⮪ All Stories / कथा / कहानियाँ

करम प्रधान बिस्व करि राखा  [शिक्षदायक कहानी]
Spiritual Story - Story To Read (Spiritual Story)

करम प्रधान बिस्व करि राखा'

श्रीरामचन्द्रजीको वनमें गये छठी रात बीत रही थी। जब आधी रात हुई, तब राजा दशरथको उस पहलेके किये हुए दुष्कर्मका स्मरण हुआ। पुत्रशोकसे पीड़ित हुए महाराजने अपने उस दुष्कर्मको याद करके पुत्रशोकसे व्याकुल हुई कौसल्यासे इस प्रकार कहना आरम्भ किया। 'कल्याणि ! मनुष्य शुभ या अशुभ जो भी कर्म करता है, भद्रे ! अपने उसी कर्मके फलस्वरूप सुख या दुःख कर्ताको प्राप्त होते हैं।
कौसल्ये! पिताके जीवनकालमें जब मैं केवल राजकुमार था, एक अच्छे धनुर्धरके रूपमें मेरी ख्याति फैल गयी थी। सब लोग यही कहते थे कि 'राजकुमार दशरथ शब्दवेधी बाण चलाना जानते हैं।' इसी ख्यातिमें पड़कर मैंने एक पाप कर डाला था।
देवि! उस अपने ही किये हुए कुकर्मका फल मुझे इस महान् दुःखके रूपमें प्राप्त हुआ है। जैसे दूसरा कोई गँवार मनुष्य पलाशके फूलोंपर ही मोहित हो उसके कड़वे फलको नहीं जानता, उसी प्रकार मैं भी 'शब्दवेधी वाण-विद्या' की प्रशंसा सुनकर उसपर लट्टू हो गया।। उसके द्वारा ऐसा क्रूरतापूर्ण पापकर्म बन सकता है और ऐसा भयंकर फल प्राप्त हो सकता है, इसका ज्ञान मुझे नहीं हुआ।
देवि! तब तुम्हारा विवाह नहीं हुआ था और मैं अभी युवराज ही था, उन्हीं दिनोंकी बात है। वर्षा ऋतुका अत्यन्त सुखद और सुहावन समय था, मैं धनुष बाण लेकर रथपर सवार हो शिकार खेलनेके लिये सरयूनदी के तटपर गया था। मेरी इन्द्रियाँ मेरे वशमें नहीं थीं। मैंने सोचा था कि पानी पीनेके लिये घाटपर रातके समय जब कोई उपद्रवकारी भैंसा, मतवाला हाथी अथवा सिंहव्याघ्र आदि दूसरा कोई हिंसक जन्तु आयेगा तो उसे मारूँगा।
उस समय वहाँ सब ओर अन्धकार छा रहा था। मुझे अकस्मात् पानीमें घड़ा भरनेकी आवाज सुनायी पड़ी। मेरी दृष्टि तो वहाँतक पहुँचती नहीं थी, किंतु वह आवाज मुझे हाथीके पानी पीते समय होनेवाले शब्दके समान जान पड़ी। तब मैंने यह समझकर कि हाथी ही अपनी सूँड़में पानी खींच रहा होगा; अतः वही मेरे बाणका निशाना बनेगा। तरकससे एक तीर निकाला और उस शब्दको लक्ष्य करके चला दिया। वह दीप्तिमान् बाण विषधर सर्पके समान भयंकर था।
वह उष:कालकी वेला थी। विषैले सर्पके सदृश उस तीखे बाणको मैंने ज्यों ही छोड़ा, त्यों ही वहाँ पानीमें गिरते हुए किसी वनवासीका हाहाकार मुझे स्पष्टरूपसे सुनायी दिया। मेरे बाणसे उसके मर्ममें बड़ी पीड़ा हो रही थी। उस पुरुषके धराशायी हो जानेपर वहाँ यह मानव- वाणी प्रकट हुई- आह! मेरे-जैसे तपस्वीपर शस्त्रका प्रहार कैसे सम्भव हुआ? मैं तो नदीके इस एकान्त तटपर रातमें पानी लेनेके लिये आया था। किसने मुझे बाण मारा है? मैंने किसका क्या बिगाड़ा था ? मैं तो सभी जीवोंको पीड़ा देनेकी वृत्तिका त्याग करके ऋषि जीवन बिताता था, वनमें रहकर जंगली फल मूलोंसे ही जीविका चलाता था। मुझ जैसे निरपराध मनुष्यका शस्त्रसे वध क्यों किया जा रहा है?
मुझे अपने इस जीवनके नष्ट होनेकी उतनी चिन्ता नहीं है; मेरे मारे जानेसे मेरे माता-पिताको जो कष्ट होगा, उसीके लिये मुझे बारम्बार शोक हो रहा है। मैंने इन दोनों वृद्धोंका बहुत समयसे पालन-पोषण किया है; अब मेरे शरीरके न रहनेपर ये किस प्रकार जीवन-निर्वाह करेंगे ?
