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मैं मूर्खता क्यों करूँ  [हिन्दी कथा]
Hindi Story - Hindi Story (बोध कथा)

श्रीरामकृष्ण परमहंसके गलेमें नासूर हो गया था। उस समय श्रीशशधर तर्कचूड़ामणि परमहंसदेवके पास आये थे। उन्होंने कहा - " आप यदि मनको एकाग्र करके कहें 'रोग चला जा! रोग चला जा!' तो निश्चय रोग चला जायगा। "

परमहंसदेव बोले-“आप विद्वान् होकर मुझे ऐसी सम्मति देते हैं! जो मन सच्चिदानन्दमयी माँका स्मरण करनेके लिये मुझे मिला है, उसे वहाँसे हटाकर मैंहाड़-मांसके पिंजड़ेमें लगाऊँ ?" परंतु शिष्योंको इससे संतोष नहीं हुआ। सब लोगोंने मिलकर आग्रह किया- 'आप माँसे ही प्रार्थना करें कि यह रोग मिटा दो।'

परमहंसदेव बोले—‘मैं ऐसी मूर्खता क्यों करूँ। माँ | दयामयी हैं, सर्वज्ञ हैं और समर्थ हैं। उन्हें जो मेरे कल्याणके लिये उचित लगता है, वह कर ही रही हैं। उनकी व्यवस्था में हाथ डालनेका छिछोरापन मुझसे नहीं होगा।' -सु0 सिं0



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main moorkhata kyon karoon

shreeraamakrishn paramahansake galemen naasoor ho gaya thaa. us samay shreeshashadhar tarkachooda़aamani paramahansadevake paas aaye the. unhonne kaha - " aap yadi manako ekaagr karake kahen 'rog chala jaa! rog chala jaa!' to nishchay rog chala jaayagaa. "

paramahansadev bole-“aap vidvaan hokar mujhe aisee sammati dete hain! jo man sachchidaanandamayee maanka smaran karaneke liye mujhe mila hai, use vahaanse hataakar mainhaada़-maansake pinjada़emen lagaaoon ?" parantu shishyonko isase santosh naheen huaa. sab logonne milakar aagrah kiyaa- 'aap maanse hee praarthana karen ki yah rog mita do.'

paramahansadev bole—‘main aisee moorkhata kyon karoon. maan | dayaamayee hain, sarvajn hain aur samarth hain. unhen jo mere kalyaanake liye uchit lagata hai, vah kar hee rahee hain. unakee vyavastha men haath daalaneka chhichhoraapan mujhase naheen hogaa.' -su0 sin0

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