछे हटा में और तब मैंने पूछा। 'तुम्हें इससे प्रयोजन नहीं है।' उत्तर आया। 'मुझे तुम्हारी रक्षाके लिये भेजा गया है।' 'किसने भेजा है ?''महाबुद्धने ।'
'महाबुद्ध कौन ?'
'हाँ यह तुम जान सकते हो।' उत्तर आया। 'तुम्हारे यहाँ देशमें बहुत मन्दिर हैं, शिवके। उनमें प्रत्येक मन्दिरमें पूजन होता है। शिव उतने हैं क्या ?" 'नहीं, वे एक हैं।'
'प्रत्येक जिज्ञासुके पृथक्-पृथक् गुरु होते हैं; किंतु सचमुच व्यक्ति गुरु नहीं होता।' वे अदृश्य कह रहे थे। "गुरुतत्त्व - परमगुरु एक ही है। हम उसे 'महाबुद्ध' कहते हैं। तुम शेष, शिव या श्री कहते हो।"
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥
मुझे गुरुवन्दनाके श्लोकका यह उत्तरार्ध स्मरण आया।एक, नित्य, विमल, अचल, समस्त बुद्धियोंका साक्षी, भावातीत और त्रिगुणरहित; भला, व्यक्ति हो कैसे सकता है?
लगा कि दाहिनी ओर जो अस्पष्ट छायाकृति थी, वह वहाँ नहीं है। जानेसे पूर्व उसने कहा था- 'अपनी वामभुजाकी ओर घूम जाओ। थोड़ी दूर चलो। हिमरहित शिला मिले तो उसपर खड़े होना । तुम्हारे साथी तुम्हें शीघ्र मिल जायँगे । '
मैं घूम गया। थोड़ी दूरीपर पर्वतका एक भाग कुछ झुका मिला। फलतः उसके समीपकी शिलापर आगे हिम नहीं था। मैं वहाँ खड़ा ही हुआ था कि हिमपात बन्द हो गया। धूप निकल आयी। मेरे साथी पर्वतसे उतरते समीप आ पहुँचे थे। भला, उनसे मैं क्या कहता ।
[ श्रीसुदर्शनसिंहजी 'चक्र' ]
(1)
jab jagajjananeene mujhe 'bachchaa' kahaa
kaee varsh ho gaye, jab mainne maanasarovar kailaasakee yaatra kee thee. maargadarshak, rasoiyeke atirikt keval ek sahayaatree the. ham donon ek chhote tamboomen sote the aur rasoiya tatha maargadarshak doosare tamboomen.
"daada, mera manorath saphal ho gayaa.' ve sahayaatree aayumen chhote honese mujhe 'daadaa' kahate the. maanasarovarake kinaare hamaara shivir thaa. praatah uthakar unhonne bada़e utphull mukhase yah sunaayaa.
'hua kyaa?' mainne poochhaa.
unhonne jo kuchh kaha, usaka saaraansh de raha hoon. unake shabd ab theeka-theek smaran naheen hain. gharapar kabhee unako koee mahaatma mile the. un santane kaha tha 'yadi tum maanasarovarakee yaatra karo aur vahaan sooryodayase sooryaastatak khule aakaashake neeche vrat karake raho, to raatrimen tumhen umaa-maheshvarake darshan honge.'
unhonne pahale din donon samay khaaya naheen thaa. poochhanepar koee theek kaaran n bataakar kah diya tha 'ichchha naheen hai.' maanasarovarake kinaare dinabhar dooratak ghoomate rahe the.
'mujhe darshan ho gaye!' unhonne batalaayaa- mainne aapako jagaaneka do-teen baar prayatn kiyaa; kintu 'maan'ne rok diya, yah kahakar - 'bachcha so raha hai. jaga mata.'
spasht kar doon ki mainne kuchh dekha ya anubhav kiyaanaheen. main unakee baat hee de raha hoon. unhonne sach kaha hogaa-aisa mujhe vishvaas hai. 'tumako kuchh varadaan mila ?' mainne poochhaa.
unhonne ek hastalikhit kaagaj nikaalaa. usamen keval bahutase naamonkee soochee thee. unhonne batalaaya 'yah mere poorvajon aadikee naamaavalee hai, jo main poochh paachhakar bana sakaa. mainne prabhuse varadaan maangaa-inalogonko narakase nikaal den! prabhune soochee padha़neko kahaa. main eka-ek naam padha़ta jaata tha aur ve haathase nikaalaneka halaka sanket karate jaate the.'
aur kuchh ?' mainne poochhaa. -'soochee pooree huee aur prabhu
'naheen.' unhonne kahaa- "
adrishy ho gaye maanke saatha.'