ये करुणाभरे वचन सुनकर मेरे मनमें बड़ी व्यथा हुई। कहाँ तो मैं धर्मकी अभिलाषा रखनेवाला था और कहाँ यह अधर्मका कार्य बन गया। उस समय मेरे हाथोंसे धनुष और वाण छूटकर पृथ्वीपर गिर पड़े। रातमें विलाप करते हुए ऋषिका वह करुण वचन सुनकर मैं शोकके वेगसे घबरा उठा। मेरी चेतना अत्यन्त विलुप्त सी होने लगी।
मेरे हृदयमें दीनता छा गयी, मन बहुत दुखी हो गया। सरयूके किनारे उस स्थानपर जाकर मैंने देखा 'एक तपस्वी बाणसे घायल होकर पड़े हैं। उनकी जटाएँ बिखरी हुई हैं, घड़ेका जल गिर गया है तथा सारा शरीर धूल और खूनमें सना हुआ है। वे बाणसे बिंधे हुए पड़े थे। उनकी अवस्था देखकर मैं डर गया, मेरा चित्त ठिकाने नहीं था। उन्होंने दोनों नेत्रोंसे मेरी ओर इस प्रकार देखा, मानो अपने तेजसे मुझे भस्म कर देना चाहते हों। वे कठोर वाणीमें यों बोले-'राजन्! वनमें रहते हुए मैंने तुम्हारा कौन-सा अपराध किया था. जिससे तुमने मुझे बाण मारा ? मैं तो माता-पिताके लिये पानी लेनेकी इच्छासे यहाँ आया था। तुमने एक ही बाणसे मेरा मर्म विदीर्ण करके मेरे दोनों अन्धे और बूढ़े माता-पिताको भी मार डाला। वे दोनों बहुत दुबले और अन्धे हैं। निश्चय ही प्याससे पीड़ित होकर वे मेरी प्रतीक्षामें बैठे होंगे। वे देरतक मेरे आगमनकी आशा लगाये दुःखदायिनी प्यास लिये बाट जोहते रहेंगे।
अतः रघुकुलनरेश ! अब तुम्हीं जाकर शीघ्र ही मेरे पिताको यह समाचार सुना दो। राजन् ! यह पगडण्डी उधर ही गयी है, जहाँ मेरे पिताका आश्रम है। तुम जाकर उन्हें प्रसन्न करो, जिससे वे कुपित होकर तुम्हें शाप न दें। राजन्! मेरे शरीरसे इस बाणको निकाल दो। यह तीखा बाण मेरे मर्मस्थानको उसी प्रकार पीड़ा दे रहा है, जैसे नदीके जलका वेग उसके कोमल बालुकामय ऊँचे तटको छिन्न-भिन्न कर देता है।'
मुनिकुमारकी यह बात सुनकर मेरे मनमें यह चिन्ता समायी कि यदि वाण नहीं निकालता हूँ तो इन्हें क्लेश होता है और निकाल देता हूँ तो ये अभी प्राणोंसे भी हाथ धो बैठते हैं। इस प्रकार बाणको निकालनेके विषयमें मुझ दीन दुखी और शोकाकुल दशरथकी इस चिन्ताको उस समय मुनिकुमारने लक्ष्य किया।
यथार्थ बातको समझ लेनेवाले उन महर्षिने मुझे अत्यन्त ग्लानिमें पड़ा हुआ देख बड़े कष्टसे कहा 'राजन्! मुझे बड़ा कष्ट हो रहा है। मेरी आँखें चढ़ गयी हैं, अंग-अंगमें तड़पन हो रही है। मुझसे कोई चेष्टा नहीं बन पाती। अब मैं मृत्युके समीप पहुँच गया हूँ, फिर भी धैर्यके द्वारा शोकको रोककर अपने चित्तको स्थिर करता हूँ, अब मेरी बात सुनो—'मुझसे ब्रह्महत्या हो 'गयी'- इस चिन्ताको अपने हृदयसे निकाल दो। राजन्! मैं ब्राह्मण नहीं हूँ, इसलिये तुम्हारे मनमें ब्राह्मणवधको लेकर कोई व्यथा नहीं होनी चाहिये। नरश्रेष्ठ! मैं वैश्य पिताद्वारा शूद्रजातीय माताके गर्भसे उत्पन्न हुआ हूँ।'
वाणसे मर्ममें आघात पहुँचनेके कारण वे बड़े कष्टसे इतना ही कह सके। उनकी आँखें घूम रही थीं। उनसे कोई चेष्टा नहीं बनती थी। वे पृथ्वीपर पड़े-पड़े छटपटा रहे थे और अत्यन्त कष्टका अनुभव करते थे । उस अवस्थामें मैंने उनके शरीरसे उस बाणको निकाल दिया। फिर तो अत्यन्त दीन होकर उन तपोधनने मेरी और देख करके अपने प्राण त्याग दिये।
पानी में गिरनेके कारण उनका सारा शरीर भीग गया था। मर्ममें आघात लगनेके कारण बड़े कष्टसे विलाप करके और बारम्बार उच्छ्वास लेकर उन्होंने प्राणोंका त्याग किया था। कल्याणी कौसल्ये! उस अवस्थामें सरयूके तटपर मरे पड़े मुनिपुत्रको देखकर मुझे बड़ा दुःख हुआ।'
उन महर्षिके अनुचित वधका स्मरण करके धर्मात्मा रघुकुलनरेशने अपने पुत्रके लिये विलाप करते हुए ही रानी कौसल्यासे इस प्रकार कहा-'देवि! अनजानमें यह महान् पाप कर डालनेके कारण मेरी सारी इन्द्रियाँ व्याकुल हो रही थीं। मैं अकेला ही बुद्धि लगाकर सोचने लगा, अब किस उपायसे मेरा कल्याण हो ?
