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स्वावलम्बी विद्यार्थी  [Hindi Story]
Shikshaprad Kahani - बोध कथा (Moral Story)

ग्रीसमें किलेन्थिस नामक एक युवक एथेंसके तत्त्ववेत्ता जीनोकी पाठशालामें पढ़ता था। किलेन्थिस बहुत ही गरीब था। उसके बदनपर पूरा कपड़ा नहीं था। पर पाठशालामें प्रतिदिन जो फीस देनी पड़ती थी, उसे किलेन्थिस रोज नियमसे दे देता था। पढ़ने में वह इतना तेज था कि दूसरे सब विद्यार्थी उससे ईर्षा करते। कुछ लोगोंने यह संदेह किया कि 'किलेन्थिस जो दैनिक फीसके पैसे देता है, सो जरूर कहींसे चुराकर लाता होगा; क्योंकि उसके पास तो फटे चिथड़ेके सिवा और कुछ है ही नहीं।' और उन्होंने आखिर उसे चोर बताकर पकड़वा दिया। मामला अदालतमें गया। किलेन्थिसने निर्भयताके साथ हाकिमसे कहा कि 'मैं बिलकुल निर्दोष हूँ, मुझपर चोरीका दोष सर्वथा मिथ्य लगाया गया है। मैं अपने इस बयानके समर्थनमें दो गवाहियाँ पेश करना चाहता हूँ।' गवाह बुलाये गये। पहला गवाह था एक माली।

उसने कहा कि 'यह युवक प्रतिदिन मेरे बगीचेमें आकर |कुएँसे पानी खींचता है और इसके लिये इसे कुछ पैसे मजदूरीके दिये जाते हैं।' दूसरी गवाहीमें एक बुढ़िया माईने कहा कि 'मैं बूढ़ी हूँ। मेरे घरमें कोई पीसनेवाला नहीं है। यह युवक प्रतिदिन मेरे घरपर आटा पीस जाता है और बदले में अपनी मजदूरीके पैसे ले जाता है।'

इस प्रकार शारीरिक परिश्रम करके किलेन्थिस कुछ आने प्रतिदिन कमाता और उसीसे अपना निर्वाह करता तथा पाठशालाकी फीस भी भरता। किलेन्थिसकी इस नेक कमाईकी बात सुनकर हाकिम बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे इतनी सहायता देनी चाही कि जिससे उसको पढ़नेके लिये मजदूरी करनी न पड़े; परंतु उसने सहायता लेना स्वीकार नहीं किया और कहा कि 'मैं स्वयं परिश्रम करके ही पढ़ना चाहता हूँ। किन्हींसे दान लेनेकी मुझे आवश्यकता नहीं है।'

उसके गुरु जीनो महाशयने भी उस स्वावलम्बी युवककी बातका समर्थन किया और उसके सहायता न लेनेपर प्रसन्नता प्रकट की!



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svaavalambee vidyaarthee

greesamen kilenthis naamak ek yuvak ethensake tattvavetta jeenokee paathashaalaamen padha़ta thaa. kilenthis bahut hee gareeb thaa. usake badanapar poora kapada़a naheen thaa. par paathashaalaamen pratidin jo phees denee pada़tee thee, use kilenthis roj niyamase de deta thaa. padha़ne men vah itana tej tha ki doosare sab vidyaarthee usase eersha karate. kuchh logonne yah sandeh kiya ki 'kilenthis jo dainik pheesake paise deta hai, so jaroor kaheense churaakar laata hogaa; kyonki usake paas to phate chithada़eke siva aur kuchh hai hee naheen.' aur unhonne aakhir use chor bataakar pakada़va diyaa. maamala adaalatamen gayaa. kilenthisane nirbhayataake saath haakimase kaha ki 'main bilakul nirdosh hoon, mujhapar choreeka dosh sarvatha mithy lagaaya gaya hai. main apane is bayaanake samarthanamen do gavaahiyaan pesh karana chaahata hoon.' gavaah bulaaye gaye. pahala gavaah tha ek maalee.

usane kaha ki 'yah yuvak pratidin mere bageechemen aakar |kuense paanee kheenchata hai aur isake liye ise kuchh paise majadooreeke diye jaate hain.' doosaree gavaaheemen ek budha़iya maaeene kaha ki 'main booढ़ee hoon. mere gharamen koee peesanevaala naheen hai. yah yuvak pratidin mere gharapar aata pees jaata hai aur badale men apanee majadooreeke paise le jaata hai.'

is prakaar shaareerik parishram karake kilenthis kuchh aane pratidin kamaata aur useese apana nirvaah karata tatha paathashaalaakee phees bhee bharataa. kilenthisakee is nek kamaaeekee baat sunakar haakim bahut prasann hue aur unhonne use itanee sahaayata denee chaahee ki jisase usako padha़neke liye majadooree karanee n pada़e; parantu usane sahaayata lena sveekaar naheen kiya aur kaha ki 'main svayan parishram karake hee padha़na chaahata hoon. kinheense daan lenekee mujhe aavashyakata naheen hai.'

usake guru jeeno mahaashayane bhee us svaavalambee yuvakakee baataka samarthan kiya aur usake sahaayata n lenepar prasannata prakat kee!

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