'haay re bhaagya!' mere mukhase nikal gaya 'kalpavrikshake neeche pahunchakar bhee tum kangaal hee rahe.'
'aap yadi neendamen n hote to kya maangate ?' unhonne poochhaa. 'main kyon maangata ?' mainne kahaa-'mujhe jo maanganaa
tha, vah to neendamen honepar bhee mujhe mil gayaa.'
'kya mila aapako ?' bahut chaanke the ve. 'jagajjananeene 'bachchaa' kaha tha n mujhe ?' mainne poochhaa.
'kaha to thaa. mainne do-teen baar jagaaneka prayatn kiya aur pratyek baar maanne mana kiyaa. pratyek baar 'bachchaa' kahaa. pichhalee baar to unake svaramen roshabharee jhida़kee thee.' ve bole . 'jaaganepar bhee main aur kya maanganevaala thaa. mujhekahana hee yah tha ki apane shreemukhase ek baar 'putra'kahakar sambodhit karo.'
'prabhu yadi maanganeko kahate' unhonne baat bina samajhe poochhaa- 'kya maangate aap ?"
'tum jaanate ho ki putrako maataa-pitaase lada़ne jhagada़neka bhee adhikaar hai.' mainne unhen batalaayaa- 'aur mera svabhaav jhagada़a mol lenevaala hai.'
'aap prabhuse jhagada़a karate ?' aashcharyase dekhate rah gaye ve .
'main kahataa- aap pita hain. bachchepar prasann hain to jo prasannata ho de den; kintu main bhikhaaree hoon-yah aap kyon samajhate hain? maataa-pitaaka jo kuchh hai, vah to putraka svatv hai. usase baahar kuchh bachata hai kyaa?' un sajjanako pashchaattaap huaa. ve apane aur soocheeke sab naamonke liye moksh maang sakate the; kintuabheeshtaka kaamanaaka paatr hota hee bahut chhota hai. use lekar jaanevaaleke haath utana hee to aayega, jitana bada़a usaka paatr hogaa.
shankar param kalyaanapradaata prabhu hain anangamochan hokar . vastutah jeevako laghu-bandhanagrast kiya hai. kaamanaaon-usake chhote-bada़e abheeshtonne is kaamana samoohaka hee dhvans abheesht hai. kaamanaashaka hee naam kalyaan hai aur kaamanaash hota hai tab, jab kaamaariko apane chintanaka vishay banaaya jaata hai.
(2)
akalpaneey deergh chhaayaakritidvaara jeevanarakshaa
main kailaasa-maanasarovarakee yaatraapar ja raha thaa. garyogase kuchh aur yaatree saath ho gaye the. hamalogonne himashikharake neeche vishraam kiya tha raatrimen aur chaar baje hee chadha़aaee praarambh kar dee thee. sooryodayase poorv yadi himashikhar paar ho jaay to theeka. dhoopamen prakharata aanese poorv jo baraph patthar see kathor hai, vahee dhoop honepar naram ho jaayagee. usamen kahaan ghutanontak aur kaheen katitak dhansana pada़ega, kahana kathin hai.
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jaise kaddookasapar kasakar bahut patalee naariyalakee giree tokaronse ooparase giraayee ja rahee ho, aisa tha vah himapaat hamen apane aage kathinaaeese ek ya do phut deekhata thaa. bahut ghane kuharese bhee ghana tha vah andhakaar .
maargadarshakane himapaatake praarambhamen hee chetaavanee dee 'mere khojapar hee pair rakhakar chalen utaraaeemen saath rahen saba. jahaan-tahaan maargase thoda़e hee idhara-udhar gahare khadd himase dhake hain.'