तदनन्तर उस घड़ेको उठाकर मैंने सरयूके उत्तम जलसे भरा और उसे लेकर मुनिकुमारके बताये हुए मार्गसे उनके आश्रमपर गया। वहाँ पहुँचकर मैंने उनके दुबले, अन्धे और बूढ़े माता-पिताको देखा, जिनका दूसरा कोई सहायक नहीं था। उनकी अवस्था पंख कटे हुए दो पक्षियोंके समान थी।
मेरे पैरोंकी आहट सुनकर वे मुनि इस प्रकार बोले- 'बेटा! देर क्यों लगा रहे हो ? शीघ्र पानी ले आओ। हम असहाय हैं, तुम्हीं हमारे सहायक हो। हम अन्धे हैं, तुम्हीं हमारे नेत्र हो। हमलोगोंके प्राण तुम्हींमें अटके हुए हैं। बताओ, तुम बोलते क्यों नहीं हो ?' मुनिको देखते ही मेरे मनमें भय-सा समा गया। मेरी जवान लड़खड़ाने लगी। किसी प्रकार अस्पष्ट वाणीमें मैंने बोलनेका प्रयास किया।
मैंने कहा—'महात्मन्! मैं आपका पुत्र नहीं, दशरथ नामका एक क्षत्रिय हूँ। मैंने अपने कर्मवश यह ऐसा कलंक पाया है, जिसकी सत्पुरुषोंने सदा निन्दा की है। भगवन्! मैं धनुष-बाण लेकर सरयूके तटपर आया था। मेरे आनेका उद्देश्य यह था कि कोई जंगली हिंसक पशु अथवा हाथी घाटपर पानी पीनेके लिये आये तो मैं उसे मारूँ।
थोड़ी देर बाद मुझे जलमें घड़ा भरनेका शब्द सुनायी पड़ा। मैंने समझा कि कोई हाथी आकर पानी पी रहा है, इसलिये उसपर बाण चला दिया। फिर सरयूके तटपर जाकर देखा कि मेरा बाण एक तपस्वीकी छातीमें लगा है और वे मृतप्राय होकर धरतीपर पड़े हैं। उस बाणसे उन्हें बड़ी पीड़ा हो रही थी, अतः उस समय उन्हींके कहनेसे मैंने सहसा वह बाण उनके मर्म स्थानसे निकाल दिया। बाण निकलनेके साथ ही वे तत्काल स्वर्ग सिधार गये। मरते समय उन्होंने आप दोनों पूजनीय अन्धे पिता-माताके लिये बड़ा शोक और विलाप किया था। इस प्रकार अनजानमें मेरे हाथसे आपके पुत्रका वध हो गया है। ऐसी अवस्थामें मेरे प्रति जो शाप या अनुग्रह शेष हो, उसे देनेके लिये आप महर्षि मुझपर प्रसन्न हों।'
मैंने अपने मुँहसे अपना पाप प्रकट कर दिया था, इसलिये मेरी क्रूरतासे भरी हुई वह बात सुनकर भी वे पूज्यपाद महर्षि मुझे कठोर दण्ड-भस्म हो जानेका शाप नहीं दे सके। उनके मुखपर आँसुओंकी धारा बह चली और वे शोकसे मूच्छित होकर दीर्घ निःश्वास लेने लगे। मैं हाथ जोड़े उनके सामने खड़ा था।
उस समय उन महातेजस्वी मुनिने मुझसे कहा 'राजन्! यदि यह अपना पापकर्म तुम स्वयं यहाँ आकर न बताते तो शीघ्र ही तुम्हारे मस्तकके सैकड़ों-हजारों टुकड़े हो जाते। नरेश्वर यदि क्षत्रिय जान-बूझकर विशेषतः किसी वानप्रस्थीका वध कर डाले तो वह वज्रधारी इन्द्र ही क्यों न हो, वह उसे अपने स्थानसे भ्रष्ट कर देता है। तुमने अनजानमें यह पाप किया है, इसीलिये अभीतक जीवित हो। यदि जान-बूझकर किया होता तो समस्त रघुवंशियोंका कुल ही नष्ट हो जाता, अकेले तुम्हारी तो बात ही क्या है ?"
