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पुजारीको आश्चर्य  [हिन्दी कथा]
प्रेरक कथा - आध्यात्मिक कहानी (हिन्दी कहानी)

वृन्दावनमें एक महात्मा हो गये हैं। उनका नाम था नारायणस्वामी। वे कुसुमसरोवरपर रहा करते थे। वहीं मन्दिरका एक पुजारी भी रहता था। एक दिन पुजारीने देखा – नारायणस्वामी पागलकी तरह कुसुमसरोवरसे गिरिराजकी ओर दौड़े जा रहे हैं। गिरिराजके पास जाकर वे फिर पीछेकी ओर लौटे तथा कुसुमसरोवरके पासतक दौड़ आये। पुनः गिरिराजकी ओर दौड़े और वैसे ही फिर पीछे लौट आये। इस प्रकार कितनी बार उस ओर दौड़े, फिर पीछे लौटे और पुनः उसी ओर दौड़ गये। पुजारीको आश्चर्य हुआ, पर उसने कुछ पूछा नहीं। किंतु दूसरे दिन भी नारायणस्वामीजी वैसे ही दौड़ते रहे। आज संध्याके समय पुजारीने उनके चरण पकड़कर पूछा- महाराज! 'इस प्रकार आप दौड़ते क्यों रहते हैं ?" नारायणस्वामीजीने कुछ भी उत्तर देना नहीं चाहा। पर पुजारी उनके पीछे पड़ गया। अन्ततोगत्वा उसका अतिशय प्रेम देखकर स्वामीजी बोले-'देखो, भैया! मैंजाता हूँ कुसुमसरोवरपर बैठकर भजन करने। जैसे बैठता हूँ कि मुझे दीखता है- भगवान् श्रीकृष्ण कुछ दूरपर खड़े हैं। उस समय उनकी सुन्दर शोभा देखकर मैं पागल हो जाता हूँ और उन्हें पकड़ने दौड़ता हूँ, किंतु वे भाग चलते हैं। मैं पीछे-पीछे दौड़ता हूँ। गिरिराजके पास पहुँचनेपर दीखता है कि वे मेरे पीछेकी ओर खड़े हैं और मैं उन्हें पकड़नेके लिये पीछे दौड़ पड़ता हूँ। | इसी प्रकार आज कई दिनोंसे दौड़ रहा हूँ।'

पुजारीने पूछा- 'महाराजजी ! उनसे कोई बात आप नहीं पूछते ?'

स्वामीजी बोले- 'पहले तो बहुत-सी बातें याद | रहती हैं। सोचता भी हूँ कि यह पूछ लूँगा, वह पूछ | लूँगा; किंतु उनके दीखते ही और सब भूल जाता हूँ, केवल उनकी याद बच रहती है।'

इन नारायणस्वामीको भगवान्‌की दिव्य लीलाओंके भी दर्शन कई बार हुआ करते थे।



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pujaareeko aashcharya

vrindaavanamen ek mahaatma ho gaye hain. unaka naam tha naaraayanasvaamee. ve kusumasarovarapar raha karate the. vaheen mandiraka ek pujaaree bhee rahata thaa. ek din pujaareene dekha – naaraayanasvaamee paagalakee tarah kusumasarovarase giriraajakee or dauda़e ja rahe hain. giriraajake paas jaakar ve phir peechhekee or laute tatha kusumasarovarake paasatak dauda़ aaye. punah giriraajakee or dauda़e aur vaise hee phir peechhe laut aaye. is prakaar kitanee baar us or dauda़e, phir peechhe laute aur punah usee or dauda़ gaye. pujaareeko aashchary hua, par usane kuchh poochha naheen. kintu doosare din bhee naaraayanasvaameejee vaise hee dauda़te rahe. aaj sandhyaake samay pujaareene unake charan pakada़kar poochhaa- mahaaraaja! 'is prakaar aap dauda़te kyon rahate hain ?" naaraayanasvaameejeene kuchh bhee uttar dena naheen chaahaa. par pujaaree unake peechhe pada़ gayaa. antatogatva usaka atishay prem dekhakar svaameejee bole-'dekho, bhaiyaa! mainjaata hoon kusumasarovarapar baithakar bhajan karane. jaise baithata hoon ki mujhe deekhata hai- bhagavaan shreekrishn kuchh doorapar khada़e hain. us samay unakee sundar shobha dekhakar main paagal ho jaata hoon aur unhen pakada़ne dauda़ta hoon, kintu ve bhaag chalate hain. main peechhe-peechhe dauda़ta hoon. giriraajake paas pahunchanepar deekhata hai ki ve mere peechhekee or khada़e hain aur main unhen pakada़neke liye peechhe dauda़ pada़ta hoon. | isee prakaar aaj kaee dinonse dauda़ raha hoon.'

pujaareene poochhaa- 'mahaaraajajee ! unase koee baat aap naheen poochhate ?'

svaameejee bole- 'pahale to bahuta-see baaten yaad | rahatee hain. sochata bhee hoon ki yah poochh loonga, vah poochh | loongaa; kintu unake deekhate hee aur sab bhool jaata hoon, keval unakee yaad bach rahatee hai.'

in naaraayanasvaameeko bhagavaan‌kee divy leelaaonke bhee darshan kaee baar hua karate the.

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