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वास्तविक उदारता  [Wisdom Story]
हिन्दी कहानी - आध्यात्मिक कहानी (Moral Story)

एक सम्पन्न व्यक्ति बहुत ही उदार थे। अपने पास आये किसी भी दीन-दुखीको वे निराश नहीं लौटाते थे; परंतु उन्हें अपनी इस उदारतापर गर्व था। वे समझते थे कि उनके समान उदार व्यक्ति दूसरा नहीं होगा। एक बार वे घूमते हुए एक खजूरके बागमें पहुँचे। उसी समय उस बागके रखवालेके लिये उसके घरसे एक लड़का रोटियाँ लेकर आया। लड़का रोटियाँ देकर चला गया। रखवालेने हाथ धोये और रोटियाँ खोलीं, इतनेमें वहाँ एक कुत्ता आ गया। रखवालेने एक रोटी कुत्तेको दे दी। किंतु कुत्ता भूखा था, एक रोटी वह झटपट खा गया और फिर पूँछ हिलाता रखवालेकी ओर देखने लगा। रखवालेने उसे दूसरी रोटी भी दे दी।

वे धनी सज्जन यह सब देख रहे थे। पास आकर उन्होंने रखवालेसे पूछा-'तुम्हारे लिये कितनी रोटियाँआती हैं ?'

रखवाला बोला- 'केवल दो ।' धनी व्यक्ति- 'तब तुमने दोनों रोटियाँ कुत्तेको क्यों दे दीं?'

रखवाला - 'महोदय ! तुम बड़े विचित्र आदमी हो । यहाँ कोई कुत्ता पहिलेसे नहीं था। यह कुत्ता यहाँ पहिले कभी आया नहीं है। यह भूखा कुत्ता यहाँ ठीक उस समय आया, जब रोटियाँ आयीं। मुझे ऐसा लगा कि आज ये रोटियाँ इसीके प्रारब्धसे आयी हैं। जिसकी वस्तु थी, उसे मैंने दे दिया। इसमें मैंने क्या विचित्रता की? एक दिन भूखे रहनेसे मेरी कोई हानि नहीं होगी।' उस धनी मनुष्यका मस्तक झुक गया। उनमें जो अपनी उदारताका अभिमान था, वह तत्काल नष्ट हो गया। – सु0 सिं0



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vaastavik udaarataa

ek sampann vyakti bahut hee udaar the. apane paas aaye kisee bhee deena-dukheeko ve niraash naheen lautaate the; parantu unhen apanee is udaarataapar garv thaa. ve samajhate the ki unake samaan udaar vyakti doosara naheen hogaa. ek baar ve ghoomate hue ek khajoorake baagamen pahunche. usee samay us baagake rakhavaaleke liye usake gharase ek lada़ka rotiyaan lekar aayaa. lada़ka rotiyaan dekar chala gayaa. rakhavaalene haath dhoye aur rotiyaan kholeen, itanemen vahaan ek kutta a gayaa. rakhavaalene ek rotee kutteko de dee. kintu kutta bhookha tha, ek rotee vah jhatapat kha gaya aur phir poonchh hilaata rakhavaalekee or dekhane lagaa. rakhavaalene use doosaree rotee bhee de dee.

ve dhanee sajjan yah sab dekh rahe the. paas aakar unhonne rakhavaalese poochhaa-'tumhaare liye kitanee rotiyaanaatee hain ?'

rakhavaala bolaa- 'keval do .' dhanee vyakti- 'tab tumane donon rotiyaan kutteko kyon de deen?'

rakhavaala - 'mahoday ! tum bada़e vichitr aadamee ho . yahaan koee kutta pahilese naheen thaa. yah kutta yahaan pahile kabhee aaya naheen hai. yah bhookha kutta yahaan theek us samay aaya, jab rotiyaan aayeen. mujhe aisa laga ki aaj ye rotiyaan iseeke praarabdhase aayee hain. jisakee vastu thee, use mainne de diyaa. isamen mainne kya vichitrata kee? ek din bhookhe rahanese meree koee haani naheen hogee.' us dhanee manushyaka mastak jhuk gayaa. unamen jo apanee udaarataaka abhimaan tha, vah tatkaal nasht ho gayaa. – su0 sin0

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