उन्होंने मुझसे यह भी कहा- 'नरेश्वर ! तुम हम दोनोंको उस स्थानपर ले चलो, जहाँ हमारा पुत्र मरा पड़ा है। इस समय हम उसे देखना चाहते हैं। यह हमारे लिये उसका अन्तिम दर्शन होगा।'
तब मैं अकेला ही अत्यन्त दुःखमें पड़े हुए उ दम्पतीको उस स्थानपर ले गया, जहाँ उनका पु कालके अधीन होकर पृथ्वीपर अचेत पड़ा था। उसके सारे अंग खूनसे लथपथ हो रहे थे, मृगचर्म और वस् बिखरे पड़े थे। मैंने पत्नीसहित मुनिको उनके पुत्र शरीरका स्पर्श कराया।
वे दोनों तपस्वी अपने उस पुत्रका स्पर्श करके उसके अत्यन्त निकट जाकर उसके शरीरपर गिर पड़े। फिर पिताने पुत्रको सम्बोधित करके उससे कहा- 'अब कौन ऐसा है, जो कन्द, मूल और फल लाकर मुझ अकर्मण्य, अन्नसंग्रहसे रहित और अनाथको प्रिय अतिथिकी भाँति भोजन करायेगा। बेटा! तुम्हारी यह तपस्विनी माता अन्धी, बूढ़ी, दीन तथा पुत्रके लिये उत्कण्ठित रहनेवाली है। मैं स्वयं अन्धा होकर इसका भरण-पोषण कैसे करूँगा? पुत्र ठहरो, आज यमराजके घर न जाओ। कल मेरे और अपनी माताके साथ चलना। बेटा! तुम निष्पाप हो, किंतु एक पापकर्मा क्षत्रियने तुम्हारा वध किया है, इस कारण मेरे सत्यके प्रभावसे तुम शीघ्र ही उन लोकोंमें जाओ, जो अस्त्रयोधी शूरवीरोंको प्राप्त होते हैं। बेटा! युद्धमें पीठ न दिखानेवाले शूरवीर सम्मुख युद्धमें मारे जानेपर जिस गतिको प्राप्त होते हैं, उसी उत्तम गतिको तुम भी जाओ। हम जैसे तपस्वियोंके इस कुलमें पैदा हुआ कोई पुरुष बुरी गतिको नहीं प्राप्त हो सकता। बुरी गति तो उसकी होगी, जिसने मेरे बान्धवरूप तुम्हें अकारण मारा है ?'
इस प्रकार वे दीनभावसे बारम्बार विलाप करने लगे। तत्पश्चात् अपनी पत्नीके साथ वे पुत्रको जलांजलि देनेके कार्यमें प्रवृत्त हुए। इसी समय वह धर्मज्ञ मुनिकुमार अपने पुण्यकर्मोंके प्रभावसे दिव्य रूप धारण करके शीघ्र ही इन्द्रके साथ स्वर्गको जाने लगा।
इन्द्रसहित उस तपस्वीने अपने दोनों बूढ़े पिता माताको एक मुहूर्ततक आश्वासन देते हुए उनसे बातचीत की; फिर वह अपने पितासे बोला- 'में आप दोनोंकी सेवाये महान स्थानको प्राप्त हुआ है, अब आपलोग भी शीघ्र ही मेरे पास आ जाइयेगा।' यह कहकर वह जितेन्द्रिय मुनिकुमार उस सुन्दर आकारवाले दिव्य विमानसे शीघ्र ही देवलोकको चला गया। तदनन्तर पत्नीसहित उन महातेजस्वी तपस्वी मुनिने तुरंत ही पुत्रको जलांजलि देकर हाथ जोड़े खड़े हुए मुझसे कहा- 'राजन्! तुम आज ही मुझे भी मार डालो; अब मरनेमें मुझे कष्ट नहीं होगा। मेरे एक ही बेटा था, जिसे तुमने अपने बाणका निशाना बनाकर मुझे पुत्रहीन कर दिया। तुमने प्रमादवश जो मेरे बालककी हत्या की है, उसके कारण मैं तुम्हें भी अत्यन्त भयंकर एवं भलीभाँति दुःख देनेवाला शाप दूँगा। राजन्! इस समय पुत्रके वियोगसे मुझे जैसा कष्ट हो रहा है, ऐसा ही तुम्हें भी होगा। तुम भी पुत्रशोकसे ही कालके गाल में जाओगे। नरेश्वर! क्षत्रिय होकर अनजानमें तुमने वैश्यजातीय मुनिका वध किया है, इसलिये तुम्हें ब्रह्महत्याका पार तो नहीं लगेगा, तथापि जल्दी ही तुम्हें भी ऐसी ही भयानक और प्राण लेनेवाली अवस्था प्राप्त होगी।'
इस प्रकार मुझे शाप देकर वे बहुत देरतक करुणाजनक विलाप करते रहे; फिर वे दोनों पति-पत्नी अपने शरीरोंको जलती हुई चितामें डालकर स्वर्गको चले गये।
देवि ! इस प्रकार बालस्वभावके कारण मैंने पहले शब्दवेधी बाण मारकर और फिर उस मुनिके शरीरसे बाणको खींचकर जो उनका वधरूपी पाप किया था, वह आज इस पुत्रवियोगकी चिन्तामें पड़े हुए मुझे स्वयं ही स्मरण हो आया है।
देवि ! अपथ्य वस्तुओंके साथ अन्नरस ग्रहण कर लेनेपर जैसे शरीरमें रोग पैदा हो जाता है, उसी प्रकार कल्याणि ! उस उदार महात्माका शाप रूपी वचन इस समय मेरे पास उस पापकर्मका फल देनेके लिये आ गया है।'



You may also like these:

Hindi Story कर्मफल
छोटी सी कहानी आखिरमें मिला क्या
Shikshaprad Kahani सहज अधिकार
शिक्षदायक कहानी मधुर विनोद
हिन्दी कथा पुजारीको आश्चर्य
Spiritual Story कृतज्ञता


