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आर्य-कन्याका आदर्श  [Wisdom Story]
शिक्षदायक कहानी - Moral Story (Hindi Story)

मद्रदेशके राजा अश्वपतिने अपनी परम सुन्दरी कन्या सावित्रीको स्वतन्त्र कर दिया था कि वह अपने योग्य पति चुन ले तो उसीसे उसका विवाह कर दिया जाय। राजाने अपने बुद्धिमान् मन्त्रीको कन्याके साथ भेज दिया था अनेक देशोंमें घूमकर राजकुमारोंको देखनेके लिये। राजा अश्वपतिने अपनी पुत्रीकी योग्यता, धर्मशीलता तथा विचारशक्तिपर विश्वास करके ही उसे यह स्वतन्त्रता दी थी और जब बहुत-से नगरोंकी यात्रा करके सावित्री लौटी, तब यह सिद्ध हो गया कि पिताने उसपर उचित भरोसा किया था। सावित्रीने न तो रूपकी महत्ता दी, न बलकी और न धन अथवा राज्यकी ही। उसने महत्ता दी थी धर्मकी उसने शाल्वदेशके नेत्रहीन राजा सुमत्सेनके पुत्र सत्यवान्को पति बनानेका ि किया था, यद्यपि उस समय राजा द्युमत्सेन शत्रुओंद्वारा राज्यपर अधिकार कर लिये जानेके कारण स्त्री तथापुत्रके साथ वनमें तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे थे। संयोगवश देवर्षि नारदजी उस समय राजा अश्वपतिके यहाँ आये थे जब कि सावित्री अपनी यात्रा समाप्त करके लौटी। देवर्षिने उसका निश्चय जानकर बतलाया 'निश्चय सत्यवान् सद्गुणी और धर्मात्मा हैं; वे बुद्धिमान्, शूर, क्षमाशील तथा तेजस्वी हैं; किंतु वे अल्पायु हैं। आजसे ठीक एक वर्ष बाद उनकी मृत्यु हो जायगी।' यह सुनकर राजा अश्वपतिने पुत्रीसे कहा- 'बेटी ! तुम और किसीको अपने पतिके रूपमें चुन लो । ' सावित्रीने नम्रतापूर्वक कहा - 'पिताजी! एक बार मनसे मैंने जिनका वरण कर लिया, वे ही मेरे पति हैं। चाहे कुछ भी हो, मैं अब और किसीका वरण नहीं कर सकती। कन्याका दान एक बार दिया जाता है और आर्यकन्या एक बार ही पतिका वरण करती है।'
-सु0 सिं0 (महाभारत, वन0 293 - 294)



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Hindi Story सादगी


aarya-kanyaaka aadarsha

madradeshake raaja ashvapatine apanee param sundaree kanya saavitreeko svatantr kar diya tha ki vah apane yogy pati chun le to useese usaka vivaah kar diya jaaya. raajaane apane buddhimaan mantreeko kanyaake saath bhej diya tha anek deshonmen ghoomakar raajakumaaronko dekhaneke liye. raaja ashvapatine apanee putreekee yogyata, dharmasheelata tatha vichaarashaktipar vishvaas karake hee use yah svatantrata dee thee aur jab bahuta-se nagaronkee yaatra karake saavitree lautee, tab yah siddh ho gaya ki pitaane usapar uchit bharosa kiya thaa. saavitreene n to roopakee mahatta dee, n balakee aur n dhan athava raajyakee hee. usane mahatta dee thee dharmakee usane shaalvadeshake netraheen raaja sumatsenake putr satyavaanko pati banaaneka i kiya tha, yadyapi us samay raaja dyumatsen shatruondvaara raajyapar adhikaar kar liye jaaneke kaaran stree tathaaputrake saath vanamen tapasvee jeevan vyateet kar rahe the. sanyogavash devarshi naaradajee us samay raaja ashvapatike yahaan aaye the jab ki saavitree apanee yaatra samaapt karake lautee. devarshine usaka nishchay jaanakar batalaaya 'nishchay satyavaan sadgunee aur dharmaatma hain; ve buddhimaan, shoor, kshamaasheel tatha tejasvee hain; kintu ve alpaayu hain. aajase theek ek varsh baad unakee mrityu ho jaayagee.' yah sunakar raaja ashvapatine putreese kahaa- 'betee ! tum aur kiseeko apane patike roopamen chun lo . ' saavitreene namrataapoorvak kaha - 'pitaajee! ek baar manase mainne jinaka varan kar liya, ve hee mere pati hain. chaahe kuchh bhee ho, main ab aur kiseeka varan naheen kar sakatee. kanyaaka daan ek baar diya jaata hai aur aaryakanya ek baar hee patika varan karatee hai.'
-su0 sin0 (mahaabhaarat, vana0 293 - 294)

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