himapaat koee pad chihn do kshan bhee naheen rahane detaatha kathin chadha़aaee, praanavaayukee vaayumandalamen kamee aur ooparase yah himavarshaa. sabako apanee-apanee pada़ee thee. sab aage-peechhe ho gaye. kaun kitana peechhe hai, yah n dekha ja sakata tha, n dekhaneka avakaash thaa. maargadarshak avashy beecha-beechamen pukaar leta thaa.
main poora bal lagaakar chadha़ raha thaa. doosaronkee apeksha parvateey chadha़aaeeka mujhe abhyaas bhee thaa. mainne maargadarshak ke shabd peechhe sune. usakee upeksha karake badha़ta gayaa. kisee bhee prakaar yah vikat chadha़aaee paar kar lenekee dhun thee.
shikharapar pahuncha to himapaat adhik badha़ gayaa. sheetaka yah haal ki naakase nikalee shvaasaka paanee moochhonpar him banakar jam gaya thaa. shvaas lenemen kasht ho raha tha, us oonchaaeepara. atah rukakar prateeksha kar leneka, saathiyonko a jaane deneka dhairy naheen rahaa. main utarane lag gayaa. jaisee khada़ee kathin chadha़aaee thee, vaisa hee khada़a utaar thaa. ek baar chala to paironkee gati svatah badha़tee gayee.
'tishtha!' sahasa bada़e kada़e svaronmen kiseene sameepase hee kahaa. mere pad ekaaek ruk gaye. mainne khada़e hokar idhara-udhar dekhaa. saghan himapaatake kaaran kuchh dekhana sambhav naheen thaa. bas, aisa laga ki daahinee aur ek maanavaakaar, par bahut akalpaneey koee deergh chhaayaa-see hai. isase adhik deekhanekee aasha us himapaatamen naheen thee.
'apanee chhada़eese sammukh dekho.' atyant saral sanskritamen phir mujhase kaha gayaa. mainne haathakee chhada़ee apanese thoda़e aage bhoomimen gada़aaneka prayatn kiya to vah bheetar ghusatee chalee gayee. ek baar mera poora shareer kaanp gayaa. isaka arth tha ki main komal himase dhake kisee gahare khaड़ke kagaarapar khada़a thaa. ek pad aur utha hota to pata naheen, kaee sau ya kaee sahasr phut gahare himake neeche deh pahunch gaya hotaa.
'aap kaun ?' do kshan lage mujhe apaneko sthir karanemen. do pad peechhe hata men aur tab mainne poochhaa. 'tumhen isase prayojan naheen hai.' uttar aayaa. 'mujhe tumhaaree rakshaake liye bheja gaya hai.' 'kisane bheja hai ?''mahaabuddhane .'
'mahaabuddh kaun ?'
'haan yah tum jaan sakate ho.' uttar aayaa. 'tumhaare yahaan deshamen bahut mandir hain, shivake. unamen pratyek mandiramen poojan hota hai. shiv utane hain kya ?" 'naheen, ve ek hain.'
'pratyek jijnaasuke prithak-prithak guru hote hain; kintu sachamuch vyakti guru naheen hotaa.' ve adrishy kah rahe the. "gurutattv - paramaguru ek hee hai. ham use 'mahaabuddha' kahate hain. tum shesh, shiv ya shree kahate ho."
ekan nityan vimalamachalan sarvadheesaakshibhootan
bhaavaateetan trigunarahitan sadgurun tan namaami ..
mujhe guruvandanaake shlokaka yah uttaraardh smaran aayaa.ek, nity, vimal, achal, samast buddhiyonka saakshee, bhaavaateet aur trigunarahita; bhala, vyakti ho kaise sakata hai?
laga ki daahinee or jo aspasht chhaayaakriti thee, vah vahaan naheen hai. jaanese poorv usane kaha thaa- 'apanee vaamabhujaakee or ghoom jaao. thoda़ee door chalo. himarahit shila mile to usapar khada़e hona . tumhaare saathee tumhen sheeghr mil jaayange . '
main ghoom gayaa. thoda़ee dooreepar parvataka ek bhaag kuchh jhuka milaa. phalatah usake sameepakee shilaapar aage him naheen thaa. main vahaan khada़a hee hua tha ki himapaat band ho gayaa. dhoop nikal aayee. mere saathee parvatase utarate sameep a pahunche the. bhala, unase main kya kahata .
[ shreesudarshanasinhajee 'chakra' ]