karam pradhaan bisv kari raakhaa

karam pradhaan bisv kari raakhaa'

shreeraamachandrajeeko vanamen gaye chhathee raat beet rahee thee. jab aadhee raat huee, tab raaja dasharathako us pahaleke kiye hue dushkarmaka smaran huaa. putrashokase peeda़it hue mahaaraajane apane us dushkarmako yaad karake putrashokase vyaakul huee kausalyaase is prakaar kahana aarambh kiyaa. 'kalyaani ! manushy shubh ya ashubh jo bhee karm karata hai, bhadre ! apane usee karmake phalasvaroop sukh ya duhkh kartaako praapt hote hain.
kausalye! pitaake jeevanakaalamen jab main keval raajakumaar tha, ek achchhe dhanurdharake roopamen meree khyaati phail gayee thee. sab log yahee kahate the ki 'raajakumaar dasharath shabdavedhee baan chalaana jaanate hain.' isee khyaatimen pada़kar mainne ek paap kar daala thaa.
devi! us apane hee kiye hue kukarmaka phal mujhe is mahaan duhkhake roopamen praapt hua hai. jaise doosara koee ganvaar manushy palaashake phoolonpar hee mohit ho usake kada़ve phalako naheen jaanata, usee prakaar main bhee 'shabdavedhee vaana-vidyaa' kee prashansa sunakar usapar lattoo ho gayaa.. usake dvaara aisa kroorataapoorn paapakarm ban sakata hai aur aisa bhayankar phal praapt ho sakata hai, isaka jnaan mujhe naheen huaa.
devi! tab tumhaara vivaah naheen hua tha aur main abhee yuvaraaj hee tha, unheen dinonkee baat hai. varsha rituka atyant sukhad aur suhaavan samay tha, main dhanush baan lekar rathapar savaar ho shikaar khelaneke liye sarayoonadee ke tatapar gaya thaa. meree indriyaan mere vashamen naheen theen. mainne socha tha ki paanee peeneke liye ghaatapar raatake samay jab koee upadravakaaree bhainsa, matavaala haathee athava sinhavyaaghr aadi doosara koee hinsak jantu aayega to use maaroongaa.
us samay vahaan sab or andhakaar chha raha thaa. mujhe akasmaat paaneemen ghada़a bharanekee aavaaj sunaayee pada़ee. meree drishti to vahaantak pahunchatee naheen thee, kintu vah aavaaj mujhe haatheeke paanee peete samay honevaale shabdake samaan jaan pada़ee. tab mainne yah samajhakar ki haathee hee apanee soonda़men paanee kheench raha hogaa; atah vahee mere baanaka nishaana banegaa. tarakasase ek teer nikaala aur us shabdako lakshy karake chala diyaa. vah deeptimaan baan vishadhar sarpake samaan bhayankar thaa.
vah usha:kaalakee vela thee. vishaile sarpake sadrish us teekhe baanako mainne jyon hee chhoda़a, tyon hee vahaan paaneemen girate hue kisee vanavaaseeka haahaakaar mujhe spashtaroopase sunaayee diyaa. mere baanase usake marmamen bada़ee peeda़a ho rahee thee. us purushake dharaashaayee ho jaanepar vahaan yah maanava- vaanee prakat huee- aaha! mere-jaise tapasveepar shastraka prahaar kaise sambhav huaa? main to nadeeke is ekaant tatapar raatamen paanee leneke liye aaya thaa. kisane mujhe baan maara hai? mainne kisaka kya bigaada़a tha ? main to sabhee jeevonko peeda़a denekee vrittika tyaag karake rishi jeevan bitaata tha, vanamen rahakar jangalee phal moolonse hee jeevika chalaata thaa. mujh jaise niraparaadh manushyaka shastrase vadh kyon kiya ja raha hai?
mujhe apane is jeevanake nasht honekee utanee chinta naheen hai; mere maare jaanese mere maataa-pitaako jo kasht hoga, useeke liye mujhe baarambaar shok ho raha hai. mainne in donon vriddhonka bahut samayase paalana-poshan kiya hai; ab mere shareerake n rahanepar ye kis prakaar jeevana-nirvaah karenge ?
ye karunaabhare vachan sunakar mere manamen bada़ee vyatha huee. kahaan to main dharmakee abhilaasha rakhanevaala tha aur kahaan yah adharmaka kaary ban gayaa. us samay mere haathonse dhanush aur vaan chhootakar prithveepar gir pada़e. raatamen vilaap karate hue rishika vah karun vachan sunakar main shokake vegase ghabara uthaa. meree chetana atyant vilupt see hone lagee.
mere hridayamen deenata chha gayee, man bahut dukhee ho gayaa. sarayooke kinaare us sthaanapar jaakar mainne dekha 'ek tapasvee baanase ghaayal hokar pada़e hain. unakee jataaen bikharee huee hain, ghada़eka jal gir gaya hai tatha saara shareer dhool aur khoonamen sana hua hai. ve baanase bindhe hue pada़e the. unakee avastha dekhakar main dar gaya, mera chitt thikaane naheen thaa. unhonne donon netronse meree or is prakaar dekha, maano apane tejase mujhe bhasm kar dena chaahate hon. ve kathor vaaneemen yon bole-'raajan! vanamen rahate hue mainne tumhaara kauna-sa aparaadh kiya thaa. jisase tumane mujhe baan maara ? main to maataa-pitaake liye paanee lenekee ichchhaase yahaan aaya thaa. tumane ek hee baanase mera marm videern karake mere donon andhe aur boodha़e maataa-pitaako bhee maar daalaa. ve donon bahut dubale aur andhe hain. nishchay hee pyaasase peeda़it hokar ve meree prateekshaamen baithe honge. ve deratak mere aagamanakee aasha lagaaye duhkhadaayinee pyaas liye baat johate rahenge.
atah raghukulanaresh ! ab tumheen jaakar sheeghr hee mere pitaako yah samaachaar suna do. raajan ! yah pagadandee udhar hee gayee hai, jahaan mere pitaaka aashram hai. tum jaakar unhen prasann karo, jisase ve kupit hokar tumhen shaap n den. raajan! mere shareerase is baanako nikaal do. yah teekha baan mere marmasthaanako usee prakaar peeda़a de raha hai, jaise nadeeke jalaka veg usake komal baalukaamay oonche tatako chhinna-bhinn kar deta hai.'
munikumaarakee yah baat sunakar mere manamen yah chinta samaayee ki yadi vaan naheen nikaalata hoon to inhen klesh hota hai aur nikaal deta hoon to ye abhee praanonse bhee haath dho baithate hain. is prakaar baanako nikaalaneke vishayamen mujh deen dukhee aur shokaakul dasharathakee is chintaako us samay munikumaarane lakshy kiyaa.
yathaarth baatako samajh lenevaale un maharshine mujhe atyant glaanimen pada़a hua dekh bada़e kashtase kaha 'raajan! mujhe bada़a kasht ho raha hai. meree aankhen chaढ़ gayee hain, anga-angamen tada़pan ho rahee hai. mujhase koee cheshta naheen ban paatee. ab main mrityuke sameep pahunch gaya hoon, phir bhee dhairyake dvaara shokako rokakar apane chittako sthir karata hoon, ab meree baat suno—'mujhase brahmahatya ho 'gayee'- is chintaako apane hridayase nikaal do. raajan! main braahman naheen hoon, isaliye tumhaare manamen braahmanavadhako lekar koee vyatha naheen honee chaahiye. narashreshtha! main vaishy pitaadvaara shoodrajaateey maataake garbhase utpann hua hoon.'
vaanase marmamen aaghaat pahunchaneke kaaran ve bada़e kashtase itana hee kah sake. unakee aankhen ghoom rahee theen. unase koee cheshta naheen banatee thee. ve prithveepar pada़e-pada़e chhatapata rahe the aur atyant kashtaka anubhav karate the . us avasthaamen mainne unake shareerase us baanako nikaal diyaa. phir to atyant deen hokar un tapodhanane meree aur dekh karake apane praan tyaag diye.
paanee men giraneke kaaran unaka saara shareer bheeg gaya thaa. marmamen aaghaat laganeke kaaran bada़e kashtase vilaap karake aur baarambaar uchchhvaas lekar unhonne praanonka tyaag kiya thaa. kalyaanee kausalye! us avasthaamen sarayooke tatapar mare pada़e muniputrako dekhakar mujhe bada़a duhkh huaa.'
un maharshike anuchit vadhaka smaran karake dharmaatma raghukulanareshane apane putrake liye vilaap karate hue hee raanee kausalyaase is prakaar kahaa-'devi! anajaanamen yah mahaan paap kar daalaneke kaaran meree saaree indriyaan vyaakul ho rahee theen. main akela hee buddhi lagaakar sochane laga, ab kis upaayase mera kalyaan ho ?
tadanantar us ghada़eko uthaakar mainne sarayooke uttam jalase bhara aur use lekar munikumaarake bataaye hue maargase unake aashramapar gayaa. vahaan pahunchakar mainne unake dubale, andhe aur boodha़e maataa-pitaako dekha, jinaka doosara koee sahaayak naheen thaa. unakee avastha pankh kate hue do pakshiyonke samaan thee.
mere paironkee aahat sunakar ve muni is prakaar bole- 'betaa! der kyon laga rahe ho ? sheeghr paanee le aao. ham asahaay hain, tumheen hamaare sahaayak ho. ham andhe hain, tumheen hamaare netr ho. hamalogonke praan tumheenmen atake hue hain. bataao, tum bolate kyon naheen ho ?' muniko dekhate hee mere manamen bhaya-sa sama gayaa. meree javaan lada़khada़aane lagee. kisee prakaar aspasht vaaneemen mainne bolaneka prayaas kiyaa.
mainne kahaa—'mahaatman! main aapaka putr naheen, dasharath naamaka ek kshatriy hoon. mainne apane karmavash yah aisa kalank paaya hai, jisakee satpurushonne sada ninda kee hai. bhagavan! main dhanusha-baan lekar sarayooke tatapar aaya thaa. mere aaneka uddeshy yah tha ki koee jangalee hinsak pashu athava haathee ghaatapar paanee peeneke liye aaye to main use maaroon.
thoda़ee der baad mujhe jalamen ghada़a bharaneka shabd sunaayee pada़aa. mainne samajha ki koee haathee aakar paanee pee raha hai, isaliye usapar baan chala diyaa. phir sarayooke tatapar jaakar dekha ki mera baan ek tapasveekee chhaateemen laga hai aur ve mritapraay hokar dharateepar pada़e hain. us baanase unhen bada़ee peeda़a ho rahee thee, atah us samay unheenke kahanese mainne sahasa vah baan unake marm sthaanase nikaal diyaa. baan nikalaneke saath hee ve tatkaal svarg sidhaar gaye. marate samay unhonne aap donon poojaneey andhe pitaa-maataake liye bada़a shok aur vilaap kiya thaa. is prakaar anajaanamen mere haathase aapake putraka vadh ho gaya hai. aisee avasthaamen mere prati jo shaap ya anugrah shesh ho, use deneke liye aap maharshi mujhapar prasann hon.'
mainne apane munhase apana paap prakat kar diya tha, isaliye meree kroorataase bharee huee vah baat sunakar bhee ve poojyapaad maharshi mujhe kathor danda-bhasm ho jaaneka shaap naheen de sake. unake mukhapar aansuonkee dhaara bah chalee aur ve shokase moochchhit hokar deergh nihshvaas lene lage. main haath joda़e unake saamane khada़a thaa.
us samay un mahaatejasvee munine mujhase kaha 'raajan! yadi yah apana paapakarm tum svayan yahaan aakar n bataate to sheeghr hee tumhaare mastakake saikada़on-hajaaron tukada़e ho jaate. nareshvar yadi kshatriy jaana-boojhakar visheshatah kisee vaanaprastheeka vadh kar daale to vah vajradhaaree indr hee kyon n ho, vah use apane sthaanase bhrasht kar deta hai. tumane anajaanamen yah paap kiya hai, iseeliye abheetak jeevit ho. yadi jaana-boojhakar kiya hota to samast raghuvanshiyonka kul hee nasht ho jaata, akele tumhaaree to baat hee kya hai ?"
unhonne mujhase yah bhee kahaa- 'nareshvar ! tum ham dononko us sthaanapar le chalo, jahaan hamaara putr mara pada़a hai. is samay ham use dekhana chaahate hain. yah hamaare liye usaka antim darshan hogaa.'
tab main akela hee atyant duhkhamen pada़e hue u dampateeko us sthaanapar le gaya, jahaan unaka pu kaalake adheen hokar prithveepar achet pada़a thaa. usake saare ang khoonase lathapath ho rahe the, mrigacharm aur vas bikhare pada़e the. mainne patneesahit muniko unake putr shareeraka sparsh karaayaa.
ve donon tapasvee apane us putraka sparsh karake usake atyant nikat jaakar usake shareerapar gir pada़e. phir pitaane putrako sambodhit karake usase kahaa- 'ab kaun aisa hai, jo kand, mool aur phal laakar mujh akarmany, annasangrahase rahit aur anaathako priy atithikee bhaanti bhojan karaayegaa. betaa! tumhaaree yah tapasvinee maata andhee, booढ़ee, deen tatha putrake liye utkanthit rahanevaalee hai. main svayan andha hokar isaka bharana-poshan kaise karoongaa? putr thaharo, aaj yamaraajake ghar n jaao. kal mere aur apanee maataake saath chalanaa. betaa! tum nishpaap ho, kintu ek paapakarma kshatriyane tumhaara vadh kiya hai, is kaaran mere satyake prabhaavase tum sheeghr hee un lokonmen jaao, jo astrayodhee shooraveeronko praapt hote hain. betaa! yuddhamen peeth n dikhaanevaale shooraveer sammukh yuddhamen maare jaanepar jis gatiko praapt hote hain, usee uttam gatiko tum bhee jaao. ham jaise tapasviyonke is kulamen paida hua koee purush buree gatiko naheen praapt ho sakataa. buree gati to usakee hogee, jisane mere baandhavaroop tumhen akaaran maara hai ?'
is prakaar ve deenabhaavase baarambaar vilaap karane lage. tatpashchaat apanee patneeke saath ve putrako jalaanjali deneke kaaryamen pravritt hue. isee samay vah dharmajn munikumaar apane punyakarmonke prabhaavase divy roop dhaaran karake sheeghr hee indrake saath svargako jaane lagaa.
indrasahit us tapasveene apane donon boodha़e pita maataako ek muhoortatak aashvaasan dete hue unase baatacheet kee; phir vah apane pitaase bolaa- 'men aap dononkee sevaaye mahaan sthaanako praapt hua hai, ab aapalog bhee sheeghr hee mere paas a jaaiyegaa.' yah kahakar vah jitendriy munikumaar us sundar aakaaravaale divy vimaanase sheeghr hee devalokako chala gayaa. tadanantar patneesahit un mahaatejasvee tapasvee munine turant hee putrako jalaanjali dekar haath joda़e khada़e hue mujhase kahaa- 'raajan! tum aaj hee mujhe bhee maar daalo; ab maranemen mujhe kasht naheen hogaa. mere ek hee beta tha, jise tumane apane baanaka nishaana banaakar mujhe putraheen kar diyaa. tumane pramaadavash jo mere baalakakee hatya kee hai, usake kaaran main tumhen bhee atyant bhayankar evan bhaleebhaanti duhkh denevaala shaap doongaa. raajan! is samay putrake viyogase mujhe jaisa kasht ho raha hai, aisa hee tumhen bhee hogaa. tum bhee putrashokase hee kaalake gaal men jaaoge. nareshvara! kshatriy hokar anajaanamen tumane vaishyajaateey munika vadh kiya hai, isaliye tumhen brahmahatyaaka paar to naheen lagega, tathaapi jaldee hee tumhen bhee aisee hee bhayaanak aur praan lenevaalee avastha praapt hogee.'
is prakaar mujhe shaap dekar ve bahut deratak karunaajanak vilaap karate rahe; phir ve donon pati-patnee apane shareeronko jalatee huee chitaamen daalakar svargako chale gaye.
devi ! is prakaar baalasvabhaavake kaaran mainne pahale shabdavedhee baan maarakar aur phir us munike shareerase baanako kheenchakar jo unaka vadharoopee paap kiya tha, vah aaj is putraviyogakee chintaamen pada़e hue mujhe svayan hee smaran ho aaya hai.
devi ! apathy vastuonke saath annaras grahan kar lenepar jaise shareeramen rog paida ho jaata hai, usee prakaar kalyaani ! us udaar mahaatmaaka shaap roopee vachan is samay mere paas us paapakarmaka phal deneke liye a gaya hai.'

159 Views





Bhajan Lyrics View All

श्री राधा हमारी गोरी गोरी, के नवल
यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्य
ज़री की पगड़ी बाँधे, सुंदर आँखों वाला,
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
सब हो गए भव से पार, लेकर नाम तेरा
नाम तेरा हरि नाम तेरा, नाम तेरा हरि नाम
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
हम प्रेम दीवानी हैं, वो प्रेम दीवाना।
ऐ उधो हमे ज्ञान की पोथी ना सुनाना॥
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ ।
एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री
दासी की झोली भर दो लाडली श्री राधे॥
हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
राधा राधा राधा राधा
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
तीनो लोकन से न्यारी राधा रानी हमारी।
राधा रानी हमारी, राधा रानी हमारी॥
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
सत्यम शिवम सुन्दरम
सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया, दिल दीवाना हो गया ॥
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे,
कोई सोना की जो होती, हीरा मोत्यां की जो
कारे से लाल बनाए गयी रे,
गोरी बरसाने वारी
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
श्याम बुलाये राधा नहीं आये,
आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला
सब दुख दूर हुए जब तेरा नाम लिया
कौन मिटाए उसे जिसको राखे पिया
सांवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठानी
यह तो जाने दुनिया सारी है
राधे तेरे चरणों की अगर धूल जो मिल जाए
सच कहता हू मेरी तकदीर बदल जाए
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
श्याम देखा घनश्याम देखा
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं

New Bhajan Lyrics View All

श्री गोवर्धन महाराज लाज मेरी राखो हे
तेरे जोड़ू हाथ गिरधारी रे...
तू गोकुल का कान्हा है मैं बरसाने की
बात में तेरी मैं ना आउ जानके तेरी राधा
मुझे छोड़ ना देना माँ.मेरा दिल घबराता
जो छोड़ दिया तूने मेरा नीर बहाता है...
करेंगे सेवा हर जीवन में, पकड़ो हाथ
जनम जनम का साथ है,
कहीं देखा री ब्रिज में मुरली का